Incest बदलते रिश्ते – Family Sex

अनजाने में ही बेला रोहन के लिए एक शिक्षिका बनकर उसे संभोग रस के अध्याय में सहायक बनती जा रही थी वह एक तरह से रोहन का मार्गदर्शक के रूप में मार्गदर्शन करा रही थी हालांकि इसमें दोनों को ही बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी और दोनों का अपना अलग ही लालच बांधा हुआ था रोहन बेला के कहने पर उसे बार-बार पैसे दे रहा था लेकिन बदले में बेला उसे पृथ्वी का सबसे हसीन और परमानंद से भरपूर आनंद प्रदान कर रही थी और साथ ही पैसे लेकर के भी अपने आप को भी आनंद के सागर में गोते लगवा रही थी…. ।

रोहन आज बहुत खुश था क्योंकि आज उसके लंड में औरतों के बेहद नाजुक कोमल अंग कि उन गुलाबी पत्तियों से इस पर से जो कर लिया था जिस को स्पर्श करने के लिए जवानी का दौर शुरू होकर बुढ़ापे पर ही खत्म होता है …..एक अजीब सी हलचल उसके तन बदन को झकझोर कर रख दे रही थी…. आज बेला को वह चोदते चोदते रह गया था रोहन ने अपने लंड को बुर के उस मुख्य द्वार तक पहुंचा कर वापस लौटा दिया था जिस द्वार पर आकर दुनिया का कोई भी मर्द वापस लौटना नहीं चाहता है बुर की गहराई से आ रही मादक खुशबू को उसके लंड के सुपाड़े ने भी महसूस किया होगा तभी तो वह उत्तेजना के मारे तन कर एकदम उस लोहे का रॉड की तरह हो गया था।

आज दिनभर की गतिविधि खास करके नदी के पानी के अंदर जो कुछ भी बेला के साथ उसने किया और बेला ने उसके साथ किया उन हसीन लम्हों को याद करते करते रोहन कब नींद की आगोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला…..

