Fantasy मोहिनी

परिणामस्वरूप पुलिस ऑफिसर को अपने रिवाल्वर का रुख कल्पना की तरफ करना पड़ा। हरि आनंद आँखें फाड़े धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। उसकी रफ्तार बहुत धीमी थी। एकाएक हरि आनंद किसी चीज से टकराकर गिरा। हालाँकि उसके सामने कोई वस्तु नहीं थी। मुड़कर उसने कल्पना की तरफ देखा। कल्पना की आँखें सुर्ख थीं। पंडित हरि आनंद ने तेजी से उठकर जमीन पर बेतहाशा ठोकरें मारनी शुरू कर दी और पागलों की तरह जोर-जोर से कोई जाप पढ़ने लगा।

“यह आदमी गलत मालूम होता है।” एक कांस्टेबल ने इंस्पेक्टर के कान में कहा।

“चुप रहो! क्या तुमने उसे दरवाजा खोलते नहीं देखा था ?”

हरि आनंद जब उठकर खड़ा हुआ तो कल्पना तड़प रही थी और मचल रही थी जैसे कोई शक्ति उसे यातना दे रही हो। हरि आनंद के चेहरे पर मुस्कराहट छा गयी लेकिन कल्पना एक क्षण में संभल गयी और हरि आनंद, जो मेरे निकट आ गया था। उलटे कदमों वापस हट गया।

“यह क्या हो रहा है महाराज ?” पुलिस इंस्पेक्टर ने झुँझलाकर पूछा।

“कुछ नहीं। यह नारी एक महान् पंडित से उलझ रही है। इसे नहीं मालूम कि यह आग से खेल रही है। तुम देखते रहो।” हरि आनंद यह कहकर जमीन पर गिर गया और माथे से जमीन रगड़ने लगा।

इंस्पेक्टर ने कुछ न समझने वाले अंदाज में कल्पना की तरफ देखा। कल्पना का ध्यान हरि आनंद की तरफ था। एकाएक उसकी कल्पना में तनाव पैदा हुआ और वह भी फुर्ती के साथ जमीन पर उकड़ू बैठ गयी। अचानक कमरे में गरज पैदा हो गयी और ऐसा महसूस हुआ जैसे दरो-दीवार काँपने लगे हों। पुलिस दहशत से पीछे हट गयी। हरि आनंद अपने जाप में व्यस्त था जब उसने सिर उठाया तो उसका चेहरा गजबनाक हो रहा था। सारा कमरा चीखों से गूँजने लगा। हरि आनंद के चेहरे पर एक रंग आता और रुक जाता था। उसके माथे पर पसीने के कतरे चमकने लगे। थोड़ी देर में कमरे में चंद पुलिस वाले, मैं, हरि आनंद और कल्पना मौजूद थे। बाकी सब भाग गए थे। मुझे भय था कि कहीं कल्पना नाकाम न हो जाए। आज हरि आनंद हर वार करेगा। अपने कमान का हर तरकश आजमाएगा। नाजुक कल्पना कब तक काली के सेवक का मुकाबला करेगी ?

समय बीत रहा था। कमरे में भयानक किस्म की आवाजें गूँज रही थीं। मेरे कदम काँपने लगे थे और दिल डोल रहा था। मैं अपनी जगह से जुम्बिश भी नहीं कर सकता था। खाँस और खँखार भी नहीं सकता था। कमरे में शोरगुल की आवाजें देर तक गूँजती रहीं।

“हरि आनंद!” कल्पना की आवाज शोर में गूँजी। “मुझे मजबूर न करो कि मैं काली की रक्षा में आए सेवक को नष्ट कर दूँ। यह जाप बंद कर दो। काली देख रही है। वह निश्चय ही मुझे क्षमा कर देगी। वह देख रही है कि तुम गलत कर रहे हो। मैं तुमसे आखिरी बार कह रही हूँ कि इन जापों को बंद करो। मैं यहाँ से किसी भी समय जा सकती हूँ। मैं पहले ही चली जाती लेकिन तुम्हें यह बताना जरूरी था कि अब कुँवर राज का ख्याल तुम्हें छोड़ देना चाहिए। उसके साथ देवी के सेवक मौजूद हैं।”

