“मैं तो…बोल रहा था…कि अच्छा हुआ…जो किसी और से…नही…करवाया…नही तो….मुझे…तेरी टाइट…छेद की जगह…ढीली…छेद…”
“हाई…हरामी…तुझे..छेद की…पड़ी है…इस बात की नही की मैं दूसरे आदमी…”
“मैं तो…बस एक..बात बोल रहा…था की…वैसे…”
“चुप कर…कामीने…दूसरे से करवा कर मैं बदनाम होती…साले…घर की बात…”
“हा…घर की बात…घर में…रहे तो, …फिर दस इंच के हथियार वाला बेटा किस दिन…काम आएगा…ठीक किया तूने…बचा कर रखा…मज़ा आ रहा….अब तुझे खूब मज़े…”
“हाई…बहुत मज़ा…आ…पेलता रह…मेरा जवान लौंडा….गाओं भर की हरमज़ड़िया मज़े लूटे और मैं…”
“हाई अब…गाओंवालियों को छ्चोड़…अब तो बस तेरा बेटा…तेरे को….ही…सीईईईईई उफ़फ्फ़…बहुत मजेदार छेद है…” गपा-गॅप लंड पेलता हुआ मुन्ना सीस्यते हुए बोला. लंड बूर की दीवारों को बुरी तरह से कुचालता हुआ अंदर घुसते समय चूत के दूप-दुपते छेद को पूरा चौड़ा कर देता था और फिर जब बाहर निकलता था तो चूत की पत्तियाँ अपने आप सिकुड कर छेद को फिर से छ्होटा बना देती थी. बड़े होंठो वाली गुदाज चूत होने का यही फ़ायडा था. हमेशा गद्देदार और टाइट रहती थी. उपर के रसीले होंठो को चूस्ते हुए नीचे के होंठो में लंड धँसाते हुए मुन्ना तेज़ी से अपनी गांद उच्छाल उच्छाल कर शीला देवी के उपर कूद रहा था.
“हाई तेरा केला भी….बहुत मजेदार…है, मैने आजतक इतना लंबा…डंडा…सस्सीईईई…ही डालता रह….ऐसे ही…अफ…पहले दर्द किया…मगर…अब….आराम से….ही….अब फाड़ दे…डाल….सीईए…पूरा डाल…कर….हाँ मादर..चोद…बहुत पानी फेंक रही…है मेरी…चू….” नीचे से गांद उच्छलती मुन्ना के चूतरों को दोनो हाथो से पकड़ अपनी चूत के उपर दबाती गॅप गॅप लंड खा रही थी शीला देवी. कमरे में बारिश की आवाज़ के साथ शीला देवी की चूत के पानी में फॅक-फॅक करते हुए लंड के अंदर-बाहर होने की आवाज़ भी गूँज रही थी. इस सुहाने मौसम में खलिहान के वीरान में दोनो मा-बेटे जवानी का मज़ा लूट रहे थे. कहा तो मुन्ना अपनी चोरी पकड़े जाने पर अफ़सोस मना रहा था वही अभी खुशी से गांद कूदते हुए अपनी मा की टाइट पवरोटी जैसी फूली चूत में लंड पेल कर वाडा-पाव खा रहा था. उधर शीला देवी जो सोच रही थी कि उसका बेटा बिगड़ गया है, नंगी अपने बेटे के नीचे लेट कर उसके तीन इंच मोटे और दस इंच लंब लंड को कच-कच खाते हुए अपने बेटे के बिगड़ने की खुशियाँ मना रही थी. आख़िर हो भी क्यों ना, जिस लंड के पिछे गाओं भर की औरतो की नज़र थी अब उसके कब्ज़े में था, घर के अंदर, जितनी मर्ज़ी उतना चुदवा सकती थी.