सुगंधा भी कुछ दिनों से बेहद परेशान नजर आ रही थी और उसकी परेशानी का कारण था शारीरिक आकर्षण और खास करके रोहन के लंबे तगड़े मोटे लंड को देखकर जो उसके तन बदन में हलचल हो रही थी उस हलचल से वह अपने आप को बचाने में असमर्थ साबित हो रही थी बार-बार उसका मन उसे समझाने की कोशिश करता कि जो वह अपने मन में विचार कर रही है वह बहुत ही गलत है समाज के लिए और खुद उसके लिए भी लेकिन शारीरिक जरूरत के चलते उसका मन इधर उधर भटक रहा था और बार बार रोहन के तगड़े लंड को लेकर उसके मन में कल्पनाओं का दौर अपनी तीव्रता से कदम भर रहा था और वह अपने उन विचारों पर अपनी रंगीन कल्पनाओं पर लगाम नहीं लगा पा रहे थे जिसके चलते उसे खुद से भी घृणा हो रही थी लेकिन कुछ पल की यह घटना आनंद में तब्दील हो जाते थे बार-बार उसके साथ ऐसा ही हो रहा था ना चाहते हुए भी बिस्तर पर लेटे-लेटे उसका हाथ साड़ी के ऊपर से ही अपनी बुर पर चला जा रहा था जिसे वह अपने बेटे का लंड को याद करके बार-बार मसल दे रही थी और ऐसा करने में उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी और उसे मज़ा भी आ रहा था एक अजीब सी कशिश एक अजीब सा आकर्षण उसके खुद के बेटे के लंड के प्रति उसकी बढ़ती आकर्षण मैं वह बंधती चली जा रही थी……
अपनी कल्पनाओं के घोड़े का लगाम कसने में वह असमर्थ साबित हो रही थी इसका सबूत इस बात से ही पता चलता था कि वह रात भर में 3 बार अपने बेटे के लंड को याद करके संखलित हो चुकी थी। संस्कार और मर्यादा से परिपूर्ण नारी होने के बावजूद भी सुगंधा का मन बहक रहा था उसके पांव आकर्षण के चिकनी माटी में फीसलते चले जा रहे थे।
सुगंधा की पेंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी उसे कुछ कसमसाहट सा महसूस हो रहा था इसलिए वह खुद ही अपनी साड़ी को पकड़ के ऊपर की तरफ सरकाने लगी… देखते ही देखते सुगंधा अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी। उसकी गुलाबी रंग की पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी जो कि उसे साफ साफ नजर आ रहा था उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि वह खाली कल्पना करके ही इतना सारा पानी फेंक चुकी है उसकी बुर कुछ ज्यादा ही उत्तेजना महसूस कर रही थी क्योंकि उसकी फुली हुई बुर पेंटी के ऊपरी सतह पर किसी गरम कचोरी की तरह नजर आ रही थी। सुगंधा पैंटी के ऊपर से ही अपनी पुर की हालत को देखकर एकदम उत्तेजित हो गई वह धीरे धीरे अपनी गीली वाली जगह पर अपनी हथेली रखकर अपने बुर को रगड़ना शुरू कर दी कुछ ही पल में सुगंधा को मज़ा आने लगा और उसके मुख से गरम-गरम सिसकारी की आवाज भी आने लगी सुगंधा के चेहरे के हाव-भाव बदलने लगे थे उसका गोरा गाल लाल टमाटर की तरह हो गया था कुछ देर तक यूं ही वह पैंटी के ऊपर से ही अपनी बुर को मसलती रही। यह सब करते हुए भी उसके मन के एक कोने में यह सब बड़ा ही घृणित लग रहा था लेकिन अपने आनंद के वश में होकर वह रुकने का नाम नहीं ले रही थी… वह कभी अपनी बुर मसल रही थी तो दूसरे हाथ से कभी अपनी नंगी चिकनी मक्खन जैसी जांघों को सहला रही थी तो कभी उसी हाथ से ब्लाउज के ऊपर से ही अपने फड़फड़ाते दोनों कबूतरों को शांत करने की कोशिश कर रही थी।
सुगंधा पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी सही गलत सोचने का उसके पास समय बिल्कुल भी नहीं था क्योंकि इस समय वह आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे और उसके जेहन में उस आनंद का केंद्र बिंदु उसका

अनजाने में ही बेला रोहन के लिए एक शिक्षिका बनकर उसे संभोग रस के अध्याय में सहायक बनती जा रही थी वह एक तरह से रोहन का मार्गदर्शक के रूप में मार्गदर्शन करा रही थी हालांकि इसमें दोनों को ही बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी और दोनों का अपना अलग ही लालच बांधा हुआ था रोहन बेला के कहने पर उसे बार-बार पैसे दे रहा था लेकिन बदले में बेला उसे पृथ्वी का सबसे हसीन और परमानंद से भरपूर आनंद प्रदान कर रही थी और साथ ही पैसे लेकर के भी अपने आप को भी आनंद के सागर में गोते लगवा रही थी…. ।
रोहन आज बहुत खुश था क्योंकि आज उसके लंड में औरतों के बेहद नाजुक कोमल अंग कि उन गुलाबी पत्तियों से इस पर से जो कर लिया था जिस को स्पर्श करने के लिए जवानी का दौर शुरू होकर बुढ़ापे पर ही खत्म होता है …..एक अजीब सी हलचल उसके तन बदन को झकझोर कर रख दे रही थी…. आज बेला को वह चोदते चोदते रह गया था रोहन ने अपने लंड को बुर के उस मुख्य द्वार तक पहुंचा कर वापस लौटा दिया था जिस द्वार पर आकर दुनिया का कोई भी मर्द वापस लौटना नहीं चाहता है बुर की गहराई से आ रही मादक खुशबू को उसके लंड के सुपाड़े ने भी महसूस किया होगा तभी तो वह उत्तेजना के मारे तन कर एकदम उस लोहे का रॉड की तरह हो गया था।

आज दिनभर की गतिविधि खास करके नदी के पानी के अंदर जो कुछ भी बेला के साथ उसने किया और बेला ने उसके साथ किया उन हसीन लम्हों को याद करते करते रोहन कब नींद की आगोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला…..

