बेहतर होने की शुरुआत
“तो बेटा आज तुम्हारी मुलाकात हो गई पंडितजी के पोते से. कैसा लड़का है?”, कर्नल पुरी यहा अपने कमरे मे थे और उनके सामने ही कुर्सी पर प्रीति बैठी हुई थी. कर्नल पुरी एक रोबदार व्यक्ति थे. अच्छी शकल सूरत और कद काठी के धनी. उनके व्यक्तित्व को घनी सफेद मुच्छे और भी बेहतर बनाती थी. इनका एक बेटा और एक बेटी थे. बेटा अमेरिका रहता था अपनी बीवी संग लेकिन उनकी पौती यही उनके साथ रहकर पढ़ाई के साथ साथ अपने दादा जी का भी ख़याल रखती थी. ये परिवार थोड़ा समय से आगे था या ये कहे की शिक्षित भी था और पश्चिमी सभ्यता का थोड़ा असर भी दिखाई देता था इनके रहने और जीने के तौर तरीके पर. प्रीति की मा एक खूबसूरत पढ़ी लिखी ग्रीक महिला थी और नाम था रोमेला (रोमा शॉर्ट). एम बी ए प्रोग्राम के लिए जब प्रीति के पिताजी लंडन थे तब वही दोनो की मुलाकात हुई फिर प्यार और कर्नल पुरी की रज़ामंदी मिलने से दोनो ने शादी कर ली थी. समय से इनके 2 बच्चे हुए प्रीति और उस से 4 साल छोटा बेटा जोवल, जो अपने मा-बाप के साथ ही रहता था.
कॉल साहब की बेटी उनकी जान थी जिसका विवाह उन्होने एक आर्मी के कॅप्टन से करवाया था जो अब मेजर के ओहदे पर देहरादून पे पोस्टेड था. बेटी तकरीबन 36-37 साल की थी जिसका नाम रेणुका था और पति मेजर. कौशल, इनके एक ही बेटा है जो देहरादून आर्मी स्कूल मे पढ़ता है. महीने मे एक बार रेणुका अपने पिता से मिलने ज़रूर आती थी. वापिस कहानी की तरफ आते है.
“अच्छा लड़का है दादाजी लेकिन ऐसा लगता है शायद वो यहा का नही है. मेरा मतलब है की शायद उसको लाइफ के बारे मे उतना नही पता जितना इस उमर के लड़को को पता है.” प्रीति अपने दादा कर्नल पुरी को विस्की की घूँट भरते देख बोली.
“हा बेटा. मेरा दोस्त जो मुझसे कुछ छुपाता नही है. उसने ही ये बात कही थी मुझसे की पहली बार वो ऐसी स्टेडियम जैसी एक अलग दुनिया मे जा रहा है जहाँ हर तरह के लोग मिलते है लेकिन अर्जुन जो 9 साल सिर्फ़ बाय्स हॉस्टिल, वो भी किसी आर्मी के जैसी अनुशाशण वाला, मे पढ़ा है. उसको तो अपने शहर, लोगो, अच्छाई बुराई का भी नही पता.” गंभीरता से उन्होने सब बताया अपनी होन हार लाडली को.
“9 साल वो भी बचपन और इस यूत के?”, आश्चर्य से प्रीति ने बात दोहराई
“हा बेटा. पंडित जी बड़े नेक इंसान है लेकिन जैसे ही मैं तुहारे लिए परेशान होता हू वैसे ही वो भी अपने इस बच्चे के लिए रहते है. तुम खुद ही देखो की तुम खुद कितनी अलग हो यहा के लोगो से. लेकिन तुम फिर भी बाहर से अलग हो वो बेचारा अंदर से भी अलग है. बड़ी मुश्किल से बचा तो वो जब पैदा हुआ था. और फिर अर्जुन के बाप ने उसको घर से दूर भेज दिया वो भी इतने समय के लिए. देखा जाए तो जितना उसको बताया जाता है वो उतना ही समझता है. अब तुम्हे थोड़ा साथ देना है मेरी बच्ची इस लड़के को दुनिया मे खड़ा करने मे. पंडित जी मेरे लिए भाई से बढ़कर है और उनकी ही वजह से आज तुम्हारा ये दादा जिंदा भी है और इसकी वर्दी बेदाग भी.” एक बड़ा घूँट लेकर खाली गिलास वही टेबल पर रख वो रात के खाने के लिए डाइनिंग टेबल की तरफ चल दिए और पीछे रह गई सोच मे डूबी हुई प्रीति.
कॉल साहब के घर का सारा बाहर का काम नौकर मुकेश करता था और घर का खाना, सफाई और देख भाल उसकी पत्नी पार्वती करती थी. दोनो के लिए उपर एक कमरा बनवा दिया थे कर्नल पुरी ने.
इनका घर भी अंदर से काफ़ी आलीशान था. 5 कमरे और एक बड़े ड्रॉयिंग रूम वाले इस घर मे सुख सुविधा की हर चीज़ थी. महाँगा टेलीविजन, बड़े सोफे, झूमर, बेहतरीन कालीन, प्रीति के कमरे मे एक ख़ास बेड लगा था और एक कंप्यूटर भी, जो उस समय सिर्फ़ किसी अमीर घर मे ही होता था. घर के पिछले हिस्से को उपर से कवर किया हुआ था और यहा एक 15जे10 का स्विम्मिंग पूल बना हुआ था. कुलमिलाकर घर अपने आप मे खूबसूरती की मिसाल था.
