अब तक आपने पढ़ा की जीजाजी ने नीरू को डॉगी स्टाइल मे चोदना शुरू किया मगर प्रशांत ने आकर रोका और ऋतु दीदी भी आ गये.
सबने मिलकर जीजाजी को कॉर्नर करना शुरू किया मगर जीजाजी ने अपने बचाव मे ऋतु और प्रशांत की चुदाई का राज नीरू को बता दिया और टूटे दिल से नीरू ने निराश होकर जीजाजी के सामने हथियार डाल दिए. जीजाजी ने अपने लंड से नीरू के मूह को चोदना शुरू कर दिया.
अब आगे की कहानी प्रशांत की ज़ुबानी जारी हैं…
नीरू का गुस्सा जायज़ था पर इसके लिए उसको जीजाजी का लंड चूसने की क्या ज़रूरत थी! शायद उसको अपना गुस्सा और बदला निकालने का यही तरीका सही लगा.
ऋतु दीदी भी शॉक्ड थे. वो बिस्तर से उठकर रोते हुए कमरे से बाहर चले गये. मैने नीरू को रोकने की कोशिश की.
प्रशांत: “नीरू, ई आम सॉरी. पर मैने कुच्छ नही किया था. वो ऋतु दीदी ने ही ज़बरदस्ती मेरे साथ किया था”
नीरू ने जीजाजी का लंड अपने मूह से निकाल दिया और मेरी तरफ देखा.
नीरू: “तुम कोई छोटे बच्चे थे जो ऋतु दीदी ने तुम्हे चोद दिया और तुम कुच्छ नही कर पाए, तुम उनको रोक भी सकते थे ना!”
प्रशांत: “मैं वो सब नही करना चाहता था, पर ऋतु दीदी को रोक नही पाया. मैं उनकी रेस्पेक्ट करता हूँ”
नीरू: “सच क्यू नही कहते की तुम्हे भी ऋतु दीदी को चोदने के मज़े लेने थे. रेस्पेक्ट की बात कर रहे हो! रेस्पेक्ट तो मैं भी जीजाजी की करती हूँ तो अब मैं भी उनको चोद देती हूँ”
प्रशांत: “नही, प्लीज़ नीरू, ऐसा मत करो”
नीरू उठ गयी और जीजाजी का हाथ पकड़ कर बिस्तर के पास लाई. जीजाजी पीछे मुड़कर मुझे देख रहे थे और स्माइल कर रह थे की उनको फसाने के चक्कर मे मैं खुद फँस चुका था.
जीजाजी बिस्तर पर लेट गये. जीजाजी का लंड कड़क होकर और भी ज़्यादा टन कर खड़ा हो चुका था. नीरू बिस्तर के पास खड़ी मुड़कर मुझे प्यासी निगाहो से देखने लगी. तभी जीजाजी ने नीरू की कलाई पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और नीरू आकर जीजाजी के लंड पर बैठ गयी.
अगले कुच्छ सेकेंड मे नीरू ने जीजाजी के लंड को पकड़े अपनी चूत पर रग़ाद कर अंदर डालने की कॉसिश की. मैं लगातार नीरू को प्लीज़ बोलते हुए गुहार करता रहा की वो ऐसा ना करे. मगर नीरू जितना तड़प रही थी उतना मुझे भी तड़पाना चाहती थी.
मेरी “प्लीज़ प्लीज़” की गुहार तब रुक गयी जब नीरू और जीजाजी की एक साथ अया निकली. नीरू ने जीजाजी का लंड अपनी चूत मे डाल दिया था. मैं निराशा मे अपने मूह पर हाथ फेरता रह गया.
मेरी एक बेवफ़ाई की ग़लती की सज़ा नीरू खुद को दे रही थी. जितना मुझे दुख हो रहा था उतना ही दुख नीरू को भी हो रहा होगा यह मुझे यकीन था और वो उसकी गीली हो चुकी आँखो में दिख रहा था.
