Adultery हादसा -Dost ki biwi ki chudai

सुरभि लोकेश की बग़ल में लेटी हुई थी एकदम शांत, लेकिन उसके दिमाग़ में हज़ारों विचार उमड़ रहे थे. उसका मन हलचल से भरा हुआ था. और ये अहसास बार बार ताज़ा हो रहा था कि किस तरह लोकेश ने अभी उसे टूटकर प्यार किया था. उसका एक-एक झटका कितनी हवस से भरा था. जैसे अहसास उसे आज हो रहे थे वैसे आज तक कभी भी नहीं हुए थे. लोकेश का इस तरह उसके अंदर समाना, उसके लिए एकदम नया अहसास था. ये अहसास उसे सारी ज़िंदगी याद रहेगा. ‘कितना गहरा उतर गया था उसका हथियार मेरी योनि में. इतना गहरा कभी विजय का नहीं गया.’

ये सोचते ही उसके तन बदन में एक सिहरन सी हो उठी. उसने एक ग़हरी साँस ली और पलट कर लोकेश की ओर देखा. वो भी अभी उसी की तरह बिना कपड़ों के वहाँ लेटा था. उसकी आँख़े बन्द थी. ऐसा लग रहा था जैसे कि शायद वो सो गया था.

हादसा -Dost ki biwi ki chudai

‘मेरी जबरदस्त ठुकाई कर के देखो तो कैसे महाराजा की तरह चैन से सो रहा है,’ सुरभि मन ही मन सोच कर मुस्कुराई.

वो अँगड़ाई लेते हुए बैड के किनारे से जैसे ही उठने लगी लोकेश ने उसकी बाजू पकड़ ली और पूछा, “कहाँ जा रही हो?”

“तुम जाग रहे हो?” सुरभि शर्माते हुए बोली.

“और नहीं तो क्या… तुम्हारी चूत मार कर किसे नींद आएगी भला…”

“छी… कितनी गन्दी बाते करते हो तुम… छोडो मेरी बाजू…”

“कहाँ जा रही हो ये तो बताओ?”

“किचन…” सुरभि ने पीछे मुडे बिना बोला.

“किचन में…क्यों?”

“लंच बनाने…” सुरभि ने बहाना बनाते हुए कहा. दरअसल लोकेश के साथ संभोग करके वो इतना ज्यादा शरमा रही थी कि एक पल भी उसके साथ रहना मुश्किल हो रहा था. ऊपर से वो बाते भी बड़ी गन्दी कर रहा था. क्या बोला था उसने… चू… मार के किसे नींद आएगी. ऐसी गन्दी बात बोलता है क्या कोई.

लोकेश ने आगे बढ़ के सुरभि के बायें उभार को पकड़ लिया और बोला, “ अभी मेरा काम पूरा नहीं हुआ है…अभी तो तुम्हें एक बार और ठोकना है…अभी से कहाँ चली, वापस मेरे नीचे आओ…”

“एक बार और…?” सुरभि की आँख़े फटी रह गई ये सुनकर.

“इसमें इतना हैरान होने की क्या बात है? क्या कभी तुम्हारे पति ने तुम्हारी दो बार नहीं ली एक दिन में?” लोकेश उसके उभार को मसलते हुए बोला.

सुरभि ने शर्माते हुए ना में गर्दन हिला दी. ये सच था. अभी की तो छोडो, विजय ने तो उनके हनीमून पर भी कभी एक दिन में दो बार नहीं किया था. बस एक बार में ही थक जाता था वो. दोबारा करने की तो कभी बात ही नहीं करता था.

“क्या यार… विजय भी ना एक नंबर का निक्कमा है… इतनी खूबसूरत लुगाई को दो बार कौन नहीं ठोकेगा. पर तुम चिंता मत करो. मैं हूँ ना. मैं दोबारा ठोकुंगा तुम्हें अच्छे से… चलो जल्दी आओ मेरे नीचे…”

लोकेश के बोलने का अन्दाज़ एक आदेश से कम ना था. पूरी तरह डोमिनेट कर रहा था वो उसे. और सुरभि को ये अच्छा लग रहा था. वो ऐसे में उसे भला कैसे मना कर सकती थी. और दूसरी बात ये भी थी कि उसका मन भी दोबारा उसके मोटे हथियार को अपनी गहराइयों में महसूस करने को मचलने लगा था. ऐसे में उसके लिए लोकेश को ना कहना मुमकिन नहीं था.

