Incest बदलते रिश्ते – Family Sex

कुछ दिन यूं ही बीत गए रोहन लगातार इसी आशा में लगा रहा की उसे बेला के खूबसूरत अंगों को फिर से देखने का मौका मिल जाएगा और वह इसी ताक में बिना के इर्द-गिर्द घूमता रहता था लेकिन बेला पक्की खिलाड़ी थी वह रोहन को तड़पाना चाहती थी… इसलिए रोहन पर बिल्कुल भी ध्यान ना देते हुए वह अपने काम में लगी रहती थी लेकिन तिरछी नजरों से रोहन को देख ले रही थी कि वह कहां देख रहा है और उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव खिल उठते थे जब उसे पता चल जाता था कि रोहन चोरी छुपे उसके कपड़ों के भीतर झांकने की कोशिश कर रहा है…..

रूपा सिंह वाले हादसे को भुलाकर सुगंधा फिर से अपने जमीदारी के काम में लग गई थी वह रोज खेतों की तरफ जाकर फसल का मुआयना करती रहती थी…..। काम में व्यस्त रहने के बावजूद भी उसे अपने बेटे रोहन की चिंता सताए जाती थी क्योंकि वह जानती थी कि गांव के आवारा लड़कों के साथ वह बिगड़ता जा रहा था… ना तो उसका पढ़ाई में ही मन लगता था और ना ही जमीदारी के काम में रुचि लेता था बस इधर-उधर घूम कर अपना समय व्यतीत कर रहा था सुगंधा कहीं जाने के लिए अपने कमरे में तैयार हो रही थी और वह इस समय केवल एक टावल लपेटी हुई थी। उसके लंबे गदराए बदन को ढकने के लिए टावल छोटी ही पड़ती थी। वह अलमारी में अपने कपड़े ढूंढ रही थी….

और दूसरी तरफ रोहन अपनी मां के कमरे की तरफ जा रहा था क्योंकि अपने आवारा दोस्तों के साथ रहकर उसे फिजूलखर्ची की आदत जो पड़ गई थी और उसी आदत के तहत वह अपनी मां से पैसे मांगने के लिए उसके कमरे की तरफ जा रहा था और थोड़ी ही देर में वह अपनी मां के कमरे के दरवाजे के पास पहुंच गया.. और कमरे के अंदर उसकी मां बेखबर होकर अलमारी में अपने कपड़े ढूंढ रही थी और रोहन कमरे के बाहर खड़ा होकर एक पल की भी देरी किए बिना ही दरवाजे पर दस्तक देने के लिए जैसे ही अपना हाथ उठा कर दरवाजे से सटाया … दरवाजा खुद तो खुद खुल गया क्योंकि जल्दबाजी में सुगंधा ने दरवाजे की कड़ी लगाना भूल गई थी और यही भूल उसके रिश्तो को तार-तार करने के लिए काफी होने वाला था दरवाजे के खुलते ही रोहन की आंखों के सामने जो नजारा दिखाई दिया उसे देखते ही रोहन के अंदर संपूर्ण रूप से रिश्तो को लेकर बदलाव आना शुरू हो गया रोहन की आंखों के सामने उसकी मां अपने नंगे बदन पर मात्र एक छोटा सा टावल लपेटी हुई थी जो कि उसके गदराए बदन को ढक पाने में असमर्थ था… जिस समय दरवाजा खुला और रोहन की आंखें सामने उसकी मां पर पड़ी उस समय सुगंधा अलमारी में नीचे झुक कर अपनी पेंटी ड़्औवर में से ढूंढ रही थी। और जिस तरह से झुकी हुई थी छोटी टावल होने की वजह से सुगंधा की भराव दार गाँड़ साफ साफ नजर आ रही थी ..

अपनी आंखों के सामने इस तरह का नजारा देखकर आश्चर्य से रोहन की आंखें फटी की फटी रह गई उसे इस नजारे की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी वह तो बस कल्पना में इन नजारों के चित्र रचा करता था। लेकिन आज उसकी आंखों के सामने उसकी मां की नंगी गांड बिल्कुल साफ नजर आ गई थी जिसे देखकर पल भर में ही रोहन उत्तेजित हो गया उसकी नजर उसकी मां की गदराई गांड पर ही टिकी टिकी रह गई गोरी गोरी गांड और वाह भी तरबूज के समान गोल गोल… ऐसी मस्तानी और कामुकता से भरी हुई कि मुर्दे के तन में जान डाल दे। खरबूजे जैसी गोलाई लिए हुए सुगंधा की मतवाली गांड रोहन के तन बदन में कामुकता की सुईया चुभा रही थी।

