अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति–पार्ट -5
थोड़ी देर के लिये दीप्ति की आंख भी लग गयी. अचानक, बिस्तर के हिलने और कराहने की आवाजों से दीप्ति जाग गयी. आंखें जब अन्धेरे की अभ्यस्त हुयीं तो देखा कि अजय चादर के अन्दर हाथ डाले किसी चीज को ज़ोर ज़ोर से हिला रहा था. अजय, कमरे में अपनी मां कि मौजूदगी से अनभिज्ञ मुट्ठ मारने में व्यस्त था. शायद अजय कल की रात को सपनों में ही दुहरा रहा था. “आह, चाचीईईई” अजय की कराह सुनकर दीप्ति को कोई शक नहीं रह गया कि अजय के दिमाग में कौन है. शोभा के लिये उनका मन घृणा से भर उठा. आखिर क्यूं किया उसने ऐसा? आज उनका लाड़ला ठीक उनके ही सामने कैसा तड़प रहा है. और वो भी उस शोभा का नाम ले कर. नहीं. अजय को और तड़पने की जरुरत नहीं है. उसकी मां है यहां पर उसकी हर ज़रुरत को पूरा करने के लिये. अजय के लिये उनके निर्लोभ प्रेम और इस कृत्य के बाद में होने वाले असर ने क्षण भर के लिये दीप्ति को रोक लिया. अगर उनके पति अजय के पिता को कुछ भी पता चल गया तो? कहीं अजय ये सोचकर की उसकी मां कितनी गिरी हुई औरत है उन्हें नकार दे तो? या फ़िर कहीं अजय जाकर सब कुछ शोभा को ही बता दे तो? तो, तो, तो? बाकी सब की उसे इतनी चिन्ता नहीं थी. और अपने पति को वो सब कुछ खुद ही बता कर समझा सकती थी कि अजय की जरुरतों को पूरा करना कितना आवश्यक था. नहीं तो जवान लड़का किसी भी बाजारु औरत के साथ आवारागर्दी करते हुये खुद को किसी भी बिमारी और परेशानी में डाल सकता था. पता नही कब, लेकिन दीप्ति चलती हुई सीधे अजय की तरफ़ बिस्तर के पास जाकर खड़ी हो गईं. अजय ने भी एक साये को भांप लिया. तुरन्त ही समझ गया की ये शख्स कोई औरत ही है और पक्के तौर पर घर के अन्दर से ही कोई ना कोई है. क्या उसकी प्यारी शोभा चाची लौट कर आ गयीं हैं? क्या चाची भी उससे इतना ही प्यार करती है जितना वो उनसे? रात अपना खेल खेल चुकी थी. उसकी बिस्तर की साथी उसके पास थीं. अपने लन्ड पर उसकी पकड़ मजबूत हो गयी. बिचारा कितना परेशान था सवेरे से. दसियों बार मुत्ठ मार मार कर टट्टें खाली कर चुका था. लेकिन अब उसकी प्रेमिका उसके पास थी. और वो ही उसको सही तरीके से शान्त कर पायेंगी.
दीप्ति कांपते कदमों से अजय कि तरफ़ बढ़ी. सही और गलत का द्वंद्ध अभी तक उसके दिमाग में चल रहा था. डर था कि कहीं अजय उससे नफ़रत ना करने लगे. तो वो क्या करेगी? कहीं वो खुद ही अपने आप से नफ़रत ना करने लगे. इन सारे शकों के बावजूद बेटे को चोदने का ख्याल दीप्ति अपने दिल से नहीं निकाल पाई. चादर के अन्दर हाथ डाल कर लन्ड के ऊपर जमे अजय के हाथों को अपने दोनो हाथों से ढक लिया. अब जैसे जैसे अजय लन्ड पर हाथ ऊपर नीचे करता दीप्ति का हाथ भी खुद बा खुद उपर नीचे होता. “चाची” अजय फ़ुसफ़ुसाया. अपना हाथ लन्ड से अलग कर मां के हाथों को पूरी आजादी दे दी उस शानदार खिलौने से खेलने की. अपने सपनों की मलिका को पास पाकर अजय का लन्ड कल से भी ज्यादा फ़ूल गया. दीप्ति ने अजय के लन्ड पर उन्गलियां फ़िराईं तो नसों में बहता गरम खून साफ़ महसूस हुआ.
