Incest विधवा माँ के अनौखे लाल – maa bete ki chudai

शाज़िया जो अपनी दोनों की दोनों चुचिया नंगी अपनों चूत गांड सब नंगी किए अपनी टाँगे फैलाये उस हॉल की एक सीट पे बैठी थी और उसके हाथ अभी भी उसके दोनों बेटो के लंड पर थी …………..

उनकी सीट प्रोजेक्टर के बिलकुल पास थी अगर कोई दर्शक पीछे की और आता या देखता तो शाज़िया की पुरे मिलकियत के दर्शन उसे हो जाते…..जो की एक खुली तिजोरी के माफिक थी……….
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जीशान – माँ क्या हुआ कुछ बोलती क्यों नहीं हो…..और शाज़िया की चूत को हाथ में ले कर मसल देता है शाज़िया आँखे बंद किए अपनी कमर उठा कर आह करती है और कहती है

शाज़िया – नजर घुमा कर देखो कौन औरत ऐसे नंगी बैठी होगी यहाँ….आह जीशान छोड़ न दर्द हो रहा है….ऊँगली कर ले मगर उसे निचोड़ मत ना आह बेटा…..

जीशान फटाक से अपनी दो उंगलिया उसकी गीली चूत में घुसा देता है
शाज़िया चिहुक जाती है और अनीस अपनी माँ के कमर को हल्का सा ऊपर की और उठा कर अपनी दो उंगलिया उसकी गांड में घुसा देता है जिसे शाज़िया बर्दास्त नहीं कर पाती और उसके मुह से एक हल्की मगर थोड़ी तेज चीख निकल जाती है ………..वो तो गनीमत रही की किसी ने देखा नहीं वरना बहुत कुछ हो सकता था…..

अनीस की दोनों उंगलिया शाज़िया की ताज़ी ताज़ी फटी हुयी गांड में घुसी हुयी थी और उसके गांड के छल्ले ने उसे बहुत ही जोर से पकड़ रखा था…

जीशान – क्या करती हो माँ कितनी जोर से चीखी थोड़ा बर्दास्त किया करो मेरी माँ…और हस देता है

शाज़िया जो दर्द से बेहाल थी क्योकि उसकी चूत में दो ऊँगली और गांड में दो दो उंगलिया अपनी चुचिया खोले…..वो भी एक सिनेमा हॉल की सीट पे बैठी थी….कहती है जिसकी गांड नयी नयी तुम्हारे इस मुसल से फाड़ी गयी हो उसे हगने पर भी दर्द होता है यहाँ तो तूमने एक तरह से अपनी लंड के छोटी हमशकल ऊँगली घुसा दी है…..दर्द नहीं होगा तो क्या होगा मजा आएअगा…..आह अनीस निकाल ले न….बेटा

अनीस – माँ मजा भी आएगा रुको तो सही…और ऊँगली हिलाने लगता है हलाकि हिलाने में बन रहा नहीं था फिर भी वो हिलाए जा रहा था मगर शाज़िया दर्द से और बेहाल होते जा रही थी और इधर जीशान ने भी अपनी ऊँगली हिलानी शुरू कर दी थी शाज़िया उनके लंड से हाथ हटा लेती है और उन दोनों के हाथो को पकड़ लेती है मगर केवल नाम के लिए…..वो दोनों ऊँगली करते हुए दुबारा से उसकी चूची की चूसने लगते है जिससे शाज़िया का दर्द और मजा दोहरा हो जाता है और कुछ ही पालो में शाज़िया की चूत और गांड रिसने लगती है और इन दोनो की उंगलिया लपालप अंदर बाहर होने लगती है

शाज़िया लगातार अपनी कमर उठाये हुए थी और अपनी टांगो को फैला रही थी और दोनों के हाथो के उंगलियों को अन्दर तक ले रही थी कुछ देर में शाज़िया एक बार दुबारा झड जाती है …और जोर जोर से हाफ्ते हुए वही सीट पे बेहाल पस्त हो के फ़ैल जाती है और वो दोनों अपनी माँ को ऐसे देख के रोमांचित हो रहे थे….