और तो और नितंबों के दोनों भागों में हो रही हलन चलन से ऐसा लग रहा था कि जैसे गुब्बारों में पानी भर के लटका दिया गया हो.. रोहन कि नाजुक उम्र इस बेहद कामुकता के वार को झेल सकने में असमर्थ साबित हो रही थी और जिस वजह से उसके लंड का तनाव पल पल बढ़ता जा रहा था। कुछ ही सेकंड में कामुकता भरे नजारे की वजह से बहुत कुछ हो चुका था रोहन के सोचने समझने की शक्ति रिश्तो के प्रति छीण होती जा रही थी। बेला के खूबसूरत बदन के नग्न दर्शन करके पहले से ही रोहन के मन में औरतों के अंगों को लेकर आकर्षण साहो चला था और रही क सर को सुगंधा की खूबसूरत बदन ने पूरा कर दिया था अपनी मां की नंगी गांड देखकर वह पल भर में ही सुगंधा में अपनी मां की जगह एक खूबसूरत गदरई जवानी जवानी से भरपूर औरत के दर्शन होने लगे थे सुगंधा अभी भी इस बात से बेखबर कि दरवाजे पर रोहन खड़ा होकर उसके नग्न नितंबों के दर्शन करके मस्त हुआ जा रहा है वह अपनी ही धुन में अलमारी में से कपड़े ढूंढने में व्यस्त थी और इसी का फायदा उठाते हुए रोहन अपनी आंखों को सेक रहा था।

रोहन इस नजारे का और ज्यादा फायदा उठाते हुए अपने आप को खुशनसीब समझने लगा था क्योंकि उसकी मां थोड़ा सा और नीचे झुकी जिसकी वजह से रोहन को वह अंग देखने को मिल गया जिसके बारे में सोच कर उसका लंड ना जाने कितनी बार पानी फेंक चुका था रोहन की आंखों के सामने सुगंधा की बुर नजर आने लगी थी जो कि बस केवल एक हल्की सी पत्नी रेखा की शक्ल में नजर आ रही थी और बीचों-बीच उसकी बीच की दो गुलाबी पत्तियां निकली हुई थी ऐसा लग रहा था मानो गुलाब का फूल अभी अभी खील रहा हो… रोहन के लिए यह दूसरा मौका था जब उसे अपनी आंखों से एक औरत की नंगी बुर देखने को मिल रही थी इसके पहले बेला की बुर के दर्शन रोहन कर चुका था लेकिन बस हल्की सी झलक भर मिली थी.. लेकिन आज उसकी आंखों के सामने उसकी मां की नंगी बुर नजर आ रही थी और वह भी बेहद खूबसूरत कचोरी जैसी फूली हुई अपनी मां की बुर देखकर रोहन इतना तो अनुमान लगा ही लिया होगा कि बेला की बुर से कहीं ज्यादा अत्यधिक गुना खूबसूरत और हसीन उसकी मां की बुर थी जिस पर हल्के हल्के रेशमी छोटे-छोटे बाल उगे हुए थे जो कि उसकी खूबसूरती को और ज्यादा बढ़ा रहे थे सुगंधा अभी अभी नहा कर ही आई थी जिसकी वजह से उसकी दूर के इर्द-गिर्द मोतियों के सामान पानी की बूंदे नजर आ रही थी और यह नजारा देखकर अत्यधिक उत्तेजना को न सह पाने की वजह से मन में आए लालच की गाथा गाते हुए उसके लंड ने दो बूंद पानी के टपका दीया……
उत्तेजना के मारे रोहन की सांसे तीव्र गति से चलने लगी वह अपने आपको संभाल नहीं पाया और उसके हाथ से दरवाजा हल्के से हील गया जिसकी आहट सुगंधा को महसूस हुई तो वह पल भर में ही पीछे पलट कर देखी तो दरवाजे पर रोहन खड़ा था और उसे दरवाजे पर खड़ा देखकर वह एक दम से चौंक गई,, और वह तुरंत खड़ी हो गई वह समझ नहीं पाई कि अब क्या करें, अब इतनी जल्दी तो वहां कपड़े पहन नहीं सकती थी, इसलिए दोनों हाथों को अपनी छातियों पर लाकर टावल पकड़ कर बहुत ही सामान्य तरीके से बोली’

क्या बात है बेटा इतनी सुबह-सुबह तुम यहां पर …
( सुगंधा एकदम सामान्य होकर रोहन से बातें कर रही थी वह ऐसा जताना चाहती थी कि उसने ऐसी कोई गलती नहीं किया है जिसके लिए उसे डांटने की जरूरत पड़े क्योंकि ऐसा करने से हो सकता है कि रोहन को इस बात का एहसास हो कि उसे जो नहीं देखना चाहिए था उसने वह देख लिया है और रोहन भी बेला और अपने आवारा दोस्तों की संगत में कुछ ज्यादा ही चालाक हो गया था वह भी इस तरह का बर्ताव करने लगा कि जैसे कुछ हुआ ही नहीं है…)