आंखे बन्द करके पूरे ध्यान से उस महान औजार को दोनो हाथों से मसलने लगी. दीप्ति के दिल से आवाज आई कि ये अजय का लन्ड कभी उसी के शरीर का एक हिस्सा था. इतना कठोर, इतना तगड़ा, अपने ही पानी से पूरी तरह से तर ये जवानी की दौलत उसकी अपनी थी. इससे पहले अपनी जिन्दगी में उन्होनें कभी ऐसे किसी लन्ड को हाथ में नहीं लिया था. याद नहीं अजय के जन्म से पहले क्या खाया था कि आज उसका लन्ड अपने बाप चाचा से भी कहीं आगे था.
अपने ही ख्यालों में डूबी हुई उस मां को ये भी याद नहीं रहा कि कब उनकी मुट्ठी ने अजय के लन्ड को कसके दबाकर जोर जोर से दुहना चालू कर दिया. लन्ड की मखमली खाल खीचने से अजय दर्द से कराह उठा. हाथ बढ़ा कर अजय ने मां की अनियंत्रित कलाई को थामा. दीप्ति ने दूसरे हाथ से अजय का माथा सहलाया. खुद को घुटनों के बल बिस्तर के पास ही स्थापित करती हुई दीप्ति ने लन्ड को मुठियाना चालू रखा. अजय के चेहरे से हटा अपने हाथ को दीप्ति ने अब उसके सीने पर निप्पलों को आनन्द देने के काम में लगा दिया.
“हाँ आआआआहहहह”. शरीर पर दौड़ती जादुई उन्गलियों का असर था ये. और ज्यादा आनन्द की चाह में अजय बेकरारी में अपनी कमर हिलाने लगा.
अजय के हाथ मां के कन्धों पर जम कर उन्हें अपने पास खीचने लगे. अन्धेरी रात में अजय उस मादा शरीर को अपने पूरे बदन पर महसूस करना चाहता था. लेकिन उसकी प्रेमिका ने तो पूरे कपड़े पहने हुये है. अजय की उत्तेजना अपने चरम पर थी.
उधर दीप्ति ने भी शरीर को थोड़ा और झुकाते हुए अजय के खड़े लन्ड तक पहुंचने की चेष्टा की. जो शोभा ने किया वो वह भी कर सकती है. तो क्या हुआ अगर लन्ड चूसने का उसका अनुभव जीरो है, भावनायें तो प्रबल हैं ना. एक बार के लिये उसे ये सब गलत लगा किन्तु अपने ही बेटे के साथ सैक्स करने से ज्यादा गलत भला क्या होता. मन थोड़ा अजीब सा हो रहा था लेकिन फ़िर शोभा का ख्याल आते ही नया जोश भर गया. अगर उसने आज अजय का लन्ड नहीं चूसा तो वह कल फ़िर से इस आनन्द को पाने के लिये शोभा के पास जा सकता है. नहीं. नहीं. आज किसी भी कीमत पर वो अपने लाड़ले के दिलो दिमाग से शोभा की यादें मिटा देगी चाहे इसके लिये उन्हें कुछ भी क्युं ना करना पड़े.
अजय अब अपनी सहचरी का चेहरा देखना चाहता था. वहीं चेहरा जो कल रात किसी देवी की मूर्ति की तरह चमक रहा था. हाथ बढ़ाकर बिस्तर के पास की लैम्प जलाई तो लम्बे बालों मे ढका चेहरा आज कुछ बदला हुआ लगा. ये उसकी चाची तो नहीं थीं. दीप्ति ने अपना चेहरा अजय की तरफ़ घुमाया तो लड़के के चेहरे पर दुनिया भर का आश्चर्य और डर फ़ैल गया. अजय जल्दी से अपनी चादर की तरफ़ झपटा. दीप्ति समझ गईं अभी नहीं तो कभी नहीं वाली स्थिति आ खड़ी हुई है. अगर उन्होनें वासना और अनुभव का सहारा नहीं लिया तो इस मानसिक बाधा को पार नहीं कर पायेंगी और फ़िर अजय भी कभी उनका नहीं हो पायेगा.
