गाँव का राजा

गाँव का राजा पार्ट -12

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी गाँव का राजा पार्ट -12 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे

मुन्ना का दिल किया कि ब्लाउस में कसे दोनो आमो को अपनी मुट्ठी में भर कर मसल दे पर मन मार कर टॉर्च अपनी मा के हाथ में पकड़ा नीचे गिरे आमो को उठा लिया और अपनी मुट्ही में भर दबाता हुआ उसकी पठार जैसी सख़्त नुकीली चुचियों को घूरता हुआ बोला “पक गये है…चूस चूस…खाने में…”. शीला देवी मुस्कुराती हुई शरमाई सी बोली “हा..चूस के खाने लायक…इसस्स…ज़यादा ज़ोर से मत दबा….सारा रस निकल जाएगा….आराम से खाना”.

चलते-चलते शीला देवी ने एक दूसरे पेड़ की डाल पर टॉर्च की रोशनी को फोकस किया और बोली “इधर देख मुन्ना…ये तो एक ड्म पका आम है…. इसको भी तोड़…थोड़ा उपर है…तू लंबा है…ज़रा इस बार तू चढ़ के…” मुन्ना भी उधर देखते हुए बोला “हा है तो एकदम पका हुआ और काफ़ी बड़ा भी…है…तुम चढ़ो ना…चढ़ने में एक्सपर्ट बता रही थी उस समय”

“ना रे गिरते-गिरते बची हू…फिर तू ठीक से टॉर्च भी नही दिखाता…कहती हू हाथ पर तो दिखाता है पैर पर”

“हाथ हिल जाता है….”

धीरे से बोली मगर मुन्ना ने सुन लिया “तेरा तो सब कुच्छ हिलता है…तू चढ़ ना…उपर…”

मुन्ना ने लूँगी को दोहरा करके लपेटा लिया. इस से लूँगी उसके घुटनो के उपर तक आ गई. लंड अभी भी खड़ा था मगर अंधेरा होने के कारण पता नही चल रहा था. शीला देवी उसको पैरों पर टॉर्च दिखा रही थी. थोड़ी देर में ही मुन्ना काफ़ी उँचा चढ़ गया था. अभी भी वो उस जगह से दूर था जहा आम लटका हुआ था. दो डालो के उपर पैर रख जब मुन्ना खड़ा हुआ तब शीला देवी ने नीचे से टॉर्च की रोशनी सीधा उसके लूँगी के बीच डाली. चौड़ी चकली जाँघो के बीच मुन्ना का ढाई इंच मोटा लंड आराम से दिखने लगा. लंड अभी पूरा खड़ा नही था पेर पर चढ़ने की मेहनत ने उसके लंड को ढीला कर दिया था मगर अभी भी काफ़ी लंबा और मोटा दिख रहा था. शीला देवी का हाथ अपने आप अपनी जाँघो के बीच चला गया. नीचे से लंड लाल लग रहा था शायद सुपरे पर से चमड़ी हटी हुई थी. जाँघो को भीचती होंठो पर जीभ फेरती अपनी नज़रो को जमाए भूखी आँखो से देख रही थी.

“अर्रे…रोशनी तो दिखाओ हाथो पर….”

