Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही – Pure Taboo Story

क्या था उसके दिल मे जो अपने भाई से 8 साल दूर होने के बाद घर कर गया था.

अलका ने बात आगे बढ़ाई,” वैसे तू मुझे क्या दे रही है? चाचा जी ने तो 2 कंगन बनवाए है मेरे लिए सोने के. चाची जी
ने एक नया फूलकारी वाला सूट, माधुरी डिक्सिट जैसा. पापा तो कल ही देंगे लेकिन दादा जी ने बॅंक मे अकाउंट खुलवा दिया है और 50,000 जमा किए मेरे नाम से.” बिस्तर पर दोनो आमने सामने लेटी थी झुकी हुई सी.

“यार तेरा सही है. इतना कुछ मिला है तो मैं सोच रही थी कि तू ही उपहार देदे मुझे.” बोलकर ऋतु खिलखिला उठी. सबके सामने हिट्लर सी रहने वाली ऋतु सिर्फ़ अलका, शंकर जी और अपने दादी जी के साथ ही खुलकर बात करती थी. दादी तो खुद हिट्लर थी तो उनको अपनी यही ग़ुस्सेल पोती पसंद थी और पिताजी भी ऐसे ही थे. लेकिन अलका और ऋतु बचपन से एक साथ रही थी और अलका का विपरीत स्वाभाव ही था कि ये दोनो एक दूसरे से जान तक जुड़ी थी.

“हा तो तुझे पता ही है मैं कॉन्सा कंगन पहनती हू. तेरे ही है वो और जो भी संजीव भैया देंगे वो भी तुझे ही मिलेगा.”,

अलका ने प्यार से उसकी ठोडी उपर उठा के बोला तो ऋतु ने कुछ ना कहा बस हल्के से चूंटि काट दी अलका के झाँकते हुए उभारों पर.

“आह.. कमीनी”, इतना बोलकर दोनो मुस्कुरा दी..”तू कभी नही सुधरेगी ना? जब देखो तुझे यही दिखता है.” अलका ने झूठे गुस्से से कहा तो ऋतु ने पलट वॉर किया, “दिखती है तभी तो दिखते है मेरी जान. वैसे कुछ भी के अलका तुझे देखती हो तो ऐसा लगता है के मैं तो कुछ भी नही तेरे सामने. भगवान ने तुझे ना जैसे अपने स्वर्ग के लिए ही बनाया था और भेज दिया यहा.” इतना बोलकर एक बार फिर उसने अलका के उभार पकड़ लिया.

“क्या करती है पागल कुछ भी बोलती है. तू शायद ये भूल रही है तू क्या चीज़ है यार. पिछले साल याद है ना फ्रेशर टाइम
क्या हुआ था? लड़के पुलिस की लाठियाँ खाने से भी हटे नही थे तुझे सारी मे देख कर.” अलका ने ऋतु का हाथ हटाने के कोई
कोशिश नही की, उल्टा खुद भी उसके गले से नीचे हाथ फेरने लगी.

“इतना खूसूरत होने का फायेदा ही क्या हम दोनो का जो शादी तक रहना ही जैल मे है. और फिर शादी के बाद पता नही कैसा घर माहॉल मिले.” दार्शनिक अंदाज मे अपनी बात कहते हुए ऋतु अब अपना पूरा हाथ अलका की कमीज़ मे घुसाए उसका एक चूचा दबा रही थी..

“स्शह.. बस कर यार. तेरा तो पता नही लेकिन मैं तो जिंदगी जीने मे यकीन करती हू. काट ता तो कुत्ता भी है और हम पढ़े
लिखे इंसान है.” अपनी चूची के दबाए जाने से मज़े मे आती अलका ने भी ऋतु का निपल खींच लिया और उसकी भी सिसकी फूट गई

“मत आग लगा कमिनी. पछताएगी.”इतना बोलकर ऋतु उपर आ गई अलका के लेकिन अपना पूरा वजन नही डाला. “और क्या कह रही है के तू जिंदगी जीने मे यकीन करती है? कोई शहज़ादा तो नही आ गया तेरे सपने मे?” इतना बोलकर इस बार ऋतु ने अपने दोनो हाथ अलका की कमीज़ मे घुसा दिए और पूरा कमीज़ उल्टा दिया गले तक.

