साला तू एकदम झांटु ही है,,,, ब्लाउज में से रसमलाई टपक रही थी और तू समोसे और जलेबी के पीछे पड़ा था और उसके बाद क्या हुआ तुझे पता है जब मैं पानी पीने उसके घर के पीछे गया,,
नहीं नहीं यार बता ना क्या हुआ,,,
साले पीछे उसकी लड़की नहा रही थी और सिर्फ टावल पहन कर,,
क्या बात कर रहा है रघु,,,
एक दम सच कह रहा हूं,,,
यार मुझे भी तो बुला लिया होता,,,,
बोला था तो तुझे चल पानी पीने लेकिन तू ही इंकार कर दिया,,,, यार उसकी बेटी भी उसी की तरह एकदम गोरी चिट्टी है,,, यार कसम से अगर आज वह बिना टावल के नहाती तो मजा आ जाता उसके नंगे बदन को देखने में,,,,
आहहहहह,,,, आज तो मजा आ गया रामू काश आज रात को कोई चोदने के लिए मिल जाती तो मजा आ जाता,,, यार रामू मुझे एक बार तेरी बहनों की दिलवा दें तो मजा आ जाएगा,,,, कसम से तेरे दोनों बहनों को देखता हूं तो अपने आप ही मेरा लंड खड़ा होने लगता है,,,
देख रामु अब ज्यादा हो रहा है,,,,,
यार तू नाराज क्यों होता है मैं तो मजाक कर रहा हूं चल बहुत देर हो गई है,,,,
( आज सुबह से ही रघु की आंखों के सामने ऐसे ऐसे कामोत्तेजना से भरपूर नजारे आ रहे थे कि वह पूरी तरह से उत्तेजित हो गया था,,, बार-बार उसकी आंखों के सामने सुबह से लेकर शाम तक का नजारा घूम रहा था,,,, इधर उधर भटकते हुए एकदम रात हो गई,,, घर पर शालू खाना खा चुकी थी और बार-बार अपनी मां को खाना खाने के लिए बोल रही थी लेकिन उसकी आदत के अनुसार बिना रघु को खिलाए नहीं खाती थी और रात को तो उसके साथ ही खाती थी,,, गर्मी का महीना था इसलिए शालू और उसकी मां छत पर ही सोते थे,,,, शालू अपनी मां और अपने भाई के हिस्से का खाना छत पर लाकर उसे बर्तन से ढक दी और अपना एक किनारे पर चटाई बिछाकर सो गई उससे 5 कदम की दूरी पर कजरी चटाई बिछाकर रघु का इंतजार करते करते सो गई,,,,,
रात के करीब 10:00 बज रहे थे सारागांव गहरी नींद में सो रहा था और रघु अपने दोस्तों से गप्पे लगाकर अपने घर पर पहुंचा,,,, वह यह भी भूल गया था कि अपने घर के लिए वह जलेबी और समोसे भी खरीद कर रखा हुआ था जो कि अभी भी उसके हाथ में ही था वह जानता था कि इस समय सब लोग छत पर होंगे,,, सो रहे होंगे कि जाग रहे होंगे यह उसे बिल्कुल भी पता नहीं था,,, लेकिन यह जरूर जानता था कि उसकी मां बिना उसके खिलाए खाना नहीं खाई होगी इसलिए वह थोड़ा चिंतित हो गया क्योंकि रात काफी हो गई थी,,, गांव के हिसाब से तो 10:00 का समय बहुत ज्यादा था,,,,।
रघु दवे पांव सीढ़ियां चढ़ते हुए छत पर पहुंच गया,,,,,,,,,, चांदनी रात होने की वजह से छत पर चांदनी छिटकी हुई थी सब कुछ साफ साफ नजर आ रहा था,,, छत पर पहुंचते ही वह इधर उधर नजरे घुमा कर अपनी मां को ढूंढने लगा,,, जैसे ही उसकी नजर अपनी मां पर गई उसके तो होश उड़ गए,,,,
रात पूरी तरह से गहरा चुकी थी चांदनी रात होने की वजह से छत पर चांदनी अपनी आभा बिखेरे हुए थी,,, रघु छत पर पहुंचकर अपनी मां को भी इधर उधर नजर घुमाकर ढूंढ रहा था,,, तभी उसकी नजर अपनी मां पर पड़ी लेकिन अपनी मां पर नजर पड़ते ही उसका दिल धक्क से कर गया,,,, अपनी मां को देखकर उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,,
उसकी मां उससे 5 कदम की दूरी पर ही चटाई बिछाकर सोई हुई थी,,, लेकिन जिस तरह से वह सोई हुई थी उसे देख कर रघु की हालत खराब होने लगी,,,, कजरी के दोनों पर घुटनों से जुड़े हुए थे और वह सीधा रघु की तरफ ही थे नींद में होने की वजह से उसकी साड़ी पूरी कमर तक चढ़ गई थी और उसने अपने दोनों टांगों को घुटनों से मोड़कर फैला रखी थी ऐसा वह जानबूझकर नहीं की थी नींद की वजह से हो गया था,,,,, लेकिन इस समय रखो की आंखों के सामने उसकी मां की दोनों टांगे खुली हुई थी भरी बदन की औरत होने के नाते उसकी टांगे एकदम सुडोल और चिकनी नजर आ रही थी उसकी मोटी मोटी जांगे केले के पेड़ के तने की तरह एकदम चिकनी और मांसल थी,,,, इस तरह के हालात में रघु ने अपनी मां को कभी भी नहीं देखा था,,, इसलिए जैसे उसकी नजर अपनी मां पर पड़ी थी वैसे उसकी निगाहें उस पर गड़ी की गड़ी रह गई थी,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था चांदनी रात होने की वजह से छत पर उजाला फैला हुआ था और उजाले में उसकी मां की नंगी गोरी चिकनी टांग एकदम साफ नजर आ रही थी,,, रघु का दिल जोरों से धड़क रहा था,,, वह धीरे-धीरे दबे पांव आगे बढ़ने लगा वह नहीं चाहता था कि किसी भी तरह की आहट हो और उसकी मां की नींद खुल जाए और वह एक खूबसूरत नजारे को देखने से वंचित हो जाए,,,, जवान होते हर लड़कों के मन में जिस तरह की इच्छा होती है उसी तरह की चाह इस समय रघु के मन में भी उठ रही थी,,, जवान होते लड़कों के मन में एक ही ख्वाइश होती है औरत के गुप्त अंगो को नजर भर कर देखना, सबसे ज्यादा लड़कों और