“तुम कैसी बातें कर रहे हो? मैं तुम्हें ये सब करने को नहीं कह रही. मैं तो बस फ़ैक्ट ही बता रही थी और कुछ नहीं… तुम भी ना कुछ भी समझ लेते हो.”
“सच सच बताओ… क्या तुम उसका मोटा मूसल फिर से अपनी योनि में नहीं लेना चाहती?” विजय ने सुरभि की आँखों में झांकते हुए पूछा.
सुरभि ने ना में गर्दन हिला दी, “मुझे कुछ नहीं पता कि मैं क्या चाहती हूँ.” बोलते वक्त उसकी योनि पानी छोड़ रही थी लोकेश का एक बार फिर लेने के ख्याल से.
“पर तुम्हारी आँखें तो कुछ और ही कह रही हैं…”
“आँखें तो तुम्हारी भी कुछ और ही कह रही हैं,” उसने विजय को छेड़ते हुए कहा. उसे विजय की आँखों में एक्साईटमेंट साफ़ नज़र आ रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे कि वो खुद उसे लोकेश को सौंपने की तैयारी कर रहा हो.
“क्या?” विजय ने कहा.
“कुछ तो है… ये तुम भी जानते हो. मुझसे क्यों पूछते हो, अपने आप से पूछो.” सुरभि ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा.
“तुम्हें झूठ नहीं बोलूँगा… सोच तो रहा हूँ मैं कुछ. पर पता नहीं ये करना चाहिए या नहीं,” विजय गहरी साँस लेते हुए बोला.
“मुझे भी तो बताओ कि तुम क्या सोच रहे हो,” सुरभि ने उत्सुक हो कर पूछा.
“मैं एक बार तुम्हें और लोकेश को साथ में देखना चाहता हूँ…” पूरी बात बोलते ही उसे अहसास हो गया कि वो ये क्या बोल गया इसलिए चुप हो गया. उसके चेहरे पर शर्मिंदगी के भाव उभर आए थे.
“ ये तुम क्या बोल रहे हो, विज़य. मुझसे ये नहीं होगा. तुम्हारे सामने उसके साथ मैं वो सब कैसे कर सकती हूँ. ना बाबा ना. ये बहुत ही अजीब है.” सुरभि ने सकपकाते हुए बोला.
विजय जो कह रहा था उसकी कल्पना मात्र से सुरभि का चेहरा शरम से लाल हो गया था.
“मैं तो बस यूँ ही बोल रहा था. हम ऐसा किंकी काम बिलकुल नहीं करेंगे. तुम चिंता मत करो,” विजय बोला.
“तुमने तो मुझे डरा ही दिया था…पर सोचो तुम्हारी ये बातें अगर लोकेश को पता चल गई तो…” सुरभि धीरे से बोल कर हँस पड़ी.
इतने में लोकेश ने फिर से उनका दरवाज़ा खड़का दिया. “अरे खोलो ना दरवाजा यार…”
“क्या करें सुरभि?”
सुरभि ने ग़हरी साँस लेते हुए कहा, “अब हम इसे यहाँ दरवाज़े पर पूरा दिन ऐसे ही खड़ा तो नहीं रख सकते. मेहमान है वो हमारा आख़िर. अच्छा नहीं लगता ये सब.”
“बोल तो तुम सही रही हो लेकिन हम करें तो क्या करें?”
“दरवाज़ा खोलो और बात करो उससे… और क्या.”
“मैं,” उसने बहुत ही हैरान हो कर कहा.
“तुम ही करोगे और कौन करेगा? आख़िर तुम ही तो मर्द हो इस घर के…मुखिया हो. ये तुम्हारी ही ज़िम्मेदारी है, विजय,” सुरभि ने विजय की हिम्मत बढ़ते हुए कहा.