वही रामेश्वर जी के घर रात के इस पहर सब सोने की तैयारी कर रहे थे लेकिन अर्जुन अभी बिस्तर से उठा था. अब उसका सर हल्का और शरीर उर्जा से भरपूर था. समय देख कर वो नीचे आया रसोईघर मे जहाँ उसकी मा रेखा जी फ्रिज मे समान रख रही थी सफाई करते हुए और कोमल दीदी मधुरी दीदी की बर्तन सॉफ करने मे मदद कर रही थी.
“कितना सोता है बेटा तू? तुझे कोमल 2 बार उठाने गई थी लेकिन तू सोया रहा. अब भूख लगी होगी?” रेखा जी ने बेटे को एक बार सीने से लगाया फिर खाने के लिए पूछा.
“नही मा. पेट भरा है मैं तो बस पानी पीने आया था..” इतना बोलकर सीधा बॉटल से पानी पीने लगा तो रेखा जी ने फिर भी ज़बरदस्ती उसको एक मुट्ठी मेवे के साथ बड़ा गिलास दूध का पीला ही दिया. फिर बिना किसी की तरफ देखे वो पानी की बॉटल हाथ मे लिए तीसरी मंज़िल पर चला गया.
“अब थोड़ा आचार्य जी की कही बात को देखा जाए.” ये सोचकर वो खुले आसमान के नीचे वही छत पर बैठ गया. आँखे बंद कर के सिर्फ़ अपने कान लगा लिए वातावरण पर. ठंडी हवा और एक दम शांत समा था. कही कुछ ज़्यादा आवाज़ नही थी. अभी कुछ देर ही हुई थी उसको ऐसे बैठे हुए की उसको बहुत ही धीमी रेडियो पर गाने की आवाज़ आई. सो कर उठने के बाद से ही उसका मन तो बिल्कुल शांत था. उसमे कोई सवाल, परेशानी और विचार नही थे तो उसको भी ध्यान लगाने मे कोई दिक्कत ना हुई. थोड़ी देर बाद उसको बहुत धीमे कदमो की आहट भी हुई. रेडियो की आवाज़ से ध्यान अब इधर आ लगा था. आवाज़ धीरे धीरे तेज हो रही थी फिर उसको लगा के कोई उपर आ चुका है लेकिन अपनी आँखें नही खोली. उपर जो कोई भी आया था वो भी चुपचाप खड़ा था उसकी पीठ के पीछे. उखड़ी हुई उस इंसान की साँसों तक को इस शांत वातावरण मे वो सुन पा रहा था.
“भाई तू यहा अकेला बैठा क्या कर रहा है.” ये माधुरी दीदी थी.
“कुछ नही दीदी बस थोड़ा खुद पर फोकस कर रहा था. कुछ दिन से ज़्यादा ही भागदौड़ हो रही है तो बस यहा बैठ कर इस ठंडी हवा से खुद को राहत दे रहा था. आप नही सोई अबी तक.?”,
अर्जुन के सवाल से माधुरी दीदी की चेतना वापिस आई.
“अर्रे मैं तो इसलिए उपर आई थी के आज हम दोनो यहा सोएंगे.” उनसे ये तो कहते नही बना के चूत कुलबुला रही 2 दिन से लंड लेने के लिए और भाई तू इसको छोड़ कर शांत कर दे. उन्होने बस यही कह दिया.
“मुझे अभी कहा नींद आएगी दीदी. और फिर आप तो सारा दिन काम करती हो, आप आराम कीजिए. मैं आपके लिए अभी बिस्तर लगा देता हू. ” इतनी देर से अर्जुन ने एक बार भी दीदी की तरफ मूह नही किया था. लेकिन उसकी बात सुनकर माधुरी ने बस इतना ही कहा, “चल मैं भी तेरे साथ चलती हू.”
दोनो नीचे आए, जहाँ आज भी संजीव भैया नही थे और दोनो कमरे खाली थे.
“कहा सोना चाहेंगी दीदी? उपर छत पर यहा भैया के कमरे मे.?”
“उपर ही चलते है भाई. यहा तो मुझे भी अच्छा नही लगता.” उनकी बात सुनकर इतनी देर मे पहली बार अर्जुन मुस्कुराया था. 2 गद्दे अपने कंधो पर उठा वो बाहर निकला और दीदी भी हाथ मे चद्दर और तकिये लिए उसके पीछे चल दी कमरे बंद कर के.
“दीदी, लो चादर बिछा दो अब.” दोनो गद्दे झाड़ कर बिछा वो सामने खड़ी माधुरी दीदी को बोला. मिलकर उन्होने एक डबल चादर बिछाई.
“मैं बस अभी आती हू एक बार नीचे बाहर वाले गेट को ताला लगा कर और बाथरूम होकर.” वो खड़े होते हुए बोली.
उनके नीचे जाने के बाद अर्जुन छत के किनारे टहलने लगा. उनके घर के साथ एक तरफ तो अग्गरवाल जी, जो की आढ़त का काम करते थे, उनका घर था. दूसरी साइड जहाँ अभी वो देख रहा था प्लॉट खाली था जिसके साथ ही था 5 नंबर बांग्ला.
