उधर ज्योति और सेठी साहब की कहानी पनप रही थी तो मुझे डॉली के बदन को हासिल करने की लालसा सता रही थी। डॉली का चेहरा बेबी फेस कहते हैं, वैसा था। डॉली की छाती उनकी कमर के नाप को चुनौती देने वाली थी। उनकी गाँड़ भी बड़ी सुआकार थी। मेरी रातों की नींद डॉली की गाँड़ के बारे में सोच कर गायब हो जाती थी।
डॉली जी के बदन की खुशबु पाने के लिए मैं हरदम बेचैन रहता था। हर बार जब भी डॉली मेरी नज़रों से नजरें मिलाकर देखती थी तो पता नहीं मुझे ऐसा लगता था जैसे उनकी आँखें मुझे चुनौती दे रही हो की “आओ और मुझे अपनी बाँहों में ले लो।” हो सकता है की वह मेरे मन की लालसा ही थी या फिर हकीकत में वह ऐसा कुछ चाह रही थी।एक दिन हम चारों मेरे घर में बैठ कर गपशप मार रहे थे। ज्योति कुछ नाश्ता लेने अचानक जब उठ खड़ी हुई तो उसे चक्कर आने लगे और लड़खड़ा कर वह टेबल का सहारा ले कर डाइनिंग कुर्सी पर लुढ़क कर बैठ गयी। उसका यह हाल देख हम सब सावधान हो गए तब ज्योति ने कहा की उसे काफी चक्कर आ रहे थे और गर्दन में सख्त दर्द हो रहा था।
ज्योति की बात सुन कर सेठी साहब फ़ौरन उठखड़े हुए और ज्योति जिस कुर्सी पर बैठी थी उसके पीछे जाकर उन्होंने ज्योति को आराम से बैठने को कहा। फिर अपने दोनों हाथों की हथेलियां ज्योति के दोनों कंधे पर रख कर अपनी उंगलियां और अंगूठे के दबाव से ज्योति के कंधे के कालर की हड्डियों की मांसपेशियों को दबा कर उनका मसाज करने लगे।
कुछ ही देर में जब वह फारिग हुए तब ज्योति ने अपनी गर्दन इधरउधर मोड़ कर देखि, फिर एकदम उठखडी हुई। थोड़ा चलने के बाद उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव थे और ख़ुशी भरी मुस्कान थी। ज्योति ने मेरी और मुड़कर मुझे कहा, “कमाल है! सारा दर्द एकदम गायब हो गया। ना कोई चक्कर और ना ही कोई दर्द! सेठी साहबके हाथों में तो जादू है!”
मैंने एक राहत की सांस ली, क्यूंकि पिछले कुछ दिनों से ज्योति को अक्सर ऐसा दर्द होता रहता था और कुछ देर तक, जब तक वह दर्द अपने आप ख़तम नहीं हो जाता, ज्योति बड़ी परेशान रहती थी।
ज्योति की बात सुनकर सेठी साहब ने कहा, “ज्योति , तुम्हें ब्लड सर्कुलेशन की कुछ दिक्कत है। अगर तुम यह मसाज एक महीने तक करवाती रहोगी और साथ में कुछ दवाइयां और कुछ आसान एक्सरसाइज करोगी तो सब ठीक हो जायेगा। इस मसाज में थोड़ी ताकत से मांसपेशियों को जोर से दबाने की जरुरत है। इस बिमारी को हलके में मत लेना। इसे अगर अभी नजर अंदाज किया तो आगे चल कर बड़ी प्रॉब्लम हो सकती है। मैं भाई साहब को यह मसाज कैसे करना वह सीखा दूंगा। वह रोज यह मसाज कर देंगे। बाकी एक्सरसाइज बगैरह मैं आपको समझा दूंगा।”
ज्योति ने मेरी बात सुन कर मेरी और देखा और बोली, “इनको कहाँ फुर्सत है? यह तो कल से चार दिन के लिए फिर से टूर पर जा रहे हैं।”
मैंने कहा, “सेठी साहब, वैसे भी आप करीब रोज घर तो आते ही हो, हमारा हालचाल पूछने। तो आप ही ज्योति को शाम को घर आ कर रोज मसाज कर दिया करना। अगर आपको तकलीफ ना हो तो। और ट्रीटमेंट बगैराह तो आप ही करना क्यूंकि मुझे दवाइयां और डॉक्टर से दूर रहना ही अच्छा लगता है।”
उस रात मैंने सोते ही मेरी बीबी की टाँग खींचनी शुरू की। मैंने कहा, “ज्योति , सेठी साहब तो वैसे ही तुम्हें छूने का कुछ ना कुछ बहाना ढूंढते रहते हैं। तुमने तो उन्हें बढ़िया मौक़ा दे दिया मसाज करने का। अब तो ना सिर्फ वह तुम्हारा कंधा बल्कि पुरे बदन का मसाज कर देंगे।“
ज्योति ने टेढ़ी नजर से मेरी और देखा और बिना कुछ बोले रजाई में सर घुसा कर सो गयी। सोते सोते बोली, “तुमने क्यों मना कर दिया मसाज सिखने से? इसका मतलब तुम चाहते हो की सेठी साहब ही मेरा मसाज करे। ऊपर से मुझे दोष देते हो?”