मर्दों की चाह औरतों की बुर देखने की ही होती है,,, रघु भी उनमें से अछूता नहीं था,,,, अपनी मां की नंगी गोरी चिकनी टांगों को देखकर ना चाहते हुए भी उसके मन की लालच बढ़ती जा रही थी वह चोरी-छिपे ही सही अपनी मां की रसीली बुर के दर्शन करना चाहता था जो कि जिस हालत में वह सो रही थी मुमकिन था कि उसे उसकी मां की बुरी नजर आ जाए,,, क्योंकि अब तक तो उसने यदा-कदा जाने अनजाने में लड़की है और गांव की औरतों के नंगे बदन के दर्शन कर ही चुका था उनकी गोल गोल चूचियां और मदमस्त गांड देखकर अपने लंड की गर्मी को अपने हाथ से हिला कर शांत भी कर चुका था लेकिन अब तक उसने औरतों के सबसे अमूल्य अतुल्य और कामुकता से भरे हुए उस अंग के दर्शन नहीं कर पाया था जिसे देसी लहजे में बुर कहा जाता है और यह शब्द हर जवान होते हुए लडको के लिए एक अनमोल शब्द होता है जिसे वह अपनी जबान पर लाकर ही मस्त हो जाते हैं और मन में कल्पना करने लगते हैं कि वास्तविक बुर्का आकार क्या होता होगा,,, कैसी दिखती होगी कैसा लगता होगा उसका पूरा भूगोल जानने की ख्वाहिश और उत्सुकता हमेशा उन में पनपती रहती है,,,।
उसने आज तक अपनी मां को इस नजरिए से नहीं देखा था लेकिन आज ना जाने क्या हो गया था कि वह अपनी मां की नंगी टांगों को देखकर उसकी तरफ और ज्यादा आकर्षित होने लगा था,,,, कजरी सुगठित मांसल देह वाली थी जिसकी वजह से उसका बदन बेहद आकर्षक और गठीला था यही वजह था कि हर मर्दों की नजर उस पर पड़ी जाती है और उसे देखकर उसकी तरफ आकर्षित हुए बिना उनका मन नहीं मानता था,,,, वही हाल रघु का भी था हालांकि उसने अब तक अपनी मां को गलत नजरिए से कभी नहीं देखा था,,, लेकिन आज अपनी मां की नंगी चिकनी टांगों को देखकर उसका मन देखने लगा था उसके सोचने की दिशा भटक चुकी थी वह किसी भी हाल में अपनी मां की बुर के दर्शन करना चाहता था और अपनी इच्छा को पूरी करना चाहता था,,,, वह देखना चाहता था बुर की बनावट उसकी भूगोल उसकी संरचना को पूरी तरह से समझना चाहता था भले ही उसे छू ना सके लेकिन अपनी आंखों से देख कर उसे से भलीभांति होना चाहता था,,, इसलिए धीरे-धीरे दबे पांव आगे बढ़ रहा था,,, खुली चांदनी में कजरी एकदम साफ नजर आ रही थी,,, देखते ही देखते रहो अपनी मां के बेहद करीब पहुंच गया वह भी भी अपनी मां के पैरों की तरफ खड़ा था जहां से उसकी मां एकदम साफ नजर आ रही थी उसकी साड़ी पूरी तरह से कमर तक चढ़ चुकी थी,,,,, कजरी के कमर के नीचे का पूरा हाल बयां हो रहा था लेकिन जिस पन्ने को रघु अपने होठों से पढ़ना चाहता था अपनी आंखों से देखना चाहता था वह पन्ना खुला ही नहीं था,,, रघु के अरमानों पर पानी फिर गया था क्योंकि कजरी की साड़ी पूरी तरह से कमर तक चली गई थी लेकिन उसकी साड़ी के नीचे की किनारी दोनों टांगों के बीच कजरी के बुर वाली जगह को अपनी आगोश में लिए हुए थी ऐसा लग रहा था कि जैसे,,, यह सब रघु के लिए ही था कजरी की साड़ी नहीं चाहती थी कि रघु उस अनमोल अंग को देखें जिसे वह खुद अपनी आगोश में लेकर दुनिया वालों की नजरों से छुपाए हुए होती है,,,, रघु पूरी तरह से निराश हो चुका था उसे ऐसा लग रहा था कि आज वह बुर के दर्शन कर लेगा और शुरुआत अपनी ही मां की बुर से करेगा,,,,
रघु बार बार इधर उधर नजर करके ऊपर नीचे हो कर किसी भी तरह से अपनी मां की बुर के दर्शन करना चाहता था जो कि बस हल्का सा साड़ी ऊपर उठ जाने से उसके अरमान पूरे हो जाते हैं लेकिन ऐसा हो सकना इस समय संभव नहीं लग रहा था या तो फिर उसे अपने ही हाथों से अपनी मां की साड़ी को थोड़ा सा ऊपर उठा कर उसके रसीले गुलाबी बुर के दर्शन कर सकता था,,, लेकिन ऐसा करने की उसके में हिम्मत नहीं थी फिर भी जितना भी अपनी मां के नंगे बदन को भले ही कमर के नीचे की मोटी चिकनी जांघों को देखा था उसने भर मात्र से ही वह पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था उसके पजामे में उसका लंड गदर मचाया हुआ था,,,,। उसे इस तरह से अपनी मां को चोरी-छिपे देखना खराब भी लग रहा था लेकिन वह नजारा इतना ऊन्मादक था कि वह चाह कर भी अपनी नजरों को अपनी मां के ऊपर से हटा नहीं पा रहा था,,,,, उसका दिल जोरों से धड़क रहा था बार-बार अपनी मां की नंगी चिकनी टांगो को देखकर पजामे के ऊपर से ही अपने लंड को दबा दे रहा था,,,, यह सब करते हुए अपने मन में सोच रहा था कि नहीं यह सब गलत है यह सब से नहीं करना चाहिए क्योंकि यह उसकी मां है मां को इस नजरिए से नहीं देखा जाता पाप लगेगा यह सब भावना उसके मन में आ रही थी लेकिन रघु जवान हो रहा था अरमान मचल रहे थे ऐसे में औरतों के नंगे बदन का दीदार मात्र जवानी की आग भड़काने के लिए काफी होता है,,, रघु तो पहले से ही इधर-उधर इसी ताक में रहता है कि कब किस औरत या लड़की के नंगे बदन के दर्शन हो जाए ऐसे में उसकी मां का इस तरह से टांगे खोल कर गहरी नींद में सोना रघु की उफान मारती जवानी पर लगाम कस पाने में असमर्थ साबित हो रही थी रघु अपनी मां की नंगी चिकनी टांगों को देखकर बेलगाम होता जा रहा था,,,
