Incest घरेलू चुते और मोटे लंड – Part 1 – Pure Taboo

अपडेट ८:

शाम के ४:३० बज रहे हैं. उर्मिला सो कर उठती है. अंगडाई ले कर वो बाथरूम में जाती है और मुहँ धो कर फ्रेश हो जाती है.
“कुछ घंटो पहले मैंने जो तीर चलाया था, देखते है की सही निशाने पर लगा या नहीं”. ये सोच कर वो पायल के कमरे की रताफ चल देती है.

उर्मिला : (पायल के कमरे का दरवाज़ा खटखटाते हुए ) पायल…पायल..!! सो रही है क्या?

पायल : (आँखे खोलती है तो दरवाज़े पर कोई है. वो उठ कर दरवाज़ा खोलती है) अरे भाभी आप?

उर्मिला : हाँ… सो कर उठी तो सोचा की कुछ देर तेरे साथ बातें कर लूँ. मैंने तेरी नींद तो ख़राब नहीं कर दी ना?

पायल : अरे नहीं भाभी. मैं भी उठ हे गई थी. अन्दर आईये ना….

दोनों अंदर आ कर बिस्तर पर बैठ जाती है.

उर्मिला : कहाँ तक पढ़ ली किताब?

पायल : मेरा तो हो गया भाभी. आपको चाहिए तो आप ले जा सकती है.

उर्मिला : इतनी जल्दी पूरी किताब पढ़ ली तुने पायल? मैं तो एक हफ्ते से पढ़ रही हूँ लेकिन अब तक पूरी नहीं हुई.

पायल : (थोड़ी हिचकिचाते हुए) वो..वो..भाभी…ऐसे ही जो अच्छा लगा वो ऊपर ऊपर से पढ़ लिया …पूरी किताब इतनी जल्दी कौन पढ़ सकता है?

उर्मिला : अच्छा चल छोड़ इस बात को. तू ये बता की अब ६ दिन गुजारेगी कैसे? तू तो अभी से ही बोर होने लगी है….

पायल : हाँ भाभी…मैं भी येही सोच रही हूँ. (कुछ देर चुप रहने के बाद). भाभी…आपके पास “मेरी सहेली” के और भी अंक होगें ना?

उर्मिला : (अपनी मुस्कान पर काबू पाते हुए) अरे कहाँ पायल. पिछली बार जब तेरे भईया आये थे तो उनके साथ बाज़ार से ले कर आई थी. उनके जाने के बाद कभी जाना नहीं हुआ. और तू तो जानती है की मैं अकेले उनके बिना कहीं जाती भी नहीं. अब तो वो एक हफ्ते बाद जब आयेंगे तब ही जाना होगा.

पायल : मेरा कॉलेज भी बंद है भाभी, नहीं तो मैं हीले आती.

दोनों कुछ देर वैसे ही खामोश रहते है. फिर उर्मिला कहती है.

उर्मिला : वैसे पायल मेरे पास वक़्त बिताने के लिए एक और किताब भी है.

पायल : (चेहरे पे उत्सुकता आते हुए) कौनसी किताब भाभी?

उर्मिला : है एक किताब. रात में जब भी तेरे भईया की याद आती है तो वो किताब पढ़ लेती हूँ.

पायल : (पायल आँखे बड़ी करते हुए) ऐसा क्या है उस किताब में भाभी?

उर्मिला : (दोनों हाथों से पायल के गाल खींचते हुए) मेरी डार्लिंग ननद जी….उस किताब में वो है जिसे पढ़ के …. वो क्या कहती है तू? हाँ….’कुछ कुछ होता है’.

पायल : (हँसते हुए) समझ गई भाभी…आपके दिल में ‘कुछ कुछ होता है’. लगता है बहुत ही रोमांटिक किताब है….

