अभिषेक: आंटी अब में उस औरत के पास कभी नही जाऊंगा, (अभिषेक ने रोते हुए कहा)
में: क्यों क्या हुआ कुछ कहा उसने……(इस दौरान कब उसका सर मेरी छाती पर आ गया मुझे पता ही नही चला…….में उसे चुप करते हुए उसके सर पर हाथ फेर रही थी…..मुझे इसका अहसास तब हुआ जब उसकी आँखों से आँसू निकल कर मेरी स्तनों के दरमियाँ कमीज़ के गले से नीचे गये…. मेरा पूरा बदन काँप गया…..पर चाह कर भी उसे अपने से दूर ना कर पाई.)
अभिषेक: (चुप होकर सीधे बैठते हुए) कल जब में उसके पास गया था, तब वो मुझसे कहने लगी कि, में उसके घर ही आ जाउ……जब मेने पूछा कि तुम घर वालो को क्या कहोगी तो उसने कहा कि, कहूँगी तुम्हे घर के कामो के लिए नौकर रखा है….जब मेने उसे इस बात के लिए मना किया और कहा कि, में अब अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ २ साल बाद मुझे पापा की सरकारी नौकरी भी मिल जाएगी….में ये नौकरा वाला काम नही करना…….तो वो मुझ पर बरस पड़ी..बहुत झगड़ा किया……और मुझे थप्पड़ भी मार दिया.
में: अच्छा अब रोना बंद करो…..मेने कहा था ना कि वो तुम्हारी जिंदगी खराब कर देगी……..अच्छा किया जो उसे जवाब दे दिया…..अच्छा अब रोते नही तुम तो इतने बहादुर हो……..
मेरे काफ़ी समझाने के बाद उसने रोना बंद कर दिया……और फिर वो मेरे साथ नीचे आ गया……..हम तीनो ने साथ मिल कर नाश्ता किया..और फिर प्राची और उसके पति की मेहमाननवाज़ी की तैयारी करने लगी……६
दोपहर तक हम सब तैयार कर चुके थे……अभिषेक ने रात को ड्यूटी पर भी जाना था…इसीलिए वो खाना खा कर अपने रूम में जाकर सो गया…….दोपहर को प्राची और उसका पति विशाल दोनो घर पर आ गये……मेने बेटी को गले से लगा लिया….बेटी को देखते ही मेरी आँखें नम हो गयी…..
चाइ नाश्ते के बाद प्राची ने मुझसे पूछा…..माँ अभिषेक भैया कहाँ पर है….
में: अपने रूम में सो रहा है, उसकी रात की ड्यूटी है…..
उसके बाद मेने और प्राजक्ता ने प्राची से ढेर सारी बातें की, उसके ससुराल के बारे में पूछा….उसके चेहरे की खुशी ही बता रही थी कि, वो कितनी खुश है. उसने मुझे बताया कि उनका घर बहुत बड़ा है..घर में उनके अलावा उसके सास ससुर ही है, और काम करने के लिए नौकरानी भी रखी हुई है…….
अपनी बेटी की बातें सुन कर मेरा दिल खुशियों से भर गया….मेने कभो सपने में भी नही सोचा था कि, मेरी बेटी की शादी इतने बड़े घर में होगी. और वो इतनी खुश रहेगी……..रात को अभिषेक खाना खा कर काम के लिए चला गया….अब प्राची घर पर थी तो, प्राजक्ता के बारें ख़तम होने का नाम ही नही ले रही थी.. वो तो ऐसे बातें कर रही थी……जैसे अपनी बेहन से बरसो बाद मिली हो…
विशाल भी दिल का बहुत अच्छा था…….प्राजक्ता के हर मज़ाक और बात का मुस्करा कर जवाब देता….हम रात के १ बजे तक यूँ ही बातें करते रहे……उसके बाद जब तक नींद ने अपना पूरा असर नही दिखाई तब तक बैठे रहे….लेटते ही नींद आ गयी…..कब सुबह हुई पता ही नही चला…..सुबह नाश्ते के वक़्त अभिषेक भी आ गया…..फिर मेने उसे भी अपने साथ नाश्ते के लिए कहा…….थोड़ी झिझक के साथ वो भी मान गया…….
नाश्ते के बाद विशाल ने कहा “मम्मी अब हमें चलना चाहये”
मेने कहा एक दो दिन रुक जाते तो”
विशाल: नही मम्मी जी काम बहुत है. ……ऊपर से पापा अकेले है काम संभाल नही पाएँगे…….अगली बार लंबी छुट्टी लेकर आएँगे……पर पहले आप को और प्राजक्ता को हमारे घर आना होगा”
थोड़ी देर और हँसी मज़ाक चलता रहा…….फिर प्राची और विशाल अपने घर के लिए चले गये……..