रघु लगभग 20 मिनट से इस हालात में अपनी मां के नंगे बदन के दर्शन कर रहा था जो कि केवल कमर के नीचे से ही नंगी थी ऊपर से वह पूरी तरह से दुरुस्त थी लेकिन शायद अभी तक रघु ने ठीक से अपनी मां के कमर के ऊपर वाले बदन पर गौर नहीं किया था,,,, जैसे ही उसे इस बात का एहसास हुआ उसके बदन में करंट सा लगने लगा उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसकी मां की छातियां काफी बड़ी है साड़ी छातियों से नीचे सरक गई थी जिससे कजरी के ब्लाउज में कसी हुई जवानी से भरपूर गोलाइयां किसी तूफान की तरह नजर आ रही थी,,,, कजरी के ब्लाउज के ऊपर के दो बटन खुले हुए थे और पीठ के बल लेट होने की वजह से उसके ब्लाउज में कैद दोनों चूचियां पानी भरे गुब्बारे की तरह ऊपर की तरफ लुढ़के हुए थे जिससे उसकी आधी से ज्यादा चूचियां बाहर नजर आ रही थी,,,,।
उत्तेजना के मारे रघु का गला सूखता चला जा रहा था,,, रघु का दिल जोरों से धड़क रहा था बाहर जाकर दोनों चुचियों के बीच की गहरी लकीर जंगल में से गुजरती हुई गहरी नदी की तरह लग रही थी,,, जो कि बेहद मनमोहक प्रतीत हो रहा था,,, रघु का मन कभी-कभी ग्लानि से भर जा रहा था तो कभी-कभी अपनी मां के मनमोहक अंगों को देखकर मन बहक ने लग रहा था,,,, अपनी मां की मदमस्त बड़ी बड़ी चूचियों को देख कर उसकी इच्छा हो रही थी कि दोनों चूचियों को अपने हाथ में लेकर उसे जोर जोर से दबाए,,,, उसे मुंह में लेकर पी जाए,,,, लेकिन ऐसा करने के लिए हिम्मत होनी चाहिए जो कि इस समय रघु में बिल्कुल भी नहीं थी,,,, अपनी मां की मौत हो चुकी हो को देखते हुए उसकी नजर जैसे ही एक बार फिर से कमर के नीचे की तरफ पहुंची तो एक बार फिर से उसके मन की लालसा अपनी मां की रसीली बुर के दर्शन करने के लिए बढ़ने लगी,,, वह बड़े गौर से अपनी मां को बेसुध सोया हुआ देख रहा था,,, और जिस तरह से उसके तन बदन में बिल्कुल भी हलचल नहीं थी उसे देखते हुए रघु की हिम्मत थोड़ी बढ़ने लगी थी वह मन में ऐसा सोचा था क्या करो अपने हाथ से अपनी मां की साड़ी की किनारी को उठाकर थोड़ा सा ऊपर कर दे तो उसकी मां की बुर उसे देखने को नसीब हो जाएगी,,, और यही करने के लिए वह मन में ठान लिया था एक बार फिर से वह अपनी मां के चेहरे की तरफ देखा वह पूरी तरह से निश्चल भाव से एकदम गहरी नींद में सो रही थी रघु समझ गया कि अगर वह अपने हाथ से अपनी मां की साड़ी थोड़ा सा ऊपर उठाएगा तो ऐसे में उसकी मां की नींद नहीं खुलेगी,,,, और वह अपनी मां की साड़ी उठाने के लिए थोड़ा सा नीचे की तरफ झुके कर अपने दो कदम पीछे लेकर उसकी कमर तक पहुंचने की कोशिश कर ही रहा था कि उसके पैर से टकराकर पास में रखा बर्तन गिर गया और वह झट से उस बर्तन को उठाने के लिए पीछे की तरफ घूम गया लेकिन बर्तन गिरने से उसकी आवाज से कजरी की नींद खुल गई और वह छटपटाते उठ कर बैठ गई,,, उसकी नजर शुभम पर गई तो वह नीचे गिरी बर्तन को उठा रहा था उसकी पीठ कजरी की तरफ थी और कचरी झट से अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों को दुरुस्त करने लगी,,,
अपनी पीठ पीछे हो रही चूड़ी और पायल की खनक इनकी आवाज सेवा इतना तो समझ गया कि उसकी मां जाग गई है इसलिए बहुत तेजी से अपना दिमाग घुमाते हुए मां अपनी मां की तरफ देखे बिना ही बोला,,,
क्या करती हो मैं इधर उधर बर्तन रख देती हो जैसे ही मैं छत पर आया वैसे ही मेरे पैर से बर्तन टकरा गया,,,, और यह गिलास में रखा हुआ पानी गिर गया,,,,
यह शालू भी ना इधर उधर रख देती है,,,,( इतना कहकर वो उठने लगी अभी भी रघु अपनी मां की तरफ नहीं देख रहा था उसके अंदर अंदर बैठ गया था कि कहीं उसकी मां को पता ना चल जाए कि वह सोते हुए उसे देख रहा था।) तू ही रुक मैं तेरे लिए पानी लेकर आती हूं तूने सुबह से आज कुछ नहीं खाया है तेरे इंतजार करते-करते मैं भी सो गई,,,
तू खाना नहीं खाई हो मां,,,,
नहीं रे क्या ऐसा कभी हुआ है कि मैं तेरे बगैर खाना खाकर आराम से सो गई हूं,,,, तू यहीं रुक मैं पानी लेकर आती हूं फिर हम दोनों खाना खाते हैं,,,,( इतना कहकर कजरी छत से नीचे चली गई और प्रभु उसे ज्यादा हुआ देखता रहा वह अपनी मां का वात्सल्य देख रहा था उसकी ममता देख रहा था कि उसको खिलाई भी ना वह खुद नहीं खाई है और वह कितना बड़ा पाप कर रहा था कि अपनी मां के नंगे बदन को देखकर उत्तेजित हो रहा था और तो और अपने हाथ से उसकी साड़ी उठाने जा रहा था उसकी बुर देखने के लिए वो कितना गंदा है कितना कमीना है पापी है अपनी मां को ही गंदी नजर से देख रहा था,,,, यह सब सोचकर रघु एकदम ग्लानि से भर गया और आइंदा कभी भी अपनी मां को गंदी नजर से नहीं देखेगा यह कसम मन ही मन खा लिया,,,, थोड़ी ही देर में उसकी मां पानी लेकर आई और दोनों बैठ कर खाना खाने लगे,,,, तभी रघु अपने साथ लाया हुआ जलेबी और समोसा अपनी मां की तरफ आगे बढ़ाते हुए बोला,,,, मां मैं आज हलवाई के वहां गरमा गरम जलेबी छन रही थी तो जलेबी और समोसे लेकर आया था,,,
