डॉली सुंदर और समझदर तो थी ही,, वह उन्नीस की पूरी हो के बीसवीं में चलने लगी थी,,,,डॉली की 12वीं की परीक्षा शुरू होने वाली थी ,,,,जब डॉली 4 साल पहले यहां आई थी अब उसमें और आज की डॉली में जमीन आसमान का फर्क हो गया था ,
जहां पहले की डॉली कमजोर दुबली-पतली और डरी हुई बच्ची थी ,,वही अब 20 साल की एक खूबसूरत समझदर और पढ़ी-लिखी लड़की हो गई थी,
डॉली ने अपने व्यवहार से और अपनी होशियारी से पूरे मोहल्ले को अपना बना लिया था ,,किसी का कोई लिखाई पढ़ाई का काम हो ,,किसी को मोबाइल में कुछ करवाना हो ,,बच्चे को कुछ समझाना हो ,,तो डॉली को
बुलाया जाता था डॉली की 12वीं की परीक्षा शुरू हो गई थी काकी और राज हर बात का पूरा ध्यान रखते ,रात में जागकर उसके लिए चाय कॉफी दूध देते ,और सुबह परीक्षा के लिए राज डॉली को छोड़ने और लेने जाता,,, राज का व्यवहार अभी नीले के लिए बिल्कुल वैसा ही था, जैसा कि 4 साल पहले था ,,,बह डॉली को अभी भी एक बच्ची समझता था,, और हमेशा उसे महारानी करके ही पुकारता ,,,वह शुरू से ही जानता था कि ,डॉली कैसी बस्ती में रहती थी और क्या काम करती थी, पर डॉली की आदते बहुत अच्छी थी, जैसे कि वह किसी बहुत बड़े घर की बेटी हो ,और यह देखते हुए ही उसने डॉली को महारानी करना शुरू किया था ,,,पर इन 4 सालों में डॉली के लिए राज के मायने थोड़े से बदल चुके थे ,बह राज की बहुत इज्जत करती, उसके मान सम्मान का और उसकी जरूरतों का पूरा ध्यान रखती और कोई ऐसा काम नहीं करती की बस्ती वाले डॉली के ऊपर उंगली उठा सके,,,,
आज डॉली का 12वीं का रिजल्ट आने वाला था , अब डॉली इतनी होशियार हो चुकी थी ,कि अपना सारा काम मोबाइल से खुद ही कर लेती थी ,जैसे ही उसने टीवी पर न्यूज़ सुनी की 12वीं कक्षा का रिजल्ट आ चुका है ,तो वह अपना रिजल्ट देखने के लिए बेचैन हो उठी थी, लेकिन राज अभी ढाबे पर ही था, तो वह जल्दी से राज से मोबाइल लेने ढाबे की तरफ दौड़ी,, और वहां जाकर बताया कि मेरा रिजल्ट आ चुका है, जैसे ही राज ने डॉली के रिजल्ट की बात सुनी, उसने फटाफट अपनी पॉकेट से मोबाइल निकाला और डॉली को देते हुए कहा,, यह ले सहज़ादी और जल्दी से अपना रिजल्ट देख कर बता,,, डॉली ने मोबाइल लिया और नेट ओपन करके अपना रोल नंबर डालकर रिजल्ट देखने लगी ,राज और ढावे पर काम करने वाले सारे लड़के एकटक डॉली की तरफ देख रहे थे, कि वह रिजल्ट देख कर क्या कहने वाली है, सबको डॉली के रिजल्ट का बेसब्री से इंतजार था ,डॉली ने अपना रोल नंबर फोन में एंटर कर दिया था, सर्वर घूम रहा था, बस कुछ ही देर में डॉली का रिजल्ट आने वाला था , और
अब डॉली का रिजल्ट फोन स्क्रीन पर आ चुका था ,,
वह 58% मार्क्स के साथ 12वीं में पास हो गई थी, डॉली के लिए यह उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी, और शायद उससे कहीं ज्यादा राज के लिए,, राज ने डॉली का सपना अपनी आंखों में बसा रखा था, रिजल्ट देख कर डॉली खुशी से चीख पड़ी और मोबाइल में राज को दिखाते हुए कहा !
देखिए मैं बहुत अच्छे नंबरों से पास हो गई हूं राज भी दिमाग पर जोर देकर रिजल्ट को समझने की कोशिश कर रहा था ,लेकिन उसके पल्ले कुछ पढ़ा नहीं ,क्योंकि रिजल्ट इंग्लिश में था, पर जब डॉली ने कहा कि वह पास हो गई है, राज के लिए इतना ही काफी था, राज ने ढावे पर जोर से चिल्लाते हुए कहा ,,होय अपनी महारानी पास हो गई है ये स्कूल की सारी पढ़ाई कर चुकी है ,,आज मेरी तरफ से अपने ढावे के भाइयों के लिए मस्त शानदार पार्टी होगी ,और छोटू तू सबका आर्डर लेले जिसको जो खाना होगा वह बनेगा,,, राज खुश होते हुए घर की तरफ गया कि वह काकी को भी यह खुशखबरी देदे,, उसने अंदर जाकर काकी को गोद में उठाया और घूम गया, राज बहुत खुश था ,उसने कहा काकी देख अपनी महारानी पूरे गांव में सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की बन गई है,, इसके जितना कोई भी नहीं पड़ा ,,अपनी महारानी पास हो गई है ,,तभी राज के पीछे पीछे डॉली भी अंदर आ गई थी,, डॉली जब भी राज और काकी को देखती ,तो उसे लगता उसने जरूर पिछले जन्म में कोई बहुत अच्छे
कर्म किए होंगे ,बहुत पुण्य किए होंगे, जो उसे काकी और राज का साथ मिला, इतना तो कोई अपनों के लिए भी नहीं करता, जितना यह दोनों मेरे लिए कर रहे हैं ,,अब डॉली बड़ी हो गई थी, अच्छे बुरे का और सही गलत का भेद कर सकती थी ,और वह समझ रही थी कि काकी और राज की भावनाएं डॉली के लिए क्या है , राज इतना खुश तो अपनी जीत पर भी नहीं हुआ होगा, जितना खुश डॉली के पास होने पर हो रहा था ,काकी ने राज से कहा राज अगर तेरी खुशी पूरी हो गई हो ,,तो मुझे नीचे उतार दे ,,और सुन मैंने पास के गांव में जो देवी जी का मंदिर है वहां पर मन्नत मांगी थी, कि जब अपनी डॉली स्कूल की पढ़ाई पूरी कर लेगी, और पास हो जाएगी ,तो हम मां के दर्शनों के लिए जाएंगे अब मैं नहीं चाहती कि इसमें देर हो, हम कल सुबह ही मंदिर के लिए निकल चलेंगे,, बचपन में अक्सर हर नवदुर्गा में मैं तुझे लेकर वहां जाती थी ,लेकिन जब से तू बड़ा हुआ अपने काम में ऐसा उलझा की मां को भूल ही गए हैं, तुझे भी मां का आशीर्वाद मिल जाएगा ,अभी जो भी काम करना है रात को जरा जल्दी निपटा कर सो जाना ,,
सुबह 500 बजे ही हमें वहां के लिए निकलना होगा,,,, रात को सभी ढाबे वालों की पार्टी हुई, जिसको जो खाना था राज ने सब कुछ छूट दे रखी थी ,,बाद में आइसक्रीम और केक भी सब को खिलाया गया,,,, कभी-कभी डॉली को अपनी खुशियों से डर लगने लगता था ,,कि जहां 8 साल उसने नर्क की जिंदगी
भोगी है, वही एक साथ इतनी खुशियां और देवता स्वरूप राज और काकी
जो उसकी हर खुशी का ध्यान रखते हैं, उसके लिए कितना करते हैं ,यह सब देख कर कभी-कभी डॉली का दिल भर आता और खुशी से उसकी आंखें नम हो जाती, कि उसने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया , कोई भी स्वार्थ ना होते हुए मेरे लिए कितना किया है,, रात को सबने पास होने की खुशी मनाई और खा पीकर 1112 बजे तक सभी सोने चले गए थे, सुबह 400 बजे ही काकी डॉली और राज को उठाने लगी,, सभी नहा धोकर तैयार होने लगे थे, और कम से कम 500 बजे तक यहां से निकलना था, मंदिर पहुंचने में भी 2 घंटे लगते हैं, सभी जल्दी उठ गए और नहा धोकर तैयार होने लगे ,
राज प्रसाद का सामान और पानी लेकर जीप में बैठ चुका था ,काकी भी एक थैला लेते हुए जल्दी से बाहर निकली और बाहर आकर डॉली को आवाज़ लगाने लगी,,,
डॉली बेटा जल्दी से बाहर आ, हम लेट हो रहे हैं और हां आते-आते एक बार गैस को चेक कर लेना ,,डॉली ना अंदर से ही आवाज लगाई हां काकी बस आ ही रही हूं,,,
जब डॉली जल्दी जल्दी अपने कान्हा जी को लेकर बाहर निकली,और ताला लगाकर गाड़ी में बैठने लगी,, तो राज ने देखा कि डॉली ने साड़ी पहन रखी थी ,तैयार होकर हल्का सा मेकअप भी था ,और खुले
बालों में वह डॉली लग ही नहीं रही थी ,
बड़ी ,समझदार ,और बहुत खूबसूरत दिख रही थी ,,
राज ने डॉली से नजर हटाते हुये कार स्टार्ट की और उसको जल्दी बैठने के लिए कहा ,,पर डॉली ने साड़ी पहन रखी थी तो वह ठीक से बैठ भी नहीं पा रही थी,, और राज की तरफ देखते हुए उसने इशारा किया कि वह उसकी हेल्प करें , राज खींजते हुए गाड़ी से उतरा और कहने लगा महारानी जब यह तेरे बस का नहीं था तो तुझे साड़ी पहनने की जरूरत ही क्या थी, जो कपड़े रोज पहनती है वही नहीं पहन सकती थी क्या उसका हाथ पकड़कर गाड़ी में बिठाया और डोर बंद करके गाड़ी स्टार्ट करने लगा,,
राज अब भी बोलता ही जा रहा था की काकी इससे कहो ना यह सब पहनने की जरूरत नहीं है ,जो रोज
पहनती है सलवार और कुर्ता वही ठीक है इसके लिए ,अरे बच्ची है बच्चों जैसा रहना चाहिए ना, यह सब साड़ी पहनने की क्या जरूरत है ,,
तब काकी ने हंसते हुए कहा राज अब हमारी डॉली बच्ची नहीं है ,,
वह बड़ी हो चुकी है ,20 साल की हो गई है और अब तो उसने 12वीं की परीक्षा भी पास कर ली है ,अरे अब साड़ी नहीं पहनेगी तो कब पहनेगी ,,कुछ दिनों बाद इसकी शादी भी होगी, तो साड़ी पहनना तो इसे सीखना ही पड़ेगा ,राज ने गाड़ी चलाते हुए ही कहा काकी तुझसे यह किसने कह दिया कि शादी के बाद लड़कियों को साड़ी ही पहनना चाहिए ,और आपने क्या यह अभी से इसकी शादी की रट लगा रखी है ,अभी तो इसको और पढ़ना है ,पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो जाने दो ,उसके बाद इसकी शादी के बारे में सोचेंगे,,,,,,,,,,,
काकी राज डॉली तीनों मंदिर पहुंचने ही वाले थे ,गर्मियों के दिन थे सुबह 600 बजे का सफर काफी अच्छा लग रहा था, खुली हुई जीप में तेज़ ठंडी हवा और आसपास के नजारे, मन को सुकून देने वाले थे ,आगे गाड़ी में बैठे हुए डॉली के बाल उड़ उड़ कर उसके चेहरे पर आ रहे थे ,,डॉली साड़ी में बहुत ही खूबसूरत दिख रही थी ,और खूबसूरत क्यों नहीं दिखती उसे आज अपने पास होने की खुशी थी, जो उसके चेहरे पर भर भर के आ रही थी ,कानों में झुमके और लहराता हुआ साड़ी का पल्ला उसे बड़े होने का एहसास करा रहा था ,डॉली ने पहली बार साड़ी पहनी थी ,और साड़ी को संभालते हुए वह बच्ची से एकदम बड़ी दिखने लगी थी तीनों मंदिर पहुंच चुके थे, राज ने गाड़ी रोकी और गाड़ी से सामान निकालते हुए काकी और डॉली को नीचे उतारा ,,,
मंदिर के लिए थोड़ी सा चलना पड़ रहा था क्योंकि भीड़भाड़ के कारण गाड़ी मंदिर से थोड़ी पहले ही रोक दी जाती थी, काकी के हाथ में एक थैला और डॉली के हाथ में फूलों के गजरे की थाली थी, डॉली ठीक से नहीं चल पा रही थी ,कभी उसका पल्ला उसके हाथ में
उलझता, तो कभी उसके खुले हुए बाल उसके चेहरे पर आने लगते और कभी-कभी साड़ी पैरों में उलझती उसके दोनों हाथों में फूलों की थाली थी ,कभी वह थाली पकड़ती तो दूसरे हाथ से पल्ला ,कुल मिलाकर वह चलते हुए बड़ी अस्त-व्यस्त सी लग रही थी ,और मंदिर आने जाने वाले लोग भी उसे देख रहे थे ,लेकिन डॉली को यह समझ नहीं आ रहा था कि वह खूबसूरत लग रही है, इसलिए लोग उसे देख रहे हैं या फिर कुछ अटपटी , शायद खूबसूरती लग रही होगी ,क्योंकि खूबसूरत लड़कियां जो भी करती हैं, वह सबको पसंद आता है ,लेकिन इस तरह से लोगों का मुड़ मुड़ के डॉली को देखना राज को बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था ,,उसने डॉली के हाथों से थाली ली और डांटते हुए बोला महारानी थाली मुझे पकड़ा और जरा ठीक से चल, क्या ये उल्टा सीधा कुछ भी करती रहती है ,,डॉली राज कि इस बात पर जरा गुस्सा हो गई थी ,कि वह इतनी सुंदर लग रही है ,और राज ने एक भी बार उसकी तारीफ तो की नहीं ,उल्टा उसे डांट लगा दी डॉली ने गुस्से में राज को थाली दी और काकी की तरफ देखते हुए कहने लगी!!! काकी चाहे हम कितने भी अच्छे लगे कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कभी किसी दूसरे की तारीफ कर ही नहीं सकते ,,,
क्या राज ने डॉली की तरफ देख कर कहा ! तू क्या मुझे सुना रही है , अरे तू चलती फिरती नौटंकी लग रही है ,,,
तू ,तू ,,क्या समझती है कि तू बड़ी सुंदर लग रही है
इसलिए लोग तुझे देख रहे हैं,, नहीं तू कार्टून लग रही है ,और इसलिए वह पलट पलट के तुझे देख रहे हैं ,,डॉली ने कुछ नहीं कहा ,और पैर पटकती हुई जल्दी-जल्दी आगे चलने लगी,डॉली के गुस्से को देखकर राज काकी की तरफ देख कर हंस गया,,, और धीरे से काकी के कान में आकर बोला काकी यह महारानी जब गुस्सा हो जाती है ना तब किसी ततैया से कम नहीं लगती,, काकी राज को डांटने लगी कि वह कितनी खुश है ,अच्छे नंबरों से पास हुई है ,तो क्यों उसको चिड़ा रहा है , काकी ने आवाज देते हुए कहा डॉली बेटा आराम से चल अब सीढ़ियां आ गई है, तो गिर मत जाना ,डॉली एक एक सीढ़ी आराम से चढ़ने लगी, उसने अपने हाथों से अपनी साड़ी को पकड़ रखा था ,और एक-एक कदम धीरे-धीरे रख रही थी ,राज और काकी उससे काफी आगे निकल चुके थे ,जब काफी ने ध्यान दिया कि डॉली उनसे पीछे रह गई है, तो राज को कहा! राज मैंने तो ध्यान नहीं दिया तू भी नहीं उसका ध्यान नहीं रखता देख वो कितने पीछे रह गई है, बेचारी कैसे आएगी साड़ी पहन के ,जा उसकी मदद कर और उसको हाथ पकड़ के ऊपर ले आ ,राज बही रुककर उसका इंतजार करने लगा ,,
