मैं अपनी सीट पर सँभल कर बैठ गया। मेरी रक्त का संचार तेज हो गया। तेज और तेज होता गया।
मेरे पास केवल तीन घंटे का समय था। तीन घंटे मेरी ज़िंदगी का रुख़ पलट सकते थे। सफलता की सूरत में मैं फिर बड़ा आदमी बन सकता था।
मेरा मस्तिष्क बड़ी तेजी से काम कर रहा था। मुझे इस बात का पूरा विश्वास था कि शकुंतला का खून पीने में कम से कम तीन घंटे अवश्य व्यतीत करेगी।
अपनी सीट पर बैठा आने वाली परिस्थितियों के लिये अपने को तैयार कर रहा था। मेरी दृष्टि सामने वीरान सड़क पर जमी थी। त्रिवेणी का ड्राइवर ख़ामोश बैठा था और मैं अपनी योजना के प्रत्येक पहलू को जाँचने में व्यस्त था कि एकाएक ड्राइवर ने गाड़ी को बायीं ओर मोड़ दिया और कुछ दूर जाकर एक चार मंजिला इमारत के सामने रोक दिया।
“क्यो ?” मैंने ड्राइवर को परेशान निगाहों से देखते हुए पूछा– “तुमने गाड़ी यहाँ क्यों रोक दी ?”
“तुम गाड़ी में बैठो। मैं अपनी पत्नी से एक आवश्यक बात करके आता हूँ।”
“क्या तुम इस इमारत में रहते हो ?”
“हाँ!” ड्राइवर ने मुस्कराते हुए कहा और फिर वह गाड़ी का दरवाज़ा खोलकर बाहर निकलना ही चाहता था कि मैंने उसे बाज़ू से थामकर रोकते हुए कहा-” त्रिवेणी ने हमें तुरंत वापसी का आदेश दिया था। उसे हमारा इंतज़ार होगा। तुम अपनी पत्नी से फिर मिल लेना।”
“चिंता मत करो! मैं दस-पंद्रह मिनट से अधिक नहीं लूँगा।”
“नहीं!” मैंने कठोर स्वर में कहा– “मेरी बात मानो। जो मैं कहता हूँ उसे सुनो। तुम्हें पहले त्रिवेणी की कोठी चलना होगा।”
“क्या मतलब ?” ड्राइवर ने मेरा हाथ बड़ी नफ़रत से झिड़कते हुए कहा, “ख़बरदार जो तूने फिर कभी अपना ग़लत हाथ मेरे शरीर पर लगाया। टुण्टे कहीं के।”
मेरे मस्तिष्क में इस समय केवल एक ही विचार मँडरा रहा था। मुझे शीघ्रताशीघ्र कोठी पहुँचकर त्रिवेणी को ठिकाने लगा देना चाहिए।”
ऐसी सूरत में ड्राइवर का अपनी पत्नी के पास जाना समय नष्ट करना था। मैं इस सुनहरे अवसर को किसी भी मूल्य पर गँवाने के लिये तैयार नहीं था। फिर जिस अंदाज़ में ड्राइवर ने मुझे टुण्टा कहा था वह भी मेरा खून खौलाने के लिये प्रयाप्त था। मैंने बिगड़ते हुए उसे संबोधित किया।
“सुनो, अगर तुम्हें अपना जीवन प्यारा है तो पहले मुझे कोठी पहुँचा दो। उसके बाद तुम जहाँ मर्जी वहाँ जा सकते हो।”
“अबे जा!” ड्राइवर ने मुझे एक गंदी गाली दी। फिर पलटकर गाड़ी से उतरना ही चाहता था कि मैंने झपट कर उसे दबोच लिया। मेरा इकलौता हाथ उसके गले में फाँसी के फंदे की तरह पहुँच गया।
फिर उसका कंठ घुटने लगा। स्पष्ट था कि मैं मोहिनी को दोबारा पाने के लिये सब कुछ कर गुजरने के लिये तैयार था।
“भगवान के लिये मुझे छोड़ दो। तुम जो कहोगे मैं वही करूँगा।”