लन्ड पर तुरन्त ही झुकते हुये दीप्ति ने पूरा मुहं खोला और अजय के तन्नाये पुरुषांग को निगल लिया. मां के होंठ लन्ड के निचले हिस्से पर जमे हुये थे. मुहं के अन्दर तो लार का समुन्दर सा बह रहा था. आखिर पहली बार कोई लन्ड यहां तक पहुंचा था. लन्ड चुसाई करते हुए भी दीप्ति के दिल में सिर्फ़ एक ही जज्बा था कि वो अजय को सैक्स के चरम पर अपने साथ ले जायेगी जहां ये लड़का सब कुछ भूल कर बस उन्हीं को चोदेगा.
दो मिनट पहले के मानसिक आघात के बाद जो लन्ड थोड़ा नरम पड़ गया था वो फ़िर से अपने शबाब पर लौट आया. मां के लम्बे बाल अजय की जांघों और पेट पर बिखर कर अलग ही रेशमी अहसास पैदा कर रहे थे. पिछली रात से बहुत ज्यादा अलग ना सही लेकीन काफ़ी मजेदार था ये सब. अजय ने भी अब सब कुछ सोचना छोड़ कर मां के सिर को हाथों से थाम लिया और फ़िर कमर हिला हिला कर उनके मुहं को चोदने लगा.
अजय का नियंत्रण खत्म हो गया. वो अभी झड़ना नहीं चाहता था परन्तु मां का मखमली मुहं, वो जोश, वो गर्मी और मुहं से आती गोंगों की आवाजों से आपा खो कर उसका वीर्य बह निकला.
“मां” अजय सीत्कारा “रुको, रुको.. रुक जाओ” अजय चिल्लाया. दीप्ति सब समझ गई. अजय छूटने वाला था. लन्ड की नसों मे बहते वीर्य का आभास पाकर दीप्ति ने अपना मुहं हटाय़ा और मुट्ठी में जकड़ कर अजय के लन्ड को पम्प करने लगीं. गुलाबी सुपाड़े में से वीर्य की धार छूट कर सीधे मां के चेहरे पर पड़ी. दीप्ति ने दोनो आंखें बन्द कर लीं. लन्ड से अजय का सड़का झरने की तरह बह निकला. दीप्ति का हाथ अजय के वीर्य से सना हुआ था. “बर्बाद” एक ही शब्द दीप्ति के दिमाग में घूम रहा था.
अभी तक झटके लेते लन्ड को दीप्ति ने निचोड़ निचोड़ कर खाली कर दिया. लड़के के मुहं से कराह निकली “मां, ये आपने क्या कर दिया?”
“वहीं, जो मुझे बहुत पहले कर देना चाहिये था” मां ने जवाब दिया “तुमको मेरी जरूरत है. ना कि किसी चाची या किसी भी ऐरी गैरी लड़की या औरत की” “तुम मेरे हो सिर्फ़ मेरे” उनके वाक्यों में गर्व मिश्रित अधिकार था. मां के हाथ, चेहरे और नाईटी अजय के वीर्य से सने हुये थे. दीप्ति ने अजय की जांघों पर सिमटी पड़ी चादर से चेहरा रगड़ कर साफ़ किया. अजय ने बिस्तर पर एक तरफ़ हटते हुये अपनी मां के लिये जगह बना ली. दीप्ति भी अजय के पास ही बिस्तर पर लेट गयी. खुद को इस तरह से व्यवस्थित किया की अजय का चेहरा ठीक उनके स्तनों के सामने हो और लन्ड उनके हाथ में. नाईट गाऊन के सारे बटन खोल कर दीप्ति ने उसे अपने बदन से आज़ादी दे दी.
अजय की आंखों के सामने मां की नन्गी जवानी बिखरी पड़ी थी. जबसे सैक्स शब्द का मतलब समझने लगा था उसकी मां ने कभी भी उसे अपने इस रूप का दर्शन नहीं दिया था. हां चाची के साथ जरूर किस्मत ने कई बार साथ दिया था. अजय का सिर पकड़ दीप्ति ने उसे अपने चूंचों मे छिपा लिया. अजय थोड़ा सा कुनमुनाया. “श्श्श्श”. “मेरे बच्चे, तेरे लिये तेरी मां ही सब कुछ है. कोई चाची या कोई भी दूसरी औरत मेरी जगह नही ले सकती. समझे?”
