बहुत मस्त स्टोरी है डॉली जी लाजवाब कुछ क्षणों तक मैं आँखें बंद किए पड़ा। अपने विचारों में उलझता रहा। फिर जब मैंने महसूस किया कि मोहिनी मेरे सिर पर लेटकर दोबारा निद्रा में खो चुकी है तो मैं धीरे से उठा और नहाने के लिये बाथरूम की ओर चल पड़ा।
उस दिन मैं घर पर ही पड़ा रहा। मिलने-जुलने वाले लोग आए तो मेरी आज्ञा के अनुसार चौकीदार ने यह कह कर टाल दिया कि मैं घर में उपस्थित नहीं हूँ। शाम को वस्त्र बदलकर मैं बाहर निकला। सर्विसिंग स्टेशन जाकर मैंने अपनी कार ली। फिर एक चक्कर शहर का लगाकर वापिस घर लौट आया। उसके बाद अपने बेडरूम में बन्द हो गया। बम्बई में पहला दिन था जो मैंने बिल्कुल अकेले गुजरा था। मुझे मोहिनी पर रह-रहकर क्रोध आ रहा था जो बजाय मुझे दिलासा देने के, खुद मुझसे नाराज हो गयी थी। शायद इसलिए कि मैंने उसको इन्सानी खून न पीने का सुझाव दिया था। मैं महसूस कर रहा था कि वह मेरे सिर पर लेटी अपनी कोहनी पर ठोढ़ी टिकाये किसी गहरी सोच में लीन है। मुझे उसके चेहरे पर आज सदैव से अलग बहुत अधिक गंभीरता दिखायी दे रही थी। एक-दो बार मेरे जी में आया कि मोहिनी से कोई बात करूँ, लेकिन फिर मैंने अपना इरादा त्याग दिया।
रात आयी तो मुझे तन्हाई का अहसास जोरों से सताने लगा। मैंने दिल को बहलाने की खातिर शराब का सहारा तलाश कर लिया और उस समय तक पीता रहा जब तक मेरा मस्तिष्क मेरे काबू में रहा। फिर सिलसिला उस समय समाप्त हुआ जब कदाचित मैं बेहोश हो गया था, या फिर सम्भव है कि मुझमें अधिक पीने की शक्ति शेष नहीं थी। बहरहाल वह रात किस तरह गुजरी मुझे इल्म नहीं, लेकिन दूसरे दिन मेरी सारी उलझने ख़त्म हो गयीं और इसका कारण डॉली थी। जिसे मैं दिलो-जान से चाहता था; और जिसको प्राप्त करने के लिये मैंने पहली बार मोहिनी के उकसाने पर दीपक को मौत के घाट उतारा था।
डॉली अचानक मेरे सामने आयी तो सारी चिन्तायें एकदम से भूलकर मैं उसकी मोहब्बत में गुम हो गया। फिर मेरी और डॉली की बातों का सिलसिला चल निकला। उसने बताया था कि वह केवल मेरी खातिर अपने घर वालों और अपनी करोड़ों की जायदाद से मुँह फेरकर वहाँ चली आयी है। डॉली के इस प्रेम और बलिदान की भावना का मेरे पास कोई उत्तर नहीं था।
“डॉली, तुम्हें प्राप्त करने के बाद मैं यूँ महसूस कर रहा हूँ जैसे मैं संसार का सबसे भाग्यशाली इन्सान हूँ। अब हम कभी भी एक-दूसरे से जुदा न होंगे। तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा था।” मैंने भावनाओं में बहते हुए कहा।
“यह केवल इसी सूरत में सम्भव है कि हम सदा के लिये एक हो जायें।” डॉली ने दबी जुबान में उत्तर दिया।
“मैं इसे अपना भाग्य समझूँगा। लेकिन इतनी जल्दी क्या है?”
“नहीं राज! जब तक तुम मुझे अपना नहीं लेते, मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकती। दुनिया वाले क्या कहेंगे?”