उर्मिला : धत्त पगली…!! जिसकी नयी नयी शादी हुई हो और पति ज्यादातर घर से बाहर ही रहता हो उसके क्या दिल में कुछ कुछ होगा ? (मुस्कुराते हुए) वो किताब पढ़ के ‘कुछ कुछ होता है’ लेकिन दिल में नहीं, यहाँ … बिल में…(उर्मिला अपनी ऊँगली से पायल की बूर तरफ इशारा करते हुए कहती है).

पायल : (भाभी का इशारा समझते ही शर्मा जाती है) धत्त भाभी… आप भी ना..!!

उर्मिला : क्या करूँ पायल? अब इसकी प्यास भी तो बुझाना जरुरी है ना? तेरे भैया नहीं तो ये किताब हे सही…

उर्मिला की बात सुन के पायल सर निचे झुका लेती है और धीरे धीरे मुस्कुराते हुए चादर पर ऊँगली घुमाने लगती है. कुछ क्षण की ख़ामोशी के बाद उर्मिला कहती है.

उर्मिला : तुझे वो किताब मैं दे सकती हूँ, लेकिन दूंगी नहीं…

पायल : (झट से भाभी की तरफ देखती है) क्यूँ भाभी?

उर्मिला : कहीं तुने मम्मी जी को बता दिया तो?

पायल छलांग लगा के उर्मिला के सामने आ जाती है…

पायल : नहीं बताउंगी भाभी…किसी को भी नहीं बताउंगी …गॉड प्रॉमिस…!!

उर्मिला : (चेहरे पे मुस्कान आ जाती है) जानती हूँ मेरे लाडों …तू किसी से नहीं कहेगी. मैं तो बस यूँ ही मज़ाक कर रही थी. ठीक है, रात में तुझे दे दूंगी वो किताब.

पायल : (झट से कहती है) अभी दीजिये ना भाभी…..

पायल की इस बात पर उर्मिला उसे मुस्कुराते हुए देखने लगती है. पायल समझ जाती है की भाभी ने उसकी उत्सुकता भांप ली है. वो बात को संभालने के लिए कहती है.

पायल : भाभी मेरा मतलब था …की..वो.. मेरे पास अभी कुछ करने को नहीं हैं ना, तो मैं सोच रही थी की अभी पढ़ लेती हूँ. वैसे भी रात में मुझे कॉलेज का काम करना है.

उर्मिला : हाँ …तेरी बात भी सही है. चल मेरे साथ. तुझे वो किताब दे दूँ.

दोनों उर्मिला के कमरे में आते हैं. उर्मिला अलमारी खोल के कपड़ों के निचे से एक किताब निकाल के पायल को देती है.

उर्मिला : जल्दी ले इसे और अपनी टॉप में छुपा ले. और याद रहे, किसी को पता ना चले…

पायल : (किताब झट से अपनी टॉप में छुपा लेती है) डोंट वरी भाभी…किसी को पता नहीं चलेगा…अब मैं चलूँ?

उर्मिला : हाँ ठीक है…

पायल किताब को अपनी टॉप में छुपाये दौड़ती हुई कमरे से बाहर जाने लगती है. पीछे से उर्मिला कहती है, “ध्यान से पायल”. पायल दौड़ते हुए जवाब देती है, “जी भाभी” और कमरे से निकल जाती है. उसके जाने के बाद उर्मिला के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान छा जाती है. “पायल रानी…जब तू ये किताब पढ़ेगी तो तेरी बूर में वो आग लगेगी जो सिर्फ कोई लंड ही बुझा सकेगा और घर में अभी दो ही लंड है. एक सोनू का और एक बाबूजी का. मैं भी देखती हूँ की तेरी बूर में पहले किसका लंड जाता है, सोनू या बाबूजी का”. उर्मिला मुस्कुराते हुए रसोई की ओर चल देती है.

