कुल पचास खेमों का कैम्प था जिनमें एक क्वार्टर गार्ड का खेमा था, जिसके सामने दो तोपें भी रखी थीं। स्टेनगनधारी सैनिक पहरा दिया करते थे। एक बड़ा खेमा मेस का काम करता था। कैम्प के चारों ओर कटीले तारों की बाड़ थी। एक गेट था जिस पर लकड़ी का एक केबिन सा बना हुआ था। एक खेमा बंदीगृह था।
कैम्प की स्थिति से पता चलता था कि वह काफी समय से वहाँ स्थापित है। फौजियों ने बाकायदा वहाँ बागवानी की हुई थी। क्वार्टर गार्द के सामने तो फूल तक खिले हुए थे। चीन का निशान–लाल रंग का लहराता झंडा, जिसके दाईं ओर पाँच सितारे बने थे; क्वार्टर गार्द पर नजर आ रहा था। वहाँ सामने एक पार्किंग बनी थी जिसमें फौजी गाड़ियाँ खड़ी थीं। इन गाड़ियों को कैमोफ्लैज करने के लिए जमीनी रंगों से रंगा गया था। तिब्बत में सेना के कैमोफ्लैज में सफेद चकत्ते भी बनाये जाते हैं, क्योंकि वह बर्फीला क्षेत्र है। ऊपर घास-फूस के तिनके खड़े किये गये थे। ऐसा ही कुछ प्रबन्ध फौजियों की पोशाकों पर भी था। जंगी टोपों में घास-फूस के तिनके ठूँसे गये थे। चीनी सैनिक वहाँ मार्च करते नजर आते थे। सुबह शाम रोल कॉल होता था और दिन भर परेड। खेल का प्रबन्ध भी था; परन्तु खेल-कूद में वे कम ही रुचि रखते थे।
वे मुझे अच्छी दृष्टि से नहीं देखते थे, परन्तु मुझसे कुछ भयभीत रहते थे। और जब भी मैं कहीं घूमता तो पहरेदारों की नजर मुझ पर ही रहती थी। कैदी कैम्प में तीन कैदी थे जिनकी चीखें अक्सर सुनायी पड़ती थीं। उनकी चीख-पुकार से ही अंदाजा हो जाता था वे कैदी स्थानीय नहीं थे, बल्कि हिन्दुस्तानी थे। उनकी चीख इस बात की गवाह थी कि उनके प्रति चीनी सैनिकों का व्यवहार कुछ अच्छा नहीं था। मैं उनसे मिलना चाहता था, परन्तु मुझे उनसे मिलने की मनाही थी।
मेजर डॉक्टर ली संग यदा-कदा मुझसे मिलने आ जाया करता था। उसी से मुझे मालूम हुआ कि तीन कैदी भारतीय मिलिट्री इंटेलीजेंस के एजेंट हैं जो याम दरंग की खानकाह तक पहुँचने का इरादा रखते थे; परन्तु उनमें से कोई भी अपने को जासूस मानने को तैयार नहीं। वे अपने आपको व्यापारी बता रहे हैं जो तिब्बत की भेड़ों की ऊन का कारोबार करते थे। चीनी सैनिकों को संदेह है कि उनके दूसरे साथी भी हैं जो फरार होने में कामयाब हो गये थे और वे याम दरंग का खजाना हिन्दुस्तान पहुँचाने के मिशन पर आए थे। बाकी आदमियों की खोज जारी थी।
याम दरंग की खानकाह का नाम कई बार मेरे सामने आ चुका था और मुझे याद आया कि जब मोहिनी का शरीर जल रहा था तो उसने भी याम दरंग की खानकाह का उल्लेख किया था। वहाँ कोई शैतानी मकबरा भी था। मैं उस रहस्यमयी खानकाह के बारे में कुछ नहीं जानता था; और शायद चीनियों को भी वहाँ तक पहुँचने का नक्शा नहीं मिला था।
मेरी समझ में नहीं आता था कि मोहिनी की जुबान पर उस खानकाह का नाम क्यों आया था। यह बात तो मेरी समझ में आ गयी थी कि मोहिनी की इँसानी देह इसलिए नष्ट हो गयी थी क्योंकि उस आग में एक बार स्नान करने से ही अमरत्व प्राप्त होता था। दो बार स्नान करने का अर्थ उस शक्ति का खात्मा था। वहाँ मैंने बड़े भयानक जादू देखे थे। और अब उसका निशान तक वहाँ नहीं था।
