Adultery हादसा -Dost ki biwi ki chudai

थोड़ी देर के लिए विजय चुप हो गया और फिर सुरभि का हाथ पकड़ के बोला, “मैं तुमसे झूठ नहीं बोलूँगा ,सुरभि. कल जब मैं मुंबई के लिए निकल रहा था तो शायद मैं कहीं ना कहीं ये जानता था कि लोकेश इस बात का फ़ायदा ज़रूर उठाएगा.”

“तुम ये कैसे कह सकते हो?”

हादसा -Dost ki biwi ki chudai

“बस मुझे अंदेशा था इस बात का…मुझे पता था कि वो तुम्हें अपने जाल में फ़साने की पूरी कोशिश करेगा और तुम अपनी मर्ज़ी से उसके जाल में जा फँसोगी क्योंकि तुम्हें ख़ुद उसके जैसे अल्फ़ा मर्द पसंद हैं. फिर भी मैं तुम्हें यहाँ उसके साथ अकेला छोड़ कर चला गया…”

“तुम सब जानते थे तो तुमने ऐसा क्यों किया, विजय…? क्यों मुझे अकेला छोड़ा उसके साथ…?”

“देखो…सुरभि, इस सवाल का जवाब बहुत ही मुश्किल है मेरे लिए.”

“मुझे बताने की कोशिश तो करो विजय, मैं सब जानना चाहती हूँ.”

“तुम नहीं समझोगी, सुरभि… जाने दो इन बातों को.”

सुरभि ने झल्ला कर अपनी गर्दन हिलाते हुए कहा, “एक तो तुम सब जानते बुझते हुए मुझे अपने अड़ियल दोस्त के पास अकेला छोड़ कर चले गए और अब ये भी नहीं बताओगे कि तुमने ऐसा क्यों किया?”

“और जो तुमने किया वो कितना सही था? तुम कैसे इतनी आसानी से किसी और के साथ हमबिस्तर हो गई? तुमने ये भी नहीं सोचा कि तुम मेरी पत्नी हो.”

“रहने दो, विजय… अभी तो तुम कह रहे थे कि तुम जानते थे कि लोकेश ऐसी हरकत करेगा और अब सारा दोष मेरे सिर मढ़ रहे हो,” सुरभि ने तपाक से कहा.

कुछ देर दोनों चुप रहे. फिर अचानक विजय बोला, “छोड़ो, ये सब बातें, सुरभि. मैं तुम्हें कुछ नहीं कह रहा हूँ … मैं तो सिर्फ़ तुम्हें ये बताने की कोशिश कर रहा था कि शायद मैं ये रोक सकता था अगर थोड़ा हिम्मत दिखा कर उसे यहाँ ना बुलाकर किसी होटेल में ठहरने को बोलता.” इतना बोलकर विजय चुपचाप मायूस सा हो टकटकी लगा कर छत की तरफ़ देखने लगा.

“मेरा मतलब तुम्हें दुःख पहुँचाने का नहीं था, विजय… आई एम सॉरी.” सुरभि ने विजय की ऐसी हालत देखते हुए तुरंत उसे संभालने की कोशिश की.

“ मैं ठीक हूँ सुरभि… मैं तो बस तुम्हें अपने मन की बात बता रहा था,” कहता हुआ विजय बैड के सिरहाने पर कमर टिका कर बैठ गया. थोड़ी देर उन दोनो के बीच एक अजीब सा सन्नाटा छाया रहा फिर विजय अपना गला साफ़ कर के बोला, “अच्छा, तो ये बताओ कि जब मैंने बेल बजाई तो तुम उसके साथ यहीं थी… हैं ना?”

“हाँ,” सुरभि ने धीरे से कहा.

विजय ने एक ग़हरी साँस ली और बोला, “लोकेश तुम्हें हमारी शादी वाले दिन से ही बहुत पसंद करता था. कईं बार वो मुझे कह चुका था कि वो तुम्हें एक बार पाना चाहता चाहता है.”.

“ये तुम क्या कह रहे हो. वो तुमसे सीधे सीधे ऐसी बात कैसे कर सकता है,” सुरभि ने हैरान हो कर पूछा.