कल्पना की आवाज में न जाने कहाँ से इतनी शक्ति आ गयी थी कि वह भयानक शोर भी इस आवाज में दब गया था। जब वह खामोश हो गयी तो हरि आनंद ने एक छत उड़ा देने वाला कहकहा लगाया।

“पाँच मर गए हैं। अब सिर्फ तेरह बाकी हैं।”

“वह पाँच मरे नहीं हैं। उन्हें हटा लिया गया है। तेरह पर्याप्त हैं।” कल्पना ने छत की तरफ घूरकर कहा। “क्या मैं उन पाँचों को दुबारा बुलाऊँ ? तुम्हारे पास तो तीस हैं, मगर वह इन पर भारी हैं।”

“मैं और बुला सकता हूँ।”

“तुम्हें शर्मिंदगी होगी।”

“मैं आज फैसला करना चाहता हूँ।”

“फैसले का समय अभी नहीं आया। फैसला भी शीघ्र हो जाएगा। समय कम रह गया है। मैं जा रही हूँ। मेरी यहाँ उपस्थिति आवश्यक नहीं और सुनो। वह भी मेरे साथ है।” कल्पना ने मेरी तरफ संकेत किया।

“मैंने इनकी संख्या बढ़ा दी है। तुम उसे यहाँ से नहीं ले जा सकती। उसके साथ न्याय होगा।”

“क्या तुम गिनती कर सकते हो। लो देखो!” कल्पना की आवाज गूँजी।

हरि आनंद ने आँखें फाड़-फाड़कर चारों तरफ देखा। चीख-पुकार और तेज हो गयी थी। उसी क्षण कमरे में लोबान की सुगंध महकने लगी और लोबान के धुएँ ने सारे कमरे को जकड़ सा लिया। वह धुआँ इतना बढ़ा कि सामने की चीजें नजरों से ओझल होने लगी। हरि आनंद, कल्पना, पुलिस वाले सब के सब धुएँ में अट गए। उसके अलावा कई किस्म की सुगंध भी कमरे में महकने लगी। चारों तरफ कानों के परदे झनझना देने वाला शोर गूँज रहा था। ऐसे समय कल्पना का स्वर मेरे कानों में पड़ा।

“राज अब तुम इस खिड़की के पास से हट जाओ। ख्याल रहे, तुम्हारा शरीर इनमें से किसी के शरीर से न टकराए!”

मैंने उसके निर्देशानुसार और अपने अनुमान के अनुसार कमरे के पश्चिमी कोने की तरफ धीरे-धीरे खिसकना शुरू किया। अभी मैं खिड़की के पास से हटा ही था कि हरि आनंद की आवाज गूँजी।

“दुष्टों! वह जा रहा है। वह उसे ले जा रही है। फिर वह तुम्हारे हाथ नहीं आएगा। तुम उसे फिर खो रहे हो। गोलियाँ चलाओ।”

“तुम्हारा इस शहर में रहना उचित नहीं है राज! अपनी आँखें बंद कर लो।” मैंने कल्पना के इस आदेश का पालन किया और आँखें बंद कर लीं।

कमरे में अंधाधुन फायरिंग हो रही थी। हरि आनंद चीख रहा था – “हर तरफ निशाना बाँधो।”

आँखें मीचे ही मुझे यूँ लगा जैसे मेरे पाँव हवा में उठ गए हों। हवा की सनसनाहट और लोगों की चीख-पुकार मेरी चेतना से टकरा रही थी। धीरे-धीरे वह आवाजें दूर होती गईं और मेरी चेतना भी लुप्त होने लगी। पता नहीं कितनी देर गुजरी, कितने दिन गुजरे ?
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,कितनी सदियाँ गुज़र गयी। यह वक्त मेरी ज़िंदगी में शामिल नहीं होगा। जब मुझे अपने ज़िंदा होने का अहसास हुआ था।