वहां पायल अपने कमरे में घुसते ही दरवाज़ा बंद करती है और लॉक करके सीधा बिस्तर पर छलांग लगा देती है. अपनी टॉप के अन्दर से किताब निकाल कर वो बड़े ध्यान से देखती है. कवर पर एक अधनंगी लड़की की तस्वीर है. ऊपर बड़े बड़े अक्षरों में “मचलती जवानी” लिखा हुआ है और निचे लेखक का नाम है – “मस्तराम”.

पायल किताब का पहला पन्ना उलटती है. सामने कहानियों के शीर्षिक लिखे हुए हैं. “१. गर्मी की एक रात, पापा के साथ”, “२. पापा के लंड की सवारी”, “३. भैया के लंड की प्यासी”, “४. छोटे भाई का मोटा लंड”. कहानियों के शीर्षक पढ़ के पायल को पसीना आने लगता है. उसने सोचा भी नहीं था की इस किताब में इस तरह की कहानियां होगी. पायल उन शीर्षकों को फिर से एक बार पढ़ती है. फिर कांपती हुई उँगलियों से वो पन्ना पलटती है. दुसरे पन्ने में बड़े अक्षरों में, “गर्मी की एक रात, पापा के साथ” लिखा हुआ है. वो धीरे धीरे नज़रों को निचे ले जा कर कहानी पढ़ने लगती है. कहानी एक १९ साल की एक लड़की की है जो गर्मी के मौसम में अलग अलग घटनाओं द्वारा धीरे धीरे अपने पापा के करीब आती है और गर्मी की एक रात पापा की हमबिस्तर हो कर चुद जाती है. पायल की नज़रें गौर से पन्ने पर छपे हर एक अक्षर को पढ़ने लगती है. हर एक पलटते पन्ने के साथ पायल का बुरा हाल होता जा रहा था. कहानी पढ़ते हुए कभी वो अपने ओठों को दांतों से दबा देती तो कभी अपनी बड़ी बड़ी चुचियों की घुंडीयों (nipples) को मसल देती. एक बार कहानी में ऐसा मोड़ आया की पायल ने सिसकारी भरते हुए पैन्टी के ऊपर से अपनी बूर को ही दबोच लिया. धीरे धीरे पायल अपने बदन से खेलते हुए कहानी पढ़ती जा रही थी. ३० मिनट के बाद पायल ने जैसे ही वो कहानी खत्म की, वो किताब को एक तरफ फेंक कर बिस्तर पर सीधा लेट गई. उसके एक हाथ ने टॉप के निचे से होते हुए एक चूची को अपनी गिरफ्त में ले लिया और दुसरे हाथ ने पैन्टी के अन्दर घुस के बूर के ओठों से खेलना शुरू कर दिया. पायल आँखे बंद किये हुए अपने ओठों को दांतों से काट रही थी. उसके हाथ चूची को कभी दबोच के दबा देते तो कभी मसल देते. पैन्टी के अन्दर हाथ की एक ऊँगली बूर के सुराक को तलाशने लगी. पायल की बूर बुरी तरह से रिसने लगी थी. उसके दिमाग में उस कहानी के कुछ मादक अंश घुमने लगे थे. उन्हें याद करके पायल और भी ज्यादा मचल जाती. तभी पायल के दिमाग में कहानी का एक अंश आया जिसने उसका बुरा हाल कर दिया. पायल ध्यान लगा के उस अंश को याद करती है. उसकी बंद आँखों के सामने कहानी का वो एक हिस्सा आ जाता है…..

