धोबन और उसका बेटा

चेतावनी ………..दोस्तो ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन और बाप बेटी के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक पारवारिक सेक्स की कहानी है
बात बहुत पुरानी है पर आज आप लोगो के साथ बाटने का मन किया
इसलिए बता रहा हू. हमारा परिवारिक काम धोबी (वाशमॅन) का था
हम लोग एक छ्होटे से गाओं में रहते थे और वाहा गाओं में धोबियों
का एक ही घर है इसीलिए हम लोग को ही गाओं के सारे कपड़े साफ
करने को मिलते थे. मेरे परिवार में मैं मेरी एक बहन और मा
पिताजी है. गाओं के महॉल में लरकियों की कम उमर में शादिया हो
जाती है इसीलिए जैसे ही मेरी बहन की उमर 16 साल की हुई उसकी
शादी कर दी गई और वो पारोष के गाओं में चली गई. पिछले एक
साल से घर में अब्ब में और मेरी मा और बापू के अलावा कोई नही
बचा था मेरी उमर इस समय 15 साल की हो गई थी और मेरा भी
सोलहवा साल चलने लगा था. गाओं के स्कूल में ही पढ़ाई लिखाई
चालू थी. हमारा एक छ्होटा सा खेत था जिस पर पिताजी काम करते
थे और मैं और मा ने कपड़े सॉफ करने का काम सम्भहाल रखा था.
कुल मिला कर हम बहुत सुखी सम्पन थे और किसी चीज़ की दिक्कत
नही थी. मेरे से पहले कपड़े साफ करने में मा का हाथ मेरी बहन
बेटाटी थी मगर अब मैं ये काम करता था. हम दोनो मा बेटे हर
वीक में दो बार नदी पर जाते थे और सफाई करते थे फिर घर
आकर उन कपड़ो की इस्त्री कर के उन्हे गाओं में वापस लौटा कर फिर
से पुराने गंदे कपड़े एकते कर लेते थे. हर बुधवार और शनिवार
को मैं सुबह 9 बजे के समय मैं और मा एक छ्होटे से गढ़े पर
पुराने कपड़े लाद कर नदी की ओर निकल परते. हम गाओं के पास बहने
वाली नदी में कपड़े ना धो कर गाओं से थोरा दूर जा कर सुनसान
जगह पर कपड़े धोते थे क्योंकि गाओं के पास वाली नदी पर साफ
पानी भी नही मिलता था और डिस्टर्बेन्स भी बहुत होता था.

अब मैं ज़रा अपनी मा के बारे में बता दू वो 34-35 साल के उमर की
एक बहुत सुंदर गोरी च्चीती औरत है. ज़यादा लंबी तो नही परन्तु
उसकी लंबाई 5 फुट 3 इंच की है और मेरी 5 फुट 7 इंच की है. मा
देखने मे बहुत सुंदर है. धोबियों में वैसे भी गोरा रंग और
सुंदर होना कोई नई बात नही है. मा के सुंदर होने के कारण गाओं
के लोगो की नज़र भी उसके उपर रहती होगी ऐसा मैं समझता हू. और
शायद इसी कारण से वो कपड़े धोने के लिए सुन-सन जगह पर जाना
ज़यादा पसंद करती थी. सबसे आकर्षक उसके मोटे मोटे चूतर और
नारियल के जैसी स्तन थे. जो की ऐसा लगते थे जैसे की ब्लाउस को
फार के निकल जाएँगे और भाले की तरह से नुकीले थे. उसके चूतर
भी कम सेक्सी नही थे और जब वो चलती थी तो ऐसे मतकते थे की
देखने वाले के उसके हिलते गांद को देख कर हिल जाते थे. पर उस
वक़्त मुझे इन बातो का कम ही ज्ञान था फिर भी तोरा बहुत तो गाओं
के लड़को की साथ रहने के कारण पता चल ही गया था. और जब भी
मैं और मा कपड़े धोने जाते तो मैं बरी खुशी के साथ कपड़े
धोने उसके साथ जाता था.
जब मा कपड़े को नदी के किनारे धोने के लिए बैठती थी तब वो
अपनी सारी और पेटिकोट को घुटनो तक उपर उठा लेती थी और फिर
पिच्चे एक पठार पर बैठ कर आराम से दोनो टाँगे फैला कर जैसा
की औरते पेशाब करने वक़्त करती है कपरो को सॉफ करती थी. मैं
भी अपनी लूँगी को जाँघ तक उठा कर कपड़े साफ करता रहता था. इस
स्थिति में मा की गोरी गोरी टाँगे मुझे देखने को मिल जाती थी और
उसकी सारी भी सिमट कर उसके ब्लाउस के बीच में आ जाती थी और
उसके मोटे मोटे चुचो के ब्लाउस के उपर से दर्शन होते रहते थे.
कई बार उसकी सारी जेंघो के उपर तक उठ जाती थी और ऐसे समय
में उसकी गोरी गोरी मोटी मोटी केले के ताने जैसे चिकनी जाँघो को
देख कर मेरा लंड खरा हो जाता था. मेरे मन में कई सवाल उठने
लगते फिर मैं अपना सिर झटक कर काम करने लगता था. मैं और मा
कपरो की सफाई के साथ-साथ तरह-तरह की गाओं घर की बाते भी
करते जाते कई बार हम उस सुन-सन जगह पर ऐसा कुच्छ दिख जाता
था जिसको देख के हम दोनो एक दूसरे से अपना मुँह च्छुपाने लगते थे.