“हाइईईईईई बहुत….मजेदार है तेरे आम…तेरा छेद…उफफफफफफफफ्फ़…शियीयीयियीयियी अब तो…हाइईईईई मा मज़ा आ रहा अपने बेटे डंडा बिल में घुस्वा के….सीईईईईईई….हाइईईईईईईईईईईई पहले बता दिया होता तो…अब तक…कितनी बार तेरा आम-रस पी लेता….तेरी छेद पेल देता…सीईईईईई तेरी सिकुदीईईईईईईइ हुई छेद खोल देता…रंडी…खा अपने बेटे का….लंड…द्द्दद्ड….हीईईईईईइ…बहुत मज़ा हीईईई…तूने तो खेल खेल कर इतना…तडपा दिया है…अब बर्दाश्त नही हो रहा…मेरा तो निकल जाएगा……सीईई…पानी फेंक दू तेरीईईईईईईईईईइ….चूऊऊऊऊऊऊऊऊओ…त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त्त..में. सीस्यते हुए मुन्ना बोला. नीचे से धक्का मारती और उपर से ढाका-धक लंड खाती शीला देवी भी अब चरम सीमा पर पहुच चुकी थी. गांद उच्छलती हुई अपनी टाँगो को मुन्ना की कमर पर कास्ती चिल्लई…”मार..मार ना भोसड़ीवाले…मेरे छ्होटे चौधरी…मार…अपनी चौधरैयन….की चूत…फाड़ दे….हाइईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई….बेटा मेरिइईईईईईईईईईईईईईईईई भी अब पानी फेंक देगीईईईईईईईइ…..पुराआआआआआआ लंड…डाल के चोद दीईईईईईई…अपनी मा…की बूर….हाइईईईईईईई…सीईई अपने घोड़े जैसे….लंड का पानी…डाल दे…पेल दीईईईईईईईई….माआआआआआ के लालल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल….बेहन्चोद्द्द्द……मेरी चूऊत में….” यही सब बकते हुए उसने मुन्ना को अपनी बाहों में कस लिया. उसकी चूत ने पानी
फेंकना शुरू कर दिया था. मुन्ना के लंड से भी तेज फ़ौवार्रे के साथ पानी निकलना शुरू हो गया था. मुन्ना के होंठ चौधरैयन के होंठो से चिपक हुए थे, दोनो का पूरा बदन अकड़ गया था. दोनो आपस में ऐसे चिपक गये थे कि तिल रखने की जगह भी नही थी. पसीने से लत-पथ गहरी सांस लेते हुए. जब मुन्ना के लंड का पानी चौधरैयन की बूर में गिरा तो उसे ऐसा लगा जैसे उसकी बर्शो की प्यास भुज गई हो. तपते रेगिस्तान पर मुन्ना का लंड बारिश कर रहा था और बहुत ज़यादा कर रहा था आख़िर उसने अपनी मामी के बाद अपनी मा को चोद दिया था. उसके लंड के नीचे उसके ख्वाबो की दोनो पारियाँ आ चुकी थी बस एक तीसरी बाकी थी…किस्मत ने साथ दिया तो…
करीब आधे घंटे तक दोनो एक दूसरे से चिपके बेशुध हो कर वैसे ही नंगे लेट रहे मुन्ना अब उसके बगल में लेटा हुआ था. शीला देवी आँखे बंद किए टांग फैलाए बेशुध लेटी हुई थी और बाहर बारिश अपने पूरे शबाब पर छ्होटे चौधरी और बड़ी चौधरैयन की चुदाई की खुशी मना रही थी.
गाँव का राजा पार्ट–14
कामुक-कहानियाँ.ब्लॉगस्पोट.कॉम
गतान्क से आगे……………
आधे घंटे बाद जब शीला देवी को होश आया तो खुद को नंगी लेटी देख हर्बरा कर उठ गई. चुदाई का नशा उतरने के बाद होश आया तो अपने पर बड़ी शरम आई. बगल में बेटा भी नंगा लेटा हुआ था. उसका लटका हुआ लॉरा और उसका लाल सुपाड़ा उसके मन में फिर से गुद-गुड़ी पैदा कर गया. आहिस्ते से बिस्तर से उतर अपने पेटिकोट और ब्लाउस को फिर से पहन लिया और मुन्ना की लूँगी उसके उपर डाल जैसे ही फिर से लेटने को हुई कि मुन्ना की आँखे खुल गई. अपने उपर रखे लूँगी का अहसास उसे हुआ तो मुस्कुराते हुए लूँगी को ठीक से पहन लिया. शीला देवी भी शरमाते सकुचाते उस से थोरी दूर पर लेट गई. दोनो मा-बेटे एक दूसरे से आँख मिलाने की हिम्मत जुटा रहे थे. चुदाई का नशा उतरने के बाद जब दिल और दिमाग़ दोनो सही तरह से काम करने लगा तो अपने किए का अहसास हो रहा था. थोरी देर तक तो दोनो में से कोई नही बोला पर फिर मुन्ना धीरे से सरक कर शीला देवी की ओर घूम गया और उसके पेट पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे हाथ चला कर सहलाने लगा. फिर धीरे से बोला “मा….क्या हुआ…” शीला देवी कुच्छ नही बोली तब फिर बोला “इधर देख ना….” शीला देवी मुस्कुराते हुए उसकी तरफ घूम गई. मुन्ना उसके पेट को हल्के-हल्के सहलाते हुए धीरे से उसके पेटिकोट के लटके हुए नारे के साथ खेलने लगा. नारा जहा पर बाँधा जाता वाहा पर पेटिकोट आम तौर पर थोरा सा फटा हुआ होता है या यू समझिए कि गॅप सा बना होता है. नारे से खेलते-खेलते मुन्ना ने अपनी उंगलियाँ धीरे से उसमे सरका कर चलाई तो गुद-गुडी होने पर उसके हाथ को हटाती बोली “क्या करता है…हाथ हटा…” मुन्ना ने हाथ वाहा से हटा कमर पर रख दिया और थोरा और आगे सरक शीला देवी की आँखो में झाँकते हुए बोला “…मज़ा आया…” शरम से शीला देवी का चेहरा लाल हो गया उसकी छाती पर के मुक्का मारती हुई बोली “…चुप…गधा कही का…” मुन्ना समझ गया कि अभी पहली बार है थोरा तो सरमाएगी ही उसकी नाभि में उंगली चलाता हुआ बोला “मुझे तो बहुत मज़ा…आया…बता ना तुझे कैसा लगा…”
“हाई, नही छोरे…तू पहले हाथ हटा…”
“क्यों…अभी तो…बता ना…मा..”
“..धात…छोड़…वैसे आज कोई आम चुराने वाली नही आई..” शीला देवी ने बात बदलने के इरादे से कहा.