मैंने डॉली को समझाने की कोशिश की कि वह कुछ दिनों तक रुक जाए ताकि शादी कि रस्म बड़ी धूमधाम से पूरी की जा सके। परन्तु डॉली किसी भी तरह मेरी यह बात मानने पर तैयार न हुई। उसने यही कहा कि वह किसी प्रकार की हंगामे को पसन्द नहीं करेगी। उसने कहा कि देर होने की सूरत में यह भी भय है कि उसके माँ-बाप आ जायें; और वह उसे वापस ले जाने की कोशिश करें।
उसकी बात अपने स्थान पर उचित थी इसलिए मैंने और तर्क नहीं किया और उसी शाम को एक पंडित को बुलाकर कुछ लोगों की उपस्थिति में हमारे फेरे हो गये। डॉली के विवाह करने के बाद मैंने अपनी तमाम दौड़-धूप जैसे अचानक कम कर दी थी। अगर कोई विशेष आदमी मिलने के लिये आता तो उसे रोक लिया जाता वरना अधिकतर लोगों को यह कहकर दरवाजे से ही वापिस कर दिया जाता कि साहब घर में नहीं है। मेरे दिन-रात डॉली की बाँहों में गुजारने लगे थे। हर समय मैं उसकी जुल्फों की छाँव तले लेटा एक अनोखी दुनिया में गुम रहता। सच पूछिए तो मेरा दिल एक क्षण के लिये भी डॉली से दूर होने को नहीं चाहता था। उसके नाजुक अंदाज और खूबसूरत बालों ने मुझे इस कदर मदहोश कर रखा था कि मुझे समय का अंदाजा ही नहीं हुआ। रात कब आयी और सुबह कब दोपहर के हंगामों में गुम हो जाती थी। मुझे इन बातों का न तो कोई ध्यान रहता और न ही मेरे पास फुर्सत का कोई क्षण था जो मैं इन बातों पर गौर कर सकता।
डॉली को अपना बना लेने के बाद मेरे भीतर एक नयी क्रांति आती जा रही थी। अब मैंने सट्टा और रेस खेलना छोड़ दिया था। रहा दौलत का प्रश्न तो पहले मोहिनी का रहस्यमय अस्तित्व मेरे काम आता था और अब डॉली की चरणों की बरकत से मुझे दुनिया का सारा एशो-आराम हासिल था। मेरे कारोबार में आश्चर्यजनक रूप से प्रगति हो रही थी। मैं इन बदलते हुए हालात से संतुष्ट था। मुझे विश्वास हो चला था कि अब हमारा जीवन चैन ओ शांति से गुजर सकता है। मैंने मन ही मन पक्का इरादा कर लिया था कि मैं कभी बुरे कामों की ओर ध्यान नहीं दूँगा। परन्तु कभी-कभी मोहिनी का रहस्यमय अस्तित्व जो बराबर मेरे सिर पर मौजूद था मुझे चिन्तित कर देता था।
मैं यह सोचकर चिन्तित हो जाता कि कहीं किए हुए वायदे के अनुसार मुझे फिर उसके लिये इन्सानी लहू का प्रबंध न करना पड़े। कई बार मैंने बड़ी गंभीरता से इस बात पर गौर किया था कि डॉली को, जो अब मेरी जीवन संगिनी थी, मोहिनी के सम्बन्ध में सब कुछ बता देता हूँ। उससे कोई सुझाव माँगू। परन्तु कमला की हत्या के समय मोहिनी ने जो मुझे धमकी दी थी, मैं उससे कुछ इस कदर भयभीत था कि चाहने के बावजूद विवाह के बीस-पच्चीस दिन तक भी डॉली ने मोहिनी के सम्बन्ध में कुछ न कह सका। मुझे इस बात का अच्छी प्रकार इल्म था कि जो बात मेरी जुबान से निकलती थी उसका इल्म मोहिनी को हो जाता था। अलबत्ता जो बात मैं दिल में सोचा करता था, अभी तक मुझे यह सन्देह था कि मोहिनी उसके बारे में नहीं जान सकती है।