Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही – Pure Taboo Story

अपडेट – 10
प्यार और परिवार

घर की सभी महिलाए पड़ोस वाले गुप्ता जी के घर गई हुई थी जहाँ होली की कथा सुनाई जा रही थी. दोपहर का 1
बज रहा था और इस समय रामेश्वर जी भोजन करने के बाद अपने कमरे मे नींद ले रही था. ऋतु और अलका एक साथ
बीती पधारी भी कर रही थी और कुछ खुसुर फुसुर भी.

कोमल का भी फाइनल का इम्तिहान था तो वो दूसरी मंज़िल वाले ड्रॉयिंग रूम, जहाँ इस समय कोई नही था बैठी हुई इत्मीनान से नोट्स बना रही थी. संजीव भी गुप्ता जी के ही घर पर था क्योंकि उसको वही से दादी जी और घर की बाकी महिलाओं के साथ पूजा का समान लेकर होलिका स्थान पर जाना था. गुप्ता जी का बेटा अरुण संजीव का अच्छा मित्र था तो वो दोनो अलग कमरे मे बैठे गप्पे हांक रहे थे.

और यहा घर पर माधुरी भीतर वाले आँगन मे बने बाथरूम मे स्टूल पर बैठी किसी बात को सोच मुस्कुरा रही थी. “हाए राम. ये ऋतु भी ना, क्या ज़रूरत थी मुझे ये सब देने की”, खुद से बातें करती हुई वो अपनी योनि पर उग्ग आए जंगल को सहलाते हुए उनपे क्रीम लगा रही थी. पूरा शरीर दमक रहा था उसका और पूरी योनि के इर्द-गिर्द सफेद क्रीम लगी थी. ऐसे बैठे होने से उसके दूध अपने आप सख़्त हो रहे थे और उनपर चिपके हुए वो भूरे रंग के निप्पल नंगे होने के एहसास भर से तीर की तरह तीखे हो चुके थे. पूरे शरीर पर रोए खड़े हो गये थे.माधुरी के शरीर मे भी एक बात कमाल की थी. उसके किसी भी हिस्से पर कही कोई बाल नही था. ना हाथो पर और
ना ही कही जाँघ, पिंडलियो या चुतड़ों पर. सिर्फ़ चूत के उपर एक उल्टा वी के आकर का जंगल थे और ऐसे ही बड़े हल्के
से बाल चूत के चारो तरफ. “ऋतु ने बोला था कि 10 मिनिट लगा कर रखना है फिर कपड़े से सॉफ करके धोना है”,
यही याद आते ही माधुरी ने अपनी आँखें बंद कर ली और अगले ही पल उसकी साँसों की रफ़्तार बढ़ गई. “हाए अभी भी
ऐसा लग रहा है जैसे वो पागल अपना डंडा घिस रहा हो मेरी मुनिया पर.”, ऐसा एहसास होते ही उसकी चूत से एक ओस
की बूँद बाहर निकल आई और चूत के मुहाने पर रुक गई. और उसके मूह से हल्की सिसकारी निकल गई , ” आह्ह्ह्ह पागल कर दिया है इस लड़के ने तो. और क्या हालत कर दी है मेरी.” खुद से बातें करते हुए जब माधुरी की नज़र सामने लगे
शीशे पर पड़ी तो उसने देखा छोटे छोटे नीले निशान उसके निप्पलो के आसपास बने हुए, लाल लाल खरोंच के निशान
और सूजे हुए दोनो निपल जो अब पहले से कही बड़े दिख रहे थी. जैसे ही उसने अपने निपल को छूआ, वो चूत पर रुकी
शबनम की बूँद फर्श पर जा गिरी. “ऊई मा.” फिर जब उसने ध्यान दिया के क्रीम सूखने लगी है तो पास मे रखे गीले
कपड़े से उसने उपर से नीचे तक रगड़ के पोंछ दिया. “वाह.” माधुरी के मूह से अपनी चूत देख कर यही निकला बस.
जहाँ पहले जंगल था वो जगह अब ऐसे दमक रही थी जैसे कोई बाल वहाँ उगा ही ना था. और उसकी चूत के दोनो मोटे
होंठ अब सॉफ गोरे और पहले से ज़्यादा फूले दिख रहे थे. कुछ सोच कर वो शरमाई और सारा कचरा एक पॉलितेन मे
डाल दिया. चूत को ठंडे पानी से ढोने के पाउडर लगाया और कपड़े पहन चल दी अपने कमरे मे कोई गाना गुनगुनाते हुए.