कुछ ही देर में इंटरवल होने को था तो वो शाज़िया को सँभालने में मदद करते है और उसके और खुद के कपडे सही कर लेते है…..

शाज़िया उन दोनों को कहती है कौन सी फिल्म दिखाने लाये थे तुमदोनो…और वो दोनों हस देते है …..

जीशान अपने माँ के कान में कहता है “शाज़िया की प्यास”…… और हस देता है इस बात पे तीनो हस देते है और कुछ ही मिन्टो में इंटरवल हो जाता है…हॉल की लाइट्स जलने पे सब सामान्य ही रहता है और जीशान उठ कर पॉपकॉर्न और कोलड्रिंक ले आता है….वापिस फिल्म शुरू होने तक वो लोग हॉल से निकल कर रात के खाने के लिए कहा जाएँगे वो तय करते है और लाइट्स ऑफ़ होने के बाद वो लोग मूवी देखने लगते है इस बार कोई कुछ नहीं करता…बीस मिनट्स के बाद शाज़िया कहती है जीशान मुझे बाथरूम जाना है….अनीस भी ये सुनता है और कहता है इस वक़्त कहा जाओगी माँ थोड़ी देर रोक लो माँ बाहर निकल कर कर लेना

शाज़िया अपना मुह बनाते हुए कहती है की मुझे लगी अभी है और करुँगी बाद में मेरे को जोरो की लगी है ले चलो न यहाँ बाथरूम होंगे न….

तभी जीशान उसके साडी को उठाने लगता है…..शाज़िया कहती है ये क्या कर रहा है मुझे पिशाब आई है….उफ्फ छोड़ ना जीशान

मगर जीशान कहता है माँ रुको तो सही पिशाब कर लेना तुम पहले साडी तो उठाओ….और जीशान शाज़िया की साडी को पूरा ऊपर उठा देता है शाज़िया एक बार फिर से नीचे से नंगी हो जाती है जीशान अपनी कोलड्रिंक की बोतल जो आधी से ज्यादा खाली हो चुकी थी उसे फट से शाज़िया की चूत में घुसा देता है और कहता है मुतो माँ….

और शाज़िया कुछ सोचती नहीं और उस बोतल में मूतना शुरू कर देती है…..कोलड्रिंक के ठंडे बॉटल से शाज़िया को बहुत आनंद आता है और वो अपनी पूरी टंकी उस बॉटल में खाली कर देती है कुछ बूंदे बोतल से बाहर भी चु जाती है मूत लेने के बाद शाज़िया कहती है अब निकाल दे बाहर…..

जीशान बोतल बाहर निकाल लेता है….तभी अनीस अपनी बोतल शाज़िया की चूत में घुसेड़ देता है और उसे अंदर बाहर करने लगता है और शाज़िया बोतल के ठंडे एहसास के कारण अपने आप को उसके सुपुर्द कर देती है और अनीस आराम से उसकी बोतल से चुदाई करने लगता है

उफ्फ हाय ओह्ह जैसे आवाजे शाज़िया के मुख से निकलने लगती है और पंद्रह मिनट की चुदाई के बाद शाज़िया उसी बोतल में झड़ जाती है….और शाज़िया का चुत रस उस बोतल में जमा होने लगता है….पूरी तरह से झड़ने के बाद अनीस उस बोतल को निकालता है औऱ बड़े ही मजे से उसे पीने लगता है

जिसे देख शाज़िया शर्मा जाती है और कहती है धत्त बदमाश….तुमलोगो को पता नही कहाँ कहाँ से ये तरकीबे आती है….उफ्फ मेरी तो जान ही निकाल दी तुम लोगो ने….