अजय के होठों ने अपने आप ही मां के निप्पलों को ढूंढ लिया. जीवन में पहली बार ना सही लेकिन इस समय अपनी मां के शरीर से अपनी भूख मिटाने का ये अनोखा ही तरीका था. मां के दोनों निप्पल बुरी तरह से तने हुये थे. शायद बहुत उत्तेजित थी. अपने बेटे के लिये उसकी मां ने अपने आनन्द की परवाह भी ना की. अजय का मन दीप्ति के लिये प्यार और सम्मान से भर गया.
मां बेटे एक दूसरे से बेल की तरह लपटे पड़े थे. अजय का एक पावं दीप्ति की कमर को जकड़े था तो हाथ और होंठ मां के सख्त हुये मुम्मों पर मालिश कर रहे थे. लन्ड में भी धीरे धीरे जान लौटने लगी. पर दिन भर का थका अजय जल्दी ही अपनी ममतामयी मां के आगोश में सो गया.
दीप्ति थोड़ी सी हताश तो थी किन्तु अजय की जरुरतों को खुद से पहले पूरा करना उनकी आदत में था. खुद की टांगों के बीच में आग ही लगी थी पर अजय को जन्मजात अवस्था में खुद से लिपटा कर सोना उसे सुख दे रहा था. थोङी देर में दीप्ति भी नींद के आगोश में समा गयी. जो कुछ भी उन दोनों के बीच हुआ वो तो एक बड़े खेल की शुरुआत भर था. एक ऐसा खेल जो इस घर में अब हर रात खेला जाने वाला था.
अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति–पार्ट -6
पिछले चौबीस घन्टों में अपने ही घर की दो सीधी सादी दिखने वाली भद्र महिलाओं के साथ हुये उसके अनुभव को याद करके अजय का लन्ड फ़िर तेजी से सिर उठाने लगा. बिस्तर पर उसकी मां दीप्ति जन्मजात नन्गी अवस्था में उसकी बाहों में पड़ी हुयीं थीं. मां के कड़े निप्पलों को याद करके अजय का हाथ अपने आप ही दीप्ति के चूचों पर पहुंच गया. हथेली में एक चूचें को भर कर अजय हौले हौले से दबाने लगा. शायद मां जाग जाये और क्या पता खुद को चोदने भी दे. आज की रात वो किसी औरत के जिस्म को बिना चोदे रह नहीं पायेगा.
अजय ने धीरे से मां की तरफ़ करवट बदलते हुये अपना लन्ड उनके भारी नितंबों की दरार में घुसेड़ दिया. अपनी गांड पर दबाब पाकर मां की आंखें खुल गईं.
“अजय, ये क्या कर रहे हो?”, दीप्ति मां बुदबुदाईं.
क्य बोलता बिचारा की मां मैं तुम्हे चोदना चाहता हूं. क्या आप में से कोई भी ये बात कभी भी अपनी मां से कह पायेगा? नहीं ना? अजय ने जवाब में अपने गरम तपते होंठों से दीप्ति के कानों को चूमा. बस. इतना करना ही काफ़ी था उस उत्तेजना से पागल हुई औरत के लिये. दीप्ति ने खुद पेट के बल लेटते हुये अजय के हाथों को खींच कर अपनी झांटो के पास रखा और एक पैर सिकोड़ कर घुटना मोड़ते हुये उसे अपनी बुरी तरह गीली हुई चूत के दर्शन कराये. अजय ने मां की झांटो भरी चूत पर उन्गलियां फ़िराई. परन्तु अनुभवहीनता के कारण ना तो वो उन बालों को अपने रास्ते से हटा पा रहा था ना ही मां की चूत में अन्दर तक उन्गली करने का साहस कर पा रहा था.
