कलकत्ता पहुँचते ही पुरानी यादों ने करवट ली और मुझे डॉली याद आ गयी। इस शहर में बहुत से चेहरे थे जिनसे मेरा अतीत जुड़ा था। काली का मंदिर उन दिनों एक सप्ताह के लिये बंद था। मैं एक होटल में ठहर गया। त्रिवेणी का दिया हुआ काफ़ी रुपया अब भी मेरे पास शेष था और मैं वहाँ आराम से पंद्रह-बीस दिन काट सकता था।
लेकिन मेरे लिये हर समय ख़तरा बना रहता। मैं जानता था त्रिवेणी के यहाँ जब मैं कुछ दिन तक न पहुँचूँगा तो अवश्य ही उसे मेरी चिंता होगी और फिर वह आसानी से मोहिनी के द्वारा यह जान लेगा कि मैं कहाँ हूँ। और जब वह मुझे कलकत्ता की सड़कों पर भटकता पाएगा तो संभव है मोहिनी की शक्ति से मुझे वापस बुला ले। मोहिनी के लिये दूरी और समय की कोई पाबंदी नहीं थी। वह पलक झपकते ही मेरे सिर पर पहुँच सकती थी और मुझे पूना चलने के लिये विवश कर सकती थी।
परंतु मैं कर भी क्या सकता था। जब तक मंदिर के कपाट नहीं खुलते मैं कलकत्ता की सड़कों पर भटकने के सिवा कर भी क्या सकता था। अगर अब मैं वापस भी लौटता तब भी क्या फ़र्क़ पड़ता। त्रिवेणी मेरे प्रति संदिग्ध तो हो ही जाता।
बहरहाल मैंने अपने आपको परिस्थितियों के हवाले छोड़ दिया।
दो रोज़ बाद मुझे डॉली की याद ने फिर सताया तो मैं होटल से बाहर निकला और मेरे कदम स्वतः ही उसकी कोठी की तरफ़ उठ गए। फिर मुझे होश आया जब मैंने स्वयं को डॉली की कोठी के गेट पर खड़े पाया।
कोठी उसी तरह आबाद थी जैसी पहले रहती थी। मेरी दृष्टि लान पर पड़ी तो मेरा कलेजा धक् से करके रह गया। डॉली वहाँ एक कुर्सी पर बैठी थी और उसकी हालत देखकर मेरा दिल रो उठा। वह बिल्कुल बदल गयी थी। बहुत कमज़ोर हो गयी थी। उसका खूबसूरत चेहरा मुरझाए फूल की मानिंद लग रहा था। ऐसा जान पड़ता था जैसे दुखों का बहुत बड़ा पहाड़ ढो रही हो और जिंदगी, ज़िंदगी न रही हो। एक जीवित लाश मात्र रह गयी हो।
मैंने उसे पुकारा। इसके लिये मुझे बड़ा साहस बटोरना पड़ा। मेरी पुकार उस तक पहुँच गयी। उसने चौंककर मेरी तरफ़ देखा और फिर कुछ देर तक वह मेरी ओर अपलक देखती ही रही। कदाचित मुझे पहचानने की कोशिश कर रही थी।
“यह मैं हूँ डॉली, तुम्हारा राज!” मैंने कहा।
वह एक झटके के साथ कुर्सी छोड़कर उठ खड़ी हुई। मेरी तरफ़ बढ़ने से पहले कुछ ठिठकी, परंतु फिर आगे बढ़ी और मेरे पास आ गयी।
“आ… आप ?” उसका स्वर काँपा, “आपने यह क्या हालत बना रखी है अपनी ? हे भगवान, आपकी सूरत को क्या हो गया है। आपकी आँख ?”
“डॉली!” मेरी आवाज़ भी बैठ गयी, “तुमने भी अपनी क्या हालत बना रखी है डॉली ?”
