Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही – Pure Taboo Story

अपडेट 12
होली के दिन दिल जुड़ जाते है

रात के तकरीबन 2 बजे थे और कौशल्या जी के कमरे मे सोई हुई माधुरी की नींद प्यास की वजह से खुल गई थी. कमरे मे
हल्की रोशनी मे उसने देखा कि पानी बिल्कुल विपरीत दिशा मे रखा था और इस बीच दादी और कोमल सो रहे थे. माधुरी बिना शोर किए रसोईघर की तरफ चल दी. फ्रिज से बॉटल निकाल के वही खड़े होकर पानी पिया और पेशाब करने के लिए आँगन मे बने बाथरूम की और चल दी. माधुरी नंगे पैर ही थी तो उसके चलने की कोई आवाज़ नही थी. घर मे घुप शांति छाइ
हुई थी. माधुरी ने कमोड पे बैठने से पहले पाजामा सरकाया और बैठ गई. इतनी शांति मे उसके पेशाब की सीटी सी आवाज़
मधुर शोर मचा रही थी. निपटने के बाद बाहर निकल कर जैसे ही माधुरी नाल की तरफ बढ़ी उसके कानो मे चूड़ियों के
खनकने की आवाज़ आई. ये बहुत हल्की ही आवाज़ थी लेकिन इतनी शांति थी की सुनाई दे ही गई. माधुरी ने ध्यान दिया तो ये चाची के कमरे से आ रही थी जहाँ अभी भी ज़ीरो बल्ब की रोशनी हो रही थी. धीमे कदमो से वो उत्सुकता से उस तरफ
चल दी. दीवार पे लगी हुई बड़ी खिड़की के पल्ले थोड़े से खुले हुए थे तो माधुरी ने अपनी नज़र वही गढ़ा दी. उसकी नज़र
जैसे ही अंदर देखने की अभ्यस्त हुई तो उसका गला ही खुसक हो गया. रेखा चाची जो हमेशा सारी मे लिपटी रहती थी और
आधे से ज़्यादा समय सर पे भी पल्लू रखती थी माधुरी के नज़रो से कुछ ही दूरी पे एकदम नंगी पड़ी थी. उनके बड़े बड़े
अमृत कलश किसी पेंडुलम से हिल रहे थे. उसको चाचा का चेहरा और छाती ही नज़र आ रही थी जो बड़ी बुरी तरह से
चाची की टाँगे उपर उठाए मशीनी अंदाज मे धक्के पेल रहे थे.थपथप, फूच-फूच की आवाज़ से कमरा गूँज रहा था
उनका हाथ चाची के एक बड़े उभार को बेदर्दी से निचोड़ रहा था लेकिन चाची के चेहरे पे मज़े की लहर दिख रही थी. उंसकी सिसकारिया हल्की थी लेकिन वो लगातार सिसक रही थी.

कुछ ही देर मे चाचा ने उन्हे घुटनो के भार कर दिया. पहली बार माधुरी को चाचा का हथियार नज़र आया जो तकरीबन 6-7
इंच लंबा था और चाची की चूत के रस से भीगा चमक रहा था.

“अब डाल भी दो जी.” बड़ी धीमी सी आवाज़ सुनाई दी चाची की फिर चाचा ने हंसते हुए अपना लंड चूत पर सेट करके एक करारा धक्का लगा दिया और पूरा लंड जड़ तक अंदर घुस चुका था. “आई मा. हा ऐसे ही करते रहो.” और चाची की बात मानते हुए चाचा लग गये उनकी चूत ढीली करने. उनके बड़े चूतड़ हर धक्के के साथ हिल रहे थे और बड़े बड़े चूचे हवा मे झूल
रहे थे. कुछ देर बाद ही चाची का सर बिस्तर पर टिक चुका था और उनकी साँसें भी माधुरी को सुनाई दे रही थी.