“ठीक है…लेकिन बस एक बार,” सुरभि ने धीरे से कहा और लोकेश की टांगो के बीच नज़र दौड़ाई. उसका हथियार एक बार फिर से काले नाग की तरह फ़न उठाए खडा था. उसे देख कर उसकी योनि में अजीब सी हलचल मच गई.

सुरभि कामुकता में खोई हुई फिर से बैड पर लेटने ही वाली थी कि नीचे से घर की डोर बेल बजने की आवाज़ आई.

“ये कौन कमबख़्त आ गया इस वक्त रंग में भंग डालने?” लोकेश झल्लाते हुए बोला.

“पता नहीं कौन होगा… इस वक्त तो कोई आता नहीं…” वो धीरे से बोली.

“जल्दी से देख कर आओ कि कौन है … मेरा शेरू और ज़्यादा देर इंतज़ार नहीं कर सकता.”

“ठीक है … मैं अभी देखकर आती हूँ…”

सुरभि ने पहले अपने कमरे की खिड़की से बाहर झांक कर देखा पर कोई नहीं दिखा. इतने में बेल फिर से बज गई, ‘पता नहीं इस वक्त कौन हो सकता है’ उसने जल्दी जल्दी में अपनी नाइटी उठाई और बिना ब्रा पैंटी के ही उसे पहन कर अपने कमरे से निकली और सीढ़ियों की तरफ़ दौड़ी.

नीचे पहुँचकर जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला उसके तो होश ही उड़ गए. सामने विजय खड़ा था. एक पल को तो उसके पैरों के नीचे से ज़मीन ही खिसक गई. उसे लग रहा था जैसे कि ये एक सपना हो. लेकिन ये सब बिल्कुल सच था. विजय दरवाज़े पे खड़ा मुस्कुरा रहा था.

“तु-तुम…इतनी ज-जल्दी कैसे आ गए? तुमने मुझे बताया भी नहीं कि तुम आज ही वापिस आओगे,” सुरभि हकलाते हुए बोली. डर के मारे उसका गला सुखा जा रहा था.

“हाँ…बस सोचा कि तुम्हें सरप्राइज़ देता हूँ. जैसे ही मीटिंग ख़त्म हुई मैंने फ़्लाइट पकड़ी और चला आया अपनी बेबी के पास,” विजय ने घर में दाखिल होते हुए कहा. “लोकेश कहाँ है?” उसने घर में इधर उधर नज़र दौड़ाते हुए पूछा.

सुरभि की हालत ऐसी थी कि काटो तो खून नहीं. अब वो भला विजय को ये कैसे बताए कि लोकेश उन्हीं के बैडरूम में है और इस वक्त उन्ही के बैड पर नंगा पड़ा हुआ है अपनी टांगो के बीच अपना तना हुआ हथियार लिए. ‘हे भगवान क्या करूँ… बड़ी ही अजीब मुसीबत में फंस गई मैं तो…’

“म-मुझे नहीं पता वो कहाँ है …स-सुबह बाहर गया था. अभी तक वापिस नहीं आया,” सुरभि ने हकलाते हुए झूठ बोल दिया. और करती भी क्या. सच कैसे बताती उसे.

“क्या हुआ… तुम्हारा चेहरा क्यों पीला पड़ा हुआ है. ऐसा लग रहा है जैसे तुमने कोई सांप देख लिया हो. मुझे देख कर खुश नहीं हुई क्या?”

“न-नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं. मैं तो बहुत खुश हूँ. मैं बस ये सोच रही थी कि तुम अचानक कैसे आ गए…”

“तुम्हें सरप्राइज देना था सुरभि…”

“कौन आया है भाभी?…कहाँ रह गई हो तुम. जल्दी से ऊपर आ जाओ…और कितना इंतज़ार कराओगी,” उनके बेडरूम से आई लोकेश की आवाज़ ने सुरभि की सारी पोल खोल दी.