दिन इस तरह कट रहे थे……सब कुछ नॉर्मल चल रहा था…..अब में अभिषेक पर पूरा यकीन करने लगी थी……और उसने भी कभी मुझे शिकायत मोका नही दिया था………जब उसकी नाइट ड्यूटी होती, तो में कभी बाज़ार कुछ खरीदने के लिए जाती तो प्राजक्ता और अभिषेक दोनो घर पर अकेले होते….पर अक्सर अभिषेक सो रहा होता क्योंकि रात भर जाग कर काम करता था……… मेरे विश्वास भी उस पर बढ़ता जा रहा था…..हर दुख सुख में उसने मेरी बहुत मदद की थी. वो मुझे बहुत ही नेक दिल बच्चा लगता था. वो तो उसे उर्मिला ने अपने चुंगल में फँसा लिया……….नही तो वो ऐसी हरकत भी ना करता…
७ एक दिन में किसी काम से बाज़ार गये हुई थी, लौटने में बहुत देर हो चुकी थी….जब मेने घर के बाहर पहुँच कर डोरबेल बजाई तो, काफ़ी देर तक गेट नही खुला……..मेने फिर से डोर बेल बजाई पर गेट नही खुला…..जब में तीसरी बार डोर बेल बजाने वाली थी…….तब जाकर गेट खुला……..गेट अभिषेक ने खोला था….
वो मेरे से नज़रे नही मिला रहा था…..गेट खोलने के बाद वो अपने रूम में चला गया……मेने गेट बंद किया, और अपने रूम की तरफ जाने लगी…..जब में उसके रूम के सामने से गुज़री तो, उसके रूम का डोर बंद था…..मेने प्राजक्ता के रूम में देखा तो, प्राजक्ता सो रही थी………मुझे कुछ अजीब सा लगा…..पर मेने ज़्यादा ध्यान नही दिया……
मेने अपने रूम में आ गयी……और बेड पर लेट गयी…..लेटते ही थके होने के कारण मुझे नींद आ गयी….शाम को जब उठी, तो चाइ बना कर किचन से प्राजक्ता और अभिषेक को आवाज़ दी……में चाइ लेकर बरामदे में आ गयी….प्राजक्ता तो उठ कर बाहर आ गयी……..पर अभिषेक शायद अभी तक सो रहा था…….ये सोच कर में उसके रूम के तरफ गयी……….पर अभिषेक रूम में नही था…में जैसे ही पलट कर वापिस जाने लगी तो, मेरा ध्यान बेड के नीचे पड़े ब्लॅक कलर के कपड़े पर गया…..वो क्या चीज़ थी…..जैसे ही मुझे इसका अहसास हुआ……..
मेरे हाथ पैर काँपने लगे……”नही ये नही हो सकता…ये मेरी आँखों का धोका भी हो सकता है” पर फिर भी मन नही माना…..और मेरे काँपते हुए पैर उस बेड की तरफ बढ़ने लगी…..बेड के पास जाकर में नीचे झुकी और उस कपड़े को अपने हाथों में उठा लाया…..मेरे दिल के धड़कने मानो जैसे बंद हो गयी हो…..मुझे यकीन नही हो रहा था…..वो एक ब्लॅक कलर की पैंटी थी..
जिसे पहचानने में मुझे एक पल ना लगा……”ये ये तो प्राजक्ता की पैंटी है” मेरी तो जैसे साँसे ही थम गयी हो….सब कुछ मानो थम सा गया हो…ये ये यहाँ पर कैसे……दोपहर को भी अभिषेक ने बहुत देर बाद डोर खोला था….कही अभिषेक और प्राजक्ता कुछ… नही नही …ये नही हो सकता…….अभिषेक मेरे साथ ऐसा नही कर सकता…मेने उसे अपने बेटे जैसा माना है……में बहुत परेशान हो गयी थी…..मुझे समझ में नही आ रहा था कि, में क्या करूँ….लाखो सवाल मेरे जहन में घूम रहे थे….तभी बाहर से प्राजक्ता की आवाज़ आई”माँ कहाँ रह गयी” में एक दम से हड़बड़ा गयी…..और जल्दी से पैंटी को अपनी सलवार के जबरन में फँसा कर बाहर आई और सीधा अपने रूम में चली गयी, और उसे वहाँ पर रख दिया….और बाहर आ गयी….बाहर आकर में नीचे बैठ गयी…..मुझे ऐसा लग रहा था, जैसे मेरी दुनिया ही लुट गयी हो… तभी अभिषेक बाथरूम से बाहर आया, और पास बैठ कर चाइ पीने लगा……
मुझे परेशान देखकर अभिषेक ने मुझ से पूछा कि क्या हुआ आप इतनी पेरेशान क्यों लग रही हो……….उस पर मेने कहा नही कोई बात नही है…….पर मेरे मन में हज़ारो सवाल चल रहे थे…….कि आख़िर हो क्या रहा है…….मुझे पता करना ही होगा….रात को अभिषेक खाना खा कर ड्यूटी पर चला गया……
अब मेरे दिमाग़ ने भी काम करना बंद कर दिया था….कहीं मेरी बेटी ग़लत रास्ते पर तो नही चल रही…….मेने मन में ठान लिया था कि, अब चाहे जो भी हो जाए…..में प्राजक्ता से बात करके रहूंगी……खाना खाने के बाद मेने सारा काम ख़तम किया, और प्राजक्ता के रूम में गयी…….