डॉली बहुत धीरे-धीरे ऊपर आ रही थी,तो राज बड़ी बड़ी डगे भरते हुए डॉली के पास पहुंचा ,और उसका हाथ पकड़ कर उसे ऊपर चढ़ाने लगा ,थोड़ी ही देर बाद तीनों मंदिर पहुंच गए थे, मंदिर पहुंचकर काकी ने पूजा का सामान निकाला पंडित जी से पूजा करवाई ,डॉली
और राज को उनका आशीर्वाद दिलवाकर,, कन्यायो को खाना खिला कर वापस घर के लिए निकल आए,, घर पहुंचकर सबसे पहले डॉली ने कपड़े चेंज किये, साड़ी में चलते-चलते बह बहुत थक चुकी थी ,और फिर तीनों मंदिर का प्रसाद खाने लगे, खाना खाते खाते राज ने डॉली से उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा ,,कि आगे अब क्या करना है ,,और डॉली की तरफ देख कर कहा कॉलेज के फार्म भरने लगे हैं ,तू कहे तो जाकर मैं एक तेरे लिए भी ले आऊँ, खाना खाते हुए ही डॉली बोली पर कॉलेज तो यहां से बहुत दूर है ,उसके लिए तो शहर जाना पड़ेगा ,और फिर मैं कैसे जाऊंगी शहर यहां से रोज-रोज,,
तव राज ने बोला ,तुझे चिंता करने की क्या जरूरत है ,,अपने ढावे के बाहर से ही बस निकलती है ,मैं बस वाले से बोल दूंगा वह तुझे कॉलेज तक छोड़ देगा ,और वहां से लेकर भी आ जाएगा ,,,
पर इस तरह से रोज रोज बस में जाने का डॉली का मन नहीं हो रहा था, अब उसे खुद से भी पढ़ना आ गया था ,वह BA करना चाहती थी ,और उनके सारे विषयों की पढ़ाई घर पर भी बखूबी हो सकती थी, तो डॉली ने निर्णय लिया कि वह प्राइवेट फॉर्म भर के सिर्फ परीक्षा देने ही शहर जाएगी, और उससे पहले उसने नौकरी करने की इच्छा बताई कि अपने गांव में अभी एक भी आंगनबाड़ी नहीं है ,और मैंने कल ही पड़ा है कि आंगनवाड़ी की जगह निकलने वाली है उसमें अपने गांव का भी नाम जरूर होगा मैं ठीक से पता लगाती
हूं ,और अगर ऐसी कोई जगह अपने गांव के लिए होगी तो मैं कोशिश करूंगी कि उसमें नौकरी कर लूँ, राज का मन था ,कि अभी डॉली पूरी तरह से अपनी पढ़ाई में ध्यान दें ,इसलिए वह थोड़ी आनाकानी कर रहा था ,कि तुझे अभी से नौकरी करने की क्या जरूरत है ,तू बस अपनी पढ़ाई पूरी कर ,उसके बाद नौकरी तो लग ही जाएगी ,,,
तब डॉली ने समझाया ,,की काकी ऐसे मौके रोज-रोज नहीं आते ,अगर गांव में एक बार आंगनबाड़ी खुल गई तो फिर सालों बाद ही कोई दूसरी वैकेंसी आ पाएगी ,और फिर इस गांव में तो मैं सबसे ज्यादा पढ़ी लिखी हूं, तो मुझे नौकरी मिलने में भी कोई कठिनाई ना होगी, और हां काकी अब तो आंगनबाड़ी की तनख्वाह भी 12 से 15 हज़ार हो गई है फिर हमें अपने ही गांव के छोटे बच्चों और महिलाओं के विकास करने का मौका भी मिलेगा ,उनके लिए कुछ करना मुझे बहुत अच्छा लगेगा ,,काकी यह नौकरी के साथ-साथ एक समाज सेवा भी होती है जिसमें हम अपने गांव के बच्चों और महिलाओं को अच्छी शिक्षा के साथ साथ उनके खान-पान का भी पूरा ध्यान रख सकते हैं, उनको खाने पीने का सामान बांटना, बीमे की सुविधाएं देना,, सब कुछ समझाना ये सारे काम आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के ही अंडर आते हैं, और मुझे खुशी होगी कि मैं ऐसे लोगों के लिए कुछ कर पाऊं, और उन्हें सही सीख दे पाऊं ,काकी सिर्फ नौकरी नहीं है ,यह मेरा सपना है कि मैं अपने गांव के लिए कुछ करूं, और फिर मैं कहां कह
रही हूं कि मैं पड़ूंगी नहीं,,, मैं अपनी पढ़ाई भी करूंगी प्राइवेट फॉर्म भर कर ,,
बीए करना इतना कठिन नहीं होता जितना हमें लग रहा है ,मैं आपको विश्वास दिलाती हूं कि नौकरी की वजह से अपनी पढ़ाई को पीछे नहीं करूंगी ,बस एक बार मैं अच्छे से पता कर लेती हूं ,,कि नौकरी के लिए हमें किन-किन कागजों की जरूरत पड़ेगी, डॉली ने इतने अच्छे से समझाया तो काफी और राज को उसकी बात अच्छे से समझ में आ गई ,,,, और राज डॉली की नौकरी के लिए राजी हो गया ,,,
डॉली ने दूसरे दिन जाकर साइबर कैफे पर पता किया ,तो बताया गया कि फॉर्म भरे जा रहे हैं,, और इस गांव में भी एक वैकेंसी है फिर क्या था डॉली ने जल्दी से सारा प्रोसीजर समझा और अपने सारे कागज लेकर पहुंच गई फॉर्म भरने के लिए ,,एक छोटी सी परीक्षा भी होती थी तो फॉर्म भरकर डॉली अपनी परीक्षा की तैयारी में लग गई वह चाहती थी कि अगर काकी और राज ने उसकी इतनी मदद की है,, इतना साथ दिया इतना हौसला बढ़ाया तो वह भी कुछ करके दिखाएं ,बस एक महीने बाद ही उनकी परीक्षा थी जिसमें डॉली को कैसे भी निकालना ही था ,,आखिर एक महीना भी बीत गया वह पूरी तैयारी के साथ परीक्षा देने जा रही थी, काकी ने उसे चम्मच से दही चक्कर खिलाया और उसके भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी ,जब शाम को डॉली परीक्षा देकर आई तो वह काफी खुश लग रही थी क्योंकि उसका पेपर
बहुत अच्छा गया था और फिर इस गांव में वह सबसे ज्यादा पढ़ी-लिखी लड़की थी ,तो उसे पूरा विश्वास था कि यह नौकरी उसे ही मिलेगी,,,,† आखिरकार डॉली को परीक्षा दिए हुए 2 महीने बीत चुके थे ,और 1 दिन गांव के मुखिया ने आकर बताया कि डॉली का आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के लिए नाम आया है खबर गांव की मुखिया को ही दी जाती थी जिससे वह डॉली के बारे में सही जानकारी दे पाए, उस वक्त राज ढाबे पर काम कर रहा था ,,जब उसने यह खबर सुनी तो सरपंच साहब को लेकर अंदर घर आ गया ,और घर आकर डॉली को नौकरी की बात बताई, यह सुनकर तो डॉली के पैर जमीन पर ही नहीं पढ़ रहे थे ,क्योंकि आज काकी और राज की मेहनत का फल डॉली को मिला था
राज ने मुखिया जी की अच्छे से आवभगत की उनका मुंह मीठा करवाया ,और उन्हें खबर देने के लिए धन्यवाद भी किया, मुखिया साहब ने कुछ जरूरी पूछताछ की हालांकि डॉली के पास सारे पेपर तैयार थे तो डॉली फॉर्म भरकर मुखिया जी को दिया मुखिया जी ने अपने साइन किये, और सील लगा दी ,कि डॉली इस पद के लिए बिल्कुल योग्य उम्मीदवार है ,और सच ही था डॉली अपनी नौकरी से पहले ही सभी की दिल खोलकर मदद करती थी ,लगभग एक महीने बाद डॉली का आंगनबाड़ी केंद्र खुल चुका था जिसमें 2 सहायकाऐ और एक हेल्पर डॉली को मिले थे,
आंगनबाड़ी की हेड डॉली ही थी धीरे-धीरे अपनी समझदारी और होशियारी से अपनी आंगनबाड़ी का काफी विकास कर लिया था ,
आंगनवाड़ी को बहुत सुंदर तरीके से सजाया ,उसके आगे छोटा सा गार्डन था, जिसमें झूले और खेलने के बहुत सारे सामान बच्चों के लिए लाए गए थे
,बच्चों को टाइम पर खाना देना,
उनकी पढ़ाई की व्यवस्था करना,
उन्हें खिलाना
,गर्भवती महिलाओं की देखरेख करना ,
उन्हें पोषित आहार देना ,
उनका नामांकन करना ,
बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट बनाना ,
जच्चा-बच्चा के स्वास्थ्य की जांच करवाना ,
डॉली सारे काम बखूबी कर रही थी, गांव की औरतें और बच्चे पहले से ज्यादा समझदार हो गए थे डॉली
समय-समय पर उनके घर भी जाती और उनको साफ सफाई के बारे में भी बताती , कुल मिलाकर बह सारे फर्ज बखूबी निभा रही थी ,जो एक आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को निभाने चाहिए ,कुल मिलाकर डॉली अभी जिम्मेदार महिला बन चुकी थी ,,
जब तक वह घर में रहती घर के सारे फर्ज बखूबी निभाती,,, काकी के साथ घर के काम में पूरा हाथ बटाना ,राज का जो थोक का सामान आता उसका सारा हिसाब किताब रखना ,घर की सारी जिम्मेदारियों को समझना, डॉली के ही कंधों पर था,और वह अपनी जिम्मेदारी को किसी बोझ की तरह नहीं ,बल्कि फर्ज की तरह खुशी-खुशी निभाती थी ,और जैसे ही घर से निकलती तो फिर पूरी तरह से आंगनबाड़ी के काम में खुद को समर्पित कर लेती ,,डॉली को मेहनत की आदत तो बचपन से ही थी, पर उसने अपनी इस आदत को कम नहीं होने दिया बल्कि इसको और बढ़ाया ,,ढाबे के भी कई बातों में राज डॉली कि सलाह लेता था, डॉली ऑनलाइन सामान देखकर उसका भी ऑर्डर दे देती थी, इससे काफी कम रेट में और अच्छा सामान आ जाता ,,इसलिए राज को शहर के चक्कर कम ही लगाना पढ़ते थे अगर कहा जाए कि डॉली के बिना राज और काकी की जिंदगी अधूरी थी तो यह कहना गलत नहीं होगा,,,,,,,,
अब काकी और राज दोनों डॉली की तरफ से निश्चिंत हो गए थे, क्योंकि उन्होंने जितनी मेहनत डॉली के साथ की थी वह सफल हो चुकी थी, शुरुआत छोटी ही सही मगर डॉली अपने पैरों पर खड़ी हो गई ,और सबसे अच्छी बात तो यह थी कि छोटी सी नौकरी को भी डॉली ने एक अलग नजर से देखा और वह नौकरी से ज्यादा इस गांव के अनपढ़ और गरीब लोगों की मदद करने के लिए तैयार रहती थी, महिलाएं बच्चे जब भी किसी को कोई दिक्कत होती तो बेझिझक डॉली के पास अपनी परेशानी लेकर पहुंच जाते, और जितना होता डॉली उनकी समस्या को हल करने की कोशिश करती, आंगनबाड़ी की जांच करने जब भी बड़े ऑफिसर आते तो डॉली के काम से हमेशा खुश होकर ही जाते थे, डॉली ने आंगनबाड़ी के सामान में कभी भी कोई बेईमानी नहीं कि पूरी ईमानदारी के साथ बच्चों को उनके हिस्से का राशन पानी और सुविधाएं हमेशा दीं,और गर्भवती महिलाओं को भी वह हमेशा समझाती कि तुम्हें कितने पोषण की जरूरत है ,और क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिए, जिस तरह काकी और राज अपने काम में ईमानदार थे ,ठीक वही संस्कार
डॉली के अंदर भी आए, डॉली भले ही बस्ती में रहती थी, पर बचपन से उसमें अपनी मां के संस्कार थे ,और जब बड़ी होकर काकी के यहां आई तो राज की ईमानदारी काकी की मेहनत और दोनों की लगन, डॉली ने सारे गुणों को अपने अंदर समाहित किया, जब भी कोई डॉली की तारीफ करता तो राज का सीना चौड़ा हो जाता ,यह जानकर उसकी महारानी कितनी सही तरीके से आगे बढ़ रही है, उसने डॉली से जितनी उम्मीद की थी, डॉली ने उससे कहीं ज्यादा करके दिखाया ,डॉली कहने को तो 20 साल की हो चुकी थी, 21वी मैं चल रही थी ,पर उसकी समझदारी बिल्कुल परिपक्व महिला की तरह ही थी ,उसे अच्छे बुरे की समझ थी ,उसमें दूर दृष्टि थी इंसान के चेहरे से बह समझ जाती थी, कि यह कैसा है ,और शायद इतनी ज्यादा समझदारी डॉली को अपनी परेशानियों के चलते ही आई थी ,हमेशा ही उसने अपनी उम्र से ज्यादा काम का बोझ अपने कंधों पर उठाया था ,लेकिन जब से वह काकी के पास आई तब से उसने खुशी खुशी और अपने हौसले को आगे बढाया था, और उसने कर दिखाया था कि अगर हम चाहे तो दुनिया की कोई भी ताकत हमें आगे बढ़ने से नहीं रोक सकती, परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, हमें हिम्मत से काम लेनाचाहिए, बहुत सारे ऐसे काम थे जिनकी तरफ से काकी और राज निश्चिंत हो गए थे ,,,,अपनी डॉली को नौकरी करते 1 साल हो चुका
था ,जिंदगी अपनी पूरी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी, डॉली भी 21 साल की हो चुकी थी ,और चाहे वह कितनी भी समझदार हो जाए कितनी भी बड़ी हो जाए पर राज हमेशा उसका ध्यान रखता ,उसकी नजर से बच नहीं पाता था कि कोई डॉली को किस नजर से देख रहा है, वह खुश है या दुखी है जिस दिन से डॉली उसके घर में आई, उस दिन से आज तक, राज की आंखों का सुरक्षा कवच हमेशा उसके आसपास होता था, उसने डॉली को खुलकर जीने की आजादी दे दी थी, कि वह पूरी तरह से अपने पंख फैला कर उड़ सकती है, लेकिन साथ ही उसका ख्याल भी रखता की बहन निडर होकर अपनी उड़ान को पूरा करे,,
और डॉली ने भी ऐसा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, गांव के सभी बच्चे और महिलाएं डॉली के पास अपनी परेशानियों को लेकर आते ,और वह जितना हो सकता कोशिश करती थी सबको सही सलाह दे सके ,डॉली की आंगनबाड़ी में जब भी कोई ऑफिसर चेक करने आता तो वह हमेशा डॉली के काम से खुश होकर ही यहां से वापस जाता था ,वह देखता था कि किस तरह से डॉली ने आंगनबाड़ी की परिभाषा बदल कर रख दी है ,,,जहां पहले आंगनबाड़ी को लोग गरीबों का केंद्र समझते थे, वहां जाने में उन्हें संकोच लगता था, पर डॉली ने अपनी आंगनबाड़ी का विकाश इतने अच्छे से किया था ,कि गांव के अच्छे ,बड़े ,,छोटे ऊंचे नीचे सभी लोग आगनबाडी में आकर अपने बच्चे का और गर्भवती महिलाओं का रजिस्ट्रेशन करवाते,,