मैंने मेरी बीबी को मनाते हुए कहा, “अरे तुम तो बुरा मान गयी। मैं तो वैसे ही मजाक कर रहा था। हम बात कर रहे थे ना की सेठी साहब काफी रोमांटिक लगते हैं। अगर वह रोमांटिक हैं और अब उन्हें मौक़ा मिला है तुम्हारा मसाज करने का तो अच्छी बात है ना? वैसे ही बेचारे इतने सालों के बाद डॉली जी से बोर हो गये होंगे। तुम्हारे जैसी सेक्सी औरत अगर उनसे मसाज कराये तो वह खुश तो होंगे ही? इसमें कौनसी बुरी या गलत बात है?” मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है।”
रजाई में टेढ़ी हो कर घुसी हुई ज्योति ने कहा, ” देखो तुम ना सेठी साहब के बारे में उलटिपुलटि बात मत किया करो। मैं मानती हूँ की सेठी साहब बातचीत करने में कुछ ज्यादा ही रोमांटिक लगते हैं, पर वह हमेशा मेरे साथ बड़ी इज्जत से पेश आये हैं। अगर वह मालिश भी करेंगे तो कभी मेरा फायदा नहीं उठाएंगे, इसका मुझे पूरा यकीन है।’
मैंने कहा, “देखो तुम्हारी बात गलत नहीं है। पर मर्द आखिर मर्द होता है। जब किसी औरत से उसका शारीरिक आकर्षण बहुत ज्यादा हो जाता है तब नाजुक परिस्थिति में समझदार से समझदार आदमी भी अपना आपा खो बैठता है। वह अच्छा बुरा सोच नहीं पाता है। उसमें भी जो मर्द काफी शशक्त और वीर्यवान होता है उसका लण्ड उसके दिमाग पर हावी हो जाता है..
सेठी साहब वाकई में समझदार हैं, पर उनका लण्ड उन पर भारी पड़ सकता है क्यूंकि उनका लण्ड वैसे भी बहुत लंबा, मोटा और तगड़ा है और आसानी से सतुष्ट नहीं होता। तुम ज्यादा इत्मीनान से मत रहना। मैं तुम्हें बता रहा हूँ की सेठी साहब बहुत ज्यादा सेक्सी हैं। जब वह उकसा जाते हैं तो उनका अपने आप पर नियत्रण रखना भी बड़ा ही कठिन हो जाता है।”
ज्योति मेरी बात सुन कर कुछ गुस्से में बिस्तर में बैठ गयी और बोली, “तुम क्या बकते रहते हो? तुमने सेठी साहब का लण्ड कब देखा? तुम ऐसे ही फ़ालतू की बकवास कर मेरा दिमाग खराब मत करो।”
मैंने मेरी बीबी को शान्ति से समझाते हुए कहा, “कुछ दिन पहले डॉली जी उनके चाचाजी के यहां गयी थी ना, उस की अगली सुबह की बात है। मैं जब सुबह घूमने निकला तो सेठी साहब के ड्रॉइंगरूम में लाइट देख कर मैं उनके दरवाजे पर पहुंचा……” मैंने फिर मेरी पत्नी को उस सुबह की पूरी दास्तान सुनाई।
मेरी सारी बात सुन मेरी बीबी की नींद ही उड़ गयी। मैंने जब कहा की सेठी साहब का लण्ड वास्तव में सात से आठ इन्चा लंबा और करीब दो से तीन इंच मोटा था तो जैसे मेरी बीबी की सांसे थम सी गयीं। पता नहीं उसके मन में उस समय क्या विचार आ रहे होंगे?
