अर्जुन ने एक बार प्रीति को देख और फिर मेनू पर नज़र डाली. “मेरे लिए मिल्क बादाम. बस और कुछ नही.” बैरा उनका ऑर्डर लेकर चल दिया 10 मिनिट का बोल कर.
“कैसा लगा यहा आकर?” प्रीति ने ये सवाल किया.
“पहले तो लगा था कि मल्होत्रा अंकल ने कहा फँसा दिया. फिर तुम पर बिनवाजह थोड़ा गुस्सा आया था.
लेकिन अब सोच रहा हूँ तो अच्छा लग रहा है. आज पहली बार मैं थोड़ा आज़ादी से घूम रहा हूँ.”
“तुम्हे शायद खुद की आदत हो गई है. मेरा मतलब ये था की मेरे साथ आकर कैसा लगा.” नौटंकी करने लगी थी प्रीति अब अर्जुन के साथ
और उसने भी बखूबी कहा, “कॉल अंकल ने कभी कोई सही काम किया है क्या? आज तुम्हारे साथ भेज दिया समान उठाने के लिए.” और हँसने लगा.
“कितना सॉफ दिल है ये. आज भी वैसा ही है. दुनिया बदल गई लेकिन शायद इसका वक्त आज भी वही रुका हुआ है. बच्चों की तरह सॉफ, सीधा और निर्मल.”
उसको हंसता देख वो लड़ने की जगह बस एकटक देखती रही.
“लीजिए आपका ऑर्डर.”
प्रीति खाने लगी और अर्जुन आराम से अपना मिल्क बादाम पीने लगा. प्रीति ने उस से भी पूछा की वो उसके साथ खा ले. लेकिन उसका मन नही था. वहाँ से फारिग होकर उन्होने अर्जुन के लिए 2 जोड़ी कपड़े लिए जो प्रीति ने पसंद किए. अर्जुन ने भी खुद से उसको एक अच्छी सी हाफ पैंट जो जीन्स के कपड़े से बनी थी दिलवाई.
प्रीति ने सिर्फ़ एक बार उसको देखा था की अर्जुन ने अगले ही पल सिर्फ़ इतना पूछा था, “तुम्हारी वेस्ट कितनी है?”
“28” और उसने दुकान के अंदर जा कर वो गर्ल’स डेनिम शॉर्ट ले लिया था. अब तकरीबन 3 बज चुके थे और अर्जुन दोनो कंधो पर समान लादे प्रीति के साथ सबसे पहली दुकान की ओर चल दिया. वहाँ सूट तैयार और पॅक था. उसको लेकर दोनो जिस दिशा से आए थे उधर चल दिए.
“ये सब आएगा कैसे?” अर्जुन ने जब इतना समान देखा तो खुद से ही कहा.
“एक काम करो, ये समान और चूड़ियों वाला बैग तुम सामने स्कूटर के बॉक्स मे रख दो. तुम्हारे ड्रेस वाला बैग मेरे बैग के साथ आगे हुक के डाल दो और ये शादी वाला लहंगा मैं पकड़ कर बैठ जाउन्गी.”
नारी सर्वोपरि.. मतलब औरत के पास सब समस्या का हाल होता है. और अर्जुन ने ठीक वैसा ही किया.
अब स्कूटर पर प्रीति पहले से अलग तरह से बैठी थी. उसका हाथ अब अर्जुन की कमर पर था और दूसरे हाथ मे लहंगे वाला पॅकेट. दोनो निकल पड़े
वापिस घर की तरफ. कुछ ख्वाब अनकहे से ले कर.यहा मल्होत्रा जी घर अच्छी ख़ासी भीड़ लगी थी. हर तरफ चहल पहल थी और शोर हो रहा था. अर्जुन और प्रीति अंदर आए तो इधर उधर देखने लगे. आँगन मे घर की औरते गीत गा रही थी और लकड़ी के फटटे पर बैठी पलक दीदी के हल्दी रसम कर रही थी. एक फोटोग्राफर वहाँ फोटो खींच रहा था. घर मल्होत्रा जी का भी अच्छा ख़ासा था और उनका परिवार भी काफ़ी बड़ा था, जैसा आमतौर पर पंजाबी परिवार होते है.