“तूने इतनी मोटी-मोटी गलियाँ दी…कि वो सब…”
“चल…मेरी गालियो का…असर…उनपे कहा से….होने वाला…”
“क्यों इतनी मोटी गलियाँ सुन कर कोई भी भाग जाएगा…मैने तो तुझे पहले कभी ऐसी गलियाँ देते नही सुना”
“वो तो…वो तो ऐसे ही…बस…पता नही…शायद गुस्सा…बहुत ज़यादा…”
“अच्छा गुस्से में कोई ऐसी गलियाँ देता है….वैसे बरी…मजेदार गलियाँ दे रही थी…मुझे तो पता ही नही था…”
“….चल हट बेशरम…”
“….. उन बेचारियों को तो तूने….”
“अच्छा…वो सब बेचारियाँ हो गई…सच -सच बता….लाजवंती थी ना…” आँखे नचती शीला देवी ने पुचछा. हस्ते हुए मुन्ना बोला “तुझे कैसे पता…तूने तो उसका बॅंड बजा…” कहते हुए उसके होंठो को हल्के से चूम लिया. शीला देवी उसको पिछे धकेलते हुए बोली “हट….बदमाश…तूने अब तक गाओं में कितनो के साथ…” मुन्ना एक पल खामोश रहा फिर बोला “क्या..मा…किसी के साथ नही..”
“चल झूठे….मुझे सब पता…है सच सच बता” कहते हुए फिर उसके हाथ को अपने पेट पर से हटाया. मुन्ना ने फिर से हाथ को पेट पर रख उसकी कमर पकड़ अपनी तरफ खींचते हुए कहा “साची साची बताउ…”
“हा साची…कितनो के साथ…” कहती हुई उसकी छाती पर हाथ फेरा. मुन्ना उसको और अपनी तरफ खींचता हुआ अपनी कमर को उसके कमर से सटा धीरे से फुसफुसता हुआ बोला “याद नही पर..बारह तेरह होंगी…”.
“हाई…दैयया…इतनी सारी…कैसे करता था मुए…मुझे तो केवल लाजवंती और बसंती का पता था…”कहते हुए उसके गाल पर चिकोटी काटी.
“वो तो तुझे इसलिए पता है ना क्योंकि तेरी जासूस आया ने बताया होगा…बाकियों को तो मैने इधर उधर कही खेत में कभी पास वाले जंगल में कभी नदी किनारे निपटा दिया था….”
“कमीना कही का…तुझे शरम नही आती…बेशरम…” उसकी छाती पर मुक्का मारती बोली.
“अब तो मा को…. ही निपटा…..” कहते हुए उसने शीला देवी को कमर से पकड़ कस कर भींचा. उसका खरा हो चुका लंड सीधा शीला देवी की जाँघो के बीच दस्तक देने लगा. शीला देवी उसकी बाँहो से छूटने का असफल प्रयास करती मुँह फुलाते हुए बोली “छ्चोड़…बेशरम…मुझे फसा कर…बदमास…” पर ये सब बोलते हुए उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान भी तेर रही थी. मुन्ना ने अपनी एक टांग उठा उसके जाँघो पर रखते हुए उसके पैरो को अपने दोनो पैरों के बीच करते हुए लंड को पेटिकोट के उपर से चूत पर सताते हुए उसके होंठो से अपने होंठो को सटा उसका मुँह बंद कर दिया. रसीले होंठो को अपने होंठो के बीच दबोच चूस्ते हुए अपनी जीभ को उसके मुँह में थेल उसके मुँह में चारो तरफ घूमते हुए चुम्मा लेने लगा. कुच्छ पल तो शीला देवी के मुँह से गो गो करके गोगियाने की आवाज़ आती रही मगर फिर वो भी अपनी जीभ को थेल थेल कर पूरा सहयोग करने लगी. दोनो आपस में लिपटे हुए अपने पैरों से एक दूसरे को रगर्ते हुए चुम्मा-चाती कर रहे थे. मुन्ना ने अपने हाथ कमर से हटा उसकी चुचियों पर रख दिया था और ब्लाउस के उपर से उन्हे दबाने लगा. शीला देवी ने जल्दी से अपने होंठो को उसके चुंबन से छुड़ाया, दोनो हाँफ रहे थे और दोनो का चेहरा लाल हो गया था. मुन्ना के हाथों को अपनी चुचियों पर से हटाती हुई बोली “इश्स…क्या करता है…”. मुन्ना ने शीला देवी के हाथ को पकड़ अपनी लूँगी के भीतर घुसा अपना लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया. शीला देवी ने अपना हाथ पिछे खींचने की कोशिश की मगर उसने ज़बरदस्ती उसकी मुत्हियाँ खोल अपना गरम तप्ता हुआ खरा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया. लौरे की गर्मी पा कर उसका हाथ अपने आप लंड पर कसता चला गया.
“….तेरा मन नही भरा क्या…” लंड को पूरी ताक़त से मरोर्ति दाँत पीसती बोली.
