“ओये हीरो, कहाँ था सारा दिन?, ये ऋतु दीदी थी जो सुबह से अपने कमरे मे एग्ज़ॅम्स की तैयारी कर रही थी.
“आज से वो बॉक्सिंग सीखने जा रहा हू तो 3 घंटे तो वही हो गये. और दीदी आप ही तो कमरे मे बैठी पढ़ रही थी.”
“हा भाई मंडे को मेरा एग्ज़ॅम है ना तो उसमे ही बिज़ी थी. अलका का कल है.” सोफे पर अर्जुन के साथ बैठकर वो बातें करने लगी
ऐसे ही कुछ देर बाद दोनो साथ मे नीचे आ गये जहाँ अलका उनका इंतजार कर रही थी.
“कल मेरे साथ जाना है. याद है ना?” अलका ने फिर अर्जुन को याद दिलाया
“हा अच्छे से याद है. लेकिन कल स्कूटी सीखने नही जाना. परसो चलेंगे. कल सिर्फ़ पेपर.” अर्जुन ने भी खाना शुरू करते हुए कहा
“भाई तू टाइम से सो जाना.” माधुरी दीदी ने ये बात कही लेकिन उनका मतलब ना समझ अर्जुन ने जब बताया के वो आज ताईजी के साथ सोएगा तो माधुरी दीदी के साथ साथ कोमल दीदी का भी चेहरा एक पल के लिए उदास हो गया.
“अच्छी बात है. मा का ध्यान रखियो और अगर उन्हे कुछ ज़रूरत हो तो मुझे बुला लेना.”, सफाई से बात बदल दी उन्होने.
थोड़ी देर अपने दादाजी के पैर की मालिश की और उन्हे अपने आज के दिन के बारे मे बता कर वो उपर आया. रात को कच्छा नही पहनता था पाजामे के अंदर तो वही उतारने आया था. दाँत सॉफ किए और आधा घंटा वही सामान्य ज्ञान की किताब पढ़ने के बाद नीचे आया. सब अपने कमरे मे जा चुके थे. रसोईघर मे मा खाने के बाद के बर्तर सॉफ कर रही थी तो वो वही आ गया.
“मा, आप सुबह से लगी हुई हो. लाओ मैं सॉफ कर देता हू आप आराम करो.” अपनी मा को इतना काम करते देख वो बर्तनो के पास ही आ गया.
“बस बेटा इतना भी कोई ज़्यादा काम नही है. हो ही गया है. और ये सब काम मैं अपने बेटे से तो नही कराउन्गी.” उन्होने एक प्यारी से हँसी से अर्जुन को जवाब दिया.
“मा, वैसे आपकी ज़िंदगी कितनी व्यस्त है ना. सुबह 5 बजे से रात 10 बजे तक काम ही काम. कोई आराम नही है. कभी बुरा नही लगता.”
अपने बेटे को इतनी फिकर करता देख रेखा जी को बड़ी खुशी हुई. “बेटा दिन मे खाली समय मे आराम भी तो कर लेती हू. तेरी चारों दीदी भी तो मेरी मदद करती है. और तेरी ताईजी तो मुझे कुछ ज़्यादा काम करने ही नहीं देती अपने सामने. हा जब तेरी बीवी आ जाएगी तब मैं आराम कर लूँगी”
और अर्जुन को देख मुस्कुराने लगी. उन्हे अपने बेटे के साथ अच्छा लग रहा था. ऐसा बहुत कम होता था के वो कभी ऐसे बातें करते थे. शायद पिछले एक साल मे 5-6 बार. दोनो का अपना व्यस्त समय रहता था. रेखा को बहुत बार ऐसा लगता था के जो प्यार उसको अपने बेटे को देना चाहिए था वो कभी दे ही नहीं पाई थी. और कभी कभी उसको ये सब सोचकर दिल मे कसक सी होती थी की वो अपने बेटे की अच्छी मा नही बन पाई.
“मा मैं शादी नही करूँगा. आप दीदी लोगो की शादी कर देना फिर मैं अकेला ही रहूँगा. आपका सारा प्यार फिर मुझे ही तो मिलेगा.”