विजय ने ग़हरी साँस लेते हुए दरवाज़े की तरफ़ देखा और कहा, “ठीक है… मैं दरवाज़ा खोलता हूँ. देखते हैं क्या होता है.”दरवाज़े की तरफ़ बढ़ते हुए विजय के मन में कईं तरह के ख़्याल आ रहे थे. दरवाजा खोलना चाहिए या नहीं…? लोकेश अंदर आकर क्या करेगा…? अंदर आते ही सुरभि पर चढ़ाई तो नहीं कर देगा…? वगैरह वगैरह…
ये सब सवाल उसे विचलित तो कर रहे थे पर क्योंकि उसकी सच में फैंटेसी थी सुरभि को लोकेश के साथ देखने की इसलिए ये विचार उसे अजीब सी उत्तेजना से भी भर रहे थे. वो इन विचारों में खोया हुआ आगे बढ़ ही रहा था कि दरवाजे पर फिर से दस्तक हुई. वो तेज़ी से दरवाज़ा खोलने के लिए आगे बढ़ा.
दरवाज़े पर पहुँच कर विजय ने एक बार पीछे मुड़कर सुरभि को देखा और फिर एक ग़हरी साँस लेते हुए दरवाज़ा खोल दिया. सामने लोकेश मुँह फुलाए खड़ा था.
“ये क्या है यार… कब से दरवाज़ा खड़का रहा हूँ… खोल क्यों नहीं रहे थे?”
“त-तुम यहाँ क्या करने आए हो, लोकेश?” विजय ने डरते डरते कहा.
“सब कुछ जानते हुए भी तुम ये बेतुका सवाल क्यों पूछ रहे हो, विजय?”
“म-मुझे नहीं पता तुम क्या कह रहे हो.” विजय ने अनजान बनने की कोशिश की.
“तुम्हें सच में नहीं पता कि मैं यहाँ क्या करने आया हूँ?” उसने अपनी पैंट के ऊपर से ही अपने मूसल को सहलाते हुए पूछा. उसकी पैंट में बना हुआ टैंट उसकी मंशा को साफ़ ज़ाहिर कर रहा था.
“मुझे कुछ नहीं पता… तुम क्या कहना चाह रहे हो,” विजय ने हकलाते हुए कहा.
लोकेश ने बड़ी ही बेशर्मी से अपने तने हुए लिंग को सहलाते हुए कहा, “तुम सच में नहीं जानते मैं क्या चाहता हूँ?”
“नहीं…”
“चल ठीक है बताता हूँ… तुम तो जानते ही हो मुझे. घुमा फिरा कर बात करने की आदत नहीं है मेरी. तो बात ये है यार कि तुम्हारी बीवी की एक बार ले चुका हूँ और दोबारा लेने के लिए तड़प रहा हूँ… बोल दोबारा मिलेगी क्या उसकी…”
विजय हैरान रह गया लोकेश की बात पर. अब बिलकुल साफ़ हो गया था कि लोकेश ने सब सुन लिया था. तभी तो बेख़ौफ़ ऐसी बातें कर रहा था.
“द-दोबारा…? ये तुम क्या बोल रहे हो लोकेश,” विजय ने अनजान बनते हुए कहा.
“हैरान मत हो यार… अब तुम ही बताओ कि मैं क्या करता… तुम अपने छोटे से औजार से अपनी बीवी को खुश नहीं कर पा रहे थे. तुम्हारा दोस्त होने के नाते मैंने मोर्चा संभाल लिया और उसे अपने बड़े औजार का सुख दे दिया.”
एक तरह से तो लोकेश विजय की बेइज़्ज़ती कर रहा था पर विजय ने उसे कुछ भी नहीं कहा. उसके मन में तो ये सोच कर गुदगुदी हो रही थी कि लोकेश और सुरभि को साथ में देखने से उसे कितना मज़ा आएगा. कब से छुपाए तो वो इस फैंटसी को अपने दिल में. ये फैंटसी अब पूरी होने के करीब थी. इसलिए वो चुपचाप लोकेश की बात सुनता रहा.
“मैंने ठीक किया ना तुम्हारी बीवी को सुख देकर…”
“हाँ हाँ ठीक किया…” विजय ने कहा.
