अर्जुन ने ड्रॉयिंग रूम का पंखा बंद कर दिया. बाकी दोनो पंखे बंद ही थे. ताईजी पहले भैया के कमरे मे गई. अपनी सारी जो अभी तक सर पे पल्लू सी लपेटी थी उन्होने अपनी कमर मे ठूंस ली. और नीचे झुक कर सफाई करने लगी. अर्जुन बाहर सोफे पर ही बैठा था.
“बेटा ज़रा पलंग सरकवा दे.” ताईजी की आवाज़ से वो वहाँ गया तो ताईजी झुक कर पलंग हिलाने की कोशिश कर रही थी. उनका ब्लाउस उनके
भारी खजाने को समेट नही पा रहा था. वो बाहर निकालने को जैसे मचल रहे थे. अर्जुन ने नज़ारा लेने के बाड़ा पलंग सरका दिया.
“यहा से सॉफ कर दूँ फिर वापिस वही कर देंगे इसको.” और ताईजी फिर झाड़ू लगाने लगी. जब सामने होती तो उनके गोरे पपीता दिखने लगते
और जब घूम जाती तो उनकी बड़ी गान्ड नज़र आने लगती. अर्जुन का तो बुरा हाल हो चुका था. पंखे बंद थे और हवा ना चलने से ताईजी
को पसीना भी आ रहा था. उनकी चुचियो की खाई के बीच मे पसीने के बूंदे समा रही थी. ये दृश्य इतना कामुक था के अब लंड पाजामे
से बाहर नज़र आने लगा था. ताईजी कनखि से अपने मुन्ने की हरकत देख रही थी लेकिन वो चुप थी. शायद उनके संस्कार रोक रहे थे.
“चल अब तेरे कमरे मे आजा.” वहाँ का कूड़ा ड्रॉयिंग रूम की तरफ कर वो अर्जुन की कमरे मे सफाई करने लगी. मैले कपड़े समेट कर बाहर
सोफे पर रखे और गद्दा दीवार के साथ सटा के खड़ा कर दिया. इस दौरान भी अर्जुन बस उनको आगे पीछे से देख कर ही उत्तेजित हो रहा था.
कुछ ही पल मे वो कमरा भी सॉफ हो गया. ताईजी ने अगले 5 मिनिट मे ड्रॉयिंग रूम भी सॉफ कर सारा कूड़ा बाहर कर दिया.
फिर बाहर झाड़ू रख पौंच्छा बाल्टी उठा अंदर आ गई. अर्जुन ने भी तीनो पंखे चला दिए. बाल्टी ड्रॉयिंग रूम मे रख ताईजी पौंच्छा गीला
कर भैया के कमरे मे चली गई. अर्जुन ने खुद को कंट्रोल करने के लिए सोफे पर ही बैठना ठीक समझा. थोड़ी देर बाद जैसे ही उसकी नज़र
भैया के कमरे की तरफ गई जो हिस्सा ड्रॉयिंग रूम से दिखता था, अर्जुन की खोई उत्तेजना झटके से वापिस लौट आई. ताई जी की गोरी पिंडलिया
चमक रही थी. और बैठकर हिलने से साड़ी के अंदर उनकी जाँघ तक नज़र आ जाती थी.
अब एक बात और हुई के ताईजी के ब्लाउस का एक बटन खुल चुका था. जैसे ही वो झुकती उनके बड़े दूध के साथ अंदर पहनी सफेद ब्रा के कप भी नज़र आ जाते. मोटे चुचों के बीच सोने का मंगलसूत्र तो उन्हे काम की देवी बना रहा था. ललिता जी को पता था के अर्जुन क्या देख रहा है बस वो धीमे धीमे उसके सामने ही काम
करती रही. फिर अर्जुन के कमरे मे भी पौंच्छा दिया और आ गई ड्रॉयिंग रूम मे. “ज़रा ये सोफे थोड़े हिला दे यहा से” उन्होने बोला और अर्जुन ने
हटा दिए. वो उसके सामने जब इस बार झुकी तो उनके मूह से कराह निकल गई. “आई माआ..” अर्जुन ने भी ये सुना और जब देखा तो अपनी ताईजी
के चेहरे पे दर्द दिखाई दिया.
“क्या हुआ ताईजी .? आप यहा बैठो.”, और अर्जुन ने उनको सहारा देकर सोफे पे बिठाया.
“बेटा लगता है की कमर मे मोच आ गई है या कोई नस चढ़ गई है.” और एक कराह निकल गई
“आप कहो तो मैं मा को बुलाता हू?”
“नही बेटा अपनी मा को क्यू परेशान करता है. बस 2 मिनिट मे ठीक हो जाएगा ये दर्द.” वो पसर सी गई थी सोफे पर. उनकी साँस के साथ उनके
दूध भी हिल रहे थे.
सारी अब साइड मे लटक रही थी उपर से. ऐसे ही थोड़ी देर बाद वो उठी ओर नीचे चल दी धीमी चाल से. कुछ देर बाद
कोमल दीदी ने बाकी सफाई करी और वो भी चली गई.सोफे अपनी जगह वापिस सेट किए और गद्दा ठीक कर वो वही लेट गया. 3 दिन से ठीक से सो नही पा रहा था रात को तो वो कुछ ही देर मे ढेर हो गया.