मम्मी मुझे कुछ पैसों की जरूरत है इसलिए मैं आपसे पैसे लेने आया था….( इतना कहते हुए व कमरे में दाखिल हो गया वह यह जताना चाहता था कि सब कुछ सामान्य है और वैसे भी सुगंधा अभी तक रोहन को बच्चा ही समझती थी लेकिन यह नहीं जानती थी कि उसका बच्चा धीरे धीरे अब बड़ा हो गया था रोहन अपनी मां से पैसे मांगते हुए जाकर बिस्तर पर बैठ गया सुगंधा चाहे जितने भी आ सामान्य तौर पर स्थिति को सामान्य बनाने की कोशिश कर ले लेकिन वह थी तो एक औरत ही भले ही कमरे में उसका बेटा उपस्थित था लेकिन वह था तो एक मर्द ही, सुगंधाको अंदर ही अंदर अपने बेटे की आंखों के सामने केवल टावल में खड़े रहने में शर्म महसूस हो रही थी। क्योंकि मैं अच्छी तरह से यह बात जानती थी कि आधे से ज्यादा अंग उसका टावल से बाहर नजर आ रहा था।
अभी भी वहां अपने दोनों हाथों को अपनी छातियों पर टीकाकर टॉवल पकड़े खड़ी थी.. वह जल्द से जल्द चाहती थी कि रोहन कमरे से चला जाए… इसलिए उसकी बात मानते हुए तुरंत अलमारी की तरफ घूमी है और ड़ृवर खोलकर अपना पर्स निकाली और उसमें से ₹200 निकालकर वापस पर्स रख दी.. लेकिन तुम हमको इस बार फिर से मौका मिल गया क्योंकि सुगंधा के इस तरह से घूम जाने की वजह से रोहन की नजर फिर से अपनी मां की बड़ी-बड़ी गदराई गांड पर पर पड़ गई। भले ही नितंबों का नंगापन कपड़ों के अंदर ढका हुआ था लेकिन फिर भी उसका आकार का सांचा साफ तौर पर नजर आ रहा था जिसे देख कर रोहन के मुंह में पानी आ रहा था…
लेकिन तभी उसकी मां रोहन की तरफ घूम गई और उसे ₹200 पकड़iते हुए.. बोली…

तुम कब सुधरोगे रोहन तुम नहीं जानते कि अपने आवारा दोस्तों के साथ तुम अपना समय और जीवन सब बर्बाद कर रहे हो…

मम्मी मैं किसी भी गलत संगत में नहीं हूं आप गलत समझ रही है यह पैसे तो मेरे एक दोस्त को बहुत ज्यादा जरूरी है इसलिए उसे देना है उसकी मां बीमार है…( रोहन झूठ बोलते हुए अपनी मां के हाथों से पैसे लेकर उसे अपने पेंट की जेब में रख लिया और वहां से उठकर बाहर की तरफ जाने लगा दरवाजे से बाहर निकलते ही सुगंधा लगभग दौड़ते हुए दरवाजे की तरफ आगे बढ़ी और तुरंत जाकर दरवाजा बंद करके कड़ी लगा दी, लेकिन जल्दबाजी में उसकी टूऑल खुल गई और सुगंधा एकदम से नंगी हो गई लेकिन तब तक उसने दरवाजे की कड़ी लगा दी थी और दरवाजे पर पीठ टीकाकर राहत की सांस लेते हुए अपने आप से ही बातें करते हुए बोली,

हे भगवान मैंने दरवाजे की कड़ी लगाना कैसे भूल गया अच्छा हुआ कि रोहन कुछ देखा नहीं( इतना कहकर वह छत की तरफ देखती हुई कुछ पल के लिए सोच में पड़ गई और अपने आप से ही बातें करते हुए बोली.)
क्या सच में रोहन ने कुछ भी नहीं देखा होगा (अपने आप को नीचे से ऊपर की तरफ देखते हुए) लेकिन मेरे बदन का तो बहुत कुछ नजर आ रहा है…. क्या सच में रोहन ने कुछ देखा होगा………… नहीं कुछ नहीं देखा होगा मेरा बेटा ऐसा बिल्कुल भी नहीं है..

( अपने आप को झूठी तसल्ली देते हुए सुगंधा आगे बढ़ी़े तो अपनी स्थिति का भान होते ही… वह मुस्कुरा दी क्योंकि वह पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी लेकिन इस बार वह बिल्कुल भी हड़बड़ा हट नहीं की क्योंकि कमरे में वह अकेली ही थी… इसलिए इत्मीनान से अलमारी के करीब आए और अपने कपड़े पहनने लगी और तैयार होकर कमरे से बाहर निकल गई….

Dosto kahani kaise lagi comments me jarur batana dhanyawad ab padhiye aage

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1 Comment

  1. Gandu Ashok

    भेनचोद कितनी बार झड़ गया कहानी पढ़ते पढ़ते

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