क्योंकि उन्हें पता था कि डॉली अपनी रिस्पांसिबिलिटी को बखूबी निभाती है ,बच्चों का या महिलाओं का हक डॉली ने कभी भी उन से वंचित नहीं होने दिया था, जिसके हिस्से में जितना भी आता वह उन तक ज़रूर पहुंचाती थी, यहां तक कि उनके घर घर जाकर भी साफ सफाई स्वच्छता और पोषण का महत्व उन्हें समझाती,, चार पांच साल तक के बच्चों का विकास जब आंगनबाड़ी में हो जाता तो उसके बाद उन्हें कक्षा एक से स्कूल भेजना ठीक था ,पर डॉली ने देखा कि गांव में स्कूल ना होने की वजह से आंगनबाड़ी के बाद बच्चा घर में ही रहता है, तो उसे बहुत दुख होता था ,क्योंकि डॉली ने जिस स्कूल से शिक्षा ली थी वहां से 3,4 किलोमीटर दूर था और छोटे बच्चों के लिए यह दूरी काफी थी जो बड़े बच्चे थे वह तो खुद साईकिल से या फिर इकट्ठे होकर स्कूल चले जाते ,लेकिन कक्षा चौथी तक के बच्चे खासकर ऐसे बच्चे जिनके माता-पिता स्कूल भेजने में सक्रिय नहीं है ,वह घर पर ही रह जाते थे, या तो उनकी पढ़ाई लेट होती थी, या फिर छूट जाती थी ,इन सब बातों को देखकर कब से डॉली के मन में चल रहा था कि वह कक्षा एक से चौथी तक के लिए गांव में एक स्कूल खुलवाए ,इसके लिए डॉली ने जिला कलेक्टर को भी ऑनलाइन एप्लीकेशन दे दी थी, और गांव के मुखिया के पास भी लिखित में समस्याओं के बारे में बता कर अर्जी लगा चुकी थी, डॉली इसी काम के लिए भागदौड़ कर रही थी ,,उसकी पहल को देखते हुए गांव के कुछ समझदार लोग भी
डॉली के साथ हो गए थे, और डॉली ने इस बारे में राज से भी बात कर ली,,, राज ने भी कह दिया था कि उसकी मदद की जरूरत होगी वह जरूर करेगा,, डॉली आंगनबाड़ी के साथ-साथ,,
राज का भी पूरा ध्यान रखती थी, खासकर आंगनवाड़ी जाने से पहले राज और काकी को अच्छे से नाश्ता और फल खिलाकर ही जाती थी ,क्योंकि उसे पता था कि एक बार वह चली गई और अगर राज का नाश्ता रह गया, तो काकी भी काम में लग जाएगी और राज को तो ढावे के अलावा कुछ दिखता ही नहीं ,,,अगर कभी राज नाश्ता किए बिना ढाबे पर चला जाता ,तो वह उसकी प्लेट लगाकर उसके पीछे ढाबे पर पहुंच जाती ,और जब तक अपनी आंखों से नहीं देख लेती कि राज ने पूरी प्लेट खत्म कर ली है ,अब तक वहीं खड़ी रहती, राज भी डॉली कि बात को समझता था ,इसलिए काम करते करते हुए भी वह अपनी प्लेट जल्दी से खत्म करता ,और वापस उसे देते हुए कहता सहजादी अब घूरना बंद कर और आंगनबाड़ी जा,अपुन का टाइम भी खोटा हो रहा है ,और डॉली राज से प्लेट लेकर चुपचाप रखकर आंगनबाड़ी चली जाती ं,,,,,,,,,,
डॉली ने कॉमर्स विषय के साथ पढ़ाई की थी तो वह लेन-देन का हिसाब काफी अच्छे से समझती थी ,और जब से उसने आंगनबाड़ी में काम करना शुरू किया तो अपने जीवन को सुरक्षित बनाना, उसको सही तरीके से चलाने का हुनर उसमें आ गया था ,क्योंकि आंगनबाड़ी
की मीटिंग में समय-समय पर यह सारी बातें बताई जाती है ,इसी को देखते हुए डॉली ने राज के ढाबे का और राज का बीमा भी करवा दिया था ,उनकी किस्तों की याद दिलवाना और समय पर किस्त भरना भी डॉली की जिम्मेदारी में ही आता था, डॉली जब भी ढाबे पर जाती तो वहां काम करने वाले लड़के समझ जाते कि जरूर राज भैया ने कोई ऐसा काम किया है जो वह भूल गये है ,और वह डॉली को देखकर ही राज को चिढ़ाने लगते कि राज भैया तैयार हो जाइए ,डॉली दीदी आपकी डांट लगाने आ रही हैं ,राज सच में सोचने लगता कि कौन सा काम ऐसा है जो छूट गया और जिसके लिए महारानी उसे सुनाने ढाबे पर आ रही है,,, पर वह रौब झाड़ते हुए कहता अपुन डरता है ,क्या महारानी से ,आने दे उसे अभी एक डांट लगाऊंगा तो उल्टे पांव यहां से चली जाएगी ,लेकिन जैसे ही डॉली आकर अपनी बात उसके सामने रखती, तो उसकी बात इतनी सही होती कि राज चुप रह जाता,,,,
गांव के सभी लोग जानते थे कि डॉली और राज का रिश्ता बिल्कुल पानी की तरह है निर्मल और पवित्र जिसके आर पार अच्छी तरह से देखा जा सकता है ,कहने को तो डॉली और राज के बीच ऐसा कोई भी रिश्ता नहीं था ,जिसे नाम दिया जा सके,पर कुछ बेनाम रिश्ते भी इतनी मजबूती से बंध जाते हैं कि उनकी गहराई का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, कुछ ऐसा ही रिश्ता था राज का डॉली के साथ ,,,,कहने को
राज भी 31 साल का हो चुका था, अपनी जिम्मेदारियों का एहसास भी उसे बहुत अच्छे से था, पर उसके अंदर अभी भी एक बच्चा छुपा था जो कभी-कभी जब कुछ भी लापरवाह और अल्हड़ था, और जिस को संभालना सिर्फ डॉली को आता था,,,,,
डॉली को इस गांव में आए हुए 5 साल बीत चुके थे ,जब डॉली आई तब यहां कुछ सौ सवा सौ के आसपास धर थे ,लेकिन 5 साल बाद गांव का काफी विकास हो चुका था, और अब यहां करीब 200 से ढाई सौ के बीच घर बन चुके थे ,और उनमें लोग भी रहने लगे थे ,लोगों की जरूरत को देखते हुए कुछ दुकानें भी खुल गई थी ,और इसी आबादी की वजह से यहां आंगनबाड़ी का खुलना भी संभव हो पाया था ,यह गांव चुकी शहर से पास ही है ,जब शुरू में गांव बना तो लोग खेती की जमीन के आसपास रहने आ गए ,और तब इस गांव का कुछ नाम भी नहीं था ,लेकिन जब लोग रहने आए उन्होंने अपना पता बताया ,उनका आधार कार्ड बना और गांव को नगर निगम की मान्यता मिली तब इस जगह का नाम परमपुर रखा गया था गांव के लोगों ने ही मिलकर यह नाम बताया था ,क्योंकि उन्हें ऐसा लगता था कि यहां पर परमात्मा का वास है ,और परम आनंद है चारों तरफ हरे-भरे लहराते खेत ऊंची पहाड़ियां पीछे बहती हुई बड़ी सी नहर इस जगह की खूबसूरती को बढ़ाती थी और हाईवे पर होने के कारण दिनभर रोड चालू रहता था ,जिसकी वजह से विकास के भी अच्छे अवसर थे , सभी अपनी जिंदगी में व्यस्त
थे ,जहां राज अपने ढाबे को अच्छे से चलाता ,वही डॉली अपनी आंगनबाड़ी और घर परिवार के कामों में उल्झी रहती ,उसे 1 मिनट का भी टाइम नहीं था कि वह किन्हीं फालतू चीजों से जुड़े ,,,,
†
आज शाम को जब राज घर आया तो उसने डॉली और काकी को बताया कि परसों उसके ढाबे पर एक छोटी सी पार्टी रखी गई है ,मतलब शहर से यही कोई 25 ,30 लोग आ रहे हैं ,जो अपनी बर्थडे की पार्टी यहाँ मनाना चाहते हैं ,पार्टी दोपहर के खाने की ही है ,,और हां महारानी उन्होंने कुछ जंक फूड के ऑर्डर दिए हैं ,वह पास्ता ,मंचूरियन ,करारे चिप्स और पनीर टिक्का ,अगर तू यह सब कर पाए तो मैं उनका यह वाला आर्डर ले लूं नहीं तो फिर मैं स्टार्टर के लिए मना कर देता हूँ,,,,डॉली ने रोटी बेलते हुए रसोई से ही बताया नहीं नहीं आपको मना करने की जरूरत नहीं है ,मैं सब कुछ कर लूंगी ,परसों वैसे भी आंगनवाड़ी की छुट्टी है तो मुझे कोई परेशानी नहीं है, आप उनको हां बोल दीजिए ठीक है! फिर मैं उनको फोन करके बता दूंगा ,और हां इसके लिए जो भी सामान लगेगा उसकी लिस्ट तू अपुन को कल सुबह दे देना ,,,
डॉली रोटियां सेकती जा रही थी और राज की बातों का जवाब भी दे रही थी उसने कहा नहीं आप बस मुझे बता दीजिए कितने लोगों का खाना बनना है ,मैं सारा सामान ऑनलाइन मंगवा लूंगी, और हां अब तो बहुत फास्ट डिलीवरी हो गई है, एक ही दिन में हमारे पास सारा सामान आ जाएगा मैं कल ही सारा मंगवा लेती हूं ,,
डॉली हमेशा राज को आप करके ही बुलाती और राज डॉली को महारानी ,,,,
दूसरे दिन डॉली ने ऑर्डर किया जो जंक फ़ूड के लिए चाहिए था, और अब वह कल की तैयारी करने लगी थी, क्योंकि कल वैसे भी आंगनबाड़ी की छुट्टी थी तो उसका मूड एकदम फ्रेश था ,और जल्दी जल्दी काम निपटा कर तीनों सो गए ,,,,
क्योंकि सुबह भी उन्हें जल्दी उठना था
सुबह 600 बजे ही डॉली उठी और घर के काम निबटाने लगी, नहा धोकर फटाफट पराठे सेके ,,, तब तक काकी भी उठ कर पूजा करने लगी थी, डॉली ने जल्दी से दो छोटे-छोटे पराठे और दही की प्लेट लगाकर काकी को दी ,कि पहले कान्हा जी का भोग लगा दे ,उसके बाद हम सभी भी नाश्ता कर लेंगे ,क्योंकि हमें जल्दी ढाबे पर पहुंचना होगा, जब तक राज नहा धोकर आया और काकी ने पूजा की तब तक डॉली ने राज की मनपसंद अरबी की सब्जी ,पराठे ,और मीठा दही बना कर तैयार रखा था, जैसे कि राज आया डॉली ने राज को नाश्ते की प्लेट दी और बाद में अपनी और काकी की प्लेट लेकर भी बाहर आ गई, तब तक काकी भी पूजा करके आ चुकी थी, तीनों ने जल्दी से नाश्ता खत्म किया, और ढाबे पर निकल गए जाते साथ ही डॉली तैयारी में लग गई थी खाना तो ढाबे पर अच्छी तरह से बन जाता बस जंक फूड की तैयारी डॉली को करनी थी दोपहर के 1100 बज चुके थे ,अब तक डॉली के सारे काम खत्म हो गए, बस अब उन लोगों का इंतजार था ,कि जैसे ही वह आये, डॉली स्टार्टर उन्हें सर्व करवा कर फ्री हो जाए ,तब तक देखा कि 5 गाड़ियां बाहर आ चुकी है ,राज ने सब को अंदर बुलाया और उनको देखते ही सब फटाफट अपने काम में लग गए, वैसे वह सब राज की जान पहचान वाले थे ,वह अक्सर यहां का खुला नजारा आसपास की हरियाली और राज के ढाबे में लगे हुए रंग-बिरंगे फूलों को देख कर कुछ समय के लिए सुकून लेने यहां पर चले आते थे ,और फिर यहाँ ढाबे का खाना भी बहुत अच्छा होता था ,,राज ने जल्दी से अंदर आकर, कहा!!! छोटू फटाफट 15,,20 पानी की बोतल लेकर बाहर आ और डॉली भी सबके लिए स्टार्टर की प्लेटस लगवाने लगी थी,,,,,,राज के ढाबे पर कुछ लोग शहर से एक छोटी सी पार्टी करने आ रहे थे ,यही कोई 25 ,30 लोग थे जिसमें 8,10 लेडीस या लड़कियां और कुछ लड़के ,उस पार्टी के लिए जंक फूड की सारी तैयारी डॉली को करनी थी ,आज संडे था ,डॉली की छुट्टी थी ,तो वह पूरी तरह से फ्री भी थी,वह जाकर सारी चीजों की तैयारी करने लगी अब तक तैयारी हो चुकी थी ,और पार्टी के लिए भी लोग शहर से आ गए थे सबसे पहले उन्हें जंक फूड की प्लेटस दी गई, जिसमें करारे चिप्स ,मंचूरियन ,पनीर टिक्का और मोमोज थे ,डॉली ने बड़ी ही मेहनत और लगन से सारा खाना बहुत टेस्टी बनाया था, और अंदर से फटाफट प्लेट्स लगवाते हुये बाहर उन लोगों तक पहुंचा भी दी, उसके बाद डॉली का काम खत्म हो चुका था, लेकिन अभी भी बह ढावे पर काम करवा रही थी ,क्योंकि आज वैसे भी उसके पास कोई काम नहीं था ,राज भी अंदर बाहर जाते हुए सारा काम देख रहा था ,तभी उनमें से यही कोई तीन चार लोग उठकर अंदर आए क्योंकि उन्हें खाने के बारे में अंदर कुछ बताना था ,और अंदर आ कर देखने लगे कि वह किससे बात करें ,तब उन्हें समझ में आया कि यहां का सारा काम
यह मैडम जी संभाल रही है, मतलब कि; तो उन्होंने डॉली के पास जाते हुए अपना आर्डर; बता दिया, कि दो दाल बिल्कुल सिंपल और बिना मिर्ची की चाहिए, और हां रोटियां भी विदाउट बटर , डॉली ने उनकी बात को नोट कर लिया और कह दिया ठीक है, जैसा आपने कहा है वैसा ही हो जाएगा ,उसमें से एक लड़का बड़े ही गौर से डॉली को देख रहा था, जो शायद उन लोगों के साथ पहली बार ही ढावे पर आया था ,वह अभी डॉली को पहचानता नहीं था ,कि यह कौन है और ढाबे पर क्या संभालती हैं ,थोड़ी ही देर बाद वह दोबारा किसी बात के बहाने अंदर आ पहुंचा, इस बार उसने फिर डॉली से बात करने की कोशिश की, कि मैडम अगर हो सके तो दो प्लेट मीठा और सादा दही भी आप खाने में ऐड कर दीजिए, डॉली ने उनके इस आर्डर को भी नोट कर लिया था ,सभी अपने काम में पूरी तरह से व्यस्त थे, बाहर स्टार्टर खत्म हो गया था, और अब बैठकर थोड़ी हंसी मजाक कर रहे थे ,,,,
राज भी बाहर उनकी टेबल देख रहा था कि कितने लोग हैं, और कितनी टेवल्स लगवानी है ,तो वह सारा अरेंजमेंट राज कर रहा था ,,,और डॉली अंदर दूसरे कामों में लगी हुई थी ,पर ऐसे लग रहा था जैसे कि वह लड़का बार-बार डॉली से बात करने का बहाना ढूंढ रहा हो, वह किसी ना किसी बहाने अंदर आ रहा था, राज ने थोड़ी देर बाद इस बात को नोटिस किया और उसने डॉली से घर जाने के लिए कहा!!!