मुझे याद आया कि तिब्बत के बारे में कुछ भविष्यवाणियाँ प्रचलित थीं जो बीसवीं शताब्दी के लिए की गयी थीं और वह सभी सच होती जा रही थीं। तराई की महारानी ने जो भविष्यवाणी पुस्तकों से देखकर की थी, वह भी सच ही साबित हुई थी। महारानी की मृत्यु मोहिनी के हाथों और मोहिनी का आत्मदाह और फिर मेरा चीनियों के हत्थे चढ़ना, उस रहस्यमयी धरती की तबाही, सब कुछ हुआ था।
और मुझे यूँ लगता जैसे मैं मानोसंग हूँ। चीनी लुटेरा मानोसंग, जो शैतान के मकबरे में सो रहा था। मेरे नाम राज और मानोस में कितनी समानता थी। यदि कोई चीनी या तिब्बती मेरे नाम का उच्चारण करता तो राज की बजाय मानोस ही कहता। और यूँ मेरा पूरा नाम भी राज सिंह ठाकुर है, तो मेरा नाम मानोसंग होते क्या देर लगती।
अजीब सी कैफियत थी। क्या सचमुच मुझे याम दरंग की खानकाह तक पहुँचना होगा ? और क्या यही मेरे भाग्य में बदा है ? क्या मोहिनी भी यही चाहती थी कि मैं वहाँ जाऊँ ? और वह खजाना कैसा था जिसके लिए चीन के कामरेडों की नींद हराम थी ? मैं इन्हीं विचारों में खोया रहता।
मुझे अच्छा खाना दिया गया और उन्होंने मुझे कोई कष्ट नहीं पहुँचाया; न ही मुझसे किसी प्रकार का सवाल किया गया। सप्ताह के अंत में कमांडिंग ऑफिसर कैम्प में आया। सुबह से ही हर सैनिक वर्दी चमकाता घूम रहा था। खेमों को अच्छी तरह दुरुस्त कर लिया गया था जैसे कोई ऑफिसर उनके निरीक्षण परेड पर आ रहा हो। मेरे खेमे में भी अच्छी तरह सफाई कर दी गयी थी।
दोपहर के समय कमांडिंग ऑफिसर दस सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ आ पहुँचा। एक जीप और एक ट्रक आया था, कमांडिंग ऑफिसर के स्वागत के लिए। सैनिक बाकायदा तीन कतारों में सलामी के लिए खड़े थे।
कमांडिंग ऑफिसर न जाने किस पर गरजता-बरसता रहा, कदाचित वह ऑफिसर्स का एक रसूख होता है–जब तक वह गरजे-बरसे नहीं –पता कैसे चले वह ऑफिसर है।
अधिक देर नहीं हुई जब वह सारी गर्जना उतारकर मुझसे मिलने आया। वह एक नाटे कद का फौजी था जिसकी आँखों में बिल्लियों की सी चमक थी। कँधे चौड़े और बलिष्ठ थे, चेहरे से मक्कारी टपकती थी। उसके गाल के एक हिस्से में स्याह धब्बा था जो उसकी बदसूरती और मक्कारी को और भी साकार करता था। कदाचित वह गोली या बारूद का जख्म था। गनीमत थी कि आँख बाल-बाल बची थी।
परन्तु उसके पीछे जो व्यक्ति खेमे में घुसा उसे देखकर तो मैं उछल ही पड़ता अगर मैं सब्र से काम न लिया होता। यह बूढ़ा शख्स महारानी का राज ज्योतिषी था। महारानी के इसी आज्ञाकारी ने चीनी हमले के बीज बोये थे। उसके प्रति मेरे मन में नफरत का लावा उबल रहा था; परन्तु यह मेरे सब्र का समय था। कमांडिंग ऑफिसर ने गौर से मुझे देखा। उसके होंठों पर पतली सी मुस्कुराहट आकर विलीन हो गयी।“क्यों राज ज्योतिषी ?” उसने उसी बूढ़े से पूछा। “तुम्हारी ज्योतिषी की पुस्तक क्या कहती है इस भिक्षुक के बारे में ?”