“आ..हा..हा.. तू चढ़ रहा था….इसलिए पैरों पर दिखा….” कहते हुए उसके हाथो पर दिखाने लगी. मुन्ना ने हाथ बढ़ा कर आम तोड़ लिया. “लो पाकड़ो…”. शीला देवी ने जल्दी से टॉर्च को अपनी कनखो में दबा कर अपने दोनो हाथ जोड़ लिए मुन्ना ने आम फेंका और शीला देवी ने उसको अपनी चुचियों के उपर उनकी सहयता लेते हुए कॅच कर लिया. फिर मुन्ना नीचे उतर गया और शीला देवी ने उसके नीचे उतर ते समय भी अपने आँखो की उसके लटकते लंड और अंडकोषो को देख कर अच्छी तरह से सिकाई की. मुन्ना के लंड ने चूत को पनिया दिया. मुन्ना के नीचे उतर ते ही बारिश की मोटी बूंदे गिरने लगी. मुन्ना हर्बराता हुआ बोला “चलो जल्दी…भीग जाएँगे….” दोनो तेज कदमो से खलिहान की तरफ चल पड़े. अंदर पहुचते पहुचते थोड़ा बहुत तो भीग ही गये. शीला देवी का ब्लाउस और मुन्ना की बनियान दोनो पतले कपड़े के थे, भीग कर बदन से ऐसे चिपक गये थे जैसे दोनो उसी में पैदा हुए हो. बाल भी गीले हो चुके थे. मुन्ना ने जल्दी से अपनी बनियान उतार दी और पलट कर मा की तरफ देखा पाया की वो अपने बालो को तौलिए से रगड़ रही थी. भींगे ब्लाउस में कसी चुचियाँ अब और जालिम लग रही थी. चुचियों की चोंच स्पस्ट दिख रही थी. उपर का एक बटन खुला था जिस के कारण चुचियो के बीच की गहरी घाटी भी अपनी चमक बिखेर रही थी. तौलिए से बाल रगड़ के सुखाने के कारण उसका बदन हिल रहा था और साथ में उसकी मोटे मोटे मुममे भी. उसकी आँखे हिलती चुचियों ओर उनकी घाटी से हटाए नही हट रही थी. तभी शीला देवी धीरे से बोली “तौलिया ले…और जा कर मुँह हाथ अच्छी तरह से धो कर आ…”. मुन्ना चुप चाप बाथरूम में घुस गया और दरवाजा उसने खुला छोड़ दिया था. कमोड पर खड़ा हो मूतने के बाद हाथ पैर धो कर वापस कमरे में आया तो देखा कि शीला देवी बिस्तर पर बैठ अपने घुटनो को मोड़ कर बैठी थी और एक पैर की पायल निकाल कर देख रही थी. मुन्ना ने हाथ पैर पोछे और बिस्तर पर बैठते हुए पुचछा….

“क्या हुआ….”

“पता नही कैसे पायल का हुक खुल गया…”

“लाओ मैं देखता हू…” कहते हुए मुन्ना ने पायल अपने हाथ में ले लिया.

“इसका तो हुक सीधा हो गया है लगता है टूट…” कहते हुए मुन्ना हुक मोड़ के पायल को शीला देवी के पैर में पहनाने की कोशिश करने लगा पर वो फिट नही हो पा रहा था. शीला देवी पेटिकोट को घुटनो तक चढ़ाए एक पैर मोड़ कर, दूसरे पैर को मुन्ना की तरफ आगे बढ़ाए हुए बैठी थी. मुन्ना ने पायल पहना ने के बहाने शीला देवी के कोमल पैरों को एक दो बार हल्के से सहला दिया.

शीला देवी उसके हाथो को पैरों पर से हटा ते हुए रुआंसी होकर बोली “रहने दे…ये पायल ठीक नही होगी…शायद टूट गयी है…”

“हा…शायद टूट गयी…दूसरी मंगवा लेना…”

एकदम उदास होकर मुँह बनाती हुई शीला देवी बोली “कौन ला के देगा पायल…तेरे बाप से तो आशा है नही और ….तू तो…” कहते हुए एक ठंडी साँस भरी. शीला देवी की बात सुन एक बार मुन्ना के चेहरे का रंग उड़ गया. फिर हकलाते हुए बोला “ऐसा क्यों मा…मैं ला दूँगा…इस बार जब शहर जाउन्गा…इस शनिवार को शहर से…”

“रहने दे…तू क्यों मेरे लिए पायल लाएगा…” कहती हुई पेटिकोट के कपड़े को ठीक करती हुई बगल में रखे तकिये पर लेट गई. मुन्ना पैर के तलवे को सहलाता और हल्के हल्के दबाता हुआ बोला “ओह हो छोड़ो ना…मा…तुम भी इतनी मामूली सी बात….”
पर शीला देवी ने कोई जवाब नही दिया. खिड़की खुली थी कमरे में बिजली का बल्ब जल रहा था, बाहर जोरो की बारिशा शुरू हो चुकी थी. मौसम एक दम सुहाना हो गया था और ठंडी हवाओं के साथ पानी की एक दो बूंदे भी अंदर आ जाती थी. मुन्ना कुच्छ पल तक उसके तलवे को सहलाता रहा फिर बोला “मा…ब्लाउस तो बदल लो….गीला ब्लाउस पहन…”

“उ…रहने दे थोरी देर में सुख जाएगा..दूसरा ब्लाउस कहा लाई..जो…”

“तौलिया लपेट लेना…” शीला देवी ने कोई जवाब नही दिया.

मुन्ना हल्के हल्के पैर दबाते हुए बोला “आम नही खाओगि…”

“ना रहने दे मन नही है…”

“क्या मा… क्यों उदास हो रही हो…”

“ना मुझे सोने दे…तू आम. खा..”