मुझे अपने रूम में देख कर प्राजक्ता ने पूछा क्या हुआ माँ, तो मेने उसकी पैंटी दिखाते हुए गुस्से से पूछा ये क्या है…..
जैसे ही प्राजक्ता ने वो अपनी पैंटी मेरे हाथ में देखी, उसके चेहरे का रंग उड़ गया….पर फिर अपनी घबराहट को छुपाते हुए बोली…..”ये ये तो मेरी पैंटी है माँ ! आप भी ना”
में: (गुस्से से) वो तो मुझे भी दिख रहा है……पर ये अभिषेक के रूम में कैसे पहुची ?
प्राजक्ता: (मेरी ये बात सुन कर और घबरा गयी, और रुवासि से होकर बोली) वो वो जब मेने ऊपर छत से कपड़े उतारे थे,और अभिषेक के कपड़े देने उसके रूम में गयी थी…शायद उसी के बीच में चली गयी होगी….
भले ही प्राजक्ता कुछ और ही कह रही थी……पर उसकी घबराहट से साफ जाहिर हो रहा था कि वो मुझ से झूट बोल रही है….में अब गुस्से से पागल हुई जा रही थी ……मे तेज़ी से प्राजक्ता की तरफ गयी……और उसके गाल पर जोरदार थप्पड़ मार दिया…..थप्पड़ पड़ते ही वो गाल पर हाथ रख कर सुबकने लगी……..
में: सच सच बता…..क्या चल रहा है तुम दोनो के बीच में…….
प्राजक्ता: (अब जोर जोर से रोने लगी थी) सच माँ कुछ नही है…..
में: (और गुस्से से चिल्लाते हुए) बताती है कि नही कि और लगाऊ……..
प्राजक्ता: (सुबक्ते हुए) वो माँ में में अभिषेक से प्यार करती हूँ……
उसकी ये बात सुन कर तो जैसे मेरे बदन में आग ही लग गयी हो…….मेने एक के बाद एक ४-५ थप्पड़ उसके गालो पर जड़ दिए……..
में: तुम जानती भी हो प्यार किसी कहते है……..ये सब गंदी हरकते करके तुम इसे प्यार का नाम दे रही हो…..तूने हमारी इज़्ज़त मिट्टी में मिला दी….
प्राजक्ता सुबक्ते हुए मेरे पास आई, और मुझसे सॉरी कहने लगी…..”पर में उस पर और बरस पड़ी और बोली, तुझे तो बाद में देखूँगी…पहले कल उसकी खबर लेती हूँ”
में ये कह कर अपने रूम में आ गयी.मुझे रह रह कर उर्मिला की बात याद आ रही थी. सच कहा था उर्मिला ने.अभिषेक कोई बच्चा नही था,वो शिकारी था और इस शिकारी ने मेरी मासूम बच्ची का शिकार कर लिया था.अब उसे इस शिकारी के चंगुल से आजाद कराने की जिम्मेदारी मेरी थी.
अगली सुबह डोर बेल बजी……मेरा गुस्सा पहले ही सातवें आसमान पर था….में गेट पर गयी, और गेट खोला. बाहर अभिषेक खड़ा मेरी तरफ देख कर मुस्करा रहा था….जी तो चाह रहा था कि इस हरामजादे का यही मूह तोड़ दूं……पर में नही चाहती थी कि हंमरे घर की इज़्ज़त बाहर गली मुहल्ले में उछले…….
अभिषेक सीधा अंदर चला गया,और अपने रूम में जाने लगा….मेने जल्दी से गेट लॉक किया, और उसकी तरफ पलटी….
में: (गुस्से से चिल्लाते हुए) वही रुक जा हरामजादे…….
मेरी आवाज़ सुन कर अभिषेक मेरी तरफ पलटा, और हैरत से मेरी तरफ देखने लगा.