“तुम्हारा तो हो गया जान अब ज़रा इसका भी ख़याल करो.” चाचा ने अपना लंड चाची के मूह के सामने कर दिया ये देख माधुरी
चकित रह गई के ये क्या हो रहा है

“इधर लाओ जी नही तो फिर तीसरी बार मेरी जान निकाल दोगे.” इतना बोल मुस्कुराती हुई रेखा चाची ने चाचा का लंड हाथ मे
पकड़ लिया और अगले ही पल आधे से ज़्यादा उनके लिपस्टिक से सजे रसीले होंठो मे घुस चुका था. और चाची मज़े से अपना मूह उसपे चला रही थी. ऐसा नज़ारा माधुरी ने अपने 25 साल के जीवन मे पहली बार देखा था और वो भी अपनी चाची को करते.

इधर चाचा की आँखें मज़े से बंद हुई पड़ी थी, ये देख माधुरी सोच रही थी के उसकी चाची कितनी शरीफ और संस्कारी
दिखती है लेकिन चाचा के साथ तो खुल कर मज़े उड़ा रही है.

“मेरा होने वाला है जान.” चाचा की आवाज़ से उसकी तंद्रा टूटी तो देखा कि चाची अभी भी उनका लंड चूसे जा रही है.
और फिर जब उसने देखा कि अब चाची ने लंड निकाल दिया तो नज़र आया के कुछ सफेद बूंदे उनके होंठो पर लगी है.

” हे भगवान ये दोनो तो कॉलेज के जोड़ो को भी पीछे छोड़ दे.” माधुरी अपनी चाची का अंदाज देख प्रभावित हो गई थी.

तभी तो चाचा उनके आगे पीछे घूमते रहते है जब भी घर होते है. वो दोनो अब हल्के कपड़े पहन चुके थे. माधुरी भी
चुपके से खिसक ली वहाँ से. उसकी चूत ने अतचा ख़ासा पानी बहा दिया था ये फिल्म देख कर. वापिस कमरे मे आकर पता नही वो कितनी देर करवटें बदलती रही फिर थोड़ी ही देर मे उसकी भी आँख लग गई.अर्जुन 4:30 बजे अपना ट्रॅक पेंट पहन कर नीचे आया था तो देखा उसके पिता जी भी स्पोर्ट्स शूस पहनी शरीर गरम कर रहे
थे. “गुड मॉर्निंग बेटा. आई वाज़ एक्सपेक्टिंग यू अट दिस टाइम आंड सी यू आर राइट ऑन टाइम.” शंकर जी ने कहा तो अर्जुन ने भी
प्रतिउत्तर दिया.” गुड मॉर्निंग डेड. बट आई वाज़ नोट एक्सपेक्टिंग यू अट दिस अर्ली टाइम. बट ग्लॅड तट यू स्टिल मेनटेन युवर हेल्थ रुटीन.” और मन मे सोचने लगा के अगर आज लेट हो जाता तो अपने पिता जी नज़र ना मिला पता और दादा जी से भी पिताजी सवाल करते.
“कम ऑन. लेट’स गो.” इतना बोलकर शंकर जी ने हल्के कदमो से दौड़ना शुरू कर दिया और अर्जुन भी उनका अनुसरण करने लगा. ऐसे ही 15 मिनिट दौड़ने के बाद उसके पिताजी पार्क मे चले गये और अर्जुन रोज की तरह अपने रास्ते हो लिया. शंकर जी पार्क मे हल्की चहल कदमी करते हुए घास पे बैठ योगा करने लगे और फिर नंगे पाव घास पर टहलने लगे. अर्जुन ने जब देखा कि आज वो 5 किमी आ चुका है तो वापिस चल दिया दौड़ लगाता हुआ घर पे. मौसम मे अभी भी हल्की ठंडक थी लेकिन अब उजाला हो रहा था.

