Hindi sexi stori
मैं हूँ हसीना गजब की पार्ट–1
मैं स्मृति हूँ. 26 साल की एक शादीशुदा महिला. गोरा रंग और
खूबसूरत नाक नक्श. कोई भी एक बार मुझे देख लेता तो बस मुझे
पाने के लिए तड़प उठता था. मेरी फिगर अभी 34(ल)-28-38. मेरा
बहुत सेक्सी
है. मेरी शादी पंकज से 6 साल पहले हुई थी. पंकज एक आयिल
रेफाइनरी मे काफ़ी
अच्च्ची पोज़िशन पर कम करता है. पंकज निहायत ही हॅंडसम और
काफ़ी अच्छे
स्वाभाव का आदमी है. वो मुझे बहुत ही प्यार करता है. मगर मेरी
किस्मेत मे सिर्फ़ एक आदमी का प्यार नही लिखा हुआ था. मैं आज दो
बच्चो की मा हूँ मगर उनमे से किसका बाप है मुझे नही मालूम.
खून तो शायद उन्ही की फॅमिली का है मगर उनके वीर्य से पैदा हुआ
या
नही इसमे संदेह है. आपको ज़्यादा बोर नही करके मैं आपको पूरी
कहानी
सुनाती हूँ. कैसे एक सीधी साधी लड़की जो अपनी पढ़ाई ख़तम
करके
किसी कंपनी मे
सेक्रेटरी के पद पर काम करने लगी थी, एक सेक्स मशीन मे तब्दील
हो गयी. शादी
से पहले मैने किसी से जिस्मानी ताल्लुक़ात नही रखे थे. मैने अपने
सेक्सी बदन को बड़ी मुश्किल से मर्दों की भूखी निगाहों से बचाकर
रखा था. एक अकेली लड़की का और वो भी इस पद पर अपना कोमार्य
सुरक्षित रख पाना अपने आप मे बड़ा ही मुश्किल का काम था. लेकिन
मैने इसे संभव कर दिखाया था. मैने अपना कौमार्या अपने पति को
ही समर्पित किया था. लेकिन एक बार मेरी योनि का बंद द्वार पति के
लिंग से खुल जाने के बाद तो पता नही कितने ही लिंग धड़ाधड़ घुसते
चले गये. मैं कई मर्दों के साथ हुमबईस्तर हो चुकी थी. कई
लोगों
ने तरह तरह से मुझसे संभोग किया……………
मैं एक खूबसूरत लड़की थी जो एक मीडियम क्लास फॅमिली को बिलॉंग
करती थी. पढ़ाई ख़तम होने के बाद मैने शॉर्ट हॅंड आंड ऑफीस
सेक्रेटरी का कोर्स किया. कंप्लीट होने पर मैने कई जगह अप्लाइ
किया. एक कंपनी सुदर्शन इंडस्ट्रीस से पी ए के लिए कॉल आया.
इंटरव्यू मे सेलेक्षन हो गया. मुझे उस कंपनी के मालिक मिस्टर. खुशी
राम की पीए के पोस्ट के लिए सेलेक्ट किया गया. मैं बहुत खुश हुई.
घर
की हालत थोड़ी नाज़ुक थी. मेरी तनख़्वाह ग्रहस्थी मे काफ़ी मदद करने
लगी.
मैं काम मन लगा कर करने लगी मगर खुशी राम जी की नियत अच्छि
नही
थी. खुशिरामजी देखने मे किसी भैंसे की तरह मोटे और काले थे.
उनके पूरे चेहरे
पर चेचक के निशान उनके व्य्क्तित्व को और बुरा बनाते थे. जब वो
बोलते तो उनके होंठों के दोनो किनारों से लार निकलती थी. मुझे
उसकी
शक्ल से ही नफ़रत थी. मगर
क्या करती मजबूरी मे उन्हे झेलना पड़ रहा था.
मैं ऑफीस मे सलवार कमीज़ पहन कर जाने लगी जो उसे नागवार
गुजरने
लगा. लंबी आस्तीनो वाले ढीले ढले कमीज़ से उन्हे मेरे बदन की
झलक नही मिलती थी और ना ही मेरे बदन के तीखे कटाव ढंग से
उभरते.
“यहाँ तुम्हे स्कर्ट और ब्लाउस पहनना होगा. ये यहाँ के पीए का ड्रेस
कोड
है.” उन्हों ने मुझे दूसरे दिन ही कहा. मैने उन्हे कोई जवाब नही
दिया. उन्हों ने शाम तक एक टेलर को वही ऑफीस मे बुला कर मेरे
ड्रेस का ऑर्डर दे दिया. ब्लाउस का गला काफ़ी डीप रखवाया और स्कर्ट
बस इतनी लंबी की मेरी आधी जाँघ ही ढक पाए.
दो दिन मे मेरा ड्रेस तैयार हो कर आगेया. मुझे शुरू मे कुच्छ दिन
तक तो उस ड्रेस को पहन कर लोगों के सामने आने मे बहुत शर्म आती
थी. मगर धीरे धीरे मुझे लोगों की नज़रों को सहने की हिम्मत
बनानी पड़ी. ड्रेस तो इतनी छ्होटी थी कि अगर मैं किसी कारण झुकती
तो सामने वाले को मेरे ब्रा मे क़ैद बूब्स और पीछे वाले को अपनी
पॅंटी के नज़ारे के दर्शन करवाती.
मैं घर से सलवार कमीज़ मे आती और ऑफीस आकर अपना ड्रेस चेंज
करके अफीशियल स्कर्ट ब्लाउस पहन लेती. घर के लोग या मोहल्ले वाले
अगर मुझे उस ड्रेस मे देख लेते तो मेरा उसी मुहूर्त से घर से
निकलना ही बंद कर दिया जाता. लेकिन मेरे पेरेंट्स बॅक्वर्ड ख़यालो
के
भी नही थे. उन्हों ने कभी मुझसे मेरे पर्सनल लाइफ के बारे मे
कुच्छ भी पूछ ताछ नही की थी.
एक दिन खुशी राम ने अपने कॅबिन मे मुझे बुला कर इधर उधर की
काफ़ी
बातें
की और धीरे से मुझे अपनी ओर खींचा. मैं कुच्छ डिसबॅलेन्स हुई तो
उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया. उसने मेरे होंठों को अपने
होंठों से च्छू लिए. उसके मुँह से अजीब तरह की बदबू आ रही थी.
