मैंने अपनी दुःख भरी ज़िन्दगी समाप्त करने के लिये कई बार अपने-आपको खतरे में डाला। किन्तु यहाँ के जानवर भी जैसे प्रेमलाल की आज्ञा के पाबन्द थे। साँप मेरे सामने से गुजर जाते थे, पिस्सू मेरे जिस्म से खेलकर वापस हो जाते थे। कोई जोंक मुझसे नहीं चिपटती थी। मोहिनी मेरे लिये खुराक का प्रबन्ध करती रहती थी। केवल दो माह बाद मैं चलने-फिरने योग्य हो गया, लेकिन बेबसी अब भी मेरा भाग्य थी।
एक रोज तंग आकर मैंने मोहिनी से पूछा। “क्या प्रेमलाल मुझे कभी आज़ाद नहीं करेगा ?”
“राज! काश मैं तुम्हें इस बारें में कुछ बता सकती।” मोहिनी बेबसी से बोली। “हाँ, इतना कह सकती हूँ, अब तुम किसी मूर्खता का प्रदर्शन न करना। तुम देख चुके हो कि इस वादी में सिर्फ और सिर्फ प्रेमलाल का आदेश चलता है। राज, मैं इससे पहले कभी इतनी मजबूर नहीं हुई थी। मुझे क्षमा कर दो। मैं अगर उसकी आज्ञा मानने से इनकार कर देती तो वह मुझे पार्वती के आशीर्वाद से जलाकर राख कर देता। उसे पार्वती ने महान शक्तियाँ दान की हैं। उसने सांसारिक जीवन से किनारा करके देवताओं के दिलों में स्थान बनाया है। प्रेमलाल ने आज तक किसी को हानि नहीं पहुँचायी। उसने एक बड़ी तपस्या करके देवताओं के ज्ञान-ध्यान में मग्न करने के उपरान्त इस स्थान पर अपना आसन जमाया है। मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि वह कोई साधारण पंडित-पुजारी नहीं है। वह प्रेमलाल है।”
“मुझे उससे कोई शिकायत नहीं मोहिनी।” मैंने एक ठण्डी आह भर कर कहा। “मगर अब धर्मात्मा क्या चाहता है ?”
“देखते जाओ। जो कुछ हो रहा है फिलहाल वही तुम्हारे हक में उचित है।”
“उचित है ? तुम भी मेरी बेबसी का मज़ाक क्यों उड़ा रही हो ?”
“क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं रहा राज ? मुझ पर भरोसा रखो। समय का इंतजार करो। यह दिन भी गुजर जायेंगे। इस समय मैं इससे अधिक कुछ नहीं कह सकती। मैं भी तुम्हारी तरह बेबस हूँ।”
चन्द महीने गुजर गए। आश्चर्य की बात है कि इस लम्बे समय में प्रेमलाल एक बार भी कुटिया से बाहर नहीं आया था। मोहिनी ने मुझे अंदर जाने से माने कर दिया था। कुलवन्त दिन में दो-तीन बार बाहर आती, परन्तु वह मुझसे बात नहीं करती थी। उसके चेहरे की गम्भीरता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। कदाचित प्रेमलाल ने कुलवन्त पर भी कुछ बंधन लगा दिये थे। वह मेरे पास गुजरते समय हसरत से मुझे देखती। फिर फुरफुरी सी आ जाती और वह खामोशी से अपने रास्ते पर बढ़ जाती। उसकी आँखों में एक तेज, एक पवित्रता पैदा हो रही थी। माला भी कई बार कुटी से बाहर निकलती थी परन्तु वह मेरी तरफ कोई ध्यान न देती थी जैसे मेरा कोई अस्तिव ही न हो। उसने मेरी बहुत कोशिशों के बावजूद भी मेरी तरफ ध्यान नहीं दिया।
जब मैं इस विचित्र कैद से बहुत परेशान होने लगता और मुझ पर जुनून सवार होने लगता तो मोहिनी मुझे होश में ले आती। प्रेमलाल आखिर क्या चाहता है ? मैं हर समय यही सोचता रहता लेकिन कोई बात मेरे पल्ले न पड़ती। माला और कुलवन्त दोनों और निखर गयी थीं। माला तो साक्षात कयामत हो गयी थी। इसके शाहकार हुस्न ने मुझे इस स्थिति में पहुँचा दिया था। उसके कुटी से बाहर आने पर मेरे दिल में एक कसक पैदा होती। मैं उसकी तरफ विनती भरी दृष्टि से देखता। एक दो बार मैंने उसे सम्बोधित करना चाहा, लेकिन मोहिनी ने मेरे होंठों को जैसे सिल दिया। मैं तिलमिला कर रह जाता। बात करने के लिये ज़ुबान तरस जाती।
इसी तरह दिन गुजर रहे थे। एक रोज सुबह जब मैं जागा तो न जाने क्यों मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे कुछ होने वाला है। उधर मोहिनी की जानी-पहचानी आवाज़ मेरे कानों में गूँजी।
“राज! तुम्हारी चिन्ताओं के दिन अब समाप्त होने वाले हैं।”
मैंने चौंककर मोहिनी की तरफ देखा। वह आज पहले की अपेक्षा कुछ बदली हुई नजर आ रही थी। उसकी खुशी से मुझ में कोई परिवर्तन नहीं आया बल्कि मुझे कुछ झल्लाहट सी हुई। मैं मोहिनी से कोई व्यंग्य भरी बात कहने लगा था कि कुटी के अंदर से माला की सिसकियाँ बुलन्द होनी शुरू हुई। मैं उस दिन के बदले हुए हालात सूंघकर तेजी से उठ खड़ा हुआ। मैंने मोहिनी से माला के रोने का कारण पूछा तो उसने कुटी की तरफ देखकर बुझे हुए स्वर में कहा–
“समय से पहले कोई बात न पूछो। मैं इस समय बेहद उदास हूँ कुछ देर सब्र करो।”
मैं मोहिनी की बात का अर्थ न समझ सका। कुछ ही देर में कुलवन्त कुटी से बाहर आयी और मुझे सम्बोधित करते बोली– “अन्दर चलो राज! महाराज तुम्हें बुला रहे हैं।”
यह क्यों और किस लिये का समय नहीं था। मैं तेजी से उठा और कुलवन्त के पीछे-पीछे कुटिया में प्रविष्ट हो गया। वहाँ की स्थिति बिल्कुल साफ मेरी आँखों के सामने थी। प्रेमलाल चटाई पर पड़ा था। उसके शरीर की हड्डियाँ और भी उभर आयी थीं। उसके चेहरे पर अब वह जलाल न था। प्रेमलाल ने काँपती पलकों की ओर से मुझे देखा और फिर मद्धिम सी आवाज में बोला।
“बालक, मेरे निकट आओ!”
माला उसके सिर पर सिर रखे सिसक रही थी। मैंने फुर्ती से कदम आगे बढ़ाए और प्रेमलाल के निकट जाकर रुका।
“बैठ जाओ।”
मैं बैठ गया। और उसके होंठ फिर हिलने लगे। “मैंने जिस कारण तुम्हें रोका था। आज वह समय आ गया है। मैं आज तुमसे बहुत सी बातें करना चाहता हूँ।”
“महाराज!” मेरा दिल भर आया। “आप रहस्मय शक्तियों के स्वामी हो। मेरी क्या मजाल जो आपकी किसी बात से इनकार करूँ।”मेरा उत्तर सुनकर प्रेमलाल की आँखों में सुर्खी आ गयी। किन्तु वह तुरन्त ही गायब हो गयी। मोहिनी ने मुझ संभलकर बात करने के लिये टहोका दिया। प्रेमलाल के होंठ मुस्कराने लगे। “बालक निराश न हो। मैं जानता हूँ तुम्हारा मन मेरी तरफ से मैला हो गया है परन्तु मैंने तुम्हें जो कष्ट दिया था वह ठीक था। तुम्हें मोहिनी देवी ने बताया होगा कि धरती के किसी मनुष्य को कभी मुझसे कोई शिकायत नहीं रही। मैं मनुष्यों से भाग कर यहाँ चला आया था और ज्ञान-ध्यान में अपना जीवन बिता देना चाहता था। परन्तु यह माला मेरी बच्ची मेरे मध्य आ गयी। इस मूरख ने जब मुझे देखा तो अपने जीवन की तमाम खुशियों से मुँह मोड़कर मेरे चरणों में अपनी जिंदगी बिताने की ठान ली। तुमने इसके शरीर को हाथ लगा कर मुझे दु:ख पहुँचाया था। यह एक देवी की तरह पवित्र नारी है। मेरे ऊपर इसका बड़ा बोझ है। यह आने को तो आ गयी परंतु जो मैं चाहता था वह न बन सकी। अपने मन का मैल दूर कर दो बालक। मैं आज तुम्हें कुछ दान करना चाहता हूँ।”
प्रेमलाल का बदला हुआ व्यवहार और नरम स्वर मेरे लिये आश्चर्यजनक था। वह मेरे प्रति स्नेह भरा व्यवहार कर रहा था। अब मेरा दिल अपने-आप ही उसकी तरफ खिंच रहा था।