“यह भिक्षुक नहीं है।” बूढ़ा बोला। “यह वही इँसान है जिसका कि हमारी स्वर्गीय रानी ने जिक्र किया था। इसका नाम कुँवर राज ठाकुर है।”
“राज ठाकुर!” उसने मेरे नाम का उच्चारण अपने ढंग से किया–“ओह! वेरी गुड!” अब वह अंग्रेजी में मुझसे सम्बोधित हुआ “तुम ही वह व्यक्ति हो जिसके कारण उस सुन्दर धरती में तबाही आयी थी ?”
मैं तुरन्त कुछ न बोला।
“बस…बस…मुझे तुमसे अधिक कुछ नहीं पूछना।”
फिर वह राज ज्योतिषी की तरफ पलटकर बोला–“राज ज्योतिषी अब तुम जाकर आराम करो। तुम्हारा काम समाप्त हुआ और अब हमारा काम शुरू होता है।”
राज ज्योतिषी अदब से सिर झुकाकर चलता बना। कमांडिंग ऑफिसर अब मेरे सामने अकेला रह गया था। वह एक कुर्सी खींचकर बैठ गया। फिर उसने जेब से एक सिगार निकाला, उसका कोना चबाकर थूका। बराबर मुझ पर नजरें टिकाये-टिकाये उसने सिगार सुलगाया।
“यहाँ मोहिनी नामक किसी जादूगरनी का मन्दिर था मिस्टर राज ?”
“था…।” मैंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया।
“और तुम उसके प्रेमी थे ?”
“था नहीं, हूँ।”
“वेरी गुड, क्या वह अब भी जीवित है ?”
“मैं तुम्हें यह थ्योरी नहीं समझा पाऊँगा ऑफिसर। बस इसे तुम इतने ही शब्दों में समझ सकते हो कि आत्मा कभी नहीं मरती, और मोहिनी भी एक आत्मा है।”
“लेकिन यह उस आत्मा की थ्योरी है जो कोई शरीर नहीं रखती। शरीर तो मरता ही है और प्रेम अदृश्य आत्माओं से नहीं शरीर से होता है।”
“अपना-अपना विचार है। मैं प्रेम को आत्मा का मिलन समझता हूँ, शरीर का नहीं। क्योंकि शरीरों का प्रेम कभी अमर नहीं होता।”
“खैर… मैंने सुना है कि वह जादूगरनी सदियों से जीवित थी ?”
“जीवित तो वह अब भी है।”
“बता सकते हो कि वह इस वक़्त कहाँ है ?”
“वह हर जगह है।”
“वेरी गुड, शायद मैं ही न देख पा रहा हूँगा। अगर तुम देख रहे हो तो उसे हमारा भी सलाम कह दो।” उसने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा और सिगार का ढेर सारा धुआँ मेरे चेहरे की तरफ छोड़ दिया।
“क्या उन पहाड़ियों में सचमुच ऐसी कोई चीज थी जिससे इँसान अमर हो सकता था ?” सिगार के धुएँ के साथ उसने अगला प्रश्न उछाला।
“दुनिया में ऐसी चीज कहीं नहीं है।”
“फिर वह औरत सदियों तक कैसे जिन्दा रही ?”
“मैं इस भेद को नहीं जान सका।”
“इसका मतलब वहाँ ऐसी कोई चीज थी जो अमरत्व के समान थी।”
“अगर उसका वह शरीर अमर था, तो तुम्हें वह सशरीर मिलनी चाहिये थी और फिर तुम्हारी सेना ने तो यह सारी जमीन खखोल डाली होगी। क्यों नहीं पा लिया उस तत्व को ?”
“हमारी कोशिशें अभी समाप्त नहीं हुईं। हम वहाँ खुदाई कराएँगे। वह जगह भी सैनिक दृष्टिकोण से काफी सुरक्षित है। अच्छी-खासी छावनी बनायी जा सकती है। हमने तुम्हारे बारे में भी तरह-तरह की बातें सुनी हैं और हम चाहते हैं कि तुम हमारे साथ सहयोग करो।”
“किस प्रकार का सहयोग ?”
