कोमल- ना बाबा. मैं तो इस सब से दूर ही सही. जब शादी होगी तब की तब सोचेंगे. और वो उठकर बाहर आ गई.
ऋतु- दीदी आप किस सोच मे गुम हो? देखो हम पक्के फ्रेंड्स है ना तो आप कुछ भी शेर कर सकती हो.
माधुरी- यार क्या तूने कभी ऐसा किया है या देखा है? और तुझे इतना कैसे पता? तेरी तो आने वाली ज़िंदगी बड़ी
अच्छी होने वाली है. अपने पति को खुश रखेगी तू.
ऋतु- अर्रे दीदी ऐसा कहा मेरा नसीब. वो तो लाइब्ररी मे एक बार कामसुत्र का इंग्लीश वर्षन रीड किया था. तभी पता
लगा के लव मेकिंग या सेक्स क्या होता है. फॉरिन कंट्रीज़ मे तो सेक्स एडीक्शन कंपल्सरी है. बस हम ही बॅक्वर्ड सोच
वाले है. मेरी कुछ क्लासमेट्स तो अपने बॉयफ्रेंड्स ‘स के साथ सेक्स कर चुकी है और कुछ तो मास्टरबेशन करती है. वो भी कभी कभी अपने एक्सपीरियेन्स शेर करती है. बुत मैं ये सब उसके ही साथ करूँगी जिस से सॅचा प्यार होगा. फिर चा ही शादी हो या ना.
माधुरी- सही कह रही है तू मेरी बहन. मुझे ही देख इस सब्जेक्ट मे तो बिल्कुल नील हू और 25 की उमर हो चली है. लेकिन
आज तूने मेरी बड़ी हेल्प करी है.
ऋतु- अर्रे दीदी आप बोलो तो अपने कपड़े उतार दूँ. इतना बोलकर वो खिलखिला पड़ी ..
माधुरी- चल बदमाश कही की. और फिर वो भी हंसते हुए बाहर चल दी जहाँ उसकी दादी, मा और चाची होली पूजन की तैयारी
मे लगी थी. वो भी उनकी मदद करने लगी. शंकर जी तक कर अपने कमरे मे सो रहे थे.
दूसरी तरफ जब अर्जुन अपने दोस्त संदीप के घर पहुचा तो संदीप उसको लेकर अपने कमरे मे आ गया. धरमपाल जी बाहर गये थे किसी काम से जो शाम को आने वाले थे. और संदीप की माता जी पड़ोस के घर मे गई थी होली पूजन की तैयारी करने. जहाँ से सभी महिलाए पास के ग्राउंड मे जाने वाली थी होलिका दहाँ के लिए. मतलब इस समय घर पर सिर्फ़ ज्योति, संदीप और अर्जुन थे. ज्योति अपने कमरे मे कुछ कर रही थी तो वो दोनो भी टीवी पे वीडियो गेम लगा कर खेल रहे थे और बातें कर रहे थे.
अर्जुन ने बात शुरू की, “यार संदीप क्या तूने कभी सेक्स किया है?”
संदीप अपने दोस्त की बात सुनकर मुस्कुराते हुआ बोला, “भाई मुझे देख कर लगता है के मैने ऐसा कुछ किया होगा कभी. हा तू ही तो आकांक्षा के साथ कर सकता है.”
“नही नही भाई. मेरा मतलब था कि तू क्या जानता है इसके बारे मे?” अर्जुन थोड़ा शांत रहने का दिखावा करते हुए बोला
“देख भाई ये जो सेक्स है ना इसमे ज़िंदगी का मज़ा है. मैं तो कभी कभी कुलविंदर से कोई सेक्सी किताब लेकर अपने हाथ से हिला लेता हू. या फिर जब टाइम मिलता है तो हम वो जो सन्नी है किरण वाला अपने स्कूल के पास, उसके घर मे वीसीआर लगा कर नीली फिल्म देख कर साथ में ही मूठ लगा लेते है. भाई बड़ा मज़ा आता है. तूने कभी मूठ लगाई है क्या?”
अर्जुन, “नही भाई मुझे ये सब नही पता लेकिन किसी दिन चलूँगा ज़रूर तेरे साथ सन्नी के घर.”
“भाई किसी दिन क्यो, मैं अभी तुझे एक गरमा गरम चीज़ दिखाता हू”, इतना बोलकर उसने अपने स्कूल के बस्ते से एक अख़बार चढ़ि किताब निकाली और दोनो दोस्त साथ मे बैठ कर देखने लगे. वीडियो गेम तो वही रोक दी थी उन्होने.
