Chapter 7 – Dost ki biwi ki chudai
सुरभि काफ़ी देर तक अपने बेड पर यूँ ही लेटी रही. वो अपने दिमाग़ से लोकेश के लिंग की तस्वीर मिटाने की भरपूर कोशिश कर रही थी. लेकिन बड़ी ही अजीब बात थी कि जितना वो इस ख़्याल को हटाने की कोशिश कर रही थी वो उतना ही उसकी आँखो के सामने घूम रहा था. सुरभि ने अपनी गर्दन हिलाते हुए एक बार फिर कुछ और सोचने की कोशिश की लेकिन नाकाम रही.
‘हे भगवान! कितना बड़ा था उसका वो अंग,’ सुरभि को अपनी आँखो देखी पर यक़ीन नहीं हो रहा था. ‘किसी का इतना बड़ा भी हो सकता है.’ वो सोच सोच के हैरान थी. ऐसा तो उसने सिर्फ़ इरॉटिक कहानियों में ही पढ़ा था या फिर पोर्न फ़िल्मों में देखा था. उसके पति विजय ने भी उसको यही बताया था कि ये सब कैमरे का कमाल है जो पोर्न फ़िल्मों में इतना बड़ा दिखता है किसी का ये अंग.
ये सब अगर सच था तो वो क्या था जो वो अभी नीचे डाइनिंग रूम में देख कर आई थी और जिसे देखकर अभी तक भी उसकी साँसे तेज चल रही थी. सुरभि असमंजस में थी.
अपनी असली ज़िंदगी में तो सुरभि ने अभी तक विजय के सिवा किसी और का हथियार देखा नहीं था और विजय का वो अंग लगभग पाँच इंच का ही था. ऐसे में भला वो कैसे यक़ीन कर सकती थी कि किसी का और बड़ा भी हो सकता है. एक बार उसकी फ़्रेंड नेहा ने उसे बताया भी था कि उसके पति का ये अंग लगभग नो इंच का है पर सुरभि ने उसका मजाक ही उड़ाया था कि ऐसा कभी नहीं होता, वो बस बढ़ा चढ़ा के बता रही है.
लेकिन जो नज़ारा उसने अभी नीचे देखा था उस आँखों देखी को कैसे झूठला दे. वो इस उधेड़बुन में बुरी तरह खोई हुई थी कि तभी दरवाज़े पर लोकेश ने दस्तक दी.
“दरवाज़ा खोलो,…भाभी…”
सुरभि अचानक आई इस आवाज़ से चौंक गई. उसके हाथ पैर फूल गए और वो बेड से चिपक कर पड़ी रही. वो उठ नहीं पा रही थी. उसके मन में एक साथ कई सवाल चल रहे थे ‘ये यहाँ क्या करने आया है? क्या फिर से मुझे अपना औजार दिखाएगा?’ ऐसा क्यों कर रहा है ये?’
हाँ, लेकिन एक बात तो थी उसके उस विशाल हथियार को दुबारा देखना तो वो भी चाहती थी पर फिर भी उसके कदम दरवाज़ा खोलने के लिए बढ़ नहीं रहे थे.
लोकेश लगातार दरवाज़ा पीटे जा रहा था. “भाभी , खोलो ना दरवाज़ा एक बार.”
सुरभि हिम्मत करके दरवाजे के पास पहुँची और कांपती आवाज़ में लोकेश को बोली, “त-तुम यहाँ…क-क्या करने आए हो? क्या चाहिए तुम्हें?”
“तुम पहले दरवाज़ा तो खोलो,” उसने फिर से दरवाज़ा खड़का दिया.
सुरभि को बिलकुल भी समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे फिर भी कांपते हाथों से उसने अपने कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. अगले ही पल लोकेश उसके बेडरूम के अंदर था.
“तुम दरवाज़ा क्यों नहीं खोल रही थी भाभी…? कब से बाहर से आवाज़ दे रहा था,” लोकेश ने ऐसे अन्दाज़ से पूछा जैसे कि कुछ हुआ ही ना था.
उसके इस सवाल का सुरभि को कोई जवाब ही नहीं सूझ रहा था.
“मैं तो बस ये पूछने आया था कि मैं बाज़ार जा रहा था अगर तुम्हें कुछ मँगवाना है तो बताओ.” वो इतने आराम से सब कह रहा था जैसे कि उसे याद ही ना हो कि अभी नीचे क्या हुआ था.