डॉली; जानती थी कि राज को बस एक ही बात की चिंता रहती है, कि वह ढाबे पर या दूसरी चीजों में कम से कम समय दे , सिर्फ अपनी पढ़ाई देखें ,क्योंकि राज जानता था कि ,डॉली के पास वैसे भी टाइम नहीं रहता ,इसलिए वह संडे को अच्छे से पढ़ाई कर लेती थी ,और अब चूँकि डॉली को ढाबे पर कोई काम भी नहीं था,,राज की बात को इग्नोर करते हुए वह यहां के कामों में मदद करवाती रही ,राज ने भी ध्यान नहीं दिया कि डॉली घर गई , या नहीं इसी बीच करीब 2 घंटे बीत चुके थे, उन सब का खाना भी हो चुका था ,और सब यहां के अरेंजमेंट से बहुत खुश थे ,जितना अच्छा स्टार्टर उतनी ही अच्छी बैठने की व्यवस्था और उतना ही बढ़िया तड़के दार और साफ सुथरा यहां का खाना ,,,,
उन्होंने राज की तारीफ भी की और बिल पेय करते हुए दोबारा आने की इच्छा भी जाहिर की, अब तक सब कुछ खत्म हो चुका था ,डॉली अंदर का काम समेटने में लगी हुई थी,,,,,लेकिन तभी फिर से वह दोनों लड़के अंदर आये और जाते-जाते डॉली से उसका मोबाइल नंबर पूछने लगे ,डॉली ने बड़ी ही सहजता से कहा देखिए अगर आपको हमारे ढावे से कोई कांटेक्ट करना है ,और आपको नंबर चाहिए तो बाहर बोर्ड पर नंबर लिखा हुआ है ,और आप जाकर ,बाहर राज यानी की ढाबे के मालिक से भी बात कर सकते हैं, वह आपको यहां का ऑफिशियल नंबर दे देंगे जिस पर आपकी बात आराम से हो जाएगी ,पर उन लड़कों ने फिर अपनी इच्छा जाहिर की मैडम एक्चुली हमें आपका ही नंबर चाहिए, हमें आप की व्यवस्था बहुत अच्छी लगी ,और हम चाहते हैं कि अगर हमारे यहां कोई पार्टी हो, तो आप उस का अरेंजमेंट देखें, और उनकी इस बात का भी जवाब डॉली ने बहुत समझदारी से दिया ,,,
कि सर मैं किसी के घर नहीं जाती हूं क्योंकि यह ढाबा मेरे घर का है, अगर कभी मुझे टाइम होता है, तो यहां थोड़ी बहूत हेल्प करवा लेती हूं ,,,अदरवाइज ढावे की सारी व्यवस्था राज जी ही देखते हैं ,,,आपको जो भी बात करनी है आप उनसे कर सकते हैं ,,मैं आपको पहले भी बता चुकी हूं ,,,
लेकिन वह डॉली की बात समझ ही नहीं रहे थे ,शायद उनमें से एक लड़का जो डॉली को देखकर अट्रैक्ट हो गया था ,और वह डॉली से दोस्ती का हाथ बढ़ाने के लिए ही उसका नंबर मांग रहा था ,उसे डॉली बहुत ही समझदार सुंदर और पढ़ी-लिखी लड़की लगी, और डॉली की एक्टिव नेस को देखते हुए वह कुछ ही देर में डॉली से काफी इंप्रेस हो गया था उसने कोई बदतमीजी तो नहीं की ,पर फिर भी मैं बार-बार नहीं डॉली से उसका नंबर लेने की जिद करने लगा,,
अंदर की आवाज राज के कानों में पड़ी कि वह किसी को किसी बात के लिए मना कर रही है, तो राज सीधा अंदर आया और उसने देखा कि जो दो लड़के है, उनमें से एक लड़का डॉली से किसी तरह की जबरदस्ती कर रहा है ,और डॉली से कोई कुछ कहे यह तो राज की
बर्दाश्त से बाहर था, वह भी उसके होते हुए ,उसके ढाबे पर किसकी इतनी हिम्मत हो गई जो डॉली से तरह से बात कर सके,,
राज को देखकर ही डॉली समझ गई कि राज को यह सब अच्छा नहीं लगा और अगर बात जरा भी बड़ी,तो उसका गुस्सा बेकाबू हो जाएगा ,,इसलिए डॉली ने समझदारी से काम लेते हुये,,,नॉर्मल होकर लड़कों से कहा लीजिए आपको ढाबे का कांटेक्ट चाहिए था ,और ये आ गए ढाबे के मालिक ,आप इनसे कांटेक्ट ले सकते हैं,,
पर उस लड़के ने कहा मैडम मुझे आपका नंबर चाहिए, इनका नहीं ,
जब यह बात राज के कानों में पड़ी तो राज ने उसका कॉलर पकड़ते हुए उसको पीछे धकेला,,,,
कि आपको समझ में नहीं आ रहा जब उसने एक बार मना कर दिया आपको नंबर की क्या जरूरत है,,
डॉली समझ चुकी थी कि राज को गुस्सा आ रहा है,, डॉली जल्दी से राज को उससे अलग करने लगी ,,
तब तक दुकान के लड़के भी आ गए उन्होंने अलग करते हुए उन लड़कों से माफी मांगी, और उन्हें यहां से जाने के लिए कहा ,पर वह लड़के भी कहां चुप रहने वाले थे,,
वह जाते-जाते कहने लगे ,,,
अगर मैं मैडम से नंबर मांग रहा हूं तो आपको क्या प्रॉब्लम हो रही है ,अरे मैं तो मैडम का नंबर ही मांग रहा हूं ,,
आपकी बीवी का तो नहीं जो आप मुझे रोक रहे हैं ,,
आखिरी ये आपकी है ही कौन
बीबी या बहन ,अगर बहन है तो उसे अपनी मर्जी से अपनी जिंदगी जीने का हक है ,क्या वह किसी से फ्रेंडशिप नहीं कर सकती , आजकल तो सभी लड़के लड़कियां अपनी पसंद से अपनी फ्रेंडशिप करते हैं, और हां अगर यह आपकी बीवी है तो मुझे खुद ही इसका नंबर नहीं चाहिए ,आपकी बीवी आपको ही मुबारक हो ,,,,,
तब तक उस लड़के के साथ वाले लोग भी बाहर से आ गए थे ,और उन्होंने उसे पकड़कर गाड़ी में बैठाया ,और उसके बाद राज से इस बात के लिए माफी भी मांगी ,वो लोग जा चुके थे, कहने को तो यहां पर सारी बात खत्म हो चुकी थी लेकिन उस लड़के की कही हुई बात ने राज और डॉली के दिमाग में उथल पुथल मचा दी थी, उसकी बातों पर पहले तो राज का खून ख़ौल रहा था,
जैसे ही वह गये राज ने डॉली से दोबारा घर जाने के लिए कहा ,
और ढाबे में वापस छोटू को एक चाय बनाने के लिए कह कर बाहर पड़ी हुई टेबल पर बैठ गया,,तभी राज का बचपन का दोस्त कन्हैया ,,, आ चुका था उसे शायद किसी ने फोन करके सारी बात बता दी थी, एक वही था जो राज का सबसे अच्छा साथी था,,
राज उसके साथ अपनी हर अच्छी बुरी बात शेयर करता था, कन्हैया ने आके राज के कंधे पर हाथ
रखा ,और कहा क्यों रे क्या बात हो गई थी ऐसी, कि तूने उसकी कॉलर पकड़ ली ,अरे कस्टमर के साथ ऐसा करेगा, तो कैसे चलेगा, और फिर वह नंबर ही तो मांग रहा था ,
तो मना कर देता, इस तरह से उस पर बरसने की क्या जरूरत थी, तब सिवा ने कन्हैया पर अपनी झुंझलाहट निकालते हुए कहा ,वह डॉली से उसका नंबर मांग रहा था,,,जब डॉली मना कर रही थी , और वह उसके पीछे पड़ा ,,,
और तुझे यह एक साधारण सी बात दिख रही है ,,,
तब कन्हैया ने कहा हां आजकल ऐसे नम्बर मानना साधारण ही बात होती है, सब दोस्त होने के नाते एक दूसरे को अपना नंबर दे भी देते हैं और तुझे बीच में पड़ने की क्या जरूरत थी, डॉली का मन होता ,हो सकता है डॉली भी उससे फ्रेंडशिप करना चाह रही हो ,,या मना भी कर दिया तो वह खुद ही कर देती ,,देख कन्हैया तू मेरा बचपन का दोस्त है ,पर इसका यह मतलब नहीं कि तू कुछ भी बोलता रहता रहे,,,
डॉली अभी बड़ी हो चुकी है,, उसे अच्छे बुरे की समझ है ,,,,,
कन्हैया अपनी बात खत्म करता इससे पहले ही राज बोल पड़ा ,,जब मेरे सामने कोई उसके साथ ऐसी बदतमीजी करेगा ,तो मुझे तो बोलना पड़ेगा ना अरे डॉली अभी बच्ची है उसे अच्छे बुरे की समझ नहीं है,,,,
कन्हैया ने फिर अपनी बात रखी ,सुन पहले तू यह बात
अपने दिमाग से निकाल दे ,कि डॉली बच्ची है, वह एक समझदार और पढ़ी-लिखी लड़की हो गई है ,वह अब बड़ी हो चुकी है, और अपना अच्छा बुरा अच्छे से समझती है ,तुझे बीच में बोलने की बहुत पड़ती है ,जब उस लड़के ने तो उससे पूछा कि यह कौन है तेरी बहन या वीबी , तू कोई जवाब दे पाया इस बात का क्या जवाब था तेरे पास कभी सोचा है तूने खुद से
कन्हैया तू यह कैसी बातें कर रहा है एक तू ही तो है जो मुझे समझता है, अरे तुझे तो पता है कि डॉली से मेरा क्या रिश्ता है कैसे बह यहाँ आकर रहने लगी ,,कन्हैया पूरे गांव को पता है कि डॉली से तेरा क्या रिश्ता है,,,
लेकिन समझने की जरूरत सिर्फ तुझे है अगर कल के दिन तुझसे कोई पूछे तो तू क्या बताएगा कि क्या रिश्ता है डॉली से तेरा ,और उसकी आगे की जिंदगी के बारे में कुछ सोचा है ,डॉली 21 साल की हो गई है ,लेकिन 3,4 साल बाद डॉली शादी करके भी चली जाएगी, अगर कल के दिन उसे कोई लड़का पसंद करता है या उसके सामने अपनी बात रखता है तो क्या तू उस पर इस तरह से भड़क जाएगा,,
देख कन्हैया मुझे तेरी ये फालतू की बातें कुछ समझ में नहीं आ रही, तू कहना क्या चाहता है, बस मेरे सामने कोई डॉली से इस तरह की बात करे,मुझे बर्दाश्त नहीं है ,,
राज मैं तुझसे सिर्फ यह कहना चाहता हूं कि, आखिर तेरा डॉली से रिश्ता क्या है तेरे दिल में डॉली के लिए कौन सी जगह है ,अभी तक राज खुद भी नहीं सोच
पाया था, कि वह डॉली को किस तरह से देखता है, उसके लिए तो डॉली एक बच्ची थी ,जो पढ़ाई लिखाई करके थोड़ी बड़ी हो गई ,और उसने आकर राज का पूरा घर संभाल लिया ,इससे ज्यादा उसने कभी कुछ सोचा ही नहीं था ,,
अब तक कन्हैया ने चाय पीली और चाय पी कर वह जाने लगा ,लेकिन जाते-जाते उसने एक ही बात बोली,, राज अब वह वक्त आ गया है, जब तुझे डॉली के बारे में कोई फैसला लेना ही होगा ,,
और कन्हैया की इस बात का असर राज के दिमाग पर पड़ चुका था ,वह सोचने के लिए मजबूर हो गया था,,,,,
ढाबे पर जबसे वह बात हुई राज के मन में काफी उथल-पुथल मची हुई थी, राज आज दोपहर में भी खाना खाने घर नहीं गया, अब तो शाम होने को आई ,और धीरे-धीरे रात हो गई ,राज रात को 1000 बजे तक ढावे पर बैठता था, फिर जो रात के कस्टमर होते थे उन्हें दुकान के लड़के ही संभाल लेते थे,,, लेकिन आज पता नहीं क्यों राज का मन घर जाने का बिल्कुल भी नहीं कर रहा था बह घर जाकर डॉली से क्या कहेगा कैसे नजरें मिलाएगा उसे तो खुद ही समझ नहीं आ रहा था ,कि आखिर डॉली से उसका रिश्ता क्या है ,उसने तो इंसानियत के अलावा कुछ और सोचा ही नहीं था ,क्या यह जरूरी है कि किसी इंसान से हमारा कोई रिश्ता हो तभी हम उसके लिए फिकर मंद हों,,,
नहीं ऐसा नही है,अगर हम दिल से किसी की परवाह करते हैं ,तो जरूरी नहीं है कि उसे रिश्ते का नाम ही दिया जाए ,लेकिन फिर भी उस लड़के ने जो कहा उसकी बात तो सोचने लायक थी, आखिर कब तक ऐसा चलेगा, डॉली की आगे की जिंदगी के बारे में तो
उसे सोचना ही होगा!
अब डॉली पढ़ लिखकर अपने पैरो पर भी खड़ी हो गई थी,आखिर एक दिन तो आएगा ही जब वह अपना जीवन साथी चुनेगी ,और ये तो होता ही चला आया है,कि हर लड़की एक दिन अपने घर जाती ही है,,,
, जब काफ़ी टाइम हो गया ,और राज घर नहीं आया ,तो काकी उसे बुलाने ढाबे पर आ गई ,राज ने काकी से कहा , कि तू जाकर सो जा मैंने ढाबे पर ही खाना खा लिया है जैसे ही काम ख़तम होता है ,अपुन आकर सो जाएगा, तू अपुन के पीछे तेरी नींद खोटी मत कर ,पर ऐसा कैसे हो सकता था कि जब तक काकी अपने हाथों से एक निवाला राज को ना खिला दे ,वह खुद कैसे खा सकती थी डॉली ने सुबह की सारी बात काकी को बता दी थी, और तब से काकी भी इसी बात का इंतजार कर रही थी, कि राज घर आए और वह उसको समझाए, कि दुनिया चाहे कुछ भी सोचे ,हम तीनों का ही कुछ रिश्ता ना होते हुए भी सबसे बड़ा जो रिश्ता है ,वह है दिल का रिश्ता ,और उस से मजबूत कोई भी रिश्ता इस दुनिया में नहीं होता ,इसलिए लोगों की फालतू बातों पर ध्यान ना दें, और बस अपने काम में मन लगाए ,,
जब तक राज और काकी घर नहीं आए थे डॉली को भी कहा नींद आने वाली थी, वह भी इन दोनों का इंतजार कर रही थी ,की आकर खाना खाएं और फिर वह सोए, डॉली के अंदर भी एक अंतर्द्वंद चल रहा
था ,जिससे वह बाहर ही नहीं निकल पा रही थी, आज वह भी सोच रही थी कि आखिर क्या रिश्ता है उसका राज से ,उसने तो अभी तक यह सोचा ही नहीं था ,और उसके दिमाग में भी यही सवाल चल रहा था, कि किसी रिश्ते को नाम देना जरूरी है
क्या इतना काफी नहीं है ,कि वह तीनों एक दूसरे के लिए जी रहे हैं ,और एक दूसरे का साथ पाकर उनकी अधूरी जिंदगी पूरी हुई है हां इतना जरूर था, कि डॉली हर वह बात करना चाहती थी जो राज के लिए सही हो
राज से जुड़ी हर बात की डॉली को चिंता रहती थी, उसके फ्यूचर के लिए और उसके लिए वह हमेशा अच्छा सोचती थी ,
राज भी हमेशा एक बच्ची की तरह ध्यान रखता था डॉली का, उसकी हर जरूरत को पूरा करता था ,और
काकी बिल्कुल एक मां की तरह डॉली की देखरेख करती थी, डॉली को खुद से ज्यादा भरोसा राज पर था ,उसे खुद से ज्यादा परवाह काकी की थी,
और डॉली के भविष्य के बारे में राज से ज्यादा चिंता किसी को नहीं थी,,
क्या इतना काफी नहीं था कि तीनों के बीच एक अनजान रिश्ता भी मजबूत डोरी से बंध चुका था ,काकी राज को लेकर अंदर आ चुकी ,डॉली ने काकी के आते ही जल्दी से खाना लगाया ,और चटाई बिछाकर थालिया कमरे में रख ली,, किसी से बिना कुछ कहे ही, उनने खाना शुरु कर दिया था, खाना खत्म किया और चुपचाप अपने अपने कमरों में सोने चले गए, किसी के बीच कोई भी बात नहीं हुई थी ,लेकिन कमरे में जाकर नींद का नामोनिशान ना तो राज की आंखों में था और ना ही डॉली की,,,,
डॉली जहां इस बात से परेशान थी कि राज पता नहीं क्या सोच रहे होंगे ,वह ठीक है या नहीं वही ,राज को सिर्फ और सिर्फ डॉली के भविष्य की चिंता थी ,कि अब तक उसके साथ सब कुछ अच्छा हुआ है ,तो उसके फ्यूचर में आगे भी सब कुछ अच्छा होना चाहिए ,देररात तक सोचते हुए दोनों सो गए थे,,,,,
डॉली जब सुबह सोकर उठी ,तो रोज की तरह अपने कामों में लग गई ,आज तो उसे टाइम से आंगनबाड़ी पहुंचना ही था, लेकिन राज आज अभी तक नहीं उठा था,,,
अब तो 900 बज चुके थे ,और थोड़ी ही देर में उसे ढाबे पर जाना होगा, क्योंकि सुबह से ही काम शुरू हो जाता था ,अब तक डॉली नहा धोकर कान्हा जी को प्रसाद लगाते हुए सारा नाश्ता और खाना भी बना चुकी थी उसने जल्दी से एक कप चाय बनाई ,और लेकर राज के कमरे में चली गई , राज को आवाज देते हुए कहा 900 बज चुके हैं, आप को ढावे पर नहीं जाना क्या
उठ जाइए ,चाय भी ठंडी हो रही है ,राज ने आंखें खोल कर देखा तो सच में घड़ी 900 बजा रही थी ,उसने डॉली से कहा महारानी यही चाय तू अपुन को 1 घंटे पहले नहीं दे सकती थी क्या, मुझे लेट करवा दिया ना डॉली ने कहा अभी कोई देर नहीं हुई है ,आप जल्दी से नहा कर आइए नाश्ता खाना सब कुछ बनकर तैयार है ,मैं आपकी प्लेट लगा देती हूं,,,,
और मैं रसोई में आकर सबके लिए नाश्ता लगाने लगी, जब नाश्ते की प्लेट बाहर लाई तो काकी ने अंदर आते हुए कहा ,डॉली आज पीछे वाले शर्मा जी के यहां शिवपुराण की कथा शुरू हो रही है ,तो तू कोशिश करना कि आंगनबाड़ी से आधे घंटे पहले ही आ जाए ,तेरा टाइम तो 400 बजे खत्म होता है उसके बाद भी तू 500 बजे तक घर आ पाती है, तो मेरे साथ तू भी शिव पुराण सुनने चलना ,वरना हमेशा काम में ही लगी रहती है कभी कहीं आती जाती ही नहीं ,डॉली ने नाश्ता करते हुए ही कहा ,काकी पहले आकर आप नाश्ता कर लो ,,,
हां ठीक है वह तो मैं कर ही लूंगीं पहले मैंने जो पूछा उसका तो जवाब दे दे ,,,
काकी मैं अभी कोई जवाब नहीं दे सकती आंगनबाड़ी में काम बहुत है ,अगर टाइम से खत्म हो जाता है ,तो मैं आ जाऊंगी ,,
ठीक है मैं पहले ही जानती थी कि तू अपने काम के आगे किसी और बात को देखती ही नहीं ,,,सबका नाश्ता खत्म हो चुका था ,
राज ढाबे पर निकल गया ,और डॉली आंगनबाड़ी आने लगी, लेकिन उससे पहले उसने काकी के गले में बाहें डाल कर हंसते हुए कहा, मेरी प्यारी सी काकी इस तरह से मुंह फुलाने की जरूरत नहीं है,
मैं आंगनबाड़ी से आ जाऊंगी ,और आपके साथ शिव पुराण सुनने भी चलूंगी, खुश! डॉली की आवाज सुनकर काकी सच में हंस गई थी,,,,
डॉली आंगनवाड़ी चली गई और काकी भी घर का काम समेट कर थोड़ी बहुत रात के खाने की तैयारी करने लगी थी, क्योंकि पुराण का टाइम शाम को 500 बजे से 800 बजे तक का था ,और जब एक बार पुराण शुरू होता है तो काकी तो फिर उठने का नाम ही नहीं लेती ,जब तक समापन होकर आरती नहीं हो जाती, तब तक काकी को उठना अच्छा ही नहीं लगता था,
शाम के 400 बजे तक डॉली भी घर आ चुकी थी, घर आकर चाय पी और काकी का इंतजार करने लगी,काकी साड़ी पहन रहीं थी उन्होंने डॉली से भी तैयार होने के लिए कहा तू भी कुछ ढंग का पहन ले , तू
तो हर कहीं आंगनबाड़ी की बहन जी बनके ही चलती है काकी के बहुत जोर जबरदस्ती करने पर डॉली ने सुंदर सा पटियाला सूट निकालकर पहन लिया, डॉली और काकी तैयार होकर राज को ढाबे पर घर की चाबी देकर पीछे वाली गली में शिव पुराण सुनने चली गई,
जब गई तो वहां पर काफी भीड़ भाड़ हो गई थी ,एक सुंदर सा मंच बनाकर उसको सजाया गया ,
उस पर बाहर से आए हुए पंडित जी शिव पुराण का वर्णन करने जा रहे थे ,और एक छोटा सा पंडाल लगाया गया था जिसमें सभी सुनने वाले कतार से बैठे हुए थे आगे थोड़ी सी जगह दिखी तो काकी ने जल्दी से डॉली का हाथ खींचते हुए आगे जगह बनाकर वहीं बैठ गए,,
अब कथा शुरू होने ही वाली थी ,
शिव पुराण में सती के दुखद अंत के बाद पुनः गौरी के पुनर्जन्म को दिखाते हुए बड़े होकर शिव को प्राप्त करने
की लालसा को दिखाया , कि कैसे बालपन से ही उनके मन में शिव के लिए अपार श्रद्धा और प्रेम समाया हुआ था, आज की इसी कथा को पंडित जी विस्तार से बताने वाले थे,,,,,
डॉली और काकी कथा सुनने के लिए पंडाल में आगे बैठ चुकी थी ,और कुछ एक मंत्रों के साथ ही पंडित जी कथा शुरू करने वाले थे कथा सबको अच्छी तरह से सुनाई दे, इसके लिए चारों तरफ माइक का भी प्रबंध किया गया था ,साथ में मधुर संगीत वादक भी थे मुख्य अतिथि ने आकर दीप प्रज्वलित किया और मंत्रों का उपचार करते हुए पंडित जी ने कथा प्रारंभ की…….