सुगंधा भी कुछ दिनों से बेहद परेशान नजर आ रही थी और उसकी परेशानी का कारण था शारीरिक आकर्षण और खास करके रोहन के लंबे तगड़े मोटे लंड को देखकर जो उसके तन बदन में हलचल हो रही थी उस हलचल से वह अपने आप को बचाने में असमर्थ साबित हो रही थी बार-बार उसका मन उसे समझाने की कोशिश करता कि जो वह अपने मन में विचार कर रही है वह बहुत ही गलत है समाज के लिए और खुद उसके लिए भी लेकिन शारीरिक जरूरत के चलते उसका मन इधर उधर भटक रहा था और बार बार रोहन के तगड़े लंड को लेकर उसके मन में कल्पनाओं का दौर अपनी तीव्रता से कदम भर रहा था और वह अपने उन विचारों पर अपनी रंगीन कल्पनाओं पर लगाम नहीं लगा पा रहे थे जिसके चलते उसे खुद से भी घृणा हो रही थी लेकिन कुछ पल की यह घटना आनंद में तब्दील हो जाते थे बार-बार उसके साथ ऐसा ही हो रहा था ना चाहते हुए भी बिस्तर पर लेटे-लेटे उसका हाथ साड़ी के ऊपर से ही अपनी बुर पर चला जा रहा था जिसे वह अपने बेटे का लंड को याद करके बार-बार मसल दे रही थी और ऐसा करने में उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी और उसे मज़ा भी आ रहा था एक अजीब सी कशिश एक अजीब सा आकर्षण उसके खुद के बेटे के लंड के प्रति उसकी बढ़ती आकर्षण मैं वह बंधती चली जा रही थी……
अपनी कल्पनाओं के घोड़े का लगाम कसने में वह असमर्थ साबित हो रही थी इसका सबूत इस बात से ही पता चलता था कि वह रात भर में 3 बार अपने बेटे के लंड को याद करके संखलित हो चुकी थी। संस्कार और मर्यादा से परिपूर्ण नारी होने के बावजूद भी सुगंधा का मन बहक रहा था उसके पांव आकर्षण के चिकनी माटी में फीसलते चले जा रहे थे।

सुगंधा की पेंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी उसे कुछ कसमसाहट सा महसूस हो रहा था इसलिए वह खुद ही अपनी साड़ी को पकड़ के ऊपर की तरफ सरकाने लगी… देखते ही देखते सुगंधा अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी। उसकी गुलाबी रंग की पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी जो कि उसे साफ साफ नजर आ रहा था उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि वह खाली कल्पना करके ही इतना सारा पानी फेंक चुकी है उसकी बुर कुछ ज्यादा ही उत्तेजना महसूस कर रही थी क्योंकि उसकी फुली हुई बुर पेंटी के ऊपरी सतह पर किसी गरम कचोरी की तरह नजर आ रही थी। सुगंधा पैंटी के ऊपर से ही अपनी पुर की हालत को देखकर एकदम उत्तेजित हो गई वह धीरे धीरे अपनी गीली वाली जगह पर अपनी हथेली रखकर अपने बुर को रगड़ना शुरू कर दी कुछ ही पल में सुगंधा को मज़ा आने लगा और उसके मुख से गरम-गरम सिसकारी की आवाज भी आने लगी सुगंधा के चेहरे के हाव-भाव बदलने लगे थे उसका गोरा गाल लाल टमाटर की तरह हो गया था कुछ देर तक यूं ही वह पैंटी के ऊपर से ही अपनी बुर को मसलती रही। यह सब करते हुए भी उसके मन के एक कोने में यह सब बड़ा ही घृणित लग रहा था लेकिन अपने आनंद के वश में होकर वह रुकने का नाम नहीं ले रही थी… वह कभी अपनी बुर मसल रही थी तो दूसरे हाथ से कभी अपनी नंगी चिकनी मक्खन जैसी जांघों को सहला रही थी तो कभी उसी हाथ से ब्लाउज के ऊपर से ही अपने फड़फड़ाते दोनों कबूतरों को शांत करने की कोशिश कर रही थी।

