‘लोग मुझे खुनी कहते हैं। पुलिस मुझे ढूंढ रही है! कानून मुझे फाँसी पर चढाने के लिए मचल रहा है! लेकिन उन सभी को यह नहीं मालूम कि मैंने जिन लोगों का खून किया है, वे लोग किस कदर कानून को हाथ में लिए घूम रहे थे? बस! मैं खूनी हूँ, यही सबको दिखाई दे रहा है। अरे… खूनी तो कानून है, समाज है और समाज के मुखिया हैं, जो निर्दोष लोगों पर जुल्म ढा रहे हैं। उनका अंधेरे में गला घोंट रहे हैं। College girl sex story.
अंधेरे में मैं यही सोचती हुई चली जा रही थी, कि तभी मुझसे कोई आकर टकरा गया। डर के मारे मैं दो-तीन कदम पीछे हट गई। देखा, मेरे सामने एक अधेड़ पुरुष खड़ा था। लेकिन वह होश में कहाँ था। शराब के नशे में धुत्त था। मैं बुदबुदाई, ‘हुँ हं डं…. किसी को दौलत का नशा है, तो किसी को शराब का। किसी पर अपनी सुंदरता का नशा सवार, तो किसी पर न जाने किस-किस चीज का। इन साहब को दौलत और शराब दोनों का ही नशा है। गाड़ी कहीं खड़ी है और ये जनाब रात के बारह-एक बजे न जाने क्या तलाश रहे हैं? मैं यही सोचते ही उन साहब के नजदीक पहुँच गई। वह मुझे देखते ही बोले, ‘तुम कौन हो?’
‘मैं कोई भी हूँ, लेकिन आप कौन हैं?’ वह जनाब थोड़ा मुस्कराए, फिर अपनी गाड़ी की ओर इशारा करते हुए कहने लगे- ‘मैं बड़ी मुसीबत में हूँ। शायद आज कुछ ज्यादा ही पी ली है, मैंने। बार से निकलने को तो मैं निकल गाया, पर गाड़ी तक पहँच नहीं पा रहा हाँ क्या तुम मेरी मदद करोगी?
‘मैं… भला आपंकी क्या मदद कर सकती हूँ?’
‘यदि तुम चाहो तो मेरी बहुत कुछ मदद कर सकती हो। इतनी रात गए कोई शरीफ औरत इधर थोड़ी ही आ सकती है?’ वह साहब इतना कहकर मेरा मुँह ताकने लगे। ‘आप शायद ठीक ही कह रहे हैं। लेकिन क्या इतनी रात गए कोई शरीफ पुरुष इस तरह नशे में बेहाल घूमता है?’
‘मैं तो पुरुष हूँ….. लोग मुझे ज्यादा से ज्यादा यही कहेंगे कि नशे में रास्ता भटक गया है, लेकिन तुम्हें तो लोग…..? इतना कहते-कहते वह चुप हो गया।
‘फिर तो आपको भी लोग बदचलन औरतों के पीछे भागने वाला दल्ला, चटू या गश्ता ही कहेंगे न?’ बराबर का जवाब जब उसके मुंह पर तमाचे की तरह पड़ा तो उसका नशा कुछ कम हो गया। एकटक मुझे ही घूरे जा रहा था। फिर वह अचानक ही बोले, ‘तुझे मैंने नशे की वजह से पहचानने में भूल कर दी, तुम तो कोई असाधारण लड़की लगती हो। देखो, मुझे मेरी गाड़ी तक छोड़ दो।’ ‘चलिए…’ मैंने उसका हाथ पकड़ा और पास ही खड़ी गाड़ी में बिठा दिया।
‘आप गाड़ी चलाना तो जानते ही होंगे?’