“बिना कपड़ों के नंगे बदन कुसुम, अपने पापा के मोटे लंड पर ऐसे उच्छल रहीं थीं मानो किसी घोड़े की सवारी कर रही हो. घर की बिजली कटी थी और गर्मी की रात. इमरजेंसी लाइट की रौशनी में कुसुम का पसीने से भरा बदन चमक रहा था. दोनों हाथों को उठायें वो अपने बालों को चेहरे से हटा के पीछे कर रही थी. तभी निचे लेटे बूर में सटा सट लंड पलते हुए पापा की नज़र कुसुम के उठे हाथों की बगलों पर पड़ी. दोनों बगल में रेशमी बाल और बहता पसीना देख के पापा ने अपने हाथों को उसकी पीठ पर ले जा कर उसे अपने ऊपर खींच लिया. कुसुम की भारी चूचियां पापा के सीने से पूरी तरह से चिपक गई और पापा ने सर उठा के उसकी बगल से निकलती पसीने की खुशबू को एक लम्बी सांस लेते हुए सूंघ लिया. पसीने की गंध सूंघते ही पापा ने निचे से जोर की ठाप लगायी तो कुसुम की चीख निकल गई – ‘हाय…!! मर गई पापा…!!’…”.

इस अंश को याद करते ही पायल के मुहँ से हलकी सी आवाज़ निकल जाती है, “उफ़ पापा”. तभी उसके दोनों हाथ थम जाते है और आँखे झट से खुल जाती है. बड़ी बड़ी आँखों से वो ऊपर पंखे को देखने लगती है. दिल ऐसे धड़क रहा है मानो कोई ढोल बजा रहा हो. “ये मैंने क्या कह दिया? अपने ही पापा के बारें में….”. इतना कहते ही पायल की ऊँगली हरकत में आ जाती है और बूर के दाने को रगड़ने लगती है. दूसरा हाथ चूची को मसलने लगता है. उसकी आँखे एक बार फिर से बंद हो जाती है और उसके मुहँ से फिर एक आवाज़ निकलती है, “हाय पापा….सीssss….उफ़ पापाssss”. उसकी कमर ऊपर उठ जाती है और ऊँगली बूर के दाने को तेज़ी से रगड़ने लगती है. “बहुत गर्मी है पापा….ठंडा कर दीजिये ना….”. पायल के मुहँ से अब अपने पापा के लिए वो शब्द निकलने लगते है जो उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था. पापा के प्रति उसका प्यार अब धीरे धीरे हवस का रूप लेने लगा था. तभी पायल के कानो में दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ सुनाई पड़ती है. वो होश में आती है. किताब को तकिये के निचे झट से छुपा के पायल कड़ी हो जाती है और अपने कपड़े ठीक करते हुए दरवाज़े के पास जाती है.

पायल : (दरवाज़ा खोलती है) भाभी आप?

उर्मिला : (मुस्कुराते हुए खड़ी है) मैडम … आपकी आज की पढाई हो गई हो तो चाय पीने आ जाइये. सब आपका इंतज़ार कर रहे है.

पायल : (मुस्कुराते हुए) जी भाभी. ५ मिनट में आती हूँ.

उर्मिला : (जाते हुए) जल्दी आना, देर मत लगा देना.

पायल : जी भाभी …

दरवाज़ा बंद करके पायल अन्दर आती है. उसके चेहरे पर मुस्कान है. सामने आईने में अपने आप को देखती है. अपनी सुन्दरता और गदराये बदन को देख के पायल की मुस्कान और ज्यादा खिल जाती है. तभी पायल को उस कहानी का एक छोटा सा अंश याद आता है. जिसे याद कर के वो हँस देती है. आईने के थोडा करीब जा कर वो झुक जाती है. टॉप के बड़े गले से चुचियों के बीच की गहराई को वो आईने में देखते हुए वो एक हाथ आगे बढ़ाते हुए कहती है, “पापा आपकी चाय…”. फिर वो एक हाथ से अपना चेहरा छुपा के मुस्कुराते हुए बाथरूम में भाग जाती है.