में: हां तुझे ही कह रही हूँ…..वेश्या की औलाद…….
अभिषेक: क्या हुआ आंटी आप मुझसे ऐसे क्यों बात कर रही है………
में गुस्से से उसकी तरफ बढ़ी, और उसको उसके बालों से पकड़ कर खेंचते हुए ४-५ झापड़ उसके मूह पर दे मारे……पर इस अचानक हमले से वो लड़खड़ा कर पीछे गिर गया…..पर गुस्सा अभी भी शांत नही हुआ था….में फिर उसकी तरफ लपकी…..पर उसने मुझे पीछे धक्का दे दिया…..
में: हरामज़ादे हमारी इज़्ज़त को उछालता है….में तुझे जिंदा नही छोड़ूँगी…….
में उसकी तरफ फिर लपकी, और उल्टे हाथ पैर चलाने लगी…….अभिषेक भी बचने के लिए हाथ पैर चलाने लगा….प्राजक्ता जो अब तक अंदर खड़ी तमाशा देख रही थी भागते हुए बाहर आ गयी.और मुझे पकड़ने लगी……..
प्राजक्ता: माँ क्या कर रही हो….पूरा माहौल्ला इकट्ठा हो जाएगा……
में: प्राजक्ता में कहती हूँ छोड़ मुझे…….में आज इसे जिंदा नही छोड़ूँगी…….
अभिषेक: अबे क्या नौटंकी लगा रखी है……..मेने तेरी लड़की के साथ कोई ज़बरदस्ती नही की, अगर मेरी ग़लती है तो तेरी भी लड़की की उतनी ही ग़लती है…….
में: तू अभी के अभी निकल यहाँ से…..में तेरी शकल भी नही देखना चाहती. आज के बाद इधर नज़र उठाई तो तेरी आँखें निकाल दूँगी……
अभिषेक: जा रहा हूँ.. जा रहा हूँ….मुझे भी कोई शॉंक नही है यहाँ रहने का….वो तो प्राजक्ता से प्यार करता हूँ इसीलिए चुप हूँ…….
में: चुप कर हरामी ! गंदी हरकते करके उसे प्यार का नाम देता है..दफ़ा हो जा यहाँ से……
अभिषेक अपने रूम का डोर पटके हुए अंदर गया, और अपने कपड़े और समान बॅग में डालने लगा…..में बाहर बरामदे में चारपाई पर बैठ गयी…. अभिषेक अपना समान बॅग में डाल कर चला गया……कुछ दिन घर का महॉल ऐसे ही रहा. अभिषेक के जाने के बाद प्राजक्ता उदास रहने लगी थी…..मुझे डर था कि बचपने में वो कोई ग़लत कदम ना उठा दे…..धीरे धीरे घर का माहॉल ठीक होने लगा……फिर हमारे दो रूम रेंट पर चढ़ गये…..दोनो ही रूम एक फॅमिली ने रेंट पर लिए थे….उनके बच्चे अभी बहुत छोटे थे……इसीलिए एक दिन मेने अपने जेठ और जेठानी के घर जाने का प्लान बनाया. में सुबह किरायेदार की बीवी को ये बोल कर चली गयी कि, में किसी काम से जा रही हूँ…..वो प्राजक्ता का ध्यान रखे………
जब में अपनी जेठानी के घर पहुचि, तो वो मुझे देख कर बहुत खुश हुई, मानसी ने मुझे अंदर बुलाया और खातिरदारी की, उसके बाद में हमने थोड़ा इधर उधर की बातें की……
मानसी: और दीदी बताए कैसे आना हुआ……
में: दरअसल में इसलिए आई थी कि, में चाहती हूँ कि तुम प्राजक्ता के लिए भी कोई अच्छा सा रिश्ता ढूँढ दो…..उसकी शादी भी जल्द से जल्द करवानी है मुझे…..
मानसी: क्या हुआ दीदी कोई बात है क्या ?
में: नही ऐसे ही, दरअसल मेरी तबीयत भी आज कल ठीक नही रहती……सोचती हूँ कि आँखें बंद करने से पहले प्राजक्ता भी अपने घर चली जाए…..
मानसी: क्या हुआ दीदी आग लगे दुश्मनो को……अभी तो आप जवान हो….फिर ऐसी बात क्यों कर रही है……
में: मानसी प्लीज़ प्राजक्ता के लिए अच्छा सा रिश्ता ढूँढ लो…….प्राची को अपने ससुराल में खुश देखती हूँ तो दिल का बोझ हल्का हो जाता है…..
मानसी: में समझती हूँ दीदी…..इनको आने दो आज रात को ही बात करती हूँ…
में: ठीक है और सूनाओ बच्चे कैसे है…….