“मुझे कुछ नहीं मँगवाना, तुम जाओ जहाँ जाना है,” सुरभि ने उससे नज़रें चुराते हुए कहा.
“ठीक है, फिर मैं चलता हूँ,” लोकेश ने दरवाज़े की तरफ़ मुड़ते हुए कहा. लेकिन अगले ही पल वो पीछे मुड़ा और सुरभि की और देखते हुए बोला, “और हाँ, भाभी…पराँठे बहुत टेस्टी थे. ये बोलना तो मैं भूल ही गया था.”
“थैंक्स,” सुरभि ने नक़ली सी मुस्कान के साथ कहा.
“तुम रोज़ खाना ख़ुद ही बनाती हो?”
सुरभि ने हाँ में गर्दन हिला दी.
“तभी तो इतना स्वाद है तुम्हारे हाथों में,” वो उसके उभारों की तरफ़ देखते हुए बोला. “एक बात और पूछनी थी भाभी…”
“क्या?”
“तो फिर कैसा लगा तुम्हें..?”
“क्या?” सुरभि समझ ही नहीं पाई कि वो किस बारे में पूछ रहा था.
“मेरा लंड…”
हे भगवान, वो इस तरह का सवाल उससे कैसे पूछ सकता था. सुरभि ये सुनकर हैरान रह गई.
“तुम्हें इस तरह की बातें मुझ से नहीं करनी चाहिए,” उसने नज़रें झुकाए ज़मीन की तरफ़ देखते हुए कहा.
“इसमें ना करने वाली कौन सी बात है. मैं तो बस इतना ही जानना चाहता हूँ कि मेरे पेनिस को देखने के बाद तुम्हें कैसा लगा…अब देखो, मैंने भी तो तुम्हारे रसभरे उभारों और मस्त नितंबो की खुल कर तारीफ़ की थी…”
“बस करो, लोकेश,” सुरभि ने उसे बीच में ही टोकते हुए कहा.
“अब शर्माना छोड भी दो, भाभी…..तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि भगवान ने तुम्हें इतना सुंदर शरीर दिया है…”
सुरभि को जैसे साँप सूँघ गया था. वो हैरान थी कि लोकेश इतनी आसानी से यह सब कैसे कह सकता था. तभी उसकी नज़र उसकी पैंट पर गई. उसके सामने के हिस्से में पूरा टैंट बना हुआ था. उसे देख कर वो झेंप सी गई.
“द-देखो, लोकेश…मैं थोड़ा ठीक नहीं महसूस कर रही हूँ,” उसने बात बदलते हुए कहा.
“क्या हुआ तुम्हें भाभी? अच्छा….समझ गया…लगता है विजय तुम्हारी ठीक से लेता नहीं है,” उसने सुरभि को छेड़ते हुए कहा.
“मेरी तबियत ठीक नहीं है, लोकेश…”
वो बेशर्मों की तरह हँसने लगा और अपनी पैंट के ऊपर से ही अपने तने हुए हथियार को मसलते हुए बोला, “मुझे इंजेक्शन लगाने का एक मौक़ा दो भाभी मैं तुम्हारी सारी तबियत ठीक कर दूँगा.”
लोकेश की ये बात सुनते ही सुरभि सोच में पड़ गई कि उसका इतना बड़ा हथियार उसकी छोटी सी योनि में कैसे जाएगा और झट से बोल पड़ी, “मुझे नहीं लगता कि तुम्हारा इतना बड़ा वो, मेरी छोटी सी जगह में समा पाएगा.” बोलने के बाद उसे अहसास हुआ कि वो क्या बोल गई और वो शरम से पानी पानी हो गई.
“तुम एक बार ले कर तो देखो इसे भाभी, अपना रास्ता तो ये ख़ुद ही बना लेगा,” लोकेश ने फिर बेशर्मी से अपना लिंग मसलते हुए कहा.
“प्लीज़, लोकेश…मुझसे ऐसी बातें मत करो,” उसने नज़रें झुकाकर कहा. बोलते हुए उसका चेहरा पूरा लाल हो गया था.
“क्यों ना करुँ ऐसी बातें, मुझे पता है कि मेरी बातें सुन सुन कर तुम भी गीली हो रही है…बोलो सच कहा ना मैंने?”
