Romance शादी का मन्त्र – Buwa ki beti

शादी का मन्त्र buwa ki beti

भाग 1

“शर्मिला अरे कहाँ मर गई शर्मिला(शर्मिला)? कोई है घर में कि नही,दरवाजा तो सदा ही खुल्ला छोड़े रखती हो दोनों माँ बेटी।”

बुआजी शर्मिला को आवाज़ लगाती घर के भीतर दालान तक चली आई,दालान के एक ओर बने रसोईघर में शर्मिला चाय चढ़ा रही थी,उसने झट से पल्लू सर मे सजाया और बुआजी को आकर धोक दिया(प्रणाम )

बुआजी अपने लपटें मारते गोरे रंग की तरह ही आग उगलती फिरतीं थीं,नाटे से कद की बुआजी रंग रूप में भटूरे का गुन्था हुआ आटा यानी मैदा लगतीं थी,उनके चमकीले रूप ने उन्हें इस कदर गर्व से भर दिया कि अपने शरीर पे चढ़ती चर्बी की तरफ उनका कभी ध्यान ही नही गया,बढ़ते बढ़ते अब उनके पेट कमर और कूल्हों पर ऐसे टायर तैनात थे कि वो एक छोटा मोटा सा ट्रक प्रतीत होती थीं ।।

पर बुआजी में परोपकार की भावना कूट कूट कर भरी थी,किस किस के घर ब्याह के लायक लड़का लड़की मौजूद हैं,वो सूंघ के पता लगा लेती थी ,और ऐसे ऐसे रिश्ते खोज के बताती थीं कि लड़के लड़की के माता पिता अपना सर धुन लें,पर बुआजी की दबंग पर्सनैलिटी के सामने ज़बान खोलना माने महाभारत का शंखनाद करना था इसीसे सब उनके सामने चुप लगा जाते,और घर से उनके जाते ही घर की महिलायें अपने पेट से आवाज़ निकाल निकाल कर उन्हें गालियाँ देती,पर मजाल किसी की जो उनके सामने चूं भी कर दें।

शर्मिला उनके सगे भाई की पत्नि थी,पर एक तो भाई की पत्नि की वैसे ही कोई कदर नही,उसपे शर्मिला ने एक के पीछे एक दन्न से दो दो लड़कियाँ जन के हमेशा हमेशा के लिये खुद को उनके कोप का भाजन बना लिया था,बड़की तो फिर भी गोरी सुन्दर थी तो उस पे बुआ जी की नाराजगी कम रहती पर छुटन्कि!! एक तो मोटी उसपे निपट काली ,ना गेहूँई,ना सांवली ,,पूरी की पूरी काली।। अब ऐसी कन्या के ब्याह का आसमान नीला कैसे रहेगा वहाँ तो हमेशा काली बदरी छायी रहती वो भी सिर्फ गरजती हुई,बरसना तो जैसे उसने जाना ही नही ,अच्छा इतने से ही खैर हो जाती तो भी ठीक था,पर छुटंकी एक नम्बर की मुहँफट भी थी,

।। भगवान ने चुन चुन के अवगुण उसमें पिरोये थे, अपनी माँ सा सपाट सादा फीका चेहरा चपटी नाक ,पिता का घोर कृष्ण वर्ण और बुआ की जलती ज़बान और इन सब के साथ बेहिसाब मोटापा!!

कहने का तात्पर्य ये कि अगर ‘जीवनसाथी डॉट कॉम ‘ पे छुटकी का प्रोफाइल बनाया जाये तो ये प्रोफायल 5-6सालों तक प्रीमियम मेम्बरशिप के साथ भी वहाँ अपने ,
पैर अंगद की तरह जमाये रहेगा ,बल्कि हो सकता है कि प्रोफाइल के इस अडिग,अचल व्यवहार के कारण ‘ जीवनसाथी’ वाले छुटकी को लाइफटाईम मेम्बरशिप दे दे,वो भी बिल्कुल फ़्री .

घर की बड़ी लड़की वीणा का ब्याह हो चुका था,और अब बुआ जी की कृपादृष्टी छुटकी पर थी।।

बुआ जी नित नये तरह तरह के रंगीन सफेद काले, गोरे, अमीर ,गरीब हर तरह के रिश्तों की पोटली लिये चली आती,पर शर्मिला को उनकी इतनी कीमती पोटली में अपनी मुटल्लो के लिये कोई सजीला पसंद ही नही आता।।

“अरे शर्मिला अबकी ऐसा रिश्ता लाई हूँ,आंखे चुन्धिया जायेंगी तेरी,ये देख फोटू,लड़का सरकारी दफ्तर में काम करता है,,सारी बड़ी बड़ी फाइलें उसी की नाक के नीचे से इधर उधर होती हैं ।।”

शर्मिला ने फोटो देखी,लड़का पुराने वाले अदनान सामी को मात देता पूरा डबल डेकर बस लग रहा था।।

“हाय जिज्जी!! जे लड़का तो बहुतै मोटा है,हमरी प्रिया का क्या होगा??”

“अरे तो तुम्हरी प्रिया भी तो बस नामे की प्रिया है,लगे तो वो भी ढोल सी है,कहे दे रही हूँ शर्मिला जादा नाक भौ सिकोडोगी तो अंत में मिलेगा कोई दुहेजू तिहेजू,तब नई कहना कि जिज्जी कहाँ जाके मरूं ।”
,

“पर जिज्जी जे लड़का बिल्कुलै नही सुहा रहा का करें।”

अभी ननन्द भौजाई की गोष्ठी चाय के साथ चल ही रही थी कि शर्मिला की बड़ी लड़की वीणा भी अपने दो साल के लड़के को बेतरतीबी से खींचती घसीटती चली आई।।

“परनाम करते हैं बुआ,औ अम्मा कैसी हो?? कही कोनो बात आगे बढ़ी हमार मोटल्लो की या नही।”

“खुस रहो बिटिया!! बस तुम्हरे मुहँ मे घी सक्कर, लड़का सरकारी दफ्तर में काम करे है,ये देखो फोटू।”

“अरे वाह!! जोड़ी तो बहुत जमेगी ,दोनो डील डौल मे एक ही से हैं,देखो अम्मा अब तुम जादा ना नुकुर ना करना,हमरी मानो तो इस अक्ती ब्याह निपटा दो, एक तो जैसे तुम पूड़ी कचौड़ी खिला खिला के उसे सींच रही हो लगता है पूरा सौ किलो का कर के ही मानोगी,बुआ वैसे लड़का करता क्या है?”