सुगंधा पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी सही गलत सोचने का उसके पास समय बिल्कुल भी नहीं था क्योंकि इस समय वह आनंद के सागर में गोते लगा रहे थे और उसके जेहन में उस आनंद का केंद्र बिंदु उसका ही खुद का बेटा था जिसके जबरदस्त हथियार को याद करके उसकी बुर कुछ ज्यादा ही पानी छोड़ रही थी सुगंधा अपने दोनों हाथों की नाजुक उंगलियों से अपनी पैंटी की छोड़ पकड़ कर हल्के से अपनी मदमस्त भारी-भरकम गांड को उठा दी और धीरे-धीरे अपनी पेंटी को उतारने लगी यह नजारा बेहद ही काम उत्तेजना से भरपूर था एक औरत जब खुद ही अपनी पैंटी को उतारती है तो उस हरकत में उसकी पूरी तरह से रजामंदी होती है और सुगंधा भी अपने आनंद के वशीभूत होकर आज अपने ही कपड़ों को खुद उतार रही थी। हालांकि अभी वह किसी मर्द के लिए अपने कपड़े उतार कर नंगी नहीं हो रही थी लेकिन कपड़े उतारने में भी उसका खुद का आनंद और रोहन की कल्पना जवाबदार थी देखते ही देखते सुगंधा अपनी लंबी चिकनी टांगों में से अपनी गुलाबी रंग की पैंटी उतार कर बिस्तर पर फेंक दें और कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी हो गई वह हल्के से कमर के ऊपरी भाग को उठाकर अपनी पूर्व की तरफ देखने लगी क्योंकि इस समय उसकी बुर तवे पर फूली हुई रोटी की तरह नजर आ रही थी जोकि बेहद गर्म और स्वादिष्ट थी….. हल्के हल्के बाल उसकी सुंदरता को बढ़ा रहे थे सुगंधा के चेहरे का रंग लाल टमाटर की तरह हो गया था जिसमें शर्मिंदगी का अहसास बिल्कुल भी नहीं था और उत्तेजना का असर अत्यधिक मात्रा में नजर आ रहा था था सुगंधा अपनी हथेली को अपनी नंगी बुर पर रखकर हल्के हल्के दबाने लगी और ऐसा करने में उसे बहुत मजा आ रहा था और देखते ही देखते वह अपनी बीच वाली उंगली को हल्के से अपनी पूर्व की गहराई में उतार दी और एक हल्की चीख के साथ अपनी आंखों को बंद करके उस उंगली से बुर के अंदर अंदर बाहर हो रही रगड़ का आनंद लेने लगी सुगंधाको मजा आने लगा कुछ देर तक वह अपनी एक ही उंगली से अपनी बुर को चोदती रही। लेकिन एक उंगली से उसकी बुर की खुजली शांत होने वाली नहीं थी इसलिए वह अपनी दूसरी उंगली भी अपने बुर के अंदर डाल दी और अपने बेटे के मोटे तगड़े लंड की कल्पना करने लगी वह ना चाहते हुए भी ऐसी कल्पना कर रही थी कि उसका बेटा उसकी दोनों टांगों को फैला कर अपने मोटे लंड को उसकी बुर के अंदर डालकर चोद रहा है और जैसे-जैसे अपनी उंगली को बड़ी तेजी से बुर के अंदर-बाहर करती वैसे वैसे उसकी कल्पनाओं का घोड़ा उसके बेटे की हिलती हुई कमर को देखती रहती और उस नजारे की कल्पना करके सुगंधा का तन बदन एक अद्भुत सुख