अपडेट ९:

पायल बाथरूम से बाहर आती है. एक बार फिर वो अपने आप को आईने के सामने खड़े हो कर निहारती है. अपनी बड़ी बड़ी चुचियाँ देख कर मुस्कुराते हुए वो एक दुपट्टा लेती है और अपने कंधो पर डाल लेती है. तेज़ क़दमों से चलते हुए वो ड्राइंग रूम के पास आती है. सामने सोफे पर उमा देवी, सोनू और उर्मिला अपनी अपनी जगह पर बैठे है और चाय पी रहे है. पापा को वहां ना पाकर पायल की नज़रें उन्हें ढूंढने लगती है. नज़रे चारों तरफ घुमाते हुए पायल सोफे के पास जाती है और धीरे से बैठ जाती है.

उर्मिला : क्या देख रही हो पायल?

पायल : कुछ नहीं भाभी. वो पापा कहीं दिखाई नहीं दे रहे?

उमा :लो आ गई अपने पापा की लाड़ली….. बाथरूम गए हैं. अभी आ जायेंगे.

पायल मम्मी की तरफ देख के मुहँ बना देती है. उर्मिला किसी तरह अपनी हँसी को रोकती है. तभी उसकी नज़र सोनू पर जाती है. सोनू तिरछी नज़रों से दुपट्टे के निचे से पायल का उभरा हुआ सीना देखने की कोशिश कर रहा था. “शुरू हो गया बहनचोद , उर्मिला मन में सोचती है. तभी बाबूजी बाथरूम से बाहर आते है. उर्मिला उन्हें देख कर रसोई से उनके लिए चाय लेने के लिए उठने लगती है. तभी पायल उर्मिला का हाथ पकड़ के निचे बिठा देती है.

पायल : भाभी आप चाय पीजिये. पापा के लिए मैं चाय ले कर आती हूँ. (पायल रसोई में चली जाती है).

बाबूजी सोफे पर अपनी जगह आकर बैठ जाते है. उन्हें देख के उमा कहती है.

उमा : अरे …!! आप यहाँ क्यूँ बैठ रहें हैं? जाईये…अपनी पहलवानी कीजिये..

रमेश: देखो उमा..!! तुम मेरी कसरत पर नज़र मत लगाया करो मैं बोले दे रहा हूँ…

उमा : अजी मैं कहाँ नज़र लगा रही हूँ? मैं तो बस ये कह रहीं हूँ की सर के सारे बाल सफ़ेद होने को आ गए हैं, (सोनू के सर पर हाथ फेरते हुए) एक घोड़े और (रसोई की तरफ मुहँ बना के देखते हुए) एक गधी के बाप हो फिर भी आपकी जवानी ख़तम नहीं होती.

रमेश : (थोड़ी ऊँची आवाज़ में) गधा होगा तुम्हारा ये लाड़ला …. मेरी पायल बिटिया के बारें में कुछ मत बोलना….

उर्मिला : (हँसते हुए) बात तो बाबूजी की सही है मम्मी जी. पायल बेहद समझदार और सायानी लड़की है.

उमा : (हँसते हुए) ठीक है, फिर गधी नहीं तो घोड़ी हे सही…

उमा की इस बात पे सब हँस पड़ते है. उर्मिला रसोई में देखती है तो पायल चुप चाप एक कोने में खड़ी है.

उर्मिला : मम्मी जी main २ मिनट में आयी…

उर्मिला रसोई में पायल के पास आती है. उसके कंधे पर हाँथ रखते हुए कहती है.

उर्मिला : पायल…!! क्या हुआ? तू तो बाबूजी के लिए चाय लेने आई थी? यहाँ ऐसे सर झुकाए क्यूँ खड़ी है?

पायल का सर झुका है और नज़रें निचे रखे चाय के प्याले पर. वो कुछ क्षण वैसे ही प्याले को देखती है और कहती है…

पायल : कहानी और रियल लाइफ में बहुत फर्क होता है भाभी….

