चौधरैयन ने जब आया को देखा तो उसके चेहरे पर मुस्कान फैल गई. हस्ती हुई बोली “क्या रे कैसे रास्ता भूल गई…कहा गायब थी….थोड़ा जल्दी आती अब तो मैने नहा भी लिया”
माथे का पसीना पोछ्ति हुई आया बोली “का कहे मालकिन घर का बहुत सारा काम….फिर तालाब पर नहाने गई तो वाहा…”
“क्यों क्या हुआ तालाब पर…?”
“छोड़ो मालकिन तालाब के किससे को, ये सब तो…अंदर चलो ना बिना तेल के थोड़ी बहुत तो सेवा कर दू..”
“आररी नही रहने दे…” पर आया के ज़ोर देने पर शीला देवी ने पलंग पर लेट अपने पैर पसार दिए. आया पास बैठ कर शीला देवी के पैरों के तलवे को अपने हाथ में पकड़ हल्के हल्के मसल्ते हुए दबाने लगी. शीला देवी ने आँखे बंद कर रखी थी. आया कुच्छ देर तक तो इधर उधर की बकवास करती रही फिर पेट में लगी आग भुझाने के लिए बोली “मालकिन मुन्ना बाबू कहा है नज़र नही आते…पहले तो गाओं के लड़कों को साथ घूमते फिरते मिल जाते थे अब तो….”
“उसके दिमाग़ का कुच्छ पता चलता….घर में ही होगा अपने कमरे में सो रहा होगा..”
“ये कोई टाइम है भला सोने का….रात में ठीक से सोते नही का…”
“नही सुबह में बड़ी जल्दी उठ जाता है….इसलिए शायद दिन में सोता है बेचारा”
“सुबह में जल्दी उठ जाते या फिर रात भर सोते ही नही है….” बाए जाँघ को धीरे धीरे दबाती हुई आया बोली.
“अर्रे रात भर क्यों जागेगा भला…”
“मालकिन जवान लड़के तो रात में ही जागते है…” कह कर दाँत निकाल कर हँसने लगी.
“चुप कमिनि जब भी आती है….उल्टा सीधा ही बोलती है”
चौधरैयन की ये बात सुन आया दाँत निकाल कर हँसने लगी. शीला देवी ने आँखे खोल कर उसकी तरफ देखा तो आँखे नचा कर बोली “बड़ी भोली हो आप भी चौधरैयन….जवान लंडो के लिए इश्स गाओं में कोई कमी है क्या…फिर अपने मुन्ना बाबू तो….सारी कहानी तो आपको पता ही है…”
“चुप रह चोत्ति…तेरी बातो पर विस्वास कर के मैने क्या-क्या सोच लिया था…मगर जिस दिन तू ये सब बता के गई थी उसी दिन से मैं मुन्ना पर नज़र रखे हू. वो बेचारा तो घर से निकलता ही नही था. चुपचाप घर में बैठा रहता था….अगर मेरे बेटे को इधर उधर मुँह मारने की आदत होती तो घर में बैठा रहता” (जैसा की आपको याद होगा मुन्ना जब अपनी मा के कमरे में आया के मालिश करते समय घुस गया था और शीला देवी के मस्ताने रसीले रूप ने उसके होश उड़ा कर रख दिए थे तो तीन चार दिन तो ऐसे ही गुम्सुम सा घर में घुसा रहा था)
“पता नही…मालकिन मैने तो जो देखा था वो सब बताया था..अब अगर मैं बोलूँगी की आज ही सुबह मैने मुन्ना बाबू को आम के बगीचे की तरफ से आते हुए देखा था तो फिर…..” शीला देवी चौंक कर बैठती हुई बोली “क्या मतलब है तेरा…वो क्यों जाएगा सुबह-सुबह बगीचे में”
“अब मुझे क्या पता क्यों गये थे…मैने तो सुबह में उधर से आते देखा सो बता दिया, सुबह में लाजवंती और बसंती को भी आते हुए देखा.…लाजवंती तो नया पायल पहन ठुमक ठुमक कर चल…..”
बस इतना ही काफ़ी था, उर्मिला देवी जो कि अभी झपकी ले रही थी उठ कर बैठ गई नथुने फूला कर बोली “”एक नंबर की छिनाल है तू…हराम्जादी…कुतिया तू बाज़ नही आएगी… …रंडी…निकल अभी तू यहा से …चल भाग….दुबारा नज़र मत आना…” शीला देवी दाँत पीस पीस कर मोटी मोटी गालियाँ निकल रही थी. आया समझ गई की अब रुकी तो खैर नही. उसने जो करना है कर दिया बाकी चौधरैयन की गालियाँ तो उसने कई बार खाई है. आया ने तुरंत दरवाजा खोला और भाग निकली.
आया के जाने के बाद चौधरैयन का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ ठंडा पानी पी कर बिस्तर पर धम से गिर पड़ी. आँखो की नींद अब उड़ चुकी थी. कही आया सच तो नही बोल रही…उसकी आख़िर मुन्ना से क्या दुस्मनि जो झूठ बोलेगी. पिच्छली बार भी मैने उसकी बातो पर विस्वास नही किया था. कैसे पता चलेगा.
दीनू को बुलाया फिर उसे एक तरफ ले जाकर पुचछा. वो घबरा कर चौधरैयन के पैरो में गिर परा और गिड-गिडाने लगा “मालकिन मुझे माफ़ कर दो….मैने कुच्छ नही…मालकिन मुन्ना बाबू ने मुझे बगीचे पर जाने से मना किया…मेरे से चाभी भी ले ली…मैं क्या करता…उन्होने किसी को बताने से मना…” शीला देवी का सिर चकरा गया. एक झटके में सारी बात समझ में आ गई.