जीशान कहता है अच्छा अब थोड़ा सा मूवी भी देख लो…..

शाज़िया अपनी साड़ी नीचे करने लगती है…..तब जीशान और अनीस दोनो उसे रोकते है और कहते है ऐसे ही बैठो न माँ कौन तुम्हे यह देख रहा है….और जीशान उसकी ब्लाउज के बटन खोल कर चुचियो को भी बाहर निकाल देता है

शाज़िया कुछ नही कह पाती….बस नंगी हुई मूवी देखने लगती है जो समझ से बाहर थी……और सौरभ और अनीस उसकी चुत और चुची से खेलने लगते है…..बीच बीच मे वो उसकी चुत में उंगली भी कर दे रहे थे……जिससे शाज़िया चिहुँक जा रही थी मगर अब उसे भी मजा आ रहा था तभी तो उसकी चूत गीली थी और चुची कि घुंडीया कड़ी हो गयी थी….

जब फ़िल्म खत्म होने को आई तब शाज़िया ने अपने कपड़े ठीक कर लिए और जीशान और अनीस ने भी फ़िल्म खत्म होने के बाद वो बाहर आये और होटल की तरफ चल पड़े…..होटल में खाना कर वे लोग घर आ गये और बिना कुछ शरारत किये सो गये क्युकी शाज़िया काफी थक गयी थी और कमोबेश दोनों बेटो का भी यही हाल था …..

सुबह शाज़िया जब जागी तो दोनों बेटे घोड़े बेचे नंगे उसके बगल में सो रहे थे और उसकी हालात भी लगभग वैसी ही थी …..ब्लाउज खुला हुआ…और साड़ी आधे से ज्यादा जांघो तक चढ़ा हुआ वो उठती है और जा कर अपने कामो में लग जाती है …….

कुछ देर बाद दोनों जनाब अपनी नींद से जागते हुए कमरे से बाहर आते है और किचन में काम कर रही शाज़िया के गले लग जाते है और जीशान अपनी माँ के पहनावे को देख कर खुश होता है क्योकि शाज़िया ने उसके मन मुताबिक कपडे डाले हुए थे ……

तभी अनीस का फ़ोन बजता है…..वो फोन पिक करता है…

आवाज किसी बूढ़े की लग रही थी ….
आवाज – हेल्लो के बोलाता….अनीस बबुआ
अनीस – हां मै अनीस ही बोल रहा हु आप कौन…

आवाज – हम वसीम बोलातानी तोहार दादू …..बनारस से….और अचानक से वो रोने लगते है और कहते है की ऐ बेटा तोहार दादी चल बसल रे बबुआ …..और रोने की आवाज आती है फिर कहते है की तोहार माई कहा बारी बात करावा ……

अनीस फ़ोन हटाते हुए कहता है माँ बनारस से दादू का फोन है और कह रहे है की दादी चल बसी …

शाज़िया और जीशान दोनों हक्के बक्के उसकी बात को सुनते है और शाज़िया दौड़ कर आती है वसीम से बात करने……

दरसल जब शाज़िया और उसका परिवार बनारस में थे तो वे लोग अपने ससुराल से अलग हो कर रहते थे …और शाज़िया के पति की मृत्यु के बाद शाज़िया ने भी उनसे सम्बन्ध सुधार ने की कोसिस नहीं करी क्योकि शाज़िया के पति द्वारा छोड़ा गया कर्ज उनके लिए काफी मुसिबते खड़ी कर चूका था और वो नहीं चाहती थी की उनकी मुसीबत उन दोनों बुजुर्गो पे पड़े…..|

बनारस में वसीम और उसकी पत्नी सरला…..अपने सरकारी क्वार्टर में रहते थे रेलवे की नौकरी से सेवानिवृत होने के बाद पेंशन पर जिंदगी अच्छे से कट रही थी मगर अब वसीम की एक मात्र साथी जीवनसंगिनी उसका साथ छोड़ गयी थी और वो बिलकुल अकेला हो गया था और जीवन के ऐसे पड़ाव पर अकेले गुजरबसर करना काफी मुस्किल था इसलिए उसने अपने पोतो और बहु के पास जाने की सोची….