“ओह हो…तुम भी खाओ ना…. कहते हुए मुन्ना ने आम के उपरी सिरे को नोच कर शीला देवी के हाथ में एक आम थमा दिया और उसके पैर फिर से दबाने लगा. शीला देवी अनमने भाव से आम को हाथ में रखे रही. ये देख मुन्ना ने कहा “क्या हुआ…आम अच्छे नही लगते क्या…चूस ना…पेर पर चढ़ के तोड़ा और इतनी मेहनत की…चूसो ना”

मुन्ना की नज़रे तो शीला देवी की नारियल की तरह खड़ी चुचियों से हट ही नही रही थी. दोनो चुचियों को एकटक घूरते हुए वो अपनी मा को देख रहा था. शीला देवी ने बड़ी अदा के साथ अनमने भाव से अपने रस भरे होंठो को खोला और आम को एक बार चूसा फिर बोली “तू नही खाएगा…”


“खाउन्गा ना….” खाते हुए मुन्ना ने दूसरा आम उठाया और उसको चूसा तो फिर बुरा सा मुँह बनाता हुआ बोला “ये तो एक दम खट्टा है…” .

“ये ले मेरे आम चूस…बहुत मीठा है…” धीमी आवाज़ में शीला देवी अपनी एक चुचि को ब्लाउस के उपर से खुजलाती हुई बोली और अपना आम मुन्ना को पकड़ा दिया. “मुझे तो पहले ही पता था…तेरा वाला मीठा होगा…” धीरे से बोलते हुए मुन्ना ने शीला देवी के हाथ से आम ले लिया और मुँह में ले कर ऐसे चूसने लगा जैसे चुचि चूस रहा हो. शीला देवी के अब चेहरे पर हल्की सी मुस्कान लिए बोली “हाई…बड़े मज़े से चूस रहा है… मीठा है ना….”. शीला देवी और मुन्ना के दोनो के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट खेल रही थी.

मुन्ना प्यार से आम चूस्ता हुआ बोला “हा मा…बहुत मीठा है…तेरा आम…ले ना तू भी चूस…”

“ना तू चूस… मुझे नही खाना…” फिर मुस्कुराती हुई धीरे से बोली “बेटा अपने..पेड़ के आम..खाया कर…”

“मिलते…नही…” मुन्ना उसकी चुचियों को घूरते हुए बोला.

“कोशिश…कर के देख…” उसकी आँखो में झकति शीला देवी बोली. दोनो को अब दोहरे अर्थो वाली बातो में मज़ा आ रहा था. मुन्ना अपने हाथ को लूँगी के उपर से लंड पर लगा हल्के से सहलाता हुआ उसकी चुचियों को घूरता हुआ बोला “तू मेरा वाला…चूस… खट्टा है…..औरतो को तो खट्टा….”

“हा..ला मैं तेरा…चूस्ति हू…खट्टे आम भी अच्छे होते…” कहते हुए शीला देवी ने खट्टा वाला आम ले लिया और चूसने लगी. अब शीला देवी के चेहरे पर हल्की मुस्कुराहट आ गई थी, अपने रसीले होंठो से धीरे-धीरे आम को चूस रही थी. उसके चूसने की इस अदा और दोहरे अर्थो वाली बात चीत ने अब तक मुन्ना और शीला देवी दोनो की अंदर आग लगा दी थी. दोनो अब उत्तेजित होकर वासना की आग में धीरे धीरे सुलग रहे थे. पेड़ के उपर चढ़ने पर दोनो ने एक दूसरे के पेटिकोट और लूँगी के अंदर छुपे माल को देखा था ये दोनो को पता था. दोनो के मन में बस यही था की कैसे भी करके पेटिकोट के माल का मिलन लूँगी के हथियार के साथ हो जाए. मुन्ना अब उसके कोमल पैरो को सहलाते हुए उसके एक पैर में पड़ी पायल से खेल रहा था शीला देवी आम चूस्ते हुए उसको देख रही थी. बार-बार मुन्ना का हाथ उसकी कोमल, चिकनी पिंदलियों तक फिसलता हुआ चला जाता. पेटिकोट घुटनो तक उठा हुआ था. एक पैर पसारे एक पैर घुटने के पास से मोड हुए शीला देवी बैठी हुई थी. कमरे में

पूरा सन्नाटा पसरा हुआ था, दोनो चुपचाप नज़रो को नीचे किए बैठे थे. बाहर से तेज बारिश की आवाज़ आ रही थी. आगे कैसे बढ़े ये सोचते हुए मुन्ना बोला

“…तेरा पायल मैं कल ला दूँगा सुबह जाउन्गा और….”

“रहने दे मुझे नही चाहिए तेरी पायल….”