“नहीं ,ऐसा कुछ नहीं है,” सुरभि ने कहा लेकिन उसकी नज़रें घूम कर फिर लोकेश की पैंट में बने हुए टैंट पर चली गई और उसकी साँसे थम गई. ये जो कुछ भी आज हो रहा था वो बहुत ही अजीब था. वो जानती थी कि उसे ये सब नहीं करना चाहिए लेकिन उसके लिए अपनी नज़रें वहाँ से हटा पाना मुश्किल हो रहा था. ये उसे क्या हो रहा था? वो ये सब क्यों कर रही थी? उसे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.वो ये सब सोच ही रही थी कि तभी अचानक उसका फ़ोन बज उठा और उसे मजबूरन अपनी नज़रें वहाँ से हटानी पड़ी. किसका कॉल आया था ये देखने के लिए, वो अपने बेड की तरफ़ दौड़ी. फ़ोन की स्क्रीन पर विजय का नाम देखकर वो काँप उठी.
“कौन है?” लोकेश ने पूछा
“विजय है,” फ़ोन कान पर लगाते हुए उसने लोकेश को बाहर जाने का इशारा किया.
लोकेश ढीठ की तरह वहीं खड़ा रहा और बोला, “ तुम बात कर लो ,भाभी. मैं बीच में कुछ नहीं बोलूँगा….”
सुरभि झल्लाहट में अपनी गर्दन हिलाती हुई खिड़की के पास जा कर विजय का फ़ोन सुनने लगी.
“हेलो बेबी,” विजय ने कहा.
“हेलो विजय…कैसे हो तुम?” सुरभि ने पूछा.
“मैं तो ठीक हूँ. तुम बताओ…वहाँ सब ठीक है ना?” विजय ने थोड़ी चिंता भरी आवाज़ में कहा.
“यहाँ सब ठीक है, विजय,” उसने ग़हरी साँस लेते हुए कहा. अब उसे ये कैसे बताए कि यहाँ कुछ भी ठीक नहीं था. लोकेश तो यहाँ उसकी बीवी को अपना शॉर्ट्स उतार कर दिखा चुका और अभी उनके कमरे में ही खड़ा था. उसके सामने वो कैसे सब सच बताए भला विजय को.
“चलो ठीक है,बेबी… मुझे अभी मीटिंग के लिए तैयार होना है. मैं तुमसे बाद में बात करता हूँ. ओके बाय.”
फ़ोन रखने के बाद सुरभि जैसे ही खिड़की से हटी तो क्या देखती है कि लोकेश उसके बैड पर मज़े से लेटा हुआ था और उसकी पैंट में अभी भी टेंट तना हुआ था जिसे वो बेशर्मी से सहला रहा था.
“लोकेश, तुम्हें अब…..”
“क्या कहा विजय ने?” सुरभि की बात बीच में ही काटकर लोकेश ने पूछा.
“कुछ नहीं…बस वो अभी मीटिंग के लिए तैयार हो रहा था.”
“अच्छा…तुम एक मिनट इधर आओगी ज़रा,” लोकेश ने लेटे-लेटे ही कहा.
लोकेश का इस तरह उसे बुलाना कहीं न कहीं सुरभि को अच्छा तो लग रहा था पर वो उसके पास कैसे जा सकती थी. एक तो वो शादीशुदा थी और दूसरा वो अपने पति से प्यार भी बहुत करती थी. ‘नहीं-नहीं,…वो कभी नहीं जाएगी लोकेश के पास,’ उसने अपने मन को मज़बूत करते हुए .
“क्या सोच रही हो? भाभी…आओ ना”
“तुम्हें अब यहाँ से जाना चाहिए, लोकेश,” सुरभि ने काँपती आवाज़ में कहा.
“चला जाऊँगा पर तुम एक बार आओ तो सही,” उसने बेड पर बैठते हुए कहा.
‘इसके इरादे बिलकुल भी ठीक नहीं लग रहे… कहीं मैं ही ना बहक जाऊँ,’ सुरभि ने मन ही मन सोचा और बहाना बनाते हुए लोकेश से कहा, “मैंने तो अभी नाश्ता भी नहीं किया लोकेश …मैं नीचे जा रही हूँ.”
“चली जाना ऐसी भी क्या जल्दी है, बस एक बार वो आग तो बुझा दो जो तुमने यहाँ लगाई हुई है,” उसने बड़ी बेशर्मी के साथ अपने हथियार को सहलाते हुए कहा.