इधर शाज़िया फ़ोन पे आ कर कहती है
शाज़िया – प्रणाम बाबूजी आप मत घबराइये हम अभी ही निकल रहे है यहाँ से कुछ घंटो में वहा पहुच रहे है आप बिलकुल मत घबराइये हम है और आ रहे है

इतनी देर में ही जीशान ने सारी बात समझते हुए 11 बजे की गाडी की टिकेट वेटिंग में ही मगर बुक कर दी और वो भी इस विपदा से थोड़ा चिंतित गया था मगर उन दोनों से ज्यादा शाज़िया व्याकुल लग रही थी जल्दी जल्दी अपने कपडे रखे और कुछ ही देर में वे लोग बनारस के लिए निकल चुके थे और अब शाज़िया भी रो रही थी ….

.ट्रेन अपने तय समय से थोड़ी लेट वाराणसी स्टेशन पहुची और अपने गंतव्य तक पहुचते पहुचते उनको शाम के चार बज गये वह पहुची तो देखा की वसीम और उनके आसपास के पडोसी और मित्र लोग सरला की अर्थी के पास बैठे शोकाकुल थे …और पंडित अर्थी को शमशान ले जाने की अंतिम तयारी में था…और इंनके पहुचते ही वसीम का दर्द और फुट पड़ा और चीख पुकार से माहोल गमगीन हो गया शाज़िया सुर बाकी सब लोग वसीम को सान्तवना देने में लगे थे ….कुछ देर बाद अर्थी शमशान में पहुच चुकी थी और वहा की क्रिया के बाद देर रात वे घर को लौटे जहा मोहल्ले की कुछ औरते और शाज़िया थी….

घर पे आने के बाद बाकी सब लोग अपने अपने घर चले गए…और ये लोग सरला की याद में डूबे वसीम को सँभालने लगे…रात जैसे तैसे बीती,……अगले कुछ दिन तक सरला का श्राद्ध कार्यक्रम चला और पटना से इन् तीनो को आये हुए लगभग आधा महिना हो चला था और इन् 15 दिनों में शाज़िया ने सम्भोग की तरफ ध्यान ही नहीं दिया था नाही उसके बेटो ने क्योकि माहोल ही वैसा था ….दो तीन दिन के बाद जीशान वसीम से बोला …..
जीशान – दादू आप हमारे साथ पटना चलिए अब यहाँ रह कर क्या करियेगा वहां हमलोग के साथ रहिएगा तो आपको दादी की याद भी नहीं सताएगी और आपका मन भी लगा रहेगा…..

मगर उसकी इस बात से अनीस बिलकुल भी खुश नहीं हुआ क्योकि दादा के आने से उनकी और शाज़िया की चुदाई में दिक्कत आती मगर अब देर हो चुकी थी |

वसीम – बात तो तू ठीक कहत बारे बचवा बाकी दिक्कत इ बा की हम्मार पेंशनवा इहे आवे ला आऊ अगर हम एहा से चल गयनी ता ओक्कर का होई..उ के लिही…और तो और इ सरकारी घरवो छोरे के पड़ी …

जीशान – कोई बात के टेनसन ना ली दादू हम बानी नु सब सेट कर देब आऊ जहवा दिक्कत बुझाई अनीस भईया बरले बानी मदद खातिर…..

वसीम – बाकी बचवा तू करबा का तानी हमरो बतवा….