“ओह राज!” उसने कुछ कहने से पहले चारों ओर दृष्टि दौड़ाई फिर क़रीब आकर बोली, “जब से हम बिछुड़े, मेरी ज़िंदगी एक पहाड़ बनकर रह गयी।”
“लेकिन इसमें मेरा क्या दोष था डॉली ? जब मेरे अच्छे दिन थे, तो सब साथ थे। दुखों में मेरा कोई न हुआ। मैं तो अब एक ज़िंदा लाश बनकर रह गया हूँ डॉली, सिर्फ़ ज़िंदा लाश।”
अचानक डॉली कुछ घबराई सी नज़र आने लगी। वह झिझकते हुए बोली- “इस वक्त आप यहाँ से चले जाइए। किसी ने देख लिया तो… ? फिर किसी समय मैं आपसे मिल लूँगी। आप कहाँ ठहरे हैं ?”इससे पहले कि मैं डॉली को कुछ जवाब देता मैंने कार की हॉर्न सुनी तो उछलकर मुड़ा। मेरे पास ही एक कार आकर रुकी और उस कार में डॉली के डैडी विराजमान थें। कुछ क्षण तक वह मुझे घूरते रहें। फिर नफ़रत और क्रोध से उनका चेहरा सुर्ख हो गया।
“कमीने, हरामजादे, सुअर के बच्चे! तू यहाँ ?” वह दहाड़े और फिर कार का दरवाज़ा खोलकर नीचे उतर आए, “तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ तक आने की।”
“म… मैं, देखिए मैं आपसे निवेदन करता हूँ। मैं आपसे क्षमा माँगने आया हूँ।”
कुछ न सुझाई दिया अतः मैंने तुरंत झुककर उनके चरण स्पर्श करने चाहे। वे तुरंत पीछे हट गए।
“ख़बरदार जो अपने गंदे हाथों से मेरे पैरों को छुआ तो। भाग जा यहाँ से वरना तेरी लाश ही यहाँ नज़र आएगी। और फ़ौरन इस शहर से निकल जा वरना मैं तुझे खोजकर मार डालूँगा। चल हट, बदजात!”
जिस तरह हिकारत से उन्होंने मुझे दुत्कारा था अगर दूसरी कोई स्थिति होती तो इतनी देर में मेरा इकलौता हाथ उसकी गर्दन का फाँसी का फंदा बन जाता। उनकी आवाज़ सुनकर नौकर भी गेट की तरह भाग रहे थे।
“इस साले की ख़ाल में भूसा भर दो!” डॉली के डैडी दहाड़े।
और इससे पहले कि नौकर मेरी ख़ाल में भूसा भरते मैंने वहाँ से निकल जाने में ही अपनी भलाई समझी। और मैं एक नज़र डॉली पर डालकर तेज कदम उठाता एक दिशा में बढ़ गया। गंदी गालियाँ मेरा पीछा तब तक करती रहीं जब तक कि मैं उनकी नज़रों से ओझल न हो गया।
होटल पहुँचकर मैंने राहत की साँस ली। फिर मैं डॉली के बारे में सोचने लगा। निश्चय ही उसे मेरी जुदाई का गम था। और वह अंदर ही अंदर घुल रही थी। उसके दिल में मेरे प्रति आज भी वही प्यार था और उसे भारी पछतावा था। परंतु अब डॉली को प्राप्त करने के लिये उसके डैडी दीवार बन गए थें। वहाँ से मैं अपमानित होकर आया था। मैं सोचने लगा कि अपनी डॉली को मैं किस तरह प्राप्त कर सकता हूँ। मैंने उसे अपने होटल का पता भी नहीं बता पाया था जो वह वक्त निकालकर मुझे मिल लेती।
फिर मैंने एक युक्ति से काम लिया। मैंने डॉली की कोठी पर फ़ोन किया। यह मेरा भाग्य ही था कि फ़ोन डॉली ने ही उठाया। मैंने उसे जल्दी से होटल का पता और फ़ोन नम्बर बताया। उसने मुझे बताया कि डैडी बहुत नाराज़ हैं। वह समय निकालकर होटल पहुँचेगी। तभी कुछ बात हो सकेगी। और फिर उसने फ़ोन काट दिया।
उसके बाद मैं कमरे में ही ठहरकर डॉली की प्रतीक्षा करने लगा। मैं शाम तक उसका इंतज़ार करता रहा। वह नहीं आई और जब शाम ढल गयी तो मैंने समझ लिया कि अब वह नहीं आएगी। मेरा मन उचाट था और कहीं भी घूमने-फिरने का दिल नहीं चाहता था। मैं कमरे की रोशनी भी नहीं जलायी और अंधेरे में चुपचाप पड़ा रहा।
