अर्जुन तो अपनी दीदी की साँसों की गर्मी से सुन्न हो गया था जो सीधा उसके कान
की लौ पर महसूस हुई. वो कुछ ना बोला और सिर्फ़ अलका को उपर से नीचे एक बार देखा और फिर यहा वहाँ देखने
लगा. अलका अपने भाई की इस अदा पर मुस्कुरा उठी और उसने भी अपना ध्यान सामने की तरफ कर दिया.
“तू कब आई अलका? और ये जनाब कौन है?” एक बड़ी ही सुरीली आवाज़ पड़ी अर्जुन के कान मे तो उसने देखा के
2 लड़किया उसके और अलका दीदी के पास खड़ी है. और जिसकी ये आवाज़ थी वो एक मध्यम से कद की बेहद गोरी
लड़की थी. एकदम फक्क सफेद सी उस लड़की के कंधे तक तराशे हुए घने खुले बाल थे और उसने एक लाल
टॉप और नीला डेनिम पेंट पहना हुआ था. और साथ मे जो लड़की थी वो थोड़ी साँवली सी लेकिन भरे हुए शरीर
वाली थी. उसने एक चटख काला कमीज़ और सलवार पहना था. जहा उस गोरी की छोटी छोटी भूरी आँखें थी,
इस साँवली से लड़की की कुछ ज़्यादा ही बड़ी और काली थी. फिर अर्जुन ने संकोचवाश नज़रे खिड़की की तरफ कर
ली लेकिन कान उन्ही की तरफ थे.
“अर्जुन, इन से मिलो ये है आशा नेगी (गोरी) और ये है नुसरत ख़ान. दोनो ही मेरी क्लासमेट्स और पक्की दोस्त है.”
अलका ने जब ये कहा तो अर्जुन ने अपने दोनो हाथ जोड़ उनका अभिवादन किया जिसे देख दोनो हंस पड़ी.
“अर्रे अर्रे.. ये क्या कर रहे हो? क्या हम दोनो तुम्हे आंटियाँ लगती है जो हाथ जोड़ रहे हो.” ये बात कही थी
नुसरत ने और अपना हाथ आगे कर दिया.
“मेरा वो मतलब नही था.” झेन्पते हुए अर्जुन ने भी हल्के से अपना हाथ आगे बढ़ा लिया तो दोनो सुंदरियों ने
बारी बारी से उसका हाथ भींच लिया. “ये हुई ना बात.” कह दोनो ही उसको उपर से नीचे देखने लगी.
इधर अलका का नंबर आ गया था तो वो अपना काम करने लगी गई. यहा अर्जुन फँस गया था इन 2 बेबाक लड़कियों
मे.
“तो मिस्टर. अर्जुन क्या करते हो तुम?” ये सवाल किया आशा ने, सीधा अर्जुन के चेहरे को देखते हुए.
“जी अभी तो एग्ज़ॅम्स दिए है और कुछ ही दीनो मे स्पोर्ट्स अकॅडमी जाय्न करूँगा. 10 एप्रिल वापिस पढ़ाई और कोचैंग”
उसने झेन्पते हुए जवाब दिया. अर्जुन ज़्यादा ही शर्मा रहा था क्योंकि वो दोनो कुछ ज़्यादा ही खुलकर उसे ताड़ रही थी.
“ओह तभी इतना लंबे चौड़े हो. मतलब सिर्फ़ पढ़ाई और कसरत. कोई और खेल भी खेला है क्या कभी?” आशा के इतना
बोलते ही नुसरत भी खिलखिला के हंस पड़ी. लेकिन तब तक अलका का भी काम हो गया था.
“क्यों सता रही हो मेरे अर्जुन को तुम दोनो मिलकर? ये बिल्कुल शरीफ और प्यारा लड़का है.” बड़ी अदा से अलका ने उसका
बाजू अपने दोनो हाथो से थाम लिया.
“तो हमें भी एक मौका दे इसका प्यार देखने का. फिर पता चलेगा कितना शरीफ है.?” इस बात पे तीनो लड़किया हंस
पड़ी. और अलका ने कुछ सोच कर बोला, “चल यार एक बार प्रॅक्टिकल फाइल्स सब्मिट करवा देते है फिर कॅंटीन मे बात
करेंगे. और अर्जुन हम तीनो अभी वापिस आ जाएँगी तब तक तू यही रहना. हमारा डिपार्टमेंट सामने वाला ही है.”