सुरभि उसकी तरफ़ देख कर बेचैन हो उठी. उसका एक मन उसे रोक रहा था और एक मन लोकेश के पास जाने को मचल रहा था. वो नहीं जानती थी कि ऐसा क्यों हो रहा था.
वो ये सब सोच ही रही थी कि लोकेश अचानक से उठा और उसे खींचकर बैड की तरफ़ ले गया और बैठ गया. अगले ही पल वो उसकी गोद में थी.
“ये-ये..तुम क्या कर रहे हो,लोकेश…छोड़ो मुझे.” सुरभि उसकी बाहों से निकलने की कोशिश करती रहीं पर उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि वो उठ भी नहीं पाई.
“क्या हुआ भाभी? क्यों इतना सता रही हो? हम दोनों ये जानते हैं कि तुम भी यही चाहती हो.”
“नहीं,…ये सच नहीं है, मैं एक शादीशुदा औरत हूँ. मैं ये नहीं चाहती.”
“तुम झूठ बोल रही हो भाभी… ऐसे शर्माओ मत. मेरा साथ दो….मैं तुम्हारी बड़े अच्छे से लूँगा,” लोकेश ने उसके कान में कहा.
लोकेश की सांसों की गर्म हवा ने जैसे ही सुरभि के कान को छुआ वो मचल उठी. “तुम्हारा बहुत बड़ा है……” सुरभि ने शर्माते हुए कहा.
“उसकी चिंता मत करो तुम …मैं वादा करता हूँ तुम्हें जरा भी तकलीफ़ नहीं होने दूँगा.”
“ये तुम कैसे कह सकते हो … मैं जानती हूँ कि कितना बड़ा है तुम्हारा, मुझमें नहीं समा पाएगा वो…” उसने लोकेश की बाहों से बाहर निकलने की कोशिश करते हुए कहा. ऐसे हिलते हुए उसका ध्यान उस सख़्त चीज़ पर गया जिस पर उसके नितम्ब रगड़ खा रहे थे. हे भगवन ये तो उसका हथियार था. ये अहसास होते ही उसके सारे शरीर में जैसे करंट सा लग गया. वो वहीं पर रुक गई. ऐसा पहली बार था जब वो अपने पति के अलावा किसी और का प्राइवेट पार्ट महसूस कर रही थी इस तरह. ये सब सोच कर वो शरम से पानी पानी हो गई.
“हाँ, ऐसे…बिलकुल ऐसे ही बैठी रहो. देखो कितने प्यार से मेरा शेरू तुम्हारे नितंबो को छू कर मचल रहा है,” लोकेश ने शरारती आवाज में कहा.
“ये सब सही नहीं है, लोकेश.”
“इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है, भाभी. सही गलत भूल जाओ और इस पल का मज़ा लो.”
“मुझे तुम्हारे साथ कोई मजे नहीं करने , लोकेश,” उसने धीरे से कहा पर उसकी गोद से उतरने की अब कोई कोशिश नहीं की.
“एक बार फिर सोच लो, भाभी…वैसे अपनी गोद में बैठने का मौक़ा मैं हर किसी को नहीं देता,”
“मुझे थोड़े ही ना बैठना था यहाँ…मुझे जाने दो, लोकेश,” सुरभि ने मचलते हुए कहा.
“देख लो बाद में पछताना ना पड़े,” वो सुरभि की कमर से अपनी बाहों की पकड़ ढीली करते हुए बोला.
वो एक झटके में उसकी गोद से उठ खड़ी हुई और अपने कपडे ठीक करते हुए पलटकर उसकी ओर देखा. उसकी पैंट में अभी भी वही हाल था. उसका हथियार पहले की तरह ही तना हुआ था.
“देखती क्या हों भाभी… फिर से बैठना है तो आ जाओ,” उसने सुरभि को छेड़ते हुए कहा.
“जी नहीं,” सुरभि ने उसकी पैंट से अपनी नज़रें हटाते हुए कहा.
वो हँस दिया और बेड से उठकर दरवाज़े की तरफ़ जाते हुए बोला, “जैसी तुम्हारी मर्ज़ी…तो अब मैं चलता हूँ …वैसे भी मैं तो मार्किट जा रहा था.”
लोकेश के बाहर जाने के बाद सुरभि की हालत बहुत ही ख़राब थी. उसकी धड़कनें तेज़ थी, चेहरा आग की तरह तप रहा था और सबसे ज़्यादा बुरा हाल उसकी पैंटी का था जो कि पूरी तरह से भीगी हुई थी.