“तुम तो बोल रही थी कि वो बाहर गया है पर आवाज़ तो ऊपर से आ रही है. क्या वो ऊपर है?,” विजय ने हैरान हो कर पूछा.

सुरभि के पास इस सवाल का कोई भी जवाब नहीं था. शरम और डर के मारे उसका चेहरा पीला पड़ गया था और नज़रें फ़र्श में गड़ गई थी. कुछ देर के लिए उन दोनो के बीच एक अजीब सा सन्नाटा छा गया. फिर विजय ने अचानक से टॉपिक बदल दिया, “अच्छा…ये बताओ कुछ खाने को रखा है क्या? मुझे बहुत भूख लगी है.”

सुरभि हैरान थी विजय का ऐसा रीएक्शन देखकर. उसे तो उस पर चिल्लाना चाहिए था, डाँटना चाहिए था… पर नहीं …वो तो खाना माँग रहा था.

“अभी तो कुछ भी नहीं है खाने को. मैं बस खाना बनाने ही जा रही थी. मैंने अभी लंच नहीं बनाया…”

“तो जल्दी से कुछ बनाओ…मुझे बहुत भूख लगी है.”

तभी सीढ़ियों से लोकेश की आवाज़ आई, “अरे, विजय तुम… तुम कब आए?”

सुरभि को लगा था कि कहीं वो नंगा ही ना निकल आया हो ऊपर से. इसलिए उसने एक झटके में उसे पलट के देखा. ‘भगवान का शुक्र है कि इसने कपड़े पहने हैं’ सुरभि ने चैन की साँस ली.

“बस अभी आया हूँ,” विजय ने कहा. उसके मन में सैंकड़ों सवाल उमड़ रहे थे पर उसने उन्हें सामने नहीं आने दिया.

“चलो अच्छा है तुम आ गए… अब हम सब साथ में लंच करेंगे…”

“बिलकुल… हम साथ में लंच करेंगे… क्या बना रही हो खाने में, सुरभि?” विजय ने कहा.

सुरभि के मन में तो इस वक्त बहुत ही ज़्यादा उथल पुथल मची हुई थी. वो शर्मसार हुई जा रही थी. लंच में क्या बनेगा ये सोचने की तो गुंजाइश ही नहीं थी.

“अ-अभी कुछ सोचा नहीं है कि क्या बनाऊँगी लंच में,” वो दोनों से नज़रें चुराती हुई बोली.

“अरे…क्या यार विजय, एक दिन का ब्रेक क्यों नहीं दे देते अपनी ख़ूबसूरत बीवी को. खाना बाहर से ऑर्डर कर लो,” लोकेश बोला.

“हाँ… ये भी सही है. इसमें कौन सी बड़ी बात है…मैं अभी कुछ ऑर्डर करता हूँ,” विजय बोला.

सुरभि विजय का सामना नहीं करना चाह रही थी इसलिए वो उससे नज़रें चुराकर किचन की तरफ़ चली गई.

सुरभि के जाने के बाद विजय और लोकेश दोनो लिविंग रूम में बैठ गए. बातें करते हुए विजय ने सब के लिए केएफसी से चिकन बर्गर ऑर्डर कर दिए.

“तो कैसा रहा तुम्हारा ट्रीप?” लोकेश ने पूछा.

“ठीक था..” विजय बोला.

“पर तुम तो रात को आने वाले थे.”

“हाँ…सब काम जल्दी निपट गए फिर वहाँ रुक कर क्या करता. इसलिए जल्दी चला आया.”

सुरभि चुपचाप सबकुछ सुन रही थी. वो लोग बिल्कुल शांति से ऐसे बातें कर रहे थे जैसे कि कुछ हुआ ही ना हो. ना तो विजय ग़ुस्से में था और ना ही वो लोकेश को ये पूछ रहा था कि वो ऊपर उनके बेडरूम में क्या कर रहा था. पता नहीं उसे कुछ भी अजीब क्यों नहीं लग रहा था.जब उनका लंच आ गया तो तीनों ने एक साथ डाइनिंग टेबल पर बैठ कर साथ में ही खाना खाया. उस दौरान भी विजय और लोकेश बिलकुल नोर्मल बातें कर रहे थे. हमेशा की तरह. सुरभि को ये समझ ही नहीं आ रहा था कि ये चल क्या रहा था.