“सरकारी दफ्तर में . ” वीणा बड़ी बेसब्री थी,उसने बुआजी की बात आधे में ही काट दी-

“अरे बुआजी वो तो सुन लिये हम कि सरकारी दफ्तर में काम करता है,पर करता क्या है, अर्जिनवीस है,बाबू है कलेक्टर है,अरे है क्या,वो बताओ।”
,

“बिटिया वो . बहुत खांस खखार के अपने गले को बार बार साफ कर अपनी आवाज़ को जितना धीमा कर सकती थी उतना धीमा कर के फुसफुसा के कहा- चपरासी है”

जितना ही आवाज़ दबा के बुआजी ने भावी दूल्हे का पद बताया उससे दुगुनी तेज़ आवाज़ में चिल्ला कर वीणा ने उस पदनाम को दुहराया -“क्या चपरासी है!! पर चपरासी के हिसाब से कुछ जादा मोटा नही है लड़का।।।”

भावी दूल्हे की पदप्रतिष्ठा सुन शर्मिला का मन बुझ गया,आखिर वो माँ थी,और हर माँ को अपना बच्चा जान से ज्यादा प्यारा होता है . एक स्वाभाविक सी बात ये भी है कि सभी बच्चों में सबसे कमजोर बच्चा माँ का सबसे अज़ीज़ होता है,हालांकी यहाँ वो कमजोरी शारीरिक नही अपितु सामाजिक थी।।

।”अम्मा सुनो ,एक बात कहे दे रहे तुम्हें,इसे ना थोड़ा डायटिंग वाइटिँग कराओ वर्ना ऐसे ही अमजद खान,कादर खान के रिश्ते आयेंगे,तुम्हरी मुटकि भी तो टुनटुन बनती जा रही है।”

“ए दीदी तुमको इतना हमारी फिकर करने की ज़रूरत नही है,तुम उधर अपने सपूत को देखो, नाक बहा रहा है,ए गोलू इधर आओ,तुम्हारा नाक पोछ दें।”

“छुटकी तनिक अपनी ओर भी ध्यान दो,एक बात कहें,लड़के खुद भले ही ओम पूरी दिखते हों पर लड़की उन्हें कटरीना , कैफ ही चाहिये,अब भई सब की किस्मत हमारे समान थोड़े ही ना होती है, हमारी सादी(शादी) ,में तो अम्मा बाऊजी को कोई मेहनत ही नई करना पड़ा,हम तो हुआं मेला में खड़े चाट खा रहे थे,और तुम्हरे जिज्जा को हमरा चटखारे लेना ऐसा भाया कि घर रिस्ता(रिश्ता) भेज दिये, और देखो चट मंगनी पट ब्याह ।”

“और झट गोलू”कह कर प्रिया हंसने लगी।।

“हमारे जिज्जा को चश्मा भी तो कितना मोटा लगा है दीदी बेचारे दूर से जाने किसे देख हमारे घर रिश्ता भेज डाले,,खैर जिज्जा में एक खूबी तो है ,सहनशक्ती बहुत है उनमें,क्यों दीदी सही कहे ना हम।ए गोलू इधर आओ मौसी के पास ।”

बच्चे ने बडी अदा से सर हिला के मना कर दिया, और अपनी माँ से कुछ खिलाने की जिद करने लगा, उसकी जिद सुन छुटकी रसोई से कचौड़ियाँ प्लेट में सजा लाई और साथ में सोंठ की चटनी!!

कचौड़ी देख बच्चे ने गन्दा सा मुहँ बनाया और क्रीम बिस्किट पाने को मचलने लगा,उसकी माँ जो बड़ी तल्लीनता से एक बेहद रोचक विषय पर अपनी माँ और बुआ से परिचर्चा में लीन थी,इस तरह बार बार अपनी साड़ी झकझोरे जाने पे झल्ला उठी और पलट के बेटे को दो करारे हाथ जड़ दिये, जितनी ज़ोर का थप्पड़ नही था,उससे तेज़ पोंगा फाड़ कर बच्चा रो पड़ा,छुटकी ने आगे बढ़ कर उसे गोद में उठा लिया,और पवनपुत्र सी एक हाथ में भांजे और दूसरे हाथ मे कचौड़ी की तशतरी थामे वो अपने कमरे में चली गई ।।छुटकी के जन्म के समय पूरे परिवार में कोई प्रसन्न नही हुआ,मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मी दुसरी कन्या रत्न उसपे काली ,सबके मुहँ से ऐसी हाय निकली कि बेचारी का बचा खुचा रंग भी जल गया, पर जाने क्या सोच उसकी माँ ने उसका नाम प्रिया रखा!! बचपन में छुटकी का खाने से विशेष बैर था,उसे दाल या तरी में रोटी को तोड़ के डुबोना और फिर मुहँ में ले जाकर रखना बहुत बड़ा काम लगता,उसकी माँ सदा इसी जतन में रहती की उनकी लाड़ो कुछ खा ले,ऐसे हालात में जब बच्चा सही भोजन नही करता तब आस पड़ोस के सभी महिला पुरूष एक साथ डॉक्टर बन जाते हैं,तरह तरह की नसीहतें कि ये खिलाओ तो बच्चा सही बढ़ेगा,वो खिलाओ तो बच्चे को पोषण मिलेगा इसी तरह का बहुत कुछ माँ को सिखाया जाता है।।।

जो आता है वही कोई नया नुस्खा पकड़ा के चला जाता है, प्रिया के मामले में एक बात और जुड़ गई,लोग शर्मिला को ऐसा भोजन खिलाने की भी नसीहत दे जाते जिससे लड़की का रंग खुल जाये,कोई कहता बादाम वाला दूध दो,कोई कहता केसर वाला . कोई दही कोई पनीर,कोई नारियल !! इंन सारी बातों का सार शर्मिला ने ये निकाला कि हर वो खाने की चीज़ जो सफेद है बिटिया को खिलाने से रंग साफ होगा, अब वो बेचारी दिन भर बिटिया के पीछे तरह तरह के पकवान लिये घूमती नतीजा ये हुआ कि दस बरस की होते होते प्रिया पूरी तबला बन गई ,उसे खाने की ऐसी लत लगी कि क्या सफेद क्या काला उसे हर खाने की वस्तु में स्वाद मिलने लगा,खाने को लेकर उसकी ऐसी श्रद्धा जगी कि ,
बाहर गली के नुक्कड़ के खोमचे वाले से चाहे दो प्लेट चाट चटकारे लेकर टिका आये तब भी माँ के हाथों बने दाल चावल वो त्याग नही पाती ,हाँ चाट के बाद दाल का फीकापन दूर करने आम के अचार की बड़ी सी फाँक ले वो उस नीरस भोजन में भी रस ढूँढ लेती।।।

। प्रिया के जीवन के दो ही मुख्य उउद्देश्य हो गये,एक खाना और दूजा पढ़ना ।।।

दिन दिन भर अपने कमरे में बैठी लड़की कुछ ना कुछ पढ़ती रहती और ठूँसती रहती इसका असर ये हुआ की शरीर और दिमाग दोनों ही ज़बरदस्त तरक्की कर गये,पर इस बात का प्रिया को कोई घमंड ना था।।।

प्रिया के पड़ोस में पांच घर छोड़ के छठा घर था राज भैय्या का।।
राज भैया का पूरा नाम था राज शर्मा!
भैय्या जी थे भी पूरे राजकुमार!!