ड्राइवर के मुख से फँसी-फँसी आवाज़ निकली तो मेरा खून और खौल उठा। मौत को सामने देखकर मैंने बड़े-बड़े शूरमाओं को ज़िंदगी के लिये भीख माँगते देखा था। लेकिन इस समय मैं ज़िंदगी और मौत के फलसफे पर गौर करने से अधिक इस बार की फ़िक्र में था कि जल्द से जल्द ड्राइवर को ठिकाने लगाकर त्रिवेणी के पास पहुँचू। अतः मैंने सारी शक्ति समेटकर अपने शिकंजे को और तंग करना शुरू कर दिया।
ड्राइवर ने छुटकारा पाने के लिये बहुत हाथ-पाँव मारे लेकिन कुछ देर बाद ही वह बेदम होकर मेरे ऊपर झूल गया। मैं नहीं समझ सका कि वह मर गया है या बेहोश हो गया है। मैंने उसे बड़ी फूर्ती से घसीट कर पिछली सीट पर डाल दिया और स्वयं उसकी जगह सँभाल ली। एक हाथ से गाड़ी चलाना बहुत कठिन काम था और गाड़ी चलाते हुए मुझे दिन भी काफ़ी बीत चुके थे। किंतु मैंने उसे समय अपनी तमाम इन्द्रियों को जागृत किया और अपनी सारी कलाएँ दाँव पर लगा दी। स्टेयरिंग को अपने एक हाथ से क़ाबू में लिया। गाड़ी बड़ी तेजी से घूमकर दोबारा उसी सड़क पर आ गयी। जो त्रिवेणी कोठी की ओर जाती थी।मुझे कोठी तक पहुँचने में अधिक से अधिक दस या पंद्रह मिनट लगे। उस समय मेरे मस्तिष्क पर एक जुनून सा सवार था। मैंने गाड़ी को पोर्टिकों में रोका और नीचे उतरकर तेज-तेज कदमों से कोठी में प्रविष्ट हो गया।
त्रिवेणी के शयनागार में पहुँचने के लिये भी मैंने बड़ी चुस्ती से काम लिया। शयनागार के दरवाज़े पर ठहर कर मैंने चाबी वाले सुराख से अंदर झाँक कर देखा लेकिन अंधकार के कारण कुछ न देख सका। कदाचित त्रिवेणी सोने के लिये लेट चुका था। दूसरे ही क्षण यह सोचकर मैंने दरवाज़ा पीटना शुरू कर दिया। मुझे अपनी योजना में असफलता नहीं मिली।
चंद क्षणों बाद अंदर से त्रिवेणी की आवाज़ सुनाई दी।
“कौन है ?”
“मैं हूँ सरकार, राज।” मैं ऊँची आवाज़ में बोला, “जल्दी दरवाज़ा खोलिए, पुलिस ने ड्राइवर को गिरफ़्तार कर लिया है।”
चाबी वाले सुराख से रोशनी फुटी तो मैं समझ गया कि तीर ठीक निशाने पर लगा है। मेरे दिल की धड़कनें और तेज हो गयी। मैं दरवाज़े के निकट एक कदम पीछे हटकर खड़ा हो गया। अंदर से आहट उभरकर दरवाज़े के निकट आई। बोल्ट खुलने की आवाज़ उभरी और फिर त्रिवेणी ड्रेसिंग गाउन में सिमटा मेरे सामने खड़ा था।
“क्या बात है, पुलिस ने ड्राइवर को क्यों गिरफ़्तार किया ?” त्रिवेणी ने लापरवाही से पूछा।
“मुझे नहीं मालूम सरकार।” मैंने बड़ी कठिनाई से अपने दिल की धड़कनों पर क़ाबू पाते हुए उत्तर दिया, “शकुंतला को ठिकाने लगाने के बाद जब वापस आया तो पुलिस वाले ड्राइवर से पूछताछ कर रहे थे। मैं वहाँ रुकने की बजाय भागकर आपको सूचित करने आ गया।”
“शकुंतला को तुमने गाड़ी से कितनी दूर ले जाकर ठिकाने लगाया था ?”