मैं एक दम घबरा गयी. समझ मे ही नही आया कि ऐसे हालत का
सामना
किस तरह से करूँ. उनके हाथ मेरे दोनो चूचियो को ब्लाउस के उपर
से मसल्ने के बाद स्कर्ट के नीचे पॅंटी के उपर फिरने लगे. मई
उनसे
अलग होने के लिए कसमसा रही थी. मगर उन्होने ने मुझे अपनी बाहों
मे बुरी तरह से जाकड़ रखा था. उनका एक हाथ एक झटके से मेरी
पॅंटी के अंदर घुस कर मेरी टाँगों के जोड़ तक पहुँच गया. मैने
अपने दोनो टाँगों को सख्ती से एक दूसरे के साथ भींच दिया लेकिन
तब तक तो उनकी उंगलियाँ मेरी योनि के द्वार तक पहुँच चुकी थी.
दोनो उंगलियाँ एक मेरी योनि मे घुसने के लिए कसमसा रही थी.
मैने पूरी ताक़त लगा कर एक धक्का देकर उनसे अपने को अलग किया.
और वहाँ से भागते हुए
निकल गयी. जाते जाते उनके शब्द मेरे कानो पर पड़े.
“तुम्हे इस कंपनी मे काम करने के लिए मेरी हर इच्च्छा का ध्यान
रखना पड़ेगा.”
मैं अपनी डेस्क पर लगभग दौड़ते हुए पहुँची. मेरी साँसे तेज तेज
चल रही थी. मैने एक
ग्लास ठंडा पानी पिया. बेबसी से मेरी आँखों मे आँसू आ गये. नम
आँखों से मैने अपना रेसिग्नेशन लेटर टाइप किया और उसे वही पटक
कर ऑफीस से
बाहर निकल गयी. फिर दोबारा कभी उस रास्ते की ओर मैने पावं नही
रखे.
फिर से मैने कई जगह अप्लाइ किया. आख़िर एक जगह से इंटरव्यू कॉल
आया.
सेलेक्ट होने के बाद मुझे सीईओ से मिलने के लिए ले जाया गया. मुझे
उन्ही
की पीए के पोस्ट पर अपायंटमेंट मिली थी. मैं एक बार चोट खा चुकी
थी इस लिए दिल बड़ी तेज़ी से धड़क रहा था. मैने सोच रखा था
कि
अगर मैं कहीं को जॉब करूँगी तो अपनी इच्च्छा से. किसी मजबूरी या
किसी की रखैल बन कर नही. मैने सकुचते हुए उनके
कमरे मे नॉक किया और अंदर गयी.
“यू आर वेलकम टू दिस फॅमिली” सामने से आवाज़ आई. मैने देखा
सामने एक३7 साल का बहुत ही खूबसूरत आदमी खड़ा था. मैं सीईओ मिस्टर.
राज शर्मा को देखती ही रह गयी. वो उठे और मेरे पास आकर हाथ
बढ़ाया लेकिन मैं बुत की तरह खड़ी रही. ये सभ्यता के खिलाफ था
मैं अपने बॉस का इस तरह से अपमान कर रही थी. लेकिन उन्हों ने बिना
कुच्छ कहे मुस्कुराते हुए मेरी हथेली को थाम लिया. मैं होश मे
आई. मैने तपाक से उनसे हाथ मिलाया. वो मेरे
हाथ को पकड़े हुए मुझे अपने सामने की चेर तक ले गये और चेर को
खींच कर मुझे बैठने के लिए कहा. जब तक वो घूम कर अपनी
सीट पर पहुँचे मैं तो उन के डीसेन्सी पर मर मिटी. इतना बड़ा आदमी
और इतना सोम्य व्यक्तित्व. मैं तो किसी ऐसे ही एंप्लायर के पास काम
करने का सपना इतने दीनो से संजोए थी.
खैर अगले दिन से मैं अपने काम मे जुट गयी. धीरे धीरे उनकी
अच्च्छाइयों से अवगत होती गयी. सारे ऑफीस के स्टाफ उन्हे दिल से
चाहते थे. मैं भला उनसे अलग कैसे रहती. मैने इस कंपनी मे
अपने
बॉस के बारे मे उनसे मिलने के पहले जो धारणा बनाई थी उसका उल्टा
ही
हुआ. यहाँ पर तो मैं खुद अपने बॉस पर मर मिटी, उनके एक एक काम
को
पूरे मन से कंप्लीट करना अपना धर्म मान लिया. मगर बॉस
था कि घास ही नही डालता था. यहा मैं सलवार कमीज़ पहन कर ही
आने लगी. मैने अपने कमीज़ के गले बड़े कार्वालिए जिससे उन्हे मेरे
दूधिया रंग के बूब्स देखें. बाकी सारे ऑफीस वालों के सामने तो
अपने बदन को चुनरी से ढके रखती थी. मगर उनके सामने जाने से
पहले अपनी छातियो पर से चुनरी हटा कर उसे जान बूझ कर टेबल
पर छ्चोड़ जाती थी. मैं जान बूझ कर उनके सामने झुक
कर काम करती थी जिससे मेरे ब्रा मे कसे हुए बूब्स उनकी आँखों के
सामने झूलते रहें. धीरे धीरे मैने महसूस किया कि उनकी नज़रों
मे भी परिवर्तन आने लगा है. आख़िर वो कोई साधु महात्मा तो थे
नही ( दोस्तो आप तो जानते है मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा कैसा बंदा हूँ
ये सब तो चिड़िया को जाल मे फाँसने के लिए एक चारा था ) और मैं थी भी
इतनी सुंदर की मुझ से दूर रहना एक नामुमकिन
काम था. मैं अक्सर उनसे सटने की कोशिश करने लगी. कभी कभी
मौका देख कर अपने बूब्स उनके बदन से च्छुआ देती
मैने ऑफीस का काम इतनी निपुणता से सम्हाल लिया था कि अब राजकुमार
जी ने काम की काफ़ी ज़िम्मेदारियाँ मुझे सोन्प दी थी. मेरे बिना वो बहुत
असहाय फील करते थे. इसलिए मैं कभी छुट्टी नही लेती थी.
धीरे धीरे हम काफ़ी ओपन हो गये. फ्री टाइम मे मैं उनके कॅबिन मे
जाकर उनसे बातें करती रहती. उनकी नज़र बातें करते हुए कभी
मेरे
चेहरे से फिसल कर नीचे जाती तो मेरे निपल्स बुलेट्स की तरह तन
कर खड़े हो जाते. मैं अपने उभारों को थोडा और तान लेती थी.
उनमे गुरूर बिल्कुल भी नही था. मैं
रोज घर से उनके लिए कुच्छ ना कुच्छ नाश्ते मे बनाकर लाती थी हम
दोनो साथ बैठ कर नाश्ता करते थे. मैं यहाँ भी कुच्छ महीने
बाद स्कर्ट ब्लाउस मे आने लगी. जिस दिन पहली बार स्कर्ट ब्लाउस मे
आई, मैने उनकी आँखो मे मेरे लिए एक प्रशंसा की चमक देखी.