“आओ बेटा खड़े क्यो हो वहाँ? चलो इधर आकर कुछ चाय नाश्ता करो पहले.”ये मल्होत्रा जी की श्रीमती कामिनी जी थी. खूब बन- ठन कर ये बस यहा वहाँ सब काम देख रही थी तो आँगन के पास चुपचाप खड़े अर्जुन और प्रीति को देखा तो उन्होने प्यार से उन्हे अपनी तरफ बुलाया.
“नही आंटी जी पहले ही बहुत टाइम हो गया है. बस ये समान देना था आपको. वैसे भी रात को तो फिर मिलना ही है.”, प्रीति ने लहंगे के पॅकेट को उन्हे देते हुए कहा. साथ ही अर्जुन ने वो मेकप के समान वाला थैला और पैसे उनके और बढ़ा दिए.
“शुक्रिया बेटा जो तुमने मेरा काम आसान कर दिया. घर मे कोई भी आदमी फ्री नही था तो तुम्हे कष्ट दिया.” उन्होने समान लेते हुए अपने साथ खड़ी एक लड़की को थमाया और पैसे अपने पर्स मे रख लिए.
“कैसी बात करती हो आंटी जी आप. क्या हमारा कोई हक़ नही इतना सा काम करने का भी?” प्रीति ही
बोल रही थी. “चलो अर्जुन अब मुझे घर छोड़ दो. वहाँ भी काफ़ी काम है अभी.” उसने अर्जुन को बोलते हुए ही इशारा किया बाहर चलने का.
एक बार फिर आंटी के पैर छू कर अर्जुन वही से बाहर की तरफ चल दिया.
“ये सब क्या था? वो सब लॅडीस दीदी के वो रंग और तेल क्यो लगा रहे थे?” अर्जुन ने कौतूल वश पूछ ही लिया
और स्कूटर पर उसके पीछे बैठती प्रीति ने भी मुस्कुराते हुए कहा, “तुम्हे लगे गी जब पता कर लेना. रस्मे होती है घर मे बहुत सारी लेकिन तुमने कभी घर मे समय बिताया हो तो ना”
दोनो अब कॉल अंकल के गेट के बाहर थे. “अच्छा एक बार अपना वाला बैग देना ज़रा.” प्रीति ने अर्जुन से अपना शॉपिंग बैग लिया और अर्जुन ने स्कूटर के बॉक्स को खोल कर बाकी समान भी उसकी तरफ बढ़ाया.
“मेरे बैग मे अब क्या रह गया देखना? उसमे तो मेरा ही समान है ना?” ये बात थोड़ी हंसते हुए कही तो प्रीति को भी समझ आ गया के अर्जुन अब उस से मस्ती कर रहा है.
“अब नही देना तो ठीक है. लोग शायद तोहफा खरीद कर अपने पास ही रख लेते है.” इतना कह कर वो स्कूटर के सामने से होकर जाने लगी
तो अर्जुन ने समझा के गुस्सा हो गई. जल्दबाज़ी मे उसने प्रीति का हाथ पकड़ लिया. “मेरा मतलब ये नही था. वो तो बस मैं मज़ाक कर रहा था.” थोड़ा सीरियस हो कर उसने ये कहा और प्रीति पलट कर हँसने लगी..
“शकल देखो ज़रा तुम्हारी कैसे एकदम 12 बज गये है. मज़ाक सिर्फ़ तुम कर सकते हो.”
और फिर उसके हाथ से बैग लेकर सबसे ऊपर वाले पॅकेट को निकल अंदर चल दी बिना फिर वापिस मुड़े.
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“आ गया बेटा?” रामेश्वर जी कौशल्या देवी के साथ आँगन मे कुर्सी डाल कर बैठे थे. वही पर 3 और लोग थे लेकिन अर्जुन उनको नही जानता था. उसने बस शिष्टाचार से उनको नमस्कार कर दिया.