“याम दरंग की खानकाह के सिलसिले में।”
“याम दरंग की खानकाह! यह तो तिब्बत के भिक्षुओं का कोई पवित्र स्थान है, जहाँ तिब्बत की देवी माता रहती है।”
“हमें भिक्षुओं और देवी माता से कुछ लेना-देना नहीं। हमें उस खजाने से मतलब है जो चीन के एक सरदार की मिल्कियत है। जिसे उन लोगों ने लाने नहीं दिया था। इन लोगों ने खानकाह पर उस चीनी सरदार को रोक लिया था, फिर उसे मार डाला। यहीं कहीं उसका मकबरा है।”
“तुम्हें शायद भ्रम हो गया है। तिब्बत की जमीन की संपत्ति चाहे वह कहीं भी हो, तिब्बत की ही होगी। चीन की किस तरह हो सकती है ?”
“जिस तरह हिन्दुस्तान का कोहिनूर ब्रिटिश गवर्नमेंट का हो सकता है उसी तरह।” उसका स्वर कठोर हो गया। “तुम हमें बहकाने की कोशिश करोगे तो नुकसान उठाओगे। तुम्हें वहाँ जाना ही है और हमें साथ लेकर जाना है।”
“लेकिन मैं वहाँ कभी नहीं गया।”
“फिर भी तुम जा सकते हो।”
“वह किस तरह ?”
“जिस तरह तुम मोहिनी की धरती पर जा पहुँचे थे। हम तुम्हारे बारे में बहुत कुछ सुन चुके हैं। हमारे जासूस अब भी तुम्हारे जीवन की रहस्यमयी गुत्थियाँ सुलझाने में लगे हैं। तुम कुछ दिन लन्दन भी रहे जहाँ तुम्हें एक बहुत बड़े जादूगर की प्रसिद्धि मिली थी। तुम आत्माओं से बातें कर सकते हो। हिन्दुस्तान में रहकर तुमने क्या कुछ नहीं किया; इसकी भी हमें जानकारी है।”
उसकी इस तमामतर जानकारियों पर मैं चकरा गया।तुम्हें यह सब कुछ किसने बताया ?” मैंने चौंककर पूछा।
“हमारे जासूस सारी दुनियाँ की खबर रखते हैं। बताओ क्या पूछना चाहते हो अपने बारे में ?”
“ऑफिसर!” मैंने गहरी साँस ली। “जो कुछ तुमने मेरे बारे में सुना, वह अधिकतर सच ही होगा। परन्तु बावजूद इसके मैं याम दरंग की खानकाह का मार्ग नहीं जानता।”
“कमांडर कुंग सुंग मेरा नाम है और मेरे अंग्रेज दोस्त किंग के नाम से मुझे पुकारते हैं। पहले मैं चीनी सेना में एक जल्लाद की हैसियत रखता था। जल्दी ही तुम्हें मालूम हो जायेगा कि सेना का ऑफिसर होते हुए भी मेरे व्यक्तिगत शौक किस प्रकार के हैं। और मैं अपने कैदी को भरपूर वक्त देता हूँ कि वह खूब समझ ले।” कुंग सुंग उठ खड़ा हुआ। “कल सवेरे मुलाकात होगी।”
और वह मेरा कोई उत्तर सुने बिना बाहर निकल गया। कुंग सुंग के रूप में एक नयी मुसीबत मेरे सामने आ खड़ी हुई थी। मैं सारी रात याम दरंग की खानकाह के बारे में सोचता रहा। लेकिन कुंग सुंग की बातों से यही अनुमान लगाया जा सकता था कि वह इनकार सुनने का आदी नहीं है।अब इसके सिवा मैं कर भी क्या सकता था कि अपने आपको परिस्थितियों के हवाले कर दूँ।
जैसे-तैसे रात बीती।भोर हुई तो मेरे लिए हमेशा की तरह जलपान आ गया। युवक डॉक्टर ली से मेरी मुलाकात नहीं हो पायी थी, अन्यथा मैं कुंग के इरादों के बारे में उससे थोड़ी बहुत जानकारियाँ हासिल करने का प्रयास अवश्य करता।