मेरे विवाह को लगभग एक माह बीत चुका था। इस तमाम समय में मोहिनी बराबर मेरे सिर पर मौजूद रही थी। लेकिन रूठी-रूठी सी। न तो उसने मुझसे कोई बात कही थी और न ही मैंने उसे सम्बोधित करने की आवश्यकता महसूस की थी। मैं सदा ही यह महसूस करता था जैसे मोहिनी मुझसे बेहद नाराज है।
कभी-कभी जब यूँ महसूस होता कि वह क्रोधित आँखों से मुझे घुर रही है तो जल्दी से अपनी आँखें बन्द कर लेता। फिर डॉली की बातों में उलझकर मोहिनी के अस्तित्व को अस्थाई रूप से भुला देने कि चेष्टा करता। वैसे दिल ही दिल से सदा यही प्रार्थना करता रहा था कि भगवान करे मोहिनी मुझसे सदा यूँ ही रूठी रहे। हमारे बीच बातचीत का सिलसिला दोबारा कायम न हो। कहीं मुझे फिर उसके लिये किसी बेगुनाह का खून न करना पड़े।
मोहिनी ने मुझसे कहा था कि उसे अपने रहस्यमय अस्तित्व को जिन्दा रखने के लिये हर महीने किसी इन्सानी खून की आवश्यकता पड़ती है। लेकिन इस बार कमला का खून पिए उसे एक महीने से कुछ अधिक दिन गुजर चुके थे मगर अभी तक उसने मुझसे किसी प्रकार की फरमाइश नहीं की थी। न जाने क्यों मुझे यह आशा हो गयी थी कि कदाचित मोहिनी मेरा पीछा छोड़ देगी और किसी दूसरे को अपना माध्यम बना लेगी। मुझे इस मुसीबत से छुटकारा मिल जाता।
लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। हुआ यूँ कि एक दिन जब मैं डॉली को घर छोड़कर एक आवश्यक काम को निपटाने के लिये ऑफिस की ओर रवाना हुआ तो मोहिनी ने मुझे अकेले में पाकर सम्बोधित किया।
“राज, मैं तुम्हारे भीतर कुछ परिवर्तन देख रही हूँ!” मोहिनी की फुसफुसाहट मेरे कानों में उभरी तो मेरा चैन छिन्न-भिन्न हो गया। मैंने महसूस किया जैसे यह वाक्य अदा करते समय मोहिनी के चेहरे पर एक दर्द था। वह अपनी नशीली निगाहों से, जिनमें उस समय शिकायत ही शिकायत भरी हुई थी, मुझे टिकटिकी बाँधे देख रही थी। उसके चेहरे पर आज वह लाली भी मौजूद नहीं थी जो इन्सानी खून पीने के बाद पैदा हो जाती थी।
“तुम भी तो आज तक मुझसे नाराज हो।” मैंने सम्भलकर कहा।
“हाँ, परन्तु मेरी नाराजगी का कारण तुम्हें पता है!” मोहिनी बोली। “तुमने अभी तक इस नाराजगी को दूर करने का ख्याल भी नहीं किया।”
“मैं समझा नहीं तुम्हारा मतलब।” मैंने अनजान बनते हुए कहा। वरना मैं खूब जानता था कि मोहिनी की नाराजगी का कारण क्या है? वह मुझसे उसी दिन से नाराज़ थी जब मैंने उसे लहू न पीने का सुझाव दिया था।
“तुम्हें अब इतनी फुर्सत कहाँ है जो तुम अब मेरी बात का मतलब समझने की चेष्टा करो।” मोहिनी ने शिकायत भरे स्वर में कहा।
“यह बात नहीं है मोहिनी। बल्कि वास्तविकता यह है कि मैं…!”