ओम नमः राजय
सभी श्रोता गणों से अनुरोध है, कृपया ध्यान पूर्वक और प्रेम पूर्वक श्री शिव पार्वती की कथा का श्रवण करें ,,,
जब राजा दक्ष के यहां बिना बुलाए मां सती का आगमन हुआ,, और यह देखते हुए दक्ष उनकी अवहेलना करते हैं , मां सती के प्राणनाथ ,उनके प्रिय शिव का भी अनादर करते हैं, मां सती इस बात को सहन नहीं कर पाई, और अग्नि कुंड में कूद कर खुद को भस्म कर लिया ,जैसे ही यह समाचार त्रिलोक पति महाशंभू शिव को मिला तो क्रोध और दुख से उनका तीसरा नेत्र खुल गया और प्रभु ने तांडव करना शुरू कर दिया स्वर्ग के
सारे देवताओं ने मिलकर श्री हरि विष्णु को आगे किया ,और बड़ी मुश्किलों के बाद श्री हरि शिवजी को शांत कर पाये, जब उनका क्रोध उतरा ,तो वे धरती लोक पर आए ,और सती की निर्जीह देह को उठाकर यहां से वहां भटकते हुए पृथ्वी पर ही विचरण करने लगे,,, श्री शिव ने पूरी तरह से बैरागी रूप धारण कर लिया था ,पर उनकी यह दशा श्री हरि विष्णु से देखी ना गई जिनसे पूरे संसार का संचालन होता है ,उनका इस तरह से बिचरना उचित नहीं था , अतः उन्होंने मां सती की देह का अंत अपना सुदर्शन चला कर दिया, और फिर जहां-जहां मां सती के अंग गिरे वही वही शक्तिपीठ का स्थान माना गया ,और उनके अंग गिरने के अनुसार इनके नाम भी रखे गए ,,,,,,
इन सबके बाद भी शिव के ह्रदय में दुख और पश्चाताप कम ना हुआ था, तब मां सती की अदृश्य शक्ति ने आकर उनसे प्रार्थना की,
कि वह अपने पहले के रूप में आए और और अपने नित्य कार्यों का सहज रूप से निर्वाह करे, वह पुनः नैना देवी की पुत्री के रूप में पुनर्जन्म लेंगी जिन्हें उमा और गौरी के नाम से जाना जाएगा ,जब सती ने साक्षात आकर शिव जी को यह सारी बातें कहीं तो उनके मन से क्षोभ निकल चुका था ,और वह वापस कैलाश पर आकर अपनी तपस्या में लीन हो गए ,उसके बाद गौरी मैया ने नैना देवी की कोख से पुनर्जन्म लिया, और उनके आंगन में अपने शुभ चरण कमल रखे ,मां गौरी के आने से उनका पूरा महल पवित्र हो चुका था ,चारों
तरफ राग उल्लास छा गया था, लेकिन जैसे ही मां गौरी बड़ी होने लगी तो उनके मन में शिव जी के प्रति अपार श्रद्धा उत्पन्न होती गई ,बचपन से ही वह एक बड़ी शिव भक्त बन चुकी थी, शिव की पूजा अर्चना में ही उनका समय व्यतीत होता था और 1 दिन वह आया जब धीरे-धीरे उन्हें ज्ञात हुआ वह सिर्फ शिव भक्ति ही नहीं है बल्कि वह तो शिव शंभू को अपने पति के रूप में पाना चाहती हैं ,शिव के प्रति उनकी श्रद्धा ही उनका प्रेम है,
शिव के प्रति आस्था ,उस प्रेम को पाने की ललक है
शिव के दर्शन की लालसा ,उनसे मिलने की तड़प है
शिव के बिना उनका जीवन अधूरा है
धीरे धीरे गौरा को पूर्ण रूप से ज्ञात हो चुका था, कि राज ही उनके जीवन का आधार है और शिव के बिना वह अधूरी है, निराकार है अब तक कथा को सुनाते हुए डेढ़ से 2 घंटे बीत चुके थे ,आगे की कथा का वर्णन अगले दिन किया जाएगा ,,,,
इसी के साथ कथा संपन्न हुई आरती हुई प्रसाद वितरण हुआ ,और डॉली काकी के साथ घर आ गई ,डॉली ने शिव पुराण पहली बार सुना था, उसे यह सारी बाते पता नहीं थी ,उसके पास तो बस उसके कान्हा जी ही थे जिनको वह हमेशा अपने साथ रखती थी बचपन से लेकर आज तक ,और जब वह राज के घर आई ,उसके बाद राज एक सुंदर सा मंदिर कान्हा जी के लिए ले आया था , तब से कान्हा जी का स्थान उस मंदिर में हो गया ,घर आकर डॉली काकी से कई सवाल पूछ रही थी,,,,
काकी जब पार्वती मैया शिव की पूजा करती थी, तो फिर उन्होंने यह कैसे सोच लिया कि वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती हैं
तब काकी ने डॉली को समझाया बेटा जब हमें किसी से प्रेम हो जाता है, और जब वह प्रेम बड़ता हुआ हमारे दिल में उतर जाता है तो हमें उसे पाने की लालसा हो जाती है,
पर काकी गौरी मैया को यह कैसे पता चला कि उन्हें प्रेम हो गया है ,या फिर उन्हें राज को प्रेम करना चाहिए ,वह कैसे समझी थीं
काकी ने कहा, डॉली प्रेम को हमेशा महसूस किया जाता है ,और यह बातें हमें हमारे दिल से ही पता चलती हैं ,पर काकी गौरी मैया तो कभी शिव से मिली भी नहीं ,फिर उन्हें प्रेम कैसे हो गया
हां बेटा गौरी मैया राज से मिली नहीं थी ,पर उन्हें पिछले जन्म की सारी बातें अच्छी तरह से ज्ञात थी,कि शिव उनके पति थे , उनको याद था कि कैसे उनके पिता दक्ष ने शिव का अपमान किया था ,,दक्ष उन्हें हमेशा ओगड़ अघोरी कहते थे, लेकिन राज के लिए सती के दिल में अपार श्रद्धा थी , सती उनसे अटूट प्रेम करती थी, सिक्का तभी तो वह शिव का अपमान सहन ना कर पाई और उन्होंने अग्निकुंड में खुद को भस्म कर लिया ,,
काकी क्या तू जानती है कि हमें यह कैसे पता चलता है, कि हम किसी से प्रेम करते हैं
बेटा यह तो बहुत ही साधारण सी बात है जिसके लिए
हमारे मन में इज्जत हो ,मान सम्मान हो ,जो हमारी देखभाल करता हो जिसके लिए हम हमेशा अच्छा सोचते हो जिसके साथ हम हमेशा रहना चाहते हो, जो हमारी हर बात का ख्याल रखता हो ,जो दुनिया से हमें बचाना चाहता हो, जिसकी हम बुराई नहीं सुन सकते , बस ऐसे ही दो लोगों के बीच प्रेम होता है ,यह प्रेम ही होता है, जिसकी वजह से यह सारी बातें हमें उसके लिए सोचने पर मजबूर कर देती है और श्री शिव के लिए गौरी मैया के मन में यह सारी बातें थी, और हां इन सब के साथ-साथ एक बात और जिसे छोड़ कर हम कभी नहीं जाना चाहते ,जिसके साथ अपनी पूरी जिंदगी रहना चाहते हैं ,उसी को प्रेम कहते हैं
काकी एक बात और पूछूं
अब तक काकी रसोई में आ गई थी ,और खाने की कुछ तैयारी जो कर कर गई उससे आगे की तैयारी करने लगी थी, लेकिन डॉली अभी भी काकी के पीछे ही लगी थी ,हां पूछ अगर तुझसे मना भी करूंगी जब तक तू पूछ न लेगी तू मानेगी क्या ,
काकी यह सारी बातें तो मुझे तेरे साथ भी लगती है ,तो क्या मुझे तुझ से प्रेम हो गया है तब काकी ने हंसते हुए कहा!!!
डॉली तू भी ना ,राज सही कहता है कि हमेशा बच्चे ही रहेगी ,अरे मुझ बुड़िया से प्रेम करके कहां जाएगी तू ,,
काकी ने डॉली को समझाया ,हां बेटा यह भी प्रेमी होता है ,हम अपने मां बाप, भाई बहन सब से प्रेम करते हैं, और यह सारी बातें सबके साथ महसूस होती हैं ,लेकिन
जब यही बातें किसी अजनबी के साथ महसूस हो यानी कि कोई ऐसा इंसान जिससे हमारा कोई खून का रिश्ता ना हो ,और फिर भी हम उसकी इन सारी चीजों की चिंता करते हो उससे दूर जाने का कभी मन ना करे,हमेशा उसके साथ रहने का, उसके पास रहने का मन करे ,तो इसी को प्रेम कहते हैं, और ऐसे ही प्रेम को आगे चलके हम अपने जीवन साथी के रूप में देखना चाहते हैं
चल अब तू जा जल्दी से कपड़े बदल ले राज भी आता ही होगा ,खाना खा लेंगे
और हां अगर और कुछ जानना है तो कल भी आंगनबाड़ी से टाइम पर आ जाना और मेरे साथ चलना , डॉली ने अपने दुपट्टे को निकाल कर हाथ में लिया, और झुमके उतारते हुए बोली ,हां काकी मैं जरूर चलूंगी अब तो मुझे शिव और पार्वती के बारे में हर बात जानना है ,कि आखिर मां पार्वती को शिव जी से प्रेम कैसे हुआ ,और कैसे उन्होंने इसे महसूस किया,, डॉली जब तक कमरे में से कपड़े बदल कर आई, तब तक राज भी आ चुका था ,डॉली जल्दी से रसोई में गई और काकी की मदद करवाते हुए खाने की थाली लगाकर कमरे में ले आई ,उसने थाली राज को देते हुए कहा ,आपको पता आज मैं काकी के साथ पीछे पुराण में गई थी ,और मुझे बहुत अच्छा लगा ,अगर आपको टाइम हो तो कल आ जाइए, राज ने जोर से हंसते हुए कहा ,महारानी तू काकी के साथ जाकर एक ही दिन में पंडित बन गई, अपुन को भी को भी जाने के लिए कह
रही है ,वह भी कथा में, तेरे को क्या लगता है कि तू कहेगी और मैं आकर वहां बैठ जाऊंगा ,इतना ही बहुत है कि इस घर से 2 लोग ज्ञान लेने जा रहे हैं ,,,डॉली का मुंह बन गया था, और वह चुपचाप खाना खाने लगी, राज चुपचाप डॉली को खाना खाते हुए देख रहा था, उसने काकी की तरफ देखते हुए कहा ,काकी महारानी का कहना है कि मैं भी कथा सुनने चलू तू एक काम कर तू आकर मुझे यहीं सुना दिया कर ,, वहां पंडित तेरे को जो भी बताएगा ना अपुन यही सुन लेगा उसको ,
काकी चुपचाप दोनों के तमाशे देख रही थी पर काकी ने तो हमेशा डॉली का ही पक्ष लिया है ,उसने समझाया की डॉली सही कह रही है ,पहले वह भी नहीं जा रही थी ,लेकिन आज वह गई और उसको बहुत अच्छा लगा मैं तो कहती हूं एक-दो दिन तू भी चल ढावे से जरा बाहर निकल ,,स्कूल ना सही कम से कम कथा पुराण तो सुन ले,,
राज ने खाता खत्म किया और हाथ धोने के लिए बाहर चला गया, डॉली का भी खाना खत्म हो चुका था,उसने अपनी और राज की थाली उठाकर बाहर रखी ,और राज के आने से पहले ही अपने कमरे में चली गई राज वापस आया तो देखा कि डॉली वहां नहीं है, वह समझ गया कि डॉली उसकी बात पर गुस्सा हो गई है, पीछे पीछे उसके कमरे तक चला गया ,जब देखा तो डॉली चादर ओढ़ कर लेट गई थी ,राज ने तेज आवाज में बोलते हुए कहा, महारानी मुंह फुलाने की जरूरत
नहीं है ,देखता हूं अगर कल मुझे समय मिला तो मैं आ जाऊंगा थोड़ी देर के लिए ,और इतना कहकर कमरे से बाहर निकल गया ,डॉली चादर से मुंह ढक कर लेटी थी, राज की बात सुनकर उसके होठों पर हंसी आ जाती है,,,,
दूसरे दिन भी डॉली के मन में कथा सुनने की ललक बहुत ज्यादा थी ,और उसने निश्चय कर लिया था कि वह आज भी शिवपुराण की कथा सुनने जरूर जाएगी ,वह जल्दी ही उठी घर के सारे काम किये ,बल्कि रात तक का खाना बनाकर उसने सुबह ही रख दिया था ,जिससे कि वह टाइम से पहले और पूरे टाइम तक कथा अच्छे से सुन पाए, डॉली टाइम से तैयार हो गई ,और आंगनबाड़ी जाते जाते एक बार फिर उसने राज को टाइम पर तैयार होने के लिए बोल दिया था सिवा ने उसकी तरफ देखा पर कोई जवाब नहीं दिया ,डॉली ने पर्स उठाया और आंगनवाड़ी चली गई ,आंगनबाड़ी में भी डॉली ने अच्छे से सारा काम कर लिया था क्योंकि वह नहीं चाहती थी किस शिव पुराण सुनने में आंगनवाड़ी की किसी छूटे काम की वजह से उसका ठीक से मन ना लगे ,वह पुराणको पूरे एकाग्र चित्र के साथ सुनना चाहती थी ,शाम को ठीक 500 बजे डॉली घर आ चुकी थी ,आकर उसने जल्दी से हाथ मुंह धोया ,तब तक काकी ने चाय बना ली काकी चाय लेकर जैसे ही कमरे में आई तो देखा कि राज भी ढावे
से आ चुका है, तीनों ने चाय खत्म की और पुराण में जाने के लिए तैयार हो गए, डॉली आज और भी अच्छे से तैयार हुई थी ,जल्दी-जल्दी डॉली और काकी ने घर बंद किया , बाहर निकल कर ताला लगाते हुये चाबी पर्स में डाली ,और पुराण सुनने चल पड़ी, लेकिन तभी राज का फोन बज उठा और राज को याद आया कि आज कुछ लोग उसके ढाबे पर शहर से आ रहे हैं और ऐसे में राज का रुकना जरूरी था क्योंकि वह हाई-फाई लोग थे, और उनको अटेंशन देना जरूरी था , इसलिए चाहते हुए भी राज वहां नहीं जा सकता था
उसने डॉली की तरफ देखकर दोनों कान पकड़े और सॉरी बोलते हुए माफी मांगी महारानी तू तो समझती है कि अपुन के लिए काम से जरूरी कुछ नहीं है
अपुन नहीं चाहता कि कोई कस्टमर आकर अपुन के ढाबे पर लफड़ा करे,क्योंकि अपुन ने पहले ही उनसे वादा कर लिया था कि आ उनको पूरा अटेंशन देगा, तो सॉरी पर तू चिंता मत कर आज नहीं तो ना सही पर कल तेरे साथ जरूर चलेगा,,,
अब चूँकि राज का काम ही ऐसा था कि किसी भी समय करना पड़ जाए, इसलिए डॉली ने भी कुछ नहीं कहा, और डॉली काकी के साथ ही पुरान में चली गई
दोनों पुरान में आ चुकी थी,पंडित जी आज आगे की कथा का वर्णन सुनाने वाले थे जिसमें शिव के प्रति पार्वती के प्रेम की अनुभूति को दिखाया जाना था
डॉली कथा सुनने के लिए पूरी तरह से तैयार बैठी थी , कथा की शुरुआत आरती के साथ हुई ,और फिर पंडित
जी ने पुनः कथा का प्रारंभ किया ,कल कथा का समापन जहां पर हुआ था ,उससे आगे की कथा आज सुनाने वाले थे ,पंडित जी ने कथा सुनाना प्रारंभ किया ,,,,,,
ओम नमः राजय
जब सती का पूरा शरीर छत विक्षत होकर समाप्त हो गया, तब शिवजी घोर तपस्या में बैठ चुके थे ,और उसी बीच मां पार्वती का जन्म हिमालय पुत्री के यहां नैना देवी की कोख से हो चुका था ,नारद जी ने पहले ही भविष्यवाणी कर दी थी, की पार्वती श्री शिव की धर्मपत्नी बनेंगी, और इन दोनों का विवाह निश्चित है ,लेकिन इस बात का भान ना तो शिव को था, ना ही पार्वती मैया को पर जैसे-जैसे मां गौरा बड़ी होती गई अपने आप ही शिव के लिए उनका प्रेम बढ़ता गया श्री शिव के लिए उनकी श्रद्धा और विश्वास अनंत थी ,जहां एक तरफ शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे ,वहीं दूसरी तरफ पार्वती धीरे-धीरे उनके प्रेम में डूबती जा रही थी, जब पार्वती को पूर्ण रूप से यह ज्ञान हो गया कि वह पूरे मन से शिवजी का वरन कर चुकी है ,श्री शिव के बिना उनका जीवन अधूरा है श्री शिव को पाना ही उनके जीवन का लक्ष्य और धर्म है, क्योंकि वह मन से पूर्ण रुप से शिव की हो चुकी है ,अतः वह सारे प्रयत्न करने लगी थी, कि वह शिव को पति के रूप में पा सकें ,लेकिन वहीं दूसरी तरफ तपस्या में बैठे लीन श्री शिव को अभी तक मां गौरा के प्रेम का कोई भान नहीं था ,क्योंकि वह पूरी तरह से अपनी तपस्या में लीन थे,