कमरे में वापस आ आँखो को बंद कर बिस्तर पर लेट गई. मुन्ना के बारे में सोचते ही उसके दिमाग़ में एक नंगे लड़के की तस्वीर उभर आती थी जो किसी लड़की के उपर चढ़ा हुआ होता. उसकी कल्पना में मुन्ना एक नंगे मर्द के रूप में नज़र आ रहा था. शीला देवी बेचैनी से करवट बदल रही थी नींद उनकी आँखो से कोषो दूर जा चुकी थी. उनको अपने बेटे पर गुस्सा भी आ रहा था कि रंडियों के चक्कर में इधर उधर मुँह मारता फिर रहा है. फिर सोचती मुन्ना ने किसी के साथ ज़बरदस्ती तो की नही अगर गाओं की लड़कियाँ खुद मरवाने के लिए तैय्यार है तो वो भी अपने आप को कब तक रोकेगा. नया लड़का है, आख़िर उसको भी गर्मी चढ़ती होगी छेद तो खोजेगा ही…घर में छेद नही मिलेगा तो बाहर मुँह मारेगा. क्या सच में मुन्ना का हथियार उतना बड़ा है जितना आया बता रही थी. बेटे के लंड के बारे में सोचते ही एक सिहरन सी दौड़ गई साथ ही साथ उसके गाल भी लाल हो गये. एक मा हो कर अपने बेटे के…औज़ार के बारे में सोचना…करीब घंटा भर वो बिस्तर पर वैसे ही लेटी हुई मुन्ना के लंड और पिच्छली बार आया की सुनाई चुदाई की कहानियों को याद करती, अपने जाँघो को भीचती करवट बदलते रही.
खाट-पाट की आवाज़ होने पर शीला देवी ने अपनी आँखे खोली तो देखा मुन्ना उसके कमरे के आगे से गुजर रहा था. शीला देवी ने लेटे लेटे आवाज़ लगाई “मुन्ना…मुन्ना ज़रा इधर आ…”. शीला देवी की आवाज़ सुनते ही उसके कदम रुक गये और वो कमरे का दरवाज़ा खोल कर घुसा. शीला देवी ने उसको उपर से नीचे देखा, हाफ पॅंट पर नज़र जाते ही वो थोड़ा चौंक गई. इस समय मुन्ना की हाफ पॅंट में तंबू बना हुआ था. पर अपने आप को सम्भहाल थोड़ा उठ ती हुई बोली ” इधर आ ज़रा…”. शीला देवी की नज़रे अभी भी उसके तंबू में बने खंभे पर टिकी हुई थी. ये देख मुन्ना ने अपने हाथ को पॅंट के उपर रख अपने लंड को छुपाने की कोशिश की और बोला “जी….मा क्या बात है…” मुन्ना, शीला देवी से डरता बहुत था. पेशाब लगी थी मगर बोल नही पाया की मुझे बाथरूम जाना है.
लगता है इसे पेशाब लगी है…तभी हथियार खड़ा करके घूम रहा है, घर में अंडरवेर नही पहनता है शायद, ये सोच शीला देवी के बदन में सनसनी दौड़ गई. शायद आया ठीक कहती है.
“क्या बात है तुझे बाथरूम जाना है क्या…”
“नही नही मा..तुम बोलो ना क्या बात है…” अपने हाथो को पॅंट के उपर रख कर खरे लंड को छुपाने की कोशिश करने लगा. शीला देवी कुच्छ देर तक मुन्ना को देखती रही…फिर बोली “तू आज कल इतनी जल्दी कैसे उठ जाता है फिर सारा दिन सोया रहता है…क्या बात है”. मुन्ना इस अचानक सवाल से घबरा गया अटकते हुए बोला “कोई बात नही है मा…सुबह आँख खुल जाती है तो फिर उठ जाता हू…”
“तू बगीचे पर हर रोज जाता है क्या…”
इस सवाल ने मुन्ना को चौंका दिया. उसकी नज़रे नीचे को झुक गई. शीला देवी तेज नज़रो से उसे देखती रही. फिर अपने पैर समेट ठीक से बैठते हुए बोली “क्या हुआ…मैं पुच्छ रही हू, बगीचे पर गया था क्या जवाब दे…”
“वो..वो मा..बस थोड़ा…सुबह आँख खुल गई थी टहलने च…चला गया…” मुन्ना के चेहरे का रंग उड़ चुक्का था.
शीला देवी ने फिर कड़कती आवाज़ में पुचछा “तू रात में भी वही सोता है ना…?” इस सवाल ने तो मुन्ना का गांद का बॅंड बजा दिया. उसका कलेज़ा धक से रह गया. ये बात मम्मी को कैसे पता चली. हकलाते हुए जल्दी से बोल पड़ा “नही…नही …मा…ऐसा…किसने…कहा…मैं भला रात में वहाँ क्यों…”
“तो फिर दीनू झूठ बोल रहा है…चौधरी साहिब से पुच्छू क्या…उन्होने किसको दी थी चाभी…” मुन्ना समझ गया की अगर मम्मी ने चौधरी से पुचछा तो वो तो शीला देवी के सामने झूठ बोल नही पाएँगे और उसकी चोरी पकड़ी जाएगी. साले दीनू ने फसा दिया. कल रात ही लाजवंती वादा करके गई थी कि एक नये माल को फसा कर लाउन्गि. सारा प्लान चौपट. तभी शीला देवी अपने तेवर थोड़ा ढीला करती हुई बोली “अपनी ज़मीन जयदाद की देख भाल करना अच्छी बात है, तू आम के बगीचे पर जाता है…कोई बात नही मगर मुझे बता देता….किसी नौकर को साथ ले जाता…”
“नौकरो को वाहा से हटाने के लिए ही तो मैं वाहा जाता हू…सब चोर है” मुन्ना को मौका मिल गया था और उसने तपाक से बहाना बना लिया.