“प्रीति का घर कितनी पास मे है और एक मैं हू जिसको अपने पड़ोस का ही कुछ खास नही पता.” उसने यही सोचा और उसको थोड़ा बुरा भी लगा के एक साल मे सिर्फ़ उसको वही पता है जो घर वालो ने बोला. स्कूल, दीदी का कॉलेज, भैया की दिखाई मार्केट, पड़ोस के 2-3 परिवार और अब स्टेडियम. सारा समय बस घर और स्कूल मे ही निकल गया.
“कोई बात नही अब धीरे धीरे सब देखूँगा. ये शहर इतना बुरा तो है नही.”
कॉल साहब की छत लाइट जली तो उसने एक लड़की उसको वहाँ से जाती दिखी. और उपर बने कमरे मे 2 लोग चले गये.
“चल आजा अब आराम कर ले.” माधुरी दीदी उपर आ चुकी थी. अर्जुन ने उनको देखा तो अब वो एक मॅक्सी पहने थी उन्होने जो नहाकर बदली थी. मुस्कुराता हुआ वो उनकी तरफ बिस्तर पर आ गया. बिस्तर पर सीधा लेटा था तो दीदी उसकी तरफ़ हो गई. एक हाथ उन्होने अर्जुन के उपर रख दिया. दोनो के सर के नीचे तकिये थे.
“दीदी कुछ पूछना था आपसे?” अर्जुन को भी पता था कि दीदी अगर उसके पास है तो शायद वो दोनो फिर वही करे जो 2 रात पहले हुआ था.”हा तो पूछ ना भाई.” उसका पेट और छाती सहलाती दीदी ने कहा. उनके बीच मे अभी भी थोड़ी दूरी थी. चिपके नही थे.
“दीदी जो भी हमने उस रात किया था, आप उस सब के बारे मे कितना जानती हो?”
अर्जुन के इतने सरलता से और बिना ही कोई नाम लिए पूछने से माधुरी दीदी भी मुस्कुरा उठी. कितना भोला था उनका छोटा भाई. शरीर से बढ़ गया था लेकिन मन से तो अभी वो कच्चा ही था.
“भाई जो हमने किया था उसको आम भाषा मे सेक्स कहते है और देहाती भाषा मे चुदाई. एक लड़का और एक लड़की की जिस्मानी मिलन मे बहुत कुछ होता है. और इसके लिए भगवान ने ये दो अलग जिस्म बनाए. कुछ अलग अंग दिए है दोनो को जिनक अहम किरदार होता है एक पूर्ण मिलन मे. एक लड़का और लड़की इस मिलन से ही प्यार करते है और अपनी दुनिया बनाते है.”
“थोड़ा सा विस्तार से समझायँगी? कर तो लिया था एक बार लेकिन ऐसा लगता है जैसे कुछ सीखना और पता होना बाकी है.”
“हा भाई. देख जो ये तेरा लंड जिसको तू लिंग कहता था ये वो बीज भरता है लड़की की चूत के अंदर जिस से वो एक बच्चे को जनम दे सके. चूत के अंदर ही बच्चेदानी या गरभ होता है जहाँ इसका कुछ हिस्सा जाता है और फिर लड़की और लड़के के पानी से एक नया जीवन वहाँ जनम लेता है. ये जो लड़की के सीने पर नरम मास के गोले होते है जिनको बूब्स कहते है इनमे ही उस बच्चे के लिए दूध बनता है उसके जनम लेने के समय. तभी तो
ये ऐसे होते है. जो ये निपल अभी छोटे और पतले है, बच्चे के जनम लेने के बाद थोड़े बड़े हो जाते है और उसके पीने से मोटे भी. लेकिन बच्चा तब तक नही ठहरता जबतक अंदर लड़की का पानी भी लड़के के पानी से ना मिले. सिर्फ़ लड़का अपना काम कर ले और इसमे लड़की को मज़ा ना आए तो वो सिर्फ़ वासना पूरी करना होता है. दोनो अगर प्यार करते है, एक दूसरे के दिल को समझकर सेक्स करते है और एक दूसरे के अंगो को मज़ा देकर मिलन करते है तभी वो पूर्ण सहवास या लव मेकिंग कहलाता है. किसी भी लड़की का शरीर तभी तयार होता है जब उसके ये बूब्स दबाए जाए,होंठ को चूमा जाए और चूत को चुदाई से पहले अच्छे से तयार किया जाए. कुछ लोग तो एक दूसरे के सभी अंगो को मूह मे लेकर, चूस्कर भी चुदाई के लिए तयार करते है.”
दीदी की इतनी बात सुनकर अर्जुन को अपने दोस्त संदीप के घर देखी किताब याद आ गई जिसमे लड़की लंड चूस रही थी, गान्ड मे ले रही थी और काला आदमी उसकी चूत को चूस रहा था. और फिर ताईजी ने भी उसका लंड मूह मे लेके गीला किया था.
इन सब बातों के दौरान दोनो के शरीर भी गरम होने लगे थे. अब माधुरी दीदी अर्जुन के बाजू पर सर रख उस से चिपक चुकी थी. उनकी एक टाँग उसके लंड के उभार के पास मूडी हुई उपर थी और उनके मोटे चुचे उसके सीने पर.