इस बात ने रेखा की दुखती रग पर हाथ रख दिया. एक ही पल मे चेहरे की खुशी की जगह आँखों की नमी ने ले ली थी. अर्जुन को अजीब सी घबराहट हुई जब मा के हाथ बर्तन सॉफ करते रुक गये और चेहरा भी नीचे हो गया.
“क्या हुआ मा?” अपनी मा को उसने पलटाया तो उनका वो खूबसूरत चेहरा आँसुओ से भीगा हुआ था. “आप रो क्यू रही हो मा? मैने अगर कुछ ग़लत कहा हो तो प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिए ना. लेकिन आपको रोते देख मुझे दर्द हो रहा है.”
बेटे की इतनी बात सुनते ही रेखा जी ने उसको अपने सीने से लगा लिया. “नही मुन्ना तू कभी कुछ ग़लत कह ही नहीं सकता रे. मैं ही अभागन हू जिसने तेरा बचपन तक ठीक से नही देखा. और आज भी जब सोचती हू के
तेरे हिस्से का प्यार तुझे दूँ तो खुद को मजबूर मानती हू.”
“मा कौन कहता है के मुझे प्यार नही मिला? सुबह आपको देखने के बाद ही तो मेरा दिन सही मायने मे शुरू होता है. और रही बात मेरे बोरडिंग की, तो वो फ़ैसला आपने तो नही किया था ना मा. मेरे जाने का सबसे ज़्यादा दुख आपको ही था. क्या ये प्यार नही है आपका?”
बेटे की इतनी समझदारी देख रेखा नि उसको एक बार फिर सीने से चिपका कर उसका माथा चूम लिया. अर्जुन ने अपने हाथ से मा का चेहरा सॉफ किया.
“वैसे आप जब मुस्कुराती हो तो दिव्या भारती लगती हो बिल्कुल.”
अपने बेटे की ये बात सुनकर खोई हुई मुस्कान वापिस आ गई थी उनके चेहरे पर
“चल अब सो जा जाकर. तेरी ताईजी भी इंतजार कर रही होंगी. मेरा काम भी हो ही गया बस.”
“जब संजीव भीयया वापिस आ जाएँगे फिर मैं आपके साथ सोउँगा मा. 10 साल हो गये सुकून से सोए हुए मुझे.”
“हा बेटा मैं भी यही तो चाहती हू बस सोचती थी कि तुझे अब आदत नही रही होगी. तू अभी भी मेरे लिए मेरा मुन्ना ही तो है.”
“हाहाहा. मा ये मुन्ना अब 6 फीट का हो गया. चलो गुडनाइट.”
बेटे को बाहर जाते हुए रेखा जी देखती रही. सही बात तो थी उसकी. छोटा सा मुन्ना अब अपने बाप से भी लंबा हो चुका था. फिर खुद ही सर झटकती
काम मे लग गई.
“आ गया बेटा तू? चल लेट जा.” कमरे मे आते ही बिस्तर पर लेटी उसकी ताईजी ने उसको इशारे से अपनी दूसरी तरफ बुलाया.
“पहले आपकी मालिश फिर मैं सोउँगा. नही तो नही.”
“बेटा अब मैं ठीक हू बिल्कुल. तू आराम कर वैसे भी तू थका होगा.” ललिता जी ने सोचते सोचते ये बात कही थी.
“ऐसा तो कुछ किया नही मैने जिस से थकान हुई हो. आप मुझे बस तेल बताओ कहाँ रखा है.”
“वो वहाँ ड्रेसिंग के ऊपर रखा है बेटा. देख अगर तू थका हुआ है तो रहने दे. वैसे भी मैं ठीक हू.”, ललिता जी ने फिर कहा लेकिन अर्जुन ने तेल की शीशी उठाई और उनके करीब आ बैठा. ताईजी ने अभी एक हल्की सारी पहनी हुई थी जो की वो कभी भी सोते हुए नही पहनती थी.
ज़्यादातर वो रात मे पेटीकोट/ब्लाउस या सलवार/कमीज़ पहनती थी. जब ताऊ जी घर होते तो कभी कभी मॅक्सी भी.