मैने बात को आगे बढ़ाने की सोच ली. कई बार काम का बोझ ज़्यादा
होता तो मैं उन्हे बातों बातों मे कहती, “सर अगर आप कहें तो फाइल
आपके घर ले आती हूँ छुट्टी के दिन या ऑफीस टाइम के बाद रुक जाती
हूँ. मगर उनका जवाब दूसरों से बिल्कुल उल्टा रहता.
वो कहते “स्मृति मैं अपनी टेन्षन घर लेजाना
पसंद नही करता और चाहता हूँ की तुम भी छुट्टी के बाद अपनी
लाइफ एंजाय करो. अपने घर वालो के साथ अपने बाय्फरेंड्स के साथ
शाम एंजाय करो. क्यों कोई है क्या?” उन्हों ने मुझे छेड़ा.
“आप जैसा हॅंडसम और शरीफ लड़का जिस दिन मुझे मिल जाएगा उसे
अपना बॉय फ्रेंड बना लूँगी. आप तो कभी मेरे साथ घूमने जाते
नहीं हैं.” उन्हों ने तुरंत बात का टॉपिक बदल दिया.
अब मैं अक्सर उन्हे छूने लगी. एक बार उन्हों ने सिरदर्द की शिकायत
की. मुझे कोई टॅबलेट ले कर आने को कहा.
” सर, मैं सिर दबा देती हूँ. दवाई मत लीजिए.” कहकर मैं उनकी
चेर के पीछे आई और उनके सिर को अपने हाथों मे लेकर दबाने
लगी. मेरी उंगलिया उनके बलों मे घूम रही थी. मैं अपनी उंगलियों
से उनके सिर को दबाने लगी. कुच्छ ही देर मे आराम मिला तो उनकी आँखें
अपने आप मूंडने लगी. मैने उनके सिर को अपने बदन से सटा दिया.
अपने दोनो चुचियो के बीच उनके सिर को दाब कर उनके सिर को दबाने लगी.
मेरे दोनो उरोज उनके सिर के भार से दब रहे थे. उन्हों ने भी
शायद इसे महसूस किया होगा मगर कुच्छ कहा नही. मेरे दोनो उरोज सख़्त हो
गये और निपल्स तन गये. मेरे गाल शर्म से लाल हो गये थे.
“बस अब काकी आराम है कह कर जब उन्हों ने अपने सिर मेरी छातियो
से उठाया तो मुझे इतना बुरा लगा की कुच्छ बयान नही कर सकती. मैं
अपनी नज़रे ज़मीन पर गड़ाए उनके सामने कुर्सी पर आ बैठी.
धीरे धीरे हम बेताकल्लूफ होने लगे. अभी सिक्स मोन्थ्स ही हुए थे
कि एक दिन मुझे अपने कॅबिन मे बुला कर उन्होने एक लिफ़ाफ़ा दिया. उसमे
से लेटर निकाल कर मैने पढ़ा तो खुशी से भर उठी. मुझे
पर्मनेंट कर दिया गया था और मेरी तनख़्वाह डबल कर दी गयी
थी.
मैने उनको थॅंक्स कहा तो वो कह उठे. “सूखे सूखे थॅंक्स से काम
नही चलेगा. बेबी इसके लिए तो मुझे तुमसे कोई ट्रीट मिलनी चाहिए”
“ज़रूर सर अभी देती हूँ” मैने कहा
“क्या?” वो चौंक गये. मैने मौके को हाथ से नही जाने देना चाहती
थी. मैं
झट से उनकी गोद मे बैठ गयी और उन्हे अपनी बाहों मे भरते हुए
उनके लिप्स चूम लिए. वो इस अचानक हुए हमले से घबरा गये.
“स्मृति क्या कर रही हो. कंट्रोल युवरसेल्फ. इस तरह भावनाओं मे मत
बहो. ” उन्हों ने मुझे उठाते हुए कहा “ये उचित नही है. मैं एक
शादी शुदा बाल बच्चेदार आदमी हूँ”
“क्या करूँ सर आप हो ही इतने हॅंडसम की कंट्रोल नही हो पाया.” और
वहाँ से शर्मा कर भाग गयी.
जब इतना होने के बाद भी उन्हों ने कुच्छ नही कहा तो मैं उनसे और
खुलने लगी.
“राज जी एक दिन मुझे घर ले चलो ना अपने” एक दिन मैने उन्हे
बातों बातों मे कहा. अब हमारा संबंध बॉस और पीए का कम दोस्तों
जैसा अधिक हो गया था.
“क्यों घर मे आग लगाना चाहती हो?” उन्हों ने मुस्कुराते हुए पूचछा.
“कैसे?”
“अब तुम जैसी हसीन पीए को देख कर कौन भला मुझ पर शक़ नही
करेगा.”
“चलो एक बात तो आपने मान ही लिया आख़िर.”
“क्या?” उन्हों ने पूछा.
“कि मैं हसीन हूँ और आप मेरे हुष्ण से डरते हैं.”
“वो तो है ही.”
“मैं आपकी वाइफ से आपके बच्चों से एक बार मिलना चाहती हूँ.”
“क्यों? क्या इरादा है?”
” ह्म्म्म कुच्छ ख़तरनाक भी हो सकता है.” मैने अपने निचले होंठ
को दाँत से काटते हुए उठ कर उनकी गोद मे बैठ गयी. मैं जब भी बोल्ड
हो जाती थी वो घबरा उठते थे. मुझे उन्हे इस तरह सताने मे बड़ा
मज़ा आता था.
” देखो तुम मेरे लड़के से मिलो. उसे अपना बॉय फ़्रेंड बना लो. बहुत
हॅंडसम है वो. मेरा तो अब समय चला गया है तुम जैसी लड़कियों
से फ्लर्ट करने का.” उन्हों ने मुझे अपने गोद से उठाते हुए कहा.
“देखो ये ऑफीस है. कुच्छ तो इसकी मर्यादा का ख्याल रखा कर. मैं
यहा तेरा बॉस हूँ. किसी ने देख लिया तो पता नही क्या सोचेगा कि
बुड्ढे की मति मारी गयी है.”
इस तरह अक्सर मैं उनसे चिपकने की कोशिश करती थी मगर वो किसी
मच्चली की तरह हर बार फिसल जाते थे.
इस घटना के बाद तो हम काफ़ी खुल गये. मैं उनके साथ उल्टे सीधे
मज़ाक भी करने लगी. लेकिन मैं तो उनकी बनाई हुई लक्ष्मण रेखा
क्रॉस करना चाहती थी. मौका मिला होली को.
होली के दिन हुमारे ऑफीस मे छुट्टी थी. लेकिन फॅक्टरी बंद नही
रखा जाता था
कुच्छ ऑफीस स्टाफ को उस दिन भी आना पड़ता था. मिस्टर. राज हर होली को
अपने
स्टाफ से सुबह-सुबह होली खेलने आते थे. मैने भी होली को उनके
साथ हुड़दंग करने के प्लान बना लिया. उस दिन सुबह मैं ऑफीस
पहुँच गयी.