ये बोलकर वो तीनो निकल गई और अर्जुन को पीछे छोड़ड़ गई हतप्रभ सा. जो अभी तक यही सोच रहा था कि सीधी
दिखने वाली ये लड़किया कितना बोलती है. और अलका दीदी ने उसको क्यो माना किया दीदी बोलने से? फिर अपने विचार वही ख़तम कर वो इधर उधर टहलने लगा. बिल्डिंग की सब तरफ अशोक, सफेदे और आम के पेड़ लगे थे. हर ब्लॉक मे
छोटे छोटे पार्क बने थे जहा बेंच भी लगे थे और अच्छी घँस भी थी, बिल्कुल सलीके से कटी . यूही टहलता
हुआ वो एक बेंच पे बैठ गया और पार्क मे बैठी हुई लड़कियों को देखने लगा. हर तरफ कई ग्रूप थे और सभी अपने
आप मे लगी हुई थी.
“आए लड़के तुम यहा क्या कर रहे हो?”, अर्जुन का ध्यान उसके बिल्कुल पीछे से आई जोरदार आवाज़ की तरफ गया तो उसने
देखा एक 40-42 साल की महिला बेहद ही सलीके से पहनी क्रीम कलर की साड़ी मे खड़ी थी. आँखों पे काले पतले
फ्रेम का चस्मा था और खुले बाल.
“जी मैं यहा मिस अलका शर्मा के साथ आया हू. वो अभी अपने फाइल्स सब्मिट करवाने गई है. बी एस सी ईस्ट एअर के ब्लॉक मे.”
अर्जुन ने हल्की घबराहट मे खड़े होते हुए जवाब दिया. उसको एहसास हो गया था कि ये एक टीचर है
और अर्जुन को ऐसे सावधान की मुद्रा मे खड़े देख उन मेडम का लहज़ा थोड़ा नर्म हुआ लेकिन अनुशाशित स्वर मे उसने कहा
“ठीक है ठीक है. लेकिन ज़्यादा इधर उधर मत जाना. ये गर्ल्स कॉलेज है तो यहा लड़के अलोड नही है.”
“जी फिर मैं बाहर ही खड़ा हो जाउन्गा.”
अर्जुन की मासूमियत देख वो मेडम भी मुस्कुरा दी और बोली, “बेटा ऐसी कोई बात नही है. तुम शरीफ हो और उमर भी
ज़्यादा नही लगती तुम्हारी. वो तो मैं इसलिए कह रही थी की यहा का माहूल थोड़ा खराब है. तुम्हारी सावधानी के लिए
मैने ऐसा कहा. तुम यही आराम से बैठो.” मेडम के इतना कहते ही वो वापिस बेंच पर बैठ गया. और तभी वही पे अलका
भी आ गई अपनी दोनो सहेलियों के साथ.
“गुड मॉर्निंग मेम. हम तीनो ने आपके सब्जेक्ट्स की प्रॅक्टिकल फाइल भी लब असिस्टेंट को सब्मिट करवा दी है. प्लीज़ थोड़ा
रहम करना.” अलका ने शोखी से ये बात कही तो उन मेडम ने उसका कान हल्के से खींचते हुए कहा, “तुझपे तो बिल्कुल
भी रहम नही होगा. लेकिन मुझे पता है मेरी लाडली ही टॉप करेगी.” इतना कहकर उन्होने अलका के सर पे हाथ फेरा और
फिर बोली, “क्या अलका इस मासूम से लड़के को तू यहा बिठा गई? और तुम दोनो भी तो थी कम से कम एक तो इसके पास रह ही सकता था. तुम्हे तो पता ही है डेंटल डिपार्टमेंट का हाल.”
“सॉरी मेम, जल्दी मे ध्यान ही नहीं रहा.” तीनो ने कान पकड़े तो मेडम ने हंसते हुए विदा ली वहाँ से.
“क्या कह रही थी गुप्ता मेडम अर्जुन?” अलका ने पूछा अर्जुन से लेकिन जवाब मिला आशा से
“और क्या कहेगी दिल आ गया होगा उनका इस्पे. वैसे भी तो हॅटा कट्टा है ये.” और फिर हँसी की आवाज़ गूँज उठी.