“रहने दो राज!” मोहिनी ने मेरे वाक्य को बीच में काटते हुए कहा। “मैं देख रही हूँ कि जब से तुमने डॉली से शादी की है, तुम्हारी रुचि मेरी ओर से कम होती जा रही है। तुम मुझे नजरअंदाज करने की कोशिश कर रहे हो। जबकि तुम यह भी खूब अच्छी तरह जानते हो कि मैं तुम्हारे लिये बड़ी महत्वपूर्ण हैसियत रखती हूँ। डॉली से भी अधिक।”
“परन्तु डॉली से शादी करने का सुझाव तो तुमने ही दिया था।” मैं थूक निगलकर बोला। मोहिनी की बात ने मुझे उलझन में डाल दिया था।
“मैं इससे इंकार नहीं करूँगी। परन्तु तुम मेरा मतलब नहीं समझ सकते।” मोहिनी ने जल्दी से कहा। “मैं तुमसे किसी शारीरिक मिलाप की इच्छा नहीं रखती। मैं तो चाहती हूँ कि तुम अपने वायदे पर कायम रहो।”
‘वायदा’ शब्द मेरे मस्तिष्क पर बम जैसा फटा।
मोहिनी ने बड़ी गंभीरता से कहा। “राज यदि तुम्हारा ख्याल है कि मैं तुम्हारा पीछा छोड़ दूँगी तो उसे अपने मन से निकाल दो। जितना तुम मुझसे दूर भागने की चेष्टा करोगे उतना ही मैं तुमसे और निकट होती जाऊँगी।”
“परन्तु अब तुम्हारे लिये किसी के खून से अपने हाथ नहीं रंग सकता।” अचानक मैंने बदले हुए तेवर से जवाब दिया। मैंने महसूस किया था कि तभी मोहिनी मेरा उत्तर सुनकर यूँ बोली।
“मैं तुमको सोचने के लिये एक अवसर और दे सकती हूँ।”
“दफा हो जाओ।” मैं चीख पड़ा। “मुझे किसी अवसर की आवश्यकता नहीं है। डॉली के साथ मैं किसी झोंपड़ी में भी खुशी से रह सकता हूँ। तुम यदि चाहो तो अपनी दी हुई दौलत और शोहरत छीन सकती हो।”
इस बार मोहिनी ने मेरी बात का कोई उत्तर नहीं दिया। मैं महसूस कर रहा था कि मेरे वर्तमान व्यवहार ने उसे हैरान कर दिया है। उसके बावजूद उसका पूरा चेहरा दहकते हुए तंदूर की तरह सुर्ख हो रहा था। कुछ देर तक वह क्रोधित भाव में खड़ी अपने होंठ चबाती रही। फिर मैंने महसूस किया कि उसका रहस्यमय अस्तित्व मेरे सिर पर से रेंगता हुआ ठीक एक पहाड़ी छिपकली की तरह नीचे उतर गया। बिल्कुल उसी तरह जिस तरह दीपक और कमला की हत्या के बाद हुआ था। एक क्षण के लिये मेरा दिल खुशी से उछल पड़ा कि मोहिनी के रहस्यमय अस्तित्व से मुझे छुटकारा मिल चुका है। परन्तु दूसरे ही क्षण उस रहस्यमय अस्तित्व की आशाजनक शक्तियों का विचार मेरे मस्तिष्क में उभरा तो किसी अनजाने भय से मेरे जिस्म के तमाम रोंयें खड़े हो गये।
मेरे ज़हन में एक ही ख्याल बड़ी तेजी से उभरा। कहीं ऐसा तो नहीं कि मोहिनी मुझे किसी नयी मुसीबत में फँसा दे। इस विचार के आते ही मैंने बड़ी तेजी के साथ गाड़ी का रुख घर की ओर वापिस मोड़ दिया। मैंने फैसला कर लिया था कि इससे पहले कि मोहिनी मुझे किसी मुसीबत में फँसाए, मैं डॉली को तमाम बात बता दूँगा और फिर वहीं करूँगा जिसका सुझाव मुझे डॉली देगी।गाड़ी हवा से बातें करती घर की ओर भाग रही थी। रास्ते में कई जगह दुर्घटना होते-होते बची। बहरहाल मैं किसी तरह घर पहुँच गया और फिर मैंने डॉली को आरम्भ से अन्त तक की सारी बातें बता दी। जिसे सुनकर वह यूँ मेरे चेहरे को घूरने लगी जैसे उसे मेरे पागल होने का भय हो। अथवा वह यह जानने की कोशिश कर रही थी कि मुझ पर किसी प्रकार का दौरा तो नहीं चढ़ गया। उसे मेरी बातों पर विश्वास नहीं आया था।
“डॉली, मेरी जिंदगी!” मैंने उसे अपनी बाँहों में लेकर उसके माथे को चूमते हुए ठहरे स्वर में कहना शुरू किया। “मैं जानता हूँ कि तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास नहीं आया। तुम्हें क्या, यदि कोई दूसरा भी सुनेगा तो यही कहेगा कि मेरा मानसिक सन्तुलन खराब हो गया है। लेकिन विश्वास करो मेरी जान, इस समय मैंने तुम्हें जो कुछ बताया है उसका एक-एक शब्द हकीकत है और अब मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए?”