“भाई ये क्या है?” जैसे ही संदीप ने पहला पन्न खोला एक फिरंगी लड़की बिल्कुल नंगी थी और उसके मूह मे एक हबशी का बड़ा लंड था.
“भाई ये लॉडा चूस रही है. अपने देश मे ऐसा बहुत कम ही होता है. और इतने बड़े लंड भी आफ्रिका, अमेरिका के कालीओ के होते है.” इतना बता कर उसने अगला पन्ना पलटा तो वहाँ 2 चित्र थे. एक मे वही फिरंगी लड़की उस हबशी का काला लंड अपनी चूत मे लिए थी और उसकी गोरी चूत फैली हुई थी. दूसरे चित्रा मे उसकी गान्ड मे आधा लंड था और उसके बड़े चुचे हवा मे झूल रहे थे.
“भाई ये क्या है? ये तो वहाँ भी डलवा रही है.” अर्जुन ने उस फोटो पे हाथ रख कर पूछा जैसे की वो उसको छु ही लेगा.
“भाई ये भी एक मज़ा है. बाहर की लड़किया खास कर जिनकी गान्ड मोटी होती है वो लॉडा गान्ड मे लेती है मज़े से. और लड़के को भी इसमे बहुत मज़ा आता है क्योंकि ये चूत से भी टाइट होती है.” संदीप इतना बोलकर अपना लंड सहलाने लगा. ऐसे ही 2-3 पन्ने पलटने के बाद जब संदीप का जोश ज़्यादा बढ़ गया तो उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया और आगे पीछे करने लगा. अर्जुन भी उसको देखने लगा. संदीप का लंड मुश्किल से 5 इंच का था और 2 उंगलिओ से थोड़ा कम ही मोटा था. अर्जुन ने अब पन्ना उल्टा तो ये नज़ारा देख उसको भी जोश आ गया. वहाँ एक बड़ी डबल पेज फोटो थी. वो फिरंगी लड़की एक काले के लंड पर बैठी थी पीछे से दूसरे हबशी ने उसकी गान्ड मे डाल रखा था और एक उसका मूह चोद रहा था. ये नज़ारा देख उसने भी अपना लंड बाहर निकाल लिया.
“बाप रे…. ये क्या है बे?” उसका लंड देख संदीप का तो मूह खुल्ला ही रह गया
“भाई वही है जो तेरे पास है.” अर्जुन ने हंसते हुए जवाब दिया तो संदीप उसके लंड से अपनी तुलना करने लगा
फिर उन्होने वापिस हिलाने पे ध्यान लगाया तो एक ही पन्ना पलटा था कि संदीप के लंड ने उल्टी कर दी और वो मज़े से वही लेट गया. अर्जुन को ऐसे मज़ा नही आ रहा था तो उसने वापिस अंदर डाल लिया. संदीप ने कागज से अपना 2 बूँद वीर्य सॉफ किया और किताब को वापिस बस्ते मे छुपा दिया. दोनो अंजान थे के कोई उनपे खिड़की से नज़र रखे था काफ़ी देर से.
तभी ज्योति की आवाज़ आई
“संदीप, कमरे मे क्या कर रहा है? तुझे मम्मी बुला रही है निर्मला आंटी के घर.” इतना बोलकर ज्योति ने दरवाजा पीटा तो
अर्जुन ने गेम खेलने का नाटक शुरू कर दिया और संदीप ने दरवाजा खोला.
“अर्जुन तू यही रुक मैं ज़रा मा से मिलकर आता हू.” इतना बोलकर वो मैं दरवाजे से बाहर दौड़ गया. और ज्योति ने चिटकनी
लगा दी उसके बाहर जाते ही.
“कौन सी गेम खेल रहे थे तुम दोनो?” वो ज़रा हैरत से बोली लेकिन अर्जुन स्पष्ट सा बोला,” क्यो दिख नही रहा?” उसने ज्योति की गतिविधि भाँप ली थी और दरवाजे की चिटकनी लगाना भी देख लिया था.
“वाह मेरे शेर. तू तो एक ही बार मे बड़ा हो गया. क्यो अपने हाथ से मज़ा नही आ रहा था?” इतना बोलकर वो वही अर्जुन की
गोद मे आ बैठी. अर्जुन ने भी बिना देर किए उसके पपीते पकड़े और होंठो से होंठ मिला दिए. उसका लंड जो अभी भी खड़ा
था ज्योति को अपने चूतड़ की दरार मे चुभता महसूस हुआ तो वो भी अपनी कमर हिलाने लगी.