दूर-दूर तक आदमी का नामोनिशान न था। वह एक हरी-भरी वादी थी। मैंने चारों तरफ़ दृष्टि घुमाकर देखा। मेरी पीठ की तरफ़ कल्पना मौजूद थी। जैसे चित्रकार की कल्पना, परी पैकर जिस्म, वह सराया हरी साड़ी में खिली जा रही थी। उसका दूधिया बदन मेरी नज़रों में चकाचौंध पैदा कर रहा था। उस समय वह बड़ी मासूम और भोली-भाली नज़र आ रही थी। मैंने उसका मुस्कराता हुआ चेहरा देखा तो ज़िंदगी के सारे ग़म भूल गया। अगर कल्पना थी तो ग़म कोई चीज़ नहीं था। कल्पना के होंठों पर एक अजीब सी मुस्कराहट फैली हुई थी।

“तुम एक बड़ी मुसीबत में फँस गए थे।” आख़िर उसने मौन तोड़ा।

“हाँ, अगर तुम न आती और मेरी मदद न करती तो मैं कहीं का न रहता। मैं तुम्हारा अहसानमंद हूँ।

“मगर कल्पना देवी! तुम तो आश्चर्यजनक शक्तियों की स्वामी हो। तुमने अभी मुझे अपने बारे में नहीं बताया। आख़िर तुम हो कौन और कैसे मेरी मदद को आ जाती हो ?”

“मैं एक दासी हूँ। मुझे आज्ञा मिली थी और मैं उपस्थित हो गयी।”

“कुलवंत ने कहा था। मुझे लगता है तुम कुलवंत का ही कोई रूप हो। कुलवंत ने मुझसे कहा था कि तुम इसी तरह की ख़तरनाक परिस्थितियों में मेरी मदद करोगी।”

वह शरमा सी गयी। “मैं कौन हूँ, यह बात छोड़ दो! बहुत सी बात पूछी नहीं जाती।”

“जी चाहता है तुम हमेशा पास रहो। और तुमने ही तो कहा था कि तुम मुझे सदियों से जानती हो। हमारा प्रेम सदियों पुराना है।”

वह मेरी बातों को मुस्कराकर टालती हुई बोली- “मैं जा रही हूँ, तुम ऐसे गंभीर मामले में न पड़ा करो। तुम्हारे दुश्मन बहुत हैं।”

“तुम कहाँ जा रही हो ? तुम मेरे साथ क्यों नहीं चलती ?”

“मेरा काम समाप्त हो चुका है। मैं तुमसे मिलती रहूँगी। यह मेरा वचन है।”

“मैं तुम्हारे अहसान सारी ज़िंदगी नहीं उतार सकता।”

“इसकी आवश्यकता नहीं है, मैं चाहती हूँ कि तुम सदा सुखी रहो।”

“तुम्हारी बातों से कुलवंत की ख़ुशबू आती है। कहीं तुम कुलवंत ही तो नहीं हो ? मुझे बताओ कि तुम कौन हो ?”

मगर मुझे इसका कोई उत्तर नहीं मिला। वह क्षणों में ग़ायब हो गयी। मैं उससे मोहिनी के बारे में भी पूछना चाहता था लेकिन वह किसी छलावे की तरह वायुमंडल में अदृश्य हो गयी।

मैं देर तक गुमसुम बैठा रहा फिर आख़िर थके हुए अंदाज़ में उठा।

मेरे सामने एक पगडंडी थी। मैंने ऊपर निगाह की और घुमावदार रास्ते पर आगे बढ़ने लगा। मुझे अहसास हुआ कि मैं बुढ़ा हो गया हूँ, मैं थक गया हूँ। मैं कहीं भी गिर पड़ूँगा। मैं कब तक ज़िंदा रहूँगा, पता नहीं कब आत्मा का नाज़ुक भार मेरे मिट्टी के जिस्म से जुड़ा रहेगा।

मैं ऊपर चढ़ने लगा।

दुनिया में एक ही जगह मेरे लिए सबसे सुरक्षित जगह थी। ऊपर के रास्तों पर चलते हुए मैं कई बार फिसल पड़ा। बारिश हो चुकी थी परंतु फिसलन बाकी थी। सारा क्षेत्र हरी थाली से ढका हुआ था। मस्तिष्क परेशान था और अशर्फी बेगम वाली घटना बार-बार याद आ जाती थी।

संभलता-संभलता मैं झरने के क़रीब पहुँच गया। झरने की आवाज़ से बेअख्तियार माला याद आने लगी। बहुत जब्त किया लेकिन मगर दिल काबू न रहा। आँखें जलने लगी। एक क्षण रुककर मैंने झरने से पानी लिया और दो चुल्लू अपने मुँह पर डाल लिए। मेरे आँसू पानी में बह गए।