मैं अब पूर्णतया स्वस्थ था और आने वाली परिस्थितियों के बारे में सोच रहा था। भविष्य अँधकारमय ही नजर आता था। कुंग सुंग को यकीन दिलाना बड़ा ही मुश्किल लग रहा था। और झूठ बोलने से भी अधिक बचत नहीं थी। चंद दिन अवश्य सुकून से कट जाते; परन्तु उसके बाद जब झूठ खुलता तो कुंग मेरे लिए दरिंदा बन सकता था।
दूसरे दिन जब सूरज आसमान पर आया ही था कि मुझे कुंग ने बुलाया। वह बाहर क्वार्टर गार्द के सामने धूप सेंक रहा था। वह वर्दी में नहीं था, बल्कि चीनी चोंगा पहने था। एक अजीब सी तुर्रेदार गरम टोपी उसके सिर पर थी। उसके पास ही एक रेडियो रखा था।उसने मुझे बैठने का संकेत किया और मैं एक खाली कुर्सी पर बैठ गया।
“तुमने अवश्य सुना होगा कि यहाँ तीन कैदी थे जिन पर जासूस होने का शक़ था और वे भी याम दरंग तक पहुँचने का इरादा रखते थे। परन्तु इतनी यातनाएँ सहने के बाद भी वे कुछ न बता सके। मालूम पड़ता है कि हमारे हाथ गलत आदमी आ गये। और फिर जब तुम हमारे हाथ आ गये हो तो उनकी जरूरत यूँ भी नहीं रहती। इसीलिए मैंने उन्हें रिहाई का हुक्म दे दिया है।” वह मुस्कुराते हुए बोला।
“फिर तो तुम्हारे दिल में इँसानियत का जज्बा जरूर है।” मैं भी मुस्कुरा दिया।
कुंग ने एक जूनियर ऑफिसर को कुछ आदेश दिए और वह सैल्यूट ठोंककर चला गया। चंद मिनट बाद ही तीनों कैदी कुंग के सामने थे। उनके चेहरों पर जगह-जगह नील पड़ी हुई थी। आँखें सूजी हुईं थीं। बाल बिखरे हुए थे। एक की चाँद पर से तो बाल नोचे गये मालूम पड़ते थे। उनकी उँगलियां जख्मी थीं। पाँवों पर जलने के निशान थे और वस्त्रों के नाम पर उनके शरीर पर चीथड़े झूल रहे थे।
इसके बावजूद भी वे दृढ़ इरादों के इँसान नजर आते थे। उनके शरीरों की बनावट में एक कठोरता और आत्मविश्वास की झलक मिलती थी। वे लड़खड़ा नहीं रहे थे, बल्कि चलने का भरपूर प्रयास कर रहे थे। उनके सिर झुके न थे, बल्कि गर्व से उठे हुए थे। भला कौन कहता कि वह ऊन के व्यापारी होंगे। ऐसे दृढ़ इरादों वाले इँसान तो सैकड़ों में अलग ही पहचाने जाते हैं। चीनियों ने उनकी बहुत बुरी गत बनायी थी। फिर भी उनसे कुछ न पूछ पाए थे। उन्हें देखकर मेरे सीने में भी एक जोश सा उमड़ने लगा। शायद यह जज्बा इसलिए उमड़ा था क्योंकि वे हिन्दुस्तानी थे। वतन तो हर इँसान को प्यारा होता है और मैं चाहे कितना भी बुजदिल इँसान क्यों न होता, ऐसी परिस्थिति में जोश लहरें मारने लगता। ऐसे दृढ़ इरादों वाले इँसान तो सैकड़ों में अलग ही पहचाने जाते हैं। चीनियों ने उनकी बहुत बुरी गत बनायी थी। फिर भी उनसे कुछ न पूछ पाए थे। उन्हें देखकर मेरे सीने में भी एक जोश सा उमड़ने लगा। शायद यह जज्बा इसलिए उमड़ा था क्योंकि वे हिन्दुस्तानी थे। वतन तो हर इँसान को प्यारा होता है और मैं चाहे कितना भी बुजदिल इँसान क्यों न होता, ऐसी परिस्थिति में जोश लहरें मारने लगता।
परदेश में जब दो हमवतन मिलते हैं तो अजनबी होते हुए भी उनमें एक दिली रिश्ता जुड़ जाता है। ये लोग तो शूरवीर थे। वतन के सिपाही मालूम पड़ते थे और वे अपनी सरकार के लिए सरफरोशी की तमन्ना लेकर निकले होंगे। कदम-कदम पर खतरे से बेखौफ लोगों में से थे। ऐसे इँसान तो किसी चूहे को भी शेर बनाकर कुर्बानी के लिए उकसा सकते हैं।