ऑफीस मे कोई नही था. सब बाहर एक दूसरे को गुलाल लगाते थे. मैं
लोगों की नज़र बचाकर ऑफीस के अंदर घुस गयी. अंदर होली
खेलना
अलोड नही था. मैं ऑफीस मे अंदर से दरवाजा बंद कर के
उनका इंतेज़ार करने लगी. कुच्छ ही देर मे राज की कार अंदर आई. वो
कुर्ते पायजामे मे थे. लोग उनसे गले मिलने लगे और गुलाल लगाने
लगे. मैने गुलाल निकाल कर एक प्लेट मे रख लिया बाथरूम मे जाकर
अपने बालों को खोल दिया.रेशमी जुल्फ खुल कर पीठ पर बिखर गये.
मैं एक पुरानी शर्ट और स्कर्ट पहन रखी
थी. स्कर्ट काफ़ी छ्होटी थी. मैने शर्ट के बटन्स खोल कर अंदर की
ब्रा उतार दी और शर्ट को वापस पहन ली. शर्ट के उपर के दो बटन
खुले रहने दिए जिससे मेरे आधे बूब्स झलक रहे थे. शर्ट
चूचियो के उपर से कुच्छ घिसी हुई थी इसलिए मेरे निपल्स और
उनके बीच का काला घेरा सॉफ नज़र आ रहा था. उत्तेजना और डर से
मैं मार्च के मौसम मे भी पसीने पसीने हो रही थी.
मैं खिड़की से झाँक रही थी और उनके फ्री होने का इंतेज़ार करने
लगी. उन्हे क्या मालूम था मैं ऑफीस मे उनका इंतेज़ार कर रही हूँ.
वो फ्री हो कर वापस कार की तरफ बढ़ रहे थे. तो मैने उनके
मोबाइल पर रिंग किया.
“सर, मुझसे होली नही खेलेंगे.”
“कहाँ हो तुम? सिम… अजाओ मैं भी तुमसे होली खेलने के लिए बेताब
हूँ” उन्हों ने चारों तरफ देखते हुए पूचछा.
“ऑफीस मे आपका इंतेज़ार कर रही हूँ”
“तो बाहर आजा ना. ऑफीस गंदा हो जायगा”
नही सबके सामने मुझे शर्म आएगी. हो जाने दो गंदा. कल रंधन
सॉफ कर देगा” मैने कहा
“अच्च्छा तो वो वाली होली खेलने का प्रोग्राम है?” उन्हों ने
मुस्कुराते हुए मोबाइल बंद किया और ऑफीस की तरफ बढ़े. मैने
लॉक खोल कर दरवाजे के पीछे छुप गयी. जैसे ही वो अंदर आए
मैं पीछे से उनसे लिपट गयी और अपने हाथों से गुलाल उनके चहरे
पर मल दिया. जब तक वो गुलाल झाड़ कर आँख खोलते मैने वापस अपनी
मुत्ठियों मे गुलाल भरा और उनके कुर्ते के अंदर हाथ डाल कर उनके
सीने मे लगा कर उनके सीने को मसल दिया. मैने उनके दोनो सीने
अपनी मुट्ठी मे भर कर किसी औरत की छातियो की तरह मसल्ने
लगी.
“ए..ए…क्या कर रही है?” वो हड़बड़ा उठे.
“बुरा ना मानो होली है.” कहते हुए मैने एक मुट्ठी गुलाल पायजामे के
अंदर भी डाल दी. अंदर हाथ डालने मे एक बार झिझक लगी लेकिन फिर
सबकुच्छ सोचना बंद करके अंदर हट डाल कर उनके लिंग को मसल दिया.
“ठहर बताता हूँ.” वो जब तक संभालते तब तक मैं खिल खिलाते
हुए वहाँ से भाग कर टेबल के पीछे हो गयी. उन्हों ने मुझे
पकड़ने के लिए टेबल के इधर उधर दौर लगाई. लेकिन मैं उनसे
बच गयी. लेकिन मेरा एम तो पकड़े जाने का था बचने का थोड़ी.
इसलिए मैं टेबल के पीछे से निकल कर दरवाजे की तरफ दौड़ी. इस
बार उन्हों ने मुझे पीच्चे से पकड़ कर मेरे कमीज़ के अंदर हाथ
डाल दिए. मैं खिल खिला कर हंस रही थी और कसमसा रही थी. वो
काफ़ी देर तक मेरे बूब्स पर रंग लगाते रहे. मेरे निपल्स को
मसल्ते रहे खींचते
रहे. मई उनसे लिपट गयी. और पहली बार उन्हों ने अपने होंठ मेरे
होंठों पर रख दिए. मेरे होंठ थोडा खुले और उनकी जीभ को
अंदर जाने का रास्ता दे दिया. कई मिनिट्स हम इसी तरह एक दूसरे को
चूमते रहे. मेरा एक हाथ सरकते हुए उनके पायजामे तक पहुँचा
फिर धीरे से पायजामे के अंदर सरक गया. मैं उनके लिंग की तपिश
अपने हाथों पर महसूस कर रही थी. मैने अपने हाथ आगे बढ़ा कर
उनके लिंग को थाम लिया. मेरी इस हरकत से जैसे उनके पूरे जिस्म मे
एक झुरजुरी सी दौड़ गयी. उन्होने ने मुझ एक धक्का देकर अपने से
अलग किया. मैं गर्मी से तप रही थी. लेकिन उन्हों ने कहा “नही
स्मृति …..नही ये ठीक नही है.”
मैं सिर झुका कर वही खड़ी रही.
“तुम मुझसे बहुत छ्होटी हो.” उन्हों ने अपने हाथों से मेरे चेहरे को
उठाया ” तुम बहुत अच्च्छो लड़की हो और हम दोनो एक दूसरे के बहुत
अच्छे दोस्त हैं. “
मैने धीरे से सिर हिलाया. मैं अपने आप को कोस रही थी. मुझे अपनी
हरकत पर बहुत ग्लानि हो रही थी. मगर उन्हों ने मेरी कस्मकस को
समझ कर मुझे वापस अपनी बाहों मे भर लिया और मेरे गाल्लों पर
दो किस किए. इससे मैं वापस नॉर्मल हो गयी. जब तक मैं सम्हल्ती
वो जा चुके थे.
धीरे धीरे समय बीतता गया. लेकिन उस दिन के बाद उन्हों ने
हुमारे और उनके बीच मे एक दीवार बना दी.
मैं शायद वापस उन्हे सिड्यूस करने का प्लान बनाने लगती लेकिन
अचानक मेरी जिंदगी मे एक आँधी सी आई और सब कुच्छ चेंज हो
गया. मेरे सपनो का सौदागर मुझे इस तरह मिल जाएगा मैने कभी
सोचा ना था.