“मुझे तो हमेशा लगता था कि वो सिर्फ़ मज़ाक कर रहा है और इसलिए मैंने उसे कभी कुछ नहीं कहा. मेरी ख़ामोशी को वो मेरी हाँ समझ बैठा और आज मौक़ा मिलते ही उसने तुम्हें…”

“मुझे भी अजीब लग रहा था कि वो तुम्हारे पीछे से यहाँ रहने के लिए क्यों आ रहा है… तो क्या ये सब पहले से ही प्लान्ड था?”

“नहीं-नहीं, मेरी तरफ़ से ऐसा बिलकुल भी नहीं था. बात यूँ हुई कि मैंने उसे पिछले हफ़्ते बातों बातों में फ़ोन पर ये बता दिया था कि मैं एक मीटिंग के लिए मुंबई जा रहा हूँ. फिर अगले ही दिन मुझे उसका फ़ोन आया कि उसे दिल्ली में किसी काम से आना है इसलिए वो हमारे घर ही रुकेगा कुछ दिन. मुझे उस वक्त ही उसके इरादे नेक नहीं लग रहे थे पर मैं उसे मना नहीं कर पाया. पता नहीं क्यों… मैं उसे कुछ कह नहीं पाता हूँ. इसलिए मैं ये कह रहा हूँ कि जो कुछ भी हुआ उसमें पूरी गलती सिर्फ़ तुम्हारी नहीं है बल्कि कुछ गलती मेरी भी है.”

“अपने आप को दोष मत दो ,विजय. गलती मेरी ही है…मैं ही तो बहक गई थी और उसकी बातों में आ गई… काश मैंने खुद को संभाला होता तो ऐसा कुछ नहीं होता.”

दोनो के बीच फिर से शांति छा गई.

“तो तुम अब क्या करने वाले हो?” सुरभि ने उनके बीच की ये चुप्पी तोड़ते हुए कहा.

“मतलब…?”

“मतलब ये कि इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी क्या अब तुम उसे इस घर में रहने दोगे या फिर बाहर निकाल दोगे?”

विजय ने लंबी गहरी साँस ली. “तुम्हें क्या लगता है…? मुझे क्या करना चाहिए?”

“मैं तो ख़ुद तुमसे पूछ रही हूँ.”

“मैं क्या बोलूँ अब… मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ.”

“तो क्या तुम हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहोगे… उसे कुछ नहीं कहोगे,” सुरभि ने हैरान हो कर कहा.

“ये बातें बोल कर तुम मुझे शर्मिंदा मत करो , सुरभि.”

“मैं तो बस तुमसे पूछ रही हूँ कि ऐसी क्या बात है जो कि तुम लोकेश से इतना डरते रहते हो. मैंने देखा है तुम्हें उसके सामने… पता नहीं क्या हो जाता है तुम्हें. क्यों डरते हो उस से इतना…?”

“म-मुझे ख़ुद कुछ नहीं पता…”

“कुछ नहीं पता का क्या मतलब है ,विजय? तुम मुझे ये बताओ कि अगर उसने फिर से मुझे फ़साने की कोशिश की तो तुम क्या करोगे?” ये पूछते हुए सुरभि को अजीब सी उत्तेजना महसूस हो रहा थी अपनी योनि में. ऐसा क्यों हो रहा था उसे नहीं पता था. शायद उसके मन में कहीं न कहीं ये इच्छा थी कि लोकेश एक बार फिर उस पर चढ़ जाए और अपने लंबे और मोटे हथियार से उसे खूब मजे दे.

“म-मैं…” विजय के मुँह से कुछ नहीं निकला.

“देखो, विजय…लोकेश जानता है कि तुम्हें अब पता चल चुका है कि उसने तुम्हारी बीवी को भोग लिया है और फिर भी तुम चुप हो. तुम्हें नहीं लगता कि इससे उसकी हिम्मत और भी बढ़ जाएगी. ये भी हो सकता है कि वो इस बार तुम्हारी मौजूदगी में ही मुझे हासिल करने की कोशिश करे… ऐसा हुआ तो तुम क्या करोगे?” सुरभि बोली. इस बार फिर से उसकी योनि मचल उठी. इस बार उसे हल्का सा गीलापन भी महसूस हुआ अपनी टांगो के बीच. बात साफ़ थी. उसे इन बातों में अजीब सा मजा आ रहा था. पर ऐसा हो क्यों रहा था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था. उसका मन हो रहा था कि ये सब बातें बंद करके वो नहाने चली जाए. शायद पानी की बुँदे उसके बदन में उठ रही वासना को शांत कर दे. पर विजय को छोड़ कर जाने को भी मन नहीं मान रहा था उसका. इसलिए वो चुपचाप बैठी रही.