चाल ढाल चेहरे मोहरे से बिल्कुल कहीं के नवाब शहंशाह लगते।।
गोरे चिकने उंचे पूरे राज भैय्या का रुआब भी कम नही था,घर हो चाहे बाहर सब उनके पीछे हाथ बांधे घूमते,भैय्या जी दिखने में जहां पिघला सोना थे वही मन के सुच्चे मोती ।।

“दुनिया की सारी अच्छाई एक तरफ ,और पढ़ाई एक तरफ” राज भैय्या के बेइंतिहा सद्गुणों के ऊपर उनका एक अदद दुर्गण भारी पड़ जाता,जब जब उनके इम्तिहान का रिजल्ट उनके पिता श्री के हाथ आता,पिता जी इतने शानदार ,
रिजल्ट के बदले अपनी चप्पल से राज भैय्या की आरती उतारते और वो बेचारे इधर से उधर कूदते फांदते दौड़ के छत की सीढिय़ां चढ़ भाग निकलते,और फिर रात में पिता जी के सोने के बाद ही उनकी घर वापसी होती।।।

राज भैय्या का पसंदीदा काम था वर्जिश करना और कराना,उन्होनें अपने आप में ही एक प्रण ले रखा था सारे संसार को सही स्वास्थ्य का मह्त्व समझाना और अपने शरीर सौष्ठव को बनाये रखना।। राज भैय्या के इन्हीं रुचिकर गुणों के कारण उनके चेले चपाटे भी बहुत थे,उनके जिस मित्र को जब कभी उनकी ज़रूरत होती वो पलक झपकते उसकी सेवा में तत्पर रहते ये और बात थी कि जब कभी वो अपनी समाज सेवा के कामों के लिये अपने पिता की चप्पलें खाते उनकी वानर सेना हमेशा जादुई बौने सी अदृश्य हो जाती।।

मोहल्ले की छुट पुट नेतागिरी में भी भैय्या जी को बहुत रस मिलता,चौक की राजनीति निपटाना उनके बाएँ हाथ का खेल था,ऐसे ही उनके मोहल्ले का पार्षद जब जीतने के बाद पहली बार मोहल्ले वासीयों को धन्यवाद ज्ञापित करने आया तब अपनी बातों मे उसे उलझा कर मोहल्ले मे जिम खुलवाने के लिये उन्होनें राज़ी कर लिया,और उसके दफ्तर के चक्कर काट काट कर और नव युवकों के जोश की खबरों से उसे डरा डरा कर सिर्फ छै महीने में अपने मोहल्ले मे नव युवक जागरण समिति का जिम खुलवा लिया,जिसके एक अदद ट्रेनर वो स्वयं बने और पूरे मोहल्ले की फिटनेस का भार उनके चौडे कन्धों पर आ गया।।।

हँसी मजाक में एक बार राज भैय्या के परम मित्र प्रेम ने ,
उनसे कहा भी-“भैय्या जी बड़ा शौक है आपको लोगों को पतला करने का,ज़रा एक बार अपनी कृपा दृष्टी मोहल्ले की टुनटुन पर भी फिरैये, बेचारी गंगा नहा आयेगी।”

राज भैय्या औरतों की जबरदस्त इज्जत करते थे, और कहीं वो औरत पढ़ने लिखने वाली हुई तब तो उनकी नजरों में उसकी इज्जत सौ गुना बढ़ जाती थी।।। उनके घर की औरतों चाहे वो उनकी माँ हो काकी हो दादी हो भाभी हो किसी को भी उन्होनें पढ़ते लिखते नही देखा था,सभी सारा दिन चूल्हे में खट खटा के अपना दिन पूरा करती और रात मे कमरे में अपने पति से घर की बाकी औरतों की बुराइयाँ निकालती,यही सब देख के राज भैय्या के पिता झुंझलाते और हमेशा राज भैय्या को पढ़ाई की अति आवश्यकता पे लेक्चर देते जिसका सार भैय्या जी ने निकाला कि उन्हें एक पढ़ी लिखी लड़की से ही शादी करनी है।।।

प्रिया के लिये प्रेम के सद्विचारों को सुन राज भैय्या को गुस्सा आ गया,और उन्होनें उसे धुनने को हाथ उठाया पर कुछ सोच कर शान्त हो गये।।

“देखो भैय्या हमने बचपन में देखा था,तब दो चोटी कर के अपनी साईकल पे यहाँ से स्कूल जाती थी, फिर अब क्या पढ़ रही,क्या कर रही हमें नही पता,और प्रेम सच बोलें तो हमें लड़कियो का ऐसे मजाक उड़ाना पसंद भी नही भाई।।”

“हाँ,यहाँ से साईकल में गुजरती थी,और अक्सर उसके वजन से साईकल पंचर हो जाती थी,तब तुम्ही तो उसकी साईकल ,
पंचर वाले तक खींच के ले जाते थे,याद है कि नहीं ।”

“नही भाई, सच कहूँ तो मुझे तो उसकी शकल भी याद नही।”

“भैय्या जी आप शकल याद रखें ऐसी हूर परी भी नही वो” भैय्या जी के एक चेले ने कह दिया,और भैय्या जी ने उसे एक लप्पड़ लगा ही दिया .

……………………..

भैय्या जी के लिये औरतें सिर्फ और सिर्फ आदर की वस्तु थीं।

अपनी उबलती हुई उमर में भी आज तक किसी कंचन कामिनी की छाया उन्होनें अपने हृदय पे पड़ने नही दी थी,कहीं ना कहीं इसका कारण उनका स्कूल भी रहा होगा।।

राधेश्याम तिवारी जी पक्के जनसंघी थे, जब तक जा पाये हर रविवार गोशाला में होने वाली शाखा का हिस्सा बनते रहे,फिर पिता की असामयिक मृत्यु के बाद मिली अनुकम्पा नियुक्ति में एक सरकारी दफ्तर की बाबूगिरी निभाने और घर की जिम्मेदारियां उठाने में बेचारे धीरे धीरे गोशाला भूलने लगे,पर उनका शाखा प्रेम बना रहा।।अपने पिता के बाद उन्होनें सारे उत्तरदायित्वों को बखूबी निभाया,अपनी बड़ी बहन की शादी की,अपनी बुआ की जचकी उठवाई,अपनी माँ को तीरथ कराये, अपने फेरे फिराये और छोटे भाई को भी ठिकाने लगाया,इन सब में बेचारे राधेश्याम जी की उमर ही निकल गई,पर उनका शाखा प्रेम नही चूका ,इसीसे जब धर्मपत्नी सुशीला ने बड़े होते लड़कों की तरफ इशारा किया कि अब इनका स्कूल भेजने का समय हो चला तो तिवारी जी ने बिना आगा पीछा देखे दोनो लड़कों को सरस्वती विद्या मन्दिर में डाल दिया।।

दोनों सुंदर सजीले बालक जब सुबह नहा धो कर बालों में खूब सारा तेल डाल भली प्रकार चपटा कर स्कूल बैग को कंधे पे टाँगे भूरी निकर घुटनों तक झुलाये स्कूल को निकलते तिवारी जी के कंधे अभिमान से चौड़े हो जाते।।

विद्या मन्दिर में पढ़ने वाले बालकों में संस्कार कूट कूट कर भरे होतें हैं,पर शहर के बाकी स्कूल के बच्चों का यही मानना है कि पढ़ाई लिखाई के लिये तो स्कूल अच्छा है,पर सबसे मनभावन उमर में उमड़ने घुमड़ने वाली भावनाओं का कचरा कर देता है,सीधे शब्दों में ये स्कूल रोमांस को पनपने ही नही देता,एक तो सभी सहपाठीयों को एक दूसरे को दीदी भैय्या बोलना पड़ता है, दूसरे ये लोग हर त्योहार स्कूल मे मनाते हैं,और सबसे ज्यादा हर्षोल्लास से रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार मनाया जाता है . अब ऐसे में किसी बालक के मन में किसी सुन्दर सहपाठिनी के लिये कोई कोमल भावना पैदा हो भी गई तो ये स्कूल वाले राखी बंधवा के सब गुड़ गोबर कर डालते हैं ।।

भैय्या जी जब नौवीं में पहुँचे तब उनके बड़े भैय्या बारहवीं पास कर स्कूल से निकल चुके थे,इसिलिए राज भैय्या ने आज़ादी की सांस ली,और अपने आप में अपने मन में कुछ कोमल बदलाव भी महसूस किये,अभी तक जितने आराम से कक्षा की लडकियों को दीदी कह लेते थे,अब ऐसा कहने में थोड़ा संकोच होने लगा,उसी समय उनकी बैंच पे उनके साथ ,
बैठने वाले जयेश ने उन्हें एक अद्भुत खेल सिखा दिया . एक ऐसा अनोखा खेल जिसे अब वो अक्सर कक्षा में सबसे पीछे की बैंच पे बैठे अकेले ही खेलते खोये रहते,उस खेल का नाम था -“FLEMS “
F- friend , L- love, E- enemy, M-marriage , S- sister..