कपड़े धोने के बाद हम वही पर नहाते थे और फिर साथ लाए हुआ
खाना खा नदी के किनारे सुखाए हुए कपड़े को इक्कथा कर के घर
वापस लौट जाते थे. मैं तो खैर लूँगी पहन कर नदी के अंदर
कमर तक पानी में नहाता था, मगर मा नदी के किनारे ही बैठ
कर नहाती थी. नहाने के लिए मा सबसे पहले अपनी सारी उतरती थी
फिर अपने पेटिकोट के नारे को खोल कर पेटिकोट उपर को सरका कर
अपने दाँत से पाकर लेती थी इस तरीके से उसकी पीठ तो दिखती थी
मगर आगे से ब्लाउस पूरा धक जाता था फिर वो पेटिकोट को दाँत से
पाकरे हुए ही अंदर हाथ डाल कर अपने ब्लाउस को खोल कर उतरती थी
और फिर पेटिकोट को छाति के उपर बाँध देती थी जिस से उसके
चुचे पूरी तरह से पेटिकोट से ढक जाते थे और कुच्छ भी
नज़र नही आता था और घुटनो तक पूरा बदन ढक जाता था. फिर वो
वही पर नदी के किनारे बैठ कर एक बारे से जाग से पानी भर भर
के पहले अपने पूरे बदन को रगर- रगर कर सॉफ करती थी और
साबुन लगाती थी फिर नदी में उतर कर नहाती थी. मा की देखा
देखी मैने भी पहले नदी के किनारे बैठ कर अपने बदन को साफ
करना सुरू कर दिया फिर मैं नदी में डुबकी लगा के नहाने लगा.
मैं जब साबुन लगाता तो मैं अपने हाथो को अपने लूँगी के घुसा के
पूरे लंड आंड गांद पर चारो तरफ घुमा घुमा के साबुन लगा के
सफाई करता था क्यों मैं भी मा की तरह बहुत सफाई पसंद था.
जब मैं ऐसा कर रहा होता तो मैने कई बार देखा की मा बरे गौर
से मुझे देखती रहती थी और अपने पैर की आरिया पठार पर धीरे
धीरे रगर के सॉफ करती होती. मैं सोचता था वो सयद इसलिए
देखती है की मैं ठीक से सफाई करता हू या नही इसलिए मैं भी
बारे आराम से खूब दिखा दिखा के साबुन लगता था की कही दाँत ना
सुनने को मिल जाए की ठीक से सॉफ सफाई का ध्यान नही रखता हू
मैं. मैं अपने लूँगी के भीतर पूरा हाथ डाल के अपने लौरे को
अcचे तरीके से साफ करता था इस काम में मैने नोटीस किया कई
बार मेरी लूँगी भी इधर उधर हो जाती थी जससे मा को मेरे लंड की
एक आध जहलक भी दिख जाती थी. जब पहली बार ऐसा हुआ तो मुझे
लगा की शायद मा डातेगी मगर ऐसा कुच्छ नही हुआ. तब निश्चिंत हो
गया और मज़े से अपना पूरा ढयन सॉफ सफाई पर लगाने लगा.
मा की सुंदरता देख कर मेरा भी मन कई बार ललचा जाता था और
मैं भी चाहता था की मैं उसे साफाई करते हुए देखु पर वो ज़यादा
कुच्छ देखने नही देती थी और घुटनो तक की सफाई करती थी और फिर
बरी सावधानी से अपने हाथो को अपने पेटिकोट के अंदर ले जा कर
अपनी च्चती की सफाई करती जैसे ही मैं उसकी ओर देखता तो वो अपना
हाथ च्चती में से निकल कर अपने हाथो की सफाई में जुट जाती
थी. इसीलिए मैं कुछ नही देख पता था और चुकी वो घुटनो को
मोड़ के अपने छाति से सताए हुए होती थी इसीलये पेटिकोट के उपर
से छाति की झलक मिलनी चाहिए वो भी नही मिल पाती थी. इसी
तरह जब वो अपने पेटिकोट के अंदर हाथ घुसा कर अपने जेंघो
और उसके बीच की सफाई करती थी ये ध्यान रखती की मैं उसे देख
रहा हू या नही. जैसे ही मैं उसकी ओर घूमता वो झट से अपना हाथ
निकाल लेती थी और अपने बदन पर पानी डालने लगती थी. मैं मन
मसोस के रह जाता था. एक दिन सफाई करते करते मा का ध्यान शायद
मेरी तरफ से हट गया था और बरे आराम से अपने पेटिकोट को अपने
जेंघो तक उठा के सफाई कर रही थी. उसकी गोरी चिकनी जघो को
देख कर मेरा लंड खरा होने लगा और मैं जो की इस वक़्त अपनी
लूँगी को ढीला कर के अपने हाथो को लूँगी के अंदर डाल कर अपने
लंड की सफाई कर रहा था धीरे धीरे अपने लंड को मसल्ने लगा.
तभी अचानक मा की नज़र मेरे उपर गई और उसने अपना हाथ निकल
लिया और अपने बदन पर पानी डालती हुई बोली “क्या कर रहा है जल्दी
से नहा के काम ख़तम कर” मेरे तो होश ही उर गये और मैं जल्दी
से नदी में जाने के लिए उठ कर खरा हो गया, पर मुझे इस बात
का तो ध्यान ही नही रहा की मेरी लूँगी तो खुली हुई है और मेरी
लूँगी सरसारते हुए नीचे गिर गई. मेरा पूरा बदन नंगा हो गया और
मेरा 8.5 इंच का लंड जो की पूरी तरह से खरा था धूप की रोशनी
में नज़र आने लगा. मैने देखा की मा एक पल के लिए चकित हो
कर मेरे पूरे बदन और नंगे लंड की ओर देखती रह गई मैने जल्दी
से अपनी लूँगी उठाई और चुप चाप पानी में घुस गया. मुझे बरा
डर लग रहा था की अब क्या होगा अब तो पक्की डाँट परेगी और
मैने कनखियो से मा की ओर देखा तो पाया की
वो अपने सिर को नीचे किया हल्के हल्के मुस्कुरा रही है और अपने
पैरो पर अपने हाथ चला के सफाई कर रही है. मैं ने राहत की
सांश ली. और चुप चाप नहाने लगा. उस दिन हम जायदातर चुप चाप
ही रहे. घर वापस लौटते वक़्त भी मा ज़यादा नही बोली.