नर नारी ,देवता ,स्वर्ग लोक और पृथ्वीलोक के सभी बासी यही चाहते थे कि मां गौरा और शिव का विवाह हो ,लेकिन इस विवाह में जो सबसे बड़ी विडंबना थी, वह थी श्री शिव का तपस्या से जगाना जो सबसे असंभव कार्य था ,जब तक राज स्वयं इस तपस्या से नहीं उठ जाते ,तब तक यह किसी के बस की बात नहीं थी ,अतः शिव का इस तपस्या से जागना अत्यंत आवश्यक था,, पर पार्वती के साथ सभी का इसमें पूरा सहयोग था कि शिव तपस्या से जागृत हो, और माता पार्वती से विवाह रचाये, क्योंकि यही सृष्टि का नियम है ,कि एक स्त्री और पुरुष ऐसे दो लोग जिनमें सच्चा प्रेम हो ,जब वह अपने गृहस्थ जीवन को शुरू करते हैं ,तभी इस समाज का विकास संभव हो पाता है ,अतः अब माँ पार्वती का कर्तव्य था ,,कि कैसे भी विवाह के लिए उन्हें मनाये ,,, चाहे तपस्या करके या फिर किसी दूसरे उपाय से ,लेकिन यह परीक्षा मां पार्वती की ही थी ,कि उन्हें अपने प्रेम की शक्ति से शिव को आकर्षित करना ही होगा, और तभी यह संभव हो पाएगा कि वह श्री शिव को अपने वर के रूप में प्राप्त कर सके,,,,
और जब मां पार्वती इस बात को भलीभांति समझ चुकी, तो वह शिव को प्राप्त करने के जतन करने लगी, अब उनकी तपस्या तभी पूरी मानी जाती जब वह श्री शिव को अपने पति के रूप में वर लेती इसी के साथ आज की कथा समाप्त होती है, कल की कथा का श्रवण करने के लिए सभी बहन और भाई सही समय पर पंडाल में आ जाए ,,,इसके साथ आरती और प्रसाद
वितरण हुआ और सभी अपने अपने घर आ गए ,,,
आज घर आकर डॉली ने काकी से कोई भी सवाल नहीं किया था ,उसकी समझ में आ चुका था किसी की पार्वती मैया ने शिवजी से ही सच्चा प्रेम किया ,उन्हें इस बात का एहसास हो गया था ,और इसीलिए उन्हें प्राप्त करने के लिए वह सभी जतन करने लगी थी, कि चाहे कुछ भी हो शिव जी को पाना ही उन्होंने अपना लक्ष्य बना लिया था डॉली को एक बात अच्छी तरह से समझ आ गई थी ,कि जब दो लोगों के बीच प्रेम होता है और वह प्रेम की सच्ची अनुभूति को समझ जाते हैं ,तो फिर उसे पाना गलत नहीं होता उसे शिव पार्वती की कथा बहुत पसंद आई थी ,अभी तक डॉली सिर्फ पढ़ाई ,घर के काम और आंगन बाड़ी में ही व्यस्त रहती थी
पर शिव पार्वती की कथा सुनकर उसने जाना कि हर इंसान के जीवन में एक प्रेम का अध्याय भी होता है ,जिसे वह कभी ना कभी जरूर महसूस करता है, चाहे वह त्रिलोकनाथ शिव और गौरी मैया ही क्यों ना हो ,राधा कृष्णा ,सीताराम ,यह सभी अनूठे प्रेम के उदाहरण है, डॉली के मन में प्रेम का अंकुर फूट चुका था ,उसे कुछ ऐसी चीजें महसूस हो रही थी ,जो वह ठीक से समझ नहीं पा रही थी, लेकिन कहीं ना कहीं वह सारी बाते उसे कुछ सोचने पर मजबूर तो कर रही थी ,डॉली शिव पार्वती की कथा सोच सोच कर बहुत अच्छा महसूस कर रही थी मां गौरा मैया के असीम प्रेम को देखकर सोच रही थी ,कि क्या सबके जीवन में
कुछ पल ऐसे जरूर आते है ,जब वह किसी से प्रेम करता है ,और क्या मेरे जीवन में भी ऐसा कोई पल आएगा ,जब मैं किसी से प्रेम करूंगी ,अपनी बात पर सोच कर डॉली को हंसी आ गई थी ,कि क्या उसे भी मां पार्वती की तरह ही किसी को पाने के लिए जतन करने होंगे, या फिर उसके शिवजी खुद ही उसके पास आ जाएंगे, तभी काकी की आवाज से डॉली की तंद्रा टूटी ,,
जैसे ही राज घर आया तो काकी ने राज को सुनाते हुए कहा ,,,
राज तू भी ना किसी औघड़ से कम नहीं है जैसा तेरा नाम है राज, वैसा ही तेरा काम जहां एक तरफ भगवान शिव अपनी धूनी में रम जाते थे ,तू बिलकुल उसी तरह ढावे में रम जाता है ,ना तुझे दुनियादारी से कोई मतलब ,ना अपने जीवन से ,,
भगवान शिव तपस्या में लीन रहते है और तू भी यह कहते कहते काफी जोर से हंस दी थी डॉली काकी की बात को बहुत ध्यान से सुन रही थी ,डॉली ने काकी के पास जाकर पूछा काकी आपने ऐसा क्यों कहा,
कहा कि राज भी भगवान शिव के जैसे है काकी ने हंसते हुए कहा ,,,,
और नहीं तो क्या, तू देखती नहीं है उसको जैसे शिवजी अपनी धूनी में रहते थे, वह अपने ढावे में रमा रहता है, उसके दिल में तुझे दूर दूर तक प्रेम दिखता है क्या
बस अपनी दुनिया से मतलब है उसे ,अरे मैं तो कहते-कहते थक गई हूं ,कि अपने लिए कोई लड़की
देख कर घर बसा ले ,लेकिन उसे तो इन सब बातों से कोई मतलब ही नहीं अरे क्या पूरी जिंदगी क्वांरा ही रहेगा
उमर हो गई है घर बसा कर एक दो बच्चे पैदा कर ले ,तो मैं भी सुख से मर सकूं,, जैसे शिवजी को अपने जीवन की कोई चिंता नहीं थी ,सच कहती हूं डॉली अगर पार्वती मैया आकर शिव की तपस्या भंग ना करती
और पति के रूप में उन्हें पाने की जिद ना करती तो शिव जन्म जन्मांतर तक अपनी धूनी में ही रमे रहते ,जब मां पार्वती ने आकर उनकी तपस्या की उनको पाने की ज़िद की और सब ने उनका साथ दिया, तब कहीं जाकर वह शिव को अपने पति के रूप में प्राप्त कर पाई, में भगवान से यही प्रार्थना करती हूं ,कि उन्होंने मेरे राज के लिए भी कहीं कोई पार्वती मैया जन्मी हो ,जो आकर इसकी तपस्या भी भंग करें और इसे अपना पति बनाये, तभी इसकी शादी हो पाएगी नहीं तो मुझे नहीं लगता कि यह कभी किसी लड़की से कुछ कहेगा ,तब तक राज हाथ धोकर खाना खाने आ चुका था ,काकी अंदर रसोई में थालियां लगा रही थी ,और डॉली ने चटाई बिछाकर पानी रखा सलाद रखा और अंदर खाना परसने में मदद करवाने लगी काकी के कहे हुए शब्द डॉली के दिमाग में बार-बार आ रहे थे ,कि राज भी भगवान शिव की तरह ही है, डॉली काकी की बात सोच कर मुस्कुरा रही थी, सच में राज की आदतें तो बिल्कुल वैसी ही थी ,
बस राज के बारे में ही सोच रही थी ,जब थाली देख लेकर आई और राज को देने लगी तो वह उसे देखे जा रही थी
राज ने डॉली के हाथ से थाली लेते हुए कहा ओ सहजादी मुझे थाली देगी भी ,या फिर ऐसे ही पकड़ के खड़ी रहेगी
और थाली लेकर खाना शुरू कर दिया
तब तक डॉली और काकी भी अपनी
थालिया लेकर आ चुकी थी
और तीनों एक साथ खाना खाने लगे राज खाना खाते हुए बोला,,,,
काकी अपूण तेरे साथ नहीं आ पाया तू बता ना क्या हुआ था वहां
काकी ने कहा तेरी तो सब समझ से परे है लेकिन आज शिवजी और पार्वती मैया के प्रेम की कथा का वर्णन किया था पंडित जी ने ,अरे तू तो इन सब बातों से कोसों दूर है तुझे क्या समझ आएगा ,तभी तो कहा था तू भी 4 शब्द सुन लेता,
काकी जब तेरे पास टाइम होगा ना तू अपन को सुना देना,,,
डॉली खाना खाते हुए बीच-बीच में राज को देखती जा रही थी, उसे सच में काकी की कही बात सही लग रही थी, कि किस तरह से राज में शिव जी के जैसा रूप ही है काकी ने ये बात मजाक में कही थी ,लेकिन डॉली ने बहुत बार सोचा और उसे राज का एक अलग ही रूप दिखा,,,,,
डॉली और काकी हर रोज कथा सुनने जाती थी ,कथा पूरे 8 दिनों तक चलने वाली थी और अभी 5 दिन निकल भी चुके थे, लेकिन रोज कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता जिससे राज वहां जाने से रह जाता ,अब तक शिव पार्वती के विवाह का वर्णन भी हो चुका था आज कथा का छठवां दिन था, ढाबे पर कोई खास काम भी नहीं था ,राज फ्री था तो उसने आज कथा में जाने का पक्का इरादा कर लिया था ,डॉली और काकी रोज की तरह तैयार होकर कथा के लिए निकल गई राज भी बस धावे पर कुछ काम समझा कर कथा में जाने के लिए तैयार ही हो रहा था
15 मिनट में राज काम से फ्री होकर ढाबे पर सारा काम समझा कर कथा सुनने के लिए निकल गया , वैसे राज के लिए यह बिल्कुल नई बात थी ,क्योंकि वो भंडारे कथा पूजा से बहुत दूर रहता था ,इन सब का व्यवहार काकी ही निभाती थी, लेकिन अभी काकी और डॉली रोज कथा सुनकर आती और राज को समझाती, तो सुन सुन के उसका भी मन हो गया था कि आखिर एक बार जाकर सुनु कि पंडित ऐसा बोलता
क्या है, कि सब लोग वहां जाकर अपना अपना टाइम खोटी करते हैं, राज मजाक के मूड में ही सही ,पर कथा सुनने पंडाल में आ चुका था ,पीछे पड़ी हुई कुर्सियों में सबसे पीछे वाली कुर्सी राज को खाली दिखी ,और वह वही जाकर चुपचाप बैठ गया, तब तक आरती संपन्न हो चुकी थी , और पंडित जी कथा का प्रारंभ करने ही वाले थे ,
आज समुद्र मंथन से संबंधित सारी बातें कथा में बताने वाले थे पंडित जी ने,,,,
ओम नमः राजय
के साथ ही कथा सुनाना प्रारंभ किया
जब समुद्र मंथन प्रारंभ हुआ तो समुद्र में से एक से एक दुर्लभ अमूल्य और आश्चर्यजनक वस्तुएं निकलना प्रारंभ हो गई, कुछ वस्तुएं बहुत ही सुंदर थी, कुछ अमूल्य थी, समुद्र मंथन में मां लक्ष्मी जी निकली, जिन्हें श्री विष्णु को सौंपा गया ,कभी ना मुरझाने वाली कमल फूल की माला ,जिसे इंद्र के सुपुर्द कर दिया गया, एरावत हाथी ,उच्चेश्रेवा घोड़ा इस तरह एक से एक अमूल्य वस्तुये समुद्र मंथन से निकलती गई, और इनमें देवता और दानवों में बंटवारा होता गया ,उसके बाद अमृत से भरा कलश जिसको देवताओं ने दानवों को धोखे में रखकर खुद ही ग्रहण कर लिया, क्योंकि यह पृथ्वी के हित में था, और जब हलाहल विष से भरा घड़ा निकला तो सारे देवताओं के शरीर जलने लगे ,विष
के प्रभाव से हाहाकार मच गया, पर देवों के देव महादेव ने उस हलाहल विष को अपने कंठ में रखा ,और सब को निश्चिंत किया,
तभी तो श्री शिव को देवों के देव महादेव कहा जाता है, विश्व जगत के भले के लिए उन्होंने खुद के कंठ में विष को रख लिया पंडित जी इस कथा का पर्याय समझाने लगे कि श्री शिव तो महा शंभू थे तो उन्होंने विष से भरा हुआ घड़ा अपने कंठ में उड़ेल लिया लेकिन आज के मनुष्य में इतनी शक्ति नहीं है पर अगर हमारा मन अच्छा हो ,हम दूसरों के लिए निस्वार्थ रूप से मन में अच्छे भाव रखते हो ,तो उसके लिए कुछ अच्छा सोच सकते हैं ,अगर किसी मनुष्य से सच्चा प्रेम करता है, तो स्वार्थ से परे होकर उसके भले के बारे में सोच सकता है, अपना स्वार्थ ना देखते हुए उस इंसान के साथ हम क्या अच्छा कर सकते हैं ,कलयुग में अगर हमने इतना कर लिया, या इतना सोच लिया तो हमारे लिए यही श्री महा शिव का आशीर्वाद होगा ,और अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जो अपने स्वार्थ से परे होकर किसी और के भले के बारे में सोच सकता है ,तो कलयुग में उसे भी भगवान शिव का ही रूप मान सकते हैं ,पर आजकल ऐसे मनुष्य होते ही कहां है जो किसी और का भला सोच पाए
आजकल तो सब अपने ही स्वार्थ में लिप्त होते हैं ,,परम धर्म वही है ,सच्चा प्रेम वही है जब हम किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में और उसके भविष्य के बारे में कुछ अच्छा करने का सोचते हैं ,और इसी के साथ
आज की कथा समाप्त हो चुकी थी,,,,,
भीड़ भाड़ में तो पता नहीं चला पर रास्ते में काकी और डॉली को वहां से लौटते हुए राज दिख गया था ,और काकी बहुत खुश थी, कि आखिर राज एक दिन कथा सुनने आ ही गया ,घर आकर जब काकी ने काम करते हुए राज से पूछा ,,,राज तू कथा में टाइम से तो पहुंच गया था ना
हां काकी अपुन टाइम से पहुंच गया था लेकिन मुझे तो तू कहीं नहीं दिखा ,,,
अरे काकी बह सबसे पीछे वाली कुर्सी खाली पड़ी हुई थी ,तो मैं वहीं बैठ गया था ,पीछे से तुझे कुछ सुनाई भी दिया या फिर ऐसे ही बैठा रहा ,,,,,अरे काकी अपुन ने सुना था ना वह पंडित बता रहा था ,,
कि जो पहले का विलेन होता था ,और दूसरी तरफ से सभी भगवान होते थे, ऐसा कुछ बताया था ना ,अमृत तो मिल बांट के पी लिया ,लेकिन जब साला पॉइजन की बात आई तो अपने भोलेनाथ को पकड़ा दिया
अपुन पूछता है कि उनने पिया कायको
काकी ने समझाया बेटा ऐसे नहीं कहते वह तो त्रिलोकनाथ है, उन्होंने विष दुनिया के भले के लिए पिया था ,अगर वह अपने हलक में इसे न उतारते तो दुनिया का उसी क्षण नाश हो जाता, इसलिए उन्होंने खुद का सुख न देखते हुए दूसरों का सुख देखा ,वह चाहते तो विषपान न करते, अमृत भी पी सकते थे लेकिन वह दुनिया जहां से प्रेम करते थे उसका अच्छा
चाहते थे, इसलिए उन्होंने खुद ही विष पी लिया, और सब को संकट से बचा लिया ,,,,,