दोपहर के समय कोमल और माधुरी दीदी ने बाहर वाले आँगन मे कपड़े ढोने की मशीन लगा रखी थी. माधुरी दीदी मैइले कपड़े मशीन मे डाल कर सॉफ कर रही थी और कोमल कपड़ो को निचोड़ आँगन मे लगी रस्सी पर सूखने के लिए डाल रही थी.
“कोमल तू यहा मशीन पे नज़र रख मैं ज़रा बाथरूम होकर आई.” माधुरी दीदी को पेशाब लगी थी.
“हा दीदी मैं यही हू.”
माधुरी दीदी ने वही बाहर वाले बाथरूम के कमोड पर बैठते हुए अपनी सलवार-कच्छी नीचे करी और बैठ गई. छररर की आवाज़ से धार निकालने लगी.
“कमीने ने एक ही बार करके सीटी की आवाज़ ही बदल दी.”, माधुरी दीदी अपनी ही पेशाब की बदली हुई आवाज़ सुनकर शर्मा गई थी. उनको फिर अर्जुन के लंड की याद आ गई. अपनी चूत को पानी से सॉफ करते हुए उन्होने ध्यान से देखा तो वो अब उसके होंठ और मोटे हो गये थे और बीच का चीरा हल्का खुल गया था जो पहले हर वक्त चिपका रहता है. इतने मे उनकी चूत मे खुजली होनी शुरू हो गई.
“हाए राम लगता है अब चैन ऐसे नही आएगा.”
“दीदी, आपको ताईजी बुला रही है.”, कोमल की आवाज़ सुनकर माधुर दीदी ने अपनी कच्छी और सलवार उपर करी और घर के अंदर चल दी.
“बेटा दिन का खाना आज तू अपनी चाची के साथ बना लेना. तेरी मा की कमर और जाँघ मे नस्स खींच गई है.” कौशल्या जी माधुरी की मा के पास बैठी थी और अपनी बहू की पीठ पर तिल के तेल से मालिश कर रही थी.
“हा तो दादी इसमे क्या बड़ी बात है. मैं कर लूँगी.”
“मेरी सबसे प्यारी बच्ची है ये. घर का सारा काम खुद ही संभाल लिया. जब ये चली जाएगी तो पता नही ऋतु/अलका क्या हाल करेंगी.” दादी ने लाड से ये बात बोली तो माधुरी दीदी बाहर को निकल चली बोलती हुई,
“दादी मैं कही नही जाने वाली. यही रहूंगी.”, हँसती हुई रेखा जी के
पास बैठ गई जो सब्जी काट रही थी. हल्के पीले रंग की काली पट्टी वाली सारी और काले ब्लाउस मे रेखा जी किसी नई ब्याही युवती लग रही थी.
उनका सफेद सपाट पेट काले तंग ब्लाउज के नीचे और आकर्षक लग रहा था.
“चाची क्या लगती हो आप.? 3 बच्चे होने के बाद भी मेरी हम उम्र लगती हो”, माधुरी ने आटा छानते हुए चाची को गोर से देखते हुए पूछा.
वो खुदकी तुलना चाची जी से कर रही थी.
इस उमर मे भी चाची कमाल की है. बड़े गुलाबी होंठ, लंबे काले घुंघराले बाल जो ज़्यादातर बँधे रहते थे, भारी कूल्हे जो किसी भी हाल मे
उसके कुल्हो से कम ना थे, चूचे शायद एक साइज़ कम थे लेकिन फिर भी आकड़े हुए रहते थे.
“कभी तो अपनी चुहलबाजी बंद कर दिया कर. मेरी उमर ज़्यादा हो चली है तो अब मज़ाक उड़ाने लगी?”, रेखा जी ने ये बात उपर उपर से ही कही थी. उनको भी माधुरी की बात सुनकर अच्छा लगा था.
“अब आपने नही बताना तो रहने दीजिए. लेकिन जो सच है वही कहा मैने. खुद ही देख लीजिए वो ज्योति की मा आपकी उमर की है लेकिन कहा वो 50 की लगती है और आप अभी भी 25 की.”
“अररी पागल कुछ भी नही है बस जो मेरा रुटीन है वही है. और तेरे चाचा जी भी मेरा अच्छे से ख़याल रखते है. तेरी शादी हो जाने दे तुझे खुद पता चल जाएगा.” रेखा जी ने बात तो कह दी कहने को लेकिन माधुरी की आँखों के सामने उस रात वाला मंज़र आ गया. चाचा क्या मज़े से चाची की चुदाई कर रहे थे और चाची भी कुछ कम नही थी. उसको अब समझ आया के चाची की सुंदरता का राज क्या है.
“चल ला ये आटा मुझे दे और सब्जी चढ़ा दे चूल्हे पर.”
“हा लीजिए.”
“कोमल तू जा अपने भाई को जगा दे. उसने फिर जाना भी है.”, रेखा जी ने गलियारे मे आती कोमल को आवाज़ दी.
“जी मा.”