इस खेल मे लड़की के नाम की स्पेलिंग और खुद के नाम की स्पेलिंग लिख के जितने कॉमन अल्फ़ाबेट कट सकते उन्हें काट कर बचे हुए जोड़ कर flems को काटना होता ,और अंत में जो आखिरी बचा अल्फ़ाबेट होगा,वो आपका भविश्य तय करता।।।

राज भैय्या कक्षा में बैठे इधर उधर नज़र फिराते और जो सुन्दरी भाती उसके साथ FLEMS काटते।।
कभी किसी के साथ फ्रेंड आता तो खुश,किसी के साथ लव आ जाता तो बहुत खुश,पर जिस किसी के नाम के साथ सिस्टर आता उससे वो पूरी शिद्दत से सिस्टर का रिश्ता निभाते,तो इसी तरह फ्लेम में डूबे भैय्या जी नौवीं में लुढ़क गये।।दूसरे साल होम एग्ज़ाम होने के कारण आचार्य जी लोगों ने उन्हें किसी तरह पास कर दिया।।

दसवीं कक्षा में भैय्या जी की रूचि गुल्ली-डंडा और क्रिकेट में भी जाग गई . कक्षा में तो टाईम पास करने के लिये फ्लेम्स और दोस्त थे,कक्षा के बाहर क्रिकेट था,जीवन सहज और सुन्दर था, पर पढ़ाई कठिन थी,भैय्या जी दसवीं में भी लुढ़क गये।।दो बार में किसी तरह आगे पीछे बैठे दोस्तों ,
की मदद से दसवीं पार लगी।।

ग्यारहवीं आचार्य जी लोगों की कृपा से एक बार मे पास कर भैय्या जी बारहवीं में पहुंच गये,और इन पांच सालों में उनके बड़े भैय्या यानी युवराज शर्मा कहाँ से कहाँ पहुंच गये।।

स्कूल की पढ़ाई के बाद बड़के भैय्या ग्रैजुएशन के साथ साथ अपने चाचा जी के काम मे उनका हाथ बंटाने लगे,चाचा जी का पुश्तैनी धंधा ब्याज पे पैसे देने का था,चाचा जी उतने में ही संतुष्ट थे पर बड़के भैय्या ने अपना दिमाग दौड़ाया और ब्याज के सारे काले धन को श्वेत दिखाने सिटी कॉलेज के बाहर दो मंजिला आर्चीस का शो रुम डाल लिया, जवान लड़के लडकियों ने और पूरे सात दिन तक मनाये जाने वाले प्रेम पर्व वैलेंटाइन डे ने उनके बिजनेस को 3साल में ही चमका दिया।।

राधेश्याम तिवारी के पुण्य प्रताप का असर था या उनकी धर्मपत्नी के निरंतर व्रत पूजन का कि धन की देवी माता लक्ष्मी को तिवारी जी की देहरी और उनकी तिजोरी से प्रेम हो गया,और सदा की चंचला माता लक्ष्मी अपने वाहन के साथ उनके घर पे जम के बैठ गई,माता लक्ष्मी के आगमन का संकेत देते बड़के भैय्या के काम और माता के वाहन का संकेत देते राज भैय्या के काम।।।

इसके बाद बड़के भैय्या ने इंडेन की गैस एजेंसी ले ली,उसके अगले साल रिलांयस का पैट्रोल पम्प, बड़के भैय्या की जय हो!! जल्दी ही गिरिधर शास्त्री जी की कन्या रूपा से उनका ब्याह हो गया,और बड़के भैय्या का जीवन खुशहाल गृहस्थी का विज्ञापन हो गया,पर इधर छुटके भैय्या यानी ,
राज शर्मा! यानी राज भैय्या अब तक स्कूल में बारहवीं में ही अटके थे।।

जिस साल राज भैय्या बारहवीं दुसरी बार कर रहे थे,उस साल किसी ट्रांसफर केस में एक नई कन्या ने बारहवीं जीव विज्ञान में प्रवेश लिया,सुबह प्रार्थना कक्ष में सबको विश्राम सावधान कराते राज भैय्या ने जब दो चोटी को जुही चावला(गज़ब का है दिन देखो ज़रा) स्टाइल में आगे पीछे करते बला की खूबसूरत लड़की को देखा तो उनका दिल शताब्दी एक्सप्रेस से टक्कर लेता धड़कने लगा,,जैसे तैसे प्रार्थना समाप्त कर दोस्तों के साथ उसका नाम पता करने का प्रयास करने लगे,बहुत जद्दोजहद के बाद उस कन्या का नाम पता चला रानी .

राज भैय्या ने तुरंत अपने पर्सनल भविष्यवक्ता से जानना चाहा अपना और रानी का भविष्य़ ।। फ्लेम्स मे कट पिट के भविष्य आया M याने मैरिज।
राज भैय्या का दिल प्रफुल्लित हो उठा,अब तो सुबह शाम जीवविज्ञान की कक्षा के चक्कर लगने लगे,कला संकाय का बंदा रसायन शास्त्र की लैब में क्लोराइड के नारंगी छल्ले उड़ाती अपनी लैला को खिड़की से देख देख के मोहित होने लगा।।

“दिल क्या करे जब किसी से,किसी को प्यार हो जाये . जाने कहाँ कब किसी को किसी से प्यार हो जाये।।””

अब सारा समय भैय्या जी का दिल यही गुनगुनाता, ,
वो वैसे भी दुनिया भर की ऊंची-ऊंची रस्मे मानने वालों में से थे नही . आखिर दोस्तों के बहुत समझाने पे और कुछ रानी के इकरार भरी आंखों के इशारे ने उन्हें हिम्मत दी और उन्होनें अपने जीवन का पहला प्रेमपत्र लिख डाला।।

रानी,
हमको तुम बहुत अच्छी लगती हो,जब प्रार्थना के समय सामने खड़े होकर सबको सावधान कराते हैं,तुम्ही को देखते रहते हैं,और क्या कहें,आगे तुम खुद समझदार हो तभी तो जीव विज्ञान ली हो।।
हमसे दोस्ती करोगी।

राज।।

राज भैय्या के चेले गुड्डू ने रानी की सहेली को चिट्ठी पकड़ा दी और भाग गया,चिट्ठी पढ़ कर आधी छुट्टी में रानी राज भैय्या की कक्षा में आई और इशारे से राज को बाहर बुला लिया।।