“हाई…..नही भरा…एक बार और करने दे…ना…” कहते हुए मुन्ना ने उसके घुटनो तक उठे हुए पेटिकोट के भीतर झटके से हाथ घुसा दिया. शीला देवी ने चिहुन्क कर लंड को छ्चोड़ पेटिकोट के भीतर घुसते उसके हाथो को रोकने की कोशिश करते हुए बोली “इससस्स…..क्या करता है…कहा हाथ घुसा रहा…” मुन्ना ज़बरदस्ती हाथ को उसकी जाँघो के बीच ठेलता हुआ बोला “हाई….एक बार और…देख ना कैसे खड़ा है…”
“उफफफ्फ़…हाथ हटा….बहुत बिगड़ गया है तू…” तब तक मुन्ना का हाथ उसके जाँघो के बीच चूत तक पहुच चुका था. चूत की झांतो के बीच से रास्ता खोजते हुए चूत की छेद में बीच वाली उंगली को धकेला. शीला देवी की चूत पनिया गई थी. थोरा सा ठेलने पर ही उंगली कच से बूर में घुस गई. दो तीन बार कच कच उंगली चलाता हुआ मुन्ना बोला “हाई…पनिया गई है…तेरी चू…” शीला देवी उसकी कलाई पकड़ रोकने की कोशिश करती बोली “अफ…छ्चोड़..ना..क्या करता है…वो पानी तो पहले का है…”. एक हाथ से लूँगी को लंड पर हटाता हुआ बोला “पहले का कहा से आएगा…देख इस पर लगा पानी तो कब का सुख गया…”. नंगा खड़ा लंड देखते ही शीला देवी शरमाई आँखे चुराती कनिखियों से देखती हुई बोली “तेरी लूँगी से पुच्छ गया होगा…मेरा अंदर गिरा था कैसे सूखेगा…” कहते हुए मुन्ना के हाथ को पेटिकोट के अंदर से खींच दिया. पेटिकोट जाँघो तक उठा चुका था. लंड को अपने हाथ से पकड़ दिखाता हुआ मुन्ना बोला “….दुबारा…गिराने का दिल कर रहा है…आराम से जाएगा…इस..बार चिकनी हो गई है…तेरी चू…”
“चुप…बेशरम…बहुत देर हो चुकी है…”
“हाई…मया…एक बार में मन नही भरा…एक बार और…”
“रात भर तू यही करता रहता था क्या…”
“…तीन…चार…बार तो करता ही…”
“….मुआ…तभी दिन भर सोता था…रंडियों के चक्कर में”
“….अब उनका चक्कर छ्चोड़ दिया…अब केवल तेरे साथ…ही…एक बार और…” कहते हुए फिर से उसके पेटिकोट के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की. “हट…नही करवाना….पायल कहा दिया…बिना पायल दिए ले चुका है…एक बार…पहले पायल…दे” कहते हुए उसके हाथ को झटके से हटाती हस दी. मुन्ना भी हस पड़ा और उसकी चुचि को पकड़ कस कर दबा दाँत पीसते बोला “कल ला दूँगा फिर…कम से कम पाँच बार लूँगा…”
“अफ…सीईई….कमिने छ्चोड़….घड़ी देख….क्या टाइम हुआ…” मुन्ना ने घड़ी देखी. सुबह के 4:30 बज रहे थे टाइम का पता ही नही चला था. पहले तो दोनो मा-बेटा पर पर चढ़ने उतरने का नाटक करते रहे फिर कौन पहल करे, इसी लूका-छिपि और एक बार की चुदाई में सुबह के साढ़े चार बज गये. शीला देवी हर्बरा कर उठ गई क्यों कि वो जानती थी कि गाओं में लोग जल्दी सोते है तो जल्दी उठ भी जाते थोरी देर में सड़को पर लोग चलने लगेंगे और थोरा बहुत उजाला भी हो जाएगा ऐसे में पकड़े जाने की संभावना ज़यादा है. मुन्ना को बोली “चल जल्दी बाकी जो करना होगा कल करेंगे….अंधेरा रहते घर….” मुन्ना का मन तो नही था मगर मजबूरी थी चुप-चाप उठ कर अपनी लूँगी ठीक कर खड़ा हो गया. शीला देवी सारी पहन रही थी उसके पास जा कर उसकी कमर पकर पेट सहलाता हुआ बोला “…है बड़ा दिल कर रहा था दुबारा लेने…का….बरी खूबसूरत….”
“छ्चोड़…पकड़े गये तो…फिर कभी मौका भी नही मिलने वाला…चल जल्दी…” और उसका हाथ हटा जल्दी से बाहर की ओर चल दी. मुन्ना भी पिछे पिछे चल पड़ा. तेज कदमो से चलते हुए दोनो घर पहुच चुप-चाप बिना आवाज़ किए अपने-अपने कमरे में चले गये. थोरी देर तक तो दोनो को नींद नही आई, रात की मीठी यादों ने सोने नही दिया मगर फिर दोनो सो गये. सुबह मुन्ना को तो कोई उठाने नही आया मगर शीला देवी को मजबूरन उठना पड़ा. करीब दस बजे दिन में मुन्ना उठा जल्दी से नहा धो कर खाना खाया और फिर बाहर निकल गया. शीला देवी वापस अपने कमरे में घुस गई और जा कर सो गई. शाम में खाना खाने के समय मुन्ना और शीला देवी मिले. चुप चाप खाना खाया फिर अपने अपने कमरो में चले गये. कमरे में घुसने से पहले शीला देवी और मुन्ना की आँखे एक दूसरे से मिली तो मुन्ना ने इशारा करने की कोशिश की मगर शीला देवी ने होंठ बिचका कर के दूसरी तरफ मुँह घुमा लिया. शाम का आठ बज चुके इसलिए लूँगी पहन बैठ गया. बगीचे पर पहुचने के लिए बेताब था मगर शीला देवी तो कमरे में घुसी पड़ी थी. मुन्ना अपने कमरे से निकल कर शीला देवी के कमरे के पास पहुच गया. दरवाज़ा धीरे से खोलते हुए अंदर झाँक कर देखा तो पाया की शीला देवी बिस्तर पर आँखो पर हाथ रख लेटी हुई थी. उसके पास जा कर हिला कर उठाया. शीला देवी ने ओह आह..करते हुए आँखे खोली और पुचछा क्या बात है. मुन्ना मुँह बनाते हुए बोला “क्या…मा…मैं वाहा इंतेज़ार कर रहा था और तुम यहा…”. थोड़ा मुस्कुराती थोड़ा मुँह बनाती बोली “क्यों…इंतेज़ार कर रहा है…”
क्रमशः…………………… ……… गतान्क से आगे……………………..