“तो ये बात तूने मुझे पहले क्यों नही बताई…”
“वो मा..मा मैं डर गया था कि तुम गुस्सा करोगी…”
“ठीक है जा अपने कमरे में बैठ बाद में बात करती हू तेरे से…कही जाने की ज़रूरत नही है और खबरदार जो दीनू को कुच्छ बोला तो…”. मुन्ना चुपचाप अपने कमरे में आ कर बैठ गया समझ में नही आ रहा था की क्या करे. इधर शीला देवी के मन में हलचल मच गई थी. अब उसे पूरा विस्वास हो गया था कि जो कुच्छ भी आया बोल रही थी वो सच था. मुन्ना हर रोज बगीचे पर जाकर रात भर किसी के साथ मज़ा करता है. गाओं में रंडियों की कोई कमी नही, एक खोजेगा हज़ार मिलेंगी. उसने कल्पना में मुन्ना के हथियार के बारे में सोचने की कोशिश की. फिर खुद से शरमा गई. उसने आज तक उतना बड़ा लंड नही देखा था जितने बड़े लंड के बारे में आया ने कहा था. उसने तो आज तक केवल अपने पति चौधरी का लन्ड देखा था जो लगभग 6 इंच का रहा होगा. और अब तो वो 6 इंच का लंड भी पता नही किसकी गांद में घुस गया था, कभी बाहर निकलता ही नही था. पता नही कितने दिन, महीने या साल बीत गये, उसे तो याद भी नही है, जब अंतिम बार कोई हथियार उसकी बिल में घुसा था. ये सब सोचते सोचते जाँघो के बीच सरसराहट हुई. साडी के उपर से ही हाथ लगा कर अपनी चूत को हल्का सा दबाया, चूत गीली हो चुकी थी. बेटे के लंड ने बेचैनी इतनी बढ़ा दी कि रहा नही गया और बिस्तर से उठ कर बाहर निकली. मुन्ना के कमरे का दरवाज़ा थोड़ा खुला हुआ था. धीरे से अंदर घुसी तो तो देखा मुन्ना बिस्तर पर आँखो के उपर हाथ रख कर लेटा हुआ एक हाथ पॅंट के अंदर घुसा कर हल्के हल्के चला रहा था. खड़ा लंड पॅंट के उपर से दिख रहा था. शीला देवी के कदम वही जमे रह गये, फिर दबे पाओ वापस लौट गई. बिस्तर पर लेट ते हुए सोचने लगी पता नही कितनी गर्मी है इस लड़के में. शायद मूठ मार रहा था. जबकि इसने रात में दो-दो लरकियों की चुदाई की होगी. जब जवान थी तब भी चौधरी ज़यादा से ज़यादा रात भर में उसकी दो बार लेता था वो भी शुरू के एक महीने तक. फिर पता नही क्या हुआ कुच्छ दिन बाद तो वो भी ख़तम हो गया हफ्ते में दो बार फिर घट कर एक बार से कभी कभार में बदल गया. और अब तो पता नही कितने दिन हो गये. आज तक जिंदगी में बस एक ही लंड से पाला पड़ा था. जबकि अगर आया की बातों पर विस्वास करे तो गाओं की हर औरत कम से कम दो लंडो से अपनी चूत की कुटाई करवा रही थी. उसी की किस्मत फूटी हुई थी. कुच्छ रंडियों ने तो अपने घर में ही इंतेज़ाम कर रखा था. यहा तो घर में भी कोई नही, ना देवर ना जेठ. एक लड़का जवान हो गया है…मगर वो भी बाहर की रंडियों के चक्कर में…..मेरी तरफ तो किसी का…अपने घर का माल है…मगर बेटा है कैसे उसके साथ…उसका दिमाग़ घूम फिर कर मुन्ना के औज़ार की तरफ पहुच जाता था. उत्तेजना अब उसके उपर हावी हो गई थी. छूत पासीज कर पानी छोड़ रही थी. दरवाजा बंद कर साड़ी उठा कर अपनी दो उंगलियों को चूत में डाल कर सहलाते हुए रगड़ने लगी. उंगली को मुन्ना का लंड समझ कच-कच कर चूत में जब अंदर बाहर किया तो पूरे बदन में आग लग गई. बेटे के लंड से चुदवाने के बारे में सोचने से ही इतना मज़ा आ रहा था कि वो एकदम छॅट्पाटा गई. एक हाथ से अपनी चुचि को खुद से पूरी ताक़त से मसल दिया…मुँह से आह निकल गई. उसके बदन में कसक उठने लगी. दिल कर रहा था कोई मर्द उसे अपनी बाहों में लेकर उसकी हड्डियाँ तर-तरा दे. उसकी इन उठी हुई नुकीली चुचियों को अपनी छाती से दबा कर मसल दे…. चूत में चीटियाँ सरसराने लगी थी. गन्न्ड़ में सुरसुरी होने लगी थी. भग्नाशा खड़ा होकर लाल हो चुका था और चाह रहा था कि कोई उसे मसल कर उसकी गर्मी शांत कर दे…. मगर अफ़सोस हाथ का सहारा ही उसके पास था. छॅट्पाटा ते हुए उठी और किचन में जा एक बैगान उठा लाई और कोल्ड क्रीम लगा कर अपनी चूत में डालने की कोशिश की. मगर अभी तोड़ा सा ही बैगान गया था कि चूत में छीलकं सा महसूस हुआ, दोनो टाँगे फैला कर चूत को देखने लगी. बैगान को थोडा और ठेला तो समझ में आ गया इतने दीनो से मशीन बंद रहने के कारण छेद सिकुड गया है. “….मोटा लंड मिल जाए फिर चाहे किसी का….इश्स….उफफफफ्फ़ मैं भी कैसी छिनाल…पर अब सहा नही जा रहा…कितने दीनो तक छेद और मुँह बंद…कर के…..” चूत लंड माँग रही थी, चूत के कीड़े मचल रहे थे बुर की गुलाबी पत्तियाँ फेडक कर अपना मुँह खोल रही. उसकी मशीन आयिलिंग माँग रही थी. बेटे के लंड ने इतने दीनो से दबी कुचली हुई भावनाओ को भड़का दिया. कुच्छ देर बाद जैसे तैसे बैगान पेल कर चूत के अंदर बाहर करते हुए अपने आप को संतुष्ट कर वैसे ही अस्त वयस्त हालत में सो गई.