‘हाँ… जानता तो हूँ, पर इस हालत में क्या मैं गाड़ी चला सकता हूँ? प्लीज… मुझे मेरे घर तक छोड़ दो।’ जनाब गिड़गिड़ा पड़े। मैं ने अपने शब्द-जाल मैं उन्हें फंसा लिया था। दूसरों को सम्मोहित करने की कला जिसे आ गई, वह जीवन में जल्दी मार नहीं खाता है। मैं अपनी इस कला के बल पर ही अब तक जिंदा थी। उस ड्राइवर को भी मैंने थोड़े ही कुछ दिया था। सिर्फ मोहक-मस्कान के जलवे उसे देखाए थे। बस, वह मेरा दीवाना हो और गाडी की रफ्तार ने धीमी कर दी। फिर मैं मौका पाकर कूद गई। इस स्वार्थी संसार को पार करने के लिए व्यक्ति को सम्मोहन-कला में निपुण होना ही चाहिए।
मैं यह सोच ही रही थी कि उस सज्जन ने टोक दिया, ‘तुम क्या सोच रहे हो? क्या मेरी मदद करना नहीं चाहती?’
‘नहीं, ऐसी बात नहीं।’ मैं यह कहते-कहते ड्राइविंग सीट पर आकर बैठ गई। इस समय सहारे और मदद की जरूरत तो मुझे भी थी। मैंने अगले ही पल गाड़ी स्टार्ट की और सड़क पर दौड़ाने लगी। रास्ता वही सज्जन बताते जा रहे थे।
गाड़ी जैसे ही एक पीले रंग के मकान के सामने पहुंची, तभी उन्होंने मेरी पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, ‘गाड़ी यहीं रोक दो। अरे वाह! तुम्हारा हाथ तो बहुत ही सधा हुआ है। गाड़ी ऐसे चला रही हो, जैसे पानी भागता है। पता ही नहीं चला कब घर आ गया!’ यह कहकर वह गाड़ी से उतर गए और फिर मुझे घूरते हुए बोले, ‘क्या गाड़ी से निकलने का मन नहीं कर रहा?’ मैं सकुचाती हुई गाड़ी से बाहर आ गई और कांपते कदमों से उनके पीछे-पीछे चल दी।
जब मैं दरवाजे से होकर अंदर पहुंची तो आश्चर्यचकित रह गई! इतने बड़े मकान में कोई नहीं था। तभी वह मेरे पास आकर बोले, ‘डरो मत… यहाँ मेरे और तुम्हारे सिवा फिलहाल कोई नहीं है। मेरा नाम जनार्दन है, मैं राजनीति शास्त्र का प्रोफेसर हूँ।’ मैं आश्चर्य से प्रोफेसर जनार्दन की ओर देखते हुए बोली, ‘आपकी उम्र तो अच्छी-खासी है, फिर इस मकान में कोई और क्यों नहीं है?’
‘अजीब लड़की हो भई… यह भी कोई सवाल हुआ, कि कोई क्यों नहीं है? मैंने शादी नहीं की है, बस…! मेरी दुनिया कॉलेज और कॉलेज के छात्रों तक ही सीमित है, बस…! क्या उम्र गुजारने के लिए इतना कम है?’ प्रोफेसर जनार्दन यह कहकर मुस्करा पड़े।
‘आप झूठ बोल रहे हैं। आपकी दुनिया बार में भी है। शराब भी और …’ मैं इससे आगे बोल न सकी। आगे के शब्द बर्फ बनकर ठहर गए।
‘तुम तो काफी होशियार मालूम पड़ती हो। मेरे साथ जब रहना शुरू कर दोगी तो सवाल करना भूल जाओगी। तुम यही कहना चाहती हो न, कि ढेरों स्त्रियाँ भी मेरी दुनिया में शामिल हैं? माई स्वीट हार्ट, तुम उन सभी स्त्रियों से अधिक कीमती और अनमोल हो, जो मेरे जीवन में हैं या कभी हुआ करती थीं। मैं एक प्रोफेसर हूँ और वह भी एक कुंआरा प्रोफेसर….। और मैंने यह बात बड़ी शिद्दत से महसूस की है कि फिलहाल तुम्हें किसी सहारे की सख्त जरूरत है।’
प्रोफेसर जनार्दन कोई साधारण आदमी नहीं था। उसने घाट-घाट का पानी पिया था। उसने बस शादी ही नहीं की थी। इस प्रोफेसर जनार्दन के यहाँ मुझे किसी बात की तकलीफ नहीं हो सकती। यह मेरा दीवाना भी हो गया है। मेरी सेवा में कोई कमी नहीं रहने देगा। ऐसे साधन संपन्न पुरुषों को ही तो मैं अपनी जालिम जवानी का मजा दे सकती हूँ’ और मैं यही सोचते-सोचते अनायास ही बोल पड़ी, ‘आपने ठीक ही अनुमान लगाया है। मैं इस शहर में बिल्कुल ही अकेली और नई हूँ। मेरा अपना कोई नहीं है। देखिए, मुझसे आप यह न पूछिएगा कि मैं कौन हूँ? क्या करती हूँ और यहाँ तक कैसे आई हूँ?