नीरू धीमे धीमे उपर नीचे होते हुए चुदाई कर रही थी. मगर हर बार उपर नीचे होने पर जीजाजी एक “आ आ” की आवाज़ निकाल रहे थे.
चुदाई की स्पीड भले ही धीमी थी पर नीरू के बड़े से मम्मे हल्के से उच्छल कर हिल रहे थे जो उस दृश्या को मादक बना रहे थे.
मैने खुद ने काफ़ी समय से चुदाई नही की थी और मेरे सामने एक ऐसी चुदाई चल रही थी जिसको मैं एंजाय भी नही कर सकता था.
मैं बस मूर्ति बने हुए काफ़ी समय बाद नीरू के पुर नंगे बदन को चूड़ते हुए देखने का सुख ले रहा था. मैं यह भूल जाना चाहता था की नीरू उस वक़्त जिजज़ि को चोद रही थी.
जीजाजी ने नीरू की गान्ड को दोनो हाथो से पकड़ लिया था और जैसे नीरू को उपर नीचे तेज उच्छालाने की कॉसिश कर रहे थे. नीरू तेज़ी से नही चोदना चाहती थी.
जीजाजी ने नीरू की कमर को पकड़े उपर नीचे करने की कोशिश की जिस से नीरू को कमर मे खिकाव महसूस हुआ और दर्द भी. उस दर्द से बचने के लिए नीरू ने फिर अपनी चुदाई की स्पीड बढ़ा दी.
जीजाजी की आहों की आवाज़ और बढ़ गयी थी. नीरू अब अच्च्चे से उच्छल उच्छल कर चुदाई कर रही थी. नीरू के बड़े मम्मे अब काफ़ी तेज़ी से उपर नीचे उच्छल कर नाच रहे थे.
मैने नीरू के मम्मों को इतना उच्छलते हुए कभी नही देखा था. जीजाजी भी अपनी नज़रे नीरू के मम्मों पर गढ़ाए हुए थे.
जीजाजी ने बीच बीच मे अपने हाथ से नीरू के उन दोनो नाचते हुए मम्मों को थोड़ा थोड़ा दबा कर रोका भी. मगर फिर जीजाजी को भी लगा की नाचते हुए मम्मे ज़्यादा आकर्षक हैं तो उन्हे छोड़ दिया.
कुच्छ सेकेंड्स के बाद नीरू की चूत से पूछक्क पूछक की आवाज़े आने लगी थी. उन दोनो मे से किसी एक का या फिर दोनो का पानी च्छुतना शुरू हो गया था जिस से ऐसी आवाज़ आ रही थी.
अब तक नीरू की आँखो में भरा पानी गालो पर बहने लगा था. नीरू अब रुक चुकी थी.
जीजाजी: “हा नीरू … चोदती रह … मज़ा आ रहा हैं नीरू .. और ज़ोर से चोद … ऋतु और प्रशांत ने भी मज़े लेकर छोड़ा था”नीरू नही हिली तो जीजाजी ने ही अपने लंड से ज़ोर के झटके नीरू की चूत में मारा.
नीरू: “आआहह …उम्म्म्म .. जीजाजी … आईई … ऊऊईए माआ … अया अया”
जीजाजी जोश में अपने झटके मारते रहे.
नीरू: “अया जीजाजी … नाअ .. ओह्ह्ह .. ओईए मा … अया आ आ ,. जीजा जी”
जीजाजी: “मज़ा आ रहा हैं ना नीरू … बोल नीरू .. मुझसे चुदवा कर मज़ा आ रहा हैं ना!”
नीरू की आँखें छ्होटी हो गयी थी. मूह थोड़ा खुला था और माथे पर बाल पड़ चुके थे. नीरू ने कोई जवाब नही दिया.
जिस चुदाई का शक और डर मुझे हमेशा से था वो आज हक़ीकत मे मैं अपनी आँखों से देख रहा था और मुझे यकीन नही हो रहा था की यह सच हैं.
हर झटके के साथ ही नीरू चीख पड़ती और आहें भरने लगती.