“अच्छा… एक बात बताओ, तुम्हें पता था ना कि मैं तुम्हारे मुंबई जाने के बाद तुम्हारी सुंदर पत्नी के साथ क्या करूँगा? तुम्हें सब पता था कि मैं तुम्हारी अप्सरा जैसी सुंदर बीवी की ले लूँगा. और तुम्हें ये भी पता था कि तुम्हारी असंतुष्ट पत्नी भी मेरे बड़े औजार को ख़ुशी ख़ुशी ले लेगी… तुम्हें पता था ना कि वो मेरे जैसे मर्द का लेने के लिए तुम्हें धोखा दे देगी. जानते थे ना तुम विजय? मुझे सब मालूम है कि तुम पहले से ही सब कुछ अच्छी तरह से जानते थे और फिर भी तुम चले गए अपनी बीवी को मेरे लिए यहाँ अकेला छोड़ कर. कितने कमीने हो तुम…”
विजय शर्म से भर उठा ये सब सुनकर. फिर भी वो हिम्मत जुटा कर बोला, “तुम हमारी बातें सुन रहे थे…?”
“हाँ मैं सब कुछ सुन रहा था. मैं सब समझ गया हूँ. तुम्हें जरा भी ऐतराज नहीं है इस बात से कि मैंने तुम्हारी बीवी की मार ली. अब जब सब खुल ही गया है तो बोलो कैसे आगे बढ़ा जाए…”
“मैं मैं क्या बोलूं…”
“अबे बता ना… शर्मा मत… बता कि क्या मुझे तुम्हारे सामने तुम्हारी बीवी की लेनी चाहिए?”
लोकेश की बात सुनते ही विजय के तन बदन में आग सी लग गई. उसका मन हुआ कि वो तुरंत हाँ बोल दे लोकेश को और देखे कि वो कैसे संभोग करेगा उसकी सुंदर बीवी के साथ. लेकिन उसे लग रहा था कि सुरभि इसके लिए राजी नहीं होगी. इसलिए वो चुप रहा.
“क्या सोच रहा है… बोल ना… करूँ क्या ठुखाई तेरी बीवी की तेरे सामने…”
“म-मुझे उससे बात करनी पड़ेगी. मुझे नहीं लगता कि वह मानेगी…”
“अरे उसकी ले तो चुका ही हूँ मैं… उसे क्या दिक्कत होगी…”
“ये सब इतना आसान नहीं है लोकेश… वो मेरे सामने शर्म महसूस करेगी…””उसकी छोडो, तुम बताओ? तुम क्या सोचते हो? क्या तुम्हें भी शर्म आएगी अगर मैं तुम्हारे सामने उसकी अधूरी जरूरतों को पूरा करूँ…” लोकेश ने विजय के कंधे पर हाथ रखते हुए उसकी आँखों में देखते हुए पूछा.
“थोड़ा अजीब तो लगेगा ही…”
“बिल्कुल…वो तो जाहिर सी बात है… अगर किसी की बीवी उसी के सामने किसी और के साथ हमबिस्तर होगी तो उसे अजीब तो लगेगा ही,” लोकेश ने हँसते हुए कहा. उसकी हंसी में शैतानियत छुपी थी. “पर तुम्हें मजा भी तो आएगा ये देख कर. बोलो सच कह रहा हूँ ना…”
विजय ने सहमती में सर हिला दिया.
“एक बात कहूँ…”
“हाँ कहो…”
“तुम सुरभि के लायक नहीं हो विजय. उसे एक असली मर्द की जरूरत है. तुम्हारे साथ शादी करके उसने गलती कर ली है. तुम अपने मूंगफली जैसे औजार से उसे कभी खुश नहीं कर पाओगे… पर तुम चिंता मत करो. मैं हूँ ना. तुम्हें इस बात से बुरा महसूस करने की ज़रूरत नहीं है. बल्कि तुम्हें तो ख़ुश होना चाहिए कि कोई असली मर्द तुम्हारी पत्नी की अधूरी जरूरतों को पूरा कर रहा है…”
“मैं तुम्हें कुछ नहीं कह रहा, लोकेश…”
“यही तो तुम्हारी वो अदा है जिसके कारण मैं तुम्हें अपना सबसे अच्छा दोस्त मानता हूँ. तुम मेरी हर बात मानते हो. जो कहता हूँ कर देते हो. मुझे पूरा यकीन है कि जो आइडिया मुझे आ रहा है तुम उसमें मेरा पूरा सहयोग करोगे. बोलो करोगे ना?”
विजय एक पल के लिए झिझका और फिर बोला, “क्या आइडिया आ रहा है तुम्हें?”