‘अरे नहीं, मैं सुदरियों के ठिकाने के बारे में कोई सवाल नहीं करता क्योंकि किसी की सगी नहीं होती। उनका अपना कोई ठिकाना भी नहीं होता। वे तो स्वेच्छाचारी होती हैं, आजादी उनकी प्यारी चीज है। और वे वहाँ नहीं टिकती हैं, जहाँ लक्ष्मी का निवास नहीं होता। तुम उन्हीं सुंदरियों में से एक हो। यह मेरा सौभाग्य है, कि तुम मुझे मिल गई हो।’ प्रोफेसर जनार्दन यह कहकर हँसने लगे।
वह अब नशे में नहीं थे। फ्रिज का दरवाजा खोलकर उन्होंने आइसक्रीम के दो कप निकाले और एक कप मेरी ओर बढ़ाते हुए बोले, ‘तुम्हें आज इसी से संतोष करना पड़ेगा। हाँ, यदि तुम चाहो तो सेब खा सकती हो। खाने के नाम पर यही है।’ मैंने मुस्कराते हुए कप हाथों में ले लिया।
‘मैं सफर की थकी हुई हैं। इसलिए आइसक्रीम ही काफी है, यह कहकर मैं आइसक्रीम खाने लगी। प्रोफेसर जनार्दन चुप्पी तोड़ते हुए बोले, ‘क्या तुम भी स्त्री-पुरुषों के उन संबंधों को गलत मानती हो, जो बैगर विवाह के ही बन जाते है?’
‘नहीं, ऐसे संबंधों में मैं स्त्री की सहमति को ज्यादा महत्व देती हूँ। अगर स्त्री राजी है, उसे कोई एतराज नहीं है, तो परुष उसके साथ यौन संबंध बना सकता है। किन्हीं मजबरियों में, किन्हीं दबावों में किन्हीं अन्य कारणों से औरत किसी पुरुष के साथ यौनसंबंध बनाती है तो वह मझे स्वीकार नहीं।
मैं उसे स्त्री के साथ बलात्कार की संज्ञा देती हैं।’ मेरे यह कहते ही प्रोफेसर जनार्दन मुझसे काफी प्रभावित हो गए, बोले, ‘मैं तुम्हारे इन विचारों से काफी प्रभावित हूँ। लेकिन तुम इन संबंधों में औरत की वकालत क्यों कर रही हो? क्या पुरुष की सहमति का कोई महत्व नहीं है? बलात्कार तो पुरुष के साथ औरत भी कर सकती है या करती है।’
मैंने माना, कि वह सेक्स की मांग नहीं करती है, पर क्या वह इसके लिए इशारे नहीं करती है, उससे छेड़-छाड़ नहीं करती है?’ प्रोफेसर के शब्दों में दृढ़ता थी। वह मेरे मुँह से यही कहलवाना चाहते थे, कि औरत के इशारे ही पुरुष को उनकी ओर आकर्षित करते हैं या उनके साथ जोर-जबर्दस्ती करने के लिए उन्हें उकसाते हैं।
लेकिन मैं बोली, ‘ऐसे इशारे या छेड़छाड़ उन हालातों में होते हैं, जब स्त्री की सहमति होती है या वह उस पुरुष को चाहने लगती है। वैवाहिक या अवैवाहिक संबंधों में यह कोई जरूरी नहीं कि स्त्री-पुरुष एक दूसरे को चाहते ही हों। चाहत या प्रेम एक अलग चीज है और सेक्स एक अलग चीज है। जिससे विवाह हुआ है, उससे शारीरिक संबंध प्रेम हो या न हो बनाने ही पड़ते हैं।