“हम्म… तुम सही बोल रही हो,” विजय ने कुछ सोच विचार करके कहा. इस बार उसकी आँखो में कुछ शरारत सी थी.

“तो क्या तुम उसे रोक पाओगे…? उसे बोल पाओगे यहाँ से जाने के लिए…” सुरभि बोली.विजय ने उसे बिस्तर पर लेटा दिया और उसके ऊपर लेट गया और उसकी आँखो में देखते हुए मस्ती में बोला, “तुम क्या सच में चाहती हो कि मैं उसे रोकूँ?” ये बोल कर विजय उसकी योनि को कपडे के ऊपर से अपनी उँगलियो से छेड़ने लगा.

“और नहीं तो क्या… तुम पति हो मेरे. भला किसी ग़ैर मर्द को मेरे साथ मज़े कैसे करने दे सकते हो?” सुरभि ने भी शरारती अन्दाज़ से कहा.

“अगर उस दोस्त का बहुत बड़ा हो, तो भी रोकूँ क्या…?” कहते हुए विजय ने सुरभि की पैंटी में हाथ घुसा के एक उँगली उसकी योनि में डाल दी.

सुरभि सिसक उठी.

“पर मेरे लिए उसका वो बहुत बड़ा है. मैं इतना बड़ा नहीं ले सकती…” वो सिसकते हुए बोली. सुरभि को नहीं पता था कि वो ऐसी बाते करके सही कर रही थी या नहीं. पर वो खुद को रोक नहीं पा रही थी.

“अच्छा, अगर ऐसा है तो उसके बड़े और मोटे मूसल के साथ मस्ती किसने की इस बिस्तर पर? बोलो बोलो…जवाब दो मुझे?” विजय अपनी ऊँगली को सुरभि की योनि में अन्दर बाहर करते हुए बोला.

सुरभि पहले मजे में सिसकी और फिर बोली, “आह…वो तो उसने मुझे बातों में उलझा लिया था… मुझे तो बहुत डर लग रहा था उसके हथियार से…”

“अच्छा जी…” विजय बोला और अपनी एक और ऊँगली सुरभि की योनि में घुसा दी.

सुरभि सिसक पड़ी और शर्माते हुए बोली, “जी…”

“अच्छा एक बात बताओ. क्या सच में उसने बस एक बार किया तुम्हारे साथ?”

“हाँ बस एक बार…”

“सच बोल रही हो?”

“हाँ विजय मैं सच बोल रही हूँ…”

“उसने दोबारा कोशिश नहीं की…”

“वो दोबारा करना चाहता था पर तुम आ गए…,” उसने शर्माते हुए बताया.

“हा-हा-हा…तो मैंने तुम्हारे रंग में भंग डाल दिया,” विजय हँसते हुए बोला. बातें करते हुए वो बार बार अपनी दोनों उँगलियाँ उसकी योनि में अंदर बाहर कर रहा था.

सुरभि के लिए खुद को थामना मुश्किल हो रहा था. वो सिसकियाँ लिए जा रही थी बार बार. “ऐसी बात नहीं है…”

“तो फिर कैसी बात है? तुम उसे दुबारा अपनी देने वाली थी, हैं ना?”

“नहीं-नहीं मैं सच में ऐसा नहीं चाहती थी पर मैं कर भी क्या सकती थी. वो हमारा मेहमान है… इसीलिए मैं उसकी बातें मान रही थी.”

“तो क्या तुम्हारी बिलकुल भी इच्छा नहीं थी लोकेश जैसे अल्फ़ा मेल के साथ सेक्स करने की,” विजय ने सुरभि की योनि में शरारती अंदाज में उँगली घुमाते हुए कहा. ऐसा लग रहा था जैसे वो उस से कुछ सच उगलवाने की कोशिश कर रहा हो.

