Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही – Pure Taboo Story

कुछ रुक कर अलका ने फिर बात आगे बढ़ाई जो ऋतु अब शांति से सुन रही थी. उसकी दिलचस्पी और बढ़ चुकी थी. “जब मेरी फ्रेंड्स
ने मेरे बर्तडे का ज़िक्र किया और उसको मेरा बॉयफ्रेंड कहके पुकारा तो उसने कुछ नही कहा. घर आने से पहले मुझे लेकर मॉडेल टाउन चल दिया.

अपनी पसंद से मुझे ऐसे कपड़े दिलाए जो सिर्फ़ मैं टीवी पर देखती थी और वो सब बातें करी जो हर प्रेमी करता है. मेरा इतना ख़याल
रखा की अगर गले मे रोटी भी फसी तो पीठ सहलाते हुए सबके सामने मुझे अपने हाथो से पानी पिलाया. और सबसे बड़ी बात जो उसने
एक असली प्रेमी की तरह की वो की अपने दिलाए कपड़े सबसे पहले उसको दिखाऊ और वो भी 12 बजे रात को. ताकि वो सबसे पहले मुझे विश करे. यहा तक की उसने सजीव भैया को भी रात मे बाहर भेज दिया.” आख़िरी बात उसने अपनी तरफ से ही कही थी. इतना सब सुनकर तो ऋतु की आँखें फटी रह गई. उसको यकीन ही नहीं था के उसका छोटा भाई ऐसा कुछ भी कर सकता है. अलका ने फिर आगे बात बढ़ाई

“और जब मैं उसके पास रात को गई तो किसी राजकुमारी सा एहसास दिलाया उसने मुझे. उसके होंठ जब मेरे लबो पे जुड़े तो मुझे एहसास
हुआ के मर्द का प्यार क्या होता है.”

“ओये. क्या तूने सबकुछ कर लिया उसके साथ?”, ऋतु ने हैरान होते हुए पूछा.

“चुप कर पागल कही की. मैने कहा ना के ये प्यार है. मैं उपर से नंगी थी उसके सामने लेकिन उसने मुझे सिर्फ़ प्यार किया. कोई ज़बरदस्ती
नही की. उसमे कोई वासना नही थी, सिर्फ़ प्यार था. जब उसने मेरे गाल को सहलाया तभी मेरी रूह उसमे समा चुकी थी. कोई नंगी लड़की
को नही छोड़ता अगर वो उसके बिस्तर पर पड़ी हो. लेकिन देख उसका प्यार की सिर्फ़ प्यार से चूमने के अलावा उसने कुछ किया ही नहीं. सिर्फ़ हम दोनो थे वहाँ और सारा घर सोया हुआ था. लेकिन अर्जुन ने मेरी इज़्ज़त की. और वो अगर उस समय मेरे साथ कुछ भी करता तो मैं उसको एक बार भी नही रोकती लेकिन उसका प्यार बहते हुए पानी की तरह सॉफ है.” ये सब कहते कहते अलका की रुलाई फुट पड़ी थी लेकिन अब उसको ऋतु ने अपनी बाहो मे भर लिया था.

“अर्रे पगली रो मत तू. मैने कहा था ना के मुझे तो सिर्फ़ सब सुन ना है. और मेरी तरफ देख और बिल्कुल भी बूरा मत मानिओ मेरी बात का. मुझे तेरे और अर्जुन के रिश्ते से कोई हर्ज नही. उल्टा मैं तो खुश हू के तूने सही इंसान को चुना है अपने पहले प्यार के रूप मे. लेकिन इसमे भी एक पेंच है. ये प्यार भी बराबर बाँटेगा.”,

ऋतु ने इतना कहा ही था के अलका ने दोनो हाथो से उसका सर पकड़ के उसके होंठो को चूम लिया. “मुझे शुरू से पता है तेरा भी प्यार वही है जो मेरा है. जो तू उस से दूर रहने का दिखावा करती थी ना वो सिर्फ़ एक नाराज़गी थी. उस से जिसे तू सबसे ज़्यादा प्यार करती है. लेकिन मैने तेरे लिए अर्जुन की आँखों मे सिर्फ़ ओर सिर्फ़ प्यार ही देखा है. शायद मुझ से भी ज़्यादा.”, इतना बोलकर वो वही लिपट गई एक दूसरे से.