“क्या बच्चा एक बार मे पैदा हो जाता है? अगर ऐसा है तो अब तुम क्या करोगी?” ये बात मे चिंता भी थी
“होने को हो जाता है भाई. लेकिन उस रात तूने जब अंदर किया था तो मेरे मासिक ख़तम हुए 5 दिन हो चुके थे. ये टाइम पर बच्चा गर्भ मे नही रुकता. और इस से बचने के कई उपाए भी है. लड़के अपने लंड पर निरोध चढ़ा कर कर सकते है, सखलित होने के वक्त वीर्य बाहर निकाल सकते है और लड़की अगर बच्चा नही चाहती तो वो रोज एक गर्भनिरोधक गोली खा सकती है.” गोली के बारे मे उसने हिन्दी की एक पत्रिका मे पढ़ा था और उनकी शादी शुदा सहेलियाँ भी ये लेती थी जो उन्होने ही इनको बताया था.
अर्जुन उनकी सब बातें सुनता उनके दूध भी सहला रहा था. वो बहुत कुछ जान चुका था आज चुदाई के बारे मे. फिर कुछ याद आया और उसने अपने हाथ मॅक्सी के उपर से ही उनके चुतड़ों पर रख दिए. नीचे और कोई कपड़ा नही था, उनकी गान्ड अंदर से बिल्कुल नंगी थी. “और दीदी यहा.” उसने बस गान्ड की दरार मे एक हाथ की उंगलिया फेरते हुए पूछा.
“भाई वहाँ नही. वो अन्नॅचुरल सेक्स होता है. गान्ड चुदाई बहुत से लोग करते है और कुछ लड़किया ये करवाती भी है. लेकिन गान्ड का च्छेद अलग होता है. छोटा और टाइट जबकि चूत किसी रब्बर की तरह होती है जो खुद पानी छोड़ती है तो गीली होने पर लंड झेल लेती है और वापिस वैसे ही हो जाती है. गान्ड मारना अलग होता है. यहा कोई चिकनाई नही होती तो लोग तेल या क्रीम प्रयोग करते है. ये उन्हे पूरी चुदाई मे करना पड़ता है नही तो दोनो के अंग खराब या ज़ख्मी हो सकते है. और इसमे सिर्फ़ मर्द को ही ज़्यादा मज़ा आता है.
चूत तो एक बार ही खून बहाती है जब सबसे पहली बार उसकी झिल्ली फट ती है. लेकिन गान्ड का छल्ला लंड के हिसाब से कई बार फट सकता है और खून भी निकलता है. वहाँ जख्म होता है लेकिन चूत में ऐसा कुछ नही. “
बातें होती रही और अर्जुन के हाथ दीदी की मॅक्सी को उपर करते गये . उनकी गान्ड अब बेपर्दा थी और अर्जुन करवट ले उनकी तरफ देखता गान्ड को सहला रहा था. माधुरी दीदी ने भी अब उसको गले लगा लिया चूत जो नंगी पड़ी थी उसके होंठो पर भी अर्जुन नीचे वाला हाथ फेरने लगा. दोनो आराम से होंठ चूम रहे थे और दीदी पाजामे मे हाथ डाल कर छोटे भाई के बड़े लंड को पकड़ कर उपर नीचे कर रही थी. सीधी हो कर उन्होने अपनी मॅक्सी उतार दी और उनकी तरफ देख अर्जुन भी नंगा हो कर वापिस बेड पे लेट गया. दीदी उसकी कमर से थोड़ा नीचे अपनी टाँगे चौड़ी कर बैठ गई. उपर झुकते हुए वो एक हाथ से अर्जुन का लंड सहला रही थी और दूसरा उसकी गर्दन के पीछे ले जाकर उसको थोड़ा उपर कर रही थी. अर्जुन भी उपर हुआ. दीदी अब एक तरह से उसकी गोद मे बैठी थी. अपने दोनो हाथो मे उनके बड़े पपीते पकड़ कर दबाते हुए वो उनको चूमने लगा.
“हाँ भाई ऐसे ही कर.” गर्दन जीभ से चाट ते हुए वो नीचे मूह ले जा रहा था. फिर एक चूचे को हाथ मे लेकर अपने मूढ़ की तरफ खींच पीने लगा. दीदी सिसकिया लेती अपनी कमर उसके लंड के साथ रगड़ रही थी..
“आआह भाई अच्छा लग रहा है. पी ले मेरे ये दूध, निचोड़ डाल इनको देख ज़रा कितने भारी हुए जा रही है. ” खुद अपना चुचा भाई के मूह मे तेलते हुए उसकी गान्ड हिल रही थी.
खुले आसमान के नीचे, सारी दुनिया से अलग ये दोनो इस कदर खोए थे की कोई होश नही था इन दोनो को. इनकी ये मुद्रा बड़ी कामुक थी जैसे कामसूत्र को देख कर दोनो वही सब आजमा रहे हो. माधुरी दीदी भी एक भरपूर यौवन की मिसाल थी. 38 साइज़ के खरुबूजे जीतने बड़े बूब्स, उनके नीचे गदराई हुई कमर, मोटी फूली हुई चूत और एक छोटे मटके जैसे गोल और उभरे उनके दोनो चूतड़. पूरा शरीर बिना बालो के एक दम सॉफ और मुलायम. ऐसा यौवन जो किताबो मे ही पढ़ा हो या खजुराहो के चित्रों मे दिखाई देता है. उस शरीर को भोगने वाला भी कम आकर्षक नही था. सख़्त, गोर्वर्ण और लंबे कद का धनी ये लड़का जिसका सबसे ख़ास अंग इस छोटी उमर मे ही 8 इंच पार कर रहा था. सुपाडा भी एक मध्यम आलू के समान बड़ा और टमाटर सा लाल.