नीरू: “हाः … हाआह .. आआईय मा … उहह ”
जीजाजी: “नीरू ज़ोर से चोद दे मुझे … तुज्झे मज़ा आ रहा हैं ना! .. मुझे भी आ रहा हैं”
नीरू: “आआहह … उम्म्म्म .. ”
जीजाजी: “मज़ा आ रहा हैं?”
नीरू: “अहह .. ”
जीजाजी: “कितना मज़ा आ रहा हैं?”
नीरू: “अया … ऊऊहह … ”
जीजाजी: “और ज़ोर से छोड़ो नीरू…. और मज़ा आएगा .. कम ओं नीरू चोद दे मुझे”
नीरू: “ऊवू मा . .. ”
जीजाजी: “श नीरू .. चोद दे मुझे … इट्न मज़ा कभी नही आया मुझे … श मेरी जान नीरू … चोद दे मुझे ज़ोर से …अयाया अया नीरू चोद मुझे .. ऊऊहह”
तभी ऋतु दीदी कमरे मे वापिस आ गये. जीजाजी और नीरू को टूट कर इतने अच्च्चे से चुदाई करते देख उनका भी दिमाग़ घूम गया.
ऋतु दीदी: “नीरू, तुझे नीरज ने यह नही बताया की उस वक़्त मैं हयपेर्सेक्श की बीमारी सी जूझ रही थी और मैने वो ग़लती कर दी. हमारे मन मे चोर होता तो हम और भी यह ग़लत काम करते मगर हमने नही किया. उल्टा मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ और यह बात मैने खुद नीरज को बता दी थी. मगर तुम जो कर रही हो वो ग़लत हैं. मेरे और प्रशांत के बीच जो हुआ उसमे प्रशांत की कोई ग़लती नही हैं. मेरी तरह तू भी बाद मे पचहताएगी. रुक जा.”
नीरू ने रोटी हुई सूरत से ऋतु दीदी की तरफ देखा. जीजाजी ने इस बीच नीरू की चूत मे झटके मारे और नीरू उच्छल पड़ी.
जीजाजी: “नीरू, तू ऋतु की मत सुन और मुझे चोदती रह. देख हूमें कितना मज़ा आ रहा हैं ना! बोल नीरू … कम ओं चोद दे मुझे पूरा ..नीरू बोल ना ..”
जीजाजी ने एक के बाद एक झटके नीरू की चूत मे मारे पर नीरू ने जवाब नही दिया. नीरू अचानक जीजाजी के उपर से उठ कर साइड मे आ गयी. जीजाजी अपना लंड हवा मे उपर नीचे कर चोदते रह गये.
जीजाजी: “नीरू इनकी बातों मे मत आ. चल फिर से मेरे उपर आकर चोद मुझे. अपने जीजाजी को नही छोड़ेगी नीरू”नीरू ने कुच्छ नही कहा और जीजाजी भी बिस्तर से उठ खड़े हुए और नीरू को पकड़ लिया.
जीजाजी: “तू तक गयी हैं तो मैं तुझे चोद देता हूँ. चल आ..”
जीजाजी ने नीरू को बिस्तर पर लेटाने की कोशिश की पर नीरू ने उनका हाथ हटा दिया और अपने कपड़े लेकर वॉशरूम मे चली गयी. जीजाजी वॉशरूम के दरवाजे पर हाथ मारते हुए पुकारते रह गये.
ऋतु दीदी अपने कमरे मे चले गये. मैं अपना सिर पकड़े खड़ा रहा. थोड़ी देर मे नीरू अपना चेहरा लटकाए वॉशरूम से कपड़े पहने बाहर आई.
जीजाजी अभी भी नंगे खड़े थे. उनका लंड थोड़ा लटक चुका था. जीजाजी ने नीरू को फिर से पकड़ा और उसको चुदाई की सिफारिश की.