शाम हो चुकी थी और शीला देवी बाहर नही निकली. गाओं में तो लोग शाम सात-आठ बजे ही खाना खा लेते है. सावन का महीना था बादलो के कारण अंधेरा जल्दी हो गया था गर्मी भी बहुत लग रही थी. मुन्ना अपने कमरे से निकला देखा मा का कमरा अभी भी बंद है घर में अभी तक खाना बनाने की खाट-पाट शुरू हो जाती थी. चक्कर क्या है ये सोच उसने हल्के से शीला देवी के कमरे के दरवाज़े को धकेला दरवाज़ा खुल गया. दरअसल शीला देवी जब किचन से बैगन ले कर वापस आई थी तो फिर दरवाज़ा बंद करना भूल गई थी. अंदर झाँकते ही ऐसा लगा जैसे लंड पानी फेंक देगा… मुन्ना की आँखो के सामने पलंग पर उसकी मा आस्त व्यस्त हालत में लेटी हुई नाक बजा रही थी. साड़ी उसके जाँघो तक उठी हुई थी और आँचल एक तरफ लुढ़का पड़ा था और ब्लाउस के बटन खुले हुए थे, एक चुचि पर से ब्लाउस का कपड़ा हटा हुआ था जिसके कारण काले रंग की ब्रा दिख रही थी. शीला देवी एकदम गहरी नींद में थी. हर साँस के साथ उसकी नुकीली चूचियाँ उपर नीचे हो रही थी. मुन्ना की साँस रुक गई. उस दिन आया जब मालिश कर रही थी तब उसने पहली बार अपनी मा को अर्धनग्न देखा था. उस दिन वो बस एक झलक ही देख पाया था और उसके होश उड़ गये थे. आज शीला देवी आराम से सोई हुई थी. वो बिना किसी लाज-शरम आँखे फाड़ उसको निहारने लगा. ब्रा के अंदर से झाँकती गोरी चुचि, गुदाज पेट और मोटी-मोटी जाँघो ने उसके होश उड़ा दिए. मोटी मांसल, गोरी, चिकनी जंघे…मामी की जाँघ से थोड़ा सा ज़यादा मोटी …चुचि भी एक दम ठोस नुकीली… “काश ये साड़ी थोड़ी और उपर होती..अफ… ये बैगन यहा पलंग पर क्या कर रहा है”…अभी मुन्ना सोच ही रहा था कि कमरे के अंदर घुस कर पलंग के नीचे बैठ दोनो टाँगो के बीच देखु. “छ्होटे मलिक…मालकिन को जगाओ…क्या खाना बनाना है..ज़रा पुछो तो सही…” पिछे से एक बुढ़िया नौकरानी की आवाज़ सुनाई दी
“आ ..हा..हा .. अभी जगाता हू..” कहते हुए मुन्ना ने दरवाज़े पर दस्तक दी. शीला देवी एक दम हॅड-बडाते हुए उठ कर बैठ गई झट से अपनी साड़ी को नीचे किया आँचल को उठा छाती पर रखा ” आ हा..क्या बात है…”
“मा वो नौकरानी पुच्छ रही है…क्या खाना बनेगा…अंधेरा हो गया…मैने सोचा तुम इतनी देर तक तो…”
“पता नही क्यों आज..आँख लग गई थी …अभी बताती हू उसको…” और पलंग से नीचे उतर गई. मुन्ना जल्दी से अपने कमरे में भाग गया. पॅंट खोल कर देखा तो लंड लोहा बना हुआ था और सुपरे पर पानी की दो बूंदे छलक आई थी.
खाना खाने के बाद शीला देवी मुन्ना के कमरे में गई और पुछा “आज बगीचे पर नही जाएगा क्या…”. मुन्ना ने तो बगीचे पर जाने का इरादा छोड़ दिया था. वो समझ गया था कि भले ही शीला देवी ने कुच्छ बोला नही फिर भी उसके कारनामो की खबर उसको ज़रूर हो गई होगी.
“जाना तो था…मगर आप तो मना कर रही…”.
“नही, मैने कब मना किया…वैसे भी बहुत आम चोरी हो रहे है…कम से कम तू देख भाल तो कर लेता है…”
मुन्ना खुशी से उच्छल पड़ा “तो फिर मैं जाउ…”.
“हा हा…जा ज़रूर जा…और किसी नौकर को भी साथ लेता जा…”
गाँव का राजा पार्ट -11
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी गाँव का राजा पार्ट -11 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
“अरे मा उसकी कोई ज़रूरत नही है….मैं अभी निकलता हू…” कहते हुए मुन्ना उठ कर लूँगी पहन ने लगा. शीला देवी अपने बेटे के मजबूत बदन को घूरती हुई बोली “ना..ना अकेले तो जाना ही नही है….किसी नौकर को नही ले जाना तो मैं चलती हूँ…” इस धमाके ने मुन्ना के लूँगी की ओर बढ़ते हाथो को रोक दिया. कुच्छ देर तक तो वो शीला देवी का चेहरा असचर्या से देखता रह गया. फिर अपने आप को संभालते हुए बोला “ओह मा तुम वाहा क्या करने जाओगी…मैं अकेला ही…”
“नही मैं भी चलती हू…बहुत टाइम हो गया…बहुत पहले गर्मियों में कई बार चौधरी शहिब के साथ वाहा पर सोई हू….कई बार तो रात में ही हमने आम तोड़ के खाए है…चल मैं चलती हू…”. मुन्ना विरोध नही कर पाया.
“ठहर जा ज़रा टॉर्च तो ले लू….”
फिर शीला देवी टॉर्च लेकर मुन्ना के साथ निकल पड़ी. शीला देवी ने अपनी साड़ी बदल ली थी और अपने आप को सवार लिया था. मुन्ना ने अपनी मा को नज़र भर कर देखा एक दम बनी ठनी, बहुत खूबसूरत लग रही थी. मुन्ना की नज़रो को भापते हुए वो हस्ते हुए बोली “क्या देख रहा है…” हस्ते समय शीला देवी की गालो में गड्ढे पड़ते थे.
