जीशान – माँ क्या तुम भी तुरंत में मुह फुला लेती हो मैंने कहा न की तुम्हे कोई कुछ नहीं कर सकता जब तक हम ना चाह ले और वो फिर से शाज़िया की चूची मुह में भर लेता है और शाज़िया को आह भरने पे मजबूर कर देता है
अनीस का मन कशमकश में था पता नहीं आगे क्या होने वाला था और कुछ ही देर में शाज़िया नंगी हो कर दोनों बेटो से हॉल के फर्श पे चुद रही थी डेढ़ घंटे चुदने के बाद वो अपनी जगह पे जा कर सो गयी और दोनों शैतान भी मगर उन्हें मालूम नहीं था की उनकी ये रासलीला वसीम ने अपनी खुली आँखों से देख ली थी…..
अगली सुबह शाज़िया जब जागी तो उसने पाया की उसके ब्लाउज के तीन बटन्स खुले हुए थे और उसकी एक चूची पूरी तरह से बाहर लटक रही थी वो हड्बडा कर उठती है और बाथरूम की और जाती है जहा वसीम पहले से दातुन कर रहा था..शाज़िया मन ही मन ये सोचती है की जब बाबूजी कमरे से बाहर आए होंगे तब उन्होंने मेरी चुचिया जरुर नजर आई होंगी हे भगवान् ये क्या हो गया वो नजरे चुराते हुए कहती है बाबूजी आप कब उठे हमे आवाज लगा दिया होता…….
वसीम – नही बहुरानी तू नींद में रहलू तो तहरा के तंग करल ठीक न सोचिनी एही से न उठावनी ह और मुस्कुरा देता है …
शाज़िया बखूबी समझ जाती है की बाबूजी के मुस्कुराना किस ओर इशारा कर रहा था खैर वो भी नित्य क्रिया में लग गयी और फिर सब से नाश्ते के समय भेट हुयी जहा जीशान ने बोला की आज वो दादू के ऑफिस में एप्लीकेशन डालने जा रहा है और वो अनीस को कहता है की भईया तुम भी चलना मेरे साथ
अनीस – ठीक है
वसीम – बबुआ कोसिस करिह की काम जल्दी से जल्दी हो जाए ताकि हमहू तू लोगन के साथे पटना चल सकी ….और शाज़िया की तरफ देख कर मुस्कुरा देता है….शाज़िया इस बार बुरी तरह झेप जाती है
और कुछ देर बाद दोनों भाई अपने काम के लिए निकल जाते है……..
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नाश्ते के बाद शाज़िया दोपहर के खाने की तयारी कर के नहाने के लिए जाती है और इस समय वसीम अपने बरामदे में बैठा अखबार पढ़ रहा था………..तभी उसका ध्यान शाज़िया की तरफ गया जो नहाने के लिए गुस्सल्खाने में जा चुकी थी.वसीम के मन में खुराफात ने दस्तक दी और वो दबे पाँव बाथरूम की तरफ चल पड़ा अपनी बहु के जिस्म को निहारने जहा शाज़िया बेफिक्र हो कर नहा रही थी…..
वसीम उधर जा ही रहा था कि तभी जीशान और अनीस आवाज लगाते हुए घर मे आते है और वसीम हड़बड़ा कर वापस बरामदे में दौड़ा आता है जहाँ अनीस और जीशान एक साथ कहते है कि दादा जी माफ करियेगा काम मे देरी होगी आपके दफ्तर वालो ने कहा कि इस काम मे समय लगेगा कम से कम दो महीने कागजी काम है ऊपर आए पेंशन वाली इसलिए वसीम बेचारा ये बात सुन कर मायूस हो जाता है कहा वो शाज़िया को भोगने की तैयारी में थे और अब उसे यही रहना था अब इन दो महीनों में उसका काम बिगाड़ दिया था खैर वो अब नही जा सकेगा ये तय हो गया था और तभी शाज़िया नहा कर वहा आती है और उसे भी ये खबर मिलती है तो वो मन ही मन सोची की चलो बला टली…..
उसके बाद सभी खाना खाने बैठते है और शाज़िया ने आज ही निकलने का सोच लिया था और हुआ भी ऐसा ही वसीम बेचारा करता भी क्या…..