“वैसे एक बात तो बता तूने कभी मुझे तो अपने कपड़े उतार के नही दिखाए.”, अब ऋतु ने अलका की टाँग खींचते हुए कहा

“क्योंकि तेरे पास भी वही है ना जो मेरे पास है. लेकिन उसके पास जो है ना वो तो बसस्स्स्स्सस्स.” इतना बोलकर दोनो खिलखिला पड़ी. और एक दूसरे से लिपट कर लेट गई. मान बिल्कुल हल्का हो चुका था दोनो का. और रिश्ता ज़्यादा मजबूत हो गया था. प्यार जो एक ही इंसान से हुआ था.

रात को सब हल्का फूलका खा कर अपने कमरो मे आ गये थे. अर्जुन रामेश्वर जी के पाव दबा रहा था और कौशल्या जी भी सो चुकी थी.
संजीव आज रात भी बाहर था क्योंकि अगले दिन उसको दूसरे शहर मे कंपनी का काम था. कोमल आज अपनी मा के कमरे मे लेटी थी क्योंकि
रेखा जी को हल्का बुखार था. ऋतु और अलका भी सो चुकी थी दिन भर की थकान से. अपने दादा जी सोते ही अर्जुन भी सीढ़िया चढ़ दूसरी मंज़िल पर चल दिया.
“बड़ी देर लगा दी सनम आते आते”, अर्जुन ने जब ये लाइन सुनी तो देखा कि माधुरी दीदी हाथ मे चद्दर और तकिये लेके खड़ी थी .
उसने मुस्कुराते हुए अपने कमरे से गद्दा उठाया और चल दिए छत पर. नीचे वापिस आकर सजीव भैया के बेड से एक और गद्दा लेकर वापिस उपर आ गया. दोनो चुप थे. माधुरी दीदी ने दोनो गद्दे बिछाए और उनपे एक पुरानी चद्दर बिछा दी. फिर 3 तकिये गद्दो के उपर रख वो नीचे चली गई. अर्जुन वही बैठ उनका इंतजार कर रहा था. कोई 15 मिनिट बाद वो आई तो उनके हाथ मे कुछ था और अब शरीर पे
एक ढीली मॅक्सी पहनी हुई थी. मतलब वो नहा कर आई थी और सलवार कमीज़ उतार दिया था. उनके एक हाथ मे कटोरी और दूसरे मे एक छोटी
बॉटल थी. जैसे ही वो गद्दे पर बैठी अर्जुन की साँस बड़ी अद्भुत खुश्बू से भर उठी. “वाह.” इतना बोलकर वो दीदी की गर्दन से आती
महक को सुंगने लगा. माधुरी दीदी के गीले बाल भी महक रहे थे.
“दीदी लगता है आज मार ही डालगी.”, इतना बोलते ही उसने माधुरी दीदी के गाल चूम लिए. अब दीदी ने भी उसको अपने से लगा के उसकी गर्दन
पर चुंबन की झड़ी लगा दी. उनका पूरा शरीर महक रहा था. खाल इतनी मुलायम हो रखी थी जैसे मलाई हो. अर्जुन होल होल दीदी की
बाहों को सहलाने लगा और गर्दन से लेकर होंठो तक धीरे धीरे चूम रहा था. माधुरी दीदी ने पूर्ण समर्पण कर दिया और लेट गई गद्दे
पे. चाँद की रोशनी मे उनके उभार मॅक्सी मे से हिलते दिख रहे थे. अर्जुन ने अपनी कमीज़ उतार कर रख दी और सिर्फ़ पाजामे मे उनके उपर आ
गया. दोनो बेसूध हो एक दूसरे को चूमने लगे.
“भाई आज कोई रोक नही है तुझ पर. आज अपनी दीदी को इतना प्यार दे की कभी भूल ना पाऊ.” इतना बोलकर मधुरी दीदी फिर लिपर गई अर्जुन से