“ओहो… तुम समझते क्यों नहीं. मेरे मन में जो भी इच्छा हो पर ये सच है कि मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहती थी. मैं तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ. तुम जानते हो ना ये बात.”

“अगर ऐसा है तो फिर तुमने लोकेश को एक बार भी क्यों करने दिया, बताओ जरा.”

“वो सब कैसे हो गया मुझे सच में नहीं पता पर मैं ये चाहती नहीं थी.”

“झूठी… तुम्हारी पुस्सी जिस तरह उसके नाम से ही नदियाँ बहा रही है… मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि ये कितना मचली होगी उसका मोटा अपने अंदर लेने के लिए.”

बात तो सच कही थी विजय ने. पर ये बात सुरभि स्वीकार कैसे करे. “ये सच नहीं है, विजय…” सुरभि शर्माते हुए बोली.

“उसका वीर्य अभी तक तुम्हारी गहराइयों में मौजूद है, हैं ना?”

“ये तुम कैसी बातें कर रहे हो विज़य?” सुरभि ने हैरान होते हुए कहा.

“क्यों… क्या हुआ? क्या ये बातें तुम्हें एक्साइट नहीं कर रही?” विजय तेजी से उसकी योनि में ऊँगली घुसाते हुए बोला.

“तुम कहना क्या चाहते हो?” सुरभि सिसकते हुए बोली.

“मैं ये कहना चाहता हूँ मेरी रानी कि जब हम इस अजीब सी घटना के शिकार हो ही गए हैं तो क्यों ना इसका मज़ा लिया जाए?” ये कहते हुए वो अपनी उँगली उसकी तर बतर हो चुकी योनि में और तेजी से अंदर बाहर करने लगा.

“इसमें हमें कौन सा मज़ा मिलने वाला है?” सुरभि हँस पड़ी.“अभी कुछ नहीं कह सकता पर लगता है कि इससे हमारी शादीशुदा ज़िंदगी में और भी रंग भर सकता है.”

“कौन सा रंग?…ज़रा खुल के बताओ,” सुरभि ने उत्सुक हो के पूछा.

“हमारी सेक्स लाइफ़ और रंगीन हो जाएगी यार बात को समझो…”

“पता नहीं तुम क्या बोल रहे हो…?”

“अच्छा ये बताओ उसने पहले अपनी उँगली घुसाई थी या सीधा अपना मूसल ही डाला दिया था तुम्हारी छोटी सी पुस्सी में?” विजय ने अपनी उँगली सुरभि की योनि में और गहरे घुसाते हुए पूछा.

“प्लीज़…विजय, मुझसे ऐसी बातें मत पूछो. मुझे बहुत अजीब सा लग रहा है,” सुरभि ने उस से नज़रें चुराते हुए कहा.

तभी कमरे के बाहर से आवाज आई.

“अरे भाभी जी…अगर तुम्हें अजीब लग रहा है तो मैं बता दूँ क्या विजय को अंदर आकर कि पहले मैंने क्या डाला था.”

लोकेश की आवाज़ सुनकर दोनो की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई.

“हे भगवान…! वो हमारे दरवाज़े के बाहर खड़ा है,” विज़य ने सुरभि को धीरे से कहा और अपनी उंगलिया सुरभि की योनि से बाहर निकाल ली.

“मुझे लगता है उसने हमारी सारी बातें सुन ली होंगी,” सुरभि सहमी हुई आवाज में बोली.

“हाँ, लगता तो यही है.”

“अब क्या करेंगे हम… ये ठीक नहीं हुआ…”

“विजय… दरवाजा खोलो. आगे का मोर्चा मुझे संभालने दो,” लोकेश ने दरवाज़ा खड़काते हुए कहा.

“अब क्या होगा? ये तो अंदर आना चाहता है,” सुरभि ने घबराते हुए कहा.

“मुझे लगता है वो अंदर आकर फिर से तुम्हारी लेना चाहता है,” विजय ने गहरी साँस लेते हुए कहा.