समस्या को तुरन्त ही ताड़ते हुये दीप्ति ने अजय की उन्गलियो को अपने हाथों से चूत के होठों से छुलाया. फ़िर धीरे से अजय की उन्गली को गीली चूत के रास्ते पर आगे सरका दिया. जहां दीप्ति को स्वर्ग दिख रहा था वहीं अजय ये सोच कर परेशान था की कहीं उसकी कठोर उन्गलियां उसकी प्यारी मां की कोमल चूत को चोट ना पहुंचा दे. अजय शायद ये सब सीखने में सबसे तेज था. थोडी देर ध्यान से देखने के बाद बुद्धीमत्ता दिखाते हुये उसने अपनी उन्गली को चूत से बाहर खींच लिया. अब अपनी मध्यमा (बीच की सबसे बड़ी उन्गली) को मां की गांड के छेद के पास से कम बालों वाली जगह से ठीक ऊपर की तरफ़ ठेला. चूत के इस हिस्से में तो जैसे चिकने पानी का तालाब सा बना हुआ था. इस तरह धीरे धीरे ही सही अजय अपनी मां की खुजली दूर करने लगा.
दीप्ति मां सिसकी और अपनी टांगों को और ज्यादा खोल दिया. साथ ही खुल गई चूत की दीवारें भी. अब एक उन्गली से काम नही चलने वाला था. अजय ने कुहनियों के बल मां के ऊपर झुकते हुये एक और उन्गली को अपनी साथी के साथ मां की चूत को घिसने की जिम्मेदारी सौंप दी.
“आह, मेरे बच्चे”, अत्यधिक उत्तेजना से दीप्ति चींख पड़ी. बाल पकड़ कर अजय का चेहरा अपनी तरफ़ खींचा और अपने रसीलें गरम होंठ उसके होठों पर रख दिये.
आग में जैसे घी ही डाल दिया दीप्ति ने. अजय ने आगे की ओर बढ़ते हुये मां की जांघों को अपने पैरों के नीचे दबाया और फ़ुंकार मारते लन्ड से चूत पर निशाना लगाने लगा. अजय के शारीरिक बल और प्राकृतिक सैक्स कुन्ठा को देख कर दीप्ति को शोभा की बात सच लगने लगी. नादान अजय के लन्ड को जांघों के बीच से हाथ डाल कर दबोचा और खाल को पीछे कर सुपाड़े को अपनी टपकती चूत के मुहांने पर रख दिया. कमर हिला हिला कर खुद ही उस कड़कड़ाते लन्ड को चूत रस से सारोबार करने के बाद फ़ुसफ़ुसाई “अब अन्दर पेलो ये लौड़ा”. एक बार भी दिमाग में नहीं आया की ये कर्म अजय के साथ उनके एक नये रिश्ते को जन्म दे देगा. अब वो सिर्फ़ अजय की मां नहीं बल्कि प्रेमिका, पत्नी सब कुछ बन जायेंगी. अजय ने मां के मुम्मों को हथेलियों में जकड़ा और एक ही झटके में अपने औजार को मां की पनियाती चूत में अन्दर तक उतार दिया.
“ओह मांआआ”, “बहुत गरम हो तुम अन्दर से” दोनों आंखे बन्द किये हुए मां की कोख में लन्ड से खुदाई करने लगा. स्तनों को छोड़ अजय ने मां की भरी हुई कमर को पकड़ा और अपनी तरफ़ खींचा कि शायद और अन्दर घुसने को मिल जाये. अजय के अलावा दीप्ति का और कोई बच्चा नहीं था और उसके पिता के पिद्दी से लन्ड से इतने सालों तक चुदने बाद दीप्ति की चूत अब भी काफ़ी टाईट बनी हुई थी. अजय का लन्ड आधा ही समा पाया था उस गरम चूत में. “आह बेटा, चोद ना मुझे, प्लीज फ़क मी”, दीप्ति गिड़गिड़ाई. अपनी संस्कारी मां के मुहं से ऐसे वचनों को सुनकर अजय पागल हो गया.
“हां, हां, हां. बेटा, मेरे प्यारे बच्चे””यहीं तो तेरी मां को चाहिये था””रुक मत”, दीप्ति मां तकिये में चेहरा घुसाये आनन्द के मारे रो पड़ी थीं. आज तक उनके पति अजय के पिता ने कभी भी उनकी चूत को इस तरह से नहीं भरा था. सबकुछ काफ़ी तेजी के साथ हो रहा था और दीप्ति अभी देर तक इन उत्तेजना भरे पलों का मजा उठाना चाहती थी. खुद को कुहनियों पर सम्भालते हुये दीप्ति ने भी अजय के लन्ड की ताल के साथ अपने कुल्हों को हिलाना शुरु कर दिया. एक दूसरे को पूरा आनन्द देने की कोशिश में दोनो के मुहं से घुटी घुटी सी चीखें निकल रही थीं. “हां मां, ले लो मेरा लन्ड, तुम्हें चाहिये था ना?” लन्ड को दीप्ति की चुत पर मारते हुये अजय बड़बड़ा रहा था.