“भाई तू सीधा लेट जा.” दीदी उसके उपर बैठे हुए ही उसको तकिये की तरफ धकेल दिया. खुद थोड़ा पीछे हुई और अपने दोनो हाथो मे उसका लंड पकड़ कर उसपर झुक गई. एक बार सुपाडे पर छोटा सा चुंबन कर फिर जीब से चाटने लगी लिंगमुण्ड को. दोनो हाथ लगाने के बावजूद अर्जुन का लंड तकरीबन 2 इंच बाहर निकल रहा था जिसको उसकी बड़ी दीदी मज़े से चाट रही थी.
“दीदी ये क्या कर रही हो? मेरे अंदर एक मज़ा सा उठ रहा है, पेट अकड़ रहा है. हाए..” मज़े मे उसकी आँख बंद हुई तो उसने ऐसे ही उसके उपर झुकी अपनी बड़ी बहन की टाँगो के बीच अपना हाथ चूत पर रख दिया. जहाँ अब वो पर्याप्त गीली हो चुकी थी. सहलाते हुए अपनी चार उंलगिया चूत के नीचे रख अर्जुन ने अपना अंगूठा उनकी चूत मे घुसा दिया.
“आ भाई आराम से. तेरा तो अंगूठा ही बड़ा मज़े दे रहा है. बस करता रह रुकना मत.”
दूसरा हाथ हवा मे झूलते हुए एक चूचे को दबा रहा था. अब दीदी सिर्फ़ एक हाथ से लंड पकड़ कर लंड का सुपाडा लगभग मूह मे लेकर चूस रही थी जो उनको और भी फूलता महसूस हो रहा था. मूह जितना चौड़ा आज खुला था उठा तो पहले कभी उन्होने सोचा नही था कि खुल भी सकता है.
अर्जुन ने मज़े मे कमर हल्की उपर धकेल दी तो दीदी ने लंड बाहर निकाल तेज तेज साँसें लेना शुरू कर दिया. ” हे भगवान अगर कुछ देर और ये करती तो शायद दम घुट जाता मेरा.” वो कहती हुई सिसक भी रही थी क्योंकि अब उनकी चूत भी झड़ने को थी.
“भाई जल्दी कुछ कर. ऐसे तो आग और बढ़ती जा रही है.” दीदी की बात सुनकर मज़े मे लेटा अर्जुन खड़ा हुआ और अपनी जगह दीदी को लिटाया और उनकी जाँघो को फैला कर वहाँ बैठ गया. एक बार चूत को अपने हाथ से फैलाया और सूँघा. कुछ अजीब सी स्मेल थी लेकिन चूत बिल्कुल मुलायम और नरम थी. उसने सिर्फ़ एक चूमा किया उसपे हर अपना अकड़ा हुआ लंड भिड़ा दिया उसके मूह पर. “तयार हो दीदी?”
“हाँ”
कककच से अर्जुन का सुपाडा उस हल्के तेज धक्के से चूत को चौड़ाता हुआ अंदर जा घुसा.
“आई मा.. दुख़्ता है रे. मुझे तो लगता है तेरा लंड हर बार ही ऐसे मेरी जान निकालेगा.” दीदी को इस झटके से दर्द भी हुआ लेकिन चूत का मूह भरने से मज़ा भी आया. उनके बूब्स रगड़ते हुए अर्जुन वापिस होंठ चूसने लगा. एक हाथ से दीदी की टाँग को थोड़ा उपर उठा कर सहलाते हुए ही एक करारा धक्का दे दिया. मूह बंद था तो दीदी चीख ना पाई लेकिन चूत तो अकड़ गई थी उनकी.
“बस बस दीदी हो गया. अब दर्द नही दूँगा.” उसने प्यार से दीदी के माथे को सहलाया और झुक कर वापिस एक चुंबन जड़ दिया उनके माथे पर धीरे धीरे वो 6 इंच लंड से ही उन्हे चोदने लगा..
“आ भाई ऐसे ही कर.. मेरी परवाह मत कर बस धक्के लगाते…अया.. रह.. आ अच्छा लग रहा है.
दीदी के नाख़ून अर्जुन के चुतड़ों पर गड़े हुए थे और वो अब मज़े से उनके पेले जा रहा था. “दीदी अब पलट जाओ ज़रा.” उसने झटके मे लंड बाहर निकाला तो दीदी को फिर दर्द हुआ..
“आ भाई… साला ये डंडा जब अंदर जाता है तब भी दर्द देता है और बाहर आते हुए भी..’ भाई की बात समझकर वो किसी चौपाए जानवर से हो गई कोहनी और घुटनो के भार. अर्जुन भी उनके पीछे घुटनो पर खड़ा हो गया. “दीदी तुम्हारे चूतड़ कितने बड़े और गद्देदार है ना. इतने तो किसी के नही होते. मुलायम भी है और यहा से खूब गरम भी.”
चुतड़ों की दरार मे अपने लंड का मोटा सुपाडा जैसे ही उसने घुसाते हुए फिराया तो नीचे आते हुए एक बार उसका मूह गान्ड के छेद पर रुक गया.