कहीं स्त्री-पुरुष के साथ बलात्कार करती है, तो कहीं स्त्री के साथ पुरुष बलात्कार करता है। ऐसा वैवाहिक-अवैवाहिक दोनों ही संबंधों में होता है। मुझे स्त्री-पुरुष के संबंधों के विषय में अच्छी जानकारी है। पुरुष ऐसे मामलों में ज्यादा निष्ठुर, स्वार्थी और अवसरवादी होते हैं।’ प्रोफेसर जनार्दन मेरे पास आकर कहने लगे, ‘इसका मतलब तुमने ढेर सारे पुरुषों को बहुत करीब से परखा है। मैं कैसा लगा तुम्हें?’ ।
‘आप… आप भी मेरे जीवन में आए उन्हीं पुरुषों की तरह ही हैं। मैं किन मुसीबतों से गुजर रही हूँ? मेरी तबीयत कैसी है? मेरी सहमति है या नहीं, आप भी उन्हीं पुरुषों की तरह जानना नहीं चाहते हैं। और जानने की कोशिश भी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मैं भी तो आपको इस्तेमाल कर रही हूँ।’ यह कहकर मैं पलंग पर टांगें फैलाकर लेट गई और सोचने लगी, ‘जीवन में रखा ही क्या है? जीतना है, उसको ढंग से जी लेने में ही जीवन की सार्थकता है।
प्रोफेसर जनार्दन ने मुझे सहारा दिया है, मेरी कीमत का इसे एहसास है। मेरी सेवा में तन, मन, धन से लगा हुआ है। मैंने यही सोचते-सोचते पैंट खोलकर एक तरफ रख दिया। मेरी टांगें अब नंगी थी। प्रोफेसर मेरे करीब आकर बोले, ‘क्या तुम्हारी सहमति है?’ मैंने उनके गाल पर जोर से चिकोटी काट दी। वह उछल कर उठे और मेरी जांघों को झुककर जीभ से चाटने लगे।
मैं हँस पड़ी, ‘जब एक बुद्धिजीवी कहे जाने वाले प्रोफेसर की यह हालत है, तो फिर लोग एक आम आदमी को क्यों गालियाँ निकालते हैं?’ मैं यह सोच ही रही थी कि प्रोफेसर मेरे वक्षों को जीभ की नोंक से सहलाने लगा। मैं खिलखिलाकर हँसने लगी। इतना खूबसूरत क्षण मेरे जीवन में काफी दिनों बाद आया था। तभी वह प्रोफेसर अचानक ही इंसान से हैवान बन बैठा। मेरे शरीर नोंचने-खरोंचने लगा और दांतों से भी काटने लगा।
मैं जोर-जोर से चीखने लगी, लेकिन उसकी भुजाओं की पकड़ से स्वयं को छुड़ा न सकी। फिर वह अचानक ही शांत हो गया और फिर इंसान की तरह यौन-व्यवहार करने लगा। लेकिन मुझे सैक्स में कोई आनंद नहीं मिला। अधिकांश पुरुष होते ही ऐसे हैं, जो सिर्फ स्वयं के लिए ही सहवास करते हैं। और प्रोफेसर जनार्दन जब थक गया तो वह जाकर दूसरे कमरे में सो गया।
मैं निर्जीव सी घंटों बिस्तर पर यूँ ही पडी रही। मेरा सारां शरीर लहलहान हो गया था मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे कुछ देर पहले किसी भेड़िए से मेरी मुठभेड़ हो गई हो और उसने मेरे शरीर को घायल कर दिया हो। शायद यही स्थिति अधिकांश औरतों की भी है। पुरुष के इस खुनी यौनाधरण को झेलना उनके जीवन से जुड़ गया है। पुरुष इसी को सहवास कहते हैं।