” कुच्छ नही मैं सोच रहा था तुम्हे कही और तो नही जाना…” शीला देवी के होंठो पर मुस्कुराहट फैल गई. हस्ते हुए बोली “ऐसा क्यों…मैं तो तेरे साथ बगीचे पर चल…”
“नही तुमने साड़ी बदली हुई है तो…”
“वो तो ऐसे ही बदल लिया…क्यों अच्छा नही लग रहा…”
“नही बहुत अच्छा लग….तुम बहुत सुंदर…” बोलते हुए मुन्ना थोड़ासा सरमाया तो शीला देवी हल्के हँस दी. शीला देवी के गालो में पड़ते गड्ढे देख मुन्ना के बदन में सिहरन हो गई. मुन्ना थोड़ा धीरे चल रहा था. मा के पीछे चलते हुए उसके मस्ताने मटकते चूतरो पर नज़र पड़ी तो उसका मन किया की धीरे से पिछे से शीला देवी को पकड़ ले और लंड को गांद की दरार में लगा कर प्यार से उसके गालो को चूसे. उसके गालो के गड्ढे में अपनी जीभ डाल कर चाट ले. पीछे से साड़ी उठा कर उसके अंदर अपना सिर घुसा दे और दोनो चूतरों को मुट्ठी में भर कर मसल्ते हुए गांद की दरार में अपना मुँह घुसा दे. बहुत दिन हो गये थे किसी की गांद चाटे, पर इसके लिए उर्मिला देवी जैसी खूबसूरत गदराई जवानी भी तो चाहिए. मामी के साथ बिताए पल याद आ गये जब वो किचन में काम करती मुन्ना पिछे से गाउन उठा उसके अंदर घुस कर चूत और गांद चाट ता था. मा की तो मामी से भी दो कदम आगे होगी. कितनी गतीली और सुंदर लग रही है. लूँगी के अंदर लंड तो फरफदा रहा था मगर कुच्छ कर नही सकता था. आज तो लाजवंती का भी कोई चान्स नही था. तभी ध्यान आया कि लाजवंती को तो बताया ही नही. डर हुआ कि कही वो मा के सामने आ गई तो क्या करूँगा. और वही हुआ बगीचे पर पहुच कर खलिहान या मकान जो भी कहिए उसका दरवाजा ही खोला था कि बगीचे की बाउंड्री का गेट खोलती हुई लाजवंती और एक और औरत घुसी. अंधेरा तो बहुत ज़यादा था मगर फिर भी किसी बिजली के खंभे की रोशनी बगीचे में आ रही थी. शीला देवी ने देख लिया और बोली “कौन घुस रहा है बगीचे में…” मुन्ना ने भी पलट कर देखा, तुरंत समझ गया की लाजवंती होगी. इस से पहले की कुच्छ बोल पाता शीला देवी की कॅड्क आवाज़ पूरे बगीचे में गूँज गई “कौन है रे….ठहर अभी बताती हू..” इसके साथ ही शीला देवी ने दौड़ लगा दी ” साली आम चोर कुतिया….ठहर वही पर….” भागते भागते एक डंडा भी हाथ में उठा लिया था. शीला देवी की कदकती आवाज़ जैसे ही लाजवंती के कानो में पड़ी उसकी तो गांद का पाखाना तक सुख गया. अपने साथ लाई औरत का हाथ पकड़ घसीटती हुई बोली “ये तो चौधरैयन…है….चल भाग…” दोनो औरते बेतहाशा भागी. पीछे शीला देवी हाथ में डंडा लिया गालियो की बौच्हर कर रही थी. दोनो जब बाउंड्री के गेट के बाहर भाग गई तो शीला देवी रुक गई. गेट को ठीक से बंद किया और वापस लौटी. मुन्ना खलिहान के बाहर ही खड़ा था. शीला देवी की साँसे फूल रही थी. डंडे को एक तरफ फेंक कर अंदर जा कर धम से बिस्तर पर बैठ गई और लंबी लंबी साँसे लेते हुए बोली “साली हरमज़ड़िया…देखो तो कितनी हिम्मत है शाम होते ही आ गई चोरी करने…अगर हाथ आ जाती तो सुअरनियों की गांद में डंडा पेल देती…हरम्खोर साली तभी तो इस बगीचे से उतनी कमाई नही होती जितनी पहले होती थी….मदर्चोदिया अपनी चूत में आम भर भर के ले जाती है…रंडियों का चेहरा नही देख पाई…” मुन्ना शीला देवी के मुँह से ऐसी मोटी मोटी भद्दी गालियों को सुन कर सन्न रह गया. हालाँकि वो जानता था की उसकी मा करक स्वाभाव की है और नौकर चाकरो को गालियाँ देती रहती है मगर ऐसी गंदी-गंदी गलियाँ उसके मुँह से पहली बार सुनी थी, हिम्मत करके बोला
“अरे मा छोड़ो ना तुम भी…भगा तो दिया…अब मैं यहा आ रहा हू ना देखना इस बार अच्छी कमाई…”
“ना ना…ऐसे इनकी आदत नही छूटने वाली…जब तक पकड़ के इनकी चूत में मिर्ची नही डालोगे ना बेटा तब तक ये सब भोशर्चोदिया ऐसे ही चोरी करने आती रहेंगी….माल किसी का खा कोई और रहा है…”