मगर इन् सब पचड़ों में पड़ कर अनीस के एक महीने की छुट्टी की वाट लग गयी थी और उसे अगले हफ्ते से काम पे जाना था….शाज़िया और जीशान अनीस तीनो के मुह लटके हुए थे…..इसी तरह वो देर रात घर पहुचे……घर की हालत भी खस्ता हो चुकी थी मगर शाज़िया अभी बहूत थकी हुई थी और दोनो बेटे भी बिना किसी शरारत के वो नींद की आगोश में समा गए…..
सुबह शाज़िया की आंख खुली तो पाया कि उसकी दोनो चुचिया उसके बेटो के मुह में है और जीशान के हाथ उसकी चुत के दरार पर घूम रहे है जिसका आभास होते ही शाज़िया ने अपनी टांगे खोल दी और फिर शुरू हुआ घमासान चुदाई का दौर….अगले कुछ ही पलों में शाज़िया नंगी हो चुकी थी और अनीस शाज़िया की चुत चाट रहा था और जीशान उसकी चुचिया को बेदर्दी से चूस चाट रहा था कुछ देर में दोनो के लौड़े शाज़िया के दोनों छेदों को फाड़ने के लिए तैयार थे और अगले कुछ देर के लिए शाज़िया की दर्द और लिज्जत भरी सिसकियों से कमरा गूंजता रहा…..
दोनो छेदों को अदल बदल कर अपने माल से भरने के बाद वो दोनो उठे और शाज़िया को भी साथ मे ले कर बाथरूम में घुस गए जहाँ नहाते वक्त भी एक राउंड चुदाई और हुई और फिर नहाने के बाद शाज़िया ने एक पेटिकोट पहन लिया और अनीस ने टॉवल लपेट लिया और घर की सफ़ाई में लग गए जबकि जीशान नास्ता का प्रबंध करने चला गया…..
घर की सफ़ाई और नास्ता के बाद तीनों हॉल में बैठे थे जहाँ शाज़िया बोली…..बनारस में बाबूजी ने मेरी चुचिया नंगी देख ली थी….और वो उसके बाद से मुझे अजीब नजरो से देख रहे थे……मुझे बहुत शर्म आ रही थी।
जीशान- कोई बात नही माँ देख ही लिया तो क्या हो गया…….तुम्हारी ये चुचिया है ही देखने के लिए….औऱ उसकी एक चुची को पेटिकोट के बंधन से बाहर निकाल देता है…..और दबाने लगता है…..
शाज़िया कुछ कहती इससे पहले
अनीस – मुझे तो इस बात का डर है कि दादू के यह आने के बाद हमारा ये प्यार से भरा रिश्ता कैसे चलेगा…..उफ्फ माँ और वो भी उसकी दूसरी चुची पे अपने होठ जामाता है…….जीशान के मन मे कुछ और ही था…
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,इधर वाराणसी में वसीम अपनी पूरी कोसिस में लगा था की कैसे भी कर के वो अपनी पेनशन की राशी का भुगतान पटना करवा ले मगर विभाग उसकी सुन ही नही रहा था….उसे खाने पकाने की काफी दिक्कते आ रही थी मगर जीना तो था ही ……..वसीम ने सोचा की अभी पेंशन आने में काफी वक़्त है सो वो पटना हो आये और पेंशन आने के समय पर यहाँ वापिस आ जाएगा और पेंशन ले कर वापिस पटना लौट जायेगा उसने सोचा की अब वो ऐसा ही करेगा मगर दिक्कत थी की उसके घर की देखभाल कौन करेगा उसे अभी तक कोई किरायदार नहीं मिला था …………..उसने सोचा की इसकी चिंता आने के बाद सोचेंगे अभी फ़िलहाल पटना हो कर आया जाए…और वो निकल पड़ता है पटना की ओर…..
………………………….
अनीस आज अपने ऑफिस जाने की तयारी में लगा था और शाज़िया किचन में केवल एक पेटीकोट में नास्ते का प्रबंध कर रही थी जीशान अपने कमरे में अपने काम को अंजाम दे रहा था जिसे उसे अपनी पार्ट टाइम जॉब वाली कंपनी में पहुचना था और उसे आज पैसे भी मिलने वाले थे इधर से शाज़िया के साथ सम्बन्ध बनाने के बाद से वो सही से ध्यान नहीं दे पाया था मगर अब काम भी जरुरी है
शाज़िया नास्ता टेबल पर लगाते हुए आवाज लगती है अनीस जीशान कहाँ हो आओ दोनों नास्ता कर लो फिर मै नहाने जाउंगी……
अनीस और जीशान दोनों टेबल पर आते है.