मैं एक दिन अपने काम मे बिज़ी थी कि लगा कोई मेरी डेस्क के पास आकर
रुका.
“आइ वॉंट टू मीट मिस्टर. राज शर्मा”
“एनी अपायंटमेंट? ” मैने सिर झुकाए हुए ही पूचछा?
“नो”
“सॉरी ही ईज़ बिज़ी” मैने टालते हुए कहा.
“टेल हिम पंकज हिज़ सन वांट्स टू मीट हिम.”
“मैने एक झटके से अपना सिर उठाया और उस खूबसूरत और हॅंडसम
आदमी को देखती रह गयी. वो भी मेरी खूबसूरती मे खो गया था.
“ओह माइ गोद. क्या चीज़ हो तुम. तभी डॅड आजकल इतना ऑफीस मे बिज़ी
रहने लगे हैं.” उन्हों ने कहा “बाइ दा वे आपका नाम जान सकता हूँ?”
“स्मृति”
“स्मृति….अब ये नाम मेरी स्मृति से कभी दूर नही जाएगा.” मैने
शर्मा कर अपनी आँखे झुका ली. वो अंदर चले गये. वापसी मे उन्हों
ने मुझसे शाम की डेट फिक्स कर ली.
इसके बाद तो हम डेली मिलने लगे. हम दोनो पूरी शाम एक दूसरे की
बाहों मे बिताने लगे. पंकज बहुत ओपन माइंड के आदमी थे.
एक दिन राज ने मुझे अपने कॅबिन मे बुलाया और एक लेटर मुझे देते
हुए कहा.
“ये है तुम्हारा टर्मिनेशन लेटर. यू आर बीयिंग सॅक्ड” उन्हों ने
तेज आवाज़ के साथ कहा.
“ल..लेकिन मेरी ग़लती क्या है?” मैने रुआंसी आवाज़ मे पूछा.
“तुमने मेरे लड़के को अपने जाल मे फँसा है”
“लेकिन सर…”
“कोई लेकिन वेकीन नही” उन्हों ने मुझे बुरी तरह झिड़कते हुए
कहा “नाउ गेट लॉस्ट”
मेरी आँखों मे आँसू आ गये. मैं रोती हुई वहाँ से जाने लगी. जैसे
ही मैं दरवाजे तक पहुँची उनकी आवाज़ सुनाई दी.
“शाम को हम तुम्हारे पेरेंट्स से मिलने आ रहे है. पंकज जल्दी शादी
करना चाहता है” मेरे कदम ठिठक गये. मैं घूमी मैने देखा मिस्टर.
राज शर्मा अपनी बाहें फैलाए मुस्कुरा रहे हैं. मैं आँसू पोंछ कर
खिल खिला उठी. और दौड़ कर उनसे लिपट गयी.
आख़िर मैं राजकुमार जी के परिवार का एक हिस्सा बनने जा रही थी.
पंकज मुझे बहुत चाहता था. शादी से पहले हम हर शाम साथ
साथ घूमते फिरते. काफ़ी बातें करते. पंकज ने मुझसे मेरे बॉय
फ्रेंड्स के बारे मे पूचछा. और उनसे मिलने से पहले की मेरी सेक्षुयल
लाइफ के बारे मे पूचछा जब मैने कहा अभी तक
कुँवारी हूँ तो हँसने लगे और कहा,
क्या कहा दोस्तो ये तो आप पार्ट -२ मे ही जान पाएँगे तब तक के लिए
आपका दोस्त राज शर्मा आपसे विदा चाहता है अगलेपार्ट मे फिर मेलेंगे स्म्रति की
जवानी से खेलने के लिए
क्रमशः……………………
Part 1
gataank se aage……………………
Mai Smriti hoon. 26 saal ki ek Shadishuda mahila. Gora rang aur
khoobsoorat nak naksh. Koi bhi ek baar mujhe dekh leta to bas mujhe
pane ke liye tadap uthta tha. Meri Figure abhi 34(L)-28-38. Mera
bahut sexy
hai. Meri shadi Pankaj se 6 saal pahle hui thi. Pankaj ek Oil
refinery me kafi
achchhe position par kam karta hai. Pankaj nihayat hi handsome aur
kafi achchhe
swabhav ka admi hai. Wo mujhe bahut hi pyaar karta hai. Magar meri
kismet me sirf ek admi ka pyaar nahi likha hua tha. Mai aj do
bachchhon ki ma hoon magar unme se kiska baap hai mujhe nahi maloom.
Khoon to shayad unhi ki family ka hai magar unke veerya se paida hua
ya
nahi isme sandeh hai. Apko jyada bore nahi karke mai apko poori
kahani
sunati hoon. Kaise ek seedhi saadhi ladki jo apni padhai khatam
karke
kisi company me
secretary ke pad par kaam karne lagi thi, ek sex machine me tabdeel
ho gayee. Shadi
se pahle maine kisi se jismani tallukat nahi rakhe the. maine apne
sexy badan ko badi mushkil se mardon ki bhookhi nigahon se bachakar
rakhi thi. Ek akeli ladki ka aur wo bhi is pad par apna komarya
surakshit rak pana apne aap me badi hi mushkil ka kaam tha. Lekin
maine ise sambhav kar dikhaya tha. Maine apna kaumarya apne pati ko
hi samarpit kiya tha. Lekin ek baar meri yoni ka band dwar pati ke
ling se khul jane ke baad to pata nahi kitne hi ling dhadadhad guste
chale gaye. Mai kai mardon ke saath humbistar ho chuki thi. Kai
logon
ne tarah tarah se mujhse sambhog kiya……………
Mai ek khoobsoorat ladki thi jo ek medium class family ko belong
karti thi. Padhai Khatam hone ke baad maine short hand and office
secretary ka course kiya. Complete hone par maine kai jagah apply
kiya. Ek company Sudarshan industries se PA ke liye call aya.
Interview me selection ho gaya. Mujhe us company ke malik Mr. Khushi
ram ke PA ke post ke liye select kiya gaya. Mai bahut khush hui.
Ghar
ki halat thodi najuk thi. Meri tankhwah grahasthi me kafi mada karne
lagi.
Mai kam man laga kar karne lagi magar Khushi Ram ji ki niyat achchhi
nahi
thi. Khushiramji Dekhne me ksi bhainse ki tarah mote aur kale the.
Unke poore chehre
par chechak ke nishan unke vyktitva ko aur bura banate the. Jab wo
bolte to unke honthon ke dono kinaron se laar nikalti thi. Mujhe
uski
shakl se hi nafrat thi. Magar
kya karti majboori me unhe jhelna pad raha tha.
Mai Office me salwar kameej pahan kar jane lagi jo use nagwar
gujarne
laga. Lambi asteeno wale dheele dhale kameej se unhe mere badan ki
jhalak nahi milti thin a hi mere badan ke teekhe katav dhang se
ubharte.