अचानक दीप्ति ने अपनी गति बढ़ा दी. अजय का लन्ड खुद को सम्भाल नहीं पाया और चूत से बाहर निकल कर मां की गोल गांड पर थपकियां देने लगा. “हाय, नो नो, अजय बेटा इधर आ, प्लीईईईज” “ले भर ना इसे” दीप्ति कुतिया की तरह एक टांग हवा में उठा कर कमर को अजय के लन्ड पर पटकती हुई मिन्नतें करने लगी.
लेकिन अजय का मन अब इस आसन से भर गया था. अब वो चोदते वक्त अपनी शयनयामिनी का चेहरा और उस पर आते जाते उत्तेजना के भावों को देखना चाहता था. मां को अपने हाथों से करवट दे पीठ से बल पलटा और दोनों मांसल जाघों को अलग करते हुये उठा कर अपने कन्धों पर रख लिया. हजारों ब्लु फ़िल्मों को देखने का अनुभव अब जाकर काम आ रहा था. परन्तु एक बार फ़िर से मां के अनुभवी हाथों की ज़रुरत आन पड़ी थी. दीप्ति ने बिना कहे सुने ही तुरन्त लन्ड को पकड़ कर चूत का पावन रास्ता दिखाया और फ़िर अजय की कमर पर हाथ जमा एक ही धक्के में लन्ड को अपने अन्दर समा लिया.
अजय ने मां के सुन्दर मुखड़े की तरफ़ देखा. गोरा चिकना चेहरा, ताल के साथ थिरकते स्तन और उनके बीच में से उछलता मन्गलसुत्र नाईट लैम्प की मद्दम रोशनी में दमक रहे थे. बुलबुलाती चूत में अजय का लन्ड अन्दर बाहर हो रहा था और मां किसी रन्डी कि तरह चीखने को विवश थी. “हांआआआआ, हां बेटाआआआ” “उंफ़, आह, आह, हाय राम मर गई”.
मन ही मन सोचने लगी की शायद अजय के साथ में भी जानवर हो गयी हूं. अपने ही हाथों से अपने बेटे की पीठ, कुल्हों और टांगो पर ना जाने कितनी बार नाखून गड़ा दिये मैनें.
अजय ने आगे झुक कर मां के एक मुम्में को मुहं में दबा लिया. एक साथ चुदने और चुसे जाने से दीप्ति खुद पर नियंत्रण खो बैठी. चूचों के ऊपर अजय ने दांत गड़ा कर चाहे अपना हिसाब किताब पूरा कर लिया हो पर इससे तो दीप्ति की चूत में कंपकंपी छूट गयी. दीप्ति को अपनी चूत में हल्का सा बहाव महसूस हुआ. अगले ही क्षण वो एक ज्वालामुखी की तरह फ़ट पड़ी. ऐसा पानी छूटा की बस “ओह अजय, मेरे लाल, मैं गई बेटा, हाय मांआआआआ”. दीप्ति के गले से निकली चींख घर में जागता हुआ कोई भी आदमी आराम से सुन सकता था. पूरी ताकत के साथ अपने सुन्दर नाखून अजय के नितम्बों में गड़ा दिये.
दीप्ति ने अजय को कस कर अपने सीने से लगा लिया.
लेकिन अजय तो झड़ने से कोसों दूर था. दीप्ति मां खुद थोड़ा सम्भली तो अजय से बोली “श्श्श्श्श बेटा, मैं बताती हूं कैसे करना है”. दीप्ति को अपनी बहती चूत के अन्दर अजय का झटके लेता लन्ड साफ़ महसूस हो रहा था. अभी तो काफ़ी कुछ सिखाना था इस नौजवान को. जब अजय थोड़ा सा शांत हुआ तो दीप्ति ने उसे अपने ऊपर से धक्का दिया और पीठ के बल उसे पलट कर बैठ गईं. अजय समझ गया कल रात में चाची को अपने बेटे के ऊपर सवारी करते देख मां भी आज वहीं सब करेंगी. लेकिन अजय को इस सब से क्या मतलब उसे तो बस अपनी गरम गरम रॉड को किसी चिकनी चूत में जल्द से जल्द पैवस्त करना था.