“ओह भाई.. एक दो बार ऐसे ही कस के फिरा यहा पर तेरा लंड..
दीदी की बात सुनते हुए इस बार हल्के दबाव से लंड वहाँ फिराया तो उनकी चूत ने और पानी छोड़ दिया.. उसका मोटा लंड दीदी को अपनी गान्ड के छेद पर एक अलग सा मज़ा दे गया था. इतने मे ही अर्जुन ने लंड नीचे चूत पर टीकाया और फिर एक ही झटके मे पहले जितना अंदर कर दिया. दीदी कराह उठी लेकिन बोली कुछ नही. दोनो तरफ से गान्ड की दरार और नरम जाँघो से टकराता लंड किसी पिस्टन सा अंदर बाहर हो रहा था. इस मुद्रा मे चूत के मोटे होंठ भी बिल्कुल कसे हुए थे उस मोटे लंड को..
“दीदी आपकी चूत तो अंदर से ऐसी है जैसे पिघला हुआ माखन हो और हाए.. मेरा लंड कसा हुआ चल रहा है..”
“भाई मैं गैिईईई.. हाए रे… आ .” पिछली चुदाई से कही ज़्यादा झड़ी थी इस बार उनकी चूत. पूरा लंड भीग गया था अर्जुन का. दीदी का सर गद्दे पर झूल गया और जब उनकी गान्ड भी नीचे होने लगी तो अर्जुन ने दोनो हाथो से उनकी कमर थाम ली.
“दीदी अभी नही.. मेरा नही हुआ अभी.. “और फिर उसके प्रचंड धक्के उनकी गान्ड पर पड़ने लगे.. गीली चूत में अंदर बाहर होता हुआ लंड फूच फूच की आवाज़ दे रहा था और गान्ड पे पड़ते हुए धक्को से पाट पाट की आवाज़ सब तरफ फैल रही थी. इतने मधुर संगीत मे खोया वो बस अपनी धुन मे दीदी को चोदता रहा जो वापिस मस्ती मे आ कर सीसियने लगी थी. अपने बूब्स एक हाथ से दबाती अब वो चुदते हुए आगे को सर उठाए हुए थी..
अर्जुन ने उनकी गर्दन पीछे मोडी और उनके होंठ चूस्ते हुए लंड कस कर पेलने लगा.1
उसके अंडकोष भी अब वीर्य से भरने लगे थे. लंड को चूत में फूलता महसूस कर माधुरी दीदी एक बार और चरमसुख की तरफ बढ़ चली.. “भाई, अंदर नही डालना तेरा पानी.. मेरे उपर गिरा देना.. आ भाई मज़ा आ रहा है. और तेज मेरे प्यारे भाई.. ऐसे ही अया.. इस बार जैसे ही उनकी चूत ने लंड को भिगोया, अर्जुन ने भी 5-6 तगड़े धक्के मार कर लंड उनकी गान्ड पर रगड़ना शुरू कर दिया.. “आ दीदी.. मेरा बी हो गया.. आ.. ” पूरी गान्ड और दोनो चूतड़ उसके वीर्य से सन चुके थे. पीछे से ही उनके दोनो बूब्स सहलाते हुए वो साँसे ठीक करता रहा. दीदी भी उसके चरम के सुख को खुद महसूस कर सकूँन से उस से चिपकी थी…
भाई तू लेट यहा मैं खुद को सॉफ करके आती हू. बिस्तर से खड़ी हुई तो 2 जोड़ी आँखें उनको देख दबे पाव वहाँ सीडीयों से नीचे अंधेरे मे गायब हो गई.
“तेरे इस जालिम लंड ने तो मेरी चाल ही बदल दी रे..” वो कराह उठी अपने पैरो पर खड़ी होते ही. जांघे चौड़ा कर धीमे कदमो से वो नीचे चल दी.
अर्जुन ने भी अपना लंड बॉटल के ठंड पानी से धोया और बिस्तर पर पाजामा पहन कर लेट गया. जब तक दीदी वापिस उपर आती वो नींद मे जा चुका थी. माधुरी दीदी भी दोनो के उपर चादर डाल अपने भाई से लिपट कर सो गई. अब उनकी चूत मे वो खुजली नई थी.. बस मीठी मीठी चीस थी जो इस भयंकर चुदाई से मिली थी.
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“देख लिया सब. अब चल कमीनी मेरे साथ बाथरूम मे. पूरा पाजामा गंदा हो गया मेरा. “
“तेरा ही आइडिया था ना नज़र रखने का. मिल गया सुकून अब? और सिर्फ़ तेरा पाजामा नही मेरा भी गंदा हो गया है.”
ऋतु और अलका दोनो आँगन मे बने बाथरूम मे एक साथ घुस गई सॉफ करने के लिए. ये दोनो पिछले डेढ़ घंटे से अर्जुन और माधुरी दीदी का कार्यक्रम देख रही थी . सफाई के बाद दोनो ही कमरे मे जा कर मीठी नींद मे खो गई. उनकी चूत ने इस डेढ़ घंटे मे जाँघो तक गीला कर दिया था उनको. लेकिन देखने का एहसास भी इनको कुछ कम नही लगा. उल्टा वो दोनो एक साथ झड़ने का सुख उठा निहाल हो गई थी. इसके साथ ही अब पूरा घर शांत हो चुका था.