अनीस – ये क्या माँ तुम हमारे साथ नहीं खाओगी ऐसे में हम भी नहीं खाएंगे….
शाज़िया – एक थप्पड़ लगाउंगी सारी की सारी बेहूदगी धरी की धरी रह जाएगी समझा दिन भर ऑफिस में काम करना होता है और जनाब खाने नहीं खाएंगे चुप चाप खाओ समझे न ….
अनीस शाज़िया की ओर देख कर मुस्कुराता है और कहता है मेरी प्यारी माँ हमारे बारे में कितना सोचती है और उसे खीच कर अपनी गोद में बैठा लेता है .
जीशान – माँ नास्ते के साथ अगर दूध भी मिल जाता तो मजा आ जाता नास्ते का
इतना सुनना था की शाज़िया अपनी पेटीकोट की डोरी खीच देती है और पेटीकोट सरक कर उसके कमर तक आ जाता है अनीस तुरत एक चूची की मुह में भर लेता है उर जीशान कहता है वाह भाई वाह डिमांड मैंने की और मिल तुम्हे गया ………माँ ये गलत बात है
शाज़िया हस्ते हुए अपनी बाहे फैला कर उसको अपने पास बुलाती है जीशान अपनी थाली छोड़ कर वही अनीस के कुर्सी के पास आ जाता है और शाज़िया की दूसरी चूची की अपने मुह में भर लेता है और शाज़िया की सिसकी निकलनी चालू हो जाती है कुछ देर के बाद शाज़िया को बर्दास्त करना मुस्किल हो रहा था इसलिए उसने उन् दोनों को खुद से अलग किया और कहा की ऑफिस नहीं जाना क्या और उनको खाने के लिए बोलती है और जीशान कहता है माँ कुछ देर मेरे गोद में भी आओ न ऐसे ही दूध पिते पिते नास्ता करूँगा इस पर अनीस कुछ नहीं बोलता
शाज़िया उसके गोद से इसके गोद में आ जाती है और फिर नास्ता ख़तम होने तक वो बारी बारी से दोनों बेटो की गोद में आती जाती रही नास्ता के बाद वो अपनी पेटीकोट को बिना बांधे उठ खड़ी हुयी और अपने पेटीकोट को पकड़े पकड़े ही टेबल से झूठे बर्तन उठा कर किचन में रख आई और फिर शाज़िया बोली की अब तुम दोनों जाओ और जल्दी आना ….
जीशान – माँ मै तो दो घंटो में आ जाऊंगा ज्यादा देर हुयी तो मै तुम्हे फोन कर दूंगा ….
अनीस – माँ मै तो सीधे रात को ही मिलूँगा जीशान के तो मजे ही मजे है और उसकी तरफ देख कर मुह बनाता है जैसे उसे जलन हो रही हो….
शाज़िया उन दोनों को कहती है की चलो अब ख़ुशी ख़ुशी जाओ और शाम को कुछ अच्छी सी चीज खाने को ले आना मेरे लिए .
अनीस जीशान – ठीक है माँ वो दोनों घूमते है और आगे चलते है
शाज़िया उनके पीछे पीछे मगर चलने से पहले उसने अपनी पेटीकोट वही गिरा दी नंगी ही उन दोनों के पीछे पीछे चल दी मगर उन दोनों को जरा भी आभास नहीं हुआ की शाज़िया नंगी हो चुकी है गेट पे पहुचने के बाद वो दोनों पीछे घूमते है और शाज़िया को देख कर उनके लंड में तूफ़ान खड़ा हो जाता है
मगर शाज़िया उन्हें धकेल कर बाहर कर देती है और दरवाजे से सर निकालती है साथ ही साथ अपनी एक चूची पूरी की पूरी और अपनी एक टांग भी निकालती है जिससे उसकी चूत का कुछ भाग दर्शनीय हो जाता है उन्हें कहती है सुबह सुबह बिना दर्शन के कैसे जाने देती और हस देती है….