“ओये अभी मत कर. तेरा ये मस्ती करना दोनो को भारी पड़ जाएगा किसी दिन.” अलका बोल तो रही थी लेकिन खुद उसने भी ऋतु की टी शर्ट मे दोनो हाथ घुसा दिए थे. “और कोई शहज़ादा वहजादा नही आया सपने मे. अब जो भी आएगा सामने ही आएगा. और प्यार होना है तो होकर ही रहेगा. शादी जहाँ मर्ज़ी हो.”, इतना बोलकर उसने भी ऋतु की ब्रा उलट दी.

“वाह मेरी भगत सिंग. क्रांति की बातें कर रही है.” ऋतु ने अब अलका के दोनो चुचे जो की बिल्कुल सर उठाए खड़े थे, एकदम गोरे और लालिमा लिए हुए अपने दोनो हाथो से सहलाने दबाने शुरू कर दिए. उनपर उगे नुकीले हल्के भूरे निप्पल कड़े होकर सुलग ने लगे थे. वही ऋतु के एकदम सफेद चूचे जो किसी भी प्रकार से अलका से कम ना थे वो भी अकड़ने लगे. उनपे हल्की नीली रेज सॉफ दिख रही थी.

अलका ने उन्हे मसलते हुए कहा,”देख मेरी जान कल को किसी अजनबी से शादी करके घर तो बसाना ही है. फिर वहाँ ही रोना पड़ा या हँसना तो उस से पहले जीना कोई गुनाह तो है नही.”, इतना कहकर उसने ऋतु का एक पूरा चूचा चूसना शुरू कर दिया और ऋतु भी अलका का सर सहलाने लगी..

“सही कह रही है मेरी जान तू. यहा सब आराम है लेकिन क्या फायेदा इन सुख सुविधा का जहाँ अपनी मर्ज़ी से बाहर ही ना जा सके.”
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अगले 10 मिनिट तक दोनो ही एक दूसरे को ऐसे ही गरम करती रही जोकि ये महीने मे 2-3 बार करती ही थी जब भी अकेली होती थी.

दोनो के तन पर सिर्फ़ पाजामा ही था और ऐसा प्रतीत होता था कि 2 अप्सराएँ एक दूसरी से नागिन की तरह लिपटी है. और तभी दरवाजे पे ” टक – टक “

“कौन है?”, ऋतु ने पास रखी टी शर्ट पहनते हुए कहा और अलका को उसकी कमीज़ पकड़ाई. दोनो ने बिना ब्रा के ही वो पहन लिए.

“अर्रे ऋतु दरवाजा तो खोल. मुझे बुक्स रखनी है और मैं चाय बना रही हू तू दादा जी और पापा को उठा दे. 4 बज रहे है.
बाकी सब भी पूजा से आने वाले होंगे.” कोमल ने इतना बोला था कि दरवाजा खुल गया. वो अंदर आई अपनी किताबें रखकर सीधा बाहर चली गई. और ये दोनो मुस्कुराती हुई अपनी अपनी ब्रा पहन कर, कपड़े ठीक कर ऋतु चली गई शंकर जी को उठाने औरअलका अपने दादा जी को.दूसरी तरफ संदीप और उसकी माता जी भी पूजा से फारिग होकर घर आ गये थे. वापिस आने मे उनको कोई 3 घंटे तो लग ही गये थे. घर मे घुसते ही रजनी जी की नज़र पड़ी बेड पर लेटी हुई ज्योति पर फर्श पर रखे जाला उतारने वाले ब्रश पर.

“बेटी, क्या हुआ? ये कॉन्सा समय है सोने का?”, रजनी जी ने बड़े प्यार से ज्योति के सर पर हाथ फेरते हुए उसको उठाया.

“वो मा मैं दीवार से मकड़ी के जाले निकाल रही थी कि टेबल सरक गया और मैं नीचे गिर गई. लगता है जाँघ की नस चढ़ गई कोई और पाँव भी दुख रहा था.”, ज्योति ने बड़ी सफाई से झूठ बोला रॉनी सूरत बना कर.