वैसे तो कोई भी औरत किसी मर्द के ऐसे तगड़े लण्ड के बारे में सुन कर यही सोचने लगेगी की अगर ऐसा तगड़ा मर्द उसकी चुदाई करे तो क्या हाल होगा उसका? ख़ास तौर से जब मैंने मेरी पत्नी को कहा की जब सेठी साहब डॉली जी को चोदते हैं तो डॉली जी को नानी याद दिला देते हैं बिना थके या झड़े डॉली जी को चोदते ही रहते हैं। डॉली जी बेचारी त्राहिमाम त्राहिमाम हो जाती है।ज्योति ने जब यह सूना तो ज्योति के चेहरे पर और ख़ास कर उसकी आखों में आतंक और आश्चर्य दोनों के ऐसे मिश्रित भाव मैंने देखे जो कोई भयानक हॉरर फिल्म में फिल्म की हीरोइन के चेहरे पर खुनी का सामना होने पर आते हैं।
बड़ी मुश्किल से अपने आप को सम्हालते हुए जैसे वह अपने आप को ही नसीहत दे रही हो वैसे बोली, “मुझे क्या लेनादेना? सेठी साहब जाने और डॉली जी जाने।”
फिर कुछ रुक कर बोली, “पर एक बात तो है की जब चुदाई हो तो तगड़ी ही होनी चाहिए। तुम तो कई बार शुरू होने से पहले ही झड़ जाते हो। तो सारा मजा ही किरकिरा हो जाता है। खैर मुझे क्या? पर तुम यह सब मुझे क्यों सूना रहे हो?”
मैंने एक गहरी साँस लेते हुए कहा, “बेचारी डॉली जी।”
मेरी बात सुन कर ज्योति गुस्सा करती हुई अपना मुंह बना कर बोली, “अगर डॉली जी पर इतना ही रहम आ रहा है तो तुम जाओ और आंसूं पोंछो बेचारी डॉली जी के।”
मैंने धीरे से कहा, “सेठी साहब चाहते हैं की मैं डॉली जी को कार चलाना सिखाऊं।”
ज्योति ने कुछ रूखी आवाज में कहा, “तो जाओ,सिखाओ डॉली जी…… को कार चलाना। मुझे तो तुम कार चलाना सीखा नहीं पाए और चले डॉली जी…… को कार सिखाने!” जब मेरी पत्नी अपना मुंह बना कर “डॉली जी” बोली तो बीबी के अंदर से जलन की बू आ रही थी।
उस हालात में मैंने चुप रह कर सो जाना ही ठीक समझा।
शादी से पहले
मेरी पत्नी ज्योति शादी से पहले काफी दबंग सी लड़की थी। दबंग से मेरा मतलब है उसे लड़कों के साथ घूमने में कोई झिझक नहीं होती थी। पर यह भी सच है की कोई लड़का उसके साथ नाजायज छूट की भी उम्मीद नहीं रख सकता था। ज्योति ने दो तीन लड़कों की ऐसी पिटाई की थी की ज्योति के पीछे पुरे कॉलेज में “मर्दानी” के नाम से मशहूर थी।
कॉलेज में पढ़ाई में ज्योति हमेशा अव्वल या दूसरे नंबर पर आती थी। हालांकि वह पढ़ाकू या किताबी कीड़ा नहीं थी। वह खेलकूद में, डांस गाने में काफी रूचि रखती थी और ऐसे कार्यक्रम में हिस्सा भी लेती थी। पुरे कॉलेज में ज्योति के बारे में काफी चर्चे होते रहते थे।
ज्योति के माँ बाप ज्योति को पूरा सपोर्ट करते थे। घर में भी जब ज्योति पढ़ती थी तो इतनी एकाग्रता से पढ़ती थी की उसे खाने पिने का भी ध्यान नहीं रहता था। ज्योति की एक छोटी बहन और एक बड़ा भाई था। ज्योति घर में सब को आँख के तारे के समान प्यारी थी। एक जमाने में ज्योति के पुरखे बहुत बड़े जमींदार हुआ करते थे। पर अब वह सब ठाठ ख़तम हो चुका था।
कॉलेज के समय में ज्योति ने कॉलेज के ही एक शिक्षक के घर में एक्स्ट्रा क्लासेज ज्वाइन की थीं। शुरू में तो चार पांच लड़के लडकियां थीं पर बादमें आखिर में सिर्फ ज्योति ही रह गयी थी। पढ़ाई कराने वाले शिक्षक शादीशुदा थे पर उनकी बीबी और बच्चे गाँव में रहते थे और शिक्षक शहर में अकेले ही रहते थे और बच्चों को पढ़ाते थे।
ज्योति ने मुझे शादी के पहले ही साक्षात्कार में कबुल किया था की वह कुवारी नहीं थी। जाने अनजाने में उस शिक्षक के साथ तत्कालीन शारीरिक सम्बन्ध हुआ था। वह शिक्षक की ज्योति को पूरी एकाग्रता से पढ़ाने की लगन से इतनी प्रभावित हुई की एक कमजोर पल में दोनों युवा बदन एक दूसरे से सम्भोग करने से रोक नहीं पाए।