वे भी मुझे आश्चर्य से देख रहे थे। कुछ क्षणों के लिए ही हम लोगों की आँखें चार हुईं। मुझे कुंग के बराबर में आसीन देखकर उन्हें या तो हैरत हुई या मुझसे नफरत। परन्तु जल्दी ही उनके चेहरे भावहीन हो गये।
“मुझे खेद है कि तुम लोगों को यूँ ही पकड़ लिया गया है।” कुंग उनसे अंग्रेजी में कह रहा था। “तुम लोग हमारे किसी मतलब के सिद्ध नहीं हुए; इसीलिए मैं सोचता हूँ कि तुम लोगों को रिहा कर दिया जाए।”
उनके चेहरों पर प्रसन्नता के क्षीण भाव उभरे। परन्तु बोला कोई नहीं।
“लेकिन कुंग के कुछ शौक भी हैं। और उसका सबसे बड़ा शौक ये है कि जब उसकी कैद में कोई फँस जाता है, तो वह किसी बुजदिल को कभी रिहा नहीं करता; चाहे वह निर्दोष ही क्यों न फँसा हो। मैंने सुना है कि जब तुम लोग पकड़े गये थे, तो चालीस मील तक तुम्हारा पीछा किया गया था। तुम दोनों ने पैदल दौड़ लगाई थी, जबकि हमारे सैनिक घोड़ों पर थे।”
“वास्तव में हम डर गये थे और फिर हमारे पास पासपोर्ट भी नहीं था।” उनमे से एक बोला। “हमने यह बात पहले भी बतायी थी।”
“ठीक, तो फिर मैं देखना चाहता हूँ कि तुम इतना तेज किस तरह दौड़ते हो ? वह सामने तारों की बाड़ है। अगर तुमने तीस सेकंड में उसे पार कर दिखाया, तो समझो तुम रिहा। इस सीमा में तीस सेकेंड तक कोई तुम पर शस्त्र नहीं उठायेगा। लेकिन इकतीसवें सेकेंड में यदि तुम अन्दर पाए गये तो गोली मार दी जाएगी। देख लो और चाहो तो फासला नाप लो। तीस सेकेंड तक पार निकलने वाले का कोई पीछा नहीं करेगा, यह मेरा वादा रहा।”
तीनों उस तरफ देखने लगे जिधर कुंग ने संकेत किया था। पचास गज से अधिक का फासला नहीं था, इससे कम ही रहा होगा। अलबत्ता तारों की बाड़ अवश्य आठ फुट ऊँची थी। तार कटीले थे। उसे पार करने में अवश्य कुछ समय लग सकता था। वे लोग जख्मी थे। बड़ी मुश्किल से धीरे-धीरे चलकर यहाँ तक आये थे। कुंग की यह शर्त बेरहमाना थी। उन लोगों ने थोड़ी देर तक सोचा; फिर नजरों ही नजरों में कुछ बातें की।
कुंग उन्हें देखता रहा। वह किसी प्रकार की जल्दबाज़ी में नहीं था।
“ठीक है…हमें यह शर्त मंजूर है।” उनमें से एक ने कहा।
“वेरी गुड! यह आवाज सुनकर मुझे बड़ी खुशी हुई।” कुंग ने कँधे उचकाते हुए कहा। “पहले यह जायेगा।” कुंग ने एक तरफ संकेत किया।
वह तैयार हो गया।
“जैसे ही मैं सीटी बजाऊँ, तुम दौड़ पड़ना। उसी तीस सेकेंड के बाद मैं अपनी बन्दूक लोड करूँगा और उसके बाद निशाना बाँधकर फायर करूँगा। और अगर मेरा निशाना चूक जाए तब भी तुम रिहा समझे जाओगे। मेरे सिवा कोई तुम पर फायर नहीं करेगा।”
उसने जूनियर ऑफिसर को राइफल लाने का आदेश दिया। राइफल और उसकी गोलियाँ मेज पर रख दी गयीं।
“यह देखो, सिर्फ तीन गोलियाँ। किसका भाग्य किस गोली पर लिखा है, मैं नहीं जानता। चलो, तुम तैयार हो जाओ, मुँह उधर घुमा लो!”