दूसरे दिन से मैने देखा की मा मेरे साथ कुछ ज़यादा ही खुल कर
हँसी मज़ाक करती रहती थी और हमरे बीच डबल मीनिंग में भी
बाते होने लगी थी. पता नही मा को पता था या नही पर मुझे बरा
मज़ा आ रहा था. मैने जब भी किसी के घर से कापरे ले कर वापस
लौटता तो मा बोलती “क्यों राधिया के कापरे भी लाया है धोने के
लिए क्या”. तो मैं बोलता, `हा’, इसपर वो बोलती “ठीक है तू धोना
उसके कापरे बरा गंदा करती है. उसकी सलवार तो मुझसे धोइ नही
जाती”. फिर पूछती थी “अंदर के कापरे भी धोने के लिए दिए है
क्या” अंदर के कपरो से उसका मतलब पनटी और ब्रा या फिर अंगिया से
होता था, मैं कहता नही तो इस पर हसने लगती और कहती “तू लरका
है ना शायद इसीलिए तुझे नही दिया होगा, देख अगली बार जब मैं
माँगने जाऊंगी तो ज़रूर देगी” फिर अगली बार जब वो कापरे लाने जाती तो
सच मुच में वो उसकी पनटी और अंगिया ले के आती थी और
बोलती “देख मैं ना कहती थी की वो तुझे नही देगी और मुझे दे
देगी, तू लरका है ना तेरे को देने में शरमाती होंगी, फिर तू तो अब
जवान भी हो गया है” मैं अंजान बना पुछ्ता क्या देने में
शरमाती है राधिया तो मुझे उसकी पनटी और ब्रा या अंगिया फैला कर
दिखती और मुस्कुराते हुए बोलती “ले खुद ही देख ले” इस पर मैं
शर्मा जाता और कनखियों से देख कर मुँह घुमा लेता तो वो
बोलती “अर्रे शरमाता क्यों है, ये भी तेरे को ही धोना परेगा” कह
के हसने लगती. हलकी आक्च्युयली ऐसा कुच्छ नही होता और जायदातर
मर्दो के कापरे मैं और औरतो के मा ही धोया करती थी क्योंकि उस
में ज़यादा मेहनत लगती थी, पर पता नही क्यों मा अब कुछ दीनो से
इस तरह की बातो में ज़यादा इंटेरेस्ट लेने लगी थी. मैं भी चुप
चाप उसकी बाते सुनता रहता और मज़े से जवाब देता रहता था.
जब हम नदी पर कापरे धोने जाते तब भी मैं देखता था की मा अब
पहले से थोरी ज़यादा खुले तौर पर पेश आती थी. पहले वो मेरी
तरफ पीठ करके अपने ब्लाउस को खोलती थी और पेटिकोट को अपनी
च्चती पर बाँधने के बाद ही मेरी तरफ घूमती थी, पर अब वो इस
पर ध्यान नही देती और मेरी तरफ घूम कर अपने ब्लाउस को खोलती
और मेरे ही सामने बैठ कर मेरे साथ ही नहाने लगती, जब की पहले
वो मेरे नहाने तक इंतेज़ार करती थी और जब मैं थोरा दूर जा के
बैठ जाता तब पूरा नहाती थी. मेरे नहाते वाक़ूत उसका मुझे घूर्ना
बदस्तूर जारी था और मेरे में भी हिम्मत आ गई थी और मैं भी
जब वो अपने च्चातियों की सफाई कर रही होती तो उसे घूर कर देखता
रहता. मा भी मज़े से अपने पेटिकोट को जेंघो तक उठा कर एक
पठार पर बैठ जाती और साबुन लगाती और ऐसे आक्टिंग करती जैसे
मुझे देख ही नही रही है. उसके दोनो घुटने मूरे हुए होते थे और