उनके हाथ अपने भाई की पीठ सहला रहे थे, हो बिल्कुल चिकनी और सख़्त थी. जब अर्जुन थोड़ा उपर उठा तो दीदी ने अर्जुन की चेस्ट पर जीब
लगा दी और उसकी छाती को चूमने लगी. “दीदी ये क्या कर रही हो. मुझे बर्दाश्त नही हो रहा.” मज़े के सैलाब मे उड़ते हुए अर्जुन को जब
कुछ नही सूझा तो उसने कपड़े के उपर से दीदी के गुब्बारे दबा लिए जो अंदर बिल्कुल आज़ाद थे. निप्पल फूल चुके थे और तने हुए थे.
अर्जुन ने दोनो निपल अपने दोनो हाथो की एक उंगली और अंगूठे के बीच कस लिए.
“आ भाई. आज इतना दर्द दे की फिर कभी दर्द ना हो. खींच इन्हे और खूब दबा . इनकी सारी अकड़ ख़तम कर दे.”इतना बोल माधुरी दीदी
पाजामे के उपर से ही अर्जुन का लंड सहलाने लगी. और दोनो के होंठ कुश्ती करने लगे आपस मे. सहलाते हुए ही दीदी ने अर्जुन का पाजामा खोल
दिया. उसका लंड किसी स्प्रिंग की तरह सीधा आ ल्गा उनकी ठोडी से. “कितना सुंदर है ये तेरा लंड मेरे भाई. और कितना बड़ा. पता नही क्या
होगा लेकिन आज ये तेरी दीदी को चाहिए.” इतना बोलकर वो अपने एक हाथ से अर्जुन की कमर थाम दूसरे हाथ से उसका लंड सहलाने लगी. मुट्ठी
मे पूरा लंड समा नही रहा था. और उसका टॉप तो उस से भी कही ज़्यादा मोटा था.
“दीदी, खड़ी हो जाओ.”, इतना बोल कर अर्जुन सीधा हुआ और अपनी दीदी को खड़ा कर उनकी मॅक्सी उतार कर गद्दे पे फेंक दी. एक कपड़े के नीचे माधुरी
दीदी पूरी नंगी थी. उनकी सुडोल मोटी जांघे आपस मे चिपकी हुई थी जिस से उनकी चूत दिखाई नही दे रही थी. गदराई कमर, और उस से उपर 2 बड़े पहाड़ से चूचे. अर्जुन ये नज़ारा देख अपनी दीदी से खड़े खड़े ही चिपक गया. उसका लंड दीदी की नाभि पर ठोकर मार रहा
था उत्तेजना इतनी ज़्यादा थी की रह रह के लंड मे झटके लग रहे थे. माधुरी दीदी सरकते हुए नीचे बैठ गई और एक बार फिर अर्जुन के
लंड को सहलाने लगी. फिर उन्होने वो छोटी बॉटल उठाई और उसमे से लोशन निकाल लंड की मालिश करने लगी. अर्जुन मज़े से बहाल हो रहा
था. “दीदी, आप लाते जाओ ना.” इतना बोलकर उसने अपनी दीदी को लिटा दिया
“अर्जुन बॉटल से लोशन लेकर तू भी मेरी चूत की थोड़ी मालिश कर जैसे तेरे लंड की मैं कर रही हू”, दीदी ने कहा तो अर्जुन ने ढेर
सारा लोशन लेकर उनकी टाँगे फैलाई और चूत के उपर उंगली से लगाने लगा. चूत फूलकर ब्रेड जैसी हो रही थी. उसमे से दीदी का कामरस
भी बह रहा था. फिर अर्जुन ने दो उंगलिया चूत की दरार मे घुमाई और उन्हे चिकना करने लगा. बचा हुआ लोशन उसने दीदी के दोनो
बड़े गुब्बारो मे मसल दिया. “चल भाई अब मेरे उपर आजा और जैसे मैं कहु वैसे ही करना. देख तेरा बहुत बड़ा है कोई ग़लती नहीं.”
दीदी की आवाज़ मे थोड़ा डर सा था लेकिन हिम्मत भी थी.