“अच्छा अब बहुत हुआ तुम दोनो अब कोई मज़ाक नही करोगी.” ये बात जब अलका ने कही तो उसकी आवाज़ नॉर्मल लेकिन 2 टुक थी.
और उन दोनो ने भी हाँ मे सर हिला दिया. “चल अब थोड़ी देर कॅंटीन मे चलते है फिर मुझे वापिस भी जाना है और अर्जुन
को भी काम है.” बोलकर अलका अर्जुन का हाथ थाम के चल दी पार्क के दूसरी तरफ जहा टीन की चद्दर से ढँकी एक
लंबी कॅंटीन बनी हुई थी. वो दोनो भी साथ चल दी.
“अच्छा अब बहुत हुआ तुम दोनो अब कोई मज़ाक नही करोगी.” ये बात जब अलका ने कही तो उसकी आवाज़ नॉर्मल लेकिन 2 टुक थी.
और उन दोनो ने भी हाँ मे सर हिला दिया. “चल अब थोड़ी देर कॅंटीन मे चलते है फिर मुझे वापिस भी जाना है और अर्जुन
को भी काम है.” बोलकर अलका अर्जुन का हाथ थाम के चल दी पार्क के दूसरी तरफ जहाँ टीन की चद्दर से ढँकी एक
लंबी कॅंटीन बनी हुई थी. वो दोनो भी साथ चल दी.
कॅंटीन का वातावरण भी उर्जा से भरपूर था. आमने सामने लगी कुर्सी टेबल्स पर बैठी लड़कियों का शोर, खाना पीना
और गपशप हो रही थी. ये चारो भी कोने की एक टेबल पकड़ के बैठ गये. अलका ने सबसे पूछा खाने का तो जहाँ
नुसरत और आशा ने कोला की फरमाइश रखी, अलका ने कोल्ड कॉफी की. अर्जुन काउंटर पे गया और वहाँ से 2 कोला, एक कोल्ड कॉफी और अपने लिए ऑरेंज जूस लेकर ट्रे सहित टेबल पे आ गया. उसको हर महीने जेबखर्ची मिलती थी जिसे वो जमारखता था. संजीव भैया से 200, 500 दादा जी की पेन्षन से, 300 अपने पिता शंकर जी से और 300 ही अपने ताऊ जी से.
आजभी वो घर से निकलते हुए 1500 रुपये पर्स मे लेके आया था क्योंकि ये शंकर जी की हिदायत थी की अगर कभी मार्केट
जाना हो या स्कूटर से जा रहे हो तो अपनी जेब मे हमेशा कुछ रकम रखनी चाहिए. यहा तो बिल भी कुछ खास नही आया
था सिर्फ़ 60 रुपये.
“तो आज की ट्रीट अलका के बाय्फ्रेंड की तरफ से है? मुझे तो लगा था कि ये अलका देगी अपने आने वाले जनमदिन की. क्योंकिपरसो तो छुट्टी है.” नुसरत ने इतना कहा तो अर्जुन और अलका एक दूसरे को देखने लगे, जो एक दूसरे की विपरीत दिशा मे बैठे थे.
आशा, जो अर्जुन के साथ बैठी थी उसने बात को और बढ़ते हुए कहा, “अर्जुन जी, इस से काम नही चलेगा. हमें तो पार्टी चाहिए. अभी इस से काम चला रहे है लेकिन एग्ज़ॅम्स के बाद हमें अपनी मर्ज़ी की पार्टी देनी पड़ेगी. नही तो भूल जाओ अलका को.” और दोनो लड़कियों ने आपस मे ताली मारी. यहा अर्जुन झेंप रहा था और उसका गला खुसक हो गया था ये सुनकर की दीदी ने अपनी सहेलियों को उसे अपना बाय्फ्रेंड बताया है..
“अर्रे बस भी करो अब. और ले लेना पार्टी जैसी मर्ज़ी. क्या याद करोगी किसी दिलदार से पाला पड़ा है.” ये बात अलका ने अर्जुन की तरफ स्माइल करते कही थी जिसे सुनकर एक बार फिर अर्जुन को झटका लगा. उसका जूस गले में ही अटक गया था. “ये सब क्या हो रहा है मेरे साथ. और दीदी भी” बस यही सोच रहा था वो के तीनो उठ खड़ी हुई. उसने देखा तो उसका गिलास भी खाली हो चुका था.