“yahan tumhe skirt aur blouse pahanna hoga. Ye yahan ke PA ka dress
code
hai.” Unhon ne mujhe doosre din hi kaha. Maine unhe koi jawab nahi
diya. Unhon ne sham take k tailor ko wahi office me bula kar mere
dress ka order de diya. Blouse ka gala kafi deep rakhwaya aur skirt
bus itni lambi ki meri adhi jangh hi dhak paye.
Do din me mera dress taiyaar ho kar agaya. Mujhe shuru me kuchh din
tak to us dress ko pahan kar logon ke samne ane me bahut sharm ati
thi. Magar dheere dheere mujhe logon ki najron ko sahne ki himmat
banani padi. Dress to itni chhoti thi ki agar mai kisi karan jhukti
to samne wale ko mere bra me kaid boobs aur peechhe wale ko apni
panty ke najare ke darshan karwati.
Mai ghar se salwar kameej me ati aur office akar apna dress change
karke official skirt blouse pahan leti. Ghar ke log ya mohalle wale
agar mujhe us dress me dekh lete to mera usi muhurt se ghar se
nikalna hi band kar diya jata. Lekin mere parents backward khayalo
ke
bhi nahi the. unhon ne kabhi mujhse mere personal life ke bare me
kuchh bhi pooch teach nahi kit hi.
Ek din Khushi ram ne apne cabin me mujhe bula kar idhar udhar ki
kafi
baten
ki aur dheere se mujhe apni or kheencha. Mai kuchh disbalance hui to
usne mujhe apne seene se laga liya. Usne mere honthon ko apne
honthon se chhu liye. Uske munh se ajeeb tarah ki badboo a rahi thi.
Mai ek dum ghabra gayee. Samajh me hi nahi aya ki aise halat ka
samna
kis tarah se karoon. Unke hato mere dono chhatiyon ko blouse ke upar
se masalne ke baad skirt ke neeche panty ke upar firne lage. Mai
unse
alag hone ke liye kasmasa rahi thi. Magar unión ne mujhe apni bahon
me buri tarah se jalad rakha tha. Unka ek hato ek jhanke se meri
panty ke andar ghus kar meri tangon ke jod tak pahunch gaya. Maine
apne dono tangon ko sakhti se ek doosre ke saath bheench diya lekin
tab tak to unki ungliyan meri yoni ke dwar tak pahunch chuki thi.
Dono ungliyan ek meri yoni me ghusne ke liye kasmasa rahi thi.
Maine poori takat laga kar ek dhakka dekar unse apne ko alag kiya.
aur wahan se bhagte huye
nikal gayee. jate jate unke shabd mere kano par pade.
“tumhe is company me kam karne ke liye meri har ichchha ka dhyan
rakhna padega.”
Mai apni desk par lagbhag daudte huye pahunchi. Meri saanse tej tej
chal rahi thi. Maine ek
glass thanda pani piya. Bebasi se meri ankhon me aansoo a gaye. Nam
ankhon se maine apna resignation letter type kiya aur use wahi patak
kar office se
bahar nikal gayee. fir dobara kabhi us raste ki or maine paon nahi
rakhe.
Fir se maine kai jagah apply kiya. Akhir ek jagah se interview call
aya.
Select hone ke baad mujhe CEO se milne ke liye le jaya gaya. Mujhe
unhi
ke PA ke post par appointment mili thi. Mai ek baar chot kha chuki
thi is liye dil badi teji se dhadak raha tha. Maine soch rakha tha
ki
agar mai kahin ko job karoongi to apni ichchha se. kisi majboori ya
kisi ki rakhail ban kar nahi. Maine sakuchate huye unke
kamre me knock kiya aur andar gayee.
“You are welcome to this family” samne se awaj ayee. Maine dekha
samne ek 57 saal ka bahut hi khoobsoorat admi khada tha. Mai CEO Mr.
Raj Kumar ko dekhti hi rah gayee. Wo uthe aur mere paas akar hath
badhayalekin mai but ki tarah khadi rahi. Ye sabhyata ke khilaf tha
mai apne boss ka is tarah se apman kar rahi thi. Lekin unhon ne bina
kuchh kahe muskurate huye meri hatheli ko tham liya. Mai hosh me
ayee. Maine tapak se unse hath milaya. Wo mere
hath ko pakde huye mujhe apne samne ki chair tak le gaye aur chair ko
kheench kar mujhe baithne ke liye kaha. Jab tak wo ghoom kar apni
seat par pahunche mai to un ke decency par mar miti. Itna bada admi
aur itna somya vyaktitva. Mai to kisi aise hi employer ke paas kaam
karne ka sapna itne dino se sanjoye thi.
Khair agle din se mai apne kaam me jut gayee. Dheere dheere unki
achchhaiyon se awgat hoti gayee. sare office ke staff unhe dil se
chahte the. Mai bhala unse alag kaise rahti. Maine is company me
apne
boss ke bare me unse milne ke pahle jo dharna banayi thi uska ulta
hi
hua. Yahan par to mai khud apne boss par mar miti, unke ek ek kaam
ko
poore man se complete karna apna dharm maan liya. magar boss
tha ki ghas hi nahi dalta tha. Yaha mai salwar kameej pahan kar hi
ane lagi. Maine apne kameej ke gale bade karwaliye jisse unhe mere
doodhiya rang ke boobs dekhen. Baki sare office walon ke samne to
apne badan ko chunri se dhaki rakhti thi. Magar unke samne jane se
pahle amni chhatiyon par se chunri hata kar use jaan boojh kar table
par chhod jati thi. Mai jaan boojh kar unke samne jhuk
kar kaam karti thi jisse mere bra me kase huye boobs unki ankhon ke
samne jhoolte rahen. Dheere dheere maine mahsoos kiya ki unki najron
me bhi parivartan ane laga hai. Akhir wo koi sadhu mahatma to the
nahi aur mai thi bhi itni sunder ki mujh se door rahna ek namumkin
kam tha. Mai aksar unse satne ki koshish karne lagi. Kabhi kabhi
mauka dekh kar apne boobs unke badan se chhua deti.
Maine office ka kaam itni nipunta se samhal liya tha ki ab rajkumar
ji kaam ki kafi jimmedariyan mujhe sonp di thi. mere bina wo bahut
ashay feel karte the. isliye mai kabhi chhutti nahi leti thi.
Dheere dheere hum kafi open ho gaye. Free time me mai unke cabin me
jakar unse baaten karti rahti. Unki najar baten karte huye kabhi
mere
chehre se fisal kar neeche jati to mere nipples bullets ki tarah tan
kar khade ho jate. Mai apne ubharon ko thoda aur taan leti thi.