“क..क्या मतलब बगीचे पर नही जाना क्या…”
“तू जा…मैं वाहा जा कर क्या करूँगी…” आँखे नचाती बोली.
“ आमो की रखवाली कौन करेगा….” मुन्ना समझ गया कि ये फिर नाटक कर रही है.
“क्यों तू तो कर ही लेता है…जा और अपनी सहेलियों को भी बुला ले…”
“अब…चल ना…देख कैसे तड़प रहा है मेरा…लौरा..एयेए” चिरोरी करते हुए मुन्ना लंड को लूँगी के उपर से सहलाते हुए बोला.
“तड़प रहा तो….खुद ही शांत कर…मैं नही आती….” मुन्ना एक पल उसे देखता रहा फिर चिढ़ कर बोला. “ठीक है मत चल…मैं जा रहा हू…कोई ना कोई तो मिल ही जाएगी…” और फिर तेज़ी के साथ बाहर निकल गया. उसे पहले पता होता तो बसंती को बुला लेता, मगर आज तो कोई जुगाड़ नही था. फिर भी गुस्से में बाहर निकल सीधा बगीचे पर पहुँचा और दरवाज़ा बंद कर बिस्तर पर लेट गया. नींद तो आ नही रही थी. चुप-चाप वही लेटा करवटें बदलने लगा.
मुन्ना के बाहर निकल जाने के थोरी देर तक शीला देवी कुच्छ सोचती रही, फिर धीरे से उठी और बाहर निकल गई. उसके कदम अपने आप बगीचे की तरफ बढ़ते चले गये. कुच्छ समय बाद वो खलिहान के दरवाजे पर थी. दरवाजे पर खाट-खाट की आवाज़ सुन मुन्ना बिस्तर से उच्छल कर नीचे उतरा. कौन हो सकता है सोचते हुए उसने दरवाजा खोल दिया. सामने शीला देवी खड़ी थी पसीने से लत-पथ, लगता है जैसे दौरती हुई आई थी. उसकी साँसे तेज चल रही थी और सांसो के साथ उसकी छातियाँ उपर नीचे हो रही थी. नज़रे नीचे की ओर झुकी हुई थी. मुन्ना ने एक पल को उपर से नीचे शीला देवी को निहारा फिर चेहरे पर मुस्कान लाते हुए बोला “बाहर ही खरी रहोगी या अंदर आओगी”
एक पल रुक कर धीरे से वो अंदर आ गई और धीरे धीरे चलते हुए बिस्तर पर पैर लटका कर बैठ गई. फिर मासूम सा चेहरा बना मायूस आवाज़ में बोली “बेटा ये ठीक नही है… मैं नही चाहती की तू रंडियों के चक्कर में पड़े…ये सब बंद कर दे….” .
“मुझे कौन सा उनके साथ मज़ा आता है…पर तू तो…जब कि कल…”
“मैं तेरी मा हू…मुझे कल रात से खुद पर शरम आ रही है….इसलिए तुझे दुबारा करने से रोका…अंधी हो गई थी…ये ठीक नही है…..फिर तू उन रंडियों के साथ करता था मुझे बहुत बुरा लगता था…”
“तुझे मज़ा नही आया..था…सच बता…. तुझे मेरी कसम…”
“हा…आया था…बहुत मज़ा आया….पर…” शरम से लाल होती शीला देवी बोली. शीला देवी को थोरा सा खिसका कर उसके पास बिस्तर बैठ उसकी जाँघो पर हाथ रख कर मुन्ना उसे समझाने वाले अंदाज में बोला “तू गाओं में रह कर कुएँ की मेंढक बन गई है….दुनिया में सब कितना मज़ा करते है…फिर गाओं भर की जासूस वो बुढ़िया तो तेरे पास आती है, क्या वो तुझे नही बताती कि लोगो के घरो में क्या-क्या होता है.”
“आती है…और बताती भी है मगर…फिर भी हम औरो के जैसा क्यों…”
“तो फिर क्यों आई है भागती हुई”
“मैं तुझे रोकने आई हूँ….मैं नही चाहती तू औरो के जैसे बन जाए”
“बात उनके जैसा बन ने की नही. बात मज़े करने की है. कोई और हमारे बदले मज़ा नही कर सकता ना ही हम किसी को बताने जा रहे है कि हम कितने मज़े करते है. लोगो को अपना मज़ा करने दो हम अपना करते है. घर के अंदर कोई देखने आता है?…खुल कर मज़ा लेगी तभी सुखी रहेगी….शहर में तो….. ”
“तू मुझे ग़लत बाते सीखा रहा है…गंदी औरत बना रहा है…”
“…जिंदगी का असली मज़ा इसी में है…”
“पर तू मेरा…बेटा है…तेरे साथ…ये ग़लत है.