हां काकी तू शायद सच्ची कह रही है यह साला आज का आदमी है ना सिर्फ अपना ही अपना स्वार्थ देखता है, कि कैसे भी हो, कुछ भी हो ,उसके साथ सब कुछ अच्छा हो जाना चाहिए ,, दुनिया को आग लगती है तो लग जाए ,,,पर काकी एक बात मेरी समझ में आ गई ,कि जहां हम स्वार्थ नहीं देखते ,और जिससे प्रेम करते हैं ,उसके बारे में सब कुछ अच्छा होता हुआ देखना चाहते हैं, कि बस वह सुखी रहे, और उसकी जिंदगी में सब कुछ अच्छा हो ,काकी भी राज की बातों पर हंसते हुए बोली, बेटा यह तूने बिल्कुल सही बात कही ,पंडित जी की कथा का सार तो यही था,कि इस कलयुग में अगर हम किसी एक इंसान का भी भला पर कर पाए तो हमारा इस पृथ्वी पर जन्म लेना सिद्ध हो जाता है, हां काकी वैसे अपुन को अच्छा लगा कथा सुनकर ,,,,
डॉली बहुत ध्यान से राज के चेहरे की तरफ देख रही थी, क्योंकि उसने 5 सालों में पहली बार राज के मुंह से भगवान का नाम सुना था ,,ऐसा नहीं है कि वह मंदिर ना जाता हो पर बात मंदिर जाने पर ही खत्म हो जाती थी अगर काकी कभी कहती तो उनके साथ मंदिर जाता, और हाथ जोड़कर वापस आ जाता ,बाकी चीजों की गहराई में कभी नहीं उतरा था ,धीरे धीरे 8 दिनों बाद शिव पुराण पूरा हो चुका था, राज बड़ी मुश्किल से एक ही दिन कथा सुनने जा पाया था, और उसकी
समझ में बस इतना ही आया कि हमें खुद के लिए नहीं जीवन दूसरों के लिए जीना चाहिए और अगर हम किसी के लिए कुछ करते हैं तो निस्वार्थ भाव से ही करना चाहिए जहां स्वार्थ हो ,वहां प्रेम नहीं हो सकता और जहां प्रेम हो वहां स्वार्थ नहीं, क्योंकि इससे आगे पीछे की कथा तो राज ने सुनी ही नहीं थी लेकिन डॉली ने जो कथा सुनी थी उसमें वह शिव और पार्वती के प्रेम की अनुभूति को अच्छी तरह से समझ गई थी, उसने समझ लिया था किस शिव में कौन-कौन सी खूबियां थी, और क्यों गौरी मैया ने उन्हें पाने के लिए तपस्या की थी ,क्योंकि वह शिव को जान चुकी थी, एक ही कथा से डॉली ने कुछ और सीखा था, और राज की छाप उसके मन पर कुछ और ही पड़ी थी ,,,,,
डॉली जब भी राज को कुछ अच्छा करता हुआ देखती उसे हमेशा पंडित जी की कथा की याद आ जाती ,राज का शुरू से ही नियम था कि उसके ढाबे के बाहर से कोई भूखा नहीं गुजर सकता था, रोज 5,,7 लोगों को भरपेट खाना वह फ्री में ही खिलाता था अगर किसी बच्चे के स्कूल की फीस रह गई तो, चुपचाप जाकर उसे जमा कर देता, किसी गरीब के पास चप्पल नहीं है तो फटाफट खरीद कर उसके हाथ में पकड़ा देता , पर राज ने इन सब बातों के बदले कभी कोई उम्मीद किसी से नहीं की थी
वह जुबान का चाहे जितना ही कड़वा हो पर उसका मन बिल्कुल आईने की तरह साफ था डॉली जब भी राज की ऐसी बातों को देखती तो उसके मन में राज के
लिए इज्जत और बढ़ जाती, कथा पुराण हुए दो-तीन महीने बीत चुके थे, इन दो-तीन महीनों में डॉली ने कितनी बार महसूस किया था, की राज के अलावा ऐसा कोई नहीं है जिसकी डॉली पूरे दिल से इज्जत करती हो ,उसको राज की हर बात में शिव जी का ही रूप दिखने लगा था ,लेकिन अभी भी वह समझ नहीं पा रही थी, कि आखिर ऐसी कौन सी बात है ऐसा क्या हुआ है ,जो कुछ दिनों से उसे राज की हर बात आकर्षित कर रही थी, राज जब ढाबे पर काम करता या ,अपनी गाड़ी साफ करता ,या बगीचे में लगी सब्जियों में पानी देता ,तो डॉली एकटक उसे ऐसा करते हुए देखती रहती, और इसी बीच अगर राज की नजर उस पर पड़ती तो शर्मा जाती , उसे अकेले में ही इन बातों पर हंसी आ जाती थी और फिर कभी कभी खुद से ही सवाल करती , यह सब क्या है ,वह क्यों ऐसी हरकतें कर रही है,,,,
एक बार तो बाजार जाते हुए उसको राज की अच्छी खासी डांट भी खानी पड़ी थी डॉली राज के साथ बाजार जा रही थी, और वह उसके साथ ही आगे की सीट पर बैठी थी राज पूरी मस्ती में गुनगुनाते हुए गाड़ी चला रहा था ,और डॉली उसे देखे जा रही थी
जब राज की नजर डॉली पर पड़ी तो उसने आंखें चढ़ाते हुए कहा ,,,,महारानी तू अपुन को घूरती कायको रहती है ,देख अपुन ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिसके लिए तू अपुन को डांट लगाए,,,, इसलिए यह बड़ी-बड़ी आंखें अपने पास ही रख,,
उसके बाद भी डॉली राज को देखे जा रही थी ,,,,और उसने अचानक राज से पूछा आपने शादी के बारे में कभी कुछ सोचा है क्या
राज ने अचानक गाड़ी को ब्रेक मारा और डॉली की तरफ देखते हुए बोला, तू अपन से क्या बोली एक बार फिर बोल ,डॉली ने फिर मासूमियत से कहा मैंने बस यही पूछा क्या आपने शादी के बारे में कुछ सोचा है
इस बात पर राज जोर जोर से खिलखिला कर हंस पड़ा था,,, क्यों तू भी काकी का रोल प्ले कर रही है, क्या एक काकी कम थी जो अब तू भी मुझे मेरी शादी
के लिए टोकने लगी ,,,,सुन तू बच्ची है मेरी काकी बनने की कोशिश मत कर ,,,,,
हां शादी के बारे में तो जरूर सोचा है पर अपुन की नहीं ,तेरी!
1 दिन अपन से काकी ने भी कहा था कि अब तू शादी के लायक हो गई है, तेरे लिए एक अच्छा सा लड़का ढूंढना पड़ेगा मेरे को,,,
क्या डॉली इस बात पर मुंह फुला कर बैठ जाती है ,मेरी शादी कहां बीच में आ गई मुझे नहीं करनी कोई शादी-वादी ,और दूसरी तरफ देखने लगती है ,राज ने दोबारा गाड़ी स्टार्ट की और डॉली से कहा अरे महारानी इसमें गुस्सा होने वाली कौन सी बात है काकी कहती है कि लड़कियों को तो 1 दिन शादी करके अपने घर जाना ही होता है, अरे सारी लड़कियां जाती हैं ,तो तू भी जाएगी मुंह क्यों फुला रही है ,फिर मैं आज ही थोड़ी ना तेरी शादी करने जा रहा हूं,,,,,,
गाड़ी अपनी रफ्तार पर थी ,शहर बस आने ही वाला था ,डॉली और राज कई महीनों बाद शहर आ रहे थे ,तो उन्हें शहर में काफी काम थे ,अब डॉली अधिकतर ऑनलाइन सामान ही मंगा लेती , तो शहर आना जाना कम ही होता था ,कुछ ही देर में दोनों शहर आ चुके थे ,और आकर ही खरीदारी करने में लग गए ,एक के बाद एक सामान खरीदते हुए गाड़ी में रखते जा रहे थे, कुछ डॉली के आंगनबाड़ी का सामान था ,जो उसे लेकर जाना था ,कुछ राज के ढाबे का ,और कुछ घर का भी सामान था ,चूँकि डॉली भी काम में व्यस्त रहती ,और राज भी तो इस वजह से दोनों का शहर आना जाना कम ही होता था ,खरीदारी करते हुए रात हो चुकी थी लेकिन शहर सिर्फ 2 घंटे की दूरी पर था
तो कोई चिंता की बात नहीं थी, फिर रोड भी काफी चालू था ,सारी खरीदारी खत्म करने के बाद दोनों गांव के लिए निकल पड़े लेकिन जैसे ही शहर को क्रॉस किया कि अचानक मौसम में बदलाव आने लगा
हल्की बूंदों के साथ तेज आंधी और तूफान अचानक से शुरू हो गया , राज ने जल्दी से उतर कर गाड़ी में
रखी हुई बड़ी सी पॉलिथीन से सामान को तो कवर कर दिया
लेकिन राज की जीप खुली हुई थी, तो तूफान और पानी की बौछार से इन दोनों का गाड़ी में बैठना मुश्किल हो रहा था ,यही कोई 1015 मिनट गाड़ी ड्राइव करके वह दोनों एक गांव में रुक गए, गांव में किसी के घर के बाहर बनी हुए दालान के नीचे दोनों खड़े हो गए, कि पानी कुछ कम हो तो वहां से निकले ,लेकिन पानी कम होने की बजाय बढ़ता ही जा रहा था ,तूफान की तेजी भी कम नहीं हुई थी ,दोनों को यहां खड़े हुए लगभग आधे घंटे से ज्यादा बीत चुका था तभी अंदर का दरवाजा खुला ,और एक बूढ़ी अम्मा बाहर निकली, बारिश की वजह से लाइट जा चुकी थी ,और घुप अंधेरा था
पहले तो वह थोड़ा डर गई ,लेकिन जब डॉली ने समझ लिया कि उन्हें कुछ सही नहीं लग रहा है, तो डॉली ने आगे बढ़ते हुए उन्हें आवाज लगाई ,,अम्मा आप डरिये मत बारिश की बजह से हम यहाँ रुके हुए है आपके घर के बाहर जगह दिखी ,तो बस कुछ देर के यहां रुक गए, हमारा गांव यहां से पास ही है, डॉली की कुछ बातें शायद उनके कान में पड़ चुकी थी, थोड़ी ही देर बाद वह हाथ में लानटेन लेकर बाहर निकली
और लानटेन को ऊपर करते हुए उन्होंने डॉली और राज को देखा, तो दोनों बहुत ही भले लगे ,उनके बाहर की दालान (बरामदा) काफी बड़ी थी, उन्होंने राज से दालान के अंदर जीप लगाने के लिए कहा ,और दोनों
को अंदर बुला लिया ,डॉली को पहले तो अंदर जाने में कुछ संकोच लगा, पर राज उसके साथ था ,डॉली और राज दोनों अम्मा के घर के अंदर चले गए ,क्योंकि इस समय सच में उन्हें किसी के सहारे की जरूरत थी बाहर तेज बारिश ,और ठंडी हवा से डॉली कांपने लगी थी, उसके कपड़े भी कुछ कुछ भीग गए थे, डॉली जैसे ही अंदर आई तो सामने ही अम्मा के घर में चूल्हा जल रहा था जिसकी गर्माहट की डॉली को शख्त जरूरत थी,वह जाकर चूल्हे के सामने बैठ गई,और आग तापने लगी,,,
उन्होंने लानटेन की रोशनी थोड़ी और बढ़ा दी, जिससे वह एक दूसरे को अच्छे से देख पाए ,काम करते हुए वह बोलती जा रही थी बेटा लग रहा कि तुम दोनों को बहुत ठंड लग रही है, मैं तुम लोगों के लिए चाय बनाती हूं डॉली ने आगे बढ़ते हुए कहा! अम्मा आप परेशान मत होइए ,बस हम थोड़ी देर आपके यहां बैठना चाहते हैं ,जैसे ही बारिश रुकेगी तो हम यहां से चले जाएंगे, पर उन्होंने डॉली की बात को ना सुनते हुए चाय चढ़ाई और उसमें शक्कर पत्ती डालने लगी, वह बोलती ही जा रही थी,,, बेटा इस बुड़िया के घर में आता ही कौन है, भगवान तो मेहमान का रूप होते हैं, महीनों बाद कभी ऐसा होता है कि कोई इस बुढ़िया के यहां आए ,और मुझे कुछ करने का मौका मिले, वह सभी चीजो को टटोलते हुए शक्कर, पत्ती ,और दूध चाय में डालती जा रही थी, और बोले जा रही थी कुछ देर में डॉली की समझ मे आ गया कि शायद वह न के बराबर ही सुन पा
रही थी राज कमरे के अंदर इधर उधर देखता हुआ जायका ले रहा था कि अम्मा के यहां और कौन-कौन है ,,,,चाय बन चुकी थी ,अम्मा ने तीन स्टील के ग्लास में चाय छानी, डॉली और राज को देकर खुद भी चाय पीने लगी चाय पीते पीते ही पूछा ,बेटा भूख तो तुम लोगों को जरूर लगी होगी, मैं बस अभी खाने के लिए कुछ बनाती हूं, यह बात तो सच थी की डॉली को बहुत तेज भूख लग रही थी ,और राज को भी ,इस बार डॉली ने उन्हें मना नहीं किया ,,,,,पर इतना जरूर कह दिया,,,,कि सच बात तो यह है, कि मुझे सच में बहुत तेज भूख लग रही है, पर आप चिंता मत कीजिए, मैं आपके साथ खाना बनवा लूँगी, इतना सुनकर अम्मा के चेहरे पर खुशी आ गई थी ,उन्होंने चूल्हे के पीछे रखी हुई डलिया में से बड़े-बड़े दो बैगन ,और कुछ टमाटर लेकर चूल्हे की जलती हुई आग में डाल दिए, और और पास ही रखे कनस्तर से एक बर्तन में आटा निकाल कर डॉली को दे दिया ,,,बेटा तू यह आटा माँढ़ (गूँथ) दे तब तक मैं यह बैगन और टमाटर भून के इसकी चटनी बना लेती हूं ,अभी तो डॉली को अगर नमक और रोटी भी मिल जाती तो उसमें भी उसकी आत्मा तृप्त हो जाती, फिर अम्मा जब इतने प्यार से उसके लिए बैंगन टमाटर की चटनी ,और रोटियां बना रही थी ,तो डॉली के मुंह में अभी से पानी आने लगा था डॉली ने जल्दी से आटा गूंथा और मिट्टी का तवा चूल्हे पर चढ़ाते हुई रोटियां सेकने लगी तब तक अम्मा के बैंगन और टमाटर भुन चुके थे ,उनको छीलकर सिलबट्टी पर रखा उसमें
दो-तीन बड़ी नमक की डाली डाली और तीन-चार हरी मिर्ची और हरा धनिया डालकर चटनी भी बनकर तैयार हो गई थी राज सामने ही बैठा यह सब कुछ देख रहा था ,गरम गरम रोटी कि खुशबू से राज की भूख और भी बढ़ गई थी ,जैसे ही पहली रोटी सिकी अम्मा ने एक बड़ी सी थाली में चटनी रखकर डॉली को देते हुए कहा ले बिटिया इसमें रोटी रख और अपने आदमी को यह थाली पकड़ा दे ,जब तक वह खाएगा तब तक हमारी रोटियां सिक जाएंगी ,और फिर हम दोनों खा लेंगे ,इस बात पर राज डॉली की तरफ देखने लगा ,,
और राज ने कहा,, अम्मा अपुन इसका कोई आदमी नहीं है,,, अम्मा शायद ऊंचा सुनती थी ,वह कोई भी बात सुने बिना ही लगातार बोले जा रही थी,,,राज ने फिर डॉली की तरफ इशारा किया महारानी इस अम्मा को बोलना कि अपुन तेरा जो वह बोल रही है ,वह कुछ नहीं है डॉली को पता था कि अम्मा सुनने वाली नहीं है ,इसलिए वह चुपचाप रोटियां सेकती रही थोड़ी ही देर में अम्मा ने फिर आवाज लगाई बेटा उससे पूछ ले उसे और कुछ तो नहीं चाहिए, ले थोड़ी चटनी और परस दे कहते हैं कि जब आदमी खाना खाता है ,तो औरत को उसके थाली पर ही निगाह रखनी चाहिए कि उसे किसी चीज की जरूरत तो नहीं है
बेटा मुझे तो कुछ ठीक से दिख नहीं रहा
तू ही अपने आदमी का ध्यान रख, और उसे ठीक से खाना खिला दे ,कहते हैं कि अगर आदमी भरपेट खाना खा लेता है ,तो औरत की भूख अपने आप ही मिट
जाती है,,,
राज,,फिर बोला ,ये अम्मा भी न रेडियो के माफिक ही बोलती जाती है,सुनती नही है
शहज़ादी तू इशारा करके इसको समझा कि अपुन को है तेरा!