Unme guroor bilkul bji nahi tha. Mai
roj ghar se unke liye kuchh na kuchh nashte me banakar lati thi hum
dono saath baith kar nashta karte the. Mai yahan bhi kuchh maheene
bad skirt blouse me ane lagi. Jis din pahli bar skirt blouse me
ayee, maine unki ankho me mere liye ek prashansa ki chamak dekhi.
Maine baat ko age badahane ki soch li. Kai baar kaam ka bojh jyada
hota to mai unhe baton baton me kahti, “sir agar ap kahen to filen
apke ghar le ati hoon chhutti ke din ya office time ke bad ruk jati
hoon. Magar unka jawab doosron se bilkul ulta rahta.
Wo kahte “Smriti mai apni tension ghar lejana
pasand nahi karta aur chahta hoon ki tum bhi chhutti ke bad apni
life enjoy karo. Apne ghar walo ke saath apne boyfriends ke saath
shaam enjoy karo. Kyon koi hai kya?” unhon ne mujhe chheda.
“aap jaisa handsome aur shareef ladka jis din mujhe mil jayega use
apna boy friend bana loongi. Aap to kabhi mere saath ghoomne jate
nahin hain.” Unhon ne turant baat ka topic badal diya.
Ab mai aksar unhe choone lagi. Ek baar unhon ne sirdard ki shikayat
ki. Mujhe koi tablet le kar ane ko kaha.
” sir, mai sir daba deti hoon. Dawai mat leejiye.” Kahkar mai unki
chair ke peechhe ayee aur unke sir ko apne hathon me lekar dabane
lagi. Meri ungliya unke balon me ghoom rahe the. Mai apni ungliyon
se
unke sir ko dabane lagi. Kuchh hi der me aram mila to unki ankhen
apne aap mundne lagi. Maine unke sir ko apne badan se sata diya.
Apne
dono urojon ke beech unke sir ko dab kar unke sir ko dabane lagi.
Mere dono uroj unke sir ke bhar se dab rahe the. Unhon ne bhio
shayad
ise mahsoos kiya hoga magar kuchh kaha nahi. Mere dono uroj sakht ho
gaye aur nipples tan gaye. Mere gal sharm se laal ho gaye the.
“bus ab kaki aram hai kah kar jab unhon ne apne sir meri chhatiyon
se
uthaya to mujhe itna bura laga ki kuchh bayan nahi kar sakti. Mai
apni narren jameen par gadaye unke samne cursi par a baithi.
Dheere dheere hum betakalluf hone lage. Abhi six months hi huye the
ki ek din mujhe apne cabin me bula kar unión ne ek lifafa diya.
Usme
se letter nikal kar maine padha to khushi se bhar uthi. Mujhe
permanent kar diya gaya tha aur meri tankhwah double kar di gayee
thi.
Maine unko thanks kaha to wo kah uthe. “sookhe sookhe thanks se kaam
nahi chalega. Baby iske liye to mujhe tumse koi treat milni chahiye”
“jaroor sir abhi deti hoon” maine kaha
“kya?” wo chaunk gaye. Maine mauke ko hath se nahi jane dena chahti
thi. Mai
jhat se unki god me baith gayee aur unhe apni bahon me bharte huye
unke lips choom liye. Wo is achanak huye hamle se ghabra gaye.
“smriti kya kar rahi ho. control yourself. Is tarah bhawnaon me mat
baho. ” unhon ne mujhe uthate huye kaha “ye uchit nahi hai. Mai ek
shaadi shuda bal bachchedar boodha admi hoon”
“kya karoon sir ap ho hi itne handsome ki control nahi ho paya.” aur
wahan se sharma kar bhag
gayee.
jab itna hone ke bad bhi unhon ne kuchh nahi kaha to mai unse aur
khulne lagi.
“Rajkumar ji ek din mujhe ghar le chalo na apne” ek din maine unhe
baton baton me kaha. ab hamara sambandh boss aur PA ka kum doston
jaisa adhik ho gaya tha.
“kyon ghar me aag lagana chahti ho?” unhon ne muskurate huye poochha.
“kaise?”
“ab tum jaisi haseen PA ko dekh kar kaun bhala mujh par shaq nahi
karega.”
“chalo ek baat to apne maan hi liya akhir.”
“kya?” unhon ne poiochha.
“ki mai haseen hoon aur ap mere hushn se darte hain.”
“wo to hai hi.”
“mai apki wife se apke bachchon se ek baar milna chahti hoon.”
“kyon? kya irada hai?”
” hmmm kuchh khatarnaak bhi ho sakta hai.” maine apne nichle honth
ko
dant se katte huye uth kar unki god me baith gayee. mai jab bhi bold
ho jati thi wo ghabra uthte the. mujhe unhe is tarah satane me bada
maja ata tha.
” dekho tum mere ladke se milo. use apna boy freind bana lo. bahut
handsome hai wo. mera to ab samay chala gaya hai tum jaisi ladkiyon
se flirt karne ka.” unhon ne mujhe apne god se uthate huye kaha.
“dekho ye office hai. kuchh to iski maryada ka khyal rakha kar. mai
yaha tera boss hoon. kisi ne dekh liya to pata nahi kya sochega ki
buddhe ki mati mari gayee hai.”
is tarah aksar mai unse chipakne ki koshish karti thi magar wo kisi
machhli ki tarah har baar fisal jate the.
Is ghatna ke baad to hum kafi khul gaye. mai unke sath ulte seedhe
majak bhi karne lagi. Lekin mai to unki banayi hui laxman rekha
cross
karna chahti thi. Mauka mila holi ko.
Holi ke din humare office me chhutti thi. Lekin factory band nahi
rakha jata tha
kuchh office staff ko us din bhi ana padta tha. Mr. Raj har holi ko
apne
staff se subah-subah holi khelne ate the. Maine bhi holi ko unke
saath huddang karne ke plan bana liya. Us din subah mai office
pahunch gayee.
office me koi nahi tha. Sab bahar ek dusre ko gulal lagate the. mai
logon ki najar bachakar office ke andar ghus gayee. Andar holi
khelna
allowed nahi tha. Mai office me andar se darwaja band kar ke
unka intezar karne lagi. Kuchh hi der me Raj ki car andar ayee. Wo
kurte paijame me the. Log unse gale milne lage aur gulal lagane
lage. Maine gulal nikal kar ek plate me rakh liya bathroom me jakar
apne balon ko khol diya.Reshmi julf khul kar peeth par bikhar gaye.
Mai ek purani shirt aur skirt pahan rakhi
thi. Skirt kafi chhoti thi. Maine shirt ke buttons khol kar andar ki
bra utar di aur shirt ko wapas pahan li. Shirt ke upar ke do button
khule rahne diye jisse mere adhe boobs jhalak rahe the. Shirt
chhatiyon ke upar se kuchh ghisi hui thi isliye mere nipples aur
unke
chaton or ka kala ghera saaf najar a raha tha. uttejna aur dar se
mai
March ke mausam me bhi paseene paseene ho rahi thi.