एक पैर थोरा पहले आगे पसारती और उस पर पूरा जाँघो तक साबुन
लगाती थी फिर पहले पैर को मोरे कर दूसरे पैर को फैला कर साबुन
लगाती. पूरा अंदर तक साबुन लगाने के लिए वो अपने घुटने मोरे
रखती और अपने बाए हाथ से अपने पेटिकोट को थोरा उठा के या अलग
कर के दाहिने हाथ को अंदर डाल के साबुन लगाती. मैं चुकी थोरी
दूर पर उसके बगल में बैठा होता इसीलिए मुझे पेटिकोट के
अनादर का नज़ारा तो नही मिलता था, जिसके कारण से मैं मन मसोस के
रह जाता था की काश मैं सामने होता, पर इतने में ही मुझे ग़ज़ब
का मज़ा आ जाता था. और उसकी नंगी चिकनी चिकनी जंघे उपर तक
दिख जाती थी. मा अपने हाथ से साबुन लगाने के बाद बरे मग को
उठा के उसका पानी सीधे अपने पेटिकोट के अंदर दल देती और दूसरे
हाथ से साथ ही साथ रगर्ति भी रहती थी. ये इतना जबरदस्त सीन
होता था की मेरा तो लंड खरा हो के फुफ्करने लगता और मैं वही
नहाते नाहटे अपने लंड को मसल्ने लगता. जब मेरे से बर्दस्त नही
होता तो मैं सिडा नदी में कमर तक पानी में उतर जाता और पानी
के अंदर हाथ से अपने लंड को पाकर कर खरा हो जाता और मा की
तरफ घूम जाता. जब वो मुझे पानी में इस तरह से उसकी तरफ घूम
कर नहाते देखती तो वो मुस्कुरा के मेरी तरफ देखती हुई बोलती “
ज़यादा दूर मत जाना किनारे पर ही नहा ले आगे पानी बहुत गहरा है”,
मैं कुकछ नही बोलता और अपने हाथो से अपने लंड को मसालते हुए
नहाने की आक्टिंग करता रहता. इधर मा मेरी तरफ देखती हुई अपने
हाथो को उपर उठा उठा के अपने कांख की सफाई करती कभी अपने
हाथो को अपने पेटिकोट में घुसा के च्चती को साफ करती कभी
जेंघो के बीच हाथ घुसा के खूब तेरज़ी से हाथ चलने लगती, दूर
से कोई देखे तो ऐसा लगेगा के मूठ मार रही है और सयद मारती
भी होगी. कभी कभी वो भी खरे हो नदी में उतर जाती और ऐसे
में उसका पेटिकोट जो की उसके बदन चिपका हुआ होता था गीला होने
के कारण मेरी हालत और ज़यादा खराब कर देता था. पेटिकोट
छिपकने के कारण उसकी बरी बरी चुचिया नुमाया हो जाती थी. कापरे
के उपर से उसके बरे बरे मोटे मोटे निपल तक दिखने लगते थे.
पेटिकोट उसके चूटरो से चिपक कर उसके गंद के दरार में फसा
हुआ होता था और उसके बरे बरे चूतर साफ साफ दिखाई देते रहते
थे. वो भी कमर तक पानी में मेरे ठीक सामने आ के खरी हो के
डुबकी लगाने लगती और मुझे अपने चुचियों का नज़ारा करवाती जाती.
मैं तो वही नदी में ही लंड मसल के मूठ मार लेता था. हलकी
मूठ मारना मेरी आदत नही थी घर पर मैं ये काम कभी नही
करता था पर जब से मा के स्वाभाव में चेंज आया था नदी पर
मेरी हालत ऐसे हो जाती थी की मैं मज़बूर हो जाता था.