उनका वह अफेयर कुछ महीनों चला। एकदिन अचानक टीचर की बीबी गाँव से सर से मिलने आयी और उसे ज्योति और उसके पति के नाजुक संबंधों के बारे में पता लगा। टीचर की पत्नी ने अकेले में ज्योति से बात की और दो हाथ जोड़कर ज्योति से बिनती की की वह उसके पति से दूर चली जाए। ज्योति को इस बात का काफी गहरा सदमा पहुंचा और उसके बाद वह टीचर से कभी नहीं मिली।
यह सारी हकीकत ज्योति ने मुझे हमारी पहली मुलाक़ात में अकेले में ही साफ़ साफ़ बता दी, जब मैं मेरे माँ बाप के कहने के अनुसार लड़की देखने के लिए ज्योति के घर गया था। जब मैंने ज्योति के मुंह से यह सूना तो फ़ौरन मैंने ज्योति से कहा की यह ज्योति के लिए अयोग्यता नहीं पर सुयोग्यता का प्रतिक है।
मुझे इस बात से कोई शिकायत नहीं थी की शादी के समय मेरी पत्नी का कौमार्यभंग हो चूका था। बल्कि अगर मेरी होने वाली बीबी शादी से पहले सेक्स कर चुकी है तो मैं मानता हूँ की वह वाकई में प्यार करना जानती है और शारीरिक सम्भोग की कदर कर सकती है।
मेरी बात सुनकर ज्योति पहले ही साक्षात्कार में बिना कुछ सोचे समझे मुझसे लिपट गयी और बोली, “आप भले ही मुझे पसंद करें या ना करें, मैंने आपको पसंदकर लिया है। अब तय आपको करना है की मैं आपको पसंद हूँ या नहीं।” मेरा तो ज्योति को नापसंद करने का कोई सवाल ही नहीं था। और इस तरह हमारी शादी हो गयी।
आज की तारीख में
मैं महसूस कर रहा था की ज्योति के ह्रदय में सेठी साहब के लिए बड़ी इज्जत थी और वह सेठी साहब से बड़ी ही प्रभावित थी। शायद ज्योति के मन में कहीं ना कहीं सेठी साहब के लिए कुछ नरम भाव जरूर पैदा हुआ था जिसे मैं देख रहा था। इसका ख़ास कारण था सेठी साहब ज्योति से हमेशा प्यार भरी बातें करते थे हालांकि जब भी मिलते थे तो सेठी साहब ज्योति को जफ्फी देते थे और उसे डार्लिंग, हनी कह कर बुलाते थे पर ज्योति उनसे जफ्फी के समय भी उचित दुरी बनाये रखती थी। सेठी साहब ने कभी ज्योति से नाजायज छूट नहीं ली। वह ज्योति को बहुत सम्मान की नजर से देखते थे।
ज्योति जानती थी की सेठी साहब उसको लाइन भी मार रहे थे। पर ज्योति यह भी जानती थी की उसकी सहमति के बिना सेठी साहब उसका कोई फायदा नहीं उठाएंगे। सेठी साहब और डॉली के साथ हम कई बार रंगीन सा मजाक भी कर लेते थे।
सेठी साहब कई बार हमें पूछते, “आजकल रातको आप लोग ओवरटाइम तो नहीं कर रहे हो न?” कभी अगर हम दरवाजा खोल ने में देर करते तो कहते, “यार अंदर से ही कह देते की हम ज़रा चिपके हुए हैं तो हम बादमें आ जाते।”
तब ज्योति भी उनको कह ही देती, “सेठी साहब अब इतने साल हो गए शादी को। चिपकना चिपकाना तो दूर, अब तो साहब से बात करने में भी हफ़्तों लग जाते हैं। अब वह चिपकने का दौर ख़तम हो गया है।”
पढ़ते रखिये.. कहानी आगे जारी रहेगी!एक दिन शाम को जब मैं ऑफिस से घर पहुंचा तो दरवाजा खोलते ही ज्योति मुझसे लिपट गयी और जोर शोर से रोने लगी। दर असल कुछ ही देर पहले ज्योति के पापा का फ़ोन आया की ज्योति के बड़े भाई का एक गंभीर एक्सीडेंट हुआ था और वह हॉस्पिटल में एडमिट थे। उनकी हालत नाजुक थी। ज्योति के भाई की माली हालत कोई ख़ास ठीक नहीं थी।
ज्योति का भाई उस समय दिल्ली से करीब ३५० किलो मीटर दूर राजस्थान में जयपुर से करीब ५० किलोमीटर दूर एक छोटे शहर में रहता था और कोई छोटीमोटी नौकरी करता था। वहाँ जाने के लिए कोई सीधी ट्रैन नहीं थी। हमारी पुरानी कार उतनी दुरी उन रास्तों पर बिना दिक्कत तय कर पाएगी उसका भरोसा मुझे नहीं था। हमने फ़ौरन तय किया की हम सराई कालेखां बस अड्डा चलेंगे और जो भी बस मिल जायेगी वह पकड़ कर ज्योति के भाई के पास सुबह तक पहुंचेंगे।