“तेरा दोस्त नही आता 2 घंटे से पहले. वो गया मा के साथ अगले पार्क मे समान लेकर.” इतना बोलकर वो लिपट गई अमर बेल
की तरह अर्जुन के तगड़े शरीर से. अर्जुन ने भी एक झटके मे उसकी टी शर्ट खींच के फेंक दी एक तरफ और देखने लगा उसके
साँवले लेकिन कठोर बड़े बूब्स जो एक पुरानी सफेद ब्रा मे क़ैद थे. “वाह ये तो बड़े प्यारे है.” इतना बोलकर उसने दोनो
हाथो से उन्हे पकड़ कर किसी हॉर्न की तरह दबाना शुरू कर दिया.
ज्योति की तो गर्दन पीछे लुढ़क गई इतने जोरदार हमले से.
“दीदी, खोल दो नो इन बेचारो को.” उसने हाथ हटाकर ज्योति से गुहार लगाई.
ज्योति ने भी बिना कुछ कहे एक झटके मे उतार फेंकी वो ब्रा. अब उसके मुलायम बड़े बूब्स आज़ाद थे.
“दीदी इनका साइज़ क्या है? बड़े गोल मटोल है.”
“34-सी. और अब ज़्यादा बोल मत बस मुझे संतुष्ट कर दे” इतना बोलकर उसने अर्जुन की टी शर्ट भी उतार दी.
इधर अर्जुन के मूह और हाथ ने उसकी कठोर चुचियो को ढीला करना शुरू कर दिया था. वो जितना मूह मे आ सकता था उतना
हिस्सा पकड़ कर पी रहा था और दूसरे वाले को अच्छे से दबा रहा था . ज्योति के निपल भी कड़े हो चुके थे. उसने अर्जुन
को अपनी तरफ खींचा और लगी चूसने उसके होंठ. अब दोनो की नंगी छाती आपस मे रगड़ कर करेंट पैदा कर रही थी.”कमीने आग लगा दी तूने मेरे इस बदन मे. अब तू ही बुझा नही तो तेरे घर आकर चुदवा लूँगी मैं.” काम के नशे मे ज्योति कुछ भी बोले जा रही थी तो अर्जुन ने उसको अपनी बाजुओ मे उठा लिया और बेड पर पटक दिया. एलास्टिक वाली सलवार अगले ही पल ज़मीन पे थी और नीचे ज्योति की नंगी बिना बालो वाली गुलाबी चूत उसकी आँखों के सामने थी.
“वाह दीदी क्या चूत है. कभी कोई लंड लिया है क्या पहले?” अर्जुन ने अपनी उंगली ज्योति की चूत पर फिरात हुए पूछा तो
ज्योति ने ना मे गर्दन हिलाई. “बस कभी कभी उंगली करती हू और 2-3 बार मोमबत्ती ट्राइ करी है.” शरमाती हुई ज्योति ने
जवाब दिया.
उसका खजाना अर्जुन क सामने खुला जो पड़ा था.
इतना सुनकर अर्जुन ने भी अपनी पेंट उतार दी और बाहर निकाल लिया अपने शेर पिंजरे से. इस समय तो उसका लंड और भी ख़तरनाक लग रहा था. पिछले एक घंटे से जो उत्तेजित था वो.
एक बार फिर उसने ज्योति के बूब्स को मसलना शुरू किया और अपना लंड चूत के ऊपेर घिसने लगा. ज्योति का तो मूह ही बंद हो गया था इतना भयंकर लंड देख लेकिन थी वो लड़की भी ज़िद्दी. उसकी चूत जब अच्छी तरह से गीली हो गई तो ज्योति ने खुद अर्जुन का लंड पकड़ कर टीका दिया चूत के मूह पे.
अर्जुन ने भी एक मध्यम गति का धक्का लगा दिया. दोनो के मूह से हल्की कराह निकल गई. उसका टोपा ज्योति की टाइट चूत में बैठ गया था और इसके साथ ही अर्जुन के लंड का टांका भी खुल गया था. लेकिन ज्योति थोड़ी अनुभवी थी. खेल को उसने अपने कंट्रोल मे लिया.
“एक मिनिट रुक जा. मेरे चुचे दबा और पी थोड़ी देर.” अर्जुन ने वैसा ही किया. उसने उतना ही लंड डाले ज्योति की दूध निचोड़ने शुरू कर दिए. वो भी अर्जुन के चूतड़ सहला रही थी. जैसे ही थोड़ा अच्छा महसूस होने लगा उसने अर्जुन को कहा,”चल अब आराम से एक धक्का मार और फिर रुक जाइओ”
अर्जुन ने भी अपनी कमर को साध के एक मजबूत धक्का लगा दिया. लेकिन इस बार उसका मूह ज्योति के होंठ दबाए हुए था.