अच्छा-अच्छा शालू को भी जगा दें वह भी खा ले वरना सुबह तक खराब हो जाएगा,,,( कजरी अपने होठों पर मुस्कुराहट लाते हुए बोली और रघु जाकर अपनी बहन शालू को जगा कर ले आया और उसे भी समय से और जलेबी या दिया,,,, तीनों बहुत खुश थे लेकिन रखो अंदर ही अंदर घुटता सा महसूस कर रहा था क्योंकि आज जो उसने किया था वह बिल्कुल गलत था बात था और उसके प्रायश्चित के रूप में वह कसम खाकर आइंदा ऐसी गलती नहीं होगी ऐसा मन में मान कर खाना खाकर सो गया,,,)
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,धीरे-धीरे दिन गुजरने लगा कजरी के मन में से लाला की हरकत की दहशत धीरे-धीरे मिटने लगी,,, लेकिन अब ना चाहते हुए भी रघु के मन में बदलाव आना शुरू हो गया था जिस दिन से वह छत पर अपनी मां के नंगे हुस्न का दीदार अपनी आंखों से किया था तब से वह रोज कसम खाकर उस तरह की गलती दोबारा ना करने के बारे में सोचता था लेकिन जल्दी कजरी उसकी आंखों के सामने आ जाती थी तब उसकी सारी कसम हवा में फुर्र हो जाती थी,,, रघु आप अपनी मां को कामुक नजरों से देखना शुरू कर दिया था कपड़ों में से उसके अंगों के कटाव और उभार को नजर भर देख कर अंदर ही अंदर उत्तेजित होने लगा था। हालांकि अपनी गलती पर उसे अपराध बोध होता जरूर था लेकिन जिस उम्र की रेखा से वह गुजर रहा था,,, उससे इस तरह की गलती होना स्वाभाविक ही था,,,। रघु रे रे कर अपने आप को उस पल के लिए कोसता रहता था जब वह रात के समय छत पर पहुंच गया था और अपनी नजरों से अपनी मां के नंगे हुस्न को देखकर काम भावना से ग्रस्त हो गया था। जब कभी भी वह अकेले में बैठता या सोता तो उसकी आंखों के सामने वही दृश्य घूमने लगता था जिसे देखकर उसके सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो गई थी। बार-बार वह अपने मन से उस बात को भूलाने की पूरी कोशिश करता था लेकिन रघु जैसे नौजवान होते लड़के के चंचल मन में इस तरह का कामुक दृश्य बहुत ही गहरी छवि छोड़ देता है और उसी हालात से रघु जुझ रहा था,,,,
धीरे-धीरे परीस्थिति सामान्य होने लगी थी,,, लेकिन फिर भी छत वाले कामुक दृश्य में रघु के मन में अमिट छाप छोड़ रखी थी,,,
शालू तू खाना बना देना मैं खेतों में जा रही हूं आज सब्जियों में पानी देना है अगर नहीं दूंगी तो सारे पौधे खराब हो जाएंगे।
ठीक है माफ तुम चिंता मत करो मैं खाना बना लूंगी,,,
और हां जरा अपने साहेबजादे को भी जगा देना ,,,,सारा दिन लाड साहब बन कर इधर-उधर घूमता रहता है जरा भी जिम्मेदारी का एहसास ही नहीं है,,,
हो जाएगा मां,,,, तुम चाहो अगर हो जाएगी तो मैं खेत पर ही खाना भेज दूंगी,,,,
ठीक है मैं जाती हूं,,,,(इतना कहकर कजरी खेतों की तरफ चली गई और शालू खाना बनाने लगी मन में गीत गुनगुना रही थी,,,, गीत गुनगुनाते हुए उसे उस दिन की बात याद आ गई जब वह बिरजू के साथ झरने के नीचे तालाब में नहाने के लिए गई हुई थी,,, उस पल के बारे में सोच कर हीं सालु मन ही मन एकदम गनगना गई,,,,,, उसे अच्छी तरह से याद था कि उस दिन झरने के नीचे बिरजू जिस तरह से उसकी दोनों चूचियों को कुर्ती के ऊपर से जोर जोर से दबा रहा था वह काफी उत्तेजित हो चुकी थी और साथ ही बिरजू के लंड के कड़क पन का एहसास उसे अपने नितंबों के ऊपरी सतह पर बराबर हो रहा था जिससे वह उस समय काफी चुदवासी हो चुकी थी,, उसे भी उस समय अपनी बुर के अंदर चिंटीया रेंगती हुई महसूस हो रही थी,, शालू अपनी बुर के अंदर बिरजु के लंड को लेना चाहती थी,,, लेकिन 6 महीने से बिरजू के साथ रहकर वह इतना समझ गई थी कि बिरजू एकदम निकम्मा इंसान था वरना जिस तरह के वीराने में वह उससे 6 महीने से मिल रही थी अब तक दूसरा कोई होता तो अब तक उसकी बुर में लंड डालकर उसका उद्घाटन कर दिया होता,,,, यही बात बिरजू कि उसे पसंद नहीं आ रही थी क्योंकि वह पहल कर पाने में एकदम असमर्थ थी,,, वह नहीं चाहती थी की चुदवाने के लिए उसे अपने मुंह से बोलना पड़े इसलिए तो पिछले 6 महीने से वह प्यासी तड़प रही थी,,,वह मन में यह भी सोच कर रखी थी क्या कर भेजी उसके साथ जबरदस्ती करेगा तो भी वह बाद में ना नूकुर के नाटक के बाद मान ही जाएगी,,, वह तो सिर्फ बिरजू के सामने ऊपरी मन से दिखावा करती थी,,, बिरजू जो उसके साथ कपड़ों के ऊपर से ही मस्ती करता था,,,कपड़ों के ऊपर से ही उसके गोल गोल अंगो को अपनी हथेली में भरकर दबाता था उससे शालू पूरी तरह से उत्तेजित