“मतलब मेरे साथ नही करवाएगी…बाहर के किसी से…”
“तू बात को पता नही कहाँ से कहाँ ले जाता है…देख बेटा ऐसा मत…कर…मुझे किसी से नही करवाना और उन रंडियों का चक्कर…ठीक नही…तू भी छ्चोड़ दे”
“तू अपनी सारी उठा कर रखेगी तो मैं बाहर क्यों मुँह मारूँगा…”
“बहुत बरी ….कीमत माँग रहा है….”
“तेरी छेद घिस जाएगी क्या…फिर तुझे भी तो मज़ा आएगा…बाहर करवाएगी तो बदनामी होगी…घर में…खुल कर मज़ा लूट…नही तो…जाम हो जाएगा…छेद…फिर उंगली भी डालेगी तो नही घुसेगी…” मुन्ना का ये भाषण सुन कर शीला देवी हस्ने लगी अब पर उसको ये बात भी समझ आ गई वो मुन्ना को नही रोक सकती. वो बाहर जाएगा ही. कुच्छ पल सोचती रही फिर समझ में आ गया कि अच्छा होगा वो अपनी छेद की सेवा उस से करवाती रहे. उसके दोनो हाथ में लड्डू रहेगा बेटा भी कब्ज़े में रहेगा और उसकी खुजली भी शांत रहेगी. इतना सोच मुस्कुराते हुए बोली “घिसेगी तो नही पर ढीली ज़रूर हो जाएगी…” दोनो की हसी निकल गई. मुन्ना समझ गया कि सन्सय के बदल छट गये. कल रात से शीला देवी के मन में जो उथल-पुथल चल रहा था वो सब अब शायद ख़तम हो गया था. कल रात जो मज़ा आया था उसकी याद ने शीला देवी के बदन को एक बार फिर से सिहरा दिया. दोनो चुप थे और शीला देवी सिर नीचे किए अपनी चूत में उठ रहे झन-झनाहट और मचल रहे कीड़ो को महसूस कर रही थी. डुप्दुपति चूत को जाँघो के बीच कसती हुई धीरे से बोली “अब किसी रंडी के पास मुँह मारने तो नही जाएगा…”
“नही जौंगा बाबा…लेकिन तू पहले बोल खुल के मज़ा लेगी….”
“हा लूँगी…अब खुल के लूँगी…पर तू…”
“अरी….बोल तो दिया नही जाउन्गा…”
“चल झूठे….तेरा कोई भरोसा नही कसम ले पहले…”
“ठीक चल…तेरी कसम…”
“ना मेरी कसम क्यों खा…रहा है…” मुँह बिचकाती बोली. शीला देवी की आवाज़ से लग रहा था कि अब वो पूरे मज़े के लिए तैय्यार है. चेहरे पर और बोलने के अंदाज में चंचलता आ चुकी थी. मुन्ना कुच्छ पल सोचता रहा फिर बोला “ तब किसकी…”
“….अपने लूँ…ड्ड की कसम खा ना…” मुस्कुराती हुई बोली. ये बोलते हुए चौधरैयन का चेहरा शरम से लाल हो गया और गालो में गड्ढे पर गये. मुन्ना उपर से नीचे तक सन सना गया. शीला देवी ने लंड बोला और मुन्ना की रीढ़ की हड्डी का खून दौरता हुआ सीधा उसके लौरे में उतरता चला गया. शीला देवी की आँखो में झाँकते हुए तपाक से अपनी लूँगी को उठा खरे लंड को हाथ में पकड़ उसकी चमरी उलट कर चमचमाते सुपरे को दिखाता शीला देवी के पास खरा हो बोला “ हाई….इस लनन्ड की कसम जो तेरी चूत छ्चोड़ किसी और की….” कहते हुए आगे झुक कर उसकी गाल पर दाँत काट ते हुए दूसरे हाथ से उसकी एक चुचि को ज़ोर से दबा दिया. शीला देवी “उई मा…” खहते हुए उच्छल कर बैठ गई और मुन्ना को पिछे धकेला.
“इससस्स कितनी ज़ोर से काट लिया मुए…”
“हाई…यही पटक कर ले लूँगा…अफ….ऐसे ही खुल कर मज़ा लेगी तो….”.
कहते हुए मुन्ना ने शीला देवी के चूतर पर चिकोटी काटी. शीला देवी ने एक घूँसा उसकी छाती पर मारा और बोली “हट कुत्ते…भाग यहाँ से…”
लंड लूँगी में फरफारा रहा था. आज मुन्ना ने इरादा कर लिया था कि आराम से मज़ा लूँगा. एक-एक अंग को चाट-चाट कर, काट कर पहले खाउन्गा फिर रात भर गद्देदार चूत में लंड पेल कर चोदुन्गा. साली को आज सोने नही दूँगा.