“…मैं अच्छी वाली पायल…ला…”

“ना रहने दे, तू….पायल देगा…फिर मेरे से…उसके बदले…” धीरे से मुँह बनाते हुए शीला देवी ने कहा जैसे नाराज़ हो
मुन्ना के चेहरे के रंग उड़ गया. धीरे से हकलाता हुआ बोला “बदले में…क्या…मतलब…”


आँखो को नचाती मुँह फुलाए हुए धीरे से बोली “….लाजवंती को भी….पायल….” इस से ज़्यादा मुन्ना सुन नही पाया, लाजवंती का नाम ही काफ़ी था. उसका चेहरा कानो तक लाल हो गया और दिमाग़ हवा में तैरने लगा, तभी शीला देवी के होंठो के किनारों पर लगा आम का रस छलक कर उसकी चुचियों पर गिर पड़ा. शीला देवी उसको जल्दी से छाती पर से पोच्छने लगी तो मुन्ना ने गीला तौलिया उठा अपने हाथ को आगे बढ़ाया तो उसके हाथ को रोकती हुई बोली
“…ना ना रहने दे…अभी तो मैने तेरे से पायल लिया भी नही है जो…”

ये शीला देवी की तरफ से ये दूसरा खुल्लम खुल्ला सिग्नल था कि आगे बढ़. शीला देवी के पैर की पिंदलियों पर से काँपते हाथो को सरका कर उसके घुटनो तक ले जाते हुए धीरे से बोला “प…पायल दूँगा तो….तो दे…गी…”
धीरे से शीला देवी बोली “…प..आयल देगा..तो…? “

“.आम…सा…आफ…करने…देगी…” धीरे से मुन्ना बोला. आम के रस की जगह आम सॉफ करने की बात शायद मुन्ना ने जानभूझ कर कही थी.
“तू…सबको…पायल..देता है क्या…” सरसरती आवाज़ में शीला देवी ने पुचछा

“नही…”

“लाजवंत को तो दी …” मुन्ना चुपचाप बैठा रहा.

“उसके आ..म सा…फ… किए…तूने….” मुन्ना की समझ में आ गया की शीला देवी क्या चाहती है.

“अपने पेड़ का…आम…खाना है मुझे…” इतना कहते हुए मुन्ना नेआगे बढ़ अपना एक हाथ शीला देवी के पेट पर रख दिया और उसकी वासना से जलती नासीली आँखो में झाँक कर देखा.

“तो खा…ना….मैं तो हमेशा….” चाहती थी और अनुरोध से भरे आँखो ने मुन्ना को हिम्मत दी और उसने छाती पर झुक कर अपनी लंबी गरम ज़ुबान बाहर निकाल कर चुचियों के उपर लगे आम के रस को चाट लिया. इतनी देर से गीला ब्लाउस पहन ने के कारण शीला देवी की चूचियाँ एक दम ठंडी हो चुकी थी. ठंडी चुचियों पर ब्लाउस के उपर मुन्ना की गरम जीभ जब सरसरती हुई धीरे से चली तो उसके बदन में सिहरन दौड़ गई. कसमसाती हुई अपने रसीले होंठो को अपनी दांतो से काट ती हुई बोली “चा..अट कर ….सा…आफ करेगा…”. मुन्ना ने कोई जवाब नही दिया.

“आम तो चूसा…मैं तो…चूस..वाने आई थी…”. शीला देवी ने सीधी बात करने का फ़ैसला कर लिया था.

“हाई…चूस..वाएगी…?” चूची चूसने के इस खुल्लम खुल्ला आमंत्रण ने लंड को फनफना दिया, उत्तेजना अब सीमा पार कर रही थी.

पेट पर रखे हाथ को धीरे से पकड़ अपनी छाती पर रखती हुई शीला देवी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली ” मेरा आम चू..ओस…बहुत मीठा है…”. मुन्ना ने अपने बाए हथेली में उसकी एक चुचि को कस लिया और ज़ोर से दबा दिया, शीला देवी के मुँह से सिसकारी निकल गई “चूसने के लिए..बोला…”

“दबा के देखने तो दे…चूसने लायक पके है…या…” शैतानी से मुस्कुराता धीरे से बोला.

“तो धीरे से दबा…ज़ोर से दबा के… तो..सारा रस..निकल..” मुन्ना की चालाकी पर धीरे से हस दी.

“तू सच में चूस…वाने आई थी…” मुन्ना ने वासना से जलती आँखो में झाँकते हुए पुचछा.

“और कैसे….बोलू…” उत्तेजना से काँपति, गुस्से से मुँह बिचकाती बोली.