अहसास- कुछ नये
अंधेरा ही था अभी, जैसे 4 बजे थे. प्रीति का अलार्म मधुर स्वर मे बजने लगा. अलसाई सी आँखों से अलार्म को देख कर उसपे हाथ रखा और गाना बंद हो गया.
“ये क्या सितम है?” खुद से बड़बड़ाती हुई वो उठकर कमरे के अंदर बने हुए बाथरूम की तरफ चल दी. रेशमी सफेद बटन वाले नाइट सूट और वैसे ही पाजामे मे उसका हर अंग ग़ज़ब ढा रहा था. अपने कमरे मे वो ऐसे ही सोती थी. नित्यक्रम से फारिग हो वो अंदर ही लगे शीशे के सामने खड़ी ब्रश करने लगी. हाथ के हिलने से रेशमी कमीज़ के अंदर छुपे उसको दोनो सेब भी हिलने लगे. दाँत सॉफ करने के बाद अपने मूह को ठंडे पानी से धो वो शीशे मे खुद को देखने लगी. बाथरूम पूरा सफेद रोशनी मे नहाया हुआ था. हर छोटी से छोटी चीज़ अच्छे से दिखाई दे रही थी. खुले हुए उसके हल्के भूरे बाल जो अब कंधे सो कोई 2-3 इंच नीचे तक बड़े ही सलीके से तराशे हुए थे. गीले चेहरा हल्के गुलाबी रंग की वजह से दिलकश नज़र आ
रहा था. लंबी पॅल्को के पीछे हरी/नीले रंग की जादुई आँखें, भरे भरे रक्तिम होंठ और प्यारी सी नाक. होंठो के किनारे की तरफ थोड़ा नीचे एक काला तिल जैसे इस परी को नज़र से बचाने के लिए भगवान ने दिया था. कपड़ो के बाहर से ही पता चल रहा था कि शरीर सिर्फ़ मांसल ही नहीं कड़ी मेहनत से तराशा हुआ है. लंबाई उसकी आभा को और बढ़ा रही थी. फिर से एक बार आँखों मे ठंडे पानी के छींटा मार वो मूह सॉफ करती बाहर आ गई.
अपने कपड़े बदल कर अब एक रन्निंग ट्रॅक सूट और डिज़ाइनर स्पोर्ट्स शूस पहन कर वो ड्रॉयिंग रूम से एक निगाह सब तरफ डाल धीरे से बाहर आ गई. अभी वो गेट के अंदर ही थी. कुछ सोच कर बाहर ही इधर से उधहार टहलने लगी. बेचैनी सॉफ नज़र आ रही थी उसके इस खूबसूरत चेहरे पर.
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खुद को माधुरी दीदी से चिपका देख अर्जुन के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तैर गई. उनके गाउन के उपर से ही दोनो उभारों को सहला कर वो उठ खड़ा हुआ.
नीचे आकर तयार हो वो अंदर के आँगन मे आया और पानी पीने लगा. बाथरूम का दरवाजा खुला तो नज़र वही रुक गई. उसकी मा ने जो गाउन दरवाजे पर लगी हुक पर टांगा था वो शायद दरवाजे मे अटक गया था और अब नहाने के बाद उन्होने उसको दरवाजा खोलकर निकालना चाहा. इतनी सुबह वैसे तो कोई भी नही होता यहा तो यही सोच कर वो सिर्फ़ एक कच्छी मे खड़ी दरवाजे से गाउन निकाल कर बस पहन ही रही थी की उनकी नज़र अपने बेटे से मिली.
उनका तो खून ही जम गया क्योंकि अर्जुन सीधा उनको ही देख रहा था, जाने कब से. जल्दी मे उन्होने गाउन लेकर दरवाजा बंद किया तो अर्जुन को उनकी गोरी गान्ड की लकीर मे फँसी काली कच्छी दिखी. गान्ड भी ऐसी थी की एक बार तो वो अर्जुन के हथियार को हिला गई. उसने जल्दी से होश मे आते ही पूरी बॉटल पानी की गले के नीचे उतार खाली करी और बाहर की तरफ निकल लिया.
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“तो जनाब इस समय निकल रहे है.” प्रीति ने देखा की रामेश्वर जी के घर का दरवाजा खुला और अर्जुन उस के घर से विपरीत दिशा मे दौड़ लिया.
“चलो अब प्यासा ही कुए के पीछे जाएगा.” इतना बोलकर प्रीति धीमी गति से अर्जुन के पीछे ही दौड़ लगाने लगी. कोई 10-12 मिनिट के बाद वो एक बड़े पार्क मे घुस गया और किनारे वाले ट्रॅक पर दौड़ने लगा. अब स्पीड तेज कर दी थी उसने. आसमान मे अभी भी हल्का अंधेरा था. प्रीति अब पैदल चलने लगी उस तरफ जहाँ पार्क उस से तकरीबन 300 मीटर दूर था.
“गुड मॉर्निंग बेटा.” चक्कर लगाता हुआ अर्जुन जब बुजुर्ग मंडली के पास से गुजर रहा था तो आचार्य जी ने उसको विश किया. जवाब मे अर्जुन ने भी उनको गुड मॉर्निंग बोला और आगे चल दिया. वो सभी अपने वही रोज के काम मे लगे थे. आचार्य जी गीली घास पर टहलते हुए कभी आसमान तो कभी आस पास की हरियाली और शांति मे खोए थे. जैसे ही अर्जुन अंदर आने वाले रास्ते के पास से दौड़ता आगे निकला प्रीति भी अंदर आ गई.