शाज़िया का घर के दरवाजे पे ऐसे खड़े होना बहुत ही कामुक दृश्य था उन दोनों के लिए मगर तुरत ही शाज़िया दरवाजा बंद कर देती है…….उन दोनों के जाने के बाद शाज़िया नंगी ही घर के बाकी काम करती है और फिर नहाने चली जाती है नहाने के बाद वो बाथरूम से नंगी ही अपने कमरे में आती है जहा वो एक पेटीकोट ही पहनती है और अपने बाल कंघी करने लगती है तभी दरवाजे पे दस्तक होती है………..
शाज़िया सोचती है की लगता है सुबह का दृश्य जीशान को बेचैन कर दिया है इसलिए जनाब तीन घंटे का बोल कर गए थे मगर एक घंटे में ही वापिस आ गये वो सोची की जैसे सुबह में विदा की थी वैसे ही स्वागत भी करू और वो अपनी पेटीकोट वही खोल कर गिरा देती है और पूरी नंगी सुलझे हुए बाल नहाने के बाद साबुन की खुसबू में सराबोर बदन लिए चल पड़ी दरवाजे की तरफ जहा दस्तक तेज होती जा रही थी वो चिल्ला कर बोली हा बाबा आ रही हु थोड़ा सबर तो करो बेटा और वो दरवाजा खोलती है जहा सामने देख कर शाज़िया की आँखे घूम जाती है……
सामने वसीम खड़ा था और शाज़िया को पूर्ण रूप से नंगी पा कर वसीम की सासे अटकने लगती है की वो ये क्या देख रहा है कही ये सपना तो नहीं शाज़िया का भी कमोबेश यही हाल था कुछ देर के लिए दोनों की आँखे एक दुसरे को ही देखती रहती है तभी वसीम दरवाजे को धकेलता हुआ घर में प्रवेश कर जाता है शाज़िया बेसुध सी उसकी किसी भी हरकत का कोई जवाब न देते हुए पीछे हट जाती है
जब वसीम उसे पुकारता है तब शाज़िया की निद्रा टूटती है और उसे ख्याल आता है की वो नंगी खड़ी है अपने बूढ़े ससुर के सामने और भाग कर कमरे में जाने के लिए मुडती है शाज़िया के हिलते चूतड़ वसीम पे कहर ढा रहे थे और तभी उसका पैर खाने की मेज से टकराता है और वो नंगी धम्म से गिर पड़ती है शाज़िया की दर्द के मारे चीख निकल जाती है…….
वसीम दौड़ कर शाज़िया के पास जाता है और उसकी टांग को उठाता है और शाज़िया दर्द से कराहती हुयी वही जमीं पे नंगी लेटी रहती है और वो कराहते हुए कहती है की बाबूजी मुझे छोड़ दीजिए मै ठीक हु और उठने की कोशिश करती है मगर दर्द के साथ वो वापिस से जमीन पे आ जाती है
वसीम – बहु तुम चिंता मत करो मै कुछ नहीं करूँगा और वो पूछता है की तुम्हारे कपड़े कहाँहै शाज़िया इशारो में कमरे की तरफ इशारा करती है वसीम उठ कर जाता है और वह से एक साडी उठा कर लाता है और शाज़िया के बदन पे डाल देता है और फिर पूछता है की बेटा शायद मोच आ गयी है कोई बाम हो तो बताओ मै मालिश कर देता हु
शाज़िया कोई चारा न देखते हुए सामने दराज की तरफ इशारा करती है और फिर साडी को अच्छे से अपने बदन पे लपेटने लगती है मगर साडी ठहरी पारदर्शी पीले रंग की जिसमें से शाज़िया का जिस्म का एक एक कतरा दिख रहा था उस साडी का होना ना होना सब एक ही था शाज़िया मन ही मन सोच रही थी की ये क्या हो गया कैसे हो गया अब बाबूजी क्या करेंगे साडी में से शाज़िया की चुचियो के निप्पल और चूत की दरार साफ़ साफ़ दिख रही थी जिसका नतीजा ये हुआ की वसीम के धोती में तम्बू बनना शुरू हो गया मगर वसीम ने उसे छुपाने की कोशिश बिलकुल नहीं करी क्योकि कही न कही उसकी तो आज चांदी चांदी हो गयी थी………..