अब तो घर पर मैं जब भी इस्त्री करने बैठता तो मुझे बोलती
जाती “देख ध्यान से इस्त्री करियो पिच्छली बार शयामा बोल रही थी
की उसके ब्लाउस ठीक से इस्त्री नही थे” मैं भी बोल परता “ठीक है
कर दूँगा, इतना छ्होटा सा ब्लाउस तो पहनती है, ढंग से इस्त्री भी
नही हो पति, पता नही कैसे काम चलती है इतने छ्होटे से ब्लाउस
में” तो मा बोलती “अरे उसकी च्चाटिया ज़यादा बरी थोरे ही है जो वो
बरा ब्लाउस पहनेगी, हा उसकी सास के ब्लाउस बहुत बरे बरे है
बुधिया की च्चती पहर जैसी है” कह कर मा हासणे लगती. फिर मेरे
से बोलती”तू सबके ब्लाउस की लंबाई चौरई देखता रहता है क्या या
फिर इस्त्री करता है”. मैं क्या बोलता चुप छाप सिर झुका कर इस्त्री
करते हुए धीरे से बोलता “अर्रे देखता कौन है, नज़र चली जाती
है, बस”. इस्त्री करते करते मेरा पूरा बदन पसीने से नहा जाता
था. मैं केवल लूँगी पहने इस्त्री कर रहा होता था. मा मुझे
पसीने से नहाए हुए देख कर बोलती “छ्होर अब तू कुच्छ आराम कर ले
तब तक मैं इस्त्री करती हू,” मा ये काम करने लगती. थोरी ही देर
में उसके माथे से भी पसीना चुने लगता और वो अपनी सारी खोल कर
एक ओर फेक देती और बोलती “बरी गर्मी है रे, पता नही तू कैसे कर
लेता है इतने कपरो की इस्त्री मेरे से तो ये गर्मी बर्दस्त नही होती”
इस पर मैं वही पास बैठा उसके नंगे पेट, गहरी नाभि और मोटे
चुचो को देखता हुआ बोलता,