यह वह झरना था जहाँ मैंने सबसे पहले माला को देखा था। फिर मैं उस पहाड़ी पर चढ़ने लगा जहाँ कुलवंत की कुटी थी। यह मैसूर की वही पहाड़ी थी। मेरे लिए एक जानी-पहचानी जगह। एक ऐसी जगह जहाँ मैं सुरक्षित रह सकता था।

कुलंवत के सामने मैं अपनी ज़िंदगी के दुखड़ों को लेकर बहुत रोया, किसी बेसहारा बच्चे की तरह। मेरे जीवन में कितने दुःख, कितनी आँधियाँ थीं कि मैं जहाँ भी जाता चैन न मिलता।

मोहिनी अब तक मेरे पास लौटकर नहीं आई थी। और कुलवंत के पास दिलासाओं के सिवाय था भी क्या। हरि आनन्द की बात छिड़ती तो मेरे सीने में नश्तर चलने लगते।

वह ज़िंदा था, मैं ज़िंदा था। जबकि होना यह चाहिए था कि हम दोनों में से किसी एक को ज़िंदा रहना चाहिए था।

तरन्नुम कुलवंत के पास ही थी। वह मेरी सेवा करती रहती। मैंने उसे नहीं बताया था कि अशर्फी बेगम अब इस दुनिया में नहीं रही। कुलवंत ने मुझे यह बताने से रोक दिया।

तरन्नुम एक भोली-भाली लड़की थी। वह लखनऊ के लोगों के बारे में पूछती और बच्चों की तरह मेरे सामने मचल-मचल जाती।

इसी तरह कुटी में दिन बीतते जा रहे थे। कुलवंत की इच्छा थी कि मैं कहीं विदेश चला जाऊँ। क्योंकि हिन्दुस्तान के हर शहर में मेरे लिए ख़तरा है। पुलिस चारों तरफ मुझे तलाश कर रही है। अखबारों में मेरे बारे में तरह-तरह की चर्चा हो रही है।

सात दिन बाद जब मैं झरने की पारदर्शी स्वच्छ जल में स्नान कर रहा था तो अचानक मोहिनी मेरे सिर पर आ गयी।उसकी आँखें जल रही थी जैसे वह एक लम्बे समय से न सोयी हो। चेहरे पर आतंक बरस रहा था और वह एकदम मुर्दा सी मालूम होती थी। मुझे उस पर बहुत क्रोध था लेकिन उसकी हालत देखकर मैंने नरमी से पूछा- “तुम इतने दिनों कहाँ रही ?”

“मुझे मालूम हो गया था कि तुम कुशलतापूर्वक कुलवंत के पास पहुँच गए हो तो इसलिए यहाँ रुक गयी।” मोहिनी ने उदासी से कहा।

“याद है उस दिन मैंने कितनी आवाजें दी थीं ? उस दिन तुमने मुझे तबाह करके रख दिया था। उस दिन की कल्पना करके मेरा रोम-रोम सिहर उठता है।”

“मुझे अहसास है राज लेकिन मैं जल्दी में हरी आनन्द को भूल गयी थी। चाहे थोड़े समय के लिए सही पर उसने मेरा रास्ता बंद कर दिया था। यक़ीन करो राज, मैं मजबूर थी। मैं क्या करती ?”

“मुझे सबकुछ मालूम हो चुका है मोहिनी। तुम एक पंडित के जाप में बँध गयी। हर बार तुम्हारे सामने कोई न कोई ऐसी विवशता आ जाती है। मेरी समझ में नहीं आता कि एक साधारण सा पंडित कैसे तुम्हारा रास्ता रोक सकता है। कोई भी तुम्हें प्राप्त कर सकता है। तुम्हारी इन मजबूरियों ने तो मेरा जीना हराम कर रखा है।”

“राज!” मोहिनी का स्वर दर्द में डूबा था। “आश्चर्य की बात है कि तुम मेरे बारे में ऐसी बातें कर रहे हो। मैं तुम्हारे लिए मारी-मारी फिरती रही। अब तुम मेरी मजबूरियों का उपहास उड़ा रहे हो। जबकि तुम्हें मालूम है कि मैं क्या हूँ। तुम्हें क्या मालूम कि उसने क्या जाप किया था।”