5:30 बजे जैसे ही वो घर के अंदर आया तो सामने अपने पिताजी को दादा जी के साथ बैठे पाया. दोनो बातें कर रहे थे की
दादी चाय की ट्रे लेकर आ गई. “आ गया मेरा शेर.” दादाजी ने अर्जुन को जूते खोलते देखा तो पुकारा.

“हा दादाजी. मौसम अच्छा था तो आज पता ही नहीं चला.”

“अच्छा अब तू यहा बैठ मैं तेरे लिए दूध लेके आई.” इतना बोलकर दादीजी वापिस चली गई और रामेश्वर जी अपने बेटे से बातें
करते हुए ही अर्जुन के पाँव की उंगलियों पर सरसो के तेल से मालिश करने लगे.

“आप तो इसको खिलाड़ी ही बनाने मे लगे हो पापा. इतनी ट्रैनिंग और सेवा से कल को अगर ये कही आगे निकल गया तो?”, शंकर जी ने अपने पिता जी से ज़रा हल्के से ये बात कही.

“बेटा बड़े सांड़ को पालने वाला उसको एक पतली सी रस्सी से भी बाँध ही लेता है.” इतना बोलकर रामेश्वर जी ने अपने बेटे की तरफ देखा तो अब शंकर जी शांत मुद्रा से मुस्कुरा रहे थे.

“किस सांड़ की बात हो रहे है दादा जी?”, अर्जुन ने भोलेपन से पूछा तो उसके दादाजी ने भी हँसके कहा, “बेटा तेरे पापा की ही
बात कर रहा हू. ये शादी से पहले सांड़ जैसा ही था और फिर तेरी मा के प्यार से देख अब शांत बैल बन गया है.” इस बात
पर तीनो ही हंस दिए. शंकर जी को आज बड़ा अच्छा महसूस हो रहा था. दादी जी ने दूध का लौटा अर्जुन को दिया और तौलिया कपड़े शंकर जी. “जा बेटा अब नहा ले. फिर तेरा क्या भरोसा तू कहा निकल जाए.” अपनी मा को एक बार फिर गले से लगा के अर्जुन के पिता जी चल दिए बाथरूम की तरफ और अर्जुन दूध ख़तम कर पिछले आँगन मे चल दिया जहाँ पर उसकी मा रेखा झाड़ू दे रही थी. आ गया मेरा बचा”, इतना कह उन्होने अर्जुन का माथा चूमा और गले लगाया. अभी तक माधुरी, कोमल और ऋतु सो रहे थे लेकिन अलका अपनी दादी जी के पास पूजा मे बैठी थी, उसका जनमदिन जो था.”अच्छा बेटा तेरी ताई जी उपर सफाई कर रही है और मैं अब रसोईघर मे जा रही हू. तू जाकर ऋतु और कोमल को उठा दे. फिर नहाने चले जाना.” और इतना बोलकर वो रसोईघर मे चली गई. अर्जुन भी अपनी बड़ी दीदी के कमरे की तरफ चल दिया. उसने एक बार दरवाजे पर थपथपाया लेकिन कोई जवाब नही आया. दरवाजा वैसे ही भिड़ा था तो उसने धकेल दिया और अंदर आ गया.