हो जाती थी उसकी बुर की पतली दरार से नमकीन रस अपने आप बहने लगता था,,, लेकिन सब कुछ बेकार था बिरजू में हिम्मत नहीं थी कि वह उसके साथ जबरदस्ती कर सके,,,, यहां तक कि उस दिन का बिरजू को पूरी तरह से उत्तेजित करने के लिए वह उसके सामने अपने पूरे कपड़े उतार कर नंगी हो गई थी सिर्फ इसलिए कि बिरजू उसके नंगे बदन को देखकर अपनी मनमानी करने पर उतारू हो जाए और उसमें सालु पूरी तरह से सहभागी भी हो जाती,,,ं उस दिन वह पूरी तरह से तैयार थी बिरजू से चुदवाने की लिए,,, इसलिए तो वह जानबूझकर अपनी बड़ी-बड़ी गोलाकार गांड को दिखा रही थी लेकिन साला बिरजू इतना निकम्मा था कि उसकी गोलाकार गांड को देखकर बस अपने पजामे के ऊपर से अपनी खडे लंड को मसल रहा था,,, इससे ज्यादा कुछ कर सकने की हिम्मत उसने बिल्कुल भी नहीं थी,,। यही सब सोचते हुए शालू खाना बना रही थी,,,, कि तभी उसे वह वाली बात याद आ गई जब वह एकदम नंगी होकर तालाब में कर कर नहाने का मजा ले रही थी तभी,,, उसका भाई वहां आ गया था,,, हालांकि शालू ने उसे अपनी आंखों से देखी नहीं थी लेकिन उसकी आवाज को पहचानती थी वह काफी घबरा गई थी इसलिए अपनी इज्जत खराब ना हो जाए और वह भी अपने ही भाई की आंखों के सामने इसलिए वह अपने कपड़े पहनने के लिए भी वहां नहीं रुकी थी और भागकर झाड़ियों में छुपकर कपड़े पहन कर गांव की तरफ भाग गई थी,,शालू इस बात से बेहद खुश थी कि उसके भाई को इस बात का आभास तक नहीं था कि जिससे लड़की को वह तालाब में नहाता हुआ देखा था वह उसकी बहन थी,,, वरना अब तक घर में हंगामा मच गया होता,,,,
वह खाना बना ही रही थी कि तभी उसे याद आया कि उसे तो अपने भाई को जगाना है,, वह जल्दी से उठी और भागकर अंदर के कमरे में रघु को जगाने के लिए चली गई,,, अंदर के कमरे में थोड़ा अंधेरा था लेकिन खिड़की से आ रही तेज धूप की रोशनी में कमरे के अंदर कुछ कुछ नजर आ रहा है कमरे में प्रवेश करते ही उसे रखो खाट पर बेसुध होकर सोता हुआ नजर आया कदम आगे बढ़ा कर उसे उठाने के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाई ही थी कि उसके मुंह से निकलने वाले सब मुंह में ही अटक कर ले गए उसके हाथ जैसे जम गए,,,क्योंकि उसकी आंखों ने जो नजारा देखा था उसने जा रहे के बारे में वह बिरजू को लेकर उसकी कल्पना करके मस्त हो जाया करती थी लेकिन यहां तो उसकी कल्पना से भी बेहद अद्भुत नजारा था,,,, रघु तौलिया लपेटे सो रहा था तोलिया के नीचे उसने कुछ भी नहीं पहन रखा था,,, और इस वजह से उसका मोटा तगड़ा लंड पूरी तरह से खड़ा था छत की तरफ मुंह उठाए,, अपने भाई के मोटे तगड़े लंड को देखकर शालू का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया,,,, क्योंकि रखो का लंड उसकी कल्पना से भी काफी दमदार और तगड़ा था,,, उत्तेजना के मारे शालू का गला सूखने लगा उसकी तेज चलती सांसों के साथ-साथ उसकी छोटी-छोटी नारंगीया ऊपर नीचे हो रही थी,,, उसकी दोनों टांगों के बीच की वह पतली दरार उत्तेजना के मारे फूलने पिचकने लगी थी,, शालु को बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें,, उसकी हथेली रघु के खाने लंड से महज 1 फीट की दूरी पर ही ठिठक कर रहे गए थे,,,, महीनों से जिस लंड की कल्पना करते वो आ रही थी,,, वह मनमोहक लंड उसकी पहुंच से महज 1 फीट की दूरी पर ही था,,,, शालू कभी अपने भाई की तरफ तो कभी उसके खड़े लंड की तरफ देख रही थी रघु अभी भी बेसुध होकर सोया हुआ उसे इस बात का भी आभास नहीं था कि उसका लंड पूरी तरह से खड़ा है और इस समय उसकी बहन ऊसे नजर भर कर देख रही है,,।
शालू का मन ललच रहा था,,, अपने भाई के खड़े लंड को अपने हाथ से पकड़ना चाहती थी उसे छुना चाहती थी उसे स्पर्श करके उसकी गर्माहट को अपने अंदर महसूस करना चाहती थी,,,, वह पागल हुए जा रही थी,,, अब तक उसे चुदवाने का किसी भी प्रकार का अनुभव नहीं था लेकिन फिर भी उसका मन कर रहा था कि खाट पर चढ़ जाए और खुद ही अपने भाई के लंड पर चढ़कर चुदाई का आनंद ले ले,,,, लेकिन जिस तरह की स्थिति उसके इतने नजदीक होने के बावजूद भी पूछ चुकी होती थी वही स्थिति इस समय सालु की थी,,,, वह चाह कर भी ऊससे कुछ नहीं कर सकती थी,,,
शालू का दिल जोरों से धड़क रहा था बहुत देर से रघु के बदन में किसी भी प्रकार की हलचल नहीं हुई थी इसलिए सालों का मन बहक ने के साथ साथ आगे बढ़ने की भी सोच रहा था ,,,वह रघु के लंड को अपने हाथ से पकड़ कर देखने के लिए अपने हाथ को आगे बढ़ाने लगी,,, कि तभी रघु के बदन में कसमसाहट हुई और वह दूसरी तरफ अपना गर्दन घुमा दिया,,,, लेकिन अब सालु की हिम्मत जवाब दे गई,,,,अब उसमें रघु को उठाने की भी हिम्मत नहीं रह गई वह तुरंत अपने कदम पीछे करके कमरे से बाहर निकल गई,,,, वह पूरी तरह से पागल हो गई थी अपने भाई के मोटे तगड़े लंड के दर्शन करने के बाद उसके दिमाग पर उसके भाई का लंड हीं छाया हुआ था,,,, जैसे तैसे करके वह खाना बना ली,,,, उसके बदन में गर्मी छाई हुई थी वह तुरंत कुशल खाने में जाकर ठंडे पानी से नहाने लगी ताकि उसकी बदन की गर्मी शांत हो जाए,,,, थोड़ी देर बाद मुझे अब नहा कर गुसल खाने से बाहर आई तो देखी उसका भाई कमरे से बाहर निकल रहा था और अच्छे से तोलियो को अपनी कमर पर लपेट रहा था,,,, हालांकि अभी भी तौलिए के नीचे कुछ ना पहनने की वजह से तोलिया के ऊपर अच्छा खासा उभार बना हुआ था जोकि शालू की नजरों से बच नहीं पाया,,,,