ज्योति ने डॉली जी को यह समाचार दे दिया और कहा की हम कुछ दिनों के लिए जा रहे थे और घर की चाभी उनको दे कर जाएंगे। अगर वापस आने में देर हुई तो एकाद हफ्ते बाद घर की साफ़ सफाई करवा देना। डॉली ने जब सेठी साहब को बताया तो फ़ौरन वह दोनों हमारे घर पहुंचे। मुझसे पूरी हकीकत समझने के बाद सेठी साहब ने मुझे पांच मिनट रुकने को कहा। सेठी साहब और डॉली अपने फ्लैट में गए। उन्हें गए हुए मुश्किल से पंद्रह मिनट लगे होंगे की सेठी साहब वापस आ गए।
आते ही सेठी साहब ने कहा, “तुम्हें बस में जाने की कोई जरुरत नहीं है। मैं तुम्हारे साथ मेरी टोयोटा कार भेज रहा हूँ। तुम्हें कार चलाने के भी जरुरत नहीं। मैं मेरे ड्राइवर को भी तुम्हारे साथ भेज रहा हूँ। वह कार चला लेगा। तुम अपनी कार मुझे दे दो। मैं दिल्ली में ऑफिस जाने के लिए तुम्हारी कार यूज़ कर लूंगा।”
मैं कुछ आगे बोलता इसके पहले सेठी साहब ने मुझे एक तरफ ले जा कर कहा, “देखो मामला एक्सीडेंट का है। हॉस्पिटल आजकल बहुत महंगे हो गए हैं। तुम्हें कुछ रुपयों की जरुरत पड़ेगी।” सेठी साहब ने मेरे हाथ में दो हजार रुपयों के १०० नोटों का एक बंडल पकड़ा दिया और बोले, “रखलो तुम्हारे काम आएंगे।”
मुझे पता था की ज्योति के पिता और भाई की आर्थिक हालत कोई ख़ास ठीक नहीं थी और वह रुपये जरूर काम आएंगे। एक्सीडेंट के समाचार मिलते ही ज्योति ने सबसे पहले मुझे यही पूछा था की क्या हम कुछ रुपये ले कर जा सकते हैं? हमने घर में जो पचीस तीस हजार रुपये के करीब थे वह ले लिए थे। पर मैं जानता था की उससे काम नहीं चलेगा।
मैंने सेठी साहब से वह नोटों का बंडल वापस करते हुए कहा, “सेठी साहब यह मामला ज्योति की रिश्तेदारी का है, इसमें मैं कुछ बोल नहीं सकता। आप सीधे ज्योति से बात कीजिये।”
सेठी साहब ने ज्योति को पास बुलाया और वही बंडल ज्योति को पकड़ा कर बोले, “देखो ज्योति , मामला एक्सीडेंट का है। हॉस्पिटल आजकल बहुत महंगे हो गए हैं। तुम्हें कुछ रुपयों की जरुरत पड़ेगी। इन्हें रखलो तुम्हारे काम आएंगे। अगर जरुरत ना पड़े या बच जाए तो वापस कर देना। देखो मना मत करना।”
ज्योति ने मेरी और देखा। ज्योति की आँखों में आंसू उभर आये वह दर्शाता था की वह रुपयों की जरुरत कितनी थी। पर ज्योति ने रुपयों का बंडल सेठी साहब के हाथ में वापस देते हुए बोली, “यह मैं कैसे ले सकती हूँ? वैसे ही आपके हम पर बड़े एहसान हैं। मैं इन्हें ले नहीं सकती। हम लोगों ने कुछ रुपयों का इंतजाम किया है, बाकी देख लेंगे। वहाँ से भी कुछ ना कुछ इंतजाम हो जाएगा।”
सेठी साहब ने कहा, “देखो ज्योति जिद मत करो। अभी इसे ले लो बाद में बेशक वापस कर देना।”
ज्योति ने अपनी जिद पर अड़े रहते हुए कहा, “सेठी साहब मैं किस अधिकार से इन्हें लूँ? आप हमारे पडोसी हैं और पडोसी सबसे पहला और सबसे बड़ा होता है यह सच है पर आखिर हम एक दूसरे के क्या लगते हैं? आपने यह पैसे कुछ ना कुछ काम के लिए रक्खे होंगे। मैं नहीं चाहती की हमारी वजह से आपको कोई परेशानी हो। नहीं सेठी साहब मैं यह नहीं ले सकती।”
सेठी साहब ने जब यह सूना और महसूस किया की ज्योति ज़िद पर अड़ी हुई है और पैसे नहीं लेगी, तो एकदम भावुक हो गए। वह रुपयों का बंडल ज्योति से ले कर वह हमारे घर से बाहर निकलते हुए बोले, “ज्योति , राज मुझे माफ़ करना। ज्योति , में जानता हूँ की आप को मतलब आपके मायके वालों को इन पैसों की जरुरत है। मेरे पास यह रुपये रखे हुए हैं और मुझे अभी इनकी जरुरत नहीं है..