अर्जुन उनके पूरे शरीर पर छा सा गया था. घुटने ज़मीन पर रख दीदी की फैली हुई टाँगो के बीच उसने अपने लंड का टोपा
दीदी के चूत पर रगड़ना शुरू किया और अपने दोनो हाथो से उनके पपीते आटे की तरह घूठने लगा. इस दोहरी मार से माधुरी दीदी
की सिसकारिया निकलने लगी और उन्होने अपने हाथ से अर्जुन का लंड छेद पर टीका लिया. “भाई मेरे होंठ अपने होंठो मे दबा ले और जैसे ही
मैं इशारा दूँ तू धक्का मार दियो.”, ये बात बड़ी हिम्मत से कही उन्होने तो अर्जुन ने भी सर हिला दिया. दीदी अपने हाथ से ही उसका लंड चूत
की लकीर मे रगड़ रही थी. फिर एकदम चूत के छेद पर लंड का सुपाडा टीका दोनो ने होंठ से होंठ जोड़ दिए.

दीदी ने अर्जुन की गान्ड पर हल्की चपत से इशारा किया तो एक करारा धक्का लगा दिया अर्जुन ने. ना चाहते हुए भी एक तेज चीख उनके मूह से निकल
गई जो ज़्यादा तो अर्जुन के मुँह मे दबी रही पर फिर भी कुछ बाहर निकल ही गई. “आआअहह मैं मररररर गैिईई” और वो अपनी गर्दन
इधर उधर हिलाने लगी. अर्जुन ऐसे ही रुक गया था. उसके लंड का सुपाडा पूरा अंदर जा चुका था और कुछ गरम तरल सा लंड पे महसूस
हुआ. अर्जुन को ज्योति के साथ किया सेक्स याद आ गया और वो झुक कर दीदी के बूब्स चूसने लगा और सर को सहलाने लगा. उसका लंड चूत मे
फँस चुका था. कुछ 5 मिनिट बाद दीदी शांत हुई. “भाई थोड़ा धीमे से लगा इस बार.’ एक बार फिर अर्जुन ने दीदी के होंठ दबाए और पहले
जितना ही तेज धक्का मारा. लंड सभी रुकावटें तोड़ता 6 इंच तक जाकर बैठ गया था चूत में. इस बार दोनो की चीख निकल गई थी. दीदी
की टाइट चूत ने उसका लंड छिल दिया था और लंड का टांका पूरी तरह से टूट गया था.
“दीदी बस हो गया.”उसने गाल थपथपाते हुए कहा और उनके दूध रगड़ने लगा. माधुरी दीदी की तो बस जान निकलनी बाकी रह गई थी.
ऐसे ही चुचे दबाते चूस्ते अर्जुन ने उनका दर्द कम करने की कोशिश की जो सफल भी रही.
“देख अब बिल्कुल धीरे धीरे अंदर बाहर कारिओ और जितना गया है उतना ही डाल कर छोड़ मुझे.”, दीदी ने इतना बोला और अर्जुन लंड बाहर
खींचने लगा. लंड के साथ चूत की दीवारे भी बाहर खींचने लगी. दीदी के शरीर मे फिर दर्द की लेहा दौड़ गई. लेकिन अर्जुन ने अब
दिल मजबूत करके धीरे धीरे लंडा थोड़ा थोड़ा अंदर बाहर करना शुरू किया. उनकी चूत मे भी संकुचन होने लगा था. इतने दर्द के बाद
भी वो उत्तेजित हो रही थी और उसका सबूत था पानी छोड़ती उनकी चूत. अज़ून ने बॉटल से ही थोड़ा लोशन बाहर निकले लंड पर गिराया और
फिर अंदर बाहर करने लगा.
पाँच मिनिट की इस धीमी चुदाई से कुछ राहत मिली माधुरी को अब उसके चूतड़ भी उपर उठने लगे. ये देख अर्जुन ने भी थोड़ा ज़्यादा लंड
बाहर निकल कर अंदर करना शुरू कर दिया.पाँच मिनिट की इस धीमी चुदाई से कुछ राहत मिली माधुरी को अब उसके चूतड़ भी उपर उठने लगे. ये देख अर्जुन ने भी थोड़ा ज़्यादा लंड
बाहर निकल कर अंदर करना शुरू कर दिया.
“हा भाई बस ऐसे ही .. अया ऐसे ही कर मेरे भाई. मैं निहाल हो गई तेरे जैसा भाई पाकर. कितने प्यार से चुदाई कर रहा है.” और ऐसे सिसकारिया गूंजने लगी छत पर. अर्जुन की टांगे थकने लगी तो उसने थोड़ा तेज रफ़्तार से चुदाई शुरू कर दी. अब वो लंड को सुपाडे तक निकालता और उतना ही अंदर ठोक देता. साथ ही साथ वो उनके चूचे भी बेदर्दी से मसल रहा था काट रहा था.