“जाप किया था ?” मैंने बिगड़कर कहा। “क्या तुम्हारे पास उसका तोड़ नहीं था ? कल्पना कैसे अंदर प्रविष्ट हो गयी थी ? तुम तो कभी-कभी बहुत मायूस करती हो।”

“कल्पना और मुझमें अंतर है। लेकिन छोड़ो, मैं तुमसे लड़ना नहीं चाहती। तुम मेरी कुशलता के बारे में भी नहीं पूछ रहे हो। मुझ पर क्या गुजरी, यह भी तुमने नहीं पूछा।” मोहिनी ने डूबते स्वर में कहा।

“क्या तुम उसे एक साधारण घटना समझती हो ?”

“इस घटना की संगीनी की वजह से मैं तुमसे इतनी दूर रही। सारा शहर तुम्हारी फ़िक्र में है। तुम्हारे संबंध में अजीबो-ग़रीब अफवाहें उड़ रही हैं। पुलिस ने कई बार तुम्हारे चाचा के घर की तलाशी ली। तुम्हारे अचानक ग़ायब होने से शहर भर में हंगामा मचा हुआ है।

“जब मैं तुमसे दूर होकर बब्बन अली के तलाश में गयी थी तो वह अपने घर पहुँचने में सफल हो चुका था। उसने जेवरात, काग़ज़ात और नकदी अपनी बहनों के हवाले कर दिए थे। मैंने उस घर में दाख़िल होने की कोशिश की थी लेकिन उसी जिन्न ने मेरा रास्ता रोक लिया था जो तुम्हारे आड़े आया था।”

मोहिनी कुछ रुककर बोली।

“बब्बन अली अपने घर में सुरक्षित हो गया था और सारा आरोप तुम पर लगाया जा रहा था। बाला खाने की लड़कियों ने तुम्हारे ख़िलाफ़ बयान दिए थे।

“मैं कभी अशर्फी बेगम के बाला खाने पर जाती थी तो कभी नवाब के घर। मेरे लिए दोनों घर बंद हो चुके थे। फिर जब मुझे यह मालूम हुआ कि तुम कल्पना की सुरक्षा में हो तो मैं बब्बन अली के घर के क़रीब धरना देकर बैठ गयी और मैंने एक पुलिस ऑफ़िसर के सिर पर जाकर बब्बन अली को गिरफ़्तार करा दिया।

“अच्छा, बब्बन अली गिरफ़्तार हो गया ? फिर क्या हुआ ?”

“फिर क्या हुआ ? अब तुम कैसे मचल रहे हो ? तुम बड़े स्वार्थी हो।”

“मेरी जान! नाराज़ हो गयी ? मज़ाक बाद में करना। जल्दी से बताओ फिर क्या हुआ ?” मैंने मोहिनी से प्यार भरे स्वर में कहा।

“ठीक है! तुम्हें तो मेरा कोई ख़्याल ही नहीं। कितने दिन हो गए। मैं भूखी हूँ। तुमने मुझे पूछा तक नहीं।” मोहिनी ने इठलाकर कहा।

“मैं तुम्हारा इंतज़ाम अभी करता हूँ। यह मेरा सिर हाज़िर है। इस जगह तुमने पहले भी मेरा खून पिया था। मगर मुझे तड़काओ नहीं, बताओ आगे क्या हुआ ?”

“आगे क्या होता ? बब्बन अली गिरफ़्तार हो गया। लाशों के निरीक्षण से पता चला कि बब्बन ने कत्ल नहीं किया है। लेकिन उसके भागने और अशर्फ़ी बेगम से उसके रहस्यमय संबंधों ने मामले को पेचीदा बनाने में मदद की।

“अब उन्हें तुम्हारी तलाश है। दिलनशीं ने तुम्हारे ख़िलाफ़ बहुत ज़हर उगला है। पुलिस तुम्हारे नाम से बहुत भयभीत है। हरि आनन्द भी ग़ायब हो गया है। पुलिस उसकी भी तलाश में है।”

“इसका मतलब यह हुआ कि बब्बन अली के बचने की संभावनाएँ अधिक हैं ?”