“अच्छा तो अब हम निकलते है. टाइम भी हो गया है काफ़ी. एग्ज़ॅम्स मे मिलते है नही तो टेलिफोन पर बात हो ही जाएगी.”
अलका ने कहा और उन दोनो ने अलका और अर्जुन से हाथ मिलाया. हाथ मिलते हुए नरगिस ने अर्जुन की हथेली सहला दी औरनज़दीक आकर कहा , “तुम भी फोन कर सकते हो. अलका की कॉलेज डाइयरी के पीछे नंबर है मेरे घर का. रात मे अकेली ही होती हू मैं.”
अर्जुन तो बेचारा पानी पानी हो गया था ये सुन कर. वो तो अच्छा हुआ अलका ने उसका हाथ खींचा और चल दिए गेट की तरफ. दोनो बिल्कुल किसी प्रेमी जोड़े की तरह चल रहे थे. जहाँ अर्जुन सीधा चल रहा था वही अलका ने उसके बाह को थाम रखा था. बाहर आए तो एक बार फिर अलका ने सर पे दुपट्टा लिया और अर्जुन के पीछे बैठ गई.
————————————————————————————————————————–“भाई तुझे बुरा तो नही लगा आज जिस तरह से मैने तुझे मिलवाया अपनी फ्रेंड्स से?” स्कूटर के चलते ही अलका ने अर्जुन के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा. अब वो बड़े ही आराम से उस से चिपक कर बैठी थी.
“देख भाई हमारी दुनिया कुछ ज़्यादा बड़ी नही है. घर के काम, कॉलेज और घर. बस यही दुनिया है. और वो दोनो भी बढ़ी अच्छी लड़कियाँ है. हा आपस मे सब मज़ाक चलता है लेकिन किसी का भी चरित्र खराब नही है.” उसने अपनी बात बढ़ाई.
अर्जुन भी यही सोच रहा था कि उसकी चारों दीदी को कितनी थोड़ी सी आज़ादी तो मिलती है. कही कोई दोस्त नही ना कही आना जाना. वो तो फिर भी घूम लेता है, भैया के साथ बाहर चला जाता है. जो भी करना चाहता है उसके दादा जी उसका साथ देते है. बिना माँगे उसको इतना जेबखर्च और सुख मिलता है. दीदी लोग तो हर चीज़ पर निर्भर करती है. कितनी अजीब है इनकी जिंदगी. लड़की होने का मतलब इतनी बेड़िया, इतनी बंदीगई. पता नही उसको क्या सूझा और उसने स्कूटर घूमा दिया मॉडेल टाउन मार्केट की तरफ. जहाँ बड़े बड़े शोरुम और खाने पीने की अच्छी मार्केट थी.
“ये हम कहाँ जा रहे है? ये रास्ता तो घर की तरफ नही जाता भाई? और तू किसी बात का जवाब क्यो नही दे रहा?” अलका ने
घबराहट मे कई सवाल कर दिए लेकिन अर्जुन बस हल्का हल्का मुस्कुरा रहा था. और 5 मिनिट बाद वो दोनो खड़े थे एक बड़े
शोरुम के सामने.
“चलो आप मेरे साथ आओ यहा.” इतना कहकर अर्जुन ने अलका का हाथ पकड़ा और चल दिया उस शोरुम के अंदर. अलका हैरान होते हुए खीची चली गई.
“एक अच्छा सा गर्ल’स टॉप दिखाए ज़रा.” अर्जुन ने काउंटर पे खड़े लड़के से कहा तो अलका का ध्यान गया. हर तरफ रंग बिरंगे
टॉप्स, टी शर्ट्स , सूट लगे थे. ऐसा नही था कि रामेश्वर जी के बच्चों को अच्छे कपड़े नही मिलते थे. लेकिन ज़्यादातर सलवार कमीज़, त्योहार पे सारी वैईगरह ही होते थे. बेशक वो महँगे होते थे लेकिन कुछ ज़्यादा खुलापन नही था. रात के टाइम या घर मे ज़रूर लड़कियाँ टी शर्ट/कमीज़ और पाजामा पहाँ लेती थी. लेकिन चुस्त जीन्स, छोटे टॉप्स ऐसा कुछ नही मिलता था.