मुन्ना ने कभी मा को ऐसे गलियाँ देते नही सुना था. बोल तो कुच्छ सकता नही था मगर उसे उर्मिला देवी यानी अपनी प्यारी छिनाल, चुदक्कर मामी की याद आ गई, जो चुदवाते समय अपने सुंदर मुखरे से जब गंदी गंदी बाते करती थी तब उसका लंड लोहा हो जाता था. शीला देवी के खूबसूरत चेहरे को वो एकटक देखने लगा भरे हुए कमनिदार होंठो को बिचकती हुई जब शीला देवी ने दो चार और मोटी गलियाँ निकाली तो उसके इस छिनल्पन को देख मुन्ना का लंड खड़ा होने लगा. मन में आया उसके उन भरे हुए होंठो को अपने होंठो में कस ले और ऐसा चुम्मा ले की होंठो का सारा रस चूस ले. खड़े होते लंड को छुपाने के लिए जल्दी से बिस्तर पर अपनी मा के सामने बैठ गया. शीला देवी की साँसे अभी काफ़ी तेज चल रही थी और उसका आँचल नीचे उसकी गोद में गिरा हुआ था. मोटी-मोटी चुचियाँ हर साँस के साथ उपर नीचे हो रही थी. गोरा चिकना मांसल पेट. मुन्ना का लंड पूरा खड़ा हो चुका था. तभी शीला देवी ने पैर पसारे और अपनी साड़ी को खींचते हुए घुटनो से थोड़ा उपर तक चढ़ा एक पैर मोड़ कर एक पैर पसार कर अपने आँचल से माथे का पसीना पोछती हुई बोली “हरम्खोरो के कारण दौड़ना पद गया…बड़ी गर्मी लग रही है खिड़की खोल दे बेटा”. जल्दी से उठ कर खिड़की खोलने गया. लंड ने लूँगी के कपड़े को उपर उठा रखा था और मुन्ना के चलने के साथ हिल रहा था. शीला देवी की आँखो में अज़ीब सी चमक उभर आई थी वो एकदम खा जाने वाली निगाहों से लूँगी के अंदर के डोलते हुए हथियार को देख रही थी. मुन्ना जल्दी से खिड़की खोल कर बिस्तर पर बैठ गया, बाहर से सुहानी हवा आने लगी. उठी हुई साड़ी से शीला देवी गोरी मखमली टाँगे दीख रही थी. शीला देवी ने अपने गर्दन के पसीने को पोछ्ते हुए अपनी ब्लाउस के सबसे उपर वाले बटन को खोल दिया और साड़ी के पल्लू को ब्लाउस के भीतर घुसा पसीना पोच्छने लगी. पसीने के कारण ब्लाउस का उपरी भाग भीग चुका था. ब्लाउस के अंदर हाथ घुमाती बोली “बहुत गर्मी है..बहुत पसीना आ गया”. मुन्ना मुँह फाडे ब्लाउस में घूमते हाथ को देखता हुआ भौचक्का सा बोल पड़ा “हा..आह पूरा ब्लाउस भीग..गया..”
“तू शर्ट खोल दे…बनियान तो पहन ही रखी होगी…”.
साड़ी को और खींचती थोड़ा सा जाँघो के उपर उठाती शीला देवी ने अपने पैर पसारे “साड़ी भी खराब हो….यहा रात में तो कोई आएगा नही…”
“नही मा यहा…रात में कौन…”
“पता नही कही कोई आ जाए….किसी को बुलाया तो नही” मुन्ना ने मन ही मन सोचा जिसको बुलाया था उसको तो भगा दिया, पर बोला “नही..नही…किसी को नही बुलाया”
“तो मैं भी साड़ी उतार देती हू…” कहती हुई उठ गई और साड़ी खोलने लगी. मुन्ना भी गर्दन हिलाता हुआ बोला “हा मा..फिर पेटिकोट और ब्लाउस…सोने में भी हल्का…”
“हा सही है….पर तू यहा सोने के लिए आता है…सो जाएगा तो फिर रखवाली कौन करेगा…”
“मैं अपने सोने की बात कहा कर रहा हू…तुम सो जाओ…मैं रखवाली करूँगा…”
“मैं भी तेरे साथ रखवाली करूँगी…”
“तब तो हो गया काम…तुम तो सब के पिछे डंडा ले कर दौरोगी…”
“क्यों तू नही दौड़ता डंडा ले कर….मैने तो सुना है गाओं की सारी छ्होरियों को अपने डंडे से धमकाया हुआ है तूने..”
मुन्ना एकदम से झेंप गया “धात मा…क्या बात कर रही हो…”
“इसमे शरमाने की क्या बात है…ठीक तो करता है अपना आम तुझे खुद खाना है….सब चूत्मरानियो को ऐसे ही धमका दिया कर….” मुन्ना की रीढ़ की हद्ढियों में सिहरन दौड़ गई. शीला देवी के मुँह से निकले इस चूत सब्द ने उसे पागल कर दिया. उत्तेजना में अपने लंड को जाँघो के बीच ज़ोर से दबा दिया. चौधरायण ने साड़ी खोल एक ओर फेंक दिया और फिर पेटिकोट को फिर से घुटने के थोड़ा उपर तक खींच कर बैठ गई और खिड़की के तरफ मुँह घुमा कर बोली “लगता है आज बारिश होगी”. मुन्ना कुच्छ नही बोला उसकी नज़रे तो शीला देवी की गोरी गथिलि पिंदलियों का मुआएना कर रही थी. घूमती नज़रे जाँघो तक पहुच गई और वो उसी में खोया रहता अगर अचानक शीला देवी ना बोल पड़ती “बेटे आम खाएगा…” मुन्ना ने चौंक कर नज़र उठा कर देखा तो उसे ब्लाउस के अंदर कसे हुए दो आम नज़र आए, इतने पास की दिल में आया मुँह आगेआ कर चुचियाँ को मुँह में भर ले दूसरे किसी आम के बारे में तो उसका दिमाग़ सोच भी नही पा रहा था हॅडबड़ाते हुए बोला “आम…कहा है आम….अभी कहा से…” शीला देवी उसके और पास आ अपने सांसो की गर्मी उसके चेहरे पर फेंकती हुई बोली “आम के बगीचे मैं बैठ कर…आम ढूँढ रहा है…” कह कर मुस्कुरई…”.
“पर रात में…आम..” बोलते हुए मुन्ना के मन में आया की गड्ढे वाले गालो को अपने मुँह भर कर चूस लू.