“ए सुनो!! तुमसे कुछ कहना है,वहाँ इमली के पेड़ के पास चल के बैठो,हम आ रहे।”

धड़कते दिल को समेटे राज भैय्या इमली के चबूतरे पे जा बैठे तभी रानी भी आ गई ।

“राज सुनो! हम पढ़ने लिखने वाली लड़की हैं, ये सब प्यार मोहब्बत के चक्कर मे हमारा फ्यूचर खराब हो जायेगा,हमारा ,

सपना डॉक्टर बनने का है,और इसके लिये हमको बहुत पढ़ना है, अभी भी रात दिन सुबह शाम पढ़ाई करते हैं,ट्यूशन जातें हैं कोचिंग जाते हैं,हमारी माँ डॉक्टर नही बन पाई थी,नाना जी के पास पैसे नही थे ना,इसिलिए माँ हमे डॉक्टर बनाना चाहती हैं,राज तुम हमें भी अच्छे लगते हो,पर तुम से प्यार कर बैठे तो हम अपने और माँ के सपने को भूल जायेंगे,तुम समझ रहे हो ना,हम क्या कह रहे?? देखो अभी हमारी सिर्फ पढ़ने लिखने की उमर है,प्यार मोहब्बत के लिये पूरी जिंदगी पड़ी है,हो सके तो हमे भूल जाना,तुम बहुत अच्छे लड़के हो राज।।
इतनी सारी ज्ञान भरी बातें सुन सचमुच राज भैय्या के ज्ञान चक्षु खुल गये,कुछ देर पहले की प्रेयसी में उन्हें माता सरस्वती के दर्शन होने लगे, उनकी आत्मा भी इस पवित्रता से जगमगा उठी और बहुत श्रद्धा से उन्होनें अपनी आंखें बन्द कर ली,तभी अचानक ऐसा लगा जैसे ज़ोर का भूचाल आया . धड़ाम की आवाज़ के साथ भैय्या जी चबूतरे से नीचे गिर पड़े,उन्होनें आंखें मलते देखा तो बाजू में उनके प्रिया गिरी पड़ी थी।।

असल में हर खाने योग्य वस्तु पर अपना एकाधिकार समझने वाली प्रिया उस समय दसवीं की छात्रा थी,और बाकी छोटे बच्चों को पीछे धकेल धकेल के वो इमली की पकी पकी फलियां जमा करने में लगी थी,तो उससे बदला लेने तीन चार बच्चों ने एक साथ मिल कर “ज़ोर लगा के हाइशा” का नारा लगाते हुए उसे ऐसा धक्का दिया कि वो सामने बैठे अपने सीनियर राज भैय्या के ऊपर से होती हुई चबूतरे के नीचे गिर पड़ी , दोनों की नजरें मिली,प्रिया की , आंखों की आंच बड़ी तेज़ थी,जाने अपनी गलती पर भी वो भैय्या जी को क्यों खा जाने वाली नजरों से घूर रही थी,जब भैय्या जी ने ये जानने के लिये आंखों से ही प्रिया से सवाल किया तो प्रिया ने भी आंखों से ही जवाब देते हुए उनके जूतों की तरफ इशारा कर दिया,भैय्या जी ने झुक कर अपने पैरों की तरफ देखा ,वहाँ उनके निहायत ही गंदे कीचड़ मिट्टी से सने जूतों के नीचे प्रिया की कमाई बिखरी चपटी पड़ी थी,सारी इमली जूतों में दब कर बुरी तरह से कुचला चुकी थी,भैय्या जी एकदम से हड़बड़ा कर प्रिया से माफी मांगते वहाँ से जान बचा के भागे,इस सब में अपने प्रथम प्रेम और प्रथम सन्गिनी को बेचारे भूल ही गये . और बस उस दिन रानी की कही बातों का ये असर हुआ कि राज भैय्या के मन में सदा सदा के लिये औरतों के प्रति बेइन्तिहा इज्जत आ गई,और उन्होंने जाने अनजाने एक कसम उठा ली कि किसी लड़के को कभी किसी लड़की का अपमान करने नही देंगे।।
अपने बड़े भैय्या की तरह वो भी अपनी माँ की पसंद की लड़की से ही ब्याह करेंगे ,और अपना पूरा जीवन समाज की सेवा में लगायेंगे।।
फिर उसी साल रानी का पी,एम टी में सलेक्शन हो गया और वो उस शहर को छोड़ कर मेडीकल कॉलेज पढ़ने चली गई,पर राज भैय्या का अपने स्कूल और इमली के पेड़ से लगाव बना रहा,और वो बारहवीं में ही जमे रहे।।

अब तो ऐसा था कि प्रिया भी बारहवीं गणित से कर कॉलेज के दूसरे साल में पढ़ाई के साथ साथ बैंक के एग्ज़ाम की तैय्यारी कर रही थी . पर अब राज भैय्या इतने सारे समाज के कामों मे संलग्न हो चुके थे कि उन्होंने स्कूल जाना ,
लगभग बन्द कर दिया था ।।वो कभी कहीं मुफ्त रक्तदान शिविर का आयोजन करते,कभी रेल्वे स्टेशन के भिखारियों के लिये मुफ्त में खिचड़ी भोग बँटवाते।।

उनका ठिकाना था उनके मोहल्ले के बाहर के चौक पर की पान की गुमटी,,पर मजाल जो सारा दिन पान की गुमटी में बिताने के बाद भी राज भैय्या एक सिगरेट तो पी लें,उनमें ऐसा कोई राजसी ऐब नही था,पान गुटका बीड़ी सिगरेट शराब ठर्रा सब से दूर भोले भंडारी के भक्त राज भैय्या हर सावन कांवर उठा कर भोले नाथ को जल चढ़ाने भी जाते।।

राज भैय्या के भलमनसाहत के किस्से जितने फेमस थे उससे कहीं ज्यादा भैय्या जी के कातिल रंग रूप के चर्चे थे मोहल्ले की लडकियों के बीच।।।।
क्या कुंवारी कन्यायें और क्या शादीशुदा ,सभी सुबह सुबह भैय्या जी एक झलक पाने को किसी ना किसी बहाने अपने द्वारे खिंची चली आती,कोई खिड़की से झांक लेती कोई छत से,कोई उसी समय अपने कुत्ते को टहलाती ,कोई अपनी गाय का सानी भूसा करती, सब चोर नजरों से राज भैय्या को एक झलक देख कर ही तृप्त हो जाती,और भोले भंडारी राज भैय्या इन सब बातों से बेखबर सुबह सुबह अपने जिम पहुंच जाते।।

नीले रंग का ट्रैक सूट पहने अपनी रेशमी ज़ुल्फे उड़ाते राज भैय्या जॉगिन्ग ट्रैक पे दौड़ते हुए जाने कितने कन्या रत्नों का हृदय अपनी मुट्ठी में भींचे दूर तक दौडे चले जाते . और पीछे रह जातीं उनकी अनन्य प्रशंसिकायें।।।
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राज भैय्या के भलमनसाहत के किस्से जितने फेमस थे उससे कहीं ज्यादा भैय्या जी के कातिल रंग रूप के चर्चे थे मोहल्ले की लडकियों के बीच।।।।
क्या कुंवारी कन्यायें और क्या शादीशुदा ,सभी सुबह सुबह भैय्या जी एक झलक पाने को किसी ना किसी बहाने अपने द्वारे खिंची चली आती,कोई खिड़की से झांक लेती कोई छत से,कोई उसी समय अपने कुत्ते को टहलाती ,कोई अपनी गाय का सानी भूसा करती, सब चोर नजरों से राज भैय्या को एक झलक देख कर ही तृप्त हो जाती,और भोले भंडारी राज भैय्या इन सब बातों से बेखबर सुबह सुबह अपने जिम पहुंच जाते।।