“चलिए उल्टी लेट जाइए.” हुकुम सा दिया अर्जुन ने तो करवट के बल लेटी हुई ललिता जी पेट के बल हो गई. उनकी गान्ड पूरी उभरी हुई थी. ब्लाउस और पेटीकोट के बीच कमर बिल्कुल सॉफ थी. अर्जुन ने थोड़ा तेल अपने हाथो मे लगाया ही था कि वो बोला,”ताईजी ये सारी हल्के रंग की है कही तेल लगने से खराब ना हो जाए.”
कुछ सोचने के बाद ललिता जी ने कहा, “बेटा सोच तो मैं भी यही रही थी, लेकिन फिर मुझे लगा कि ये अच्छा नही लगेगा.”
“ओफफो. आप भी ना. चलिए चेंज कर लीजिए मैं वेट करता हू.”
“तू दरवाजा लगा दे और ज़ीरो को बल्ब जला दे. ये बड़ी लाइट बंद कर मैं सारी बदलती हू.”, अर्जुन ने वैसा ही किया और चिटकनी चड़ा दी दरवाजे की
फिर ट्यूब लाइट बंद कर के बल्ब ओं कर दिया. ये ज़ीरो का सफेद बल्ब था जिसकी रोशनी ज़्यादा नही थी लेकिन फिर भी कुछ हद तक सॉफ दिख जाता था.
जैसे ही स्विचबोर्ड से मूह घुमाया तो ताईजी को बिना साड़ी के बिस्तर पर जाते देखा. उनका पेटीकोट बिल्कुल फसा हुआ था पीछे से कुल्हो पर. शायद उनके कूल्हे माधुरी दीदी से भी बड़े था. इतनी देर मे ही उसके कान गरम हो गये थे. वो धीरे से चलता हुआ बेड पे वही आकर बैठ गया और ताईजी के चेहरे की तरफ देखा जो उन्होने तकिये पर रखा हुआ था और मूह दूसरी तरफ था. फिर से तेल हाथो पर लगा कर उसने झीजकते हुए ताई जी की कमर पर हाथ रखे. हल्के हाथो से वो उनकी कमर पर मालिश करने लगा. ताईजी की कमर पर ढलान सी थी. ब्लाउस के पास से हाथ जब नीचे आते तो ये ढलान पता लगती फिर जहाँ पेटीकोट का नाडा था वहाँ एकदम से उपर उठान थी. उनके कूल्हे कुछ ज़्यादा ही बाहर को निकले थे.
“वो बेटा ध्यान रखना के कही ब्लाउस खराब ना हो जाए. ये उस साड़ी के साथ का ही है.” ताई जी की आवाज़ से वो वापिस होश मे आया.
“कोशिश तो कर रहा हू ताई जी लेकिन नीचे यहा ये आपका स्कर्ट कमर पे आया हुआ है और आपका ब्लाउस इतना लंबा है के कुछ हिस्सा कमर पे है.”
“हाहाहा. बेटा ये स्कर्ट नही पेटीकोट है. और अब बूढ़ी हो गई हू तो ब्लाउस तो ऐसे ही पहनुँगी. हा रेखा जितनी जवान रहती तो शायद मैं भी थोड़ा ध्यान रखती अपना.”
ये बात उन्होने अजीब लहजे मे कही थी. और अर्जुन को कुछ ज़्यादा समझ नही आया तो उसने ऐसे ही जवाब दे दिया.
“ताई जी आप कहाँ से बूढ़ी हो गई? आप तो खुद अभी माधुरी दीदी की बहन लगती हो. शायद आप अपने आप पर अब ध्यान नही देती.”
“किसके लिए ध्यान दूँ रे अब?” बड़ी हल्की आवाज़ मे कही ये बात उसके कान मे सही तरह से नही गई थी.
“कुछ कहा ताई जी आपने?”
“वो बेटा थोड़ा ब्लाउस उपर सरका दे. और पेटीकोट भी. तिल का तेल है लग गया तो फिर दाग नही जाएँगे.”