इतना कहते ही पायल की आँखे बड़ी हो जाती है. वो झट से बड़ी आँखों से उर्मिला की ओर देखने लगती है. उर्मिला पायल को देख मुस्कुरा रही है. पायल को अपनी गलती का एहसास होता है. उसने अनजाने में ही शायद पापा के लिए अपने जज़्बात को भाभी के सामने ज़ाहीर कर दिया था. वो जानती थी की जिस कहानी की किताब को पढ़ के उसके दिल में पापा के लिए भावनायें जागी थीं, वो किताब उसे उर्मिला ने ही दी थीं. पायल बड़ी बड़ी आँखों से उर्मिला को देख रहीं थीं. उर्मिला ने भी उसकी हालत समझते हुए उसे अपने सीने से लगा लिया. पायल भी भाभी के सीने में मुहँ छुपा लेती है. वो जानती है की इस वक़्त उसके मन में जो उथल पुथल हो रही है वो सिर्फ उर्मिला ही समझ सकती है.

उर्मिला : (पायल को अपने सीने से लगा लेती है) कोई बात नहीं पायल. ऐसा होता है. हर बात का एक समय होता है. शायद जो तू अभी चाह रही हो, उसका अभी ना तो समय हो और ना ही जगह.

पायल : (उर्मिला की बात सुन कर भाभी को देखते हुए) मैं कुछ समझी नहीं भाभी…उर्मिला पायल को देख के मुस्कुराती है. फिर उर्मिला पायल को उस दिशा में घुमा देती है जहाँ सोफे पर रमेश, उमा और सोनू बैठे हैं. पायल उन्हें देखने लगती है. उर्मिला अपना चेहरा पायल की कंधे पर लाती है और धीरे से उसके कान में कहती है.

उर्मिला : देख पायल, बहादुरी दिखाना अच्छी बात है लेकिन ये जरुरी नहीं की बहादुरी सबके सामने दिखाई जाए…(उर्मिला पायल की ठोड़ी पकड़ के सोनू और उमा की तरफ उसका चेहरा घुमाते हुए कहती है. फिर वो उसका चेहरा बाबूजी की तरफ घुमा कर कहती है) अगर अपनी मंजिल को पाना हो तो तू बहादुरी अकेले में दिखा, चालाकी के साथ.

पायल के लिए उर्मिला की वो बात किसी ब्र्हम्ज्ञान से कम ना थीं. बात समझते ही पायल के उदास चेहरे पर एक मुस्कराहट आ जाती है. वो शर्माते हुए फिर से अपना चेहरा उर्मिला के सीने में घुसा देती है.

पायल : भाभी….!!!

उर्मिला : (उर्मिला पायल का चेहरा हाथों से उठा के कहती है) समझ गई ना बन्नों?

पायल नज़रें झुकाये अपना सर हिला कर हामी भर देती है. उर्मिला उसका दुपट्टा ठीक करते हुए कहती है.

उर्मिला : अब जा और बाबूजी को चाय दे दे. और हाँ… बहादुरी अकेले में. सबके सामने वाला मोर्चा तेरी भाभी संभाल लेगी.

पायल भाभी को देख के हँस देती है और चाय का प्याला ले कर बाबूजी के पास जाती है. वो अब दुपट्टे को बिना गिराए बाबूजी को चाय देती है.

पायल : पापा… आपकी चाय…

रमेश : थैंक्यू बिटिया….क्या बात है? बड़ी देर लगा दी चाय लाने में?

पायल : वो पापा…वो…वो…

पायल समझ नहीं पा रही थीं की वो क्या जवाब दे. तभी उर्मिला पायल का हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोद में बिठा लेती है.

उर्मिला : वो वो क्या कर रही है? बता दे ना…. वो क्या है बाबूजी…पायल ने आपकी चाय में थोड़ा दूध डाल दिया था (उर्मिला दुपट्टे के निचे से पायल की चूची दबा देती है), इसलिए चाय गरम करने में देरी हो गई…

उर्मिला की इस हरकत से पायल के चेहरे का रंग उड़ जाता है. पर सबके सामने वो बेचारी करती भी क्या?