नीले रंग का ट्रैक सूट पहने अपनी रेशमी ज़ुल्फे उड़ाते राज भैय्या जॉगिन्ग ट्रैक पे दौड़ते हुए जाने कितने कन्या रत्नों का हृदय अपनी मुट्ठी में भींचे दूर तक दौडे चले जाते . और पीछे रह जातीं उनकी अनन्य प्रशंसिकायें।।।

लेकिन इसके बावजूद राज भैय्या को अपनी किसी खूबी का कोई गुमान ना था,वो तो बेचारे रात दिन इसी जुगत में रहते कि कोई भगवत कृपा हो जाये और वो बारहवीं किसी तरह पास हो जायें।।

स्कूल तो वो दो साल पहले ही त्याग चुके थे,अभी दो बार से प्राईवेट एग्ज़ाम दिलाने पर भी जाने शनी की कैसी साढ़े साती उनके बोर्ड एग्ज़ाम पे तिर्यक दृष्टी लगाये बैठी थी कि बेचारे अपने फेल होने के बोझ तले दबे जा रहे थे।।

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वैसे तो हर माँ की तरह शर्मिला को भी अपनी बेटियों पे नाज़ था,पर प्रिया में उसके प्राण बसते थे,बसे भी क्यों ना एक तरफ जहां वीणा अपनी ही सज धज में लगी रहती वहीं घर भर में सिर्फ प्रिया ही थी जो अपनी माँ की सबसे ज्यादा कदर किया करती . शायद ही किसी घर की बिन ब्याही कन्या ऐसा करती होगी जैसा प्रिया करती नित्य सुबह अपनी माँ से पहले उठ कर रसोई को पोंछ पाछं कर माँ के जागने पे उनके हाथ गर्मा गर्म चाय पकड़ ,अपनी चाय लिये छत पे चली जाती और पढ़ने में लग जाती।।,दिन भर में सिर्फ यही एक काम प्रिया करती पर उसी एक काम से शर्मिला को दिन भर अपनी गृहस्थी में जुते रहने की खुराक मिल जाती, जाने क्यों शर्मिला को हमेशा ऐसा लगता कि कभी ना कभी उसकी इस बावली छोरी के लिये कही से कोई राजकुमार ज़रूर आयेगा।।
उसे अपनी बिटिया की बुद्धिदीप्त चमकती आंखों पर बड़ा नाज़ था,पर आजकल कुछ दिनों से उसकी राजकन्या के लिये बुआ जी जैसे आड़े तिरछे नकटों के रिश्ते ला रही थीं,कहीं ना कहीं अब उसके भी मन में विवाह को लेकर सन्देह की स्थिति उत्पन्न होने लगी थी।।

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“लाड़ो !! ले चाय पी ले,बड़ी शाम हो गई,तू क्या पढ़ी जा रही ,इतना ना पढ़ा कर,चश्मा ना लग जाये।”

“अरे मम्मी हमें कोई चश्मा वश्मा नही लगेगा,और सुनो बहुत पढ़ने से चश्मा नही लगता ,समझी !! देखो हम ये जो इत्ता सारा पढ़ते हैं ना,इससे हमारी नौकरी लगेगी बैंक में,फिर पहले अपने दिमाग से बैंक का वारा न्यारा करेंगे और बाद मे बैंक हमारा।’

“बिटिया एक काम और कर लिया करो,ये देखो तुम्हरे लिये का लाए हैं ।”

“का रखी हो दिखाओ, हैं ये क्या फेयर ऐण्ड लवली।”

“हाँ लाड़ो,हम जानते हैं तुम्हे चेहरे पे कुछ लगाना पसंद नही,पर देखो आजकल की सब लड़कियाँ इहै लगा रही,और टी वी में देखी हो,कैसी कोयला रहती हैं औ ये लगा के कैसी फकफका के गोरिया जाती हैं ।

“अरे मम्मी तुम भी बच्चों जैसी बात करती हो यार! वो लड़कियाँ ऑलरेडी गोरी होती है,उनको तो पहले काला बनाते हैं,मेक’प वाले,अब हमारे को तो कान्हा जी ही काला बना के भेजे हैं,अब इसपे और का रंग चढाये,बताओ।।”

“अरे वीणा की अम्मा ,हम भी आफिस से आ गये हैं,हमें भी कुछ चाय वाय दे दो,या दोनो माँ बेटी लगी रहोगी गप्पे मारने में ।”
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“सुनो प्रिया कम से कम एक काम तो कर लिया करो,रोज ना लगाओ पर बिटिया कही आने जाने के टाईम तो लगा ही सकती है,महंगी क्रीम है भाई खरीद के लाएं हैं तुम्हरे लाने,औ तुम मुहँ बिचका रही हो।”

प्रिया ने अपनी अम्मा के हाथ से फेयर ऐंड लवली का डिब्बा लेकर अपनी टेबल पे रख लिया और मुस्कुरा दी,अम्मा भी खुशी से नीचे उतर गई

“अरे जाते जाते बताती तो जाओ ,रात के खाने में का बना रही हो मम्मी।।”

“कढ़ी,गुलगुला बना रहे हैं,ठीक है।”

“ठीक है!!”कढ़ी के नाम पे प्रिया का खराब से खराब मूड भी बन जाता था।।

प्रिया ठीक सुबह 8 बजे अपनी सहेली निरमा के साथ कॉलेज जाती और 1बजे तक वापस आ जाती।।निरमा का घर पीछे वाले मोहल्ले में था,और उसी तरफ के रास्ते से उनका कॉलेज पड़ता था,पर इसके बावजूद निरमा पहले प्रिया के घर आती,वहाँ चाय नाश्ता कर दोनो सहेलियां कॉलेज के लिये निकलती ।।
प्रिया की अम्मा वाकई बहुत स्वादिष्ट भोजन बनाती थी,इसका जीता जागता इश्तेहार स्वयं प्रिया थी,और इसीसे प्रिया को लगता था की उसकी अम्मा के हाथ का स्वाद ,
नाश्ता सुबह सुबह निरमा को उसके घर खींच, लाता है,पर प्रिया का ऐसा सोचना सर्वथा गलत था।।

निरमा और प्रिया के कॉलेज के रास्ते पे राज भैय्या का जिम भी पड़ता था,और सुबह के समय राज भैय्या अपने चेले चपाटो को सलमान खान जैसी बॉडी बनाने की ट्रेनिंग दिया करते थे,उनकी ईमानदार टुकड़ी में एक ऐसा भी बंदा था ,जो इतनी सुबह कसरत के इरादे से ना आकर निरमा को ताडने के इरादे से वहाँ आता था,और जिम के बाहर बनी सीढिय़ों पे बैठा निरमा के वहाँ से निकलने का इन्तजार किया करता था,निरमा के वहाँ से निकलते ही जिम में जाकर थोड़ा इधर उधर कुछ समय खराब कर घर को निकल जाता था . पर ऐसा नही था कि वो अकेला ही दोषी था,,आग दोनो तरफ बराबर लगी थी।।
निरमा और प्रेम पिछले कुछ समय से एक दूसरे को पसंद करते थे,पर राज भैय्या के सामने कुछ भी बोलने की प्रेम की हिम्मत नही थी इसिलिये उसने एक उपाय सोचा और रमा को अपना आइडिया बता दिया।।