डॉली काफी देर तक आश्चर्य और उलझन में फँसी खाली-खाली नज़रों से मेरा चेहरे तकती रही। लेकिन जब मैंने कसमें खाकर विश्वास दिलाया तो उसे मेरी बातों पर विश्वास आ गया। परन्तु बावजूद उसके वह स्थायी रूप से जैसे उस पर सकता सा जारी हो गया हो। कुछ देर बाद उसकी हालत सुधरी तो उसने कहा।
“क्या आपको विश्वास है कि मोहिनी आपको किसी मुसीबत में फँसा देगी?”
“हाँ!” मैं तिलमिलाकर बोला। “वह कमबख्त बड़ी रहस्यमय शक्तियों की स्वामी है। उसने मुझसे कई अवसरों पर यह बात कही थी कि यदि मैंने कभी उसके साथ वायदा खिलाफी की तो वह मेरे लिये नयी मुसीबतों का पहाड़ तक खड़ा कर सकती है।”
“मेरा सुझाव है कि आप किसी तांत्रिक से मिलें।” डॉली ने जल्दी से कहा। “मुझे तो मोहिनी का अस्तित्व किसी छलावा या गंदी आत्मा का मालूम होता है। जिसका तोड़ कोई तांत्रिक ही कर सकता है। आप तुरंत किसी तांत्रिक से मिलकर जान की सलामती के लिये कोई ताबीज प्राप्त कर लें। भगवान ने चाहा तो मोहिनी आपका कुछ न बिगाड़ सकेगी।”
डॉली का सुझाव कुछ इस कदर उचित था कि मुझे अपने आप पर क्रोध आ गया। जो बात डॉली ने मुझे इस समय बतायी थी, वह आजतक मेरे मस्तिष्क में क्यों नहीं आयी। वरना मैं किसी तांत्रिक से सम्बन्ध स्थापित कर चुका होता और सम्भव था कि इन तमाम मुसीबतों से सुरक्षित भी रहता, जो अब मुझे चारों ओर से घेर चुकी थीं।
इन्हीं सब विचारों में फँसा था कि डॉली ने बड़े प्यार से कहा।
“किस सोच में गुम हैं आप? मेरी मानिए तो इसी समय किसी तांत्रिक से ताबीज हासिल कर लीजिए।”
“मेरा विचार भी यही है। मगर मैं किसी तांत्रिक को नहीं जानता।”
“चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं है।” डॉली बोली। “बाहर जाकर अपने दोस्तों और मिलने-जुलने वालों से पूछें। हो सकता है कोई आपकी मदद कर दे।”
डॉली के सुझाव पर मैंने उसी समय अपने तमाम दोस्तों को फोन खड़खड़ाना शुरू कर दिया। कुछ लोगों से सम्बन्ध स्थापित न हो सका। जो लोग मिले थे, उन्होंने पहले तो इस बात पर मेरा परिहास उड़ाया कि मुझे अचानक किसी तांत्रिक की आवश्यकता क्यों आ पड़ी? फिर यह कहकर मुझे मायूस कर दिया कि वे किसी ऐसे तांत्रिक से वाकिफ नहीं हैं जो मेरी चिन्ताओं को दूर कर सके। लगभग तीन घंटे तक मैं अपने मित्रों से फोन पर सम्बन्ध स्थापित करता रहा, परन्तु मुझे अपने इरादे में कामयाबी न मिल सकी। फिर सोचा कि दफ्तर जा कर क्यों न अपने नौकरों से मालूम किया जाए। हो सकता है उनमें कोई मेरी सहायता कर सके। डॉली ने भी मेरे विचार का समर्थन किया। इसलिए मैं परेशानी की हालत में दो-चार था। इसी हालत में उठ खड़ा हुआ। डॉली बाहर मेरे साथ-साथ आयी थी। इस बीच वह लगातार मुझे तसल्ली देती रही थी और हिम्मत न हारने की तहकीद करती रही थी।