दीदी तुमने मुझे जगाई नहीं काफी देर हो चुकी है,,,
हह,, हां,,, मैं तुम्हें जगाने ही वाली थी लेकिन नहाने चली गई,,,, (शर्म के मारे अपने भाई से नजर नहीं मिला पा रही थी इसलिए अपनी नजर इधर उधर घुमा कर बातें कर रही थी ०/) अच्छा रघु एक काम करना,,, मां खेतों पर गई है सब्जियों को पानी देना और लगता है मां को आने में देर हो जाएगी तू ऐसा कर जल्दी से नहा धो कर तैयार हो जा और खाना खाकर,,,, खाना खाकर नहीं तो अपना और मां का खाना लेकर खेतों पर चला जा वहीं पर खा लेना और बाकी काम में हाथ भी बंटा देना,,,,
ठीक है दीदी ,,,,,(इतना कहकर रघुकुल सर खाने में चला गया और थोड़ी देर बाद नहाकर वापस आ गया,, अभी भी शालू के दिलो-दिमाग पर उसके भाई का लंड छाया हुआ था जोकि लाख अपना मन इधर-उधर भड़काने की कोशिश करने के बावजूद भी वह अपने मन को बहला नहीं पा रही थी ,,,, वह रसोई के पास बैठकर अपने भाई के लंड के बारे में ही सोच रही थी,,,,। तभी उसका भाई रखो अपनी चौड़ी छाती को कपड़े से पोछता हुआ शालू के करीब आया और बोला।
दीदी खाना तैयार है,,
(शालू अपने भाई की चौड़ी छाती को देखकर उसके ख्यालों में खोई हुई थी ,,, वैसे तो वह पहले भी अपने भाई कोई समझता में देख चुकी थी ना कि मैं आज उसके देखने का रवैया पूरी तरह से बदला हुआ था ,,,, तब एक बार और पूछने पर शालू की तंद्रा भंग हुई और वह तुरंत रघु और उसकी मां के हिस्से का खाना निकाल कर उसे थमी दी,,, रघु खाना लेकर खेतो की तरफ निकल गया,,,
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,अपने भाई के मोटे तगड़े के दर्शन करने से पहले उसने अब तक किसी दिन मर्द के जवान लंड को नहीं देखी थी इसलिए उसके मन की धारणा मर्दों के लंड को लेकर कुछ और ही थी,,, वह कल्पना में भी नहीं सोची थी कि मर्दों के लंड का वास्तविक आकार उसके भाई रघु के लंड की तरह होता है,,,, शालू के कोमल मन पर उसके भाई के मोटे तगड़े लंड की अमिट छाप बन चुकी थी,,,,, जो कि उसके लिए मिटा पाना असंभव साबित होता जा रहा था,,,, अपने भाई के लंड के बारे में सोच कर अभी भी उसकी सांसे तेज चल रही थी,,,,।
रघु खाना लेकर खेतों पर जा चुका था,, चारों तरफ हरे हरे खेत लहरा रहे थे,, बाकी के मुकाबले कजरी के पास कुछ खेत ज्यादा ही थे जिसमें वह सब्जियां भी ऊगा लेती थी जिससे उसका जीवन निर्वाह अच्छे से हो रहा था,,,
रास्ते में गीत गुनगुनाता हुआ रघु चला जा रहा था,,, थोड़ी ही देर में वहां कच्चे रास्ते से नीचे उतर कर अपने खेतों में घुस गया जहां पर चारों तरफ धान लहरा रहे थे,,, रघु से भी अधिक ऊंचाई मैदान पूरे खेतों में दूर-दूर तक छाया हुआ था एक तरह से उन धानों के बीच में रघु खो सा गया था,, ।
रघु धीरे-धीरे खेतों के बीच में चला जा रहा था,,, देखते ही देखते रघु खेत के एकदम बीचो-बीच बने अपने झोपड़ी में पहुंच गया,,, यह झोपड़ी यहां पर खेतों में काम करते-करते थक जाने पर आराम करने के लिए ही बनाई गई थी,,, खेतों के बीच में यह बनी झोपड़ी बेहद खूबसूरत लगती थी झोपड़ी के दोनों तरफ बड़े-बड़े पेड़ थे जिसकी वजह से उसकी छाया झोपड़ी पर बराबर पडती थी,, और उसकी वजह से ठंडक भी रहती थी पास में ही हैंडपंप भी था।
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रघु झोपड़ी पर पहुंचकर इधर-उधर अपनी मां को ढूंढने लगा,,, लेकिन उसकी मां उसे कहीं नजर नहीं आ रही थी,,, उसे लगा शायद उसकी मां झोपड़ी के अंदर आराम कर रही होगी और वह अंदर झांक कर देखा तो झोपड़ी में भी उसकी मां नहीं थी,,, रघु झोपड़ी के अंदर ही खाट पर खाना रखकर अपनी मां को ढूंढने लगा,,, तभी उसे याद आया कि उसकी मां खेतों में सब्जियों में पानी देने के लिए ही आई थी इसलिए सोचा कि उसकी मां जहां सब्जी लगाई गई है वही होगी इसलिए झोपड़ी के पीछे जाने लगा जहां पर दोनों तरफ धानों के बीच में से पतली सी पगडंडी बनी हुई थी उस पर जाने लगा,,, कुछ ही देर में जहां सब्जियां लगाई गई थी वहां पर रघु पहुंच गया,,,, बहुत परेशान हो गया कि आखिर उसकी मां गई कहां,,,, तभी उसे पास में घनी झाड़ियों के पास पत्तों के चरमराने की आवाज सुनाई दी,,,,, और उस दिशा में देखने लगा उसे कुछ नजर नहीं