जीशान – हम यहाँ के पता बदल के पटना के पता पे पेंशन भेजे के एप्लीकेशन डाल देब आऊ इ घर के भारा पे लगा देब आऊ हर महीने के महीने आ के भारा ले जाएब |

वसीम – बहुत बढ़िया उपाय लगावला है बचवा

जीशान – हां दादू बस इ सब काम निपटा के यहाँ से निकल चले के…..

शाज़िया मन ही मन सोचती है की ये जो भी हो रहा अच्छा नहीं हो रहा क्योकि इससे उसकी चुदाई में विघ्न पड़ने वाला था मगर अब तो बात काफी बढ़ चुकी थी तो उसने भी बीच में टोकना सही नहीं समझा और हां में हां मिला दी….

रात के खाने के बाद वसीम अपने कमरे में चला गया जहा जीशान उसके साथ सोता था और शाज़िया हॉल में और अनीस भी वही सोफे पे सोता था …….मगर आज की बात के बाद मौका देख कर अनीस ने जीशान से कहा था की दादू के सोने के बाद वो हम सब से मिलने हॉल में आएअगा..

रात के साढ़े बारह बज रहे थे अनीस सोफे पे लेटा हुआ था मगर आँखे खुली थी और उधर शाज़िया भी अपने बिस्तर पे लेटी हुयी थी तभी जीशान आता है और अनीस के पास जा कर बोलता है भाई क्या हुआ क्यों परेशान हो …….

शाज़िया भी उसकी आवाज सुन के वहा आ जाती है
अनीस – ये तू क्या कर रहा है दादा जी को वहा चलने को कहने की क्या जरुरत थी वह उनके आने से क्या दिक्कत होगी तुझे अंदाजा भी है…..

शाज़िया – हां जीशान तू भी न कभी कभी बेवकुफो की तरह हरकते करता है …बता अब क्या करेंगे….

जीशान अरे मेरी प्यारी प्यारी माँ मैंने भी तुम्हारे इन् चुचियो का दूध पिया है और मैं इतना बेवकूफ तो हो नहीं सकता न की अपनी माँ को तकलीफ दू…और अपने भाई को भी…और वो आगे बढ़ कर शाज़िया की ब्लाउज को खोलने लगता है जिससे शाज़िया भी मदद करती है उतारने में अगले ही पल शाज़िया ऊपर से नंगी अपने दोनों बेटो के बीच बैठी होती है

जीशान और अनीस दोनों उसकी चुचियो से खेलने लगते है जीशान बोलता है दादा जी अगर हमारे साथ रहेंगे तो उनके पेंशन की राशि हमारे भी काम आएगी और रही बात आपके प्यास की तो उसके लिए भी मैंने सोच रखा है …रात को दूध में दादू को नींद की गोलिया दे दिया करेंगे और फिर होगी अपनी रंगीन रात की शुरुवात और वो शाज़िया की चुचियो को चूसने लगता है

…इसको देख कर अनीस भी अपने सुरूर में आ जाता है और शाज़िया अपने दोनों बच्चों का सर अपनी छाती पे दबाने लगती है और कहती है चुसो बेटा आह इन्हें चुसो कितने दिनों से ये सुखी पड़ी थी आह बेटा आह …

और फिर अनीस कहता है की दादा के जाने से दिक्कत तो होगी ही हम खुल के ये सब नहीं कर पाएँगे और तो और पकडे जाने का भी डर बना रहेगा

….शाज़िया भी अनीस की हां में हां मिलाती है …क्योकि बात तो सही थी तभी जीशान कहता है …..तो अप्मने इस खेल में उनको भी शामिल कर लेंगे और क्या शाज़िया अपनी आखे गोल कर के कहती है की ये कभी नही हो सकता वो मेरे पिता सामान है और आगे से कभी ऐसी बात अपने जबां से मत निकलना …और वो शांत बैठी रहती है…

Dosto kaise lagi hindi family maa bete ki chudai story comments me jarur batana aur bhi aise hi mat kahani ke liye indisexstories.com padhte rahiye dhanyawad!

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