न जाने मैं यही सब सोचते हुए कब सो गई, इसका होश ही न रहा। सुबह के चार बजे जब मेरी आँख खुली तो मैं ‘खटर-पटर’ की आवाज सुनकर सहम गई। जब मेरी दृष्टि सामने पड़ी तो आँखें आश्चर्य से फटी की फटी रह गई। दो खूबसरत अट्ठारह-उन्नीस वर्षीया युवती अर्द्धनग्न प्रोफेसर जनार्दन की बाँहों में थीं और प्रोफेसर सहित वे दोनों युवतियाँ भी शराब के नशे में धुत थीं।
मैं बिस्तर पर ही बैठी-बैठी बोली, ‘प्रोफेसर! इन लडकियों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? जो इनकी अस्मत से भी खेल रहे हो और इन्हें नशे की लत भी डाल रहे हो।’ सुनते ही वह मझ पर गुस्सा कर गया, ‘तू मेरे ही मकान में रहकर मुझे ही जीवन का पाठ पढ़ा रही है? तुम कितनी स्वार्थी हो? अपने लाभ के लिए तुम किसी से भी यौन-संबंध बना सकती हो, पर दूसरों को ऐसा करते नहीं देख सकती। इन लड़कियों को मुझसे काम है। ये अच्छे नम्बरों से पास होना चाहती हैं। देह बेचना क्या सिर्फ तुम ही जानती हो? ये अपनी स्वेच्छा से मेरे पास आई हैं।
‘नहीं, इसमें इनकी स्वेच्छा शामिल नहीं है। ये तुम्हे रिश्वत के रूप में अपनी देह दे रही हैं। ये मजबूर हैं। ये तुम्हारे दबाव में आकर ऐसा कर रही हैं।’ मेरे यह कहते ही प्रोफेसर हँसने लगा, ‘कल रात की मानसिक दबाव में तो मैंने तुम पर भी जोर डाला था, तब तो तुम कुछ भी नहीं बोली? तुम भी तो मजबूर हो। तुम्हारे पास घर नहीं है, पैसे नहीं हैं। नई जगह में तुम आई हो।
तुमने अपनी देह मुझे ये सब पाने के लिए ही तो दी। फिर दूसरों के लिए उल्टा क्यों सोचती हो?’ प्रोफेसर की बातों का मेरे पास कोई ठोस जवाब नहीं था, इसलिए मैं चुप हो गई। अब मैं सोच रही थी, ‘इस दुनिया में हर कोई मजबूर है। और इसी मजबूरी का फायदा एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से उठा रहा है। मुझे इस जगह को फौरन छोड़ देना चाहिए। मुझे अब मजबूरियों के आगे झुकना नहीं है।’ यह सोचते ही मैं उठ खड़ी हुई। कपड़े पहने और प्रोफेसर के मकान से निकल गई।
Apko College girl sex story ke sath sath ye Group Sex Story bhi jarur pasand ayegi.
Hamara Physics professor meri gaand marna chahata hei.
Nahi to wo muze practical me fail kar dega. Kya karu?
I and one more girl are pursuing our PHD at one of the top college of Pune. Our professor is forcing the other girl to sleep with him and he will help her to writer and complete her thesis. Now we came to know that he has a track record of using girls for his desires in exchange of thesis.