वसीम – बहु कमरे में चलो मै वहा तुम्हारी चोट की मालिश कर दूंगा जिससे तुम्हे आराम मिलेगा और वो उसे उठाने लगता है शाज़िया बेमन से वसीम की बाहों का साहारा ले कर खड़ी होती है मगर अगले ही पल उसके बदन की साडी जमीं पे गिर जाती है और वो एक बार फिर अपने ससुर की बाहों में नंगी खड़ी थी
शाज़िया बेबस सी वसीम की और देखती है मगर वसीम उसकी साडी को उठा कर उसके बदन के बजाय अपने कंधे पर रखता है और उसके नंगे बदन को ले कर कमरे में चल पड़ता है चलते वक़्त शाज़िया की एक चूची पूरी की पूरी वसीम की छाती से रगड़ खा रही थी जिसका एहसास दोनों को हो रहा था…..कमरे में पहुच कर उसको बिस्तर पर लिटा देता है और शाज़िया शर्म से गडी जा रही थी मगर वो कुछ करने में असमर्थ थी अपने दर्द के सामने वसीम ने उसके बदन को फिर से साडी से ढक दिया और उसके पैरो की मालिश करने लगा….अभी उसने पैरो को पकड़ा ही था की दरवाजे पे दस्तक होती है……
वसीम शाज़िया को उसी हालत में छोड़ कर दरवाजा खोलने पहुचता है…..दरवाजे पे डाकिया खड़ा होता है वसीम से मुखातिब होते हुए वो कहता है अनीस कुमार का एक ख़त आया है और उसे लेने के बाद वसीम वापिस कमरे में आता है जहा शाज़िया अब् भी उसी हालत में लेटी हुयी थी वसीम उसके पास आ कर कहता है की अनीस बाबु के दफ्तर से एक ख़त आया है …\
शाज़िया धीमी आवाज में उसे कहती है सामने टेबल पर रख दीजिए अनीस आएगा तो खुद खोल कर देखेगा और चुप हो जाती है अब वसीम ने सोचा की अब बहु की दुखती नब्ज पकडनी ही होगी वरना ये ऐसे मेरे हत्थे नहीं चढ़ने वाली वो उसके नजदीक आ कर उसके पैर को अपने हाथो में लेते हुए कहता है……….
वसीम – बहु तुम अभी पूरी नंगी हो कर दरवाजा खोलने कैसे आ गयी और तुम पूरी नंगी थी ही क्यों………
शाज़िया को जैसे इस सवाल से साप सूंघ गया हो उसे कोई जवाब देते न बन रहा था वो चुप चाप लेटी रही और वसीम अपनी बहु के चोटिल पाँव की मालिश करता रहा और वो उससे जवाब मांगने लगा मगर शाज़िया ने कोई जवाब न दिया आखिर अंत में वसीम ने ये बात कह ही दिया की उसे मालूम है की उसके जिस्मानी सम्बन्ध है अनीस और जीशान के साथ……….कमरे में सन्नाटा छा गया मगर वसीम उसके पाँव की मालिश करता रहा……
शाज़िया – मुझे माफ़ कर दीजिए बाबूजी मैंने ये जान बुझ कर नहीं किया पता नहीं मैं कैसे बहक गयी और मेरे और उन दोनों के बीच ये रिश्ता कायम हो गया वो अब उठ कर बैठ गयी थी और साथ ही साथ अपने बदन पर एकमात्र कपडे वो पीली साड़ी को अच्छे से अपने ऊपर ले लिया मगर शाज़िया की भारी और गोरी मुलायम चुचिया उस पीले पारदर्शी कपडे से नुमयिन्दा हो रही थी जिसपे वसीम की नजर अनायास ही चली जा रही थी और इधर शाज़िया अपने सफाई में बोले ही जा रही थी……एक कमरे में एक औरत अधनंगी हालत में अपने बूढ़े ससुर के सामने बैठी थी और अपने चोटिल पाँव की मालिश करवा रही थी उफ़….काफी कामुक दृश्य था येवसीम की हालत काफी ख़राब हो चुकी थी जिसको संभालना अब वसीम के बस की बात नहीं थी मगर फिर भी वो अपने पे काबू किये हुए था…..शाज़िया की सारी बात सुनने के बाद वसीम को सारा माजरा समझते देर न लगा की सारा का सारा किया धरा दोनों भाइयो का ही है सालो ने अपनी माँ को ही शीशी में उतार लिया