अगर ऐसे वक्त में अपने काम नहीं आये तो वह अपने कहाँ से हुए? मैंने आप दोनों का इतना करीबी और इतना अपना समझा था की ज्योति को तो मैं एक अधिकार से अपनी गर्ल फ्रेंड की तरह समझता था और उसको गर्ल फ्रेंड कह कर छेड़ता रहता था। पर आज मुझे पता चला की वह सब कही सुनाई बातें थी। ठीक है, अगर आप हमारे कुछ भी नहीं लगते और अगर आपको लगता है की हमारा आप पर और आपका हम पर कोई अधिकार नहीं है तो फिर तो आज से हमारा रिश्ता ख़तम..
जिस रिश्ते में अपनापन ना हो वह रिश्ता किस कामका? मैं तो वाकई में बेवकूफ था की समझ रहा था की हमारा एकदम करीब का रिश्ता है और आपका मुझ पर और मेरा आप पर एक विशेष अधिकार है। मैं सोचता था की हम एक दूसरे के सुख, दुःख, धन, प्यार सब कुछ शेयर कर सकते हैं। आज ज्योति ने यह पैसे लेने से मना कर यह जता दिया की हमारे रिश्ते की वाकई में कोई भी अहमियत नहीं है।”
ज्योति ने और मैंने देखा की इतने सख्त दिखने वाले सेठी साहब की आँखों में उस वक्त आंसू उमड़ पड़े। मैंने उससे पहले सेठी साहब को इतना भावुक होते हुए नहीं देखा था। जब सेठी साहब निराश और हताश हो कर हमारे घर से जाने लगे तो भाग कर ज्योति सेठी साहब के पास पहुंची। सेठी साहब से लिपट कर ज्योति बोली, “सेठी साहब आप क्या बात करते हैं? आप का हम पर पूरा हक़ है। मैंने आपका दिल दुखाया हो तो माफ़ करना।”
सेठी साहब के हाथ में से रुपयों का बंडल लेते हुए ज्योति बोली, “सेठी साहब, यह क्या कह रहे हैं आप? आगे से ऐसे शब्द मत बोलियेगा। आप का मुझ पर बल्कि हम दोनों पर पूरा हक़ है। आप मुझे गर्ल फ्रेंड कहते हैं ना? हाँ, मैं आपकी गर्ल फ्रेंड हूँ और हमेशा रहूंगी। मुझे आपकी गर्ल फ्रेंड होनेका गर्व है। आपका अधिकार है की बॉय फ्रेंड होने के नाते आप मुझसे जो चाहे जब चाहे कह सकते हैं और कर सकते हैं। पर प्लीज ऐसा मत कहिये की आपका हम पर कोई हक़ नहीं है। आपका हम पर पूरा हक़ है। मुझे मेरे कड़वे शब्दों के लिए माफ़ कर दीजिये प्लीज।”
सेठी साहब ने ज्योति की गीली आँखों से आंसू पोंछते हुए हंसने की कोशिश करते हुए कहा, “यह हुई ना गर्ल फ्रैंड वाली बात। चलो अब और कुछ मत बोलो और निकलो। ज्यादा पैसों की जरुरत पड़े तो मुझे फ़ोन करना। तुम्हारे या भाई साहब के अकाउंट में जमा करवा दूंगा। तुम जितने दिन रहो रहना। कार की चिंता मत करना।”
फिर सेठी साहब फिर मेरी और मुड़ कर हंस कर बोले, “जब वापस आओगे तो मैं मेरी कार ले लूंगा और तुम्हारी कार वापस कर दूंगा। तब तक तुम्हारी कार मेरे पास सिक्योरिटी के एवज में जमा रहेगी।”