कोमल ने छाती तक एक चद्दर ले रखी थी और वो सीधी सो रही थी लेकिन जब उसकी नज़र ऋतु दीदी पर गई तो उसके कदम
उनकी तरफ खुद ही चल दिए. घुटने तक पाजामा चढ़ा हुआ था, गोरी पिंडलियाँ नुमाया हो रही थी और फिर पूरा पेट कमीज़ से
बाहर था. इतनी खूबसूरत और गोरी पतली कमर, और चाँद से चेहरे पे आई हुई बालो की लटे. खूबसूरती का मुजस्समा सी
दिख रही थी. ध्यान से देखा तो ऋतु के चूचे कमीज़ के नीचे आज़ाद दिख रहे थे. अर्जुन होश मे आया और ऋतु के पास जा
बैठा. “दीदी उठिए. आज फाग है और अलका दीदी का जनमदिन. उठिए ना दीदी.” उसने अपनी बहन के गाल को एक बार हल्के से छुआ और फिर बाह पे हल्के से थपथपाया. ऋतु उनिंदी से अपने आस पास देखने लगी. जैसे ही उसको अपने पास अपना छोटा भाई बैठा दिखा उसकी मासूम सूरत मे एक पल के लिए खो सी गई वो. और उसने उसको अगले ही पल गले लगा लिया. “गुड मॉर्निंग भाई. ग्लॅड टू सी यू हियर.” एक तरफ तो अर्जुन को ऋतु दीदी के नंगे चूचे अपनी छाती पर महसूस हुए, लेकिन अगले ही पल वो अपनी बहन के प्यार को महसूस करने लगा. लेकिन उसने अपने हाथ से ऋतु दीदी को नही जकड़ा.

“आज तो शायद चमत्कार ही हो गया. या मैं सपना देख रही हू.” जैसे ही ऋतु ने कोमल की आवाज़ सुनी वो झट से अर्जुन से अलग हो गई. “मा को बोल वो कॉफी बनाए मैं अभी फ्रेश हो के आ रही हू.” ऋतु ने जैसे आदेश सा दिया और अर्जुन मशीन सा बाहर चल दिया.

“तू तो मेरी समझ से बाहर ही है ऋतु. इतना प्यार भी करती है उस से और फिर उसको अपने पास भी नही आने देती. क्या समस्या है तेरी?”, थोड़ा नाराज़गी भरे स्वर मे उसने ऋतु को डाँट सी लगाई क्योंकि उसके इस व्यवहार से अर्जुन कोमल से मिले बिना ही चला गया था.

“जो अपनी मर्ज़ी से कभी दूर गया हो और फिर इतने साल बाद वापिस आए तो रिश्ते मे फरक आ ही जाता है दीदी.”, थोड़ा गुस्सा था ऋतु की आवाज़ मे और दर्द भी. वो चुपचाप बाहर निकल गई. अर्जुन ऊपर वाले बाथरूम मे चला गया था अपनी मा को ऋतु दीदी का ऑर्डर बता कर. अर्जुन को उसके दादाजी ने एक बात बार बार सिखाई थी, जो बात या इंसान तुम्हे दुख दे उसके बारे मे सोचना नही.

और उसने वही किया. बस इतनी खुशी थी की वो आज 9 साल बाद अपनी बहन के गले लगा था. नहाने के बाद उसने संजीव भैया को उठाया और खुद तीसरी मंज़िल पर जाकर बैठ गया. बड़ी शांति थी वहाँ पर तो वो पानी की टंकी से पीठ लगा कर आँखें
बंद करके बैठ गया. 15 मिनिट गुज़रे होंगे के उसको अपने होंठो पर कुछ गीला सा महसूस हुआ. पलके खोली तो देखा माधुरी
दीदी अपनी जीभ उसके होंटो पर फिरा रही थी. बड़ी ही सेक्सी लग रही थी उनकी ये हरकत. अर्जुन ने भी नीचे से हाथ बढ़ा कर उनका एक दूध पकड़ कर दबा दिया. “अऔच. बदमाश कुछ भी करता है. च्ला नीचे खाना खा ले फिर तो टाइम मिलेगा नही. फाग खेलने पड़ोसी और ऋतु/अलका की सहेलियाँ आ जाएँगी.” इतना बोलकर वो पलट गई जाने के लिए लेकिन अर्जुन ने उनको एक बार पीछे से बाहो मे जकड़ बूब्स दबाए और उनके कुल्हो पर चुटकी काट उनसे आगे भाग गया. माधुरी भी अपने छोटे भाई की मस्ती देख खुश होती हुई उसके पीछे चल दी..

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