मानसी: ठीक है दीदी…….स्कूल गये है…….
दोफर को खाने के बाद में घर वापिस आ गयी…..जब में घर वापिस आई तो, प्राजक्ता घर पर नही थी……जब मेने किरायेदार से पूछा तो बोली, वो उसकी सहेली आई थी, उसके साथ मार्केट गयी है…….मुझे पता नही क्यों चिंता होने लगी थी……उस वाक़ए को ३ महीने गुजर गये थे……..उसके बाद से ना तो मेने अभिषेक की शकल देखी थी, और ना ही नाम सुना था……थोड़ी देर बाद प्राजक्ता भी आ गयी……दिन गुज़रते गये…..८
अप्रैल का महीना था……शाम के ४ बजे की बात है…..उस घटना को लगभग ६ महीने हो चुके थे…..में अपने घर में बैठी हुई सिलाई का काम कर रही थी……१० दिन पहले जो फॅमिली हमारे घर रहने आई थी.वो भी कमरा खाली कर जा चुके थे……..
कई जगह प्राजक्ता के रिश्ते की बात चली, पर बात नही बन पाई……उस दिन में बैठी कपड़े सिल रही थी….प्राजक्ता अपनी सहेली के घर में थी पड़ोस में तभी बाहर डोर बेल बजी…….मेने सोचा कि, प्राजक्ता आ गयी है…मेने जैसे ही बाहर जाकर गेट खोला तो, मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गयी…..सामने अभिषेक खड़ा था….उसको देखते ही मेरी रगो में खून का दौरा तेज हो गया …
में: तू तू क्या लेने आया है इधर……
अभिषेक कुछ नही बोला, और मेरी तरफ एक पॅकेट बढ़ा दिया……”क्या है ये” मेने गुस्से से उससे कहा…..”देखो लो…..तुम्हारे लिए बहुत ज़रूरी समान है इसमे” मेने उसके हाथ से वो पॅकेट नही लिया…..उसने एक बार मेरी तरफ देखा, फिर उसने वो पॅकेट गेट के अंदर नीचे फेंक दिया……फिर वो मुड़कर वापिस चला गया…..मुझे समझ में नही आया वो यहाँ क्या करने आया है….मेने गेट बंद किया, और पॅकेट को उठा कर खोला…….
जैसे ही मेने पॅकेट खोला, तो उसमे से एक डीवीडी डिस्क निकल कर बाहर आ गयी….और उसमे एक स्लिप भी थी जिस पर लिखा हुआ था ये डीवीडी देखने के बाद तुम्हे मेरी ज़रूरत पड़ेगी…..और उसके नीचे उसका मोबाइल नंबर लिखा हुआ था……
मेने गेट लॉक किया, और अंदर आ गयी…..नज़ाने क्यों मेरा दिल बहुत घबरा रहा था….प्राजक्ता भी पड़ोस के घर में थी….मेने वो डीवीडी ली, और उसे डीवीडी प्लेयर में लगाया….थोड़ी देर बाद उसमे कुछ शुरू हुआ…..कॅमरा कुछ घूम सा रहा था……फिर किसी का हाथ कॅमरा के सामने आया, और कॅमरा एक जगह सेट हो गया……ये किसी रूम का नज़ारा था……
पर मुझे समझ में नही आ रहा था कि कहाँ का सीन था. थोड़ी देर बाद अभिषेक उसमे दिखाई दिया…वो बेड पर बैठा हुआ था……और वो किसी से बात कर रहा था. जो शायद कॅमरा के दूसरी तरफ था…..फिर वो शक्स सामने आया………जिसे देखते ही मेरी रूह तक काँप गयी…..वो प्राजक्ता थी…..प्राजक्ता अभिषेक के पास आकर बेड पर बैठ गयी…..में बड़ी हैरानी से ये सब देख रही थी….क्योंकि जिस रूम में वो क्लिप बनी थी वो हमारा नही था…….
फिर अभिषेक ने प्राजक्ता को पकड़ कर अपनी तरफ खेंचा, और उसके होंठो पर होंठ लगा दिए…..ये देखते ही मेरे पैरो की ज़मीन खिसक गयी…….प्राजक्ता कब उससे मिलने गयी……..मुझे याद भी नही था कि, कब वो इतनी देर तक घर से बाहर रही…मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था……प्राजक्ता भी अपने बाहें अभिषेक के गले में डाले हुए, उसका पूरा साथ दे रही थी……
मेरे आँखें टीवी पर इस कदर गढ़ गई थी कि, में अभिषेक की हर हरक़त को देखने की कोशिश कर रही थी………और मेरा दिल बैठा जा रहा था…..अभिषेक ने अपने हाथों को उसकी कमर से ऊपर लेजाते हुए, प्राजक्ता की स्तनों पर ले गया. जिसके कारण प्राजक्ता उससे और चिपक गयी……..वो प्राजक्ता के होंठो को चूस्ते हुए उसकी स्तनों को दबा रहा था…….और बार बार उसको अपनी तरफ खेंच रहा था….