“क्या पड़ी थी बेटा ये सब काम तुझे करने की? इसके लिए ये संदीप और तेरे पिताजी है ना. अब देख त्योहार के दिन तुझे चोट लग गई.” उन्होने भावुकता से उसका माथा सहलाया. “तुझे तो बुखार भी आ गया है बेटा. संदीप, ज़रा दावा का डब्बा और पानी लेकर आ यहा.”

संदीप ने अपनी मा के हाथ मे डब्बा पकड़ाया तो रजनी जी ने उसमे से क्रोसिन दवा निकाल कर अपनी बेटी को खिलाई और पानी दिया.

“मा मैने दर्द की दवा खा ली थी. रात तक ठीक हो जाउन्गी मैं. आप चिंता मत करो और पापा को मत बताना कुछ भी.” ज्योति
की बात सुनकर रजनी जी को हँसी आ गई. “चल बेटी तू आराम कर मैं रसोई मे जा रही हू कल के लिए पकवान और गुझिया भी
बनानी है.” एक बार फिर प्यार से हाथ फेर कर रजनी जी चल दी रसोईघर मे और संदीप अपनी दीदी के पैरो की तरफ बैठ
गया. “दीदी मैं वापिस आकर कर ही देता. देखो अब आप तो बीमार पड़ गई. कल फाग कौन खेलेगा?” उसने थोड़ा जज्बाती होकर ये बात कही अपनी दीदी से. संदीप और ज्योति मे आपस मे प्यार तो बहुत था लेकिन इन दोनो मे एक सीमा थी जिसकी दोनो इज़्ज़त करते थे.

“अर्रे 3-4 घंटे की तो बात है भाई. देख फिर कल जमकर रंग लगाएँगे सबको.” उसने भी प्यार से जवाब दिया

“अच्छा दीदी, वो अर्जुन कब गया था घर.? वो मैने उसको रुकने का बोला था और मुझे ही देर हो गई.”

अर्जुन का नाम सुनकर ही ज्योति की चूत कुलबुला गई. हाए रे कितना जालिम है तेरा दोस्त और उसका लंड. तेरी बहन को बेड पे लिटा कर खुद मज़े कर रहा है. ज्योति ने ये मन में ही सोचा.

“भाई वो तो 10 मिनिट इंतज़ार करके ही वापिस चला गया था. मैं बाहर सफाई कर रही थी तब.? बड़ी सफाई से एक और झूठ
बोला ज्योति ने और उसकी दुखती हुई चूत में खारिश शुरू हो गई.

“अच्छा दीदी आप आराम करो मैं रसोई मे मम्मी के मदद करता हू.” इतना बोलकर वो उठ गया वहाँ से और ज्योति ने अपनी चूत को कस कर सहला दिया. “अगली बार तेरा पूरा मूह खुलवाउन्गी उसके लौडे से”, अपनी मुनिया को बोल हंसते हुए ज्योति ने भी पलके बंद कर ली.

“अच्छा मा अभी तो मैं काम से जा रहा हू, देर रात तक आउन्गा तो आपसे कल सुबह ही मिलूँगा.” शंकर जी ने चाय ख़तम करते हुए एक छोटा सा डब्बा रामेश्वर जी को दिया और पास मे बैठी अपनी मा कौशल्या जी के हाथ मे एक शगुन का लिफ़ाफ़ा थमा दिया. “आंड फॉर माइ स्वीट लिट्ल प्रिन्सेस, हियर ईज़ आ स्माल लिट्ल बर्तडे प्रेज़ेंट.” रेखा जी के हाथ से एक चमकदार छोटा सा डब्बा उन्होने लेकर अलका का दिया और उसका माथा चूम लिया. “थॅंक’स आ बंच चाचा जी.” उसने भी उनके गले लगकर अपना प्यार जताया.

“भाई कभी हमें भी ले जा करो अपनी कॅषुयल मीटिंग्स मे”, रामेश्वर जी ने ठहाका लगते हुए कहा तो शंकर जी अपने पिता की बात पर मुस्कुरा दिए और जाते जाते आँखों से ही अपनी पत्नी रेखा जी को कुछ इशारा कर गये जिसे देखकर वो शरमाती हुई
वापिस रसोई की तरफ चल दी जहाँ ललिता जी और कोमल मीठी पूरियाँ बना रहे थे, माधुरी गुझिया बेल रही थी.

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