“आ मा मॅर गई रे….”ये आवाज़ किसी तरह फिर भी बाहर निकल ही गई. अर्जुन का खूँटा आधा गढ़ा हुआ था ज्योति की चूत में. और अब वो उसके चारो तरफ मजबूती से लिपटी गई थी रब्बर के जैसे.
“इस से ज़्यादा ना ले पाउन्गी रे मैं तेरा. पूरा छेद भर दिया तेरे लंड ने.” ज्योति ने ये बात कही तो अर्जुन ने देखा की उसकी आँखों से आँसू और चूत, जहाँ उसका लॉडा फसा हुआ था वहाँ से खून की कुछ बूंदे बाहर आ रही थी.
“नही डालूँगा इस से ज़्यादा. अगर कहती हो तो ये भी निकाल लेता हू. बहुत दर्द हो रहा है? अर्जुन का दिल पसीज गया
“पहले दर्द देता है और अब जब मलम की बारी आई तो भागने लगा. चल अब आराम से थोड़ा बाहर निकाल और फिर वापिस डाल. धीरे धीरे.” ज्योति ने अपने चेहरे पे छोटी सी मुस्कान लाते हुए कहा. उसको भी पता था कि अर्जुन बड़ा सीधा और सॉफ दिल लड़का है. यही सोच कर तो वो इसके नीचे आ गई थी.
अर्जुन ने फिर 3 इंच के करीब निकाला, टोपा अंदर ही रहने दिया और फिर उतना वापिस पेल दिया. अपनी कोहनिया उसने बेड पे टीका ली थी और शुरू कर दिए हल्के धक्के देने. हर धक्के के साथ उसका लंड ज्योति की चूत की दीवारो से रगड़ता हुआ अंदर जा रहा था.
” आह मेरे सोहने भाई. थोड़ा तेज कर लेकिन इतने ही लंड से.” ज्योति की सिसकारिया बढ़ती जा रही थी और अर्जुन भी जोश से लगा हुआ था. वो अब तकरीबन 5 इंच तक लंड अंदर बाहर कर रहा था.
ज्योति की चुचियों पे उसके हाथ और दाँत के निशान बन चुके थे. होंठ भी अच्छे से चबा डाले थे. 15 मिनिट के बाद ज्योति की चूत ने एक और बार पानी बहा दिया था और इस बार ये पानी बेड तक आ पहुँचा था. लेकिन अर्जुन लगा रहा अब तो वो उसकी आवाज़ भी नही सुन रहा था. ताबड़तोड़ धक्के मारते मारते 5 मिनिट के बाद उसके लॉड ने भी ज्योति की चूत में पानी खाली करना शुरू कर दिया. तकरीबन 5-6 पिचकारियाँ मारने के बाद अर्जुन ने अपना लंड जैसे ही बाहर निकाला “पुक्क” की आवाज़ हुई और ज्योति दर्द और मज़े से दोहरी हो चुकी थी..
“हाए मा. बड़ा बेदर्द है रे तू. मेरी चूत ही फाड़ दी रे. ” जैसे ही उसकी नज़र अपनी चूत पे गई तो देखा के छेद 2 रुपये के सिक्के जितना खुल्ला पड़ा था और उसमे से अर्जुन और उसका खुद का पानी बाहर आ रहा था. जाँघो पे खून लगा था.
“दीदी लंड तो मेरा भी छिल गया है.” हंसते हुए अर्जुन बाथरूम मे चला गया और अपना लंड धोकर कपड़े पहन ने लगा. ज्योति अभी भी बेड पे बैठी थी. अर्जुन ने उसको जैसे ही उठया वो लड़खड़ा गई. ऱूको. इतना बोलकर उसने ज्योति को अपनी बाहों मे उठाया और बाथरूम मे ले आया. ज्योति ने टुन्टी का सहारा लेकर अपनी चूत सॉफ की और बाहर आकर कपड़े पहने.
“बड़ा बेदर्द है रे तू. मैं तो तुझे बच्चा समझती थी. तूने तो मेरी चूत का ही सत्यानाश कर दिया. अब बाहर जा और फ्रिड्ज पे रखा दवा का डब्बा लेकर आ. ” बेड पे बैठ गई इतना बोलकर ज्योति और अर्जुन डब्बा और पानी लेकर आ गया.
“ये लो दीदी”, अर्जुन ने उसको दिया तो ज्योति ने एक पेनकिलर निकाल के खाई और वही लेट गई.
“चल अब तू जा. मैं संभाल लूँगी सब.” ज्योति ने जैसे ही इतना कहा अर्जुन ने झुक कर उसके होंठ एक बार फिर चूम लिए और चूंची दबा के भाग लिया बाहर. अपनी साइकल लेकर आ गया वापिस घर जहाँ इस समय शांति पसरी हुई थी.