धीरे से बोली “रात में ही खाने में मज़ा आता है…चल बाहर चलते है…” कहती हुई मुन्ना को एक तरफ धकेलते बिस्तर से उतारने लगी. इतने पास से बिस्तर से उतार रही थी की उसकी नुकीली चुचियों ने अपने चोंच से मुन्ना की बाहों को छु लिया. मुन्ना का बदन गन्गना गया. उठ ते हुए बोला “के मा…तुम भी क्या..क्या सोचती रहती हो…इतनी रात में आम कहा दिखेंगे”
“ये टॉर्च है ना…बारिश आने वाली है…जीतने भी पके हुए आम है गिर कर खराब हो जाएगे….” और टॉर्च उठा बाहर की ओर चल दी. आज उसकी चाल में एक खास बात थी, मुन्ना का ध्यान बरबस उसकी मटकती गुदाज कमर और मांसल हिलते चूतरों की ओर चला गया. गाओं की अनचुदी जवान लौंदीयों को छोड़ने के बाद भी उसको वो मज़ा नही आया था जो उसे उसकी मामी उर्मिला देवी ने दिया था. इतनी कम उम्र में ही मुन्ना को ये बात समझ में आ गई थी की बड़ी उम्र की मांसल गदराई हुई औरतो को चोदने में जो मज़ा है वो मज़ा दुबली पतली अछूती चूतो को चोदने में नही. खेली खाई औरते कुतेव करते हुए लंड डलवाती है और उस समय जब उनकी चूत से फॅक फॅक…गछ गछ आवाज़ निकलती है तो फिर घंटो चोद्ते रहो…उनके मांसल गदराए जिस्म को जितनी मर्ज़ी उतना रागडो. एक दम गदराए गथीले चूतर, पेटिकोट के उपर से देखने से लग रहा था कि हाथ लगा कर अगर पकड़े तो मोटी मांसल चुटटरों को रगड़ने का मज़ा आ जाएगा. ऐसे चूतर की उसके दोनो भागो को अलग करने के लिए भी मेहनत करनी पड़ेगी. फिर उसके बीच गांद का छोटा सा भूरे रंग का छेद बस मज़ा आ जाए. लूँगी के अंदर लंड फनफना रहा था. अगर शीला देवी उसकी मा नही होती तो अब तक तो वो उसे दबोच चुका होता. इतने पास से केवल पेटिकोट-ब्लाउस में पहली बार देखने का मौका मिला था. एक दम मस्त गदराई गथिलि जवानी थी. हर अंग फेडॅफाडा रहा था. कसकती हुई जवानी थी जिसको रगड़ते हुए बदन के हर हिस्से को चूमते हुए दन्तो से काट ते हुए रस चूसने लायक था. रात में सो जाने पर साड़ी उठा के चूत देखने की कोशिश की जा सकती थी, ज़्यादा परेशानी शायद ना हो क्योंकि उसे पता था कि गाओं की औरते पॅंटी नही पहनती. इसी उधेरबुन में फसा हुआ अपनी मा की हिलती गांद और उसमे फासे हुए पेटिकोट के कपड़े को देखता हुआ पिछे चलते हुए आम के पेड़ो के बीच पहुच गया. वाहा शीला देवी फ्लश लाइट (टॉर्च) जला कर उपर की ओर देखते हुए बारी-बारी से सभी पेड़ो पर रोशनी डाल रही थी.
“इस पेड़ पर तो सारे कच्चे आम है…इस पर एक आध ही पके हुए दिख रहे…”
“इस तरफ टॉर्च दिखाओ तो मा…इस पेड़ पर …पके हुए आम दिख….”
“कहा है…इस पेड़ पर भी नही है पके हुए…तू क्या करता था यहा पर….तुझे तो ये भी नही पता किस पेड़ पर पके हुए आम है…” मुन्ना ने शीला देवी की ओर देखते हुए कहा “पता तो है मगर उस पेड़ से तुम तोड़ने नही दोगि…”.
“क्यों नही तोड़ने दूँगी…तू बता तो सही मैं खुद तोड़ कर ख़िलाउंगी….” फिर एक पेड़ के पास रुक गई “हा….देख ये पेड़ तो एकदम लदा हुआ है पके आमो से….चल ले टॉर्च पकड़ के दिखा मैं ज़रा आम तोड़ती हू….” कहते हुए शीला देवी ने मुन्ना को टॉर्च पकड़ा दी. मुन्ना ने उसे रोकते हुए कहा “क्या करती हो…कही गिर गई तो …..तुम रहने दो मैं तोड़ देता हू….”
“चल बड़ा आया…आम तोड़ने वाला…बेटा मैं गाओं में ही बड़ी हुई हू…जब मैं छ्होटी थी तो अपने सहेलियों में मुझ से ज़यादा तेज कोई नही था पेर पर चढ़ने में…देख मैं कैसे चढ़ती हू…”
“अर्रे तब की बात और…” पर मुन्ना की बाते उसके मुँह में ही रह गई और शीला देवी ने अपने पेटिकोट को थोड़ा उपर कर अपनी कमर में खोस लिया और पेड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया. मुन्ना ने भी टॉर्च की रोशनी उसकी तरफ कर दी. थोड़ी ही देर में काफ़ी उपर चढ़ गई और पेड़ के दो डालो के उपर पैर जमा कर खड़ी हो गई और टॉर्च की रोशनी में हाथ बढ़ा कर आम तोड़ने लगी तभी टॉर्च फिसल कर मुन्ना की हाथो से नीचे गिर गयी.