यहा अर्जुन ने अपनी मर्ज़ी से 2-3 टॉप सेलेक्ट किए तो काउंटर वाले लड़के ने एक असिस्टेंट लड़की को बुलाया.
“मेम, क्या साइज़ आता है आपको?” उस लड़की ने पूछा अलका से तो घबराहट मे अलका ने जवाब दिया 36-डी और वो लड़की थोड़ा हंस दी. “मेम मेरा मतलब है के लार्ज, मीडियम या स्माल. “
“पता नही.” अलका ने झिझकते हुए कहा तो वो लड़की माप लेने वाला फीता लेके बाहर आई और अलका के कंधे और छाती का नाप लेने लगी. “मुझे लगता है आपको ‘एल’ साइज़ आएगा. फिट ना हो तो हम बदल देंगे.”
इतना कहकर उसने अर्जुन के पसंद किए टॉप्स के ‘एल’ साइज़ निकलवाए और अलका को दिखाने लगी. “मेम पसंद कीजिए.”
अर्जुन भी यहा अलका की हेल्प करने लगा क्योंकि उसके पास टी शर्ट्स का अंबार लगा था घर पे.
अलका को एक हल्का गुलाबी टॉप पसंद आया लेकिन इसका गला थोड़ा ढीला और कमर पे एलास्टिक था. उसके उपर कपड़ो की कतरन लटक रही थी और दोनो कंधो पे कट थे.
“ये वाला पॅक कर दीजिए.” अर्जुन ने बिना अलका को देखे वो टॉप पॅक करवा दिया. “और एक जीन्स भी दिखा दीजिए इनके लिए”
लड़की ने फिर से अलका का माप लिया. “राजू 28 वेस्ट की जीन्स लाना.” उस लड़की ने बोला तो अर्जुन को पता लगा की अलका दीदी की कमर 28 है. एक गहरी नीली स्किन फिट जीन्स अर्जुन ने पसंद की और उसको पॅक करवा लिया.
“कितना हुआ?” अर्जुन ने मुख्य काउंटर पे पूछा तो अलका अपना पर्स खोलने लगी.
“1150/-” और अर्जुन ने 1200 रुपये काउंटर पे दे दिए और बॅग ओर छुट्टा वापिस लेकर बाहर आ गया.
“ये सब क्या था अर्जुन?” अलका थोड़ा नाराज़गी से बोली
“अब अपनी इतनी खूबसूरत गर्लफ्रेंड के बर्तडे के लिए कुछ तो प्रेज़ेंट लेना ही चाहिए या नही.?” अर्जुन ने ज़रा मज़ाक मे ये बात कही तो अलका का गुलाबी चेहरा एकदम लाल हो चुका था. उसके मूह से कोई बोल ना निकला. ये देख पहली बार अर्जुन के दिल की धड़कन कुछ अलग सी धड़कती महसूस हुई. जैसे ये मुस्कुराहट दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ उसने देखी हो.
प्यार से दीदी के गाल पे हाथ रखते हुए उसने कहा, “चले घर या अभी आपने कुछ और भी लेना है.”
“नही. चल घर चलते है देख एक बज चुका है.” इतना कहते हुए भी अलका का सर नीचे था और पैर की उंगलिया सैंडल को कुरेद रही थी. वो शरमाती हुई सी अर्जुन के पीछे बैठ गई और अर्जुन ने स्कूटर आगे बढ़ा दिया. अब वो बड़े ही आराम से स्कूटर चला रहा था.
“वैसे दीदी एक बात पुच्छू? बुरा नही मानोगी तो ही पूछूँगा.” अर्जुन ने कुछ सोचते हुए बोला
“हा तेरी बात का बुरा क्यो मानूँगी? पूछ.”
“दीदी ये 36-डी क्या मतलब हुआ? जब आपने उस शोरुम वाली लड़की को बोला तो मुस्कुराइ भी थी.”
“इसका कोई मतलब नही होता. और मुझे क्या पता वो क्यो मुस्कुरा रही थी.” अब तो अलका का चेहरा लाल भी था और पसीने से भीग भी गया था.