“हम सही कह रहें हैं प्रिया,तू एक बार सोच के देख ना।””

“अरे हम क्या सोचें,अगर उसे ट्यूशन पढना ही है,तो आके हमसे बात करे,हम थोड़े ना खुद जायेंगे ,, कभी सुनी हो क्या कि गुरू खुद चेला के पास जा रहें हैं कि आओ बबुआ तुम्हें पढ़ा दें,और फिर निरमा हम सुने हैं ओ राज बहुतै गधा है।”

“हाय हाय राज भैय्या के लिये ऐसा कैसे बोल रही ,

हो,जानती नही कितना परोपकारी हैं बेचारे।”

“अरे तो परोपकार से उनका गधापन छुप जायेगा ? गधा है तो है, वैसे विषय क्या लिये हैं,तुम्हारे राज भैय्या??

“आर्ट्स वालें हैं ,,वकील बनना चाहतें हैं ।”

“हम्म,अच्छा किये आर्ट्स ले लिये क्योंकि कहीं गलती से गणित लेके पास हो जाते और इंजीनियर बन जाते तो सोचो क्या होता,,जो पुल बनाते उसमें तो ससुरे धनिया बो आते,और चारे दिन मे वो पुल जो भरभरा के गिरता जाने कितनों को स्वर्ग के द्वार पहुँचा देता।।
डॉक्टर बन जाते तब तो साक्षात यमराज को उतरना पड़ जाता पृथ्वी पे कि राज भैय्या इतनी फास्ट डिलीवरी ना भेजिए,हमारा भैंसा ढो नही पा रहा,और आप दनादन लोगों का स्वर्ग का टिकट काट रहे हैं ।।

बताओ वकील बनना चाहतें हैं,अरे वकालत आसान है क्या,पर चलो वो तो बाद की बात है, अभी इनको आर्ट्स पढा के बारहवीं की नैय्या तो पार लगाएं ।।
फिर कुछ सोचते हुए प्रिया ने कहा -“ठीक कह रही हो यार,उस दिन बाबूजी का स्कूटर खराब हो गया था तो यही बिचारा खींचता हुआ पहुंचाया था घर तक,,चलो ठीक है,तुम्हारी मान के चलते हैं,पूछ लेते हैं,पढना चाहेगा तो हम बिना फीस के पढ़ा देंगे।।”

प्रेम ने ही निरमा को ये आइडिया दिया था,इसी बहाने उसे लगा जब तक राज भैय्या जिम में पढ़ाई करेंगे ,वो और ,
निरमा साथ साथ बातें कर लेंगे और किसी दिन अच्छा सा मौका देख के भईया जी को सच्चाई से अवगत करा देंगे,अब इधर निरमा ने तो प्रिया को पढ़ाने के लिये मना लिया पर प्रेम की इस बारे में राज से बात करने की हिम्मत ही नही हुई।।
कॉलेज के लिये कुछ जल्दी निकल कर प्रिया निरमा के साथ जिम पहुंच गई

“ए राज इधर आओ,सुनो हमारी बात।”

प्रिया की इतनी तीखी पुकार सुन सारी चंडाल चौकडी के कान खड़े हो गये,उनमें से एक लपक के सामने आया।।

“ए मोटी!! तुमको का बात करने का तमीज नई है, सब्बे भूला गई हो का,भैय्या जी का अईसे नाम पुकार रई हो।”

“तो और कैसे पुकारें तुम्हारे भैय्या जी को।?”

“राज भैय्या बोलो जैसे सब बोलते हैं,समझी।”

“काहे बोलें,हम तो नाम ही लेंगे।”

“अरे ए धमल्लो,भईया जी कम से कम तुमसे दस बरस बड़े होंगे।।”ये दूसरा अनुचर चिल्लाया।।

तब तक में भैय्या जी प्रिया तक पहुंच गये।।

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“हां तो होने दो दस साल बड़े,कक्षा में तो हमी सीनियर हैं,तो इस हिसाब से इनको हमें मैडम बोलना चाहिये,समझे घसियारों ,कभी स्कूल कॉलेज जाओगे तभी तो सीनियर जूनियर पता पड़ेगा।।

” अरे फेल होने से का होता है,बड़े तो हैं ही उमर में,जितने के भैय्या जी हैं इतने उमर में तो बड़के भैय्या का ब्याह भी हो गया रहा,ऊ तो भैय्या जी कसम खा के बैठ गये कि बारहवीं पास कर के ही ब्याह करेंगे,वर्ना तो हम लोग अभी तक इनका लड़का बच्चा खिला रहे होते।।”

“बस करो तुम लोग ,,सालों कितना बेज्जती कराओगे हमारी।” इस बार राज भैय्या गरजे

“हां बताईये मैडम जी,कैसे हमारे जिम मे आना हुआ आज आपका , 6महीना का कोर्स करना है आपको,या साल भर का,वैसे 6महीना का कोर्स कठिन होगा।।”

“अरे हम काहे का कोर्स करेंगे भई ।”

प्रिया ने पूछा –
“हमें लगा आप पतले होने के लिये आई हैं ।”

राज के ऐसा बोलते ही प्रिया हिल हिल के हंसने लगी।।

“अरे नही हो राज बाबू,हम यहाँ आपको पढ़ाने आये हैं,ट्यूशन !!वो भी बिना फीस के,अब समझे।।”
,अब कितने साल लुढ़कते रहोगे,हमारे मोहल्ले की नाक का सवाल है,पर एक बात बोलें शकल से तो इतने गधे नही लगते हो,अरे नकल कर के ही पास हो जाते,नकल करना भ्रष्टाचार थोड़े है,नकल करने से देश की अर्थव्यवस्था पे भी कोई असर नही पड़ता,फिर काहे इतना ईमानदारी दिखाये भई ।।”

राज भैय्या के गोरे चेहरे पे जैसे किसी ने मुट्ठी भर अबीर बिखेर दिया,बेचारे लजा के गुलाबी पड़ गये ,फिर धीमे से बोले-

“ऊ हम एक बार कोशिश किये थे,नकल मारने की, पर फुर्रे में जो लिख के ले गये थे उसको जल्दी जल्दी में मोजे के अन्दर डाल दिये और स्कूल जाते समय भूल गये और रास्ते में भरे पानी में छलांग लगाते स्कूल पहुँचे,जब वहाँ पेपर देख के अपना पर्ची ढूँढे तो वो पूरा गीला होके पूरा लिखा मटिया मेट हो गया रहा ।”

“धत ऐसे भी कोई चीटिंग करता है,तुमको तो चीटिंग करना भी नही आता राज।”

“अरे सुनो तो एक बार और कोशिश किये थे,हमारी ये बड़ी बड़ी ज़ुल्फों के भीतर पिंकी की हेयर पिन से फुर्रा छुपा लिये थे।।

“फिर,फिर क्या हुआ?”