Mai khidki se jhank rahi thi aur unke free hone ka intezar karne
lagi. Unhe kya maloom tha mai office me unka intezar kar rahi hoon.
Wo free ho kar wapas car ki taraf badh rahe the. To maine unke
mobile par ring kiya.
“sir, mujhse holi nahi khelenge.”
“kahan ho tum? Sim…. ajao mai bhi tumse holi khelne ke liye betab
hoon” Unhon ne charon taraf dekhte huye poochha.
“office me apka intezar kar rahi hoon”
“to bahar aja na. office ganda ho jaiga”
“nahi sabke samne mujhe sharm ayegi. Ho jane do ganda. Kal Ramdhan
saaf kar dega” Maine kaha
“achchha to wo wali holi khelne ka program hai?” unhon ne
muskurate huye mobile band kiya aur office ki taraf badhe. Maine
lock khol kar darwaje ke peechhe chhup gayee. jaise hi wo andar aye
mai peechhe se unse lipat gayee aur apne hathon se gulal unke chahre
par mal diya. Jab tak wo gulal jhad kar ankh kholte maine wapas apni
mutthiyon me gulal bhara aur unke kurte ke andar hath dal kar unke
seene me laga kar unke seene ko masal diya. maine unke dono seene
apni mutthi me bhar kar kisi aurat ki chhatiyon ki tarah masalne
lagi.
“e..e…kya kar rahi hai?” wo hadbada uthe.
“bura na mano holi hai.” Kahte huye maine ek mutthi gulal paijame ke
andar
bhi dal di. Andar hath dalne me ek baar jhijhak lagi lekin fir
sabkuchh sochna band karke andar hat dal kar unke ling ko masal diya.
“thahar batata hoon.” Wo jab tak samhle tab tak mai khil khilate
huye wahan se bhag kar table ke peechhe ho gayee. unhon ne mujhe
pakadne ke liye table ke idhar udhar daur lagayee. Lekin mai unse
bach gayee. lekin mera aim to pakde jaine ka tha bachne ka thodi.
Isliye mai table ke peechhe se nikal kar darwaje ki taraf dauri. Is
baar unhon ne mujhe peechhe se pakad kar mere kameej ke andar hath
daal diye. Mai khil khila kar hans rahi thi aur kasmasa rahi thi. Wo
kafi der tak mere boobs par rang lagate rahe. Mere nipples ko
masalte
rahe kheenchte
rahe. Mai unse lipat gayee. aur pahli baar unhon ne apne honth mere
honthon par rakh diye. Mere honth thoda khule aur unki jeebh ko
andar jane ka rasta de diya. Kai minutes hum isi tarah ek doosre ko
choomte rahe. Mera ek hath sarakte huye unke paijame tak pahuncha
fir dheere se paijame ke andar sarak gaya. Mai unke ling ki tapish
apne hathon par mahsoos kar rahi thi. Maine apne hath age badha kar
unke ling ko tham liye. Meri is harkat se jaise unke poore jism me
ek jhurjhuri si daud gayee. Unhone ne mujh ek dhakka dekar apne se
alag kiya. Mai garmi se tap rahi thi. Lekin unhon ne kaha “nahi
smriti …..nahi ye theek nahi hai.”
Mai sir jhuka kar wahi khadi rahi.
“tum mujhse bahut chhoti ho.” Unhon ne apne hathon se mere chehre ko
uthaya ” tum bahut achchho ladki ho aur hum dono ek doosre ke bahut
achchhe dost hain. “
maine dheere se sir hilaya. Mai apne aap ko kos rahi thi. Mujhe apni
harkat par bahut glani ho rahi thi. Magar unhon ne meri kasmakas ko
samajh kar mujhe wapas apni bahon me bhar liya aur mere gallon par
do kiss kiye. Isse mai wapas normal ho gayee. Jab tak mai samhalti
wo ja chuke the.
Dheere dheere samay beetta gaya. Lekin us din ke baad unhon ne
humare aur unke beech me ek deewar bana di.
Mai shayad wapas unhe seduce karne ka plan banane lagti lekin
achanak meri jindagi me ek andhi si ayee aur sab kuchh change ho
gaya. Mere sapno ka saudagar mujhe is tarah mil jayega maine kabhi
socha na tha.
Mai ek din apne kam me busy thi ki laga koi meri desk ke pas akar
ruka.
“I want to meet mr. Raj Kumar”
“any appointment? ” maine sir jhukaye huye hi poochha?
“no”
“sorry he is busy” maine talte huye kaha.
“tell him Pankaj his son wants to meet him.”
“maine ek jhatke se apna sir uthaya aur us khoobsoorat aur handsome
admi ko dekhti rah gayee. Wo bhi meri khoobsoorti me kho gaya tha.
“oh my god. Kya cheej ho tum. Tubhi dad ajkal itna office me busy
rahne lage hain.” Unhon ne kaha “by the way apka nam jan sakta hoon?”
“Smriti”
“Smriti….ab ye naam meri Smriti se kabhi door nahi jayega.” Maine
Sharma kar apni ankhe jhuka li. Wo andar chale gaye. Wapsi me unhon
ne mujhse sham ki date fix kar li.
Iske baad to hum daily milne lage. Hum dono poori sham ek doosre ki
bahon me bitane lage. Pankaj bahut open mind ke admi the.
Ek din Raj ne mujhe apne cabin me bulaya aur ek letter mujhe dete
huye kaha.
“ye hai tumhara termination letter.. You are being sacked” unhon ne
tej awaj ke sath kaha.
“l..lekin meri galti kya hai?” maine ruansi awaj me poocha.
“tumne mere ladke ko apne jaal me fansa hai”
“lekin sir…”
“koi lekin vekin nahi” unhon ne mujhe buri tarah jhidakte huye
kaha “now get lost”
meri ankhon me ansoo a gaye. Mai roti hui wahan se jane lagi. Jaise
hi mai darwaje tak pahunchi unki awaj sunai di.
“Sham ko hum tumhare parents se milne a rahe hai. Pankaj jaldi shadi
karna chahta hai” mere kadam thithak gaye. Mai ghumi maine dekha Mr.
Raj kumar apni bahen failaye muskura rahe hain. Mai ansoo ponch kar
khil khila uthi. Aur daud kar unse lipat gayee.
Cont……to part 2
Smriti part 2
Akhir mai Rajkumar ji ke pariwaar ka ek hissa banne ja rahi thi.
Pankaj mujhe bahut chahta tha. Shaadi se pahle hum har sham saath
saath ghumte firte. Kafi baten karte. Pankaj ne mujhse mere boy
friends ke bare me poochha. Aur unse milne se pahle ki meri sexual
life ke bare me poochha jab maine kaha abhi tak
kunwari hoon to hansne lage aur kaha,
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Bhen-chod paani nikal diya.