आ रहा था तो वह थोड़ा सा अपना कदम आगे बढ़ाकर और नजदीक से देखने की कोशिश करने लगा,,,, उसे अब तक ऐसा ही लग रहा था कि कोई जानवर कंदमूल खाने के लिए आया होगा इसलिए वह उसे भगाना चाहता था,,,,,, पर जैसे ही वह घनी झाड़ियों को अपने दोनों हाथों से अलग करते हुए अंदर की तरफ नजर दौर आया तो वह अंदर का नजारा देखकर दंग रह गया,,,, बड़ी मुश्किल से वह अपनी मां की मादकता भरी छलकती जवानी के दर्शन करके ऊस नजारे को भुला पाया था कि,, इस समय जिस नजारे से उसकी आंखें चार हुई थी उसे देखते ही उसके पजामे में उसका सोया हुआ लंड़ गदर मचाने लगा,,,,,,, बस तीन चार कदम की ही दूरी पर कजरी अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर बैठकर मुत रही थी,,, और उसकी बुर में से आ रही मादकता भरी सिटी की मधुर ध्वनि साफ-साफ रघु के कानों में पड रही थी,,,,
बड़ी मुश्किल से वह अपनी मां की छलकती हुई जवानी के मंदिर दृश्य को अपने दिमाग से निकाला था लेकिन एक बार फिर से अपनी मां की नंगी गांड को देखकर उसके तन बदन में आग लग गई,, उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,, पहली बार वह अपनी मां की मदमस्त गोलाकार गांड के भरपूर घेराव को देख रहा था,,, उसे जो कि नहीं नहीं हो रहा था कि यह गांड उसकी मां की,,, क्योंकि रघु ने अभी तक अपनी मां की जोशीले बदन को वस्त्र के ऊपर से ही देखा था वह तो उस दिन गलती से अपनी मां के नंगे बदन का दीदार हो गया लेकिन फिर भी उस दिन वह अपनी मां की गांड और उसकी बुर के दर्शन नहीं कर पाया था लेकिन आज इस तरह से खेतों में झाड़ियों के बीच उसे बैठकर पेशाब करता हुआ देखकर उसके तमन्नाओं की लड़ी बरसना शुरू हो गई थी,,, रघु प्यासी आंखों से अपनी मां की नंगी खूबसूरत माता-पिता से भरपूर गांड को देख रहा था,,,
यह कामुक नजारा देखने के बाद रखो को एहसास हो रहा है कि औरतों के पास अपना हर एक अंग अंग दिखाने के लिए होता है और औरतों के हर एक अंग को देखने के लिए दुनिया का हर मर्द आतुर रहता है जैसा कि इस समय वह खुद अपनी मां के नंगे बदन को देख कर व्याकुल और उत्तेजित हो रहा था,,,,।
अभी भी उसके कानों में अपनी मां की बुर से निकल रही सिटी की मधुर आवाज गूंज रही थी,,, ओरिया मधुर आवाज केवल उसके कानों तक नहीं बल्कि सुनसान खेतों के हर एक कोने में पहुंच रही थी लेकिन उसे सुनने वाला उस समय केवल उसका बेटा रघु ही था जोकि दुनिया से बेखबर औरत के नंगे बदन के आकर्षण में वह यह भी भूल गया कि जिसे वो प्यासी नजरों से देख रहा है वह उसकी खुद की मां है,,, जो कि यह एकदम गलत बात थी लेकिन जवानी से भरपूर मर्द यह सब कहां देखते हैं उसे तो बस अपनी आंख सेंकने का बहाना चाहिए,,, अगर दिमाग ऐसा करने से रोकता भी है तो उसे मादकता भरे दृश्य को देखकर तन बदन में जो हलचल होती है वह हलचल उस मर्द को उस मादकता भरे एहसास में मैं पूरी तरह से बांध लेता है और उससे आजाद होने की इजाजत नहीं देता,,,
रघु के साथ भी यही हो रहा था वह लाख कसमें खाकर अपनी मां को गंदी नजरों से ना देखने का अपने आप से ही वादा कर चुका था लेकिन उसकी आंखों के सामने बेहद कामोत्तेजना से भरपूर द्श्य नजर आते ही सारे कसमे वादे हवा में फुर्र हो गए,,, वह सब कुछ भूल कर अपनी मां की बड़ी-बड़ी नंगी गोलाकार गांड को देख रहा था उसे साफ नजर आ रहा था,,, कि उसकी मां झाड़ियों के बीच बैठकर मुतने का आनंद ले रही है,,, कजरी की बड़ी बड़ी गांड के बीच की दरार रघु को साफ नजर आ रही थी,,, रघु इस समय अपनी मां की बड़ी बड़ी गांड देख कर उसकी गहरी पतली लकीर के अंदर अपने आप को पूरी तरह से डूबा देना चाहता था,,, रघु का दिल जोरों से धड़क रहा था।
ऐसा लगता था जैसे की कजरी को बहुत देर से और बहुत जोरों की पेशाब लगी हुई थी क्योंकि अभी तक उसकी बुर में से मधुर सिटी की ध्वनि सुनाई दे रही थी।,,, रघु को चुदाई का अनुभव बिल्कुल भी नहीं था लेकिन फिर भी इस तरह का कामुकता भरा दृश्य देखकर उसका मन हो रहा था कि पीछे जाकर अपनी मां की बुर में पूरा लंड डालकर चुदाई कर दे,,, रघु के पजामे में काफी हलचल मची हुई थी।।। लंड बार-बार अपना मुंह उठाकर पर जाने से बाहर आने की कोशिश कर रहा था और रघु बार-बार उसकी इस कोशिश को नाकाम करते हुए उसे पजामे के ऊपर से पकड़कर नीचे की तरफ दबा दे रहा था,,,,
इस तरह से पेशाब करके कजरी को बेहद राहत का अनुभव रहा था क्योंकि सब्जियों में पानी देते देते कब उसकी बुर में नमकीन पानी का जमाव हो गया उसे पता ही नहीं चला,,, अधिकतर चोर देने पर उसे एहसास हुआ कि उसे पेशाब लगी है और खेतों में उसके सिवा दूसरा कोई भी ना होने से वह बड़े आराम से झाड़ियों के बीच बैठकर पेशाब कर रही थी,,,, लेकिन अब उसकी टंकी पूरी तरह से खाली हो चुकी थी वह उठने ही वाली थी कि तभी उसे अपने पीछे हलचल सी महसूस हुई और वह पलट कर पीछे देखी तो अपने बेटे पर नजर पड़ते ही वह एकदम सकपका गई,,, अपनी बेटी को ठीक अपने पीछे खड़ा हुआ देखकर और वह भी इस तरह से आंखें फाड़े अपनी तरफ ही देखता हुआ पाकर वह एकदम सन्न रह गई,,,, और झट से खड़ी होकर अपनी साड़ी को तुरंत कमर से नीचे छोड़ दी और किसी रंगमंच के पर्दे की तरह उसकी साड़ी बेहतरीन दृश्य को छुपाते हुए सीधे उसके पैरों तक पहुंच गई,,,