“जी दादा जी. और सब समान मैने उनके घर दे दिया है. थोड़ा थक गया हूँ तो उपर आराम करने जा रहा हूँ.” सामने वाली सीढ़ियो से वो उपर चल दिया. सारा समान अपनी अलमारी मे अच्छे से रखा और फिर कपड़े बदल कर बिस्तर पर लेट गया.
“मल्होत्रा अंकल के घर आज संगीत है तो फिर तो घर के सभी लोग भी जा रहे होंगे.” उसने यही सोचा तो अपने आप वापिस उसके कदम पिछले आँगन की तरफ बढ़ गये. नीचे उतर कर देखा तो सिर्फ़ ललिता जी ही रसोईघर मे थी और उन्होने उसको बस प्यार से देखा. उनकी आँखों और चेहरे पर चमक थी लेकिन अर्जुन इस सब बदलाव को कहा समझता.
“वो ताइजी सब लोग कहा है.?” उसने इतना ही पूछा की कोमल दीदी के कमरे से हँसने की आवाज़ आई. ताईजी ने भी इशारा वही कर दिया और फिर वापिस काम मे लग गई.
वो शायद बाहर आए हुए मेहमानो के लिए चाय पानी का इंतज़ाम कर रही थी.
“दरवाजा तो खोलो. बंद क्यो किया है?” अर्जुन ने दरवाजा थपथपाया तो अंदर से आवाज़ आई, “कुछ ज़रूरी काम है क्या तुझे?”
ये तो माधुरी दीदी है ये भी अंदर है?” उसने मन मे सोचा और कहा, ‘हा ज़रा दरवाजा तो खोलिए एक बार.”
कुछ देर मे ऋतु दीदी ने दरवाजा खोला. उन्होने अपने बाल बाँधे हुए थे और एक बिना बाह की पुरानी टीशर्ट और एक ढीला पाजामा पहना था. “हा बोल क्या काम है तुझे?” अपनी कमर पर हाथ रख उन्होने ये बात कही. दोनो हाथ उनकी कमर पर थे जैसे वो दरवाजे के अंदर का कोई राज छुपा रही हो.
“ये सब लोग अंदर क्या कर रहे है? और मा भी अंदर है शायद.” उसने अंदर की झलक देखी तो उसको पूरा बिस्तर 4-5 लोगो से भरा दिखा लेकिन इतना भी कुछ सॉफ ना था. फिर ऋतु दीदी के पीछे कमरे की ज़मीन पर कुछ कपड़े की कतरन सी पड़ी थी जिनपर कुछ लगा था, ऋतु ने उसकी नज़ारो का पीछा किया तो हंसते हुए दरवाजा बंद किया और बोली, “चल भाग यहा से बड़ा आया व्यॉमुकेश बक्शी. कोई काम वाँ नही है बस ये देखना है की कमरे मे हो क्या रहा है. “
दीदी की बात सुनकर कुछ सोचता हुआ वो चलने लगा तो अब ताईजी ने आवाज़ दी, “बेटा ये ज़रा बाहर पकड़ा दे तो.”
अब अर्जुन रसोईघर मे दाखिल हो कर ट्रे लेने लगा तो देखा की ताईजी के हाथ पर हल्की सी लाली चाय थी और वो जगह बिल्कुल बेदाग सी थी, लेकिन दूसरा हाथ पर अभी कुछ हल्के बाल से थे.
“आपके हाथ पर कुछ गरम गिरा है क्या?” अर्जुन की बात का आशय समझ ललिता जी ने उसके सर पर चपत लगाई और उसको हैरान छोड़ कर वो भी दीदी वाले कमरे मे चली गई. बेचारा समझ कुछ ना पाया था तो ट्रे लेकर बाहर चल दिया.