दीप्ति ने अजय को एक बार भरपूर प्यार भरी निगाहों से देखा और फ़िर उसके ऊपर आ गईं. एक हाथ में अजय का चूत के झाग से सना लन्ड लिया तो सोचा की इसे पहले थोड़ा पोंछ लूं. अजय की छाती पर झुकते हुये उसकी छाती, पेट और नाभी पर जीभ फ़िराने लगी. खुद पर मुस्कुरा रहीं थीं कि सवेरे मल मल कर नहाना पड़ेगा. दिमाग ने एक बात और भी कही कि ये सब अजय के पिता से सवेरे आंखे मिलाने से पहले होना चाहिये. दीप्ति ने बिस्तर पर बिखरे हुये नाईट गाऊन को उठा कर अजय के लन्ड को रगड़ रगड़ कर साफ़ किया. अपने खड़े हथियार पर चिकनी चूत की जगह खुरदुरे कपड़े की रगड़ से अजय थोड़ा सा आहत हुआ. हालांकि लन्ड को पोंछना व्यर्थ ही था जब उसे मां की रिसती चूत में ही जाना था. सवेरे से बनाया प्लान अब तक सही तरीके से काम कर रहा था. अजय को अपना सैक्स गुलाम बनाने की प्रक्रिया का अन्तिम चरण आ गया था. दीप्ति ने अजय के लन्ड को मुत्ठी में जकड़ा और घुटनों के बल अजय के उपर झुकते हुये बहुत धीरे से लन्ड को अपने अन्दर समा लिया. पूरी प्रक्रिया अजय के लिये किसी परीक्षा से कम नहीं थी. “हां मां, प्लीज, फ़क मी, फ़क मी…ओह फ़क” जोर जोर से चिल्लाता हुआ अजय अपनी ही मां की कोख को भरे जा रहा था. जब अजय का लन्ड उसकी चूत की असीम गहराईओं में खो गया तो दीप्ति सीधी हुई. अजय के चेहरे को हाथों में लेते हुये उसे आदेश दिया “अजय, देखो मेरी तरफ़”. धीरे धीरे एक ताल से कमर हिलाते हुये वो अजय के लन्ड की भरपूर सेवा कर रही थीं. उस तगड़े हथियार का एक वार भी अपनी चूत से खाली नहीं जाने दिया. वो नहीं चाहती थी की अजय को कुछ भी गलत महसूस हो या जल्दबाजी में लड़का फ़िर से सब कुछ भूल जाये.
“मै कौन हूं तुम्हारी?” चुत को अजय के सुपाड़े पर फ़ुदकाते हुए पूछा.
“म्म्मां” अजय हकलाते हुये बोला. इस रात में इस वक्त जब ये औरत उसके साथ हमबिस्तर हो रही है तो उसे याद नहीं रहा की मां किसे कहते है.
“मैं वो औरत हूं जो इतने सालों से तुम्हारी हर जरूरत को पूरा करती आई है. है कि नहीं?” दीप्ति ने पासा फ़ैंका. आगे झुकते हुये एक ही झटके में अजय का पूरा लन्ड अपनी चूत में निगल लिया.
“आआआआआह, हां मां, तुम्हीं मेरे लिये सब कुछ हो!” अजय हांफ़ रहा था. उसके हाथों ने मां की चिकनी गोल गांड को पकड़ कर नीचे की ओर खींचा.
“आज से तुम अपनी शारीरिक जरूरतों के लिये किसी भी दूसरी औरत की तरफ़ नहीं देखोगे. समझे?” अपने नितंबों को थोड़ा ऊपर कर दुबारा से उस अकड़े लन्ड पर धम्म से बैठ गईं.
“उउउह्ह्ह्ह, नो, नो, आज के बाद मुझे किसी और की जरुरत नहीं है.” कमर ऊपर उछालते हुये मां की चूत में जबर्दस्त धक्के लगाने लगा.
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