अचानक से लोकेश ने अजीब सी बात पूछी विजय को. “और सुनाओ,…कोई हॉट आइटम मिली क्या मुंबई में? सुना है वहाँ कि लड़कियाँ बड़ी मस्त हैं.”

“मैं वहाँ काम से गया था, लोकेश…कोई डेट पर थोड़े ही,” विजय झेंपते हुए बोला और हंस दिया.

“कभी कभी थोड़ी मस्ती भी करनी चाहिए, यार. अच्छा…सच बता… सारा दिन बस काम ही किया या फिर अपनी बीवी को इमप्रेस करने के लिए बोल रहा है?” लोकेश बोला.

विजय उसकी बात पर बस हँस दिया, कहा कुछ भी नहीं.

सुरभि बड़ी उलझन में थी. वो बार बार विजय के मन की थाह लेने की कोशिश कर रही थी पर उसे कुछ भी पता नहीं चल रहा था कि उसके मन में क्या चल रहा है.

लंच के बाद लोकेश अपने कमरे में चला गया. सुरभि और विजय दोनो ऊपर अपने बेडरूम में आ गए.

दरवाज़ा बंद करने के बाद विजय ने जैसे ही अपने कमरे की हालत देखी और अपने अस्त व्यस्त बिस्तर को देखा तो सब समझ गया कि यहाँ उसके पीछे से क्या चल रहा था.

“अच्छा…तो ये चल रहा था यहाँ. लोकेश यहीं था ना सुरभि?” विजय बोला.

सुरभि को समझ ही नहीं आ रहा था कि वो क्या जवाब दे. इसलिए उसने चुप रहना ही मुनासिब समझा.

“और तुम भी यहाँ उसके साथ थी ना…? बोलो… तुम दोनो इस बिस्तर पर साथ थे ना?

“विजय वो मैं….मैं…आइ एम वेरी सॉरी…” सुरभि के मुँह से शब्द बाहर ही नहीं निकल रहे थे इसलिए वो इतना बोलकर ही चुप हो गई.

“मुझे पहले से ही पता था कि एक ना एक दिन ये ज़रूर होगा…” विजय ने बैड की तरफ़ बढ़ते हुए कहा.

“तुम कैसे जानते थे…” सुरभि ने लड़खड़ाती हुई आवाज़ में कहा.

“बस, मैं जानता था,” विजय ने बैड पर लेटते हुए कहा,

सुरभि चुपचाप नज़रें झुकाए दूर ही खड़ी रही.

“अच्छा… ये बताओ कि उसने तुम्हारे साथ कितनी बार किया?”

सुरभि को बड़ा ही अजीब लग रहा था कि वो ये क्या पूछ रहा था. वो असमंजस में पड़ गई कि क्या कहे. थोड़ी सी हिम्मत कर के उसने कहा, “बस, एक बार…”

“बस एक बार…? मुझसे कुछ मत छुपाओ सुरभि. इधर आओ मेरे पास और खुल के बताओ पूरी कहानी कि ये सब कैसे हुआ,” विजय ने बैड पे हाथ मार कर उसे अपने पास बुलाते हुए कहा.

वो झिझकते हुए उसके पास जा कर बैड पर बैठ गई और बोली, “क्यों जानना चाहते हो तुम ये सब… रहने दो. तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा.”

“मुझे क्या अच्छा लगेगा क्या नहीं तुम मुझ पर छोड़ दो. मैं सच जानना चाहता हूँ. बताओ कि ये सब कुछ कैसे हुआ…”सुरभि ने सब कुछ जैसे जैसे हुआ था बिलकुल वैसे वैसे विजय को बता दिया सिवाय उसके छोटे लिंग वाली बात की कहानी के. बोलते वक्त उसके गाल शर्म से लाल हो रखे थे और जुबान बार बार लडखडा रही थी पर फिर भी वो बोलती गई और सब सुना कर ही चुप हुई.

“हम्म… तो खूब मज़े किए तुमने मेरे दोस्त के साथ, हैं ना?” विजय बोला.