‘हे भगवान!…ये क्या हो रहा है मेरे साथ.’ वो ये सोच कर बेचैन हो उठी.
Chapter 8 – Dost ki biwi ki chudai
दिन के लगभग साढ़े बारह बज रहे थे और सुरभि काफ़ी देर से अपने बिस्तर पर ही लेटी हुई थी. बिलकुल एक पत्थर की तरह. उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था. सुबह हुई घटना उसके दिलों दिमाग़ पर छायी हुई थी. उसके मन में बार बार यही बात घूम रही थी कि लोकेश ने उसके साथ कितनी गंदी गंदी बातें की थी ….कैसे उसने अपना शॉर्ट्स उतार कर उसे दिखाया था और इतना ही नहीं उसे अपनी गोद में भी बिठाया था. ये सब उसकी आँखों में तैर रहा था . ये बातें उसे परेशान तो कर रही थी पर इससे भी ज़्यादा हैरानी की बात ये थी कि इन बातों को सोचने में उसे एक अजीब सा मज़ा भी आ रहा था. वो मन ही मन उसकी गोद में ना जाने कितनी बार बैठ चुकी थी और इस अहसास को बार बार महसूस करके वो धीरे धीरे अपने आप मुस्कुरा भी रही थी.
सुबह लोकेश के मार्केट जाने के बाद वो जल्दी जल्दी अपने किचन के सारे काम निपटा के ऊपर आ गई थी ताकि दुबारा उसका सामना ना करना पड़े. घर का मेन गेट भी उसने खुला ही छोड़ दिया था ताकि लोकेश के मार्केट से आने के वक़्त उसे दरवाज़ा खोलने ना जाना पड़े.
‘हो सकता है कि वो मार्केट से आ भी चुका हो और शायद सारे घर में उसे ढूँढ रहा हो. सुबह कितने ख़तरनाक मूड में था वो .कही फिर से कुछ लेने देने की बात ना करे. ना बाबा ना …मैं उसके सामने नहीं जाने वाली. उसका इतना बड़ा मैं कैसे ले पाऊँगी. नहीं-नहीं,…ये तो बिलकुल नहीं हो पाएगा…मैं उसे करने ही नहीं दूँगी,’ सुरभि मन ही मन सोच रही थी और हल्का हल्का सा शर्माते हुए मुस्कुरा भी रही थी.
तभी उसे अपने बेडरूम के दरवाज़े के बाहर किसी के पैरों की आहट हुई और वो चौंक गई कि कहीं ये लोकेश ना हो.
“भाभी,” लोकेश ने दरवाज़ा खटखटाते हुए आवाज़ लगाई.
“हाँ…” सुरभि का अंदाज़ा सही निकला. ये लोकेश ही था. वैसे और कोई हो भी नहीं सकता था. उसके आलावा लोकेश ही तो था घर में.
“दरवाज़ा खोलो ज़रा,” लोकेश बोला.
“अभी मैं आराम कर रही हूँ लोकेश, तुम अपने कमरे में जाओ,” सुरभि ने बहाना बनाते हुए कहा.
“मेरी बात तो सुनो,” वो फिर से बोला.
“बाद में बात करेंगे अभी तुम जाओ, लोकेश,” सुरभि ने कहा.
लोकेश बिना कुछ कहे लगातार दरवाज़ा पीटने लगा. झल्ला कर सुरभि चिल्ला कर बोली, “क्या चाहिए तुम्हें मुझसे?”
“तुम्हारी चिकनी-चिकनी और गिली-गिली सुरंग चाहिए,” उसने बड़ी ही बेशर्मी के साथ कहा.
ये सुनकर सुरभि के होश उड़ गए पर फिर भी वो जाने क्यों बोल पड़ी, “वो मैं तुम्हें नहीं दे सकती…तुम्हारा वो बहुत बड़ा है,” और इतना बोलते ही उसका चेहरा शरम से लाल हो गया. क्या जरुरत थी ऐसी बात बोलने की लोकेश को. ऐसी बातों से वो और भड़केगा.
“एक बार लेकर तो देखो… सब अपने आप ठीक हो जाएगा,” लोकेश ने झट से कहा.
सुरभि इस बार चुप रही. कुछ नहीं बोली.