वह घूमकर तैयार हो गया। मैंने उसके चेहरे पर दृढ़ विश्वास की चमक देखी।एक मिनट बीता होगा कि कुंग ने सीटी बजा दी।
वह भाग खड़ा हुआ। ठीक इस तरह जैसे मौत से बचने के लिए इँसान में एक नयी शक्ति भर जाती है। एक बार वह गिरा भी, परन्तु फिर उठकर भागा। और कुंग घड़ी पर दृष्टि जमाए था। तारों के पास पहुँचकर वह अचानक कलाबाजी खाकर गिरा। वह किसी चीज से उलझा हुआ दिखायी पड़ रहा था। शायद वहाँ रस्सियों का कोई फंदा या जाल पड़ा था। एक बार वह फिर उठा और चीखता हुआ तारों पर चढ़ने लगा। उसकी टांग में एक रस्सी का फंदा था, जो तन गया था।
अचानक कुंग ने राइफल लोड की और एक ही बार में निशाना साधकर फायर कर दिया। वह पके हुए आम की तरह खून में लिथड़ा जमीन पर आ गिरा।
“मूर्ख! क्या अँधा था, जो रस्सियों के जाल से बचकर नहीं भागा ?”
“यह धोखा है!” अचानक उनमें से एक चीख पड़ा।
“चलो अब तुम्हारी बारी है।” कुंग गुर्राया। “तुम उस रस्सी के जाल से बचकर भागना। गेट रेडी!”
इससे पहले कि वह कुछ कहता, कुंग ने सीटी बजा दी। इस बार जब कुंग ने गोली भरकर राइफल उठाई तो तीसरे ने उस पर छलाँग लगा दी। परन्तु कुंग असावधान नहीं बैठा था। वह उछलकर एक तरफ हट गया और अगले ही सेकेंड उसने पोजीशन बदलकर फायर कर दिया। उस दरिन्दे का निशाना अचूक था। गोली दूसरे कैदी पर पड़ी, तो उस समय वह तारों पर चढ़ चुका था। इससे पहले कि तीसरा आदमी उठ पाता, उसे दो सैनिकों ने दबोच लिया।
“अब तुम्हारी बारी है।” कुंग बोला।
“कमीने, कुत्ते, देख क्या रहा है ? अब उतार दे मेरे सीने में गोली।” वह आदमी चीखा। “हम मौत से नहीं डरते। हम अपने वतन के नाम पर…”
“आखिर सच्चाई जबान पर आ ही गयी!” कुंग ने ठहाका लगाया। “ये हरामज़ादे तुम लोगों से कुछ भी न उगलवा सके, और मेरे एक करतब ने ही तुम्हारा मुँह खोल दिया।”
“लेकिन तुम मुझसे कुछ भी मालूम नहीं कर सकते।” वह कैदी पागलों की तरह चीख पड़ा। “तुम मेरी बोटियाँ-बोटियाँ भी नोंच डालोगे, तब भी मेरा मुँह नहीं खुलवा सकते।”
“कैप्टन! इसके शरीर पर कीलें ठोंकने का प्रबन्ध करो।” कुंग की आवाज गूँजी।
अब मेरे सब्र का पैमाना छलकने को आ गया। कुंग से मुझे ऐसी ही नफरत हो गयी थी जैसा कि एक जमाने में हरी आनन्द से हुई थी। हमेशा ही मैं इस तरह के लोगों से नफरत करता रहा हूँ। उसका वास्तविक रूप मेरे सामने था।
“कुंग, तुम एक कमांडिंग ऑफिसर हो। तुम्हें यह सब शोभा नहीं देता। तुमने जो कुछ भी किया, वह दरिंदगी है, हैवानियत है।” न जाने कैसे मेरे मुँह से यह शब्द फूट पड़े। फिर तो गजब हो गया।
“तो तुम्हारी जुबान भी खुलने लगी, जादूगर की औलाद। मुझे भी तुम्हारा असली रूप देखना है। देखता हूँ किस तरह मुझ पर जादू चलाते हो।” कुंग के कहने के साथ ही चार सैनिक मुझ पर टूट पड़े, जो कदाचित उसके संकेत की प्रतीक्षा कर रहे थे।
कुंग सचमुच एक जालिम आदमी था। मैंने उन चार आदमियों से खुद को छुड़ाने की जद्दोजहद की, पर कई संगीनें मुझ पर तन चुकी थीं। न जाने क्यों मैं अपने आपको पहले से बेहतर हालत में समझ रहा था। शायद इसीलिए कि जुल्म सहने से मुझे आनन्द आता था और अपने उस हमवतन का साथ देने की खुशी भी थी। हम दोनों चीनियों की गिरफ्त में थे। फिर हमें ऐसे स्थान पर ले जाया गया, जहाँ दो खम्भों के ऊपर एक तीसरा खम्भा टिका था।