“मैं उसे काफ़ी दूर ले गया था सरकार। लेकिन हो सकता है ड्राइवर ने पुलिस के आतंक से जुबान खोल दी हो।”
त्रिवेणी की आँखों में बेचैन परछाइयाँ एक पल के लिये उभरकर ग़ायब हो गयी। वह मेरी परेशान हालत पर एक नज़र डालते हुए बोला- “तुम यहीं रुको, मैं अभी फ़ोन के जरिए मालूम करता हूँ।”
मैं आज्ञाकारी सेवक की तरह सिर को जुम्बिश दी लेकिन मैं पूरी तरह अपनी सोची-समझी योजना पर अमल करने के लिये तैयार था। अतः जैसे ही त्रिवेणी वापस जाने के लिये घूमा, मैंने एक चतुर और फुर्तीले चीते की तरह छलांग लगाई और त्रिवेणी के सिर पर पहुँच गया। फिर बड़ी फुर्ती से अपना एक हाथ त्रिवेणी की गरदन में इस तरह फँसाया जैसा कुछ देर पहले ड्राइवर की गर्दन पर फँसाया था।
त्रिवेणी अपना संतुलन बरकरार न रख सका। जब वह पीछे की तरफ़ लड़खड़ाया तो उसकी गर्दन पर मेरी पकड़ कमज़ोर पड़ गयी। मगर मैंने जल्दी ही दूसरा पैंतरा बदलकर उसे क़ाबू में कर लिया।
“कमीने!” त्रिवेणी किसी जख्मी शेर की तरह दहाड़ा– “मैं तुझे नर्क में फेंक दूँगा।”
मैंने त्रिवेणी की बात उत्तन देने की बजाय अपना काम और तेज कर दिया। मुझ पर खून सवार था। मुझे नहीं मालूम कि उस वक्त मेरे अंदर इतनी शक्ति कहाँ से आ गयी थी। मैं किसी कदर तिरछा हुआ और फिर जब मैंने उसे झटका देकर घसीटा तो वह इस तरह आ गया कि उसकी कमर मेरी कमर पर थी और उसके दोनों पैर हवा में थे। अपने दोनों हाथों में वह मेरा हाथ थामे हुए स्वयं को बचाने के लिये वह हाथ-पाँव मार रहा था।
दूसरी तरफ़ से मेरी सारी शक्ति उसकी गर्दन पर एकत्रित हो गयी थी। मैं अपना शिकंजा तंग करता जा रहा था। और तंग, और तंग। मुझे पूरा विश्वास था कि अब त्रिवेणी कुछ देर का मेहमान है और उसकी मौत से मैं इस गजबनाक ज़िंदगी से छुटकारा पा लूँगा और मोहिनी को दोबारा प्राप्त कर लूँगा। मोहिनी जिसके बिना मेरी ज़िंदगी अधूरी है।
उसी वजह से मेरी वीरान ज़िंदगी में बहार आई थी और उसी की जुदाई ने मुझे सड़कों पर भीख माँगने के लिये छोड़ दिया था। त्रिवेणी ने उसे मुझसे छीन लिया था मगर त्रिवेणी का खात्मा और ज़िंदगी का सुंदर सपना अब निकट ही था। मेरी मोहिनी मेरे पास आने वाली थी। त्रिवेणी का खौफनाक अंजाम मेरे सामने था।
मेरा मस्तिष्क मोहिनी की कल्पना में मस्त था। उस विचार से मेरे अंदर बला की शक्ति आ गयी थी। मेरा हाथ बराबर त्रिवेणी की गर्दन पर अपना फंदा तंग करता जा रहा था। त्रिवेणी के कंठ से उखड़ी-उखड़ी, घुटी-घुटी आवाज़ें निकल रही थीं। वह बिन जल मछली की तरह हाथ-पाँव मार रहा था।
फिर अचानक उसने उखड़ी-उखड़ी आवाज़ में कहा।
“मो… हि… नी… मो… हिनी… मुझे बचा ले।”
“मोहिनी को भूल जा, भूल जा त्रिवेणी दास।” मैंने ठंडे स्वर में कहा, “वह इस समय शकुंतला के लहू से अपने अस्तित्व को नहला रही होगी और जबतक वह तुम्हारी सहायता को आएगी, तुम मर चुके होगे। तुमने मुझे बहुत सताया है त्रिवेणी। बहुत जुल्म किया है।”
“मोहिनी, मोहिनी!” त्रिवेणी ने घुटे-घुटे स्वर में चिल्लाने की चेष्टा की।
मुझे त्रिवेणी की बेबसी पर रहम करने की बजाय ख़ुशी हो रही थी। उसकी तड़प देखकर मुझे शांति मिल रही थी।
फिर अचानक मुझे ऐसा आभास हुआ मानो मेरे हाथ का फंदा तंग होने की बजाय ढीला पड़ रहा हो। जैसे कोई न दिखने वाली शक्ति मेरे हाथ त्रिवेणी की गर्दन से अलग कर रही हो।
मैं उस अचानक बदल जाने वाली स्थिति पर तिलमिला उठा। मैंने बौखला कर दोबारा अपनी पकड़ मज़बूत करनी चाही तो मुझे यूँ महसूस हुआ जैसे किसी ने मेरे बाज़ू पर खंजर उतार दिया था।
अभी मैं बाज़ू में होने वाले असहनीय कष्ट तथा जलन पर विचार भी न कर पाया था कि मुझे सिर पर नन्हे-नन्हे तीर चुभते हुए महसूस हुए।
“मोहिनी!” मेरे मस्तिष्क में मोहिनी का नाम उभरा तो मुझे झुरझुरी आ गयी। मेरा हाथ मशीनी अंदाज़ में त्रिवेणी की गर्दन से अलग हुआ तो वह किसी कटे हुए वृक्ष के समान कालीन पर ढेर हो गया।मैंने कल्पना में अपने सिर पर नज़र डाली तो भय के कारण मेरा पूरा अस्तित्व काँप उठा। मेरा अनुमान ग़लत साबित नहीं हुआ। मेरे सिर पर मोहिनी का रहस्यमय अस्तित्व मौजूद था। मोहिनी उस समय बड़ी भयानक नज़र आ रही थी। उसका पूरा शरीर लहू में डूबा हुआ था। उसकी आँखें जो कभी मुझे ज़िंदगी की हसीन-तरीन ख़ुशियों का पैगाम दिया करती थीं, उस समय बड़ी खौफनाक नज़र आ रही थीं।
उसके चेहरे पर कठोरता के लक्षण मौजूद थे। उसके बाल पूरी तरह बिखरे हुए थे। उसकी रक्तमय भयानक आँखें मेरे चेहरे पर चुभती जा रही थीं। कुछ क्षणों तक वह मुझे घूरती रही। फिर हिकारत भरे स्वर में संबोधित करती हुई बोली-
“कुँवर राज, मैंने तुम्हें मना किया था कि मेरे आका की ओर कभी ग़लत नज़रों से मत देखना, मगर तुम नहीं माने।”
“मोहिनी, यह सब मैंने तुम्हारे लिये किया!” मैंने बेचैन होकर कहा, “मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता मोहिनी। मैं तुम्हें दोबारा प्राप्त करना चाहता हूँ।”
“तुम मूर्ख हो। मुझे बताओ, तुमने मेरे आका पर आक्रमण करने की जुर्रत कैसे की ?” मोहिनी ने अपने होंठो पर जमे हुए लहू को जुबान से चाटते हुए पूछा।
“मैं मजबूर था मोहिनी। अब केवल यही एक तरीक़ा रह गया था।” मैंने भावुकता भरे स्वर में कहा– “अब और जिल्लत मुझे मंज़ूर नहीं। या तो अब मैं तुम्हें प्राप्त कर लूँगा या तुम्हारी खातिर जान की बाज़ी लगा दूँगा।”
“तुम बहुत तुच्छ, साधारण से आदमी हो राज।” मोहिनी त्यौरी चढ़ाकर बोली, “तुमने इस समय मुझे छेड़कर अच्छा नहीं किया। तुम्हें बता था कि मैं इस समय शकुंतला के खून से अपने अस्तित्व को नहला रही थी। तुमने मुझे मेरे शिकार से अलग करके बहुत बुरा किया है। तुमने मेरे आका पर कातिलाना हमला करते समय शायद यह सोचा था कि खून की लालच में मुँह मोड़कर मैं यहाँ नहीं आऊँगी। परंतु तुम यह भूल गए थे कि त्रिवेणी मेरा आका है और मैं उसकी दासी हूँ। उसने मुझे प्राप्त करने के लिये कठिन जाप किया। उसके ऊपर जब भी कोई विपदा आएगी, मैं आ जाऊँगी। यदि उसकी पुकार सुनकर मैं न आती तो देवता मुझसे नाराज़ हो जाते और स्वयं मेरा अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाता।
“क्या मैंने तुमसे नहीं कहा था कि यदि तुमने मेरे आका की ओर ग़लत नज़रों से देखा तो मैं तुम्हारा अंजाम भयानक बना दूँगी। तुम्हें सब कुछ बता दिया गया था राज।”
मोहिनी की बेवफ़ाई और उसकी बेरुखी देखकर मेरा दिल खून के आँसू रोने लगा। फिर भी मैंने उसके सामने हाथ बाँधकर गिड़गिड़ाते हुए कहा, “मोहिनी, तुम्हारे रहस्यमय अस्तित्व में इंसानी भावनाओं को महसूस करने की कोई शक्ति नहीं है ? यदि तुमको मेरी हालत पर रहम नहीं आता तो मुझे अपने हाथों से मार डालो। मैं उफ भी न करूँगा। तुम्हारे हाथों से जो मौत मुझे नसीब होगी, वह भी मुझे प्यारी होगी।”
“मुझसे किसी भी प्रकार की सहानुभूति की आशा मत करो राज।” मोहिनी का स्वर घृणात्मक था, “तुमने मेरे आका को धोखा दिया है। तुम्हारी सजा मौत भी हो सकती है। परंतु मैं तुम्हें केवल एक ऐसी सजा दूँगी जिसे तुम सदा याद रखोगे। और फिर कभी मोहिनी के आका को किसी भी प्रकार की हानि देने का साहस नहीं कर सकोगे।”
मैं गुम सा खड़ा मोहिनी को आश्चर्य की मूरत बना देखता रहा। उस समय मोहिनी की आँखों में मेरे लिये सहानुभूति का कोई भाव न था। वह गैजो ग़ज़ब की आलम में मेरे सिर पर खड़ी मुझे खूँखार नज़रों से देखे जा रही थी। उसके पंजों की चुभन मेरे सिर की त्वचा में तीव्र होती जा रही थी।
कुछ क्षणों तक वह उसी अंदाज़ में मुझे तकती रही, फिर गुर्राते स्वर में बोली- “कुँवर राज, तुम अपना एक हाथ पहले ही खो चुके हो! अब मैं तुम्हें तुम्हारी एक आँख से वंचित कर दूँगी। समझे ? मैं तुम्हारी एक आँख की रोशनी छीन लूँगी। यह कम से कम सजा है जो तुम्हें दी सकती है।”
“नहीं मोहिनी, नहीं…इ…न्का!” मैं गिड़गिड़ाने लगा, “मेरी ओर गौर से देखो मोहिनी। यह मैं हूँ। मेरा नाम राज है। मैंने तुम्हारी ख़ातिर न जाने कितने बेगुनाहों का खून बहाया है। क्या तुम्हें मेरे ऊपर तनिक भी दया नहीं आती ? मैं तुम्हारे लिये सब कुछ लुटा चुका हूँ।”
मैंने बहुत कुछ कहा। बीते हुए दिनों को याद दिलाया। मैंने विनती की, परंतु मोहिनी नफ़रत से बोली-
“राज बीते दिनों को भूल जाओ! मैं एक दासी हूँ और दासियाँ केवल आका की होती है और किसी को प्रेम भरी दृष्टि से देखना पाप समझती हैं। मैं तुम्हें यह दंड देकर भविष्य के लिये सावधान कर देना चाहती हूँ कि तुम मेरे आका से सदा वफ़ादार रहो। वरना…!”
“मोहिनी, तुम मुझे एक बार में जान से मार क्यों नहीं डालती ?” मैंने मोहिनी की बात बीच में उचकते हुए कहा तो वह मुँह बनाकर बोली-
“वे बहादुर होते हैं राज, जो केवल एक बार मरते हैं। तुम कायर, मूर्ख हो। ऐसे लोग तो हर दिन जीते-मरते हैं।”
मैं हाथ जोड़कर मोहिनी के सामने प्रार्थना करता रहा। परंतु उस पर मेरी किसी बात का कोई प्रभाव नहीं हुआ। उसके घृणात्मक स्वर में और तेजी आ गयी। वह सिर से रेंगकर किसी छिपकली की तरह मेरे कंधे पर आ गयी और जैसे छिपकली खड़ी होती है उसी तरह अपनी दुम पर खड़ी हो गयी। मुझ में इतनी शक्ति नहीं थी कि मैं उसे अपने कंधे से झटक देता। उसकी भयानक नज़रों में प्रतिशोध की ज्वाला भड़क रही थी। फिर उसने अपना नाज़ुक हाथ उठाया। उसकी उँगलियों के नाखून नुक़िले खंजर की तरह थे। उसका हाथ धीरे-धीरे मेरी सीधी आँख के निकट आता रहा। मैं उस रहस्यमय तथा आश्चर्यजनक दृश्य को किसी ख़ामोश दर्शक की तरह देखता रहा।उसकी उँगलियाँ और नाखून धीरे-धीरे बड़े होते गए। मुझे अपना खून जमता हुआ सा महसूस हो रहा था। परंतु मैं कुछ भी करने में असमर्थ था।
न जाने कौन सी अनदेखी शक्ति थी जिसने मेरे मनोमस्तिष्क को जकड़कर सुन्न कर दिया था। फिर उस समय अपनी मर्मान्तक चीख को सहन न कर सका जब मैंने अपने सिर पर कोई चट्टान सी गिरते हुए महसूस किया। यह मोहिनी के बढ़े हुए हाथ का प्रहार था। मुझे अत्यंत तीव्र वेदना के साथ ऐसा लगा जैसे मेरी आँख उबल पड़ी हो। उसके बाद मेरे मस्तिष्क ने मेरा साथ छोड़ दिया। मुझे बस इतना याद है कि मैं लुढ़कता हुआ नीचे की ओर झुकता चला गया।