मुन्ना को अब भी विस्वास नही हो रहा था कि ये सब इतनी आसानी से हो रहा है. कहा तो वो प्लान बना रहा था कि रात में साड़ी उठा कर अनदर का माल देखेगा…यहा तो पूरा सिर कड़ाही में घुसने जा रहा था. गर्दन नीचे झुकाते हुए मुन्ना ने अपना मुँह खोल भीगे ब्लाउस के उपर से चुचि को निपल सहित अपने मुँह में भर लिया. हल्का सा दाँत चुभाते हुए इतनी ज़ोर से चूसा कि शीला देवी की मुँह से आह भरी सिसकारी निकल गई. मगर मुन्ना तो अब पागल हो चुका था. एक चुचि को अपने हाथ से दबाते हुए दूसरी चुचि में मुँह गाढ़ने चूसने, चूमने लगा. शीला देवी बरसो तक वासना की आग में जलती रही थी मगर आज इतने दीनो के बाद जब उसकी चूचियों को एक मर्द ने अपने हाथ और मुँह से मसलना शुरू किया तो उसके तन-बदन में आग लग गई. मुँह से सिसकारियाँ निकालने लगी, अपनी जाँघो को भीचती एडियों को रगड़ती हुई मुन्ना के सिर को अपनी चुचियों पर भींच लिया. गीले ब्लाउस के उपर से चुचियों को चूसने का बड़ा अनूठा मज़ा था. गरम चुचियों को गीले ब्लाउस में लपेट कर बारी-बारी से दोनो चुचियों को चूस्ते हुए वो निपल को अपने होंठो के बीच दबाते हुए चबाने लगा. निपल एक दम खड़े हो चुके थे और उनको अपने होंठो के बीच दबा कर खींचते हुए जब मुन्ना ने चूसा तो शीला देवी च्चटपटा गई. मुन्ना के सिर को और ज़ोर से अपने सिने पर भीचती सिस्ययई “इसस्सस्स…उफ़फ्फ़….धीरे…आराम से आम चू…ओस…” दोनो चुचियों के चोंच को बारी बारी से चूस्ते हुए जीभ निकाल कर छाती और उसके बीच वाली घाटी को ब्लाउस के खुले बटन से चाटने लगा. फिर अपनी जीभ आगे बढ़ाते हुए उसके गर्दन को चाट ते हुए अपने होंठो को उसके कानो तक ले गया और अपने दोनो हाथो में दोनो चुचियों को थाम फुसफुसते हुए बोला “बहुत मीठा है तेरा आम…छिल्का उतार के खाउ…”. शीला देवी भी उसके गर्दन में बाँहे डाले अपने से चिपकाए फुसफुसती हुई बोली “हाई…छिल्का…उतार के…? “

“हा…शरम आ रही है…क्या ?

“शरमाती तो…आम हाथ में पकड़ाती…?”

“तो उतार दू…छिल्का…?”

“उतार दे…बहुत बक बक करता है…हरामी..” मुन्ना ने जल्दी से गीले ब्लाउस के बटन चटकते हुए खोल दिया, ब्लाउस के दोनो भागो को दो तरफ करते हुए उसकी काली रंग की ब्रा को खोलने के लिए अपने दोनो हाथो को शीला देवी की पीठ के नीचे घुसाया तो उसने अपने आप को अपनी चुटटरो और गर्दन के सहारे बिस्तर से थोड़ा सा उपर उठा लिया. शीला देवी की दोनो चुचिया मुन्ना की छाती में दब गई. चुचियों के कठोरे निपल मुन्ना की छाती में चुभने लगे तो मुन्ना ने पीठ पर हाथो का दबाब बढ़ा दिया कर शीला देवी को और ज़ोर से अपनी छाती से चिपका लिया और उसकी कठोरे चुचियों को अपने छाती से पिसते हुए धीरे से ब्रा के हुक को खोल दिए. कसमसाती हुई शीला देवी ने उसे थोड़ा सा पिछे धकेला और ब्लाउस उतार दिया. फिर तकिये पर लेट मुन्ना की ओर देखने लगी. काँपते हाथो से ब्रा उतार कर दोनो गदराई, गथिलि चुचियों को अपने हाथ में भर धीरे से बोला “बड़े…मस्त आ..म है..” हल्के से दबाया तो गोरी चुचियों का रंग लाल हो गया.