“ठंडा कर दू तुझे”

“कैसे करेगा ठंडा”

“डंडे वाले पंखे से मैं तुझे पंखा झल देता हू”, फॅन चलाने
पर तो इस्त्री ही ठंडी पर जाएगी”

“रहने दे तेरे डंडे वाले पँखे से भी कुच्छ नही होने जाने का,
छ्होटा सा तो पंखा है तेरा”

कह कर अपने हाथ उपर उठा कर माथे पर छलक आए पसीने को
पोछती तो मैं देखता की उसकी कांख पसीने से पूरी भीग गई है
और उसके गर्देन से बहता हुआ पसीना उसके ब्लाउस के अंदर उसके दोनो
चुचियों के बीच की घाटी मे जा कर उसके ब्लाउस को भेगा रहा
होता.,,,,,,,,,,, तो
घर के अंदर वैसे भी वो ब्रा तो कभी पहनती नही थी इस कारण से
उसके पतले ब्लाउस को पसीना पूरी तरह से भीगा देता था और, उसकी
चुचिया उसके ब्लाउस के उपर से नज़र आती थी. कई बार जब वो
हल्के रंगा का ब्लाउस पहनी होती तो उसके मोटे मोटे भूरे रंग के
निपल नज़र आने लगते. ये देख कर मेरा लंड खरा होने लगता था.
कभी कभी वो इस्त्री को एक तरफ रख के अपने पेटिकोट को उठा के
पसीना पोच्छने के लिए अपने सिर तक ले जाती और मैं ऐसे ही मौके
के इंतेज़ार में बैठा रहता था, क्योंकि इस वाक़ूत उसकी आँखे तो
पेटिकोट से ढक जाती थी पर पेटिकोट उपर उठने के कारण उसका
टाँगे पूरा जाग तक नंगी हो जाती थी और मैं बिना अपनी नज़रो को
चुराए उसके गोरी चिटी मखमली जाहनघो को तो जी भर के देखता
था. मा अपने चेहरे का पसीना अपनी आँखे बंद कर के पूरे आराम से
पोचहति थी और मुझे उसके मोटे कंडली के ख़भे जैसे जघो को पूरा
नज़ारा दिखती थी. गाओं में औरते साधारणतया पनटी ना पहनती
है और कई बार ऐसा हुआ की मुझे उसके झतो की हल्की सी झलक
देखने को मिल जाती. जब वो पसीना पोच्च के अपना पेटिकोट नीचे
करती तब तक मेरा काम हो चुका होता और मेरे से बर्दस्त करना
संभव नही हो पता मैं जल्दी से घर के पिच्छवारे की तरफ भाग
जाता अपने लंड के कारेपन को थोरा ठंडा करने के लिए. जब मेरा
लंड डाउन हो जाता तब मैं वापस आ जाता. मा पुचहति कहा गया था
तो मैं बोलता “थोरी ठंडी हवा खाने बरी गर्मी लग रही थी”

” ठीक किया बदन को हवा लगते रहने चाहिए, फिर तू तो अभी बरा
हो रहा है तुझे और ज़यादा गर्मी लगती होगी”

” हा तुझे भी तो गर्मी लग रही होगी मा जा तू भी बाहर घूम कर
आ जा थोरी गर्मी शांत हो जाएगी” और उसके हाथ से इस्त्री ले लेता.
पर वो बाहर नही जाती और वही पर एक तरफ मोढ़े ( वुडन प्लांक)
पर बैठ जाती अपने पैरो घुटने के पास से मोर कर और अपने
पेटिकोट को घुटनो तक उठा के बीच में समेत लेती. मा जब भी
इस तरीके से बैठती थी तो मेरा इस्त्री करना मुस्किल हो जाता था.
उसके इस तरह बैठने से उसकी घुटनो से उपर तक की जांगे और
दिखने लगती थी.