फिर उसने प्राजक्ता की कमीज़ को दोनो तरफ से पकड़ कर ऊपर उठाना शुरू कर दिया…..और मुझे ये देख कर बहुत हैरानी हुई, ये सब करते हुए, प्राजक्ता भी उसका पूरा साथ दे रही थी….अगले ही पल उसने प्राजक्ता की कमीज़ को उसके बदन से अलग कर नीचे फेंक दिया……..प्राजक्ता की कमीज़ को नीचे फर्श पर देख कर मुझे ऐसा लगा कि हमारी इज़्ज़त नीचे फर्श पर पड़ी धूल चाट रही है….
फिर उसने उसकी स्तनों को ब्रा के ऊपर से पकड़ कर मसलना शुरू क्या..प्राजक्ता उसकी बाहों में छटपटाने लगी……..फिर अभिषेक ने एक हाथ नीचे लेजाते हुए, उसकी सलवार का नाडा खोल दिया……प्राजक्ता बेशर्मो की तरह उसकी गोद में बैठी हुई थी…..जब अभिषेक ने उसकी सलवार को नीचे सरकाना शुरू किया…उसने बड़ी बेशर्मी से अपनी नितंब को ऊपर उठा लिया……..और अभिषेक ने खेंचते हुए उसकी सलवार उसके पैरों से निकाल कर नीचे फेंक दी……
कॅमरा का फोकस सीधा उन पर था……मेरी अपनी बेटी उस हरामी की गोद में अधनंगी बैठी हुई थी…फिर अभिषेक ने पीछे से उसकी टाँगों को घुटनो से मोड़ कर फेला दिया……..और एक हाथ आगे लेजा कर उसकी पैंटी को एक साइड में कर दिया…..मेरी तो आँखें फटी की फटी रह गयी….पैंटी को साइड करके, उसने प्राजक्ता की योनि की फांकों को अपने हाथ की उंगलियों से खोला…उसका गुलाबी छेद में साफ साफ देख पा रही थी……..तभी टीवी पर ब्लॅक स्क्रीन आ गयी….डीवीडी ख़तम हो चुकी थी……मैं सच में बहुत घबरा गयी थी…मुझे समझ में नही आ रहा था कि में क्या करूँ…….तभी फोन की रिंग बजी……मेने जल्दी से प्लेयर में से डीवीडी निकली, और अपने साथ लेकर अपने रूम में आ गयी….
मेने काँपते हुए हाथों से फोन उठाया, और बड़ी ही मुश्किल से हेलो कहा..उधर से अभिषेक की आवाज़ थी…..
अभिषेक: क्यों आंटी जी कैसे लगी फिल्म……
में: अपनी बकवास बंद कर, अगर तू मेरे सामने होता ना…तेरा मूह तोड़ देती में…..
अभिषेक:ओह इतना गुस्सा ! इतना गुस्सा ठीक नही है आपकी सेहत के लिए…..ये तो सिर्फ़ टेलर था…..अभी तो पूरी फिल्म बाकी है……तो बोलो कब आ रही हो ?
में: क्या ?
अभिषेक: पूरी फिल्म देखने जो मेरे पास है …….
में: हरामज़ादे में तुम्हारी रिपोर्ट पोलीस में करदुंगी,
अभिषेक: ना ना ना भूल कर भी ऐसी ग़लती मत करना…..नही तो मुझ से बुरा कोई ना होगा……..पूरे बाज़ार में तुम्हारी बेटी की सहवास की मूवी बना कर बेच दूँगा….और पता है नाम क्या रखूँगा…..प्राजक्ता ठुकी अपने यार के लिंग से…हा हा हा”
उसकी वो कमीनी हँसी ने मुझे अंदर तक झींझोड कर रख दिया……”में तेरी बातों में नही आने वाली कमीने.जब पोलीस के हत्ते चढ़ेगा ना तब पता चलेगा. ऐसी जगह लेजा कर मारूँगी कि तुझे पानी पूछने वाला कोई ना होगा.” में गुस्से में जो मन में आ रहा था बोले जा रही थी..