सेठी साहब की बात सुन कर मेरी आँखों में से भी बरबस आंसू निकल पड़े। मैं उनके गले लग गया और बोला, “आपने तो आज हम को खरीद लिया। आप क्या बात करते हैं सेठी साहब। मेरा सब कुछ आपका ही तो है!”करीब एक घंटे के बाद खाना खा कर हम सेठी साहब की कार में निकल पड़े। सेठी साहब के दिए हुए पैसे हॉस्पिटल का बिल चुकाने में और सेठी साहब की कार और ड्राइवर घर से हॉस्पिटल और हॉस्पिटल से दवाई इत्यादि लाने में, आने जाने में बहुत ही काम आ गए। ज्योति के भाई का ऑपरेशन कामयाब रहा और पांच दिन बाद हम वापस दिल्ली आ गये।
पर वापस आने पर हमारे और सेठी साहब के रिश्तों में आमूल परिवर्तन आ चुका था। आते ही ज्योति डॉली के गले से लिपट गयी और रोती हुई बोली, “दीदी अगर तुमने हमारी यह ऐन मौके पर मदद नहीं की होती तो पता नहीं क्या हो जाता।”
डॉली ने ज्योति को अपने से अलग कर सेठी साहब की और धकेलते हुए कहा, “शुक्रिया मेरा नहीं सेठी साहब का अदा करो। यह सब इन्हीं के कारण हुआ है। मैं तो सिर्फ उन्हीं के कहने के अनुसार कर रही थी।”
ज्योति मुड़कर सेठी साहब के पास गयी और सेठी साहब के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, “सेठी साहब आप दोनों हमारे लिए दोस्त नहीं फ़रिश्ते साबित हुए हो। आप दोनों के कारण मेरे भाई की जान बच गयी। मैं पैसे तो चुकता कर दूंगी, पर इस एहसान का ऋण कभी चुका नहीं सकती।” उस समय मैंने मेरी बीबी की आँखों में सेठी साहब के लिए सच्चे प्यार और एहसानमंदी का इजहार देखा।
सेठी साहब के दिए हुए पैसे तो हमने चुकता कर दिए पर उस हादसे के बाद सेठी साहब से हमारी नजदीकियां तेजी से बढ़ने लगीं। जब मैं टूर पर नहीं होता था, तब करीब करीब हर हफ्ते या दो हफ्ते में एक बार, या तो हमारे घर में या उनके घरमें हम एक मूवी साथ में मिलकर जरूर देखते थे। उस दिन ड्रिंक्स और खाने का प्रोग्रम भी हो जाता था। ज्यादातर हम दोनों कपल अपनी अपनी बीबियों के साथ या तो ड्राइंग रूम में फर्श पर गद्दा बिछा कर उस पर लेट कर या तो बैडरूम में पलंग पर लेट कर मूवी देखते थे।
ज्योति के गाँव से वापस आने के एक या दो हफ्ते बाद एक बार ऐसे ही हम चारों मेरे घर के ड्राइंग रूम में गद्दे पर लेटे हुए थे की अचानक ही मेरे मुंह से निकल पड़ा, “सेठी साहब यार एक बात मेरी समझ में नहीं आयी। आपने इतनी कम जान पहचान में अपनी कार और इतने सारे पैसे हमें सौंप दिए, ऐसा कोई करता है क्या? आप कौनसी मिटटी से बने हो?”