“अर्रे नही रे रहने दे मेरी तो आदत पर गई है गर्मी बर्दस्त करने
की”

“क्यों बर्दाश्त करती है गर्मी दिमाग़ पर चाड जाएगी जा बाहर घूम
के आ जा ठीक हो जाएगा”
“जाने दे तू अपना काम कर ये गर्मी ऐसे नही शांत होने वाली, तेरा
बापू अगर समझदार होता तो गर्मी लगती ही नही, पर उसे क्या वो तो
कारही देसी पी के सोया परा होगा” शाम होने को आई मगर अभी तक
नही आया”

“आरे, तो इसमे बापू की क्या ग़लती है मौसम ही गर्मी का है गर्मी तो
लगेगी ही”

“अब मैं तुझे कैसे समझोउ की उसकी क्या ग़लती है, काश तू थोरा
समझदार होता” कह कर मा उठ कर खाना बनाना चल देती मैं भी
सोच में परा हुआ रह जाता की आख़िर मा चाहती क्या है.

रात में जब खाना खाने का टाइम आता तो मैं नहा धो कर किचन
में आ जाता, खाना खाने के लिए. मा भी वही बैठा के मुझे
गरम गरम रोटिया सेक देती जाती और हम खाते रहते. इस समय भी वो
पेटिकोट और ब्लाउस में ही होती थी क्यों की किचन में गर्मी
होती थी और उसने एक छ्होटा सा पल्लू अपने कंधो पर डाल रखा
होता. उसी से अपने माथे का पसीना पोचहति रहती और खाना खिलती
जाती थी मुझे. हम दोनो साथ में बाते भी कर रहे होते.
मैने मज़ाक करते हुए बोलता ” सच में मा तुम तो गरम इस्त्री
(वुमन) हो”. वो पहले तो कुच्छ साँझ नही पाती फिर जब उसकी समझ
में आता की मैं आइरन इस्त्री ना कह के उसे इस्त्री कह रहा हू तो वो
हसने लगती और कहती

“हा मैं गरम इस्त्री हू”, और अपना चेहरा आगे करके बोलती “देख
कितना पसीना आ रहा है, मेरी गर्मी दूर कर दे”

” मैं तुझे एक बात बोलू तू गरम चीज़े मत खाया कर, ठंडी
चीज़ खाया कर”

“अक्चा, कौन से ठंडी चीज़ मैं ख़ौ की मेरी गर्मी दूर हो जाएगी”

“केले और बैगान की सब्जिया खाया कर”

इस पर मा का चेहरा लाल हो जाता था और वो सिर झुका लेती और
धीरे से बोलती ” अर्रे केले और बैगान की सब्जी तो मुझे भी आक्ची
लगती है पर कोई लाने वाला भी तो हो, तेरा बापू तो ये सब्जिया लाने
से रहा, ना तो उसे केला पसंद है ना ही उसे बैगान”\

“तू फिकर मत कर मैं ला दूँगा तेरे लिए”

“ही, बरा अक्चा बेटा है, मा का कितना ध्यान रक्ता है”

मैं खाना ख़तम करते हुए बोलता, “चल अब खाना तो हो गया ख़तम,
तू भी जा के नहा ले और खाना खा ले”, “अर्रे नही अभी तो तेरा बापू
देसी चढ़ा के आता होगा, उसको खिला दूँगी तब खूँगी, तब तक नहा
लेती हू” तू जेया और जा के सो जा, कल नदी पर भी जाना है”. मुझे
भी ध्यान आ गया की हा कल तो नदी पर भी जाना है मैं छत पर
चला गया. गर्मियों में हम तीनो लोग छत पर ही सोया करते थे.
ठंडी ठंडी हवा बह रही थी, मैं बिस्तरे पर लेट गया और अपने
हाथो से लंड मसालते हुए मा के खूबसूरत बदन के ख्यालो में
खोया हुआ सपने देखने लगा और कल कैसे उसको बदन को ज़यादा से
ज़यादा निहारँगा ये सोचता हुआ कब सो गया मुझे पता ही नही लगा

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