……………………..इधर कर्नल पुरी के घर भी कुछ शांति सी थी. कॉल साहब अपने कमरे मे थोड़ा आराम कर रहे थे क्योंकि उनको पता था कि रात को आज दोस्तो के साथ जाम टकराएँगे. और अपने कमरे के अंदर बैठी प्रीति खरीदे हुए कपड़ो को निहार रही थी. कभी वो चूड़ियों को देखती तो कभी पायल की जोड़ी को. फिर कुछ सोचकर वो बाथरूम के अंदर चली गई बाहर निकली तो एक शॉर्ट निक्कर और बिना बाह की टीशर्ट मे थी. कमरे मे अलमारी पर लगे आदमकद शीशे मे खुद को ध्यान से देखा. बिल्कुल पास खड़ी वो अपनी बाह और टाँगो को देख रही थी. फिर अपनी कपड़ो के साथ वाली अलमारी खोली और उसमे से कुछ अलग अलग ट्यूब और डिब्बीया बिस्तर पर रखी और एक पॅकेट सा भी निकाला.
” पार्वती दीदी.. इधर आना ज़रा.” उसकी आवाज़ रसोईघर मे सफाई करती पार्वती ने सुनी और फिर
प्रीति के कमरे मे चली आई. “जी दीदी कहिए.”
“यहा आओ तो और दरवाजा बंद कर दीजिए.” उसने प्यार से पार्वती को समझाया.
“एक पानी का मग बाथरूम से ले आइए और सॉफ्ट टवल भी.” पार्वती भी तुरंत ही समान ले आई.
“पहले बस हल्के गीले तौलिए से मेरी बाह और गर्दन सॉफ कीजिए और फिर ये क्रीम हल्के हाथो से लगा दीजिए.” प्रीति ने एक ट्यूब पार्वती की तरफ बढ़ा दी.
अगले 10 मिनिट मे पार्वती ने उतना कर दिया. “दीदी और भी कही?”
“हा यहा पैरो पर भी कर दो.” पार्वती पहले वाला ही सब दोहरा रही थी और प्रीति अब उस पॅकेट से कुछ गीले टिश्यू निकाल कर अपनी बाह और गर्दन सॉफ करने लगी.
“दीदी एक बात कहूं ?” पार्वती ने थोड़ी शरम से कही ये बात तो प्रीति ने मुस्कुराते हुए गर्दन हा मे हिलाई.
“दीदी आपके पैर ना बहुत खूबसूरत है और मांसल होने के साथ कितने लंबे भी है. कही भी कुछ हल्का सा ज़्यादा या कम नही है. और वैसे ही आपकी बाहें और गर्दन भी है.”
“चल कुछ भी बोलती है.इतना कुछ खास नही बस ये ज़रूर है के टेन्निस खेलने से थोड़ी मजबूत हो गई है.” और फिर उसने अपनी टीशर्ट भी उतार दी.
बेदाग सुडोल जिस्म और हर अंग जैसे तराशा हुआ था. पेट भी ऐसा था कि उसपर कही कोई चर्बी ना थी. हल्की मासपेशियो की झलक मिल रही थी जो उसके उभरे यौवन को और बढ़ा रही थी. लेस वाली सफेद आधे कप की ब्रा मे उसके उभार सर उठाए खड़े थे. प्रीति का शरीर और अंगो को देख कर लड़की होते हुए भी पार्वती को जैसे उसके शरीर की तरफ खींचाव सा होने लगा था.
“पार्वती यहा पीठ और पेट पर भी कर देना.” इतना बोलकर प्रीति पेट के बल नरम बिस्तर पर पसर गई.
पार्वती के हाथ जैसे अपने आप ही उसके शरीर पर रेंग रहे थे. सख़्त जांघे लेकिन उसपर बालरहित मुलायम खाल किसी माखन से लग रही थी पार्वती को. दोनो हाथो से अच्छे से जैसे वो क्रीम से मालिश करने लगी थी. जाँघो के जोड़ के पास जैसे ही हाथ पहुचे प्रीति की आवाज़ ने उसको चेताया. “बस दीदी अब उसको सॉफ कर दीजिए और यहा मेरी पीठ पर सॉफ करके क्रीम लगा दीजिए.”