रघु भी एकदम से घबरा गया,,, वह सोच रहा था कि अपनी मां को पेशाब करने से पहले ही वह इस बेहतरीन दृश्य को नजर भर के देख लेने के बाद वह वहां से दबे पांव चला जाएगा,,,, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया था। कजरी के इस तरह से अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी बड़ी बड़ी गांड दिखाकर मुतने में जो आकर्षण था उसमें उसका बेटा पूरी तरह से बंध चुका था,,, और वहां से अपनी नजरें हटा नहीं पा रहा था और ना तो अपने कदम ही पीछे ले पा रहा था लेकिन एकाएक अपनी मां को इस तरह से पीछे मुड़कर देखने की वजह से उसकी चोरी पकड़ी गई थी।
कजरी अपनी साड़ी को दुरुस्त करके अपनी जगह पर खड़ी हो चुकी थी,,, अपने बेटे की ईस हरकत पर वह काफी क्रोधित नजर आ रही थी,,, पर वह गुस्से में बोली।
यह क्या हो रहा था रघु,,,? तुम्हें शर्म नहीं आती चोरी छुपे इस तरह से मुझ को पेशाब करते हुए देख रहे हो,,,
नहीं नहीं मैं ऐसी कोई बात नहीं मैं तो बस तुम्हें ढूंढते हुए यहां पहुंच गया था और,,
और,,,,, और क्या मुझे इस तरह से पेशाब करता हुआ देखकर तु चोरी छुपे मुझे देखने लगा,,,, यही ना,,,
नहीं नहीं यह गलत है,,,, ये सब अनजाने में हुआ,,,,
मैं सब अच्छी तरह से समझती हूं अगर अनजाने में होता तो तू यहां से चला जाता युं आंखें फाड़े,,, मेरी,,,,(कचरे के मुंह से गांड शब्द निकल नहीं पाया,,) देता नहीं,,,,
नहीं नहीं ऐसा क्यों कह रही हो मां,,,,
मुझे तेरी कोई सफाई नहीं सुनना,,,,, तू चला जा यहां से,,, मुझे यकीन नहीं होता कि तु इस तरह की हरकत करेगा,,
लेकिन मां मेरी एक बार,,,,,बा,,,,,,(अपने बेटे की बात सुने बिना ही पर उसकी बात को बीच में ही काटते हुए गुस्से में बोली)
मुझे कुछ नहीं सुनना है बस तू यहां से चला जा,,,,
(रघु समझ गया कि उसकी मां ज्यादा गुस्से में है आखिरकार उसने गलती भी तो इतनी बड़ी की थी… वह मुंह लटका कर उदास होकर वहां से चला गया,,, कजरीअभी भी पूरी तरह से गुस्से में थी,,, वह शायद अपने बेटे रघु के द्वारा दी गई सफाई पर विश्वास भी कर लेती अगर उसकी नजर उसके पजामी में बने तंबू पर ना गई होती तो,,, अपने बेटे के पजामे में बने तंबू को देखकर वह समझ गई कि वह काफी देर से उसे पेशाब करता हुआ देख रहा था,, और उसे देखकर काफी उत्तेजित भी हो चुका था,,,,इस बारे में सोच कर कजरी को काफी शर्म महसूस हो रही थी,,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका बेटा इस तरह की हरकत कर सकता है,,,
वह खाना भी नहीं खाई,,, और वही बैठी रह गई,,, जब शाम ढलने लगी तो वह खेतों से बाहर निकल कर अपने घर कि तरफ जाने लगी,,, अभी भी वह अपने बेटे की शर्मनाक हरकत के बारे में सोचकर एकदम शर्मिंदा हुए जा रही थी,,, वह बार-बार अपने बेटे की तुलना लाला से करने लगी थी क्योंकि अपने बेटे की हरकत और लाना की हरकत में कोई ज्यादा फर्क नहीं था दोनों की आंखों में कामवासना साफ नजर आ रही थी,, दोनों औरतों के अंगों को देख कर मदहोश हो रहे थे,,,,कजरी है बात सोच कर और भी ज्यादा परेशान और शर्मिंदगी महसूस कर रही थी कि लाला तो चलो पराया गैर आदमी था उसकी इस तरह की हरकत को वह अच्छी तरह से समझ रही थी लेकिन उसका बेटा रघु तो अपना था अपना ही बेटा था,,, उसे तो समझना चाहिए और देख भी किसी रहा था अपनी ही मां को और वह भी पेशाब करते हुए,,,,छी,,,,,, ।
कजरी को अपने बेटे की हरकत बेहद शर्मनाक लग रही थी बार-बार उसकी आंखों के सामने वही तेरे से नजर आ रहा था जब वह पलट कर पीछे देखने लगी थी और उसे अपने पीछे रघु खड़ा नजर आया था जोकि पूरी तरह से आंख फाड़े उसे ही देख रहा था,,, और तो और उसे पेशाब करता हुआ देखकर उसका लंड भी खडा हो गया था,, जो कि यह बात कजरी अच्छी तरह से जानती थी कि एक मर्द का लंड कब खड़ा होता है,,, इसलिए तो यह सोच सोच कर हैरान थी कि क्या उसका बेटा उसे पेशाब करते हुए देख कर उसे चोदने की इच्छा रखता,, था,,, क्या सच में रघु चोदना चाहता है,,,,अगर ऐसा नहीं होता तो उसका लंड खड़ा क्यों होता ,,,,,
यही सब सोचकर कजरी एकदम हैरान थी और काफी परेशान भी नजर आ रही थी धीरे-धीरे वह अपने घर पर पहुंच गई,,,।
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Mastt halkat kahani hei re babaa…
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