“न सिर्फ़ बचने की बल्कि काग़ज़ात भी उसकी बहनों के पास है जिन्हें जिनकी शरण प्राप्त है। मैंने घर में घुसने की बहुतेरी कोशिश की लेकिन सफल न हो सकी। उधर चचा के घर पर पुलिस ने मुसीबत खड़ी कर दी थी। इसलिए मेरा वहाँ होना ज़रूरी था। वे सब लोग परेशान ज़रूर हैं लेकिन कुशलता से हैं।”

“तुम बब्बन अली के सिर पर क्यों नहीं गयी ?”

“उससे कोई लाभ नहीं था। मुझे यहाँ आना था। मैं कब तक सिर पर रहती ?” “तुम बब्बन अली के सिर पर क्यों नहीं गयी ?”

“उससे कोई लाभ नहीं था। मुझे यहाँ आना था। मैं कब तक सिर पर रहती ?”

“लेकिन वह मेरे संबंध में पुलिस को हैरतअंगेज बातें बता रहा होगा।”

“मगर अब तुम वहाँ क्यों जाओगे ? लखनऊ तुमसे छूट गया।”

“और चचा भी छूट गए ? घर भी छूट गया ? वह क्या सोचते होंगे ?”

“तुम उन्हें कहीं भी बुला सकते हो। तुम्हारे पास कमी किस बात की है। यह बताओ कि तुम यहाँ कैसी ज़िंदगी व्यतीत कर रहे हो ?”

“बस वक्त काट रहा हूँ। वक्त काटते नहीं कटता था। तुम बहुत याद आती थी। तुमसे बात करने की आदत जो पड़ गयी थी।”

“मोहिनी के आने से मन बहुत बहल गया था। शाम तक उससे बातें करता रहा फिर जब कुलवंत की कुटिया में दाख़िल हुआ तो मोहिनी मेरे सिर से उतर गयी और भोजन के प्रबंध में रात भर के लिए चली गयी।

दूसरी सुबह मैंने इरादा कर लिया कि मैं कुलवंत की हिदायत पर लंदन रवाना हो जाऊँगा।

मोहिनी पौ फटते ही वापस आ गयी थी और सुर्ख नज़र आ रही थी। निश्चय ही उसने रात भर छक कर इंसानी खून पिया था। यही मोहिनी का भोजन था।

तरन्नुम ने बहुत ज़िद की कि वह मेरे साथ चलेगी लेकिन कुलवंत ने उसे रोक दिया।

तीसरे दिन मैं तरन्नुम को रोता हुआ और कुलवंत को सोगबार छोड़कर मैं बम्बई के लिए रवाना हो गया।

मैंने रात को सफ़र करना उचित समझा। मोहिनी मेरे सिर पर थी इसलिए मुझे कोई विशेष चिंता नहीं थी। मेरे पास कोई सामान नहीं था।

एक अर्से बाद मैं बम्बई आया था। यहाँ आकर मैं एक फाइव स्टार होटल में ठहरा।

मोहिनी की उपस्थिति में रुपये की कोई चिंता नहीं थी। बम्बई पहुँचकर चंद घंटों में ख़ासी रक़म प्राप्त हो गयी। पासपोर्ट और वीजा जरा कठिन था। किंतु मोहिनी ने यह काम भी आसान कर दिया। उसने होटल में ही एक पासपोर्ट एजेंट को मेरे पास भेज दिया।

मैं बम्बई में केवल रात के समय होटल से निकलता था। वह भी होटल की गाड़ी में।

होटल में मेरा नाम अमित दर्ज था। पासपोर्ट एजेंट ने भारी रक़म लेकर केवल दो दिन में मेरा काम कर दिया। मुझे भला रुपये की क्या चिंता थी। अब मोहिनी मेरे पास थी तो दौलत भी थी।

मुझे ख़्याल था कि बम्बई की पुलिस भी निश्चित ही मेरे संबंध में सतर्क होगी इसलिए मैंने हर संभव सावधानी बरती। मैंने दाढ़ी बढ़ा ली और अपने फोटो के लिए खासा हुलिया बदला।