के एहसास से भर जा रहा था….. उसके मन में यही विचार उमड़ रहा था कि जैसे-जैसे वह अपनी उंगलियों की गति को बुर के अंदर बाहर करते हुए बढ़ाती वैसे वैसे उसका बेटा जोर जोर से अपनी कमर हिलाते हो गए अपने लंड को उसकी बुर के अंदर बाहर करते हुए उसे चोद रहा है उसकी उत्तेजना का आलम इस कदर उस पर हावी हो चुका था कि अपनी उंगली से अपनी बुर चोदते हुए वह पूरी तरह से बिस्तर पर छटपटा रही थी उसकी साड़ी उसके बदन से अलग हो चुकी थी और उत्तेजना ग्रस्त सुगंधा ना जाने कब अपनी उंगली से हस्तमैथुन करते हुए रोहन रोहन करके मजे लेने लगी इस बात का उसे पता भी नहीं चला और थोड़ी देर बाद उसकी बुर ने ढेर सारा पानी फेंक दी। एक अद्भुत आनंद के साथ से वह गुजर चुकी थी काफी वर्षों के बाद उसे इस एहसास ने काफी आनंदित किया था कुछ देर तक वह यूं ही बिस्तर पर लेटी रही लेकिन थोड़ी ही देर बाद जब वासना का तूफान उसके दिमाग से गुजरा उसके तन बदन को तहस-नहस करके गया तब उसे इस बात का अहसास होने लगा कि जो वह कि वह बिल्कुल गलत था और खास करके अपनी उंगली से अपनी पूरी चोदते हुए वह अपने बेटे का ख्याल कर रही थी वह बिल्कुल ही गलत था
सुरेंद्र को अपनी हरकत की वजह से आत्मग्लानि होने लगी वह अंदर ही अंदर पछताने लगी क्योंकि जिस तरह की हरकत व कर रही थी एक मां बेटे के बीच के पवित्र रिश्ते को तार-तार करने वाला था इस बात से वाकिफ थे कि वह सिर्फ कल्पना की थी हकीकत ने अपनी हरकत को अंजाम नहीं दी थी वरना वह अपने आप को ही मुंह दिखाने के काबिल नहीं रखती अब आइंदा से ऐसी गलती नहीं होगी ऐसी कसम खाकर वह सो गई….. रात देर तक जाग कर अपनी बुर की खुजली मिटाने के बाद सुबह उसकी आंखें देर से खुली आज काफी देर हो चुकी थी उठते ही वह कमरे से बाहर आई उसे इस बात का अहसास हो गया कि रोहन भी अभी नहीं उठाया इसलिए उसे जगाने के लिए उसके कमरे की तरफ जाने लगी लेकिन कमरे का दरवाजा खुला हुआ था वह सोचे कि शायद रोहन उठ गया है और बिना ही दरवाजे पर दस्तक दिए वह कमरे के अंदर चली गई लेकिन कमरे के अंदर बिस्तर के ऊपर का नजारा देखते ही वह दंग रह गई बिस्तर के ऊपर रोहन पूरी तरह से नंगा लेटा हुआ था वह पीठ के बल सो रहा था लेकिन उसका लंड पूरी तरह से टन टना कर कमरे की छत नाप रहा था वह धीरे-धीरे अपनी कदम आगे बढ़ाने लगी थी वह रोहन का नाम लेकर उसे पुकारी उसे इस बात का डर था कि कहीं रोहन जाग रहा होगा तो क्या सोचेगा क्योंकि जिस अवस्था में वह कमरे के अंदर आ गई थी उसे नहीं आना चाहिए था लेकिन दो बार पुकारने पर भी वह टस से मस नहीं हुआ तो उसे पक्का यकीन हो गया कि वह गहरी नींद में सो रहा है।