“फिर का,वहाँ क्लास में पिन बाल मे ऐसा फंसा कि हम थक ,
गये पिन निकाल निकाल के ,पिन निकले ही नही,हमको इ सर्कस करता देख के आचार्य जी आये बेचारे वो भी पूरा मेहनत किये,फिर उनके साथ और दो लड़के मिल के ओ पिन निकाले ,पिन तो निकल गया पर फुर्रा आचार्य जी के हाथ में, . ऊ देखे उसको उल्टा पुलटा कर के,पुछे चीटिँग करने लाये थे बबुआ??
हम सर झुकाये खड़े रहे ,फिर फुर्रा हमारी ओर उछाल दिये बोले बेटा कर लो चीटिँग बन पडे तो।।।हम खुस8 Full stop।।देखे तो ऊ पर्ची का चिन्दी चिन्दी हो गया था,,ऐसा रोना आया की हम कसम खा लिये कि अब भले जीवन भर पास ना हो पाये पर नकल नही करेंगे।।”

“तुम कसम बहुत जल्दी खा लेते हो राज, तुम्हारी अम्मा खाना नही देती का।”ऐसा बोल के प्रिया फिर हिल हिल के हंसने लगी।।

“ए प्रिया देखो हम तुम्हारा मजाक नई उड़ाते तुम भी हमरी अम्मा तक ना जाओ।।”

“अच्छा ठीक है,तो सुनो, राज !!हम ठहरे गणित वाले ,और तुम हो आर्ट्स वाले,हम तुमको आर्ट्स पढायेंगे वो भी मैथ्स के स्टायल में,समझे।।”

“नई समझे,इत्ते समझदार होते तो पास ना हो जाते।”

“बात तो सही कह रहे तुम!! अच्छा सुनो देखो हम कुछ पते की बात बताते हैं,,देखो विद्यार्थी दो तरह के होते हैं-पहला वो ,
जो विद्या के सही अर्थों को जान ले समझ ले और अपने ज्ञान से संसार को तृप्त कर दे जैसे हम यानी प्रिया तिवारी ।।
और दूसरे वो जो विद्या की अर्थी निकाल दे जैसे तुम यानी राज शर्मा।।
तो बेटा राज बाबू तुम अब कुछ जादा ही फेल हो लिये हो,तुम्हारा ये तकलीफ अब हमसे देखा नही जा रहा,वो क्या है ना ,जैसा तुम दुनिया को स्वस्थ बनाने का जिम्मा लिये हो,वैसे ही हम दुनिया को साक्षर बनाने का जिम्मा ले लिये हैं,अपने इन
नाजुक कंधो पे।।
बस एक छोटी सी शर्त है हमारी,हफ्ते में एक दिन तुम हमें समोसा खिलाओगे,ठीक है?”

“खिला देंगे उसमें कौन बड़ी बात है? हम तो ई अटरम शटरम नई खाते पर तुम्हारे लिये हफ्ते में एक बार हमरे जिम में हम पार्टी कर देंगे ,एक दर्जन समोसा मंगाने मे का जायेगा हमरा?”

“काहे ?? हम अकेले खाएंगे का,ई बाकी के तुम्हारे घसियारे भी समोसा नई खाते का??”

“एक दर्जन तुम सब के लिये ही बोल रहे हैं भाई।”
राज भैय्या की बात सुन प्रिया फिर हिल हिल के हँस पड़ी-“अरे एक दर्जन तो हम सिर्फ दसै मिनट में गप कर जाते हैं राज बाबू,खैर चलो वो सब तो बाद में देख लेंगे ,अभी तुम्हें और कुछ ज़रूरी बात बता दे।”

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“रुको तुम सब ज़रूरी बात बता देना पहले हमको
एक बात बताओ,तुम्हरे मन मे अचानक ये परोपकार कैसे जागा,हमे पढ़ाने कैसे चली आईं,हमारे बाबूजी कुछ बोले का तुमसे,या बडे भैय्या।।”

“नही .
ना तुम्हारे बाबूजी ना बड़के भैय्या,हमे साक्षात सरस्वती मैय्या सपने में आ के बोली कि प्रिया तुम बुद्धि का पिटारा हो और तुम्हारे मोहल्ले का एक सांड लगातार फेल होता जा रहा है, और बोली की जाओ उस नादान की मदद करो,उसे पढ़ाओ,तो बस देवी मैय्या की इच्छा पूरी करने हम आ गये।।”

भैय्या जी प्रभावित !! नतमस्तक हो उन्होने प्रिया को नमस्कार किया।।

“सुनो राज ,कुछ ज़रूरी पॉइंट . पढ़ने से पहले दिमाग में ये रखो की तुम्हें कैसे पास होना है,पढा तो हम देंगे पर पास होना ना होना तुम्हारे हाथ है।।
हम पहले भी बताये ना ,जो हमारे जैसे विद्यार्थी हैं वो पढ़ाई का भला करने पढ़ते हैं,पढ़ाई और किताबें हमे देख कर खुश होतीं है,पर जैसे ही तुम जैसों के हाथ आतीं हैं सौ सौ आंसू बहा के रोती है बेचारी।।
तो इसका मतलब ये है कि तुम्हरे पढ़ने से किसी का कोई फायदा नही है,तुम्हारे जीवन का एक मात्र लक्ष्य होना चाहिये पास होना।।।


साम दाम दण्ड भेद जिस तरीके से पास हो सको वैसे कोशिश करो और पास नही हो पाओ तो कोशिश करो की पेपर ही कैन्सिल हो जाये।।

“अब आज के लिये इत्ता सारा ज्ञान बहुत है,हम कल सुबह 7:30पे आयेंगे,अपनी सब किताबें ले कर आना,रख्खे तो हो ना किताबें की, कबाडी को बेच आये हो।”

“अब हम तो इत्ते साल से देखे ही नही,अम्मा से पूछना पड़ेगा किताब रख्खी हैं हमारी कि बेच डाली ,वैसे अम्मा को नही हमारे बाबूजी को ऐसे चिन्दी बेच के पैसे जमा करने का अजीबै शौक है।।
घर भर का पेपर रद्दी सद्दी जमा करेंगे और उसको चौक के ऊ पार नत्थू कबाड़ी के वहाँ बेचने जायेंगे, हम बोलतें भी हैं कि हमारे फ़ोन करने से वो घर आ जायेगा लेने तो बोलतें है घर आता है तो कबाड़ का दू रुपैय्या कम देता है,अब का बोले,इ बुढ़ापे में स्कूटर पे घिटर पिटर जातें हैं ।।”

“अर्र्रे राज . बाबूजी को बोलना स्कूटर में चार रुपैय्या का तेल जला देते हो चौक तक जाके उससे तो कम नुक्सान है ना नत्थु घर आके ले जायेगा तो।।”

राज भैय्या को आज पहली बार बड़के भैय्या से भी कहीं ज्यादा तेज़ दिमाग का कोई मिला था,अन्दर ही अन्दर वो प्रिया के पैने दिमाग का लोहा मान चुके थे,उन्होनें अपने नये नवेले गुरू को प्रणाम किया,प्रिया मुस्कुरा कर कॉलेज निकल गई,और भैय्या जी उसकी बातों और विचारों को ,
सोचते सोचते क्रॉस ट्रेनर पे चढ़ गये।।

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