जीजाजी: “कपड़े क्यू पहन लिए नीरू, चल मेरा काम अभी पूरा नही हुआ हैं. चल कपड़े खोल .. मेरा लंड चूस ले .. बहुत मज़ा आएगा”
नीरू ने जीजाजी की हाथ झटक दिया. जीजाजी ने गुस्से मे ताक़त लगा कर नीरू के बड़े से मम्मों को अपनी हथेली से दबा दिया और नीरू की एक ज़ोर की चीख निकली और अगले ही पल एक ज़ोर का छाँटा नीरू ने जीजाजी के चहरे पर मार दिया.
जीजाजी दो कदम दूर हट गये. अपने गाल पर हाथ रखे नीरू को आश्चर्य से देखने लगे.
जीजाजी: “नीरू! तूने अपने जीजाजी को छाँटा मारा!”
नीरू: “गेट आउट!”
जीजाजी 2-3 सेकेंड खड़े रहे और फिर अपने कपड़े उतहाए कमरे से बाहर चले गये. नीरू वही बिस्तर मे मूह छिपाए थोड़ी देर सूबकती रही.
जीजाजी और ऋतु दीदी हमारे घर से चले गये. मुझे समझ नही आ रहा था की कैसे रिक्ट करू. हमेशा नीरू पर शक किया की उसने जीजाजी से चुडवाया होगा और आज पहली बार उसने चदूवाया वो भी मेरी आँखों के सामने.
नीरू बाद मे उतही और नहा धो कर तायेयर हो गयी और अपना बाग पॅक करने लगी. मैं कमरे मे गया तो उसने एक नज़र मुझे देखा और फिर कपड़े जमाने लगी.
नीरू: “मैं जा रही हूँ, तुम्हे जो मेरे और जीजाजी के रिश्ते पर शक था वो अब जाकर सच हो चुका हैं. अब शायद तुम्हे मेरे जाने से कोई फ़र्क नही पड़ेगा”
मैं कुच्छ बोल ही नही पाया और नीरू के चेहरे को देखता ही रह गया.
नीरू मेरे घर से बाग लेकर जाने लगी और जाते जाते कहती गयी.
नीरू: “मेरे पेट मे जो बच्चा हैं वो तुम्हारा ही हैं, मैं उसको पैदा करूँगी. चिंता मत करो तुमपे इसका कोई बोझ नही आएगा. और अगर तुम्हे शक हैं की यह बच्चा भी तुम्हारा नही हैं तो कोई बात नही. अब कोई फ़र्क नही पड़ता मुझे”
मैं नीरू को रोकना चाहता था पर आवाज़ ही नही निकली और नीरू मुझे छोड़ कर चली गयी.
ऋतु दीदी और जीजाजी ने समझौता कर लिया क्यू की दोनो ने एक एक ग़लती की थी. वो अभी साथ में ही हैं.
मैने भी एक ग़लती की थी और ऋतु दीदी से चुदवा कर नीरू से बेवफ़ाई की थी. नीरू ने भी निराशा और गुस्से मे एक ग़लती की थी. मुझे लगा की मुझे नीरू को अपनाना चाहिए.
ऋतु दीदी का फोन आता हैं और पुचहते हैं की मैने नीरू को मनाया हैं या नही. उस घटना के बाद से नीरू ने जीजाजी और ऋतु दीदी से भी बात करना बंद कर दिया था.
मैं रोज नीरू के ऑफीस के बाहर शाम को फूओल लेकर पहुच जाता हूँ और उसको मनाने की कॉसिश करता हूँ की वो वापिस मेरे पास आ जाए. उम्मीद हैं की एक ना एक दिन तो वो ज़रूर पिघलेगी और मेरे पास वापिस आएगी.
एंड नोट: “विश्वास की डोर्र एक बार टूट जाए तो फिर जुड़ना मुश्किल होता हैं. प्रशांत ने शक करना नही छोड़ा और नीरू उसकी शिकार बन गयी. प्रशांत ने नीरू को एक बार फिर खो दिया. आशा हैं की अपनी ग़लतियो को पीछे छोड़कर वो दोनो फिर से मिल जाए”