रात देर तक जाग कर अपनी बुर की खुजली मिटाने के बाद सुबह उसकी आंखें देर से खुली आज काफी देर हो चुकी थी उठते ही वह कमरे से बाहर आई उसे इस बात का अहसास हो गया कि रोहन भी अभी नहीं उठाया इसलिए उसे जगाने के लिए उसके कमरे की तरफ जाने लगी लेकिन कमरे का दरवाजा खुला हुआ था वह सोचे कि शायद रोहन उठ गया है और बिना ही दरवाजे पर दस्तक दिए वह कमरे के अंदर चली गई लेकिन कमरे के अंदर बिस्तर के ऊपर का नजारा देखते ही वह दंग रह गई बिस्तर के ऊपर रोहन पूरी तरह से नंगा लेटा हुआ था वह पीठ के बल सो रहा था लेकिन उसका लंड पूरी तरह से टन टना कर कमरे की छत नाप रहा था वह धीरे-धीरे अपनी कदम आगे बढ़ाने लगी थी वह रोहन का नाम लेकर उसे पुकारी उसे इस बात का डर था कि कहीं रोहन जाग रहा होगा तो क्या सोचेगा क्योंकि जिस अवस्था में वह कमरे के अंदर आ गई थी उसे नहीं आना चाहिए था लेकिन दो बार पुकारने पर भी वह टस से मस नहीं हुआ तो उसे पक्का यकीन हो गया कि वह गहरी नींद में सो रहा है। वह धीरे धीरे बिस्तर की तरफ बढ़ने लगी उसकी सांसो की गति तेज होने लगी रोहन को पहली बार गुसल खाने में लगना अवस्था में देखकर वह पूरी तरह से बाहर गई थी और आज दूसरी बार उसे अपने ही बिस्तर पर एकदम नंगी अवस्था में देखकर सुगंधा एकदम धराशाई हुए जा रही थी रात को गुलामी का अनुभव करते हुए जो कसम खाई थी वह कसम वासना की उमंगों की ओट में धुधली हुए जा रही थी।
सुगंधा अपने बेटे के कमरे में थी और उसका बेटा बेसुध होकर सो रहा था वह पूरी तरह से नंगा था और उसका लंड छत की ओर मुंह उठाए ताक रहा था यह नजारा सुगंधा के दिल की धड़कनें बढ़ा रहा था सुगंधा धीरे-धीरे अपने बेटे के करीब जा रही थी उसके दिल की धड़कन घोड़े कि टापू की तरह आवाज करते हुए चल रही थी। सुगंधा अपने बेटे के करीब खड़ी होकर ऊपर से नीचे तक उसे एकटक देख रही थी रोहन का गठीला बदन सुगंधा के बदन में हलचल मचा रहा था और उसका लंड सुगंधा की बुर में पानी का सैलाब उठा रहा था जबरदस्त नजारा बना हुआ था एक बेटा बिस्तर पर नंगा लेटा हुआ था जिस के लंड को देखकर उसकी खुद की मां उत्तेजित हो रही थी आज बहुत करीब से वह अपने बेटे के खड़े लंड को देख रहे थे और अपने बेटे के लंड को देखकर सुगंधा इतना तो समझ गई थी कि उसके बेटे को कुदरत का वरदान रूपी लंड मिला था जो कि किसी भी औरत और लड़की को संपूर्ण रूप से संतुष्टि प्रदान करने में सक्षम था सुगंधा अपने बेटे के खड़े लंड को देखकर यही सोच रही थी कि अगर इस लंड को अपनी बुर में ले ले तो उसके गुलाबी पत्तियां किसी ककड़ी की तरह फैलती चली जाएंगी यह सोचकर ही उसकी बुर पानी फेंकना शुरू कर दी सुगंधा के सांसो की गति तीव्र होती जा रही थी। उसने कभी सोची भी नहीं थी कि वह इस अवस्था में अपने बेटे को देखेगी और तो और वह कभी जिंदगी में नहीं सोची थी कि अपनी बेटे को लेकर उसके मन में इस तरह की हलचल होगी कि उसे पाने के लिए उसका मन तड़प उठे गा सुगंधा से रहा नहीं जा रहा था। वह कभी अपने बेटे के मासूम चेहरे को तो कभी उसके खड़े लंड को जो कि उसकी जवानी की गाथा कहने को मचल रही थी कुछ देर तक सुगंधा अपने बेटे की जवानी को अपनी आंखों से पीती रही लेकिन भला जो अंग महसूस करने के लिए होता है ।वह आंखों से देख कर मन कहां पर ले देता है। बल्कि आंखें तो प्यास को और भी ज्यादा बढ़ावा देती है और यही सुगंधा के साथ भी हो रहा था सुगंधा के तन बदन से वासना की चिंगारियां फूट रही थी।