“मेरे साथ नीचे आओ आराम से बताता हूँ,” लोकेश ने कहा और सीढ़ियों की ओर चलने लगा.
विजय भी एक दब्बू के जैसे उसके पीछे-पीछे सीढ़ियाँ उतरते हुए नीचे आ गया. उसके मन में उधेड़बुन चल रही थी कि आख़िर लोकेश के मन में है क्या.
नीचे आकर लोकेश अपने कमरे में गया और एक मिनट के बाद एक मिनी स्कर्ट और टॉप हाथ में पकड़े हुए बाहर आया.
“सुरभि को ये कपडे पहनाओ और उसे यहाँ ड्रॉइंग रूम में ले आओ… मैं उसके साथ सोफ़े पर सेक्स करूँगा.”
“सोफे पर?” विजय ने हैरानी से पूछा.
“हाँ… इतना हैरान क्यों हो रहे हो? तुमने कभी उसकी सोफे पे नहीं ली क्या?”
“अभी तक तो नहीं…”
“कोई बात नहीं आज मुझे लेते देखना और बाद में ट्राई करना. अब ज्यादा देर मत करो और उसे ये कपडे पहना कर जल्दी नीचे ले आओ. उसकी टाइट पुस्सी को ठोकने के लिए मैं मरा जा रहा हूँ.”
विजय बुत बना हुआ खड़ा रहा.
“क्या सोच रहे हो… याद रखो… मैं इस घर का मेहमान हूँ… मेरी बात तुम्हें माननी ही पड़ेगी.”
विजय सब समझ रहा था कि लोकेश कैसे हर तरह के हथकंडे अपना रहा था अपनी बात मनवाने के लिए. विजय भी उसकी बात मानने को लगभग राजी थी. पर उसे ये लग रहा था कि शायद सुरभि इसके लिए राजी नहीं होगी.
“उम्म… अगर वो इस बात से सहमत नहीं हुई तो…? वो क्या है ना, सुरभि इस तरह के कपड़े नहीं पहनती…” विजय ने कहा.
यह सच था. लोकेश ने जो मिनी स्कर्ट पकड़ रखी थी, वह बहुत छोटी थी. पोर्न फिल्मों में इस तरह की चीजें सिर्फ पोर्न स्टार ही पहनती हैं. विजय के लिए सुरभि को ऐसे कपडे पहनने के लिए राजी करना आसान नहीं था. इसलिए वो ऐसी बात बोल रहा था.
“इस बात से मेरा कोई लेना देना नहीं है…उसे ये कपड़े कैसे पहनाने हैं, ये तुम जानो. और वैसे भी मैं ये सब तुम दोनो के लिए ही तो कर रहा हूँ. मैंने तुम दोनो की सारी बातें सुन ली हैं. तुम्हीं तो अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में नया रंग भरना चाहते थे. और तुम्हें भी इस सब में मज़ा आ रहा है…तो अब आनाकानी क्यों कर रहे हो. ज़िंदगी तुम्हें एक मौक़ा दे रही है अपनी सेक्स लाइफ़ रंगीन करने का तो इस मौक़े का भरपूर फ़ायदा उठाओ. ये लो कपड़े और उसे जल्दी से ये पहना के यहाँ नीचे ले आओ… मुझसे अब और इंतज़ार नहीं हो रहा.”
विजय ने कपड़े लिए लोकेश के हाथ से और बोला, “ठीक है… मैं उसे समझाने की कोशिश करता हूँ.”
“कोशिश नहीं… तुम्हें उसे नीचे लाना है इन कपड़ो में…”
“ओ-ओके…मैं लाता हूँ उसे किसी तरह से मनाकर,” विजय ने कहा और कपड़े हाथ में पकड़ कर सीढ़ियों की तरफ़ चल पड़ा.
Pingback: पड़ोसवाली मामी को चोदा - Mami Ko Choda - Indian Sex Stories
Kya kahani hei bhai. 😍 mene to padhakar muth marli 🍌
Kash mera bhi eisa koi dost hota 🥺❤️
क्या मेरे पति से बात करू उनके दोस्त के बारे में?
बोहोत ताकता रहता है मेरी चुच्चोंको।😎 💋