अर्जुन जैसे ही घर पहुचा बिना किसी को देखे सीधे अपने कमरे की तरफ दौड़ लिया. जाते ही टी शर्ट उतार फेंकी और
बनियान पहन कर ड्रॉयिंग रूम मे घुस गया. सामने का नज़ारा देख पैर वही जम्म गये. कोमल दुनिया से बेख़बर छाती
के बल लेटी सी अपने नोट्स बना रही थी और उसके गोरे गोरे उभार कमीज़ से नुमाया हो रहे थे. पाजामी के उपर से कमीज़
कमर पर चढ़ी हुई थी और उसका भाई पिछवाड़ा सलवार से चिपका हुआ बड़ा दिलकश नज़ारा दे रहा था.

“दीदी आप यहा.” अर्जुन ने खुद को संभालते हुए कोमल को पुकारा

“ओह. हा भाई वो क्या है ना नीचे शोर हो रहा था. मेरे कमरे मे ऋतु और अलका क़ब्ज़ा कर के बैठी थी. पापा अपने कमरे
मे सो रहे है तो मैं यहा चली आई. अगर तुझे कुछ काम है तो मैं उठ जाती हू.”, बिना हीले ही कोमल दीदी ने अर्जुन
को सब बता दिया.

“अर्रे नही दीदी. आपका ही तो है ये भी. मैं तो बोर हो रहा था तो सोचा टेलिविषन ही देख लेता हू. लेकिन आप कर लो
पढ़ाई मैं कही और बैठ जाउन्गा.” इतना बोलकर जैसे ही वो मुड़ा तो कोमल ने उसको रोक लिया.

“चल आजा यहा मेरे पास बैठ. मेरा काम भी हो ही गया है. कभी मेरे भी साथ समय बिता लिया कर.” और वो सीधी हो गई.

“आप ही सारा दिन घर के काम या पढ़ाई मे लगी होती हो. मैं तो हमेशा यही होता हू अकेला.” मासूम सा चेहरा बनता हुआ
वो सोफे पे आ बैठा और कोमल ने भी लेते हुए अपना सर छोटे भाई की गोद मे रख लिया टेलिविषन की तरफ मूह करके.

“कुछ अच्छा सा लगा ना भाई. क्रिकेट मत लगा बस.”, बड़े लाड से उसने ये बात कही तो अर्जुन ने रिमोट का बटन दबाया
और फिर ह्बो चॅनेल पर रोक दिया. यहा एक रोमॅंटिक मोविए आ रही थी जो अभी शुरू हुई थी. अर्जुन इंग्लीश फिल्म भी इसलिए
देखता था की उसकी इंग्लीश पर पकड़ बनी रहे. और कोमल जो की खुद फाइनल एअर मे थी उसको भी इंग्लीश की अच्छी समझ थी.दोनो भाई बहन फिल्म देख रहे थे और अर्जुन अपने हाथ से बहन का सर सहला रहा था. दूसरा हाथ उसका वैसे ही दीदी की
कमर से उपर रखा था. फिल्म काफ़ी अच्छी थी तो कोमल तो उसमें ही खो गई. अर्जुन की एक पल नज़र हटी तो उसका ध्यान
अपनी दीदी की कमर पर गया, जहाँ से कमीज़ उपर सरक चुका था. एक बार अपनी बहन की सपाट चिकनी कमर देख कर उसने वहाँ से नज़र हटाई और अपनी दीदी का चेहरा देखने लगा. बिल्कुल मासूम सा चेहरा था कोमल का और त्वचा ऐसी बेदाग के कही कोई तिल भी नही. आँखों पे चस्मा लगा हुआ था जो की काफ़ी जँचता था और छोटा पवर का था वो. उपर वाला होंठ
थोड़ा उठा हुआ नाक की दिशा मे एकदम गुलाब जैसा. सीधी प्यारी नाक और बादाम जैसा चेहरा. कोमल के चेहरे पे एक अलग
ही नूर था. ना तो उसपे ऋतु जैसी चंचलता थी, ना ही अलका जैसा बचपना. एक अलग ही सकूँन से भरा चेहरा था उसका.

आज पहली बार अर्जुन ने अपनी इस बड़ी दीदी को इतने ध्यान से देखा था और वो उसमें ही खो गया था. अब उसके मन मे कोई काम विचार या वासना नही थी, सिर्फ़ एक एहसास था कि ये पल बस यही रुक जाए. उसका दिल रुक रुक कर धड़क रहा था और काफ़ी देर से बनी इस खामोशी को देख कोमल ने सिर्फ़ अपनी नज़र हिलाई, गर्दन नही. अपने भाई को खुद के चेहरे मे खोया देख एक बार तो उसको अजीब लगा लेकिन जैसे ही उसने अर्जुन की आँखों को देखा वो खुद भी शांत हो गई. अर्जुन भाव-शून्य सा खोया था और उसको कुछ पता नही चला. बस उसकी दीदी के गाल हल्के गुलाबी हो गये थे. कोमल के होंठ धनुषाकार हो चुके थे. लाज शरम, और सिर्फ़ इस विचार से की उसका भाई कितने वत्सल्य से उसको देख रहा है.