“अर्रे…क्या करता है तू…ठीक से टॉर्च भी नही दिखा सकता क्या”. मुन्ना ने जल्दी से नीचे झुक कर टॉर्च उठाया और फिर उपर किया…
“ठीक से दिखा….इधर की तरफ…” टॉर्च की रोशनी शीला देवी जहा आम तोड़ रही थी वाहा ले जाने के क्रम में ही रोशनी शीला देवी के पैरो के पास पड़ी तो मुन्ना के होश ही अर गये. शीला देवी ने अपने दोनो पैरो को दो डालो पर टीका के रखा हुआ था जिसके कारण उसका पेटिकोट दो भागो में बाट गया था और टॉर्च की रोशनी सीधा उसके दोनो पैरो के बीच के अंधेरे को चीरती हुई पेटिकोट अंदर के माल को रोशनी से जगमगा दिया. पेटिकोट के अंदर के नज़ारे ने मुन्ना की तो आँखो को चौंधिया दिया. टॉर्च की रोशनी में पेटिकोट के अंदर क़ैद चमचमाती मखमली टाँगे पूरी तरह से नुमाया हो गई, रोशनी पूरा उपर तक चूत के काले काले झांतो को भी दिखा रही थी. टॉर्च की रोशनी में कन्द्लि के खंभे जैसी चिकनी मोटी जाँघो और चूत की झांतो को देख मुन्ना को लगा कि उसका लंड पानी फेंक देगा, उसका गला सुख गया और हाथ-पैर काँपने लगे. तभी शीला देवी की आवाज़ सुनाई दी “अर्रे कहा दिखा रहा है यहा उपर दिखा ना…”. हकलाते हुए बोला “हा..हा अभी दिखाता…वो टॉर्च गिर गया था…” फिर टॉर्च की रोशनी चौधरैयन के हाथो पर फोकस कर दिया. चौधरायण ने दो आम तोड़ लिए फिर बोली “ले कॅच कर तो ज़रा…” और नीचे की तरफ फेंका, मुन्ना ने जल्दी से टॉर्च
को कांख में दबा दोनो आम बारी बारी से कॅच कर लिए और एक तरफ रख कर फिर से टॉर्च उपर की तरफ दिखाने लगा…और इस बार सीधा दोनो टॅंगो बीच में रोशनी फेंकी..इतनी देर में शीला देवी की टाँगे कुच्छ और फैल गई थी पेटिकोट भी थोडा उपर उठ गया था और चूत की झांते और ज़यादा सॉफ दिख रही थी. मुन्ना का ये भ्रम था या सच्चाई पर शीला देवी के हिलने पर उसे ऐसा लगा जैसे चूत के लाल लपलपते होंठो ने हल्का सा अपना मुँह खोला था. लेंड तो लूँगी के अंदर ऐसे खड़ा था जैसे नीचे से ही चौधरायण की चूत में घुस जाएगा. नीचे अंधेरा होने का फ़ायदा उठाते हुए मुन्ना ने एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर हल्के से दबाया. तभी शीला देवी ने “कहा ज़रा इधर दिखा….” मुन्ना ने वैसा ही किया पर बार-बार वो मौका देख टॉर्च की रोशनी को उसके टॅंगो के बीच में फेंक देता था. कुच्छ समय बाद शीला देवी बोली “और तो कोई पका आम नही दिख रहा.…चल मैं नीचे आ जाती हू वैसे भी दो आम तो मिल ही गये….तू खाली इधर उधर लाइट दिखा रहा है ध्यान से मेरे पैरों के पास लाइट दिखना”. कहते हुए नीचे उतरने लगी. मुन्ना को अब पूरा मौका मिल गया ठीक पेड़ की जड़ के पास नीचे खड़ा हो कर लाइट दिखाने लगा. नीचे उतरती चुधरायण के पेटिकोट के अंदर रोशनी फेंकते हुए उसकी मस्त मांसल चिकनी जाँघो को अब वो आराम से देख सकता था क्योंकि चौधरैयन का पूरा ध्यान तो नीचे उतरने पर था, हालाँकि चूत की झांतो का दिखना अब बंद हो गया था मगर चौधरैयन का मुँह पेड़ की तरफ होने के कारण पिछे से उसके मोटे मोटे चूतरो का निचला भाग पेटिकोट के अंदर दिख रहा था. मस्त गोरी गांद के निचले भाग को देख लंड अपने आप हिलने लगा था. एक हाथ से लंड पकड़ कस कर दबाते हुए मुन्ना मन ही मन बोला “हाई मा ऐसे ही पेड़ पर चढ़ि रह उफ़फ्फ़…क्या गांद है…किसी ने आज तक नही मारी होगी एक दम अछूती गांद होगी….हाई मा…लंड ले कर खड़ा हू जल्दी से नीचे उतर के इस पर बैठ जा ना…” ये सोचने भर से लंड ने दो चार बूँद पानी टपका दिया. तभी शीला देवी जब एकदम नीचे उतरने वाली थी कि उसका पैर फिसला और हाथ छूट गया. मुन्ना ने हर्बरा कर नीचे गिरती शीला देवी को कमर के पास से पकड़ कर लपक लिया. मुन्ना के दोनो हाथ अब उसकी कमर से लिपटे हुए थे और चौधरैयन के दोनो पैर हवा में और चूतर उसकी कमर के पास. मुन्ना का लंड सीधा चौधरैयन की मोटी गुदाज गांद को छु रहा था. गुदाज मांसल पेट के फोल्ड्स उसकी मुट्ही में आ गये थे. हर्बराहट में दोनो की समझ में कुच्छ नही आ रहा था, कुच्छ पल तक मुन्ना ने भी उसके भारी सरीर को ऐसे ही थामे रखा और शीला देवी भी उसके हाथो को पकड़े अपनी गांद उसके लंड पर टिकाए झूलती रही.
कुच्छ देर बाद धीरे से शरमाई आवाज़ में बोली “हाई…बच गई…अभी गिर जाती..अब छोड़ ऐसे ही उठाए रखेगा क्या…” मुन्ना उसको ज़मीन पर खड़ा करता हुआ बोला “मैने तो पहले ही कहा था…” शीला देवी का चेहरा लाल पर गया था. हल्के से मुस्कुराती हुई कनखियों से लूँगी में मुन्ना के खड़े लंड को देखने की कोशिश कर रही थी. अंधेरे के कारण देख नही पाई मगर अपनी गांद पर अभी भी उसके लंड की चुभन का अहसास उसको हो रहा था. अपने पेट को सहलाते हुए धीरे से बोली “कितनी ज़ोर से पकड़ता है तू…लगता है निशान पड़ गया…” मुन्ना तुरंत टॉर्च जला कर उसके पेट को देखते हुए बुदबुदाते हुए बोला “…वो अचानक हो….”. मुस्कुराती हुई शीला देवी धीरे कदमो से चलती मुन्ना के एकदम पास पहुच गई…इतने पास की उसकी दोनो चुचियों का अगला नुकीला भाग लगभग मुन्ना की छाती को टच कर रहा था और उसकी बनियान में कसी छाती पर हल्के से हाथ मारती बोली “पूरा सांड़ हो गया है…तू…मैं इतनी भारी हू…मुझे ऐसे टाँग लिया….चल आम उठा ले.
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Likhavat bahut badhiya hei. Man bhi bhar diya aur land bhi tan diya.