वाह रे मेरे चोदु पोतो क्या खूब कमाल किया वो मन ही मन बोला और फिर वो शाज़िया से मुखातिब होते हुए बोला बहु कोई बात नहीं अक्सर ऐसी गलती बच्चे जवानी में कर बैठते है मगर तुम्हे समझाना चाहिए थे उन्हें की ये रिश्ता सही नहीं है मगर तुम भी क्या करती मेरे बेटे के बाद से तुम भी तो अकेली ही जीवन बिता रही थी और तो और जीशान और अनीस जैसे जवान लंड मिले तो तुम्हारा भी मन व्याकुल हो गया मै समझ सकता हु क्युकी मेरी बीवी को गए हुए अभी कुछ ही हफ्ते गुजरे है मगर मुझे उसकी कमी बहुत खलती है और तुम तो…… और वो मुह घुमा लेता है
शाज़िया के मन से एक बोझ हल्का हो जाता है की उसके ससुर ने उसे समझा उसे गलत नहीं ठहराया वसीम अब उसके पाँव को छोड़ देता है और शाज़िया से कहता है बहु अब आराम मिला दर्द से शाज़िया अपने पाँव को हिला कर देखती है और कहती है जी बाबूजी
वसीम अब उसको कहता है की बहु मै अभी यही रहूँगा अगर तुम्हे बुरा न लगे तो क्योकि मुझे वहाँ रहने खाने की काफी दिक्कत हो रही थी और अब मेरी सरला के बगैर वो घर काटने को दौड़ता है मै महीने के महीने वह जा कर अपने पेंशन की राशि ले आया करूँगा…….
शाज़िया को ये सुन कर थोड़ा धक्का लगता है क्योकि वो ये नहीं चाहती थी की बाबूजी यहाँ आ कर रहे मगर अब वो यहाँ आ चुके थे और अब यही रहने भी वाले थे मगर साथ ही साथ उसे ये तसल्ली थी की वसीम उसे समझता है और उसके और उसके बेटो के बीच के सम्बन्ध को ले कर उसने कुछ गलत नहीं बोला नाही कोई ऐसी वैसी हरकत करी उसके साथ जबकि वो नंगी बैठी है उसके सामने इसलिए वो थोड़ी निश्चिंत हो गयी थी मगर टेंशन ये थी की उसके सामने वो चुदाई कैसे करवाएगी
तभी वो सोचती है की जीशान और अनीस कोई न कोई उपाय निकाल ही लेंगे और वो वसीम से कहती है …….
शाज़िया – कोई बात नहीं बाबूजी ये भी आपका ही घर है आपको पूछने की कोई जरूरत नहीं है आप आराम से यहाँ रहिये …..
अब जीशान कुछ देर में आने वाला था….
शाज़िया को उसी हाल में छोड़ कर वसीम अपने सामान को सहेजने चला जाता है कुछ ही देर में दरवाजे पे दस्तक होती है वसीम जा कर दरवाजा खोलता है सामने जीशान था……वो वसीम को देख कर थोडा सा आश्चर्यचकित हो जाता है मगर फिर अगले ही पल वो दादू कहते हुए सलाम करता है
जीशान – दादू आप कब आये अचानक न कोई फोन ना कोई खबर
वसीम – वो बेटा अचानक से प्लान बन गया तो आ गया यहाँ क्यों नहीं आना चाहिए था क्या और वो जीशान की तरफ कौतूहल भरी निगाहों से देखता है
जीशान – नहीं दादू कैसी बाते करते है आप भी ये आपका ही तो घर है …माँ कहा है नजर नहीं आ रही….