हिम्मत कर के कोमल ने इस बार नज़र घुमाई और अपने भाई का चेहरा देखने लगी जैसे वो देख रहा था. बड़ी गहरी भूरी
आँखें, घुँगराले कुंडली बाल, चेहरे पे एक तेज जिसको कोई नज़र अंदाज ना कर सके, हल्के भूरे-गुलाबी होंठ जिनके उपर
अभी मूच के अंकुर बस निकलने ही लगे थे, तराशा हुआ चेहरा. और बस यही दोनो की नज़र एक हो गई.

अपनी दीदी की गहरी आँखों की तरफ अर्जुन झुकता ही चला गया और कोमल के हाथ खुद बा खुद भाई की गर्दन को घेर कर
आपस मे जुड़ गये. दोनो एक दूसरे की साँसों को महसूस कर रहे थे. टेलिविषन पर फिल्म ख़तम हो चुकी थी लेकिन यहा शुरू
हो चुकी थी. कोमल ने खुद से ही अपने लबों को अर्जुन के लबों से मिला दिया. इस चुंबन मे लेश-मात्र भी वासना ना थी.

अर्जुन ने अपने होंठो से कोमल का उपर वाला होंठ चुभलेया तो उसकी आँखें सुकून से बंद हो गई. गर्दन पर पकड़ और
मजबूत. जैसे वो कह रही हो के भाई मुझको खुद से अलग मत करना. अर्जुन ने भी अब कोमल के दोनो होंठ अलग कर अपनी
जीभ से उसकी जीभ को छू लिया था और एक हाथ के अंगूठे से उसके गरम हो रहे नाज़ुक गाल को सहला रहा था. गीले होंठ
एक बार फिर जोरदार तरीके से चिपक गये और जब अलग हुए तो अर्जुन की गर्दन सोफे की टेक पर लुढ़क गई और कोमल अपने भाई की गोद मे आँखें बंद किए निढाल मूर्छित सी पड़ी थी.

वो उठी और जब उसने देखा के उसका भाई अभी भी साँसे दुरुस्त कर रहा है तो एक बार फिर कोमल ने झुक कर अपने भाई के होंठो पे प्यार से एक छोटा सा चुंबन दिया और अपनी किताबें लेकर नीचे चली गई, एक नई उर्जा और प्यार से भरी.

“ऐसा जाड़ो तो मुझे सेक्स करते वक्त भी नही हुआ. और मेरी नज़र को कुछ भी दिखाई क्यू नही दिया?” सोचते हुए वो अपने बेड
पर निढाल होकर नींद के आगोश मे चल दिया.

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. Pure Taboo Story – Incest खूनी रिश्तों में प्यार – indian incest sex stories
इधर ऋतु और अलका के कमरे मे.

ऋतु- यार सोचा है कुछ कल जनमदिन के बारे मे?

अलका – क्या सोचना है वही सुबह उठकर पूजा करनी है दादी जी के साथ. उपर से फाग है तो रंग खेलेंगे और शाम को
जैसे हर साल होता है वैसे ही मेरी पसंद का खाना बनेगा और जो दादा जी दान-पुण्य करवाएँगे. नया क्या होगा? जनमदिन
तो एप्रिल मे बनता है.

ऋतु (सोच के लहजे मे)- हा यार जनमदिन तो दादा जी अर्जुन का ही मनाते है. देखा नही जब वो 8 साल नही था तब भी बड़ी
धूम धाम से मनाते थे, जैसा खुद उनका ही जानम हुआ हो उस दिन. लेकिन प्यार तो वो तुझे ही करते है सबसे ज़्यादा उसके बाद.

अलका- अर्रे ये देख के तो मुझे कही ज़्यादा खुशी होती है. छोटा भाई है हमारा और प्यार तो सभी करते है उस से. जहाँ
तक मुझे याद है तो तू ही सारा दिन उसको गोद मे लिए छोटा काका- छोटा काका करती रहती थी बचपन. कितनी बार तो उसके रोने से तू ही रोने लग जाती थी कि देखो काके को क्या हुआ.. और खिलखिलाने लग पड़ी

ऋतु मुस्कुराते हुए बोली,” यार बचपन कितना प्यारा था ना और अब देख ये पिताजी के चक्कर मे 12 घंटे तो किताबो मे निकल जाते है.” किसी तरह अर्जुन क टॉपिक को उसने बदल दिया. जब भी उसके सामने अर्जुन का चेहरा आता था वो खुद ही नज़र हटा लेती थी.

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