सुगंधा का चंचल मन तड़प रहा था अपने बेटे के लंड को अपने हाथ में लेने के लिए उसकी गर्माहट को अपने अंदर महसूस करने के लिए लेकिन उसे डर भी लग रहा था लेकिन वह अपने चंचल मन के आगे मजबूर हो गई एक अजीब सा डर अपने अंदर होने के बावजूद भी अपना एक हाथ आगे बढ़ा कर हल्के से रोहन के लंड के सुपाड़े पर अपनी ऊगली का स्पर्श करा दी ।

सससससससहहहहहहहह…. .. आहहहहहहहहहहहह………
( अपने बेटे के लंड़ के सुपाड़े पर अपनी ऊगली का स्पर्श कराते ही सुगंधा के मुंह से गर्म सिसकारी छूट गई। अपने बेटे के लंड को हाथ लगाते ही सुगंधा समझ गई कि उसका लंड बहुत ज्यादा गर्म है जो कि यह गर्मी उसकी जवानी की थी जैसे ही अपनी उंगली का स्पर्श लंड पर कराई थी वैसे ही तुरंत अपना हाथ वापस खींच ली उसे इस बात का डर था कि कहीं रोहन जागना जाए और वह अपनी इस हरकत के बाद तुरंत रोहन के चेहरे की तरफ देखने लगी लेकिन रोहन टस से मस नहीं हुआ वह सोता रहा कुछ सेकंड तक सुगंधा रोहन की तरफ देखती रही लेकिन किसी भी प्रकार की हलचल ना होने की वजह से उसकी हिम्मत बढी और वह इस बार अपना हाथ आगे बढ़ा कर रोहन के लंड को अपनी हथेली में पूरी तरह से भरली। एक अजीब सा एहसास उसके तन बदन में फैलने लगा। कुछ पल के लिए सुगंधा की सांसे अटक गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें सुगंधा की हथेली में उसके ही बेटे का लंड भरपूर मात्रा में भरा हुआ था। उसकी गर्माहट सुगंधा के तन बदन में हलचल मचा रहे थे खास करके उसकी टांगों के बीच किस छोटी सी पतली सी दरार के अंदर तो बवंडर सा उठने लगा था यह वह क्षण था जिसमें सुगंधा अपनी मर्यादा लगने के लिए पूरी तरह से तैयार हो गई थी उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था अच्छे बुरे का तात्पर्य भूल चुकी थी दिल जोरों से धड़क रहा था कमरे का वातावरण पूरी तरह से गर्म हो चुका था रोहन के चेहरे की तरफ देखकर उसे इस बात का दिलासा था कि रोहन नींद में था लेकिन यह उसकी भूल थी पहली बार ही जब उसने अपने बेटे की लंड के सुपाड़े को उंगली से स्पर्श की थी तभी उसकी नींद खुल चुकी थी लेकिन वह नींद में होने का बहाना बना कर लेटा रहा।

वह देखना चाहता था कि उसकी मां करती क्या है लेकिन वह अपनी मां की हरकत की वजह से मन ही मन प्रसन्न हो रहा था उसे लगने लगा था कि अपनी मां को हासिल करने का रास्ता उसकी मां खुद उसे दिखा रही थी वह चाहता तो इसी वक्त अपनी मां का हाथ अपने लंड पर पकड़ कर अपनी मनमानी कर सकता था हाजी उसकी हसरत पूरी हो जाती है आज ही अपने कमरे में अपने बिस्तर पर अपनी मां की बुर पर पूरी तरह से कब्जा जमा देता लेकिन ऐसा करने में उसे डर लग रहा था और इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि वह इस तरह की हरकत कर सकें इसलिए वह चुपचाप आंखें बंद करके अपनी मां की हरकतों का मजा लेता रहा उसे इस बात की तसल्ली थी कि आज नहीं तो कल वह अपनी मां को हासिल कर लेगा क्योंकि उसकी मां के अंदर भी चुदवाने की इच्छा जागरूक हो चुकी थी….

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1 Comment

  1. Gandu Ashok

    भेनचोद कितनी बार झड़ गया कहानी पढ़ते पढ़ते

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