मेरी बात सुन कर सेठी साहब उठ खड़े हुए। “अभी एक मिनट में आता हूँ” कह कर वह हमारे घर का दरवाजा खोल कर बाहर निकले। हम सब एक दूसरे का मुंह देखते ही रहे की सेठी साहब अपने घर से दुर्गा माँ की एक फोटो ले कर हमारे सामने उपस्थित हुए। देवी माँ की तस्वीर सामने एक स्टूल पर रख
देवी माँ को प्रणाम करते हुए सेठी साहब बोले, ” यह माँ दुर्गा हमारी कुलदेवी है। देखो भाई, मेरे लिए यह देवी माँ से कोई ज्यादा नहीं। मैं इस देवी माँ के सामने यह सौगंध खा कर कहता हूँ की आज इसी वक्त से तुम दोनों को मैं अपना क़बूल करता हूँ। इसका मतलब यह हुआ की मेरा जो भी कुछ है वह तुम्हारा है। तुम्हें उसे मांगने की जरुरत नहीं। तुम उसे बगैर मांगे ले जा सकते हो।”
हम तींनों सेठी साहब की यह बात स्तब्ध से सुनते रहे। यह अचानक सेठी साहब को क्या हो गया? कमरे में वातावरण एकदम गंभीर हो गया। माहौल को कुछ हल्का करने के लिए सेठी साहब की बात सुन कर ज्योति कुछ शरारती मूड में मुस्कुराती हुई बोली, “सेठी साहब, आप बगैर सोचे समझे ऐसे सौगंध मत खाओ। आप मेरे पति को नहीं जानते। वह बड़े चालू हैं। कहीं आपसे वह ऐसी चीज़ ना मांगलें जो आप दे ना पाओ।”
ज्योति की बात सुन कर सेठी साहब ज्योति की और मुड़ कर बोले, “ज्योति मैं जानता हूँ, तुम्हारा इशारा तुम्हारी भाभी डॉली की और है।” फिर हलका सा हँसते हुए बोले, “भाई साहब जब चाहें डॉली की सहमति ले कर उसे उड़ा ले जाएँ। मुझे कोई शिकायत नहीं होगी। मैं जो कह रहा हूँ उसमें डॉली की भी सहमति है। क्यों डॉली , क्या मैं गलत कह रहा हूँ?”
डॉली जी यह सुन कर ताली बजाते हुए ज्योति का हाथ थाम कर बोली, “ज्योति यह बढ़िया है। तुम्हारे पति मुझे और मेरे पति तुम्हें उड़ा लेजाने का प्लान करने में लग गए। चलो ऐसे ही सही, इस बहाने में हम दोनों को हवाई जहाज में घूमने का अवसर तो मिलेगा।”
तब सेठी साहब ने कुछ गंभीर आवाज में ख़ास कर ज्योति की और देख कर कहा, “देखो मुझे गलत मत समझना। यह बात मैंने अपनी तरफ से कही है। मैंने यह कहा है की हमारा सब कुछ सांझा है। मतलब मेरा जो है वह तुम्हारा है। पर इसका मतलब यह नहीं की मेरी नजर में तुम्हारा सब कुछ मेरा है। यह भूल कर भी मत सोचना की मैं तुम पर या जो तुम्हारा है उस पर कोई अधिकार जमाने की कोशिश कर रहा हूँ।“
सेठी साहब की बात सुन कर ज्योति ने मेरी और तीखी नजर से देखा। मैं ज्योति का इशारा समझ गया। मैंने खड़े हो कर सेठी साहब के हाथ थाम कर माँ दुर्गा को प्रणाम किया और कहा, “क्या सेठी साहब, यह आप क्या कह रहे हो? एक तरफ आप माँ दुर्गा की कसम खा कर कहते हो की हमारा सब कुछ सांझा है, और दूसरी तरफ तेरा मेरा करते हो? देखो सेठी साहब, माँ दुर्गा की कसम खा कर मैं भी कहता हूँ की जैसा आप सोचते हैं बिलकुल वैसा ही हम भी सोचते हैं..
यह सच है की हमारे पास उतना धन नहीं जितना भगवान् ने आपको दिया है। पर मेरा और ज्योति आपके हैं और हमारा सब कुछ आपका है और अगर हम लोग आपके लिए कुछ भी काम आये तो उससे ज्यादा ख़ुशी हमें और कुछ नहीं होगी। ज्योति पर आप का भी उतना ही हक़ है जितना मेरा। आप उसे परायी मत समझना। क्यों ज्योति , क्या मैंने कुछ गलत कहा?” मैंने ज्योति की और मुड़कर ज्योति से पूछा।
ज्योति ने मेरी बात का जबरदस्त समर्थन करते हुए कहा, “बिलकुल सेठी साहब, सिर्फ हमारा सब कुछ ही नहीं, मैं और राज हम दोनों भी आपके ही हैं। आप ने हमें अपने प्यार और अपनापन से खरीद लिया है।”
डॉली जी ने उसी हंसी मजाक के टोन में कहा, “ज्योति अगर तुम सेठी साहब की हो तो मैं कहाँ जाउंगी?”
मैंने हँसते हुए कहा, “डॉली जी, अगर ज्योति सेठी साहब की हुई तो आप मेरी हुई। क्यों सेठी साहब आप को कोई एतराज तो नहीं?”
सेठी साहब हंस कर बोले, “वाह भाई यह तो कमाल ही हो गया। हमारी बीबियाँ तो सांझा हो गयीं? जब आप लोगों ने मिल कर यह तय कर ही लिया है तो मैं बीच में बोलने वाला कौन हूँ?”
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