“आ दीदी. कितनी प्यारी चूत है आपकी. अंदर से एकदम गरम जेल्ली जैसी. मेरा लंड फसा फसा जा रहा है.”

“भाई रुक तू थक गया होगा.” माधुरी को एहसास हो गया था के अर्जुन के घुटने दर्द करने लगे होंगे. और तकिया उसकी तरफ सरकाया.

अर्जुन ने एक तकिया अपने घुटनो के नीचे रखा और दो तकिये दीदी की गान्ड के नीचे सरका दिए. अब चूत उपर उठ गई थी. अर्जुन ने अब दीदी की जाँघो को थोड़ा उँचा किया और दीदी के होंठ मूह मे लेकर आख़िरी जोरदार धक्का दे मारा. लंड सीधा बच्चेदानी से जा लगा.

और फिर बिना रुके वो धक्के मारता रहा. अब दीदी की गु गु की आवाज़ और दोनो की जाँघो से पट पट की आवाज़ निकल रही थी. 5 मिनिट तक अर्जुन किसी घोड़े के तरह उनकी चूत को पेलता रहा फिर झुक कर उनके होंठ छोड़ दूध पीने लगा.

“तू तो पागल ही हो गया था भाई. जान निकल जाती. पता है अभी तू रुका है फिर भी पेट तक दर्द हो रहा है. “

“दीदी ऐसे तो ये दर्द कभी ख़तम ना होता. इसलिए एक बार ऐसा करना ज़रूरी लगा मुझे.” मुट्ठी मे चुचे दबाता अर्जुन बोला
तो दीदी के आँखें बंद हो गई. “दीदी, आप घुटनो पे आ जाओ ना.”, और इसके साथ ही उसका लंड चूत से बाहर आ गया. सोडा की बॉटल खुलने पर जैसी आवाज़ आती है वैसी आवाज़ आई चूत से. माधुरी भी हिम्मत वाली थी. जल्दी ही अपने घुटनो पर हो भाई की लिए गधी बन गई. अर्जुन ने लंड के सुपाडे पर थोड़ा लोशन और लगाया और निशाने पर सटाकर पेल दिया.
“आ भाई दर्द होता है धीरे नही डाल सकता था.”

“दीदी अभी पूरा कहाँ गया है थोड़ा बाहर है. और आपकी ये मखमली गान्ड कितनी बड़ी है.” कहते हुए अर्जुन ने गान्ड पकड़ के बचा खुचा लंड भी पेल दिया चूत के अंदर.