गाँव का राजा पार्ट -13

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी गाँव का राजा पार्ट -13 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे

उसने सपने में भी नही सोचा था कि उसकी मा की चुचियाँ इतनी सख़्त और गुदाज होंगी. रंडी और घर के माल का अंतर उसे पता चल गया. शीला देवी की आँखे नशे में डूबी लग रही थी. उसके बगल में लेट ते हुए अपनी तरफ घुमा लिया और उसके रस भरे होंठो को अपने होंठो में भर नंगी पीठ पर हाथ फेरते हुए अपने बाहों के घेरे में कस ज़ोर से चिपका लिया. करीब पाच मिनिट तक दोनो मा-बेटे एक दूसरे से चिपके हुए एक दूसरे के मुँह में जीभ ठेल-ठेल कर चुम्मा-चाटि करते रहे. जब दोनो अलग हुए तो हाँफ रहे थे और दोनो के आँखो की शरम अब धीरे-धीरे घुलने लगी थी. मुन्ना ने शीला देवी की चुचियों को फिर से दोनो हाथो में थाम लिया और उसके निपल को चुटकी में पकड़ मसल्ते हुए एक चुचि के निपल से अपनी जीभ से सहलाने लगा. शीला देवी भी अपने एक हाथ से चुचि को पकड़ मुन्ना के मुँह में ठेलने की कोशिश करते हुए सीस्यते हुए चुस्वा रही थी. बारी-बारी से दोनो चुचियों को मसालते चुस्ते हुए उसने दोनो चुचियों को चूस-चूस कर लाल कर दिया. चुचियों पर दाँत गढ़ाते हुए चूस्ते हुए बोला “मा…तू ..ठीक कहती… है…अपने पेड़ के…आम…अफ..पहले क्यों…अभी तक तो पूरा चूस चूस कर…सारा आम-रस पी..” मुन्ना का जोश और चूसने का तरीका शीला देवी को पागल बना रहा था. अपनी छिनाल मामी की दी हुई ट्रैनिंग का पूरा फ़ायदा उठा ते हुए वो शीला देवी की चुचि चूस्ते हुए उसे गरम कर रहा था. वो कभी उसके सिर के बालो को सहलाती कभी उसकी पीठ को कभी उसके चूतरों तक हाथ फेरती बोली “अभी…चूसने को मिला…अच्छे से चूस…बेटा….सारा रस तेरे लिए ही…संभाल…” तभी मुन्ना ने अपने दन्तो को उसकी चुचियों पर गढ़ाते हुए निपल को खींचा तो दर्द से करहती बोली “कु..त्ती…चूसने वाला…आम है,….खाने वाला…उन रंडियों…का होगा..जिनको…उफ़फ्फ़….धीरे से चूस…चूस कर…अफ ..बेटा…निपल को…होंठो के बीच दबा…के…बचपन…में…धीरे से…नही तो छोड़…दे…” इस बात पर मुन्ना ने हस्ते हुए शीला देवी की चूचियों पर से मुँह हटा उसके होंठो को चूम धीरे से कान में बोला “इतने जबर्दर्स्त…आम पहले नही चखाए उसी की सज़ा…” शीला देवी भी मुस्कुराती हुई धीरे से बोली “कमीना…गंदा लरका…”

“गंदी औरत…कम…” बोलते बोलते मुन्ना रुक गया. शीला देवी की मुस्कान और चौड़ी हो गई. दोनो हाथो में बेटे के चेहरे को भरती हुई उसके होंठो और गालो को बेतहाशा चूमती हुई उसके गाल पर अपने दाँत गढ़ा दिए, मुन्ना सीस्या कर कराह उठा. हस्ती हुई बोली “कैसा लगा…गंदी औरत बोलता है…खुद अपनी मा के साथ गंदा काम…”. मुन्ना ने भी अपना गाल छुड़ा कर उसके गाल पर दाँत सेकाट लिया और बोला “तू भी तो अपने बेटे के साथ…”. दोनो अब बेशरम हो चुके थे. झिझक दूर हो चुकी थी. मुन्ना अपने हाथ को चुचियों पर से हटा नीचे जाँघो पर ले गया और टटोलते हुए अपने हाथ को जाँघो के बीच डाल दिया. चूत पर पेटिकोट के उपर से हाथ लगते ही शीला देवी ने अपनी जाँघो को भींचा तो मुन्ना ने ज़बरदस्ती अपनी पूरी हथेली जाँघो के बीच घुसा दी और चूत को मुठ्ठी में भर, पकड़ कर मसल्ते हुए बोला “अपना बिल दिखा ना…” पूरी चूत को मसले जाने पर कसमसा गई शीला देवी, फुसफुसती हुई बोली

“तू…आम…चूस…मेरी ..छेद…देखेगा तो मादर…चोद…बन…” मुन्ना समझ गया की गंदी बाते करने में मा को मज़ा आ रहा है.