माँ ओ माँ कहा हो माँ
शाज़िया रूम से ==== इधर बैठी हु जीशान बेटा कमरे में
जीशान – क्या हुआ माँ तुम्हारी आवाज कुछ अलग प्रतीत हो रही है और कमरे की तरफ कदम बढाता है
कमरे में पहुचते ही वो शाज़िया की हालत को देख कर सब समझ जाता है की यहाँ क्या हुआ होगा मगर वो फिर भी पूछता है की क्या हुआ माँ ऐसे हालत में क्यों बैठी हो वो भी तब जब दादाजी यहाँ मौजूद है तुम पागल तो नहीं हो गयी न माँ क्या हुआ
शाज़िया की आँखों में आसू आ जाते है और वसीम भी कमरे के बाहर ही खड़ा रह कर माँ बेटे की सारी बाते सुनता है की आखिर शाज़िया क्या कहती है……
शाज़िया ने एक ही सास में सारी की सारी कहानी बयां कर डाली……..जीशान भी थोडा परेशांन हो गया मगर अगले ही पल वसीम कमरे में आया और बोला की बेटा मुझे गलत मत समझना मैंने ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिससे तुम्हे या शाज़िया बहु को शर्मिन्दा होना पड़े और एक बात और बेटा मुझे तुमलोगों के इस रिश्ते पे कोई आपत्ति नहीं है बल्कि मै तो खुश हु की बहु की प्यास किसी और बाहर के व्यक्ति से ना बुझ कर खुद उसके दोनों बेटो से बुझ रही है इस बात को भी ले कर कोई मलाल न रखना बेटा अपने मन में……
जीशान भला क्या कहता वो चुप ही खड़ा रहा वहा पे…..वसीम शाज़िया के पास जा कर बोला….बहु तुम्हारा पैर कैसा है अब
शाज़िया – ठीक है बाबूजी
वसीम – बेटा खाना लगा दोगी क्या भूक लगी है सुबह का ही खाया हुआ हु…..
शाज़िया जो अभी तक केवल उसी साडी में बैठी थी जिसे वसीम ने उसके बदन पे लपेटा था वो उठती है और धीरे से कराहती हुयी किचन की और जाती है
…….उस साडी में से शाज़िया का गोरा बदन छिप कम दिख ज्यादा रहा था उसकी उभरी हुयी गांड और उसकी गांड की दरार में फँसा हुआ साड़ी का कपडा उफ्फ्फ और सामने से उसकी झूलती हुयी चुचिया और कपडे के भीतर से उसकी चुचियो के निप्पल उन् दोनों पे कहर ढा रहे थे
मगर जीशान अभी कुछ करने में हिचकिचा रहा था वही वसीम की हालत काफी ख़राब थी उसी वक़्त से जिस वक़्त वसे उसने शाज़िया को नंगी देखा था और अभी का सीन ने तो जैसे आग में घी का काम किया था……
शाज़िया उसी तरह कराहते हुए किचन में चली जाती है और कुछ देर बाद वो हॉल से आवाज लगाती है…बाबूजी जीशान खाना लग गया है…
दोनों दादा पोता कमरे से साथ ही बाहर आते है मगर दोनों में कोई बातचीत नहीं होती है शाज़िया सोचती है की माहोल थोडा तनावपूर्ण हो गया है इसे थोडा हल्का किया जाए वे दोनों आ कर टेबल के दो कोनो को पकड़ लेते है और शाज़िया खाना परोसने लगती है और परोसते वक़्त वो जान बुझ कर अपना पल्लू गिरा देती है जिससे उसकी दोनों दूध की टंकिया बाहर की और लटक जाती है जिसे देख कर दोनों मर्दों के हलक सुख जाते है
जीशान कुछ करता उससे पहले वसीम उसका पल्लू उठा कर उसके कंधे पे रख देता है मगर ठीक से ना रख पाने के कारण एक चूची पूर्णतः नंगी हो कर लटकती रहती है जिसे शाज़िया छुपाने की कोशिश बिलकुल भी नहीं करती
जीशान – माँ पल्लू ठीक कर लो वरना हम खाना ठीक से नहीं खा पायेंगे
वसीम जिसकी आँख शाज़िया पे ही जमी हुयी थी वो इस बात से अपनी आँखे हटाते हुए कहता है की हां बहु पल्लू सही कर लो
शाज़िया – जी करती हु खाना तो परोस लू पहले ….वैसे भी यह आप लोगो के अलावा कौन है ही और…
शाज़िया बिलकुल ही निश्चिन्त थी वसीम को ले कर क्योकि वो जान गयी थी की वसीम कुछ गलत हरकत उसके साथ सोच भी नहीं सकता जब तक की वो खुद न झुके उसके आगे या उसे कोई मौका दे और तो और शाज़िया के रिश्ते बारे में जान लेने के बाद शाज़िया का बचा कूचा डर भी निकल गया था इसलिए वो बेफिक्र थी……
उन दोनों को खाना देने के बाद वो वही एक कुर्सी पे बैठ गयी और अपनी अधनंगा बदन लिए अपने चोटिल पैर का मुआयना करने लगी….