रमेश : (हँसते हुए) ओह अच्छा….

उर्मिला :चाय पी कर बताइए बाबूजी, दूध सही मात्रा में डाला हैं ना पायल ने?

रमेश : (चाय की एक चुस्की ले कर) वाह…!! मज़ा आ गया. दूध की मात्र बिलकुल सही है और स्वाद भी बहुत अच्छा है.

उर्मिला : देखा पायल..! दूध की मात्र भी सही है और स्वाद भी (उर्मिला एक बार फिर दुपट्टे के निचे से पायल की चूची दबा देती है. बेचारी पायल चुप चाप कसमसा के रह जाती है) बाबूजी, पायल अब बड़ी और सायानी हो गई है. कल मुझसे कह रही थी की, भाभी अब मैं पापा को भी बोझ उठा सकती हूँ…

ये सुन कर पायल हक्कि-बक्की रह जाती है. वो समझ नहीं पाती की क्या बोले और क्या करे. तभी उमा बोल पड़ती है.

उमा : बड़ी और सायानी नहीं, बड़ी घोड़ी कह उर्मिला. बड़ी घोड़ी है ये….

उर्मिला : तो ठीक है मम्मी जी… पायल घोड़ी बन के बाबूजी का बोझ उठा लेगी (उर्मिला धीरे से पायल की चुतड पर चुटकी काट लेती है)

इस बात पर सभी हँसने लगते है और पायल का बुरा हाल हो जाता है. उर्मिला के बात की गहराई और असली मतलब वो अच्छी तरह से समझ रही थी. वो चेहरे पर बनावटी हँसी ला कर सबका साथ देती है.

रमेश : देखो भाई..!! पायल घोड़ी बन के बोझ उठाये या कुछ और… मैं तो बस इतना जानता हूँ की मेरी पायल मेरा बोझ उठाने लायक हो गई हैं…

उर्मिला : (पायल के सर पर हाथ फेरते हुए) क्यूँ पायल? उठा लेगी ना पापा का बोझ?

पायल : जी ..जी भाभी…!! (पायल झट से खड़ी हो जाती है). अच्छा भाभी मुझे कॉलेज का कुछ काम याद आ गया. अब मैं चलती हूँ…(और पायल नज़रें झुका के तेज़ क़दमों से अपने कमरे की तरफ बढ़ने लगती है)

पायल के जाने के बाद सभी चाय पीते हुए हँसी मजाक करने लगते हैं. इधर पायल अपने कमरे में आती है. दरवाज़ा बंद करके वो बिस्तर के पास आती है. साँसे तेज़ है, चेहरे पर थोड़ी शर्म और मुस्कराहट. भाभी की दूध वाली बात याद कर के एक हाथ से अपनी चूची दबाते हुए वो हँस देती है. बिस्तर पर बैठते हे उसे भाभी की घोड़ी वाली बात याद आती है. वो धीरे से बिस्तर पर चढ़ती है और घोड़ी के अंदाज़ में बैठ जाती है. दिवार पर टंगे बड़े से आईने में वो अपने आप को देखती है. आईने में देखते हुए धीरे से वो अपनी चुतड को थोड़ा ऊँचा करती है. “हाँ पापा… मैं घोड़ी बन के आपका बोझ उठा सकती हूँ”, और वो शर्मा के बिस्तर पर गिर जाती है और अपना चेहरा तकिये में छुपा लेती है. कुछ देर वैसे ही वो बिस्तर पर पड़ी रहती है फिर तकिये के निचे से किताब निकाल के पन्ने पलटने लगती है. “पापा के लंड की सवारी” – पायल के चेहरे पर मुस्कान छा जाती है. धीरे धीरे समय के साथ पायल की टॉप उसकी बड़ी बड़ी चुचियों के ऊपर उठ जाती है और हाथ उन्हें मसलने लगते हैं और पायल उस कहानी की रंगीन दुनिया में खो जाती है.

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