मुझे दोनों खम्भों के बीच बिठा दिया गया। और दूसरे कैदी की गर्दन में रस्सी का फंदा डालकर मेरी तरफ धकेल दिया गया। रस्सी का दूसरा छोर दोनों खम्भों से जुड़े तीसरे खम्भे के ऊपर से गुजरता चला गया था, जिसे चंद सैनिक खींचने लगे। कैदी के हाथ पीछे बाँध दिए गये। तीसरा खम्भा मेरे सिर से लगभग बारह-तेरह फिट ऊपर था।
“बचा सकते हो, तो बचा लो अपने इस हमवतन को।” कुंग की सर्द आवाज गूँजी।
फिर उन्होंने मेरा इकलौता हाथ मेरे शरीर से बाँध दिया।मेरे पास ही कैदी के पाँव रस्सी के तनाव के साथ जमीन से उठने लगे। मैंने उन टाँगों को अपनी देह पर रोक लिया और फिर उसके पैरों को अपने कन्धों पर जमा लिया।
“बहुत समझदार हो स्वामीजी!” कुंग ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा। “अब उसे बचाने के लिए तुम्हें इसी तरह खड़ा होना पड़ेगा। क्योंकि ज्यों-ज्यों रस्सी तनती जाएगी, उसकी टाँगें ऊपर उठती जायेंगी।”
मुझे उस कैदी की जान बचाने में बड़ी खुशी महसूस हो रही थी। यूँ लग रहा था जैसे जिंदगी में पहला कोई नेक काम कर रहा हूँ। वह तीनों ही देशभक्त थे जो अपनी जानें हँसते-हँसते गँवा देते हैं। वह सरदार भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल की सँतानें थीं।
मैं सीधा खड़ा हो गया। मेरा सीना गर्व से फूलकर तन गया।
“वेरी गुड!” कुंग सामने ही कुर्सी डालकर बैठ गया। “इसे कहते हैं देश प्रेम। तो कुँवर साहब, देखना अब यह बाकी है कि कब तक तुम इस तरह अपने देशभक्त को सँभालकर रखते हो।”
“जब तक मेरी साँस रहेगी। जब तक मेरी रगों में लहू गर्दिश करता रहेगा…” मैं मुस्कुराया। “और कुंग, तुम भी याद रखो…इँसान मरता एक ही बार है। तुम्हारी और मेरी मौत में फर्क यह होगा कि तुम नरक की आग में जलते रहोगे और मैं स्वर्ग में जगह बनाऊँगा। मैं बहादुरों की मौत मरूँगा और तुम कुत्ते की मौत…”
“अब आया कुछ मजा।” कुंग उसी प्रकार व्यंग्यात्मक स्वर में बोला। “अब समझो मुझे खानकाह के खजाने तक पहुँचने में कामयाबी मिलने वाली है। तुम दोनों में से कोई भी बताये। जो बताएगा वह जिंदा रहेगा। कुँवर साहब, जब तक तुम इसी तरह सीधे तनकर खड़े रहोगे, तुम्हारा हमवतन जिंदा रहेगा।”
यह तमाशा चीनी सैनिकों के लिए मनोरंजन का साधन बन गया। वे चारों तरफ से हम पर फब्तियाँ कस रहे थे। एक ने तो मेरी आँखों में मिट्टी झोंक डाली।
अगर इस चीज से कोई नाखुश था तो सिर्फ वह नौजवान डॉक्टर। वह इन सबसे अलग दूर खड़ा था। परन्तु वह कर भी क्या सकता था ? रस्सी कैदी के गर्दन में तनी थी और मेरे जरा सा झुकते ही उसका किस्सा तमाम था। बाद में मैंने महसूस किया कि मैंने कुछ जल्दबाज़ी से काम लिया। शायद कुंग ने मुझे भड़काने के लिए यह नाटक खेला था। कुछ देर बाद ही सैनिक अपने कामों में लग गये और कुंग भी वहाँ से चला गया। चंद पहरेदार हमारे इर्द-गिर्द पहरा दे रहे थे।