फिर अर्जुन ने जैसे ही ब्लाउस उपर करना चाहा तो वो तो बुरी तरह फसा हुआ था.
“रुक ज़रा.” ललिता जी ने अपना सीना उपर किया और नीचे के दो हुक्क खोल दिए. कमर के पास जहाँ पेटीकोट का नाडा था वो ढीला कर दिया.
“ले बेटा अब कर दे उपर और नीचे.” फिर से ये बात द्वि- अर्थी कही थी उन्होने. कुछ तो चल रहा था आज उनके मन मे. और अर्जुन नेउनका ब्लाउस अच्छे से उपरकर दिया पीठ तक और जैसे ही पेटीकोट को उपर करने लगा उसकी उंगली ललिता जी की गान्ड की दरार से छु गई.”ष्ह. ” उनके मूह से निकली ये हल्की सी सिसकारी अर्जुन को भी सुनाई दी. “क्या यही दर्द है ताई जी?”
“हा बेटा ज़्यादा दर्द तो यही है बस बता नहीं पा रही थी. तू एक काम कर मेरे दोनो तरफ टाँग कर ले और फिर अच्छे से रगड़ कर मालिश कर दे. अपना ज़्यादा बोझ मत डालियो मुझ पर.” अर्जुन का ध्यान अपनी ताईजी की बात पर गया तो वो चहक कर उपर आ गया.
“एक और काम कर ये तेरा शर्ट भी उतार दे नही तो पसीना आएगा तो दुर्गंध आएगी.”
“ठीक है ताई जी.” और टीशर्ट उतार कर वो अपने घुटने चाची की दोनो तरफ गान्ड के उपर से टीका कर उनकी मालिश करने लगा. हाथ उपर जाते तो उसका लंड गान्ड की दरार मे आगे की तरफ जाता और हाथ नीचे आते तो पीछे. कुछ ही देर मे उसका लंड अपनी औकात पर आ गया था. और अब आगे होते समय उसका शरीर थोड़ा झुकता तो लंड का दबाव ललिता जो को अपनी गान्ड पर कपड़े के उपर से ही पता लग रहा था.
“इतना भी छोटा नही रहा ये अब.” वो मन मे यही सोच रही थी. वैसे तो दिन मे ही सफाई के समय उसका उभार दिख गया था. और उसका ही नतीजा था ये कमर दर्द का नाटक. उनकी आग जो राजकुमार जी पिछले 5 साल मे कम करने की जगह भड़का चुके थे, एक ख़तरनाक हद तक. जिसका नतीजा ये था की आज वो इसमे जलती हुई पहली बार सही ग़लत भूल चुकी थी.
अर्जुन का दिमाग़ भी लंड जैसा हो चुका था, मोटा और खाली. अब उसका लंड ज़्यादा घिस रहा था और हाथ कम.
“बेटा यहा की तो हो गई है.” इतना बोलकर ललिता जी चुप हो गई. उनकी गान्ड की दरार अब पेटीकोट से कुछ बाहर निकल आई थी.
“आपकी टाँग मे भी दर्द था ना ताईजी ?”, अर्जुन का मन अभी भरा नही था. उपर से उसका लंड आज तीसरी बार खड़ा हुआ तो और हल्का दर्द भी करने लगा था.
“हा बेटा दर्द तो है लेकिन कही तुझे बुरा ना लगे वहाँ मालिश करने मे.” ललिता जी ने गंभीरता से कहा. और अपना अगला दाव खेल दिया
“मुझको तो अच्छा लगेगा आपकी सेवा करके. आप बस बताओ और बाकी मैं कर लूँगा.”
“वो बेटा थोड़ा दर्द यहा दोनो बाजू के नीचे है और दाईं जाँघ की नस पर.” उन्होने इतना कहकर वापिस सर तकिये पर टीका लिया.
“मैं हाथ रखता हू आप बता देना कहाँ दर्द है. लेकिन बाह के नीचे तो आपका ब्लाउस है ना. आप इसको उतार कर कोई बनियान पहन लो.”
“बेटा बनियान तेरे ताऊ जी की तो मुझे आएगी नही तू एक काम कर लाइट बंद कर दे मैं ब्लाउस उतार देती हू.”