सुरभि की साँसे अटक गई ये सुन कर. “क्या तुम्हें सच में लगता है कि वो ऐसा कर सकता है?”

“मुझे पक्का तो नहीं पता… पर वो कुछ भी कर सकता है…” विज़य बोला.

लोकेश कमरे में आने को मरा जा रहा था. वो बार बार दरवाज़ा खड़काने लगा.

“क-क्या करें अब?” विजय ने सुरभि से पूछा.

“मुझे क्या पता. तुम्हारा दोस्त है… तुम ख़ुद सोचो कि क्या करना है.” सुरभि ने घबराहट में जवाब दिया.

“मैं जानता हूँ कि अगर वो अंदर आ गया तो अपनी मनमानी ही करेगा. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ…उसे कैसे रोकूँ,” विजय ने अपनी बेबसी बताते हुए कहा.

“मुझे मालूम है कि तुम उसे रोक नहीं पाओगे. पर अब करें तो क्या करें?” सुरभि ने धीरे से कहा.

“मुझे तो ख़ुद कुछ भी समझ नहीं आ रहा. मेरे हिसाब से तो इसे हमारे बेडरूम के बाहर इस वक्त होना ही नहीं चाहिए था. इसे तो ज़रा भी तमीज़ नहीं रही,” विजय धीरे से बोला.

“तुम अब इससे किसी तमीज़ की उम्मीद नहीं कर सकते. एक तो पहले ही तुमने उसके हौंसले बढा दिए. ये जानते हुए भी कि वो ऊपर तुम्हारे बेडरूम से निकल के आ रहा था तुमने उसे कुछ भी नहीं कहा. अब भला वो क्यों डरेगा तुमसे? उसे तो ये ही लगेगा ना कि तुम्हें कोई एतराज़ नहीं इस बात से कि वो तुम्हारी बीवी के साथ कुछ भी करे. और अब तो वो हमारी सारी बातें भी सुन चुका है… तभी तो बेशर्मी से दरवाज़ा पीटे जा रहा है. उसे मालूम है कि तुम उसका विरोध नहीं करोगे और चुपचाप अपनी बीवी उसे सौंप दोगे.”

विजय कुछ नहीं बोला. सुरभि की तीखी बातें शायद उसे चुभ गई थी.

“चुप क्यों हो विजय…”

“मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ…”

“दरवजा खोलो यार…” लोकेश चिल्लाया.

“दरवाजा खोला तो वो तुम पर चढ़ जाएगा मेरे सामने ही…”

विजय की इस बात पर सुरभि की योनि मचल उठी और पानी छोड़ने लगी. “ये तो है… वो अब रुकेगा नहीं… पर हम उसे इग्नोर तो नहीं कर सकते ना…”

“तुम कहना क्या चाहती हो सुरभि? क्या मुझे दरवाज़ा खोल कर उसे अंदर बुला लेना चाहिए?”

“मैंने ये कब कहा…”

“मैं सब जानता हूँ… तुम भी उसे देने के लिए मरी जा रही हो…”

“तुम भी ना… कुछ देर पहले तो खुद ही अपनी सेक्स लाइफ़ रंगीन करने की बातें कर रहे थे और अब…”

“बातें सिर्फ बातें होती हैं. उन्हें अमल में लाना इतना आसान नहीं होता. इसे अंदर आने दिया तो जाने क्या होगा. तुम मुझे दरवाजा खोलने के लिए मत उकसाओ…”

“तुम कैसी बातें कर रहे हो? मैं तुम्हें ये सब करने को नहीं कह रही. मैं तो बस फ़ैक्ट ही बता रही थी और कुछ नहीं… तुम भी ना कुछ भी समझ लेते हो.”

“सच सच बताओ… क्या तुम उसका मोटा मूसल फिर से अपनी योनि में नहीं लेना चाहती?” विजय ने सुरभि की आँखों में झांकते हुए पूछा.aise aur bhi bhabhi sex stories ke liye padhte rahiye yahi website

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4 Comments

  1. Anju Mastani

    क्या मेरे पति से बात करू उनके दोस्त के बारे में?
    बोहोत ताकता रहता है मेरी चुच्चोंको।😎 💋

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