डॉली ने कहा आप परेशान क्यों हो रहे है उन्हें जो समझना है समझने दीजिये हम कोन सा यहाँ रहने बाले है,,,,,,
वैसे तो राज खाना खा ही चुका था, लेकिन बार-बार अम्मा के इस तरह बोलने से उसने थाली सरकाते हुए बाहर जाकर हाथ धोए और डॉली के कान के पास आकर बोला तू कुछ बोलती कायको नहीं है, इस बहरी अम्मा को समझा कि अपन तेरा वो नही है बिना सोचे समझे कुछ भी बोलती जा रही है डॉली ने फिर कहा , क्या आपको लगता है कि मेरे समझाने से अम्मा को सुनाई देगा उनका बुढ़ापा है ,अगर उन्हें नहीं सुनाई देता तो इसमें उनकी क्या गलती है ,और फिर इस बात का आपको ज्यादा बुरा लगा है, तो आप ही समझा दो ना उन्हें ,मैं क्यों अपना गला खराब करूं ,डॉली ने एक थाली लगाकर अम्मा के हाथ में पकड़ाई ,और इशारे से कहा का कि खाना खा लेते हैं, काकी ने टटोलते हुए राज की थाली में ही चटनी और रोटियां रखते हुए डॉली को थाली दे दी , बेटा तू इसी में खाना खा ले , आदमी की झूठी थाली में खाना खाने से दोनों के बीच प्रेम बढ़ता है
राज ने जब सुना कि अम्मा कुछ भी बोले जा रही
है ,तो बुरा परेशान होकर, बुरा सा मुंह बनाते हुए पास ही पड़ी खटिया पर जाकर लेट गया, और बड़बड़ करने लगा महारानी तू भी ना चुपचाप सबकुछ सुनती जा रही है, यह नहीं की अम्मा को सारी बात समझा दे, डॉली ने अम्मा के हाथ से थाली ली और चुपचाप खाना खाने लगी
सच में दो नमक के डेली और कुछ हरी मिर्ची से खाने में इतना स्वाद आ जाएगा इससे इस बात का पता चल गया, की प्रेम तो बनाने वालों के हाथ में होता है ,और उसी से खाने का स्वाद आता है, डॉली और राज खाने से तृप्त हो गए थे, राज ने घर पर भी काकी को फोन करके बता दिया था, कि वह चिंता ना करें ,वह पास ही के गांव में किसी के घर में रुके हैं ,और जैसे ही बारिश बंद होगी वह आ जाएंगे ,और काकी ने भी कह दिया था कि रात में आना ठीक नहीं होगा ,अब तुम दोनों सुबह ही वहां से निकलना , काकी से बात करने के बाद राज उसी खटिया पर गहरी नींद में सो गया ,अम्मा ने एक दरी निकालते हुए डॉली को दी बेटा इसे तू बिछा ले ,,,,और खुद दूसरे कमरे में सोने चली गई,,,,, डॉली ने बह दरी वही नीचे जमीन में बिछाई और वह भी सो गई, रात को मौसम और भी खराब होने लगा था, तेज बारिश और बादलों की गड़गड़ाहट की कड़क दार आवाज से ,डॉली की नींद खुल गई और वह डर कर बैठ गई ,दो-तीन घंटे की नींद लेने के बाद राज की भी नींद खुल गई थी ,राज ने जब देखा की डॉली उसके पास ही नीचे बिछी हुई दरी पर बैठी है, तो वह अचानक
उठ कर बैठा ,और इधर-उधर देखने लगा क्यों शहज़ादी वह अम्मा किधर को गई
वह तो दूसरे कमरे में है ,तो तू इधर क्या कर रही है, जाकर उसी के साथ सो जा
डॉली ने राज की बात अनसुनी करते हुए बुरा सा मुंह बना कर कहा ,मुझे डर लग रहा है ,इसलिए नींद नहीं आ रही ,
कमरे के कोने में लानटेन अभी भी टिमटीमा रही थी ,लेकिन उसकी रोशनी इतनी नहीं थी कि ठीक से कुछ देखा जा सके ,दबी हुई रोशनी ,बादल की गड़गड़ाहट और मूसलाधार पानी ,सच में एक डरा देने वाला मौसम लग रहा था, राज भी अपनी खटिया पर बैठा हुआ था ,और डॉली नीचे बैठी डर रही थी ,तभी एक बहुत जोरदार आवाज हुई ,और डॉली ने कसके राज का हाथ पकड़ लिया
,डॉली सच में बुरी तरह डर गई थी ,यह शायद कहीं बिजली गिरने की आवाज थी ,जो आसपास ही कहीं किसी पेड़ के ऊपर गिरी होगी, राज डॉली की इस हरकत पर जोर से हंसने लगा ,,,,
महारानी तुझे बस बातें करनी ही आती है
तू है नंबर वन की डरपोक ,अरे बिजली गिरी होगी ,ऐसे मौसम में तो बिजली गिरती ही रहती है ,तू घर के अंदर है, डर क्यों रही है डॉली ने अभी भी राज का हाथ पकड़ के रखा था,,, राज ने डॉली को समझाया कि
उसे डरने की जरूरत नहीं है, वह उसके पास ही है ,और अपना हाथ छुड़ाते हुए
उसे खटिया पर आराम से सो जाने के लिए कहा ,और खुद आकर नीचे दरी पर लेट गया महारानी मैं वैसे भी सो चुका हूं ,मेरी नींद पूरी हो गई ,अब तू आराम से सो
मैं हूं यही हूं, डॉली चुपचाप ऊपर जाकर खटिया पर लेट गई ,और राज नीचे दरी पर बैठकर अपना मोबाइल चलाने लगा, क्योंकि उसकी दो-तीन घंटे की गहरी नींद पूरी हो चुकी थी ,,,,,,,
राज के कहने पर डॉली ऊपर खटिया पर जाकर लेट गई लेकिन अब भी उसे नींद नहीं आ रही थी ,बादलों की तेज गड़गड़ाहट उसे सोने ही नहीं दे रही थी ,कभी खुली हुई खिड़की में से पानी की बौछार अंदर आती तो कभी बिजली की चमक, इन सब से वह अब भी डर रही थी ,कुछ देर इधर से उधर करवटें बदलने के बाद ,जब एक बार फिर जोरदार बिजली कड़की तो वह उठकर राज के बगल में बैठ गई,,
राज मोबाइल चलाने में व्यस्त था
जब अचानक उसने डॉली को इस तरह अपने पास आता हुआ देखा ,तो वह भी चौक गया ,और डॉली की तरफ देखते हुए बोला ,यह क्या तू खुद भी डर रही है
और साला अपुन को भी डरा कर ही रहेगी क्या एकदम से भूतनी के माफिक मेरे बगल में आकर बैठ गई ,क्या हुआ क्या है तेरे को क्या आराम से ऊपर सो नहीं सकती
नहीं !! मुझे डर लग रहा है, मैं आपके पास ही बैठूंगी ,,,राज ने उसकी तरफ देखते हुए कहा ,तू एक काम कर ,अब मेरे सिर पर बैठ जा ,शायद फिर तेरा डर
खत्म हो जाए
अरे क्या यह बात तेरे को समझ में नहीं आती ,कि अपुन यही बैठा है
फिर डरती कायको है ,,,
पर डॉली ने किसी भी बात का जवाब नही दिया,,,, वह राज के बगल में ही चुपचाप बैठ गई ,जब डॉली राज के बगल में आकर बैठी तो धीरे-धीरे उसे नींद के झोंके आने लगे कभी आगे गिरती ,तो कभी पीछे, फिर खुद को संभाल लेती समलते समलते कभी राज के कंधे से उसका सिर टकरा जाता,,
राज जानता था कि उसके कहने पर वह बिल्कुल नहीं मानेगी, इसलिए बह चुपचाप अपने मोबाइल में ही लगा रहा ,,अब तक डॉली राज के कंधे पर सर रखकर गहरी नींद में सो चुकी थी ,,और राज ने भी उसे डिस्टर्ब करना ठीक नहीं समझा ,क्योंकि वह जानता था, कि अगर एक बार उठ गई तो फिर उसका दिमाग खा जाएगी, कभी डर लग रहा है ,तो कभी नींद नहीं आ रही इसलिए वह इस बात का इंतजार कर रहा था कि सुबह हो ,और वहां से निकले ,,
कुछ देर में हल्का हल्क उजाला होने लगा था बारिश भी थम गई थी ,लेकिन बादल अभी भी छटे नहीं थे ,बस थोड़ी देर के लिए बारिश रुकी हुई थी ,कभी भी दोबारा आंधी तूफान आ सकता था, सुबह के 630 बज चुके थे ,लेकिन जब राज ने देखा कि अभी बारिश रुकी है ,तो हिलाते हुए डॉली को उठाया ,और चलने के लिए कहा, डॉली जल्दी से हड़बड़ा कर उठ
गई थी
डॉली ने दूसरे कमरे में झांका तो देखा कि अम्मा भी उठ गई है ,डॉली ने जाकर उनका हाथ पकड़कर इशारे से कहा ,की अम्मा अब हम लोग निकलते हैं ,अम्मा ने दरवाजे से बाहर झांका और बोली, बेटा अभी भी बारिश हो सकती है ,बादल अभी छटे नहीं है अपना घर समझकर ही रुक जाओ मैं खाना बना लेती हूं ,दोपहर तक बादल छठ जाएंगे उसके बाद चली जाना,,,
नहीं अम्मा ,हमारी काकी भी परेशान हो रही होंगी ,और यहां से हमारा गांव ज्यादा दूर नहीं है, बस एक घंटा ही लगता है जाने में अभी बारिश रुकी है, हम लोगों को निकल जाना चाहिए ,डॉली ने मां को धन्यवाद दिया पता नहीं क्यों एक ही दिन में अम्मा को डॉली और राज से काफी लगाव हो गया था उन्होंने दोनों को आशीर्वाद दिया ,और फिर मिलने के लिए कहा ,डॉली और राज ने अपना सामान लिया ,और वहां से निकल आये , मौसम में 1 दिन में ही काफी बदलाव आ गया था ,सुबह के 7 बज चूके थे पर ऐसे लग रहा था, जैसे कि अभी 45 बजे का ही समय हो ,चारों तरफ काफी अंधेरा था, बादल भी काफी हो रहे थे ,और ऐसे लग रहा था ,किसी भी टाइम तेज बारिश आ सकती है ,मौसम काफी ठंडा हो गया था ,राज ने जीप की रफ्तार थोड़ी बढ़ाई ,तो डॉली को और भी ठंड लगने लगी ,पर घर पहुंचना भी जरूरी था ,इसलिए डॉली तो कुछ नहीं कहा ,लेकिन जब राज की नजर पड़ी कि डॉली कांप रही है ,तो उसने गाड़ी की रफ्तार थोड़ी कम
की ,और आंगनबाड़ी के लिए जो सामान लाए थे, उसमें कुछ चादरे भी थी उसमें से एक चादर निकालकर डॉली को दी डॉली को सच में इस वक्त चादर की बहुत जरूरत थी ,वह चारों तरफ चादर को अच्छे से लपेटते हुए जीप में बैठ गई,,
ठीक 50 मिनट में ही राज की जीप घर के दरवाजे पर पहुंच गई थी ,जैसे ही गाड़ी का हॉर्न सुना काकी दौड़ कर दरवाजे पर आई उसे पूरी रात से दोनों बच्चों की चिंता हो रही थी ,आकर उसने डॉली और राज की खैरियत पूछी ,और गाड़ी में से जल्दी जल्दी सामान निकलवाने लगे, क्योंकि बारिश दोबारा किसी भी वक्त आ सकती थी
सबने गाड़ी का पूरा सामान अंदर रखा ,और राज ने गाड़ी गैरेज में लगाते हुए, ढाबे पर एक नजर मारी, उसके बाद अंदर आ गया जब तक काकी चाय और पकौड़े बना चुकी थी, डॉली अभी उसी चादर को लपेटकर अंदर बैठी थी ,क्योंकि उसे ठंड लग रही थी जब गरम गरम पकौड़ी , और गिलास भर चाय उसने आराम से पी ली ,तब जाकर उसे अच्छा लगा ,क्योंकि काकी को पता था कि बचपन से ही डॉली से ठंड सहन नहीं होती है और उसकी ठंड का एक ही इलाज रहता है चाय के साथ गरम गरम पकौड़ी या फिर देसी घी का हलवा, और सर्दियों में अक्सर ही काकी यह दोनों चीजें डॉली को खिलाती रहती थी,,,
राज भी चाय और पकौड़े खाते हुए बार-बार डॉली की तरफ देख रहा था ,और उसे सोच कर हंसी आ रही
थी ,की आंगनबाड़ी की मैडम जी खुद ही कितनी बड़ी डरपोक है आखिर वह अपनी हंसी को रोक नहीं पाया वह हंसते हुए काफी से कहने लगा ,काकी यह महारानी ना सिर्फ बातों की ही है ,रात में बिजली की आवाज से डर कर इसने अपन को भी सोने नहीं दिया ,,अपुन का रात भर भेजा खाया ,और खुद भी इधर से उधर होती रही, डॉली राज की बातों पर कोई भी एक्शन किए बिना चादर में सिमट कर बैठी हुई थी ,और वही सोच रही थी कि जब राज उसके पास होता है ,तो सारी चीजों की चिंता खत्म हो जाती है ,सारे डर उसके मन से निकल जाते हैं, राज के बगल में बैठे ही बैठे कैसे चैन की नींद सो गई थी, फिर उसे होश भी नहीं था कि बिजली की गड़गड़ाहट और बादलों की चमक कितनी तेज़ और कब तक रही थी ,वह निश्चिंत होकर गहरी नींद में सो चुकी थी, राज चाहे उसे कितना भी डांटता रहे ,उसका मजाक उड़ाता रहे ,पर उसे डॉली कि हर बात की चिंता रहती है ,डॉली को किस चीज की जरूरत है ,खुद डॉली से पहले राज उस बात को समझ जाता है ,डॉली राज की तरफ देखते हुए यही सारी बातें सोच रही थी ,कि सच में अगर राज उसकी जिंदगी में नहीं आता ,तो वह खुद को इतना सुरक्षित महसूस कभी नहीं करती, ना ही आगे पढ़ लिख पाती ,और ना ही अपने पैरों पर खड़ी हो पाती ,डॉली की जिंदगी से जुड़ी हर बात में सिर्फ और सिर्फ राज का ही हाथ था, उसके हौसले से और उसकी मेहनत से ही डॉली आज इस मुकाम तक पहुंची
थी कि सारे गांव में उसकी इज्जत थी ,लोगों उसे पूछते थे , गांव की महिला और बच्चों के लिए कुछ अच्छा कर पा रही थी ,इस सबके पीछे राज ही था
डॉली के लिए राज की कोई भी बात छुपी नहीं थी , पर उसकी मुस्कान के पीछे का दर्द उसके खुशी या दुखी रहने की वजह, और सख्त स्वभाव के पीछे छुपा हुआ उसका कोमल ह्रदय ,सब कुछ पहचान लेती थी
वह जितना राज के बारे में सोचती धीरे-धीरे उसे महसूस होने लगा था ,कि सच में राज ने अपनी जिंदगी में खुशियां देखी ही कहां है वह तो बस अपनी मेहनत और ईमानदारी से आगे ही बड़े हैं ,उन पर कितने झूठे आरोप लगाए गए ,यहां तक की जेल भी भेज दिया गया ,शायद यही वजह है कि वह अपनी जुबान से थोड़ा सख्त हो गए हैं ,पर जिंदगी की जो खुशियां होती हैं ,खुद के लिए जीना होता है ,किसी के प्यार की जरूरत होती है उन सब से तो राज कितना दूर है ,पता नहीं कब अपने बारे में सोचेंगे ,दूसरों के लिए कितना कुछ करते हैं ,लेकिन खुद के लिए,,,,,,,,
ये सब सोचते सोचते पता नहीं डॉली कितनी गहराई में पहुंच चुकी थी, अब उसे भी राज के भविष्य के लिए चिंता होने लगी थी ,सच में काकी की कहि हुई लाइन का मतलब अब डॉली के समझ में आया था
काकी भी तो यही चाहती थी कि राज का घर बसे ,उनके बाल बच्चे हो ,और वह अपने परिवार के साथ कुछ पल खुशी के विताये पर वह खुद इस बारे में क्यों नहीं सोचते
अब मुझे ही कुछ करना होगा ,मुझको उन्हें समझाना होगा ,कि आपको अपनी आपकी आगे की जिंदगी के बारे में सोचना चाहिए आखिर कब तक ऐसे अकेले ही जिंदगी जीते रहेंगे,,,,,
धीरे-धीरे कुछ दिनों में यह बात डॉली की समझ में आ गई थी, कि अब वह वक्त आ चुका है ,जब राज को भी अपना साथी चुन कर अपनी घर गिरहस्ती बसाना चाहिए
बह राज के लिए सब कुछ अच्छा होता हुआ देखना चाहती थी ,पर साथ ही यह भी जानती थी ,कि राज खुद कभी कोई भी कोशिश नहीं करेंगे, इसलिए इस बारे में उसे ही कुछ सोचना होगा,,,,,
अब उसने सोच लिया था, कि वह खुद ही राज के लिए उसका साथी ढूंढेंगी,,,,