अर्जुन ने ज़ीरो बल्ब भी बुझा दिया और वापिस आने लगा. अंधेरा छाया था अब कमरे मे तो अंदाज़े से वो बिस्तर तक आया तो उसका हाथ अंधेरे मे किसी मुलायम चीज़ से टकराया.
“एक मिनिट बेटा बस.”
ललिता जी को अर्जुन का हाथ अपनी ब्रा के उपर निकले उभार पर सुखद एहसास दे गया. वो वापिस लेट गई थी. अर्जुन ने टटोलते हुए अपने हाथ फिर चलाए तो उसके हाथ ताईजी की गान्ड पर लगे. बिना कोई बात किए वो वापिस पुरानी जगह बैठ गया.
“ताईजी तेल पता नही कहा रख दिया.”
“कोई बात नही बेटा, वैसे भी हाथो मे बहुत लगा होगा. तू बस मालिश कर.”
अर्जुन ने अपने दोनो हाथ कमर की साइड से ले जाते हुए आगे बढ़ाए तो ब्रा की पट्टी दोनो तरफ महसूस हुई. “ये तो अभी भी बीच मे आ रही है ताईजी “
“रुक बेटा मैं हुक्क खोल देती हू वैसे भी अंधेरा तो है.” और उन्होने पीछे हाथ करके ब्रा खोल दी जो उनकी छाती की नीचे पड़ी थी अब. यहा अर्जुन के हाथ उनकी मखमली गुदाज शरीर पर चलने लगे थे. उल्टा लेटने से उनके बड़े चुचे थोड़े बाहर को आ चुके थे जिनपे उसकी उंगलिया रगड़ खा रही थी. और झुकने से उसका मोटा लंड बार बार उनकी गान्ड की दरार मे धंसता. दोनो चुप थे लेकिन मज़ा बराबर आ रहा था. नीचे दबे हुए निपल भी सख़्त होने लगे थे. इतनी कामुक मालिश पूरे जीवन मे ललिता जी को नसीब नही हुई थी. अर्जुन भी अब जोश मे कभी उनके थोड़े से बाहर निकले चुचो पर हाथ रोक देता था और उनकी गान्ड की गर्मी लंड पर महसूस कर मज़े ले रहा था.
किसी सयाने बंदे ने एक बात खूब कही है, “लंड और पानी अपनी जगह बना लेते है. घोड़ा और लॉडा दोनो बिना सिखाए ही दौड़ सकते है.”
यहा कुछ ऐसा ही हो रहा था. पेटीकोट तो अब आधा गान्ड से खिसक गया था और ललिता जी ने नीचे कच्छी नही पहनी हुई थी. जब अर्जुन का लंड नंगी दरार मे रगड़ ख़ाता तो ललिता जी को ऐसा लगता जैसे उसका लंड भी नंगा ही है.
दोनो कुछ नही बोल रहे थे. अब अर्जुन उनके बाहर को निकले चुचो के हिस्सो को भी दबा रहा था. दोनो किसी और ही दुनिया मे थे. लेकिन ललिता जी ने फिर से कमान अपने हाथ मे ले ली. “बेटा एक बार उठ मैं सीधी हो जाऊ तू फिर जाँघ की मालिश कर के सो जाना.”
अर्जुन उठा तो वो पलट कर सीधी हो गई ब्रा नीचे ही दबी थी तो अब उनके मोटे मोटे बूब्स खुली हवा मे साँस ले रहे थे. अर्जुन ने फिर जैसे ही पेतकोट पर हाथ रखा जाँघ दबाने के लिए
उन्होने फिर वही बात कही,”बेटा कपड़े के अंदर से दबा”.
अर्जुन के हाथ अपनी ताईजी की मोटी सुडोल जाँघो से टकराए तो लंड पत्थर ही हो गया था.
इतनी मुलायम और मोटी जाँघ थी के एक बार तो हाथ ही फिसल गया. “बेटा यहा से उपर की तरफ थोड़ा ज़ोर लगा कर.” उत्तेजना ललिता जी पर भी हावी हो चुकी थी. इतनी देर से जो ये मस्ती चल रही थी वो अब ऐसी जगह आ चुकी थी की आगे बढ़े और दूरिया ख़तम.