अभिषेक: ओह्ह अच्छा रस्सी जल गयी पर बल नही गया….देखते है कि तुम क्या कर सकती हो…..मेरे तो आगे पीछे कोई रोने वाला भी नही…..में तो मर जाऊंगा. पर तुझे और तेरी बेटी को कहीं का नही छोड़ूँगा…….अब तू देख में क्या करता हूँ
ये कह कर उसने फोन रख दिया…….में वही बैठ कर फुट फुट कर रोने लगी…और उस मनहूस घड़ी को याद कर कोसने लगी…..जब मेने उसे अपने यहाँ रहने के लिए रूम दिया था……में काफ़ी देर तक वही बैठी रोती रही….और पता नही कब मेरी आँख लग गयी…..में तब उठी जब प्राजक्ता ने बाहर आकर डोर बेल बजाई…..मेने उठ कर बाहर गयी, और गेट खोला……मेरी आँखें रोने से लाल हो चुकी थी……
जिसका पता प्राजक्ता को चल गया……..” क्या हुआ माँ आप रो रही थी” मेने अपने आप को संभालते हुए कहा…”नही बस वो प्राची की याद आ रही थी…..में ये बात प्राजक्ता को नही बताना चाहती थे…..में चुप चाप अपने रूम में आ गयी….मुझे यही डर सता रहा था कि, गुस्से में अभिषेक कुछ उल्टा सीधा ना कर दे…..में तो किसी को मूह दिखाने के लायक नही रहूंगी……
रात को प्राजक्ता ने खाना बनाया……..पर मेरा मन खाने को नही था..इसीलिए में तबीयत ठीक ना होने का बहाना बना कर अपने रूम में आ गयी… में दिल बुरी तरह घबरा रहा था…..मुझे कुछ समझ में नही आ रहा था कि, में इस मुसबीत से कैसे छुटकारा पाऊ….अब मेरे सामने मुझे कोई रास्ता नही आ रहा था….में काफ़ी देर तक बस यही सोचती रही…मेने घड़ी की तरफ देखा रात के १० बज रहे थे…..अब मुझे इस मुसीबत से निपटना ही था…
में बेड से खड़ी हुई, और उस पॅकेट में जो स्लिप थी उसे निकाला, और अपने काँपते हुए हाथों से उस पर लिखा मोबाइल नंबर डायल किया….थोड़ी देर रिंग बजने के बाद उधर से अभिषेक की आवाज़ आई……
अभिषेक: हेलो क्या हुआ नींद नही आ रही क्या ? सच सच बताना मेरे ही बारे में सोच रही थी ना?
में: अपनी बकवास बंद करो. और बताओ कि तुम क्या चाहते हो….आख़िर हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है…..आख़िर तुम हमारे साथ ये सब क्यों कर रहे हो ?
अभिषेक: अर्रे वाह तुम्हें तो भूलने की बीमारी अभी से लग गयी है.भूल गयी उस दिन कैसे तुम ने मुझे जलील करके घर से निकाला था….अब ध्यान से सुनो कल तुम मुझे मेरे घर पर आकर मिलो….अगर तुम चाहती हो कि, तुम्हारी बेटी की वो क्लिप दुनिया के सामने ना आए तो, और हां किसी से ये बात की तो, मुझसे बुरा कोई नही होगा…..
में: ठीक है ! में आउंगी….पर तुम वो क्लिप किसी को ना देना…में तो जीते जी मर जाऊंगी…..
अभिषेक: ठीक है…….अगर तुम चाहती हो कि, में वो क्लिप किसी को ना दिखाऊ…तुम्हे मेरी हर बात माननी होगी…..में जैसा कहूँ करना होगा……
में: (अभिषेक के इस तरह की बात करने पर मुझे अभिषेक की नियत पर शक होने लगा था.) तुम तुम चाहते क्या हो……
अभिषेक: में वही चाहता हूँ जो मेने तुम्हारी बेटी के साथ किया…….बस एक बार अपनी योनि का स्वाद चखा दो…..उसके बाद में वो क्लिप तुम्हे दे दूँगा….में प्रॉमिस करता हूँ……दोबारा तुम्हे तंग नही करूँगा……
अभिषेक ने उसी वक़्त फोन काट दिया….और उसके बाद में वही बैठी रोने लगी….नज़ाने में कितनी देर तक रोती रही……वो हराम की औलाद मुझसे ऐसे बात कर रहा था……. और फिर बेड पर लेटे लेटे नींद आ गये.सुबह होते ही अभिषेक चला गया…उसके जाने के बाद में नहा कर नाश्ता बनाने लगी…तभी मेरे जेठ जी, प्राजक्ता को लेकर वापिस आ गये….और प्राजक्ता को छोड़ कर वापिस चले गये…..में अब नये सिरे से जिंदगी शुरू करना चाहती थी…..और सब कुछ भुला कर आगे बढ़ना चाहती थी……
किस्मत भी अब हमारा साथ देने लगी थी……..हमारे चारो रूम रेंट पर चढ़ गये थे….सिलाई के काम की आमदनी मिला कर अच्छी इनकम होने लगी थी…..धीरे धीरे कुछ दिन गुजर गये…..मेने वो डीवीडी भी तोड़ कर फेंक दी थी. मुझे लग रहा था कि, अब सब कुछ ठीक हो गया है……
एक दिन में कुछ खरीद दारी करने मार्केट गयी हुई थी, खीरदारी करते हुए मुझे किसी ने मेरा नाम लेकर पुकारा, जब मेने पीछे देखा, तो पीछे अभिषेक मेरी तरफ हाथ हिलाते हुए, मुझे बुला रहा था…..में उसके पास गयी और कहा.