शीला देवी की कमर में हाथ डाल उस से लिपट कर उसके कान की लौ को मुँह से पकड़ फुसफुसते हुए बोला “हाई बहुत तडपाया है…सुबह से…किसी काम में मन नही लग रहा था….” मुन्ना का हाथ लगते ही शीला देवी का पूरा बदन सिहर गया. मुन्ना कान को चूमने के बाद धीरे से उसकी गर्दन और उसके पिछले भाग पर अपने होंठो को चलाते हुए चूम रहा था. आज शीला देवी ने पीठ पर बटन लगने वाला ब्लाउस पहन रखा था हाथ को धीरे धीरे उसकी पीठ पर सरकाते हुए आहिस्ता आहिस्ता मुन्ना एक-एक बटन खोलने लगा. ब्लाउस के बटन खुलते ही शीला देवी को जैसे होश आया मुन्ना को थोरा परे धकेल्ति हुई बोली “हाई रुक तो ज़रा… हाथ हटा….”
“हाई तो और क्या करू….अब नही रुका जाता… “.
इस पर शीला देवी मुँह बनाती हुई बोली “अर्रे…दरवाजा तो बंद कर ले कुत्ते…..”
“ओह…अभी बंद कर के आता हू…एक चुम्मा दे…”
“नही तू बंद कर के आ…और फिर पहले मेरा पायल दे….फिर माँगना चुम्मा….” शीला देवी ने अपने सारी के पल्लू को ठीक करते हुए मुँह बनाते हुए कहा जैसे गुस्से में हो.
“तो ये बोल ना…कि तुझे पायल चाहिए…”
“वो तो चाहिए ही….रंडियों को देगा और मा…को देने में….तुम सब बाप बेटे …एक जैसे…” कहते हुए उसने मुन्ना को धकेल कर बिस्तर से उतार दिया. मुन्ना दरवाज़ा बंद करने की जगह खोल कर बाहर निकल चारो तरफ देखने लगा. पूरे बगीचे में घनघोर अंधकार फैला हुआ था. आसमान में बदल छाए हुए थे और इसलिए चाँद भी उनके पिछे च्छूपा हुआ था. बारिश के आसार थे. दूर दूर तक एक कुत्ता भी नज़र नही आ रहा था. लूँगी के उपर से अपने लंड को पकड़ ज़ोर से हिलाते हुए अपने हाथ से ही लंड को मरोड़ कर धीरे से बोला साली….कल से तरप रहा हू…मा की चूत…हाई चौधरैयन आज तो तेरी फार दूँगा…. अचानक उसके होंठो पर एक मुस्कान फैल गई और और अपनी जेब में रखे पायल को उसने बाहर निकाल लिया और वही खुले में एक पेड़ के नीचे खड़े हो पेशाब करने के बाद तेज़ी से अंदर घुसा और दरवाजा बंद कर पिछे मुड़ा तो देखा कि शीला देवी कही नज़र नही आई अलबत्ता बाथरूम से तेज सिटी के जैसी आवाज़ आ रही थी. बाथरूम का दरवाज़ा पूरी तरह से बंद नही था. मुन्ना दबे पाव बाथरूम में घुस गया. शीला देवी कमोड के उपर बैठी मूतने में व्यस्त थी, पेटिकोट पिछे से पूरा उठा हुआ था और उसके मस्ताने गद्देदार गोरे गोरे चुट्टर सॉफ दिख रहे थे. चुटटर थोरा उठा हुआ था इसलिए पिछे से उसकी चूत की झांते भी थोरी दिख रही थी, गांद का छेद दोनो भारी चुटटरो के बीच दबा हुआ था. मुन्ना के लंड को झंझणा देने के लिए इतना काफ़ी था. दिल में आया कि पिछे जा कर गांद में लंड सटा दे. दबे पाव शीला देवी के पिछे पहुच उसकी पेशाब करती हुई चूत को देखने की इच्छा से अपने सिर को आगे झुकाया ही था कि शीला देवी उठ कर खड़ी हो गई. मुन्ना को देखते ही चौंक गई शरम और गुस्से से मुन्ना को धकेला “उईईइ….मा..यहा क्या कर रहा है …डरा दिया…मैने सोचा पता नही कौन आ गया….कमीना..”
“देखने आया था तू कैसे मूत….ती है…” हस्ते हुए मुन्ना बोला.
“शरम नही आती…” फ्लस चलाती शीला देवी बोली.
“कल ही देखी थी तेरी…. जिस से तू मूत ती है…”
“उफफफ्फ़….मुए…बेशरम गंदी बाते करता है….सुअर कही का…”
“अब यही खरा रहेगा क्या….” मुन्ना को धकेल्ति बाथरूम से बाहर निकलती और खुद भी निकलती हुई बोली.
“खरा तो ना जाने कब से है….” अपनी लूँगी के उपर से लंड पकड़ के दिखाता हुआ बोला.
“हट मुए…बाहर निकलने के लिए बोल रही हू …चल…” बोलती हुई वो बाथरूम से बाहर निकल गई.