अर्जुन तो नासमझ था लेकिन अब ललिता भी चूत से सोच रही थी, जो आज कई साल बाद ऐसे रस बहा रही थी. उसके हाथ मोटी जाँघो को मसलते हुए उपर जाते और फिर वैसे ही नीचे आ जाते. थोड़ी देर बाद जब हाथ आसानी से चलने लगे तो और उपर जाने लगे. अर्जुन की उंगली किसी मुलायम सी जगह से टकराई तो उसको पता चल गया के ये कौन सी जगह थी. और ताईजी की सिसकी निकल गई. उनको कुछ ना कहता देख वो बार बार अपने हाथ को उस जगह पर ले जाने लगा.
चूत के दोनो होंठ मोटे रस भरे थे लेकिन उनके यहा भी बाल नही थे. अर्जुन को इतना खुलकर मज़े लेते देख ललिता जी ने उसका हाथ पकड़ अपने उपर खींच लिया. वो भी बिना ऐतराज उनके उपर छा गया. ललिता जी के सारे संस्कार चूत की आग मे जल चुके थे और वो अर्जुन के होंठ अपने मूह मे लेकर चूसने लगी. इतना तगड़ा किस तो अर्जुन ने पहले कभी नही किया था. उसकी ताईजी खुद से ही उसकी जीभ और होंठ अपने मूह मे लेकर चूस रही थी. उनका पूरा जिस्म तप रहा था और अपने नीचे उनके नंगे चूचे देख कर अर्जुन भी लगा उन्हे मज़े से भींचने..
“दबा बेटा और ज़ोर से दबा इन्हे. बहुत दर्द दिया है इन्होने आज इनकी सारी अकड़ निकाल दे. आ खा जा इन्हे.” उसको चूमना छोड़ वो खुद अपने दूध उसके मूह मे डालने लगी. पेटीकोट तो घुटनो पर पड़ा था और चूत नंगी. ललिता जी ने अपने हाथ से खुद चूत को रगड़ना शुरू कर दिया.
“बहुत सताया है रे इस निगोडी ने. जीना हराम कर रखा है बेटा मेरा. सारी रात जलती रहती हू और तेरे ताऊ जी बस इस आग को जला कर चले जाते है. आज तू मुझे निराश मत करिओ.” अर्जुन को बोलते हुए उन्होने अपनी 2 उंगलिया चूत में घुसा दी जो पहले ही रो रही थी. दूसरे हाथ को जैसे ही उन्होने उसके पाजामे के उपर रखा , लंड पकड़ते ही उनको झटका लगा. लेकिन उनका हाथ फिर कस गया उस तगड़े लंड पर.
“इतनी सी उमर मे तू पूरा घोड़ा हो गया है मेरे बेटे.” अर्जुन के हथियार से प्रभावित हो चुकी थी पूरी तरह. और ये भी सोच रही थी की ये इतनी देर से खड़ा रहने के बाद भी झड़ा नही था. उन्होने उसका पाजामा खोला तो अर्जुन ने करवट लेकर पूरा उतार दिया. और अब पेटीकोट भी वहाँ से गायब था. वो वापिस अपनी ताईजी के उपर लेट गया और उनके दूध चुस्कने लगा. ललिता जी की नज़रों मे तो वो नादान था तो उन्होने खुद कमान अपने हाथ मे ली.
“रुक बेटा आज तुझे सब सिखाती हू अच्छे से.”, उसको नीचे लिटा वो उसकी कमर पर झुक गई. अर्जुन को करेंट सा लगा जब ताईजी ने उसके लंड के सुपाडे को चूम कर मूह मे भर लिया. उसने ऐसा बस संदीप के घर उस किताब मे देखा था.
“कितना मोटा है रे तेरा. अंदर ही नहीं जा रहा.” मूह से निकाल कर वो पूरे लंड को जीभ से चाटने लगी. बीच बीच मे उसको थूक से गीला भी कर रही थी.