“डंडा डालूँगा…. तभी….मादर..चोद बनूंगा…अभी खाली दिखा….” कहते हुए चूत को पेटिकोट के उपर से और ज़ोर से मसलते उसकी पुट्तियों को चुटकी में पकड़ ज़ोर से मसला.

“हाई…हरामी मेरी…बिल… में डंडा…घुसा…एगा.” जोश में आ उसके गालो को अपने दन्तो में भर लिया और अपने हाथ को सरका कमर के पास ले जाती लूँगी के भीतर हाथ घुसाने की कोशिश की. हाथ नही घुसा मगर मुन्ना की दोनो अंडकोष उसकी हथेली में आ गये. ज़ोर से उसी को दबा दिया, मुन्ना दर्द से कराह उठा. कराहते हुए बोला “उखडीगी,…क्या…चाहिए…”

शीला देवी ने जल्दी से अंडकोष पर पकड़ ढीली की “हथियार…दिखा..”

“थोड़ा उपर नही पकड़ सकती थी….पेड़ पर तो सब देख लिया था…”

“पेड़ पर… तो तूने भी….देखा…”

“तुझे पता…था…जान-बूझ कर दिखा…” कहते हुए शीला देवी का हाथ पकड़ अपनी लूँगी के भीतर घुसा दिया. खड़े लंड पर हाथ पड़ते ही उसका बदन सिहर गया. गरम लोहे की छड़ की तरह तपते हुए लंड को मुठ्ठी में कसते ही लगा जैसे चूत ने एक बूँद पानी टपका दिया. लंड को हथेली में कस कर जाकड़ मरोर्ति हुई बोली “गधे का…उखाड़ कर लगा लिया…”

“है तो…तेरे बेटे का…मगर…गधे के…जैसा..” बोलते हुए चूत की दरार में पेटिकोट के उपर से उंगली चलाते हुए बोला “पानी…फेंक रही है…”

“मादर..चोद बने..एगा…क्या..”

“तू…रंडी…बन..ना”

“हा….अब रहा नही जा रहा…”

“नंगी कर…दू…”

“हा….और तू भी…” झट से बैठ ते हुए अपनी लूँगी खोल एक तरफ फेंका तो उसका दस इंच का तम्तमता हुआ लंड कमरे की रोशनी में शीला देवी की आँखों को चौंधिया गया. उठ कर बैठ ते हुए हाथ बढ़ा उसके लंड को फिर से पकड़ लिया और चमड़ी खींच उसके पहाड़ी आलू जैसे लाल सुपरे को देखती बोली “हाई…आया ठीक बोलती…तू बहुत बड़ा….हो गया है…तेरा…केला तो….च्छेद…फाड़”
पेटिकोट के नारे को हाथ में पकड़ झटके के साथ खोलते हुए बोला “फर..वाएगी….”

“हाई…मेरा….छेद…फार…”

कहती हुई शीला देवी ने अपनी गांद उठा पेटिकोट को गांद के नीचे से सरकाते हुए निकाल दिया. इस काम में मुन्ना ने भी उसकी मदद की और सरसरते हुए पेटिकोट को उसके पैरों से खींच दिया. शीला देवी लेट गई और अपनी दोनो टांगो को घुटनों के पास से मोड़ कर फैला दिया. दोनो मा बेटे अब असीम उत्तेजना का शिकार हो चुके थे दोनो में से कोई भी अब रुकना नही चाहता था. शीला देवी की चमचमाती जाँघो को अपने हाथ से पकड़ थोड़ा और फैलाता हुआ उनके उपर अपना मुँह लगा चूमते हुए दाँत से काट ते उसकी झांतदार चूत के उपर एक जोरदार चुम्मा लिया और बित्ते भर की बूर की दरार में जीभ चलाते हुए बूर की टीट को झांतो सहित मुँह में भर कर खींचा तो शीला देवी लहरा गई. चूत की दोनो पुट्तियों ने दूप-दुपते हुए अपने मुँह खोल दिए. सीस्यति हुई बोली “इसस्स…..क्या कर रहा है…” कभी चूत चटवाया नही था. दरार में जीभ चलाने पर मज़ा तो आया था मगर लंड, बूर में लेने की जल्दी थी. जल्दी से मुन्ना के सिर को पिछे धकेल्ति बोली “….क्या…करता…है…जल्दी से चढ़….”.