“भाभी… डरो मत… बस एक बार लेकर देखो…”
सुरभि इस बार चुप नहीं रह पाई. “नहीं –नहीं… ऐसा नहीं होने दूंगी मैं.”
“चलो बैठ कर आराम से बात करते हैं…. दरवाजा खोलो…”
“मुझे बहुत डर लगता है तुम्हारी बातों से. तुम प्लीज़ जाओ यहाँ से.” सुरभि का दिल ज़ोर-जोर से धड़क रहा था. पता नहीं क्या होने वाला था उसके साथ आज.
“देखो भाभी, मुझसे बिलकुल भी रुका नहीं जा रहा …प्लीज़, एक बार दरवाज़ा खोल दो…बस एक बार प्लीज़,” लोकेश गिड़गिड़ाते हुए बोला.
सुरभि ने अपनी गर्दन हिलाते हुए दरवाज़ा खोला और शर्माते हुए बोली, “कुछ तो शरम करो, तुम हमारे घर में मेहमान हो.”
“मेहमान हूँ तभी तो मेहमान नवाज़ी करने को कह रहा हूँ.”
“देखो, मैं तुम्हें पहले भी बता चुकी हूँ कि मैं ये सब नहीं कर सकती.”
उसने आगे बढ़कर सुरभि के कंधों पर अपने दोनो हाथ रख दिए और उसकी आँखों में देखते हुए बोला, “पता है मार्केट में एक से बढ़कर एक ख़ूबसूरत लड़कियाँ मुझे देख रही थी…चाहता तो किसी को भी पटा सकता था लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया और सीधा वापिस तुम्हारे पास चला आया…जानती हो क्यों.”
“क्यों?” सुरभि ने मासूमियत से पूछा.
“क्योंकि मैं आज का ये ख़ूबसूरत दिन सिर्फ़ तुम्हारे साथ बिताना चाहता था…अब ये शर्म हया सब छोड़ो ना भाभी और मुझे तुम्हारे इस नशीले बदन से अपनी प्यास बुझाने दो. आज मैं तुम्हें अपने रोकेट पे बिठा के चाँद की सैर कराऊँगा और मेरा यक़ीन करो भाभी, तुम्हें बहुत मज़ा आएगा.”सुरभि का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा लोकेश की ऐसी मस्ती भरी बातें सुनकर. उसके बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी. उसी मदहोशी में खोई हुई वो बोल पड़ी, “मैंने तुम्हें पहले भी बोला है , लोकेश कि तुम्हारा इतना बड़ा…”
इससे पहले कि वो अपनी बात पूरी कर पाती लोकेश ने झट से अपना दाँया हाथ सुरभि की टांगो के बीच रख दिया और उसकी योनि को कपड़ों के ऊपर से ही रगड़ते हुए बोला, “साइज़ की चिंता मत करो भाभी…मैं सब संभाल लूँगा.
अपनी योनि पर लोकेश की उँगलियो की छुअन सुरभि को बेचैन कर रही थी. उसकी साँसे फूलने लगी और वो सिसक उठी, “प..प्लीज़… ऐसा मत करो लोकेश”
“क्यों ना करूँ…मुझे मालूम है कि ये सब तुम्हें भी अच्छा लग रहा है.”
“समझा करो, लोकेश…मैं तुम्हारे दोस्त की बीवी हूँ. ये सब करना ठीक नहीं है,” सुरभि ने लोकेश को पीछे हटाते हुए कहा.
“दोस्त की बीवी हुई तो क्या हुआ. मैं सब जानता हूँ कि तुम भी मेरे साथ सेक्स का मज़ा लेना चाहती हो.”
“जी नहीं…वो सब करने को मेरा पति है ना मेरे पास. मैं खुश हूँ विजय के साथ…तुम जाओ यहाँ से.”
“लेकिन अभी तो तुम्हारा पति यहाँ नहीं है ना. और ना ही तुम्हारे पति के पास मेरे जैसा मोटा और बड़ा औजार है,” लोकेश ने शान से कहा.
“ये तुम कैसे कह सकते हो? तुमने कौन सा मेरे पति का देखा है भला…”
“मैं सब जानता हूँ ऐसे ही थोड़े ना हम पुराने दोस्त हैं.”
“तुम ये सब कैसे जानते हो?” सुरभि ने हैरान हो कर पूछा.