“इसपर मेरा कोई वश नहीं था, विजय. मेरा विश्वास करो सब कुछ अपने आप ही होता चला गया.” ये बोलते हुए उसका चेहरा शरम और झिझक से लाल हो गया था.

“चलो छोड़ो ये सब बातें ,सुरभि. तुम ज़्यादा परेशान मत हो. मैं जानता हूँ कि इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है. लोकेश जैसे अल्फ़ा मर्द के आगे तो कोई भी औरत पिघल सकती है. तुम क्या कर सकती थी. मैं समझ सकता हूँ…तुम ज़्यादा मत सोचो.”

“तुम्हें सच में बुरा नहीं लग रहा, विजय…” सुरभि ने हैरानी से विज़य की तरफ़ देखते हुए कहा.

“ हम्म…ऐसा नहीं है कि मुझे बुरा नहीं लग रहा. पर मैं ये भी जानता हूँ कि तुम्हारे जैसी औरत पर लोकेश जैसे अल्फ़ा मर्द ने हाथ डालना ही डालना था…”

“मेरे जैसी… मतलब?”

“तुम्हारे जैसी मतलब… सुंदर और हॉट. तुम तो मेनका हो सुरभि, किसी साधु की भी तपस्या भंग कर सकती हो तुम… लोकेश तो फिर भी सांसारिक इंसान है,” विजय ने कहा और सुरभि के बाँये उभार पर अपनी उँगलिया फिराने लगा.

“मुझे नहीं पता मैं उसकी बातों में कैसे आ गई. सच मानो मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं था…” सुरभि ने शर्मा के कहा.

“अब झूठ मत बोलो सुरभि. मुझे सब पता है. अच्छा…ये बताओ कि क्या तुम हमेशा लोकेश जैसे अल्फ़ा मैन की फंटेसी नहीं करती थी? तुम्हें तो ऐसे डील डोल वाले मर्द पहले से ही पसंद आते थे. तो बात ये है बेबी…कि जब तुम्हें लोकेश के रूप में ऐसे आदमी के साथ नज़दीकी बढ़ाने का मौक़ा मिला तो तुमने बिना किसी झिझक के इसका फ़ायदा उठा लिया…बोलो, सही कह रहा हूँ ना मैं?” विजय हँसते हुए बोला.

“ये सच नहीं है, विजय. मेरा यक़ीन करो. मैंने ये सब रोकने की काफ़ी कोशिश की थी. जैसा तुम सोच रहे हो ऐसा कुछ नहीं है. मेरे बस में होता तो मैं उसे अपनी ऊँगली भी ना छूने देती,” सुरभि बोली. बोलते वक्त उसकी आवाज काँप रही थी.

“रहने दो-रहने दो…इतनी ही कोशिश की होती तो तुमने तो तुम्हारी टाँगे उसके लिए कभी ना खुलती. मन तो तुम्हारा भी कर रहा होगा ना उसका मोटा मूसल लेने का. मुझे बनाओ मत, सुरभि …हा-हा-हा…”

विजय की हंसी अजीब थी. वो पता नहीं क्यों ऐसी बातें कर रहा था. इतनी बड़ी बात को वो कैसे इतने हलके में ले रहा था और सुरभि का मजाक उड़ा रहा था. सुरभि को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्यों कर रहा था.

“मैं सच बोल रही हूँ, विजय…ऐसे मेरा मज़ाक़ मत उड़ाओ.”

“तुम्हें लगता है कि मैं मज़ाक़ कर रहा हूँ? मेरा तो जी जल रहा है ये सब सोचकर,” विजय ने चेहरे पर बहुत ही परेशानी वाले भाव ला कर कहा.

सुरभि का गला सुख गया ये सुन कर. “तो तुम मुझसे नाराज़ हो?”

“हम्म…थोड़ा नाराज़ तो हूँ तुमसे.”

“थोड़ा क्यों…? मैं जानती हूँ कि मेरी गलती कोई छोटी मोटी नहीं बल्कि बहुत बड़ी है और तुम्हें मुझसे नाराज़ होने का… झगड़ा करने का पूरा हक़ है…”

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4 Comments

  1. Anju Mastani

    क्या मेरे पति से बात करू उनके दोस्त के बारे में?
    बोहोत ताकता रहता है मेरी चुच्चोंको।😎 💋

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