बम्बई से मेरी हंगामाखेज ज़िंदगी का पुराना संबंध जुड़ा था। बाज़ पुलिस ऑफ़िसरों के लिए मेरा चेहरा और नाम क्या नहीं था। वहाँ एक जमाने में मेरा कारोबार, मेरा घर और बहुत कुछ मौजूद था।

मैं उन सड़कों से दूर रहा जहाँ किसी से मिलने की संभावना थी। मुझे हर ज़रूरत की चीज़ होटल में ही मिल जाती।

तीसरे दिन मैं रात की फ्लाइट से होटल रवाना हो गया। मैंने वह देश छोड़ दिया। वहाँ के लोगों ने मेरे साथ और वहाँ के लोगों के साथ मैंने बहुत कुछ अच्छा व्यवहार नहीं किया था।

जहाज़ में बैठकर मुझे कुछ चैन मिली। हिन्दुस्तानी यात्रियों की संख्या बहुत कम थी। जब मैंने अपनी सीट संभाली तो मोहिनी मेरे सिर पर मौजूद थी और बहुत अच्छे मूड में थी।

यह मेरा पहला हवाई सफ़र था। थोड़ी देर बाद जहाज़ अंधेरे में गुम हो गया और मेरी यादें मुझसे दूर होती गयीं। जब वक्त गुज़र जाता है और वातावरण बदल जाता है तो यादें भी दूर होने लगती हैं।

मोहिनी खामोशी से पायलट के सिर पर बैठ गयी। वह इधर-उधर फुदकती रही। कभी एयर होस्टेज के सिर पर तो कभी किसी यात्री के सिर पर बैठ जाती।

रात ख़ासी गुज़र गयी थी लेकिन सफ़र की यह रात लम्बी थी इसलिए कि लंदन और हिन्दुस्तान के समय में साढ़े पाँच घंटे का अंतर था।

जहाज़ बढ़ता रहा और रात लम्बी होती गयी।

जहाज के लगभग सभी यात्री ऊंघ रहे थे। अलबत्ता कुछ लोग बातों में मग्न थे। वहाँ केवल दो हसीनाएँ थीं। मैंने बाथरूम के बहाने जाकर-जाकर उन्हें अच्छी तरह देखा था। उनसे बात करने को जी चाहता था। उनके निकट एक नौजवान बैठा था। इस जहाज़ में तीन-तीन सीटें एक साथ थीं।

नौजवान को उठाने के लिए मुझे मोहिनी की सहायता लेनी पड़ी। वह उसके सिर पर गयी और नौजवान अपनी सीट से उठकर मेरे पास आया और मुझसे मेरे सीट पर बैठने की अनुमति माँगी। मैंने ख़ुशी से अनुमति दे दी और स्वयं आकर उसकी सीट पर बैठ आ गया।

थोड़ी देर बाद मोहिनी उसे बेतहाशा शराब के नशे में धुत्त छोड़कर मेरे पास आ गयी। इस अरसे से में मैंने अपने निकट बैठी हसीन लड़की से संबंध बना लिया था।
उसका नाम सारा था।

चुस्ट स्कर्ट में कसा हुआ उसका बदन अपने तमाम उभारों के साथ चमक रहा था। किंतु वह कुछ गंभीर प्रकृति की लड़की थी। अतः बात आगे बढ़ाने के लिए ख़ासी मुश्किल पेश आई।

बाद में मोहिनी ने मुझे बताया कि वह किसी अंग्रेज़ लार्ड की घमंडी बेटी है जो हिन्दुस्तान और पूर्वी देशों की सैर करके वापस अपने वतन जा रही है।

उसे प्रभावित करने के लिए मैंने मोहिनी से पूछकर उसके बाप का नाम बताया तो वह आश्चर्य में पड़ गयी।

मैंने अपना प्रभाव जमाने के लिए कहा- “मैं एक बहुत अच्छा पामिस्ट हूँ और दिल की बात बता देता हूँ। लंदन में सुना है बहुत माने हुए प्रोफ़ेसर हैं। उनसे मुलाक़ात करने और कुछ सीखने जा रहा हूँ।

यह चर्चा कुछ ऐसी होती है कि किसी भी व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है।

Pages ( 75 of 105 ): « Prev1 ... 7374 75 7677 ... 105Next »

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply