मैं उसे डांस फ्लोर से हटाकर लॉन में ले आया और फिर हम दोनों एक दूसरे से सटे वृक्षों के झुरमुट की तरफ बढ़ गए। यहाँ एक बेंच पर आकर हम बैठ गए। बाग़ में कोई नहीं था। आसमान पर चांदनी छिटकी हुई थी। और कलवन्त मेरी बाँहों में निढाल हुई जा रही थी। उसके गुलाबी चेहरे पर मेरे होंठ फिसलने लगे थे। उसके लबों के साज जगने लगे थे और उसकी आँखों में नशा ही नशा था।
अचानक जैसे वह सोते से जागी। उसने अपने आपको एक झटके से अलग किया और साड़ी का पल्लू ठीक करने लगी। उसकी आँखों में अब नशा की बजाय शर्म व हया के साथ-साथ हैरत के भाव जाग गए। मैं अभी यह सोच ही रहा था कि मोहिनी मेरे सिर पर आ गयी।
राज फौरन यहाँ से भाग चलो। खेल बिगड़ गया है। मोहिनी ने कहा।
“क्या हुआ ?” मैंने आश्चर्य से पूछा।
त्रिवेणी के नौकर रामप्रसाद के एक दोस्त बंसी ने सारा खेल चौपट कर दिया है। उसने रामप्रसाद को छुड़ाने के लिये पुलिस को बयान दे दिया है कि उस समय जब सविता की हत्या हुई तो रामप्रसाद उसके पास था। इसका प्रमाण भी दिया है और उसने तुम्हारा नाम भी लिया कि तुम उस वक्त त्रिवेणी की कोठी पर थे। पुलिस तुम्हारे होटल की तरफ बढ़ रही है। तुम्हें फौरन वहीं पहुँचना है।”
सारी स्थिति को समझकर मैं कलवन्त को लेकर वापिस लौटा फिर उसे क्लब में मिलने का वादा करके होटल की तरफ चल पड़ा। मोहिनी मेरे सिर से जा चुकी थी।
जिस समय मैं होटल पहुँचा तो मेरे कमरे का दरवाजा खुला था और एक पुलिस इंस्पेक्टर दो सिपाहियों सहित अंदर बैठा था।
मुझे देखते ही बोला– “आइये कुँवर साहब! हम आपका ही इंतजार कर रहे थे।” उसके स्वर में व्यंग्य था।
“मेरा ? भला मुझसे कौन सा अपराध हो गया है।”
इंस्पेक्टर मेरे इत्मिनान पर परेशान हो गया।
“अपराध का संदेह है श्री मान।” इंस्पेक्टर ने उसी स्वर में उत्तर दिया।
“फरमाइए, बात क्या है ?” मैंने बड़े भोलेपन से पूछा।
“मुझे ही बताना पड़ेगा तो सुनिए। कल रात बम्बई के एक व्यापारी की लड़की मिस सविता की हत्या हो गयी है। पुलिस ने इस सिलसिले में त्रिवेणी दास को गिरफ्तार किया था। चूँकि यह घटना उसकी कोठी पर घटी थी तो भी त्रिवेणी के क़त्ल से इंकार के बावजूद गिरफ्तारी करनी पड़ी। मगर आज सुबह त्रिवेणी दास के एक नौकर रामप्रसाद ने आश्चर्यजनक रूप से जुर्म का इक़बाल किया कि उसने सविता का खून किया है। पुलिस को इस सिलसिले में आपकी शहादतों की आवश्यकता है।”
“तो आप मेरे पास क्यों आये हैं ?” मैंने बीच में ही टोका।
“पहले मेरी बात सुन लीजिये मिस्टर राज।” इंस्पेक्टर ने रूखे स्वर में कहा।
“कहिये।” मैंने उसी स्वर में जवाब दिया, “मगर इंस्पेक्टर साहब, मैं जरा पुलिस के मामलों में घबराता हूँ। उचित होगा, पहले आप यह विश्वास कर लें कि आपने तफतीश के लिये सही आदमी चुना है। वैसे जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है, मुझे पुलिस की सहायता करने में ख़ुशी होगी।”
इंस्पेक्टर ने मेरी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया, “हमें मालूम हुआ है कि आप कल रात दुर्घटना से कुछ देर पहले त्रिवेणी से मिलने गए थे। यह बात उसके दूसरे नौकर ने बताई है।”
“हाँ! मैं कल रात वहाँ मौजूद था। मगर यह दुर्घटना किस समय घटी ?”
“कोई नौ बजे रात।”
“नौ बजे। ईश्वर का धन्यवाद, मैं वहाँ से आठ बजे या उसके पंद्रह मिनट बाद चला आया था।” मैंने सपाट स्वर में कहा।
“आपने वहाँ किस-किस को देखा था ?”
इंस्पेक्टर मेरे बर्ताव से किसी कदर बौखला गया था।
मैं बड़े इत्मिनान और कुशलता से उसकी हर बात का उत्तर दे रहा था। पुलिस, क़त्ल, और शहादतें यह मामलात मेरे लिये नए थे। मैंने उसे बड़े ठंग से समझाया-
“त्रिवेणी मेरा दोस्त है। एक अर्से बाद जब मैं पूना आया तो उससे मिलने चला गया। त्रिवेणी उस समय उपस्थित नहीं था इसलिए शाम को फिर उससे मिलने गया। उस समय वह एक लड़की के साथ अपनी रात का प्रोग्राम बना रहा था। मेरी उससे रस्मी बातचीत हुई। वह बुरी तरह थका हुआ था और लड़की उससे कुछ भयभीत मालूम होती थी। मैंने यह अवसर उचित न समझा और वहाँ से चला आया। यूँ भी मैं त्रिवेणी की मौज-मस्ती में अधिक देर तक ठहर कर विघ्न नहीं डालना चाहता था। मुझे मालूम न था कि मेरे आने के बाद इतना बड़ा हादसा हो जायेगा। अब त्रिवेणी कहाँ है श्रीमान ?”
“उसे हमने नौकर के इकबाली बयान के बाद छोड़ दिया मगर वह हमारी निगरानी में है।” इंस्पेक्टर ने कहा।
इंस्पेक्टर ने मेरे कारोबार, त्रिवेणी से मेरे सम्बन्ध और त्रिवेणी के सम्बन्ध में कुरेद-कुरेद कर पूछा। मैंने जो उत्तर दिए उससे केस और उलझना था। केस उलझाने में ही मेरा लाभ था। मैंने अपनी पोजीशन साफ करके त्रिवेणी और उसके नौकर को आपस में उलझा दिया।
“होटल का मैनेजर गवाह है कि मैं कल रात आठ बजे यहाँ आ गया था।”