शीला देवी ने इस समय केवल पेटिकोट और ब्रा पहन रखा था. मुन्ना जब दरवाजा बंद करने गया था तभी उसने सारी और ब्लाउस उतार दिया था. ब्रा काले रंग का नॉर्मल सा था बहुत ज़यादा स्टाइलिश नही था. इसलिए चुचे पूरे ढके हुए थे. खाली बीच वाली गोरी घाटी नज़र आ रही थी. काले रंग की एकदम फिट पेटिकोट नाभि से नीचे बँधी हुई थी और चुटटरो से चिपकी हुई उसके मस्ताने गथिले चुटटरो का आकार बता रही थी. शीला देवी भुन-भुनाते हुए बिस्तर पर पैर लटका कर बैठ गई. मुन्ना कुत्ते की तरह जीभ लपलपता उसके पिछे पिछे गया और बिस्तर पर बैठ गया और उसकी कमर में हाथ डाल कर कहा “…चल गुस्सा छ्चोड़…”
“नही तू…बहुत गंदा लड़का है…”
“अरे मा ग़लती हो गई….बरी इच्छा हो रही थी….. कि देखे कैसे करती हो..”
“क्या कैसे….करते हू…”
“पेशाब….और….क्या…”
“छि…गंदे…पता नही कहा से सीख कर आ गया है” मुँह बनाती हाथ चमकती हुई शीला देवी बोली.
अरे मा तू क्या जाने जब मे मामी के यहा था तो मैं अक्सर राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ ब्लॉगस्पॉटडॉट कॉम और
हिन्दीसेक्सीकहानियाडॉटब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम से सेक्सीकहानिया पढ़ता था वास्तव मे मा राज शर्मा की कहानिया बहुत मस्त होती है “हाई…तू जिसको…गंदा बोलती है…हाई पेशाब करते समय ना जब सिटी जैसी आवाज़…”
“धात…बेशरम वो तो औरते जब भी पेशाब करती है तब…आवाज़…”
“हा..वही…ये आवाज़ सुनते ही ना मेरा तो एकदम खड़ा हो जाता…”
“क्या…मतलब…. पेशाब करने की आवाज़ सुन के…छि…कितना कमीना हो गया है तू…”
“हाई..अब जो भी कह ले…देख ना…कैसे खड़ा है…” कहते हुए अपने लूँगी के उपर हाथ लगा लंड दिखाया और अपने हाथ को उसकी ब्रा मे कसी चुचियों पर ले गया. शीला देवी ने बुरा सा मुँह बनाते हुए उसका हाथ हटा दिया. मुन्ना फिर से अपने हाथ को उसकी ब्रा पर ले गया और उसकी बाई चुचि को मुट्ठी में पकड़ ज़ोर से दबाया. शीला देवी को ज़ोर से दर्द हुआ “उई…मा…”करते हुए चौंक गई और मुन्ना को परे धकेला. अपने हाथ से अपनी छाती सहलाती हुई बोली “नोच लेगा क्या…अफ…जुंगली कही का…”
“मा….खोल ना, अब नही खोलेगी तो फाड़ दूँगा तेरा ब्लाउस…” मुन्ना फिर से चिरोरी करते बोला. पर शीला देवी ने उसका हाथ झटक दिया और बोली “ना पहले…पायल दे…उसके बिना हाथ नही लगाने दूँगी…”
“कमाल करती है…पायल के पिछे पड़ी है…”
“रंडी तो तूने बना दिया है….अब तो बिना…पायल के…”
“तो फिर वैसे ही पटक कर लूँगा….”
“ले लेना हरामी….पर पहले पायल दे…..”
“तो ले….” कहते हुए मुन्ना उसके सामने खड़ा हो गया और अपनी लूँगी को खोल कर नीचे गिरा दिया. चौधरायण ने जब देखा तो उसके मुँह से एक तेज किलकरी निकल गई….”उईईइ….मा……मुए कितना कमीना है तू……” मुन्ना का दस इंच का लंड एक दम सीधा खड़ा था अपने लाल चमचमते सुपरे से लार टपका रहा था. पर खास बात ये थी मुन्ना ने पायल को लंड के चारो तरफ लपेट रखा था. उसकी इसी बदमासी ने शीला देवी के मुँह से किलकरी निकाल दी थी. लंड के चारो तरफ पायल लपेटे मुन्ना कमर पर हाथ रखे शान से खड़ा था.
“ले..ले अपना पायल….” कहते हुए उसने एक हाथ से शीला देवी का हाथ पकड़ा और उसको अपने लंड पर रख दिया. मुन्ना की ये अदा शीला देवी को पूरी तरह से मदहोश कर गई. लंड के सुपरे को पकड़ आहिस्ता-आहिस्ता उसने उसके चारो तरफ लपेटा हुआ पायल उतारा और मुन्ना को अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखो से घूरते अपने एक पैर को घुटने के पास से हल्का सा मोड़ कर बिस्तर पर रखा और फिर अदा के साथ धीरे से अपने अपने पेटिकोट को घुटनो तक उपर उठा कर अपनी गोरी पिंदलियों में पतली सी सोने की पायल पहन ने लगी. उसकी एक चुचि उसके घुटनो से दबी हुई ब्रा के बाहर आने को उतावली हुई थी. शीला देवी की इस अदा ने मुन्ना को ऐसा घायल किया कि उसका दिल कर रहा था इसकी तस्वीर निकाल कर हमेशा के लिए सन्जो ले. अपने काँपते हाथो से उसके तलवे को पकड़ पैर की उंगलियों पर हाथो को फेरा. शीला देवी ने पायल पहन लिया था
क्रमशः……………………
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Likhavat bahut badhiya hei. Man bhi bhar diya aur land bhi tan diya.