उसने भी पीछे दौड़ना शुरू कर दिया, लेकिन थोड़ी अधिक रफ़्तार से. कुछ पॅलो मे वो अर्जुन के आगे से भागते हुए निकल गई बिना उसकी तरफ देखे.
अर्जुन को भी उम्मीद नही थी की प्रीति सुबह पार्क आती होगी तो उसने बस बिना ही ज़्यादा ध्यान दिए दौड़ना जारी रखा. लेकिन एक लड़की उस से आगे निकल गई ये सोच कर वो और तेज दौड़ने लगा. जैसे जैसे पास आता जा रहा था उसको लगा के ये लड़की शायद देखी हुई है.
प्रीति उसके कदमो की तेज गति महसूस कर थोड़ा और तेज हो गई. इस रफ़्तार से वो दोनो तकरीबन डेढ़ चक्कर लगा चुके थे और अर्जुन हार नही मान रहा था जबकि उसको थोड़ी साँस चढ़ने लगी थी वही प्रीति के चेहरे पे एक विजयी मुस्कान थी लेकिन दूर दूर तक कोई थकान नही. इस चक्कर मे जब वो दोनो वापिस आचार्य जी
के पास से गुज़रे तो प्रीति उस से 200-250 मीटर आगे हो चुकी थी. अर्जुन ने हताश हो आचार्य जी की तरफ देखा और उन्होने सिर्फ़ उसको इशारे से मूह बंद रखने को कहा. कुछ समझ तो नही आया लेकिन अगले 300 कदम पर वो रुक गया और घास पर चलते हुए आचार्य जी की तरफ चल दिया था.
और अब सामने से आती प्रीति पर उसकी नज़र पड़ी तो वो हैरान ही रह गया. वही प्रीति ने भी ऐसे दिखाया जैसे वो उसको वहाँ देख कर हैरान और खुश दोनो है. अपनी गति धीमी कर वो बिना रुके वहाँ से दौड़ती आगे चल दी.
“बेटा ज़िद से कोई नही जीत सकता. वो तुम्हे को चुनोती नही दे रही थी. लेकिन तुम्हारा अहम तुम्हे खुद चुनोती दे बैठा. और देखो खुद को कैसे थके हुए लग रहे हो.” उसको देख कर आचार्य जी हल्के से मुस्कुराए और फिर समझाया.
“सही कहा सर आपने. लेकिन मैं 10 किमी अच्छे से दौड़ लेता हू पता नही आज क्या हुआ?”
“बेटा बंद कमरे मे टारगेट पर 6 मे से 6 गोलिया अचूक लगती है लेकिन जंग के मैदान मे 10 गोलिया भी एक सही जगह लग जाए तो बहुत है.
प्रतिस्पर्धा (कॉम्पेटीशन) जीवन मे आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी है. ये तो शायद तुमने स्कूल मे सीखा ही होगा?”
उनकी बात समझ आ गई थी अर्जुन को. वो 8 घंटे रोज पढ़ता था तब कही जा कर क्लास मे अव्वल आता था और दूसरे नंबर पर आने वाला विद्यार्थी मात्र कुछ ही अंक पीछे रहता था.
“बिल्कुल ठीक कहा आपने सर. लक्ष्य हाँसिल करने की दौड़ मे साथ मे कई लोग भागते है लेकिन कोई एक ही उसको हाँसिल कर पाता है. मेरी ग़लती थी के अकेला भाग कर जीत रहा था और आज पहली ही रेस मे हार गया.”
“सोच तो बिल्कुल जायज़ है तुम्हारी बेटा लेकिन जिसको तुम प्रतिद्वंदी समझ रहे थे मुझे तो वो शायद कोई तुम्हारा भला सोचने वाला लगता है.”
बुजुर्ग तो थे साथ ही नज़र भी कमाल की थी आचार्य शास्त्री जी की. और उनकी बात समझने के बाद अर्जुन झेंप गया.
“अच्छा तो अब बताओ के कल जो सीखा था उसमे कितना कामयाब हुए?” उनका आशय ध्यान लगाने से था.
“दिनभर तो मैं सीखता ही रहा सर. लेकिन जब रात मे अकेले छत पर जाकर ध्यान लगाया तो शांत वातावरण मे भी बहुत कुछ सुना. दूर से आती धीमी आवाज़, और उसके बीच मे ही कोई और आवाज़. थोड़ा ज़ोर देने पर मैं दोनो को अलग अलग महसूस कर पाया था.” अर्जुन को रात का मंज़र याद आ गया था.
“अच्छी बात है बेटा लेकिन जब भी समय मिले तो ये ज़रूर करते रहना. आज का तुम्हारा पाठ है “आकर्षण और प्यार”. क्या तुम्हे दोनो मे फरक पता है?”
“जी सर कोई जिसको हम पहली बार देखे और उसके बाहरी रूप से हम प्रभावित हो जाए तो बस वो एक आकर्षण ही है. लेकिन किसी को अंदर से पहचान ने के बाद सिर्फ़ उसको याद करने भर से हम को आराम मिले या दुख हो तो वो प्यार होता है. ऐसा मुझे मेरे दादा जी ने मुझे समझाया था जब उन्होने मुझे कृशन जी और मीरा जी की कहानी सुनाई थी.”