अचानक मुझे पदचापें सुनाई दीं और मैं चौंककर उठ बैठा। पदचापों की आवाज़ मेरे कमरे के दरवाज़े पर ही आकर रुकी थी। मैंने सोचा शायद डॉली आ गयी है। अब मैं तुरंत बिस्तर छोड़कर उठा। कमरे की रोशनी जलायी और जैसे ही दरवाज़े पर पहली दस्तक हुई मैं दरवाज़े तक पहुँच चुका था।
एक पल की भी देर किए बिना मैंने दरवाज़ा खोल दिया। परंतु यह देखकर मैं आश्चर्यचकित रह गया कि सामने डॉली नहीं बल्कि एक खूबसूरत लड़की खड़ी थी।
“मैं आपके लिये अजनबी हूँ। कृपया मुझे अंदर आने के लिये रास्ता दीजिए। मुझे डॉली ने भेजा है।”
डॉली का नाम सुनते ही मैं फट से दरवाज़े से हट गया। लड़की अंदर आ गयी तो मैंने दरवाज़ा बंद कर दिया। मैं अब भी उसे आश्चर्य से देखे जा रहा था।
“ब… बैठिए!” मैंने कुर्सी की तरफ़ संकेत किया।
वह बैठ गयी।
“मेरा नाम नीलू है और मैं डॉली की सहेली हूँ।” वह अपने मोतियों जैसी दाँतों को चमकाते हुए बोली।
अब मेरा आश्चर्य कुछ कम हो गया था।
“डॉली क्यों नहीं आई ?” मैंने उससे पूछा।
“उसके डैडी ने उस पर बाहर निकलने की पाबंदी लगा दी है। उन्होंने डॉली को खूब बुरा-भला कहा। इसलिए मुझे यहाँ आना पड़ा। डॉली आपसे मिलना चाहती है। वह चाहती है कि उसका उजड़ा हुआ संसार फिर से आबाद हो जाए। उसने आपसे बिछुड़ने के बाद बड़े-बड़े गम झेले। तलाक़ के समय आपकी तरफ़ से कोई जवाब नहीं आया तो डॉली के माता-पिता ने उसकी शादी एक अधेड़ आदमी से कर दी। डॉली की उस नए पति से एक दिन भी नहीं निभ पाई। दोनों में हर रोज़ झगड़ा होता था। जिसका नतीजा यह निकला कि उस आदमी ने डॉली को उसके घर छोड़ दिया और फिर कभी लेने नहीं आया। बल्कि तलाकनामा भेज दिया। उसके बाद डॉली की ज़िंदगी एक खण्डहर बन गयी। घर वाले उसे अलग कोसते थें और वह हर समय आपकी याद में खोयी रहती थी। उसने आपके पास पत्र भी डालें परंतु बाद में मालूम हुआ कि आपका सारा कारोबार चौपट हो गया है और आप बम्बई छोड़कर न जाने कहाँ चले गए हैं। डॉली के लिये यह और बड़ा सदमा था। अब वह आपको कहाँ ढूँढ़ती।”
वह ख़ामोश हो गयी।
“उसे क्या मालूम कि जब से वह मेरी ज़िंदगी से निकल गयी, भाग्य ने ही मेरा साथ छोड़ दिया और मैं दर-दर का भिखारी बन गया। एक छोटी सी बात थी भी कुछ नहीं लेकिन अब क्या किया जा सकता है। मैं किस तरह फिर से उसे प्राप्त कर सकता हूँ ?”
“डॉली का कहना है कि आप कुछ दिनों के लिये यह शहर छोड़ दे। जब उसके डैडी का ग़ुस्सा शांत हो जाएगा तो वह खुद कोई रास्ता निकाल लेगी। आपके लिये वह घर छोड़ने को भी तैयार है। आप अपना पता दे दें, जहाँ भी आप रहें।”
“लेकिन अभी तो खुद मेरा कोई ठोर-ठिकाना नहीं।” मैंने कुछ सोचकर कहा क्योंकि मैं त्रिवेणी का पता किसी भी रूप में नहीं देना चाहता था।”
“तो फिर आप अपने किसी दोस्त का पता दे दीजिए। उसके द्वारा आपको खबर लग जाएगी।”
“दोस्त ?” मैंने एक ठंडी आह भरी, “भला किसी दुखी आदमी का भी कोई दोस्त होता है ?”