पनियाई चूत की दरार पर उंगली चला उसका पानी लेकर, लंड की चमरी खींच, सुपरे की मंडी पर लगा कर चमचमते सुपरे को शीला देवी को दिखता बोला “मा…देख मेरा…डंडा…तेरी छेद…में…”

“हा…जल्दी से….मेरी छेद में…. ” . लंड के सुपरे को चूत के छेद पर लगा पूरी दरार पर उपर से नीचे तक चला बूर के होंठो पर लंड रगड़ते हुए बोला “हां पेल दू…पूरा…”

“हा….मादर…चोद बन जा…”

“हाई…छेद…फाड़ दूँगा…रंडी…”

“बक्चोदि छोड़…फड़वाने के….लिए तो….खोल के…नीचे लेटी….जल्दी कर…” वासना के अतिरेक से काँपति आवाज़ में शीला देवी बोली. लंड के लाल सुपरे को चूत के गुलाबी झांतदार छेद पर लगा मुन्ना ने कच से धक्का मारा. सुपरा सहित चार इंच लंड चूत की कसमसाती छेद की दीवारों को कुचालता हुआ घुस गया. हाथ आगे बढ़ा मुन्ना के सिर को बालो में हाथ फेरती हुई उसको अपने से चिपका भर्रई आवाज़ में बोली ” पूरा…डाल दे…बेटा…चढ़ जा”. मुन्ना ने अपनी कमर को थोड़ा उपर खींचते हुए फिर से अपने लंड को सुपरे तक बाहर निकाल धक्का मारा. इस बार का धक्का ज़ोर दार था. शीला देवी की गांद फट गई. इतने दीनो से उसने लंड नही खाया था उसके कारण उसकी चूत का छेद सिकुर कर टाइट हो गया था. चूत के अंदर जब तीन इंच मोटा और दस इंच लंबा लंड जड़ तक घुसाने की कोशिश कर रहा था तो चूत छिलगई और दर्द की एक तेज लहर ने उसको कंपा दिया. “आआ….धीरे….फट….उई..माआआआआआ….” करते हुए अपने होंठो को भींच दर्द को पीने की कोशिश करते हुए अपने हाथो के नाख़ून मुन्ना की पीठ में गढ़ा दिए.

“बहुत….टाइट…है…तेरा…छेद…” चूत के पानी में फिसलता हुआ पूरा लंड उसकी चूत के जड़ तक उतार ता चला गया.

“बहुत बड़ा…है..तेरा…केला…उफ़फ्फ़….मेरे…आम चूस्ते हुए….डाल” मुन्ना ने एक चूची को अपनी मुट्ठी में जाकड़ मसालते हुए दूसरी चुचि पर मुँह लगा कर चूस्ते हुए धीरे धीरे एक चौथाई लंड खींच कर धक्के लगाते पुचछा

“पेलवाती… नही… थी…”

“नही….किस से पेलवाती…”

“क्यों…चौधरी….”


“उसका अब…खड़ा…नही…”

“दूसरा…कोई…”

“हरामी….कुत्ते….तुझे अच्छा…लगेगा…मैं दूसरे से….यही चाहता है…तेरी मा…” गुस्से से चूतर पर मुक्का मारती हुई बोली.

“बात तो सुन लिया कर पूरी…सीधा गाली…देने…” झल्लाते हुए मुन्ना चार पाँच तगड़े धक्के लगाता हुआ बोला. तगड़े धक्को ने शीला देवी को पूरा हिला दिया. चुचियाँ थल-थॅला गई. मोटी जाँघो में दल्कन पैदा हो गई. थोड़ा दर्द हुआ मगर मज़ा भी आया क्योंकि चूत पूरी तरह से पनिया गई थी और लंड गछ गछ फिसलता हुआ अंदर-बाहर हुआ था. अपने पैरों को मुन्ना के कमर से लपेट उसको भींचती सीस्यति हुई “उफ़फ्फ़…सी…हरामी…दुखा…दिया…आराम..से..भी बोल सकता…था…” मुन्ना कुच्छ नही बोला, लंड अब चुकी आराम से फिसलता हुआ अंदर-बाहर हो रहा था इसलिए वो अपनी मा की टाइट गद्देदार रसीली चूत का रस अपने लंड के पीपे से चूस्ते हुए गाचा-गछ धक्के लगा रहा था. शीला देवी को भी अब पूरा मज़ा आ रहा था, लंड सीधा उसकी चूत के आख़िरी किनारे तक पहुच कर ठोकर मार रहा था. धीरे धीरे गांद उचकाते हुए सीस्यति हुई बोली “बोल ना…तो जो बोल…रहा…”

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1 Comment

  1. Gullu Pandit

    Likhavat bahut badhiya hei. Man bhi bhar diya aur land bhi tan diya.

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