“भाई कभी हमें भी ले जा करो अपनी कॅषुयल मीटिंग्स मे”, रामेश्वर जी ने ठहाका लगते हुए कहा तो शंकर जी अपने पिता की बात पर मुस्कुरा दिए और जाते जाते आँखों से ही अपनी पत्नी रेखा जी को कुछ इशारा कर गये जिसे देखकर वो शरमाती हुई
वापिस रसोई की तरफ चल दी जहाँ ललिता जी और कोमल मीठी पूरियाँ बना रहे थे, माधुरी गुझिया बेल रही थी.
“वैसे एक बात तो है चाची, आप और चाचा अभी तक जवान हो. लगता नही कोमल और ऋतु जीतने बड़े बच्चे होंगे आपके”,
माधुरी की इस बात से जहाँ रसोईघर मे आती हुई कौशल्या जी के साथ साथ ललिता जी और कोमल भी हंस दिए, वही रेखा जी
पैर के अंगूठे से ज़मीन कुरेदने लगी.
“चल इधर ला ये थाल कुछ भी बोलती है. मार खाएगी मुझसे”, उन्होने झूठा दिखावा किया लेकिन मूह पे शरम छाई थी.
“तो सही तो कह रही वो. ग़लत क्या कह दिया मेरी बच्ची ने. अब तुम दोनो महीने मे 1-2 बार ही मिलोगे तो जवान ही रहोगे.”
कौशल्या जी ने भी माहॉल को थोड़ा और रंगीन कर दिया लेकिन यही उनसे ग़लती हो गई. रेखा जी तो कुछ बोली नही लेकिन कोमल ने बड़ा खूब कहा, “दादी तभी मैं कहूँ कि आप तो खुद अभी मा की बड़ी बहन लगती हो. देखो तो सर के बाल भी अब तक नही पके आपके.” और माधुरी की तरफ आँख मार दी. ऐसे ही ये लोग हसी खुशी काम करते रहे. कौशल्या जी की एक बात तो तारीफ के काबिल थी कि वो अपनी बहू-बेटिओं मे फरक नही करती थी. और हँसी मज़ाक भी खूब कर लेती थी
रामेश्वर जी भी अपनी बीवी के उपर हुए इस तारीफ युक्त हमले को सुनकर हंसते हुए वहाँ से निकल चले अपने बगीचे की तरफ.अपडेट 11
भाई, आई लव यू
शाम गहरा चुकी थी और संजीव कार चलाता हुआ अपने पिता राजकुमार जी के साथ घर आ रहा था बाजार से समान खरीद कर.
“पापा, मैं सोच रहा था इस बार छुटकी को स्कूटी दिलवा देते है. वैसे भी कल जनमदिन है उसका. कॉलेज भी जाने मे सहूलियत
होगी उसको और ऋतु को.”, उसने ये बात बड़े सोच विचार कर कही थी. राजकुमार जी भी अपने बेटे को पूरी इज़्ज़त देते थे तो उन्होने सिर्फ़ इतना कहा,”बेटा जैसा तुझे ठीक लगे. लेकिन उन्हे चलानी नही आती और एक बार मा से भी बात कर लेना.” राजकुमार जी का इशारा कौशल्या देवी से था.
“हा दादी से मैं रात को ही बात कर लूँगा. आपसे पूछना ज़्यादा ज़रूरी था क्योंकि दादी जी मान जाएँगी. वैसे भी कभी रिक्शा
तो कभी आप और मैं उन्हे लेके जाते है. इस से उनका टाइम भी बचेगा और निर्भर भी नही रहेंगी.”
“ठीक कहा बेटा. वैसे भी अगले महीने मेरा तबादला अगले शहर हो रहा है तो यहा सिर्फ़ तू ही रह जाएगा मैं तो सिर्फ़ सप्ताह
के अंत ही आया करूँगा.” राजकुमार जी को बात बिल्कुल सही लगी अपने बेटे की.