“ये बात तो मैं कॉलेज के दिनों से ही जानता हूँ. उस वक्त विजय अपने लिंग के साइज़ को लेकर बहुत परेशान रहता था. इसके लिए उसने बहुत सी किताबें भी पढ़ी थी और एक बार तो किसी देसी दवाखाने से उसने दवाई भी ली थी इसके लिए. पूरा महीना दवा खाने के बाद जब कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा तो वो देसी दवाखाने पर लड़ने पहुँच गया और खूब झगड़ा किया. लेकिन उन लोगों ने उसे बुरी तरह से मार पीट के वहाँ से भगा दिया. जब मैंने उसे इस हालत में देखा तो पूछा कि ये क्या हुआ तुम्हें. तब ये बात उसने मुझे बताई थीं. उसी दिन मैं उसे लेकर दुबारा उस दवाखाने में गया और उन सब की जम के धुलाई की. उन्होंने ना केवल विजय से माफ़ी माँगी बल्कि उसके सारे पैसे भी वापिस कर दिए .इसलिए, भाभी जी…मैं पहले से जानता हूँ कि विजय का औजार छोटा है… तुम्हें बाद में पता चला,” वो इतना बोल के हँस पड़ा.
‘अब मुझे पता चला कि विजय लोकेश का इतना मान क्यों करता है,’ सुरभि ने मन ही मन सोचा और लोकेश को कहा, “मगर…”
“अरे… अब छोड़ो ये अगर मगर और मेरे आओ,” इतना कहते ही लोकेश ने उसे अपनी तरफ़ खींचा और अपने होंठ उसके होंठो पर टिका दिए.
सुरभि चौंक गई और लोकेश को पीछे की तरफ़ धक्का देते हुए बोली, “ये तुम क्या कर रहे हो?”
“तुम्हें किस कर रहा हूँ और क्या…छोडो ये सारी बातें, भाभी… मुझे किस करने दो. देखना तुम्हें भी मजा आएगा…”
“मुझे कोई मज़े नहीं करने तुम्हारे साथ,” उसने हल्का सा हँसते हुए बोली.
“चलो देखते हैं फिर….” इतना कहते ही लोकेश ने फिर से अपने होंठ सुरभि के होंठो पर टिका दिए. इस बार ना तो सुरभि ने उसे धक्का दिया ना ही रोका. इससे लोकेश के होंसले और भी बढ़ गए और वो उसके होठों को तरह तरह से चूमने लगा.
“प्लीज़ अब और नहीं…,”सुरभि को मज़ा तो आ रहा था फिर भी उसने उसे पीछे हटा कर रोकना चाहा.
“अभी से कैसे बस करूँ. अभी तो इन गुलाब की पंखुड़ियों से बहुत सा रस चूसना बाक़ी है…तुम बहुत हॉट हो…भाभी,” उसने कहा और अपने दोनो हाथों से सुरभि का चेहरा पकड़ कर उसे फिर से बेतहाशा चूमने लगा. बीच बीच में वो उसके होंठो को अपने दाँतो से पकड़ कर खींच रहा था और इसमें भी सुरभि को दर्द की बजाए मजा ही आ रहा था. विजय ने कभी इतने जुनून के साथ उसके होठों को नहीं चूमा था. सुरभि इस किस के नये से अहसास में खोती जा रही थी. लोकेश उसके होठों को अपने होंठों में दबा दबाकर चूसे जा रहा था. काफ़ी देर तक ये सिलसिला चलता रहा. जब लोकेश की साँसे फूलने लगी तब जा कर कहीं वो रुका.
“ओह… भाभी, तुम्हारे होंठों में तो शहद भरा है…शहद. पीते-पीते जी ही नहीं भरता.”
“अब तुम जाओ लोकेश,” सुरभि शर्माते हुए बोली.
“अभी तो बस शुरुआत हुई है, भाभीजी…अभी से कहाँ जाऊँ. तुम्हारे रसीले होंठों का रस पीने के बाद अब मैं यहाँ से तुम्हारी लिए बिना कहीं नहीं जाने वाला. तुम क्या चाहती हो…मेरा शेरू बेचारा प्यासा ही रह जाए,” लोकेश ने कहा और अपने कपड़े उतारने लगा.
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Kya kahani hei bhai. 😍 mene to padhakar muth marli 🍌
Kash mera bhi eisa koi dost hota 🥺❤️
क्या मेरे पति से बात करू उनके दोस्त के बारे में?
बोहोत ताकता रहता है मेरी चुच्चोंको।😎 💋