“मैं जो कुछ कह रहा हूँ उसे ध्यान से सुनो बालक! मेरे पास समय बहुत कम है और तुम्हारे सामने यह जो माला खड़ी है, वह बहुत सुन्दर नारी है। यह कोई पुजारिन नहीं है। यह एक धनवान बाप की बेटी है। इसका बाप चार साल पहले अपनी एक विनती लेकर इसके साथ मेरे पास आया था। इस मूरख को यह जगह इतनी पसंद आयी कि यह फिर अपने बाप के साथ वापस नहीं गयी। मेरी सेवा की धुन में इसने अपना सब कुछ त्याग दिया। माला रानी पुजारिन बन गयी। मैं इसे एक सच्ची पुजारिन बनाना चाहता था, परंतु मेरी सेवा के सिवा इसे किसी चीज से दिलचस्पी नहीं थी। इसके माता-पिता ने इसे वापस ले जाने की बहुत कोशिश की परन्तु एक बार यहाँ आयी तो फिर कभी वापिस नहीं गयी।”
प्रेमलाल की जुबानी माला की यह दास्तान सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ लेकिन मैंने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। वह कहता रहा–
“मैंने इसे बेटी समान देखा और समझा है। मैं चाहता हूँ कि इसे मेरे बाद कोई कष्ट न हो। मेरी इच्छा है बालक कि तुम इसका हाथ थाम लो। मुझे विश्वास है यह तुम्हारे साथ बड़ी सुखी रहेगी और तुम्हें भी सुखी रखेगी। मेरे जाने के बाद इस पहाड़ी प्रदेश में इसका जी नहीं लगेगा।”
प्रेमलाल के इस प्रस्ताव पर मेरी आँखें आश्चर्य से फैल गयी। मैंने उसे इस तरह देखा जैसे उसकी बात का विश्वास न हो–जैसे अनजाने में अर्ध चेतनावस्था में उसके मुँह से यह बात निकल गयी हो।
“यह आप कह क्या रहे हैं महाराज ?”
“मैं ठीक कह रहा हूँ। माला के भाग्य में यही लिखा है।” प्रेमलाल ने बड़े विश्वास के साथ उत्तर दिया।
“मैं तो महाराज… बहुत बुरा आदमी हूँ। माला के लिये मुझसे अच्छा वर मिल सकता है। आपको मालूम है कि मेरा बीता कल कितना अंधकारमय और भयानक है। आप मेरे साथ…।”
“मुझे सब कुछ मालूम है। माला को तुमसे अच्छा वर मिल सकता है, परन्तु तूने इसके शरीर को हाथ लगा दिया है। अब वह तेरी है किसी और की नहीं हो सकती।” प्रेमलाल ने जैसे अन्तिम निर्णय सुना दिया।
“महाराज…!” मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं प्रेमलाल को क्या उत्तर दूँ ? प्रेमलाल ने अचानक एक विचित्र सी इच्छा जाहिर की थी। कुलवन्त सामने खड़ी थी। वह लड़की जिसने मेरी खातिर अपना सब कुछ कुर्बान कर दिया था। घर-बार, माँ-बाप। वह मेरी मोहब्बत में कहाँ से कहाँ आ गयी थी। मैं उसे कैसे नजरअन्दाज कर देता। उसने मेरे लिये कितने दुःख झेले थे।
मेरी सोचो को देखते हुए प्रेमलाल ने कहा– “किस सोच में डूब गया बालक ? क्या माला रानी को स्वीकार करने में तुझे कोई आपत्ति है ?”
“महाराज…!” मैंने कनखियों से कुलवन्त की ओर देखते हुए कहा। “मैं आपका कैदी हूँ, आप अपनी महान शक्तियों द्वारा मुझे हर बात के लिये मजबूर कर सकते हैं।”
माला को प्राप्त करने का विचार मैं दिल में नहीं ला सकता था। यूँ तो वह खुद एक बहार थी। मैं सपने में भी नहीं सोच सकता था कि यह इतनी आसानी से मुझे प्राप्त हो जाएगी। पर कुलवन्त… कुलवंत भी कम सुन्दर न थी और कुलवंत को हरगिज अनदेखा नहीं कर सकता था।
“इस समय जो विचार तुझे सता रहा है उसे अपने दिमाग से उतार दे। कुलवन्त अब वह नहीं, जो पहले थी। जिसके मन में ज्ञान-ध्यान समा जाये उसे संसार की झूठी बातों का कोई मोह नहीं रहता। मनुष्य क्या चीज है, वह अच्छी तरह जान चुकी है। किन्तु इसका अर्थ यह भी नहीं कि वह तुझे प्रेम नहीं करती। वह तुझे अब भी सच्चा प्रेम करती है। यह सारा जीवन तेरी पूजा करती रहेगी। परन्तु इस कुटिया में रहकर। पार्वती ने उसे पसन्द कर लिया है। वह यहाँ रहकर तप करेगी और बहुत बड़ी पुजारिन बनेगी। मैंने माला के बदले उसे तुझसे माँग लिया।”