रास्ते मे उन्होने कार को हीरालाल ज़ोहरी की दुकान पर रुकवाया और वहाँ से अपना दिया हुआ ऑर्डर उठा लिया. दोनो वापिस घर चल दिए जहाँ सभी इंतजार कर रहे थे. जैसे ही कार घर मे दाखिल हुई संजीव समान निकालने लगा पिछली सीट से. अलका और कोमल ने भी मदद की उनकी. मिठाई के डब्बे, रंग-गुलाल, फल-फूल, कपड़े थे जो उन्होने खरीदे थे.
“छोटा कहाँ है गुड़िया?” संजीव जी ने ये बात अलका को देख कर कही
“वो तो सो रहा होगा अपने कमरे मे शायद. नही तो आपकी आवाज़ सबसे पहले उसको ही सुनाई देती है भैया.”
बहन की बात सुनकर संजीव भी मुस्कुरा दिया और बोला, “मैं और कोमल रखते है समान को, तू जाकर उसको उठाकर नीचे ले आ.” इतना बोलकर वो बैठक की तरफ समान लेकर चल दिए. अर्जुन को उठाने को सोचकर अलका के मन मे भी फुलझड़ी सी जल गई और वो कुलाँचे मारती सी बाहर वाली सीढ़ियों से ही दौड़ गई दूसरी मंज़िल पर. जैसे ही वो अर्जुन के कमरे मे दाखिल हुई तो देखा साहब बाजू के बल सोए पड़े है. चौड़े सीने पे कसी हुई सफेद बनियान और नीचे सफेद पाजामा. और जब नज़र रुकी बीच वाली भाग पर तो हया सी छा गई अलका के चेहरे पर. तंबू सा बना था वहाँ. हिम्मत कर वो उसके बिस्तर पर जा बैठी और गाल सहलाते हुए उसका नाम पुकार के लगी उठाने. “अर्जुन-अर्जुन, उठ ना. देख कितना टाइम हो आया है. 7 बज गये है भाई और सब बुला रहे है नीचे.”
थोड़ी से पलके उठा अर्जुन ने जब अलका को देखा तो गहराई से उसको देखते हुए खुद के उपर लिटा लिया बाहों मे भर के.
“आप भी आ जाओ ना यहा मेरे पास.” बंद आँखों से ही उसने अलका के कान मे ये सरगोशी की तो अलका ने खुद को ढीला छोड़ दिया उसकी बाहों मे. अर्जुन ने होले से अपने गाल अलका के गाल से रगड़ दिए. और अपनी छाती पर उसके भारी उरोजो को महसूस करने लगा.
“छोड़ दे ना भाई देख कोई आ जाएगा.” अलका ने भी ये बात बिना कोई छूटने के प्रयास से कही. उसको भी अपना नाज़ुक बदन अर्जुन की बाहों मे जकड़ा मज़ा दे रहा था.
“एक शर्त पर. अगर रात 12 बजे आप मेरा प्रेज़ेंट पहनकर मेरे रूम मे दिखाने आओगी तभी.”
अर्जुन की बात सुनकर अलका का रोम-रोम खिल उठा लेकिन फिर भी उसने दिखावा किया, “इतनी रात को मैं तेरे कमरे मे कैसे आउन्गी भाई.? तू खुद ही सोच ना और उपर से साथ वाला कमरा संजीव भैया का है. उन्होने देखा तो?”
“मैं कुछ नही जानता दीदी, मुझे तो बस आपको उन्हीं कपड़ो मे सबसे पहले देखना है. और मैं ही सबसे पहले विश करूँगा.” अर्जुन ने अब खड़े होते हुए ये बात कही. और फिर अलका के गाल को चूमकर सीधा बाथरूम मे घुस गया. अलका वही खड़ी सोचती रही. 5 मिनिट बाद दोनो नीचे चल दिए.”आजा भाई यहा बैठ.”, कोमल ने कुर्सी आगे करते हुए अर्जुन को कहा. दोनो की नज़र 4 हुई तो दोनो खिल उठे. अर्जुन वही बैठ गया
“मेरे लिए क्या लेके आए भैया आप?” अर्जुन ने संजीव भैया से पहली बात यही कही तो सभी उसकी बात सुनकर हँसने लगे
“तेरे लिए तो कुछ मिला ही नहीं भाई. और पापा को घर जल्दी आना था तो वैसे भी कुछ खास ले नही पाए.” संजीव ने जवाब दिया तो अर्जुन को मूह लटक गया. फिर भी उसने मूड सही किया और बोला, “तो ठीक है ना. हम अभी चलते है और ले आते है मार्केट से.”
“कोई कही नही जाएगा. जिसने जो भी लेना हो परसो ले लेना.” ये आवाज़ थी रामेश्वर जी की. ये सुनकर तो अर्जुन बिल्कुल ही उदास हो गया
“सब चुप करो. बहुत हुआ. मेरे बच्चे के लिए तो मैं ऐसे त्योहार रोज मनाउन्गी.” कौशलया जी इतना बोलकर अर्जुन को दुलार्ने लगी और अपने हाथ से 5-6 डब्बे उसके सामने रख दिए. “ये ले बच्चे ये सब तेरे लिए है. तेरी पसंद की सफेद शर्ट, जीन्स, जूते, पर्स.”
“दादी आप जैसा कोई नही.” इतना बोलकर अर्जुन ने अपनी दादी के गाल चूम लिए. फिर रामेश्वर जी ने भी हंसते हुए सभी बच्चों को उनके उपहार दिए और कौशल्या जी ने अपनी बहुओं को.
“वो दादी जी एक बात करनी थी आपसे. अगर इजाज़त हो तो.?” संजीव ने जब ये बात कही तो वहाँ रामेश्वर जी, अलका, ऋतु और अर्जुन ही थे.
“बोल मेरे बच्चे. तुझे कब से मुझसे पूछने की ज़रूरत आन पड़ी?”, स्नेह भाव से कौशल्या जी ने ये बात तो कही लेकिन उन्हे संदेह हुआ की शायद कुछ ज़्यादा ज़रूरी बात है.
“वो मैं दादी जी ये कह रहा था कि अलका और ऋतु कॉलेज जाती है और दोनो समझदार भी है.”झीजकते हुए अपनी बात जारी रखी
“तो मैं सोच रहा था कि उन दोनो के लिए एक स्कुटी ले दूँ. इस से उनको किसी पे निर्भर भी होना नही पड़ेगा और कॉलेज आने जाने का टाइम भी बचेगा. पापा का भी तबादला हो रहा है अगले महीने और तब तक इनके एग्ज़ॅम्स भी ख़तम हो जाएँगे. छुट्टियों मे सीख भी लेंगी और नई क्लास मे दोनो उसी पे साथ चली जाया करेंगी.” इतना कहकर संजीव चुप हो गया और सब तरफ शांति छा गई.
“हा तो बात बिल्कुल ठीक है तेरी बेटा. लेकिन..” कौशल्या जी ने अनमने ढंग से बात शुरू करी थी की अलका ने अपने दादा जी की तरफ गुहार लगाई.
“जब बात ठीक है तो थानेदारनी जी इजाज़त मे इतना टाइम क्यो? और वैसे भी मेरी बेटियाँ कोई बेटों से कम है क्या? तू बोल संजू बेटा कितने पैसे लगेंगे, मैं परसो देता हू बॅंक से निकलवा कर.” रामेश्वर जी ने दो टुक बात कही
“वो दादा जी मैं पहले ही बुकिंग करवा चुका हू गुड़िया के जनमदिन का यही तोहफा मुझे ठीक लगा था. आपकी और दादीजी की इजाज़त के बिना तो मैं ये कर नही सकता था तो इसलिए आपकी आग्या ही चाहिए. परसो आ जाएगी घर.” संजीव ने अभी भी गंभीरता से बात कही.
“ठीक बात है बेटा. लेकिन ज़्यादा खुश होने की ज़रूरत नही है. कॉलेज से आने के बाद चाबी रोज मेरे कमरे मे होनी चाहिए.” दादी ने इतना ही बोला था कि अलका जा चिपकी अपनी दादी से. ये देख रामेश्वर जी को बड़ी खुशी हुई की उनके परिवार मे आज भी सभी निर्णया बडो की मर्ज़ी और सलाह से होते है. अपनी जगह से उठते हुए उन्होने एक बार संजीव के सर पर प्यार से हाथ फेरा और कौशल्या जी के साथ अंदर जाने लगे.
तभी उन्हे अर्जुन मूह लटकाए बैठा दिखा.. “अब तुझे क्या हुआ जो ऐसे मूह बनाए बैठा है?” रामेश्वर जी ने उस से पूछा तो जवाब कौशल्या जी ने दिया, “इसको कार सीखनी है और मैने मना कर दिया है.”
“चल बेटा कभी कभी अपनी दादी की एक आधी बात मान लिया कर. गर्मी की छुट्टियों मे तुझे कार सीखा देंगे लेकिन तुझे तेरी कार कॉलेज के बाद ही मिलेगी.” इतना बोलकर दोनो चले गये और यहा संजीव अपनी कुर्सी से उठा और अर्जुन को इशारा कर बाहर चल दिया.”हा भैया. अब बताओ” बाहर आकर अर्जुन ने संजीव भैया से पूछा
“छोटे मैने पापा को बोल दिया है के दोस्त के घर जा रहा हू. तू घर का ध्यान रखना मेरे पीछे से.”, संजीव ने कार की चाबी जेब
से निकलते हुए कहा.
“वो तो ठीक है भैया आप आओगे कब वापिस?”
“भाई मैं सुबह 7 बजे तक आ जाउन्गा.”
“ठीक है भैया.” इतना बोलकर संजीव भैया कार लेकर निकल गया और अर्जुन ने मैं न गेट ढाल दिया.
अंदर आया तो अब मा और ताई जी खाना बना रहे थे और कोमल अपने दादा-दादी को उनके कमरे में ही खाना दे रही थी.
“तेरे पापा नज़र नही आ रहे ऋतु?”, राजकुमार जी ने ये बात पूछी ऋतु से जो वही बैठी थी.
“पापा देर से आएँगे ताऊ जी. वो मल्होत्रा अंकल के साथ गुलाटी अंकल के घर गये है. और बोलकर गये थे के सुबह आपको उनके साथ कही जाना है.”
अपनी भतीजी की बात सुनकर उनके मूह पर एक छोटी सी मुस्कान आ गई. “ठीक है.”
अब अलका, कोमल और माधुरी खाना खा रहे थे और ऋतु खाना परोस रही थी. अर्जुन भी आकर बैठ गया फ्रेश होकर वही.
“मालकिन इस ग़रीब को रोटी मिलेगी क्या आज?”, अर्जुन ने ये बात ऋतु को छेड़ते हुए कही थी.
“हा. लेकिन हमारे घर मे रिवाज है के नौकर मालिक के बाद खाते है.” ऋतु ने भी अर्जुन को उसके ही लहजे मे जवाब दिया ये देख अलका मुस्कुरा रही थी.
“दीदी आप खाना खाओ नही तो फिर खाँसी आ जाएगी.” अर्जुन ने अब अलका को छेड़ा तो ऋतु और अलका दोनो ही हँसने लगी
“चाची आज मुन्ना दूध ही पिएगा.” जब ये बात अलका ने कही तो चारो बहने खिलखिलाकर हँसे लग पड़ी और अर्जुन ने तल्खी से अलका को देखा लेकिन कुछ कहा नही. ऋतु ने भी उसकी प्लेट लगा दी थी लेकिन अर्जुन ने खाना शुरू नही किया.
“अर्रे मेरा प्यारा भाई. चल गुस्सा नही करते देख खाना ठंडा हो रहा है ना.”माधुरी ने ये बात पीछे से अर्जुन के गले मे हाथ डालते हुए कही तो अर्जुन के चेहरे पे वापिस चमक आ गई और वो खाने लगा. अलका ने देखा तो उसको उसकी ग़लती महसूस हुई लेकिन वो चुपचाप खाना बीच मे छोड़ अपने कमरे मे चली गई.
“अच्छा सब टाइम से सो जाना अब ठीक है. सुबह बहुत काम है. और माधुरी और कोमल अभी तुम दोनो एक बार नहा लो फिर मा जी के साथ पूजा करनी है 10 बजे.”, ललिता जी ने ये बात सबसे कही थी.
अर्जुन उठा और चल दिया उपर अपने कमरे मे. समय था कि कट ही नहीं रहा था. वापिस उठकर उसने टेलीविजन चालू किया और हाथ मे तकिया लेकर बैठ गया. ज़ी सिनिमा चॅनेल पर एक डरावनी फिल्म आ रही थी “रात”, वो बस वही देखने लगा. थोड़ी देर में ही ऋतु और अलका उपर आ गये कपड़े बदल कर. अलका का चेहरा अभी उतना नही चमक रहा था लेकिन वो ठीक लगने की कोशिस कर रही थी.
“क्या देख रहा है तू?” ऋतु ने हक़ जमातेहुए ये बात कही अर्जुन से और बैठ गई उसके साथ. ये पहली बार था कि वो बड़े सोफे पे ऐसे बैठी थी.
“तू वहाँ क्यो बैठी है? चल इधर आ देख कितनी जगह है यहा.” उसने अलका को भी ऑर्डर दिया तो वो कुछ सहमी हुई से ऋतु के साथ बैठ गई. ऋतु का ध्यान फिल्म मे था, अलका चुपके चुपके टेलीविजन और अर्जुन को देखे जा रही थी. 10 मिनिट बाद ब्रेक हुआ तो ऋतु खड़ी हुई. “यार फिल्म मत बदलना मैं बस अभी आई पानी लेकर.” इतना बोलकर वो चली गई और पीछे रह गये अर्जुन और अलका.
“आई एम सॉरी अर्जुन.” जैसे ही अर्जुन को ये आवाज़ सुनाई दी तो उसकी नज़र गई अलका पर जिसकी आँखे भीगी हुई थी. वो एक झटके मे खड़ा हुआ और अपने दोनो हाथो से अलका का चेहरा थामते हुआ बोला, “दीदी, ये क्या है? किस बात की सॉरी? आप रो क्यू रही हो?” उसका दिल बैठ गया अपनी बहन की आँखों मे आँसू देख कर. और उसने अलका को अपने से चिपका लिया.
“वो मैने आ तुझसे ग़लत तरह से बात की थी इसलिए. जब तुझे बुरा लगा तो मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ. आई एम सॉरी अर्जुन.”, इतना बोलकर वो फफक पड़ी.
” ओह्ह्ह चुप हो जाओ दीदी. वो तो देखो रोज का मज़ाक ही था ना. अब आपकी आँखों मे आँसू देख कर मेरे दिल मे दर्द हो रहा है. प्लीज़ चुप हो जाओ.” और उसने एक बार अलका के गाल चूमे और सर सहलाया. सीढ़ियों पर कदमो की आवाज़ से अलका सीधा बाथरूम मे चली गई. मूह सॉफ करने और अर्जुन वापिस वही बैठ गया. “कितनी भोली है अलका दीदी” उसने मन मे सोचा.
“ये महारानी कहाँ चली गई अब.?” ऋतु ने आते ही अर्जुन से पूछा.
“वो दीदी वॉशरूम गई है.”
इतने में ही अलका बाहर आ गई. चेहरा पानी से धोया हुआ था और कुछ बूंदे अभी भी थोड़ी से नीचे टपक रही थी टीशर्ट पर.
“क्या हुआ जो तुझे मूह धोना पड़ा?” ऋतु ने मज़ाक किया तो अलका ने भी हंसते हुए जवाब दिया, “वो तूने दिन मे गाल छु लिए थे ना तो अभी भी जलन हो रही थी.” और वो दोनो हंस पड़ी. अर्जुन को इल्म नही था कि इन दोनो ने दिन मे क्या किया था.
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