में: ये क्या बदतमीजी है…..तुम यहाँ मुझे ऐसे क्यों बुला रहे हो…..
अभिषेक: ओह्ह इतना गुस्सा वंदना जी………इतना गुस्सा सेहत के लिए ठीक नही होता.
में: हां बोलो क्या कहना है….
अभिषेक: यार तुम तो मुझे भूल ही गयी. कहो तो कल तुम्हारे घर आ जाऊ.
में: नही ऐसा मत करना…..घर पर बहुत से किरायेदार रहते है….
अभिषेक: फिर तुम वही आ जाओ…..जहा मेने पहली बार तुम्हें ठोका था…..
में: में नही आउंगी. अब मुझे तुम से कुछ लेना देना नही…..
अभिषेक: चलो जैसी तुम्हारी मर्ज़ी…..बस एक बार मेरे लिंग के बारे में सोच लेना…क्यों कहर ढा रही हो मेरे लिंग पर……कल आ जाओ ना……
तुम्हारी योनि की बहुत याद आती है…..तुम्हें कभी वो पल याद नही आते…जब तुम मेरे लिंग पर उछल उछल कर ठुक रही थी……याद नही आता वो सब…..कल आ जाना…देखो इतनी सर्दी में अगर ठुकाई का मज़ा नही लिया तो फिर कब लोगी….में तुम्हारा कल इंतजार करूँगा……
अभिषेक बिना कुछ बोले वहाँ से चला गया……में घर वापिस आ गयी…..मेरे जहन में रह रह कर उसकी बातें घूम रही थी….और उसकी बातें सच भी थी. में उस रात की ठुकाई को याद करके रात को तड़पती थी…पर अपने मन को ये समझा कर शांत कर लेती थी…कि अब मुझे इन सब बातों को भूल कर आगे बढ़ना चाहिए…….
उस रात में सो नही पे…..वासना के कारण मेरी बुरी हालत हो चुकी थी….मेरी योनि की आग ऐसे भड़क रही थी….जैसे कभी शांत ही ना होगी. पूरे एक महीने बाद जब अभिषेक को देखा तो, फिर से उस रात की यादें ताज़ा हो गयी…..किसी तरह रात गुज़री…..और मेने सुबह उठ कर नाश्ता बनाया, घर के काम निपटा कर नाश्ता कर लिया…….
उसके बाद में अपने सिलाई के काम में लग गयी……पर मेरा मन काम में नही लग रहा था…….सारी रात मेरी योनि में आग सी लगी रही थी…जो अभी तक शांत होने का नाम नही ले रही थी…..में उठ कर बाथरूम की तरफ जाने लगी…….आज सनडे था, हमारे जो किरायेदार नीचे वाले रूम में रहते थे……उसका पति घर पर ही था…..
जब में उनके रूम के सामने से गुज़री, तो मेरी नज़र अंदर चली गयी. वो दोनो पति पत्नी रज़ाई ओढ़े एक दूसरे को बाहों में लिए हुए लेटे हुए थे..मेने देखा किरायदार अपनी पत्नी के होंठो को चूस रहा था. और उसका एक हाथ उसके स्तनों पर था….जो उससे ज़ोर ज़ोर से दबा रहा था…….
ये देख कर मेरे अंदर की आग और भड़कने लगी…..में जल्दी से बाथरूम में गयी…..अपनी सलवार खोली, और फिर पैंटी को नीचे जाँघो तक सरका दिया. मेने वाइट कलर की पैंटी पहनी हुई थी……जो कि नीचे से एक दम गीली हो चुकी थी” हाए रब्बा हुन इस उम्र विच क्यों पानी छड रही है” में पेशाब करने के लिए नीचे बैठ गयी…….पेशाब करके पैंटी ऊपर की, फिर सलवार ऊपर करके बाँध कर बाथरूम से बाहर आ गयी……padhte rahiye aise hi bhabhi sex stories
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