“आह भाई बस अब मत रुक. ज़ोर लगा के पेल अपनी बहन को फाड़ दे इस चूत को .. बड़ा तंग किया है इसने मुझे.”, अर्जुन भी अब सटासट पेले जा रहा था पीछे से. हाथ बढ़ा के उसने दीदी के बूब्स पकड़ रखे थे. सीन ऐसा था जैसे किसी दुधारू अमेरिकन गाय पर कोई जंगली सांड़ चढ़ा हुआ हो. हर धक्के पर लंड चूत की अंतिम गहराई तक जा रहा था. और ये तीसरी बार दीदी की चूत मे संकुचन हुआ था. पहली दो बार तो दर्द के कारण वो झाड़ते झाड़ते रह गई थी लेकिन अब जिस रफ़्तार से अर्जुन चुदाई कर रहा था दीदी बेहोशी की हालत मे जा रही थी

आख़िरी धक्के ताबड़तोड़ लग रहे थे और दीदी की चूत ने फ़ौवारा छोड़ना शुरू कर दिया. अर्जुन ने भी जड़ तक लंड फसा कर दीदी की चूत को अपने वीर्य से भरना शुरू कर दिया. करीब 1 मिनिट तक उसका लंड पिचकारिया मारता रहा और वो उनके उपर ही गिर गया. कुछ देर बाद लंड खुद से ही बाहर निकल गया. दीदी तो मूर्छित अवस्था मे थी और अर्जुन उनपे लुढ़का हुआ था.”उठ मेरे उपर से भाई.” कुछ देर बाद दीदी की आवाज़ से वो साइड मे लुढ़क गया.

“मुझे नीचे ले चल रे. सफाई करनी है. मुझसे खड़ा नही हुआ जा रहा.” अपना पेट पकड़ती माधुरी दीदी ने अर्जुन से कहा तो उसने अपनी बहन को किसी बची की तरह गोद मे उठा लिया और अपने कमरे मे ले आया. लाइट जलते ही अर्जुन दीदी की हालत देख कर सहम गया.

“आ देख कैसे फाड़ी है तूने मेरी. दीदी ने चूत की तरफ इशारा किया तो अर्जुन को फटी हुई खून और वीर्य से भरी चूत दिखी. जो
सुबह किसी माखन की डली सी थी. जगह जगह उसके दाँत के निशा ने थे. चूचे लाल पड गये थे. अर्जुन ने गीले कपड़े से दीदी की चूत सॉफ की और उसपे फ्रिज से निकाल के बरफ रगड़ ने लगा. चूत सुन्न्हो गई तो दीदी का दर्द कुछ कम हुआ.

“भाई देख ज़रा भैया के कमरे मे मेडिकल बॉक्स होगा ज़रा.”, इतना बोलकर दीदी सोफे पर लेट सी गई और अर्जुन भाग के साथ वाले कमरे से मेडिसिन बॉक्स ले आया, जो हमेशा भैया के बेड के साथ वाली मज़े पर रहता था. दीदी ने जबतक दवा ली, अर्जुन बाथरूम से उनका सलवार कमीज़ उठा लाया. बड़े प्यार से उसने पहले पाजामा पहनाया और फिर उनके उपर कमीज़ डाला. माधुरी दीदी भी अपने छोटे भाई का इतना प्यार देख भावुक हो गई.

“चल अब परेशान मत हो. 2 दिन तक सब ठीक हो जाएगा. एक बार तो होना ही था ये दर्द.”, महॉल को हल्का करते हुए जब माधुरी दीदी ने ये बात कही तो अर्जुन ने उन्हे वापिस उठा लिया और उपर ले चला. पहले दीदी को लिटाया और फिर उनको अपनी बाहो मे भर खुद भी लेट गया.

दीदी ने प्यार से एक गीला चुंबन उसके होंठो पर किया और किसी छोटे बच्चे सी उसकी बाहो मे सिमटी सो गई. इस सब मे रात के 2 बज गये थे.

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