“कोई बात नही. नही बताना तो सीधा मना कर दो. मैं नही पूछता.” इतना बोल अर्जुन चुपचाप स्कूटर चलाने लगा. स्पीड भी थोड़ी तेज़ हो गई थी..
2 मिनिट भी अलका को किसी काँटे से चुभ रहे थे तो वो खुद ही बोल पड़ी. “मेरा प्यारा भाई नाराज़ है?”
“नही तो मैं किस लिए नाराज़ होऊँगा?” अर्जुन ने सपाट सा जवाब दिया.
“भाई देख ये बात कोई लड़की किसी लड़के से नही करती. लेकिन मैं तुझे नाराज़ नही देख सकती. ये जो मेरा सीना है ये उसका माप है 36”. अलका ने काँपते होंठो से अपनी बात कही तो अर्जुन से स्कूटर की स्पीड कम हो गई.
“दीदी ऐसे तो मेरा भी 42″ है. लेकिन ये डी क्या होता है.” उसने फिर ना समझी मे सवाल कर दिया.
“वो.. वो लड़किया जो अंदर पहनती है ये उसका साइज़ होता है.” शरम से अलका अंदर गढ़ी जा रही थी ये बात कहते हुए
“क्या अंदर और ये डी ही क्यो होता है.?”
“देख भाई जो हम लड़किया सूट के नीचे पहनती है उसको ब्रा बोलते है. और ब्रा का साइज़ सबका एक जैसा नही होता. मेरा डी है.बस इतना ही है ये.” अब तो अलका की साँसें बहक ही गई थी लेकिन अर्जुन के तो और सवाल पैदा हो गये.
“मतलब सबका डी क्यो नही होता? क्या फरक है इसमे?”
“अच्छा अब मैं जो बोलूँगी उसके बाद कोई सवाल नही करेगा. चुप चाप सुनेगा.”
ठीक है दीदी.”
“देख मेरा सीना भारी है तो जो ब्रा का कप साइज़ मुझे आता है वो डी साइज़ है. और जो मेरे सीने की साइज़ है वो 36 इंच है, जैसे तेरी 42 है. लेकिन लड़कियों का सीना अलग होता है तो उन्हे उसके आकर के हिसाब से कप लेना पड़ता है.
ए सबसे छोटा कप होता है, फिर बी, फिर सी और ऐसे ही साइज़ के हिसाब से. ऋतु का 34-सी है जो मुझसे छोटा है लेकिन माधुरी दीदी का 38- एफ है क्योंकि उनका हम सब से बड़ा साइज़ है. अब मिल गये जवाब तो सीधा घर चल.” इतना बोलकर अलका एकदम शांति से अर्जुन के पीछे चिपक कर बैठी रही. और अर्जुन भी खामोश सा चलाता रहा स्कूटर. घर बस थोड़ा ही दूर था के अर्जुन ने फिर से ये शांति भंग की. “वैसे दीदी आप हो बड़ी खूबसूरत. और आप जैसी लड़की अब मेरी गर्ल फ्रेंड है ये सोच कर ही दिल झूम रहा है मेरा.” उसने ये बात दोनो के बीच फैली गंभीरता को कम करने के हिसाब से कही थी. और ऐसा हुआ भी.
“मैं और तेरे जैसे बंदर की गर्लफ्रेंड. कभी सपना भी मत देखि ओ, बड़ा आया बाय्फ्रेंड.” बड़ी शोखी से अलका ने ये बात कही थी लेकिन अंदर ही अंदर उसका दिल ज़ोर से धड़क रहा था. जैसे एक नया अंकुर उगना शुरू हुआ हो उसके दिल मे अर्जुन के नाम का. सुबह जो सब एक मज़ाक से शुरू हुआ था और फिर अर्जुन का उसकी हर बात मानना, इज़्ज़त देना, बिना गये गिफ्ट दिलाना और प्यार से उसकी बात समझना. ये सब अलका के दिल मे पक्की स्याही से छप चुका था. और दोनो घर पहुच गये. अलका कपड़े वाले बॅग लेकर हेरानी से दौड़ती अंदर चली गई और अर्जुन स्कूटर को अंदर खड़ा कर चल दिया घर की बैठक मे.