जिस समय मैंने गाड़ी में बैठकर इंजन स्टार्ट किया, उस वक़्त भी डॉली मुस्कुराती हुई आशा भरी निगाहों से मुझे विदा कर रही था। परन्तु इससे पहले कि मैं लॉन से बाहर निकल पाता, पुलिस की एक पेट्रोल कार तेजी से अंदर दाखिल हुई और उनमें से छह-सात वर्दीधारी सिपाहियों ने कूदकर मुझे अपने घेरे में ले लिया। उसके बाद वही पुलिस इंस्पेक्टर मेरी तरफ रिवॉल्वर ताने आया जिसे कमला के सिलसिले में मैंने डेढ़ लाख रुपए दिए थे।
“क्या बात है ऑफिसर?” मैंने घबराते हुए स्वर में पूछा।
“मिस्टर राज, हम आपको चरणदास (मेरे उस नौकर का नाम था जिसे मैं निकाल चुका था) की हत्या के अपराध गिरफ्तार करते हैं।” इंस्पेक्टर ने ठंडे स्वर में कहा और फिर उसके संकेत पर दो पुलिस वालों ने मुझे बाहर घसीटकर मेरे हाथों में हथकड़ियाँ डाल दीं। डॉली दरवाजे पर खड़ी स्तब्ध सी हालत में देख रही थी। परिस्थितियों ने इतनी तेजी से रुख बदला था कि मैं स्वयं भी परेशान हो गया और मामले की तह तक न पहुँच सका।
“इंस्पेक्टर!” कुछ देर के बाद मैंने आश्चर्य से कहा।
“मैं कसम खाता हूँ कि चरणदास की हत्या के सम्बन्ध में मुझे कुछ नहीं पता।”
“इसका प्रमाण आप अदालत में दीजियेगा।”
“लेकिन इंस्पेक्टर जब मैं बेगुनाह हूँ तो फिर मुझे किस लिये गिरफ्तार किया जा रहा है?”
“अब यह मक्कारी नहीं चलेगी मिस्टर राज।” इंस्पेक्टर मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूरता हुआ बोला। “सम्भव है आपने सोचा हो कि चरणदास की हत्या कर देने के बाद कमला के सिलसिले में तमाम प्रमाण खत्म कर देंगे। लेकिन आपने इस काम के लिये गलत आदमी का चुनाव किया है। कल्लन खां पहले भी कई बार सजा काट चुका है। उसके रंगे हाथों गिरफ्तार होने के बाद बड़ी आसानी से हमें सब कुछ बता दिया।”
“क्या बता दिया इंस्पेक्टर?” मैंने डूबती हुई आवाज में पूछा।
“यही कि आपने उसे दस हजार रूपए देकर चरणदास की हत्या करवायी थी!”
“यह सरासर झूठ है। मैं किसी कल्लन खां को नहीं जानता।” मैं चीख उठा।
“कमला के सिलसिले में भी पहले आपने यहीं कहा था।” पुलिस इंस्पेक्टर का स्वर इस कदर ठंडा और रहस्यमय था कि मैं गूँगा होकर रह गया।
फिर अचानक मेरे मस्तिष्क पर मोहिनी की सूरत उभरी। यकीनन यह सब कुछ उसी की इंतकामी कार्यवाही थी। उस मोहिनी की जिसने मुझे गले तक हालात के दलदल में फँसा दिया था। मेरे पास अपने बचाव के लिये इसके अतिरिक्त कोई चारा न था कि मैं चीखता-चिल्लाता और कसमें खाकर अपनी बेगुनाही का विश्वास दिलाता। लेकिन इंस्पेक्टर ने मेरी एक न सुनी। मेरी इस प्रार्थना को भी रद्द कर दिया कि मैं दो बातें डॉली से